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“અહો ! શ્રુતજ્ઞાનમ્” ગ્રંથ જીર્ણોદ્ધાર ૧૫૫
ઉણાદી ગણ વિવૃત્તિ
: દ્રવ્ય સહાયક :
શાસન સમ્રાટ પૂ. આ. શ્રી નેમીસૂરીશ્વરજી મ.સા. સમુદાયના પૂ. આ. શ્રી શીલચંદ્રસૂરીશ્વરજી મ.સા.ની પ્રેરણાથી શ્રી તૃપ્તિ જૈન શ્રાવિકા ઉપાશ્રય, ભાવનગરના જ્ઞાનખાતાની ઉપજમાંથી
: સંયોજક :
શાહ બાબુલાલ સરેમલ બેડાવાળા શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાનભંડાર
શા. વિમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન
હીરાજૈન સોસાયટી, સાબરમતી, અમદાવાદ-૫
(મો.) 9426585904 (ઓ.) 22132543
સંવત ૨૦૬૯
ઈ. ૨૦૧૩
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अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार - संवत २०६५ (ई. 2009) सेट नं.-१
ક્રમાંક
प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची। यह पुस्तके www.ahoshrut.org वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। પુસ્તકનું નામ र्त्ता-टीडाडार - संपाह पू. विक्रमसूरिजी म.सा.
પૃષ્ઠ
पू. जिनदासगणि चूर्णीकार
पू. मेघविजयजी गणि म. सा.
001
002
003
004
005
006
007
008
009
010
011
012
013
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015
016
017
श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार
संयोजक - शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543 - ahoshrut.bs@gmail.com शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद - 05.
018
019
020
021
022
023
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025
026
027
028
029
श्री नंदीसूत्र अवचूरी
श्री उत्तराध्ययन सूत्र चूर्णी
श्री अर्हद्गीता भगवद्गीता
श्री अर्हच्चूडामणि सारसटीकः
श्री यूक्ति प्रकाशसूत्रं
श्री मानतुङ्गशास्त्रम्
अपराजितपृच्छा
शिल्प स्मृति वास्तु विद्यायाम्
शिल्परत्नम् भाग - १
शिल्परत्नम् भाग - २
प्रासादतिलक
काश्यशिल्पम्
प्रासादमञ्जरी
राजवल्लभ याने शिल्पशास्त्र
शिल्पदीपक
वास्तुसार
दीपार्णव उत्तरार्ध
જિનપ્રાસાદ માર્તણ્ડ
जैन ग्रंथावली
હીરકલશ જૈન જ્યોતિષ
| न्यायप्रवेशः भाग-१
दीपार्णव पूर्वार्ध
| अनेकान्त जयपताकाख्यं भाग - १
| अनेकान्त जयपताकाख्यं भाग-२
प्राकृत व्याकरण भाषांतर सह तत्त्पोपप्लवसिंहः
शक्तिवादादर्शः
क्षीरार्णव
वेधवास्तु प्रभाकर
पू. भद्रबाहुस्वामी म.सा.
पू. पद्मसागरजी गणि म.सा.
पू. मानतुंगविजयजी म.सा.
श्री बी. भट्टाचार्य
| श्री नंदलाल चुनिलाल सोमपुरा
श्रीकुमार के. सभात्सव शास्त्री
श्रीकुमार के. सभात्सव शास्त्री
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई
श्री विनायक गणेश आपटे
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई
श्री नारायण भारती गोंसाई
श्री गंगाधरजी प्रणीत
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई
શ્રી નંદલાલ ચુનીલાલ સોમપુરા
श्री जैन श्वेताम्बर कोन्फ्रन्स
શ્રી હિમ્મતરામ મહાશંકર જાની
श्री आनंदशंकर बी. ध्रुव
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई
पू. मुनिचंद्रसूरिजी म. सा.
श्री एच. आर. कापडीआ
श्री बेचरदास जीवराज दोशी
श्री जयराशी भट्ट, बी. भट्टाचार्य
श्री सुदर्शनाचार्य शास्त्री
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई
238
286
84
18
48
54
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850
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280
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640
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500
454
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414
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288
30 | શિન્જરત્નાકર
प्रासाद मंडन श्री सिद्धहेम बृहदवृत्ति बृहन्न्यास अध्याय-१ | श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्याय-२ श्री सिद्धहेम बृहवृत्ति बृहन्न्यास अध्याय-३
श्री नर्मदाशंकर शास्त्री | पं. भगवानदास जैन पू. लावण्यसूरिजी म.सा. પૂ. ભાવસૂરિની મ.સા.
520
034
().
પૂ. ભાવસૂરિ મ.સા.
श्री सिद्धहेम बृहवृत्ति बृहन्न्यास अध्याय-3 (२)
324
302
196
039.
190
040 | તિલક
202
480
228
60
044
218
036. | श्री सिद्धहेम बृहवृत्ति बृहन्न्यास अध्याय-५ 037 વાસ્તુનિઘંટુ 038
| તિલકમન્નરી ભાગ-૧ તિલકમગ્નરી ભાગ-૨ તિલકમઝરી ભાગ-૩ સખસન્ધાન મહાકાવ્યમ્ સપ્તભફીમિમાંસા ન્યાયાવતાર વ્યુત્પત્તિવાદ ગુઢાર્થતત્ત્વલોક
સામાન્ય નિર્યુક્તિ ગુઢાર્થતત્ત્વાલોક 046 સપ્તભીનયપ્રદીપ બાલબોધિનીવિવૃત્તિઃ
વ્યુત્પત્તિવાદ શાસ્ત્રાર્થકલા ટીકા નયોપદેશ ભાગ-૧ તરષિણીકરણી નયોપદેશ ભાગ-૨ તરકિણીતરણી ન્યાયસમુચ્ચય ચાદ્યાર્થપ્રકાશઃ
દિન શુદ્ધિ પ્રકરણ 053 બૃહદ્ ધારણા યંત્ર 05 | જ્યોતિર્મહોદય
પૂ. ભાવસૂરિની મ.સા. પૂ. ભાવસૂરિન મ.સા. પ્રભાશંકર ઓઘડભાઈ સોમપુરા પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. વિજયઅમૃતસૂરિશ્વરજી પૂ. પં. શિવાનન્દવિજયજી સતિષચંદ્ર વિદ્યાભૂષણ શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા) શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા) પૂ. લાવણ્યસૂરિજી. શ્રીવેણીમાધવ શાસ્ત્રી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. દર્શનવિજયજી પૂ. દર્શનવિજયજી સ. પૂ. અક્ષયવિજયજી
045
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138
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(04)
210
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216
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શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાનભંડાર
સંયોજક – બાબુલાલ સરેમલ શાહ
શાહ વીમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન हीरान सोसायटी, रामनगर, साबरमती, महावाह - 04.
(मो.) ९४२५५८५८०४ (ख) २२१३२५४३ ( - भेल) ahoshrut.bs@gmail.com
अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ भर्णोद्धार संवत २०५५ (६. २०१०) - सेट नं-२
પ્રાયઃ જીર્ણ અપ્રાપ્ય પુસ્તકોને સ્કેન કરાવીને ડી.વી.ડી. બનાવી તેની યાદી. खा पुस्तो www.ahoshrut.org वेवसाइट परथी पए। डाउनलोड sरी शडाशे. પુસ્તકનું નામ
ईर्त्ता टीडाडार-संचा
ક્રમ
055 | श्री सिद्धम बृहद्वृत्ति बृहद्न्यास अध्याय-६ 056 | विविध तीर्थ कल्प
057
ભારતીય જૈન શ્રમણ સંસ્કૃતિ અને લેખનકળા | 058 सिद्धान्तलक्षगूढार्थ तत्त्वलोकः
059 व्याप्ति पञ्चक विवृत्ति टीका
જૈન સંગીત રાગમાળા
060
061 चतुर्विंशतीप्रबन्ध ( प्रबंध कोश)
062 | व्युत्पत्तिवाद आदर्श व्याख्यया संपूर्ण ६ अध्याय
063 | चन्द्रप्रभा हेमकौमुदी
064 | विवेक विलास
065 | पञ्चशती प्रबोध प्रबंध
066 | सन्मतितत्त्वसोपानम्
ઉપદેશમાલા દોઘટ્ટી ટીકા ગુર્જરાનુવાદ
067
068 मोहराजापराजयम्
069 | क्रियाकोश
-
070 कालिकाचार्यकथासंग्रह
071 सामान्यनिरुक्ति चंद्रकला कलाविलास टीका
072 | जन्मसमुद्रजातक
073 मेघमहोदय वर्षप्रबोध
074
જૈન સામુદ્રિકનાં પાંચ ગ્રંથો
ભાષા
सं
.:
सं
सं
सं
गु.
सं
श्री मांगरोळ जैन संगीत मंडळी
श्री रसिकलाल एच. कापडीआ
श्री सुदर्शनाचार्य
पू. मेघविजयजी गणि
सं/गु. श्री दामोदर गोविंदाचार्य
सं
F
सं
सं
सं
पू. लावण्यसूरिजी म.सा.
पू. जिनविजयजी म.सा.
शुभ.
सं
सं/ हिं
सं.
सं.
सं/हिं
सं/हिं
शुभ.
पू. पूण्यविजयजी म.सा.
| श्री धर्म
श्री धर्मदत्त
पू. मृगेन्द्रविजयजी म.सा.
पू. लब्धिसूरिजी म.सा.
पू. हेमसागरसूरिजी म.सा.
पू. चतुरविजयजी म.सा.
श्री मोहनलाल बांठिया
श्री अंबालाल प्रेमचंद
श्री वामाचरण भट्टाचार्य
श्री भगवानदास जैन
श्री भगवानदास जैन
श्री हिम्मतराम महाशंकर जानी
પૃષ્ઠ
296
160
164
202
48
306
322
668
516
268
456
420
638
192
428
406
308
128
532
376
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'075
374
238
194
192
254
260
| જૈન ચિત્ર કલ્પદ્રુમ ભાગ-૧ 16 | જૈન ચિત્ર કલ્પદ્રુમ ભાગ-૨ 77) સંગીત નાટ્ય રૂપાવલી 13 ભારતનાં જૈન તીર્થો અને તેનું શિલ્પ સ્થાપત્ય 79 | શિલ્પ ચિન્તામણિ ભાગ-૧ 080 | બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૧ 081 બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૨
| બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૩ 083. આયુર્વેદના અનુભૂત પ્રયોગો ભાગ-૧
કલ્યાણ કારક 085 | વિનોરન શોર
કથા રત્ન કોશ ભાગ-1
કથા રત્ન કોશ ભાગ-2 088 | હસ્તસગ્નીવનમ
238 260
ગુજ. | | श्री साराभाई नवाब ગુજ. | શ્રી સYTમારું નવાવ ગુજ. | શ્રી વિદ્યા સરમા નવીન ગુજ. | શ્રી સારામારું નવીન ગુજ. | શ્રી મનસુબાન મુવામન ગુજ. | શ્રી નન્નાથ મંવારમ ગુજ. | શ્રી નન્નાથ મંવારમ ગુજ. | શ્રી ગગન્નાથ મંવારમ ગુજ. | . વન્તિસાગરની ગુજ. | શ્રી વર્ધમાન પર્વનાથ શત્રી सं./हिं श्री नंदलाल शर्मा ગુજ. | શ્રી લેવલાસ ગીવરાન કોશી ગુજ. | શ્રી લેવલાસ નવરીન લોશી સ. પૂ. મેનિયની સં. પૂ.વિનયની, પૂ.
पुण्यविजयजी आचार्य श्री विजयदर्शनसूरिजी
114
'084.
910
436 336
087
2૩૦
322
(089/
114
એન્દ્રચતુર્વિશતિકા સમ્મતિ તર્ક મહાર્ણવાવતારિકા
560
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श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार
क्रम
272 240
सं.
254
282
466
342
362 134
70
316
224
612
307
संयोजक-शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543 - ahoshrut.bs@gmail.com
शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन
हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-05. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार - संवत २०६७ (ई. 2011) सेट नं.-३ प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची। यह पुस्तके www.ahoshrut.org वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। | पुस्तक नाम
कर्ता टीकाकार भाषा संपादक/प्रकाशक 91 | स्याद्वाद रत्नाकर भाग-१
वादिदेवसूरिजी सं. मोतीलाल लाघाजी पुना 92 | | स्याद्वाद रत्नाकर भाग-२
वादिदेवसूरिजी
| मोतीलाल लाघाजी पुना 93 | स्याद्वाद रत्नाकर भाग-३
बादिदेवसूरिजी
| मोतीलाल लाघाजी पुना 94 | | स्याद्वाद रत्नाकर भाग-४
बादिदेवसूरिजी
मोतीलाल लाघाजी पुना | स्याद्वाद रत्नाकर भाग-५
वादिदेवसूरिजी
| मोतीलाल लाघाजी पुना 96 | पवित्र कल्पसूत्र
पुण्यविजयजी
साराभाई नवाब 97 | समराङ्गण सूत्रधार भाग-१
भोजदेव
| टी. गणपति शास्त्री 98 | समराङ्गण सूत्रधार भाग-२
भोजदेव
| टी. गणपति शास्त्री 99 | भुवनदीपक
पद्मप्रभसूरिजी
| वेंकटेश प्रेस 100 | गाथासहस्त्री
समयसुंदरजी
सं. | सुखलालजी 101 | भारतीय प्राचीन लिपीमाला
| गौरीशंकर ओझा हिन्दी | मुन्शीराम मनोहरराम 102 | शब्दरत्नाकर
साधुसुन्दरजी
सं. हरगोविन्ददास बेचरदास 103 | सबोधवाणी प्रकाश
न्यायविजयजी ।सं./ग । हेमचंद्राचार्य जैन सभा 104 | लघु प्रबंध संग्रह
जयंत पी. ठाकर सं. ओरीएन्ट इन्स्टीट्युट बरोडा 105 | जैन स्तोत्र संचय-१-२-३
माणिक्यसागरसूरिजी सं, आगमोद्धारक सभा 106 | सन्मति तर्क प्रकरण भाग-१,२,३
सिद्धसेन दिवाकर
सुखलाल संघवी 107 | सन्मति तर्क प्रकरण भाग-४.५
सिद्धसेन दिवाकर
सुखलाल संघवी 108 | न्यायसार - न्यायतात्पर्यदीपिका
सतिषचंद्र विद्याभूषण
एसियाटीक सोसायटी 109 | जैन लेख संग्रह भाग-१
पुरणचंद्र नाहर
| पुरणचंद्र नाहर 110 | जैन लेख संग्रह भाग-२
पुरणचंद्र नाहर
सं./हि पुरणचंद्र नाहर 111 | जैन लेख संग्रह भाग-३
पुरणचंद्र नाहर
सं./हि । पुरणचंद्र नाहर 112 | | जैन धातु प्रतिमा लेख भाग-१
कांतिविजयजी
सं./हि | जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार 113 | जैन प्रतिमा लेख संग्रह
दौलतसिंह लोढा सं./हि | अरविन्द धामणिया 114 | राधनपुर प्रतिमा लेख संदोह
विशालविजयजी सं./गु | यशोविजयजी ग्रंथमाळा 115 | प्राचिन लेख संग्रह-१
विजयधर्मसूरिजी सं./गु | यशोविजयजी ग्रंथमाळा 116 | बीकानेर जैन लेख संग्रह
अगरचंद नाहटा सं./हि नाहटा ब्रधर्स 117 | प्राचीन जैन लेख संग्रह भाग-१
जिनविजयजी
सं./हि | जैन आत्मानंद सभा 118 | प्राचिन जैन लेख संग्रह भाग-२
जिनविजयजी
सं./हि | जैन आत्मानंद सभा 119 | गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-१
गिरजाशंकर शास्त्री सं./गु | फार्वस गुजराती सभा 120 | गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-२
गिरजाशंकर शास्त्री सं./गु | फार्बस गुजराती सभा 121 | गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-३
गिरजाशंकर शास्त्री
फार्बस गुजराती सभा 122 | ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. इन मुंबई सर्कल-१ | पी. पीटरसन
रॉयल एशियाटीक जर्नल 123|| | ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. इन मुंबई सर्कल-४ पी. पीटरसन
रॉयल एशियाटीक जर्नल 124 | ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. इन मुंबई सर्कल-५ पी. पीटरसन
रॉयल एशियाटीक जर्नल 125 | कलेक्शन ऑफ प्राकृत एन्ड संस्कृत इन्स्क्रीप्शन्स
पी. पीटरसन
| भावनगर आर्चीऑलॉजीकल डिपा. 126 | विजयदेव माहात्म्यम्
| जिनविजयजी
सं. जैन सत्य संशोधक
514
454
354
सं./हि
337 354 372 142 336 364 218 656 122
764 404 404 540 274
सं./गु
414 400
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श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार
संयोजक - शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543ahoshrut.bs@gmail.com
शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-05. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार संवत २०६८ (ई. 2012) सेट नं.-४
- - -
प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची। यह पुस्तके www.ahoshrut.org वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। पुस्तक नाम
भाषा प्रकाशक
कर्त्ता / संपादक साराभाई नवाब
महाप्रभाविक नवस्मरण
गुज.
साराभाई नवाब
गुज.
हीरालाल हंसराज
गुज.
पी. पीटरसन
अंग्रेजी
कुंवरजी आनंदजी
शील खंड
133 करण प्रकाशः
ब्रह्मदेव
134 | न्यायविशारद महो. यशोविजयजी स्वहस्तलिखित कृति संग्रह यशोदेवसूरिजी
135 भौगोलिक कोश- १
डाह्याभाई पीतांवरदास
136 भौगोलिक कोश-२
डाह्याभाई पीतांबरदास जिनविजयजी
137 जैन साहित्य संशोधक वर्ष १ अंक - १, २
जिनविजयजी
जिनविजयजी
जिनविजयजी
जिनविजयजी
जिनविजयजी
क्रम
127
128 जैन चित्र कल्पलता
129 जैन धर्मनो प्राचीन इतिहास भाग - २
130 ओपरेशन इन सर्च ओफ सं. मेन्यु. भाग-६
131 जैन गणित विचार
132 | दैवज्ञ कामधेनु ( प्राचिन ज्योतिष ग्रंथ)
138 जैन साहित्य संशोधक वर्ष १ अंक ३, ४
139 जैन साहित्य संशोधक वर्ष २ अंक - १, २
140 जैन साहित्य संशोधक वर्ष २ अंक-३, ४
४
141 जैन साहित्य संशोधक वर्ष ३ अंक-१, 142 जैन साहित्य संशोधक वर्ष ३ अंक-३, 143 नवपदोनी आनुपूर्वी भाग-१ 144 नवपदोनी आनुपूर्वी भाग-२
145 नवपदोनी आनुपूर्वी भाग-३ 146 भाषवति
147 जैन सिद्धांत कौमुदी (अर्धमागधी व्याकरण)
148 मंत्रराज गुणकल्प महोदधि
149 फक्कीका रत्नमंजूषा- १, २
150 | अनुभूत सिद्ध विशायंत्र (छ कल्प संग्रह)
151 सारावलि
152 ज्योतिष सिद्धांत संग्रह
153
१
२
ज्ञान प्रदीपिका तथा सामुद्रिक शास्त्रम्
नूतन संकलन
आ. चंद्रसागरसूरिजी ज्ञानभंडार - उज्जैन
श्री गुजराती श्वे. मू. जैन संघ हस्तप्रत भंडार कलकत्ता
सोमविजयजी
सोमविजयजी
सोमविजयजी
शतानंद मारछता
रनचंद्र स्वामी
जयदयाल शर्मा
कनकलाल ठाकूर
मेघविजयजी
कल्याण वर्धन विश्वेश्वरप्रसाद द्विवेदी
रामव्यास पान्डेय
हस्तप्रत सूचीपत्र
हस्तप्रत सूचीपत्र
गुज.
सं.
सं./अं.
गुज.
गुज.
गुज.
हिन्दी
हिन्दी
हिन्दी
हिन्दी
हिन्दी
हिन्दी
गुज.
गुज.
गुज.
सं./हि
प्रा./सं.
हिन्दी
सं.
सं./ गुज सं. सं.
सं.
हिन्दी
हिन्दी
साराभाई नवाब
साराभाई नवाब
हीरालाल हंसराज
एशियाटीक सोसायटी
जैन धर्म प्रसारक सभा
व्रज. बी. दास बनारस
सुधाकर द्विवेदि
यशोभारती प्रकाशन
गुजरात वर्नाक्युलर सोसायटी
गुजरात वर्नाक्युलर सोसायटी
जैन साहित्य संशोधक पुना
जैन साहित्य संशोधक पुना
जैन साहित्य संशोधक पुना
जैन साहित्य संशोधक पुना
जैन साहित्य संशोधक पुना
जैन साहित्य संशोधक पुना
शाह बाबुलाल सवचंद
शाह बाबुलाल सवचंद
शाह बाबुलाल सवचंद
एच. बी. गुप्ता एन्ड सन्स बनारस
भैरोदान सेठीया
जयदयाल शर्मा
हरिकृष्ण निबंध
महावीर ग्रंथमाळा
पांडुरंग जीवाजी बीजभूषणदास जैन सिद्धांत भवन
बनारस
श्री आशापुरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार
श्री आशापुरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार
पृष्ठ
754
84
194
171
90
310
276
69
100
136
266
244
274
168
282
182
384
376
387
174
320
286
272
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260
232
160
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श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार
संयोजक - शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543ahoshrut.bs@gmail.com
शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-05.
अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार
क्रम
विषय
संपादक/प्रकाशक
प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची। यह पुस्तके www.ahoshrut.org वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। पुस्तक नाम 154 उणादि सूत्रो ओफ हेमचंद्राचार्य 155 | उणादि गण विवृत्ति
कर्त्ता / संपादक पू. हेमचंद्राचार्य
पू. हेमचंद्राचार्य
156 प्राकृत प्रकाश-सटीक
157 द्रव्य परिक्षा और धातु उत्पत्ति
158 आरम्भसिध्धि सटीक
159 खंडहरो का वैभव
160 बालभारत
161 गिरनार माहात्म्य
162 | गिरनार गल्प
163 प्रश्नोत्तर सार्ध शतक
164 भारतिय संपादन शास्त्र
165 विभक्त्यर्थ निर्णय
166 व्योम वती - १
167 व्योम वती - २ 168 जैन न्यायखंड खाद्यम् 169 हरितकाव्यादि निघंटू 170 योग चिंतामणि- सटीक 171 वसंतराज शकुनम् 172 महाविद्या विडंबना 173 ज्योतिर्निबन्ध 174 मेघमाला विचार 175 मुहूर्त चिंतामणि- सटीक
176 | मानसोल्लास सटीक - १ 177 मानसोल्लास सटीक - २ 178 ज्योतिष सार प्राकृत
179 मुहूर्त संग्रह
180 हिन्दु एस्ट्रोलोजी
भामाह
ठक्कर फेरू
पू. उदयप्रभदेवसूरिजी
पू. कान्तीसागरजी
पू. अमरचंद्रसूरिजी दौलतचंद परषोत्तमदास
पू. ललितविजयजी
पू. क्षमाकल्याणविजयजी
मूलराज जैन
गिरिधर झा
शिवाचार्य
शिवाचार्य
संवत २०६९ (ई. 2013) सेट नं. ५
- -
यशोविजयजी
व्याकरण
व्याकरण
व्याकरण
धातु
ज्योतीष
शील्प
प्रकरण
साहित्य
न्याय
न्याय
न्याय
उपा.
न्याय
भाव मिश्र
आयुर्वेद
पू. हर्षकीर्तिसूरिजी
आयुर्वेद
ज्योतिष
पू. भानुचन्द्र गणि टीका
ज्योतिष
पू. भुवनसुन्दरसूरि टीका शिवराज
ज्योतिष
ज्योतिष
पू. विजयप्रभसूरी रामकृत प्रमिताक्षय टीका
ज्योतिष
भुलाकमल्ल सोमेश्वर
ज्योतिष
भुलाकमल्ल सोमेश्वर
ज्योतिष
भगवानदास जैन
ज्योतिष
अंबालाल शर्मा
ज्योतिष
पिताम्बरदास त्रीभोवनदास ज्योतिष
काव्य
तीर्थ
तीर्थ
भाषा
संस्कृत
संस्कृत
प्राकृत
संस्कृत/हिन्दी
संस्कृत
हिन्दी
संस्कृत
संस्कृत / गुजराती
संस्कृत/ गुजराती
हिन्दी
हिन्दी
संस्कृत
संस्कृत
संस्कृत
संस्कृत / हिन्दी
संस्कृत/हिन्दी
संस्कृत / हिन्दी
संस्कृत
संस्कृत
संस्कृत
संस्कृत/ गुजराती
संस्कृत
संस्कृत
संस्कृत
प्राकृत / हिन्दी
गुजराती
गुजराती
जोहन क्रिष्टे
पू. मनोहरविजयजी
जय कृष्णदास गुप्ता
भंवरलाल नाहटा
पू. जितेन्द्रविजयजी
भारतीय ज्ञानपीठ
पं. शीवदत्त
जैन पत्र
हंसकविजय फ्री लायब्रेरी
साध्वीजी विचक्षणाश्रीजी
जैन विद्याभवन, लाहोर
चौखम्बा प्रकाशन
संपूर्णानंद संस्कृत युनिवर्सिटी
संपूर्णानंद संस्कृत विद्यालय
बद्रीनाथ शुक्ल
शीव शर्मा
लक्ष्मी वेंकटेश प्रेस
खेमराज कृष्णदास सेन्ट्रल लायब्रेरी
आनंद आश्रम
मेघजी हीरजी
अनूप मिश्र
ओरिएन्ट इन्स्टीट्यूट
ओरिएन्ट इन्स्टीट्यूट
भगवानदास जैन
शास्त्री जगन्नाथ परशुराम द्विवेदी पिताम्बरदास टी. महेता
पृष्ठ
304
122
208
70
310
462
512
264
144
256
75
488
226
365
190
480
352
596
250
391
114
238
166
368
88
356
168
Page #9
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________________
श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार संयोजक-शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543. E-mail : ahoshrut.bs@gmail.com
शाह विमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन
हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-380005. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार - संवत २०७१ (ई. 2015) सेट नं.-६
प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की डिजिटाइझेशन द्वारा डीवीडी बनाई उसकी सूची।
यह पुस्तकेwww.ahoshrut.org वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं।
क्रम
विषय
|
भाषा
पृष्ठ
पुस्तक नाम काव्यप्रकाश भाग-१
| संपादक / प्रकाशक पूज्य जिनविजयजी
181
| संस्कृत
364
182
काव्यप्रकाश भाग-२
222
183
काव्यप्रकाश उल्लास-२ अने ३
330
184 | नृत्यरत्न कोश भाग-१
156
185 | नृत्यरत्र कोश भाग-२
___ कर्ता / टिकाकार पूज्य मम्मटाचार्य कृत पूज्य मम्मटाचार्य कृत उपा. यशोविजयजी श्री कुम्भकर्ण नृपति श्री कुम्भकर्ण नृपति
श्री अशोकमलजी | श्री सारंगदेव श्री सारंगदेव श्री सारंगदेव श्री सारंगदेव
248
504
संस्कृत
पूज्य जिनविजयजी संस्कृत यशोभारति जैन प्रकाशन समिति संस्कृत श्री रसीकलाल छोटालाल संस्कृत
श्री रसीकलाल छोटालाल संस्कृत /हिन्दी | श्री वाचस्पति गैरोभा संस्कृत/अंग्रेजी | श्री सुब्रमण्यम शास्त्री संस्कृत/अंग्रेजी | श्री सुब्रमण्यम शास्त्री संस्कृत/अंग्रेजी | श्री सुब्रमण्यम शास्त्री संस्कृत/अंग्रेजी | श्री सुब्रमण्यम शास्त्री संस्कृत श्री मंगेश रामकृष्ण तेलंग गुजराती मुक्ति-कमल-जैन मोहन ग्रंथमाला
448
188
444
616
190
632
| नारद
84
| 244
श्री चंद्रशेखर शास्त्री
220
186 | नृत्याध्याय 187 | संगीरत्नाकर भाग-१ सटीक
| संगीरत्नाकर भाग-२ सटीक 189 | संगीरत्नाकर भाग-३ सटीक
संगीरनाकर भाग-४ सटीक 191 संगीत मकरन्द
संगीत नृत्य अने नाट्य संबंधी 192
जैन ग्रंथो 193 | न्यायबिंदु सटीक 194 | शीघ्रबोध भाग-१ थी ५ 195 | शीघ्रबोध भाग-६ थी १० 196| शीघ्रबोध भाग-११ थी १५ 197 | शीघ्रबोध भाग-१६ थी २० 198 | शीघ्रबोध भाग-२१ थी २५ 199 | अध्यात्मसार सटीक 200 | छन्दोनुशासन 201 | मग्गानुसारिया
संस्कृत हिन्दी
सुखसागर ज्ञान प्रसारक सभा
422
हिन्दी
सुखसागर ज्ञान प्रसारक सभा
304
श्री हीरालाल कापडीया पूज्य धर्मोतराचार्य पूज्य ज्ञानसुन्दरजी पूज्य ज्ञानसुन्दरजी पूज्य ज्ञानसुन्दरजी पूज्य ज्ञानसुन्दरजी पूज्य ज्ञानसुन्दरजी पूज्य गंभीरविजयजी एच. डी. बेलनकर
446
|414
हिन्दी
सुखसागर ज्ञान प्रसारक सभा हिन्दी
सुखसागर ज्ञान प्रसारक सभा हिन्दी
सुखसागर ज्ञान प्रसारक सभा संस्कृत/गुजराती | नरोत्तमदास भानजी
409
476
सिंघी जैन शास्त्र शिक्षापीठ
444
संस्कृत संस्कृत/गुजराती
श्री डी. एस शाह
| ज्ञातपुत्र भगवान महावीर ट्रस्ट
146
Page #10
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क्रम
पुस्तक नाम
202 | आचारांग सूत्र भाग - १ नियुक्ति + टीका
203 | आचारांग सूत्र भाग - २ निर्युक्ति+ टीका
204 | आचारांग सूत्र भाग - ३ निर्युक्ति+टीका
205 | आचारांग सूत्र भाग-४ नियुक्ति+टीका 206 | आचारांग सूत्र भाग - ५ निर्युक्ति+ टीका
207 सुयगडांग सूत्र भाग - १ सटीक
208 | सुयगडांग सूत्र भाग - २ सटीक 209 सुयगडांग सूत्र भाग - ३ सटीक
210 सुयगडांग सूत्र भाग-४ सटीक
211 सुयगडांग सूत्र भाग - ५ सटीक
212 रायपसेणिय सूत्र
213 प्राचीन तीर्थमाळा भाग १
214 धातु पारायणम्
215 | सिद्धहेम शब्दानुशासन लघुवृत्ति भाग - १
216 | सिद्धहेम शब्दानुशासन लघुवृत्ति भाग-२
217 | सिद्धम शब्दानुशासन लघुवृत्ति भाग-३ 218 तार्किक रक्षा सार संग्रह
219
श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार
संयोजक - शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543. E-mail : ahoshrut.bs@gmail.com शाह विमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद - 380005.
अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार - संवत २०७२ (ई. 201६) सेट नं.-७
प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की डिजिटाइझेशन द्वारा डीवीडी बनाई उसकी सूची ।
220
221
वादार्थ संग्रह भाग - १ (स्फोट तत्त्व निरूपण, स्फोट चन्द्रिका, प्रतिपादिक संज्ञावाद, वाक्यवाद, वाक्यदीपिका)
| वादार्थ संग्रह भाग - २ ( षट्कारक विवेचन, कारक वादार्थ, समासवादार्थ, वकारवादार्थ)
वादार्थ संग्रह भाग-३ (वादसुधाकर, लघुविभक्त्यर्थ निर्णय, शाब्दबोधप्रकाशिका)
222 | वादार्थ संग्रह भाग-४ (आख्यात शक्तिवाद छः टीका)
कर्त्ता / टिकाकार
भाषा
श्री शीलंकाचार्य
गुजराती
श्री शीलंकाचार्य
गुजराती
श्री शीलंकाचार्य
गुजराती
श्री शीलंकाचार्य
गुजराती
श्री शीलंकाचार्य
गुजराती
श्री शीलंकाचार्य
गुजराती
श्री शीलंकाचार्य
गुजराती
श्री शीलंकाचार्य
गुजराती
श्री शीलंकाचार्य
गुजराती
श्री शीलंकाचार्य
गुजराती
श्री मलयगिरि
गुजराती
श्री बेचरदास दोशी
आ. श्री धर्मसूरि
सं./ गुजराती श्री यशोविजयजी ग्रंथमाळा संस्कृत
श्री हेमचंद्राचार्य
आ. श्री मुनिचंद्रसूरि
श्री हेमचंद्राचार्य
सं./ गुजराती
श्री बेचरदास दोशी
श्री हेमचंद्राचार्य
सं./ गुजराती
श्री हेमचंद्राचार्य
सं./ गुजराती
आ. श्री वरदराज
संस्कृत
विविध कर्ता
संस्कृत
विविध कर्ता
संस्कृत
विविध कर्ता
संस्कृत
रघुनाथ शिरोमणि संस्कृत
संपादक / प्रकाशक
श्री माणेक मुनि
श्री माणेक मुनि
श्री माणेक मुनि
श्री माणेक मुनि
श्री माणेक मुनि
श्री माणेक मुनि
श्री माणेक मुनि
श्री माणेक मुनि
श्री माणेक मुनि
श्री माणेक मुनि
श्री बेचरदास दोशी
श्री बेचरदास दोशी
राजकीय संस्कृत पुस्तकालय
महादेव शर्मा
महादेव शर्मा
महादेव शर्मा
महादेव शर्मा
पृष्ठ
285
280
315
307
361
301
263
395
386
351
260
272
530
648
510
560
427
88
78
112
228
Page #11
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________________
OSHHHHHHHHHHHH
E550 ॐ श्रीविजयनेमिसूरीश्वरग्रन्थमालारत्नम् ६५ ॥ ॥ आशैशवशीलशालिम्यां श्रीविजयनेमि-लावण्यसूरीश्वराभ्यां नमः ॥ कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्रसूरिभगवत्प्रणीता स्वोपज्ञा
श्रीउणादिगणविवृतिः विविधपरिशिष्टादिना समलङ्कृता।
संपादकः
शासनसम्राट्-जगद्गुरु-सूरिचक्रचक्रवति-सर्वतन्त्रस्वतन्त्र-तपोगच्छाधिपति-विविधतीर्थोद्धारकश्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वर-पट्टालंकार-साधिकसप्तशतश्लोकप्रमितनूतनसंस्कृतसाहित्यसर्जकव्याकरणवाचस्पति-शाखविशारद-कविरत्नसाहित्यसम्राट् श्रीमद्विजयलावण्यसूरी
श्वरान्तेवासि-विद्वद्विनेयरत्नमुनिराजश्रीमनोहरविजयः।
प्रकाशका
श्रीज्ञानोपासकसमिति श्रीविजयलावण्यसूरीश्वरज्ञानमन्दिर
बोटाद ( सौराष्ट्र)
मूल्यम्-पञ्चरूप्यकाणि वीर संवत् २४६४]
नेमि संवत् १६
[वि० संवत् २०२४ प्रथमावृत्तिः। 959999999999999999999996555555555555
Ahol Shrutgyanam
Page #12
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________________
प्रकाशक:
चिमनलाल हरिचन्द बगडिया
प्रमुख
श्रीज्ञानोपासकसमिति श्रीविजयलावण्यसूरीश्वरज्ञानमन्दिर
बोटाद (सौराष्ट्र)
प्राप्ति
[१] ४ श्रीविजयलावण्यसूरीश्वरज्ञानमन्दिर
बोटाद [सौराष्ट्र]
[२] सरस्वती पुस्तक भण्डार रतनपोल, हाथीखाना, अहमदाबाद [गुजरात]
स्थान
0
CCC
SON
ODE
OCCO-O
मुद्रका कुम्भट प्रिन्टर्स घोड़ों का चौक, जोधपुर (राजस्थान)
Aho ! Shrutgyanam
Page #13
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________________
प्रकाशकीय निवेदन
स्व० प० पू० सूरिसम्राट्ना सुप्रसिद्ध पट्टालंकार व्याकरणवाचस्पतिशास्त्रविशारद - कविरत्न - साहित्यसम्राट् स्व० प० पू० आ० श्रीविजयलावण्यसूरीश्वरजी म० श्री कालधर्म पाम्या पछी अमे तेमना रचेला ग्रंथो वली तके प्रकाशित करवानो निर्णय लीधो हतो, तेमांये 'श्रीसिद्धहेमचन्द्र शब्दानुशासन' उपर रचायेला न्यासने प्रथम स्थान आप्यु | केटलाक प्रेसोमां काम आयु पण बधे स्थले परिस्थिति प्रतिकूल बनती गई परिणामे न्यासने प्रकाशित करवानु काम विलंबे पडतु गयुं, हजीये ए काम व्यवस्थित करतां थोडो समय लागशे एम अमारे सखेद जणाव पडे छे ।
आजे अमे आ 'श्रीउणादिसूत्र - विवृति' ग्रंथ प्रकाशित करी रह्या छीए, तेना उपर न्यास रचायेलो नथी, एक मात्र ' तत्त्वप्रकाशिका ' नामक बृहद्वृत्ति, जे कलिकालसर्वज्ञ पू० आ० श्रीहेमचन्द्रसूरीश्वरजी म. श्रीए रचेली उपलब्ध थाय छे ते ज प्रकाशित करी रह्या छीए ।
पू० आ० श्रीविजयलावण्यसूरीश्वरजीना शिष्यरत्न मुनिराज श्रीमनोहरविजयजीए आ ग्रंथ संपादन खूब कुशलताथी कर्यु छे, तेणे विद्वानाने उपयोगी थाय ए रीते केटलांक परिशिष्टो वगेरेथी आ ग्रंथ विभूषित कर्यो छे । आशा राखीए के मुनिराज श्री अमने आ कार्यमां आ रीते सदा सहायक थया रहे ।
लि०
चिमनलाल हरिचन्द बगडिया
Aho! Shrutgyanam
Page #14
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Aho I Shrutgyanam
Page #15
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॥ अहं ॥ ॥ आशैशवशीलशालिने श्रीनेमीनाय नमोनमः ॥ श्रीकुमारपालभूपाललालितचरणरेणुना कलिकालसर्वज्ञन
श्रीहेमचन्द्रसूरिभगवता प्रणीतं
स्वोपज्ञोणादिगणसूत्राविवरणम् ॥
श्रीसिद्धहेमचन्द्र-व्याकरणनिवेशिनामुणादीनाम् ।। रहति गृहीत्वा सूर्याचन्द्रमसौ स्वशरीरं वा- राहुः- संहिआचार्यहेमचन्द्रः, करोति विवृत्ति प्रणम्याहम् ॥१॥ | केयः । इंण्क् गतौ, एति- आयु:- पुरुषः, शकटम्, औष
कृ-वा-पा-जि-स्वदि-साध्य-शौ-द-स्ना-सनि-जा- धम्, जीवनम्, पुरूरवःपुत्रो वा; जरायु:- गर्भवेष्टनम्, जल- 30 निरहीणभ्य उण् ॥१॥
मलं च, जटायु:- पक्षी, धनायु:- देशः, रसायु:- भ्रमरः,
"संप्रदानात्चान्यत्रोणादयः" [५.१.१५. ] इति यथा5 करोत्यादिभ्यो धातुभ्यः सत्यर्थे वर्तमानेभ्यः संप्रदाना
योगं प्रत्ययो वेदितव्यः ॥१॥ ऽपादानाभ्यामन्यत्र कारके भावे च संज्ञायां विषये बहुलमुण् प्रत्ययो भवति । डुकंग करणे, कंगट् हिंसायां वा,
अः ॥२॥ निरनबन्धग्रहणे सामान्यग्रहणात्; करोति करति कृणोति सर्वस्माद धातोर्यथाप्रयोगमकारःप्रत्ययो भवति । भव:, 35
वा-कारु:-कारी नापितादिः, इन्द्रश्च । वाक् गति-गन्ध- तरः, वरः, प्लवः, शयः, शरः, परः, करः, स्तवः, चरः, वदा, 10 नयोः, 4 ओवै शोषणे वा, वाति वायति वा द्रव्याणि-वायु:- ॥२॥
नभस्वान् । पां पाने, पिबन्त्यनेन तैलादि द्रव्य-पायु:- म्लेच्छोडेस्वश्ववा अपानमुपस्थश्च; पाति-पायत्योस्त्वर्थासंगतेर्न ग्रहणम् । जि
आम्यामः प्रत्ययो भवति, दीर्घस्य च ह्रस्वो वा भवति । अभिभवे, जयत्यनेन रोगान् श्लेष्माणं वा- जायुः- औषधं,
| म्लेछ अव्यक्तायां वाचि, म्लिच्छः- मूकः, म्लेच्छ:- कुमनु- 40 पित्तं वा। ध्वदि आस्वादने, स्वद्यत इदमनेन वा-स्वादुः
ष्यजातिः। ईडिक स्तुतौ, इड ईडश्च- देवताविशेषौ मेदि15 रुच्यः, स्वदनं वा-स्वादुः । साधंट संसिद्धौ, उत्तमक्षमादि
नी च ॥३॥ भिस्तपोविशेष वितात्मा साध्नोति- साधुः, सम्यग्दर्शना
नत्रः क्रमि-गमि-शमि-खन्याकमिभ्यो डित ॥४॥ दिभिः परमपदं साधयति वा- साधु:- संयतः, उभयलोकफलं साधयति वा- साधु:- धर्मशीलः । अशोटि व्याप्ती,
नत्रः परेभ्य एभ्यो डित् अःप्रत्ययो भवति । क्रमू पादअश्नुते तेजसा सर्व केदारं वा- इत्याशुः- सूर्यो, व्रीहिश्च,
विक्षेपे, न कामति-नक्र:-जलचरो ग्राहः । गम्लं गतो, 45 अशन वा- आशु- क्षिप्रम्, अश्नुत इति वा- आशु:- नगः- वृक्षः, पर्वतश्च । शमूच् उपशमे, नश:-यक्षः । खनूग शीघ्रगामी शीघ्रकारी च । दु भये, दश् विदारणे वा, दरति
अवदारणे, नख:- करजः, नास्य खमस्तीति वा- नख इत्य. हणाति दीर्यते वा-दारु- काष्ठम्, भव्यं च । ष्ण वेने. पि । कमूङ् कान्तो, नाक:-स्वर्गः, नात्राकमस्तीति-नाक स्नायति- स्नायु:- अस्थिसंहननम् । षन भक्तो, षणयी दाने इत्यपि, नखादित्वात् “अन् स्वरे" [ ३. २. १२६. ] इत्यन् वा, सनति सनोति वा मृगादीनिति-सानु:-पर्वतैकदेशः। न भवात । डित्करणमन्त्यस्त
मनोति वा मातीनितिमान प ता न भवति । डित्करणमन्त्यस्वरादिलोपार्थम् ॥४॥ 25 जनैचि प्रादुर्भावे, जायतेऽनेनाकुञ्चनादि- जानु- उरुजङ्घा- | । तुदादि-विषि-गुहिभ्यः कित् ॥५॥
सन्धिमण्डलम्, जानीत्याकारनिर्देशात् "न जन-वधः" [ ४. तुदादिभ्यो विषि-गुहिम्यां च कित् अः प्रत्ययो भवति । ३. ५४. ] इति प्रतिषिद्धाऽपि वृद्धिर्भवति । रह त्यागे, । तुदः, नुदः, क्षिपः, सुरः, बुधः, सिवः । सुरत् ऐश्वर्य-दीप्त्योः । उणादि. १
Aho! Shrutgyanam
Page #16
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
65
तुदादिर्न धातुगणः, किं तहि ? भिन्न इति, तेन बुधादीना- तीर्यतेऽनेनास्मिन् वा- तितिर:- संक्रमः । भृश् भर्जने च, 40 मिति लिङ्गपरिणामस्तु ज्ञेयः, शिवः, तुदादीनां यथासंभवं भूर्यते- संचीयते- भुर्भुर:- संचयः । शृश् हिंसायाम, कारकविधिः । विष्लूकी व्याप्ती, वेवेष्टि- विष- प्राणहरं शीर्यते समंतात्- शिशिर:- पुञ्जः ।।१०॥ द्रव्यम् । गुहौग संवरणे, गृहति- गुहः- स्कन्दः, गुहा- पृ-पलिभ्यां टित् पिप् च पूर्वस्य ॥११॥ 5 पर्वतैकदेशः ॥५॥
आभ्यां टिदः प्रत्ययो भवति, अनयोश्च सरूपे द्वे रूपे विन्देर्नलुक् च ॥६॥
भवतः, पूर्वस्य च स्थाने 'पिप्' इत्यादेशो भवति । 45 विन्देः कित् अःप्रत्ययो भवति, तत्संनियोगे नस्य लुक | पृश् पालन-पूरणयोः, पृणाति छायया-पिप्परी- वृक्षच । विदु अवयवे, विद:- गोत्रकृद् वृक्षजातिश्च ॥६॥ |
| जातिः । पल गतौ, पलत्यातुरं- पिप्पली- औषधजातिः । कृगो द्वे च ॥७॥
टित्करणं ङ्यर्थम् ॥११॥ 10 करोते: कित् अः प्रत्ययो भवति, अस्य च धातो रूपे | क्रमि-मथिभ्यां चन्-मनौ च ॥१२॥ भवतः । डुकृग् करणे, चक्रं- रथाङ्गम्, आयुधं च ।।७।। आभ्यामः प्रत्ययो भवति, सरूपे च द्वे रूपे भवतः, 50 कनि-गदि-मनेः सरूपे ॥॥
पूर्वस्य च स्थाने यथासंख्यं 'चन्-मन्' इत्यादेशौ भवतः । _ किदिति निवृत्तम्, एभ्योऽकार: प्रत्ययो भवति, एषां च क्रम पादविक्षेपे, कामति सुखमनेनास्मिन् वा- चंक्रमः
सरूपे- समानरूपे द्वे उक्ती भवतः । कनै दीप्ति-कान्ति- संक्रमः। मथे विलोडने, मथति चित्तं रागिणां- मन्मथ:15 गतिषु, कनति-दीप्यते- कङ्कन:- कान्तः । गद व्यक्तायां कामः ॥१२॥
वाचि, गदति-अव्यक्तं वदति, गद्यते-अव्यक्तं कथ्यते वा- गमेर्जम् च वा ॥१३॥ गद्गदः- अव्यक्तवाक्, गद्गदम्- अव्यक्तं वचनम् ।
गमेरः प्रत्ययो भवति, सरूपे च द्वे रूपे भवतः, पूर्वस्य मनिच ज्ञाने, मन्मन:-अविस्पष्टवाक् । सरूपग्रहणं "व्यञ्जन
च 'जम्' इत्यादेशो वा भवति । गम्लुं गतौ, गच्छतिस्यानादेलुक" [४.१.४४.] इत्यादिकार्यनिवृत्त्यर्थम् ।।८।।
पादविहरणं करोति- जङ्गमः-चरः, गच्छत्यमाध्यस्थ्य20 ऋतष्टित् ॥६॥
मिति- गङ्गमः- चपल: ॥१३॥ . ऋकारान्ताद् धातोरकारः प्रत्ययो भवति, स च बहुलं
अदुपान्त्य ऋभ्यामश्चान्तः ॥१४॥ 60 'टिंत्, धातोश्च सरूपे द्वे रूपे भवतः। दश विदारणे, दीर्यते भिद्यतेऽनेन श्रोत्रमिति- दर्दर:- वाद्य विशेषः, पर्वतश्च,
अकारोपान्त्याद् ऋकारान्ताच्च धातोरः प्रत्ययो भवति, दर्दरी- सस्यलुण्टि: । कृत् विक्षेपे, कर्कर:- क्षुद्राश्मा,
सरूपे च द्वे रूपे भवतः, पूर्वस्य चान्तोऽकारो भवति । 25 कर्करी- गलन्तिका । वगश् वरणे, वर्वरः- म्लेच्छजाति:,
पल फल शल गतो, शलशल: । सल गतौ । सलसलः । वर्वरी- केशविशेषः । भृश, भरणे, भर्भर:- छद्मवान्, भ
हल विलेखने, हलहलः । कलि शब्द-संख्यानयोः, कलकलः। भरी- श्रीः । जष्च जरसि, जर्जर:- अदृढ़ः, जर्जरी
मलि धारणे, मलमल:। घटिष् चेष्टायाम, घटघट: । वद 65 स्त्री । अषच जरसि, झझर:- वाद्य विशेषः, झझरी
व्यक्तायां वाचि, वदवदः । पदिच गती, पदपदः । ऋदन्तः । झल्लरिका । गत् निगरणे, गर्गर:- राजर्षित गर्गरी- डुकूग् करणे, करकरः। मृत प्राणत्यागे, मरमरः । हत् 30 महाकुम्भः । मृश् हिंसायाम्, मर्मर:- शुष्कपत्रप्रकरः,
आदरे, दरदरः । संगती, सरसरः । वृग्ट् वरणे, वरवरः । तद्धर्माऽन्योऽपि, क्षोदासहिष्णुर्मर्मरोदानवश्च । 'मर्मरायां
अनुकरणशब्दा एते ॥१४॥ दूर्वायाम्' इत्यत्र टिस्वेऽपि डीनं भवति बहुलाधिकारात् ।
मषि-मसेर्वा ॥१५॥ तत एव च ऋकारान्तादपि- घं सेचने, घर्घर:- सघोषो- आभ्यामः प्रत्ययो भवति, सरूपे च द्वे रूपे भवतः, व्यक्तवाक्, घर्घरी- किंङ्कणिका ॥६॥
पूर्वस्य चान्तोऽकारो वा भवति । मष हिंसायाम्, मषमषः, 35 किच्च ॥१०॥
मष्मषः । मसँच परिमाणे, मसमसः, मस्मसः ॥१५॥ ऋकारान्ताद्धातोर्यथादर्शनं किदकारः प्रत्ययो भवति,
ह-स-फलि-कषेरा च ॥१६॥ धातोश्व सरूपे द्वे रूपे भवतः। मश हिंसायाम, मर्यते- एभ्योऽ:प्रत्ययो भवति, सरूपे च द्वे रूपे भवतः, पूर्वस्य 75 ऽनेनेति- मुर्मुर:- ज्वलदङ्गारचूर्णम् । पशु पालन-पूरणयोः, चान्त आकारो भवति । हूंग हरणे, हरति- नयति शपूर्यते जलाधातेन- पुर्पुर:-- फेनः । तृ प्लवन-तरणयोः, स्त्राण्यस्खलन् लक्ष्यं- हराहर:- योग्याचार्यः । सं गतो,
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्र विवरणम् ॥
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धावति वायुना नीयमानः समन्तात् - सरासर:- सारङ्गः । फल निष्पत्ती, फलति - निष्पादयति नानाविधानि पुष्प फलानि - फलाफलम् - अरण्यम् । कष हिंसायाम्, कषति - विदारयति - कषाकष :- कृमिजातिः ॥ १६ ॥
sagपान्त्याभ्यां faagतौ च ॥१७॥ ॥
इकारोपान्त्यादुका रोपान्त्याच्च कित् अः प्रत्ययो भवति, सरूपे च द्वे रूपे भवतः, पूर्वस्य च यथासंख्यमिकारोकारो चान्तौ भवतः । किलत्रवत्य - क्रीडनयो:, किलकिलः । हिलत् हावकरणे, हिलिहिलः । शिलत् उञ्छे, शिलिशिलः । 10 छुरत् छेदने, रुच्छुरः । मुरत् संवेष्टने, मुरुमुरः । घुरत्
भीमार्थ - शब्दयोः, धुरुधुरः । पुरत् अग्रगमने, पुरुपुरः । सुरत् ऐश्वर्य-दीप्त्योः, सुरुसुरः । कुरत् शब्दे, कुरुकुरः । त्रुरण् स्तेये, चुरुचुर: । हुल हिंसा-संवरणयोच, हुलुहुल: । गुजत् शब्दे, गुजगुजः। गुडत् रक्षायाम् गुडगुडः । कुटत् 15 कौटिल्ये, कुटुकुटः । पुटत् संश्लेषणे, पुटुपुट: । कुणत् श ब्दोपकरणयोः, कुणुकुणः । मुणत् प्रतिज्ञाने, मुणुमुणः । अनुकरणशब्दा एते ॥ १७॥
जजल - तितल- काकोली- सरीसृपाऽऽदयः ।।१८।। एते अप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । जल घात्ये अस्य द्वित्वे 20 पूर्वस्य जभाव:, जजल:, यस्य जाजलिः पुत्रः । तिलत् स्ने
हने, अस्य द्वित्वे पूर्वस्य च तिभावे धातोरिकारस्य अकारे - तितल: । कुल बन्धु- संस्त्यानयोः अस्य द्वित्वे पूर्वस्य च काभावे - काकोली, क्षीरकाकोलीति च वल्लीजातिः । सृप्लू गतो, अस्य द्वित्वे गुणाभावे पूर्वस्य च सरीभावे - सरी25 सृपः- उरगजाति: । आदिग्रहणाद् यथादर्शनमन्येऽपि ॥ १८ ॥
बहुलं गुण-वृद्धी चादेः ॥ १६ ॥
धातोः कितु अः प्रत्ययो भवति, सरूपे च द्वे रूपे भ वतः पूर्वस्य चेकारावन्तौ भवतः यथादर्शनं च गुणवृद्धी भवतः । केलिकिलः, कैलिकिला- हसनशीलः । 30 हिलत् हावकरणे, हेलिहिल:, हैलिहिलच - विलसनगीलः ।
शेलिशिल:, शैलिशिलश्च । शुभि दीप्तौ शोभते पुनः पुनरिति - शोभुशुभः, शौभुशुभः । दंत् प्रेरणे, नुदति पुनः पुनरिति - नोनुदः, नौदुनुदः । गुडत् रक्षायाम्, गुलति - भ्राम्यति पुनः पुनरिति- गोलुगुलः, गौलुगुलः । 35 बुलण् निमज्जने, बोलयति पुनः पुनरिति- बोलुबुल: बौलुबुल: । तत्तद्धात्वर्थास्तच्छीला अनुवादविशेषा
बैते ॥ १६ ॥
लुप् ॥२०॥ धातोरप्रत्ययसन्नियोगे बहुलं णेर्लुप् भवति । वज्र
धारयतीति - वज्रधरः - इन्द्रः । एवं चक्रधर:- विष्णुः, 40 भूधर:- अद्रि:, जलधर:- मेघ: । बाहुलकात् प्रत्ययान्तरेऽपि देवयतीति- दिव्- द्यौः, व्योम, स्वर्गश्च । पुण्यं कारयन्तीति पुण्यकृतो देवाः एवं- पणं शोषयतीतिपर्णशुट् ।
३
"वान्ति पर्णशुषो वातास्ततः पर्णमुचोऽपरे, ततः पर्णरुहः पश्चात् ततो देवः प्रवर्षति ॥ १॥ तथा - महतः कारयां चक्रुराक्रन्दान्' इति प्राप्ते 'महतचकुरत्क्रन्दान्' इति भवति । " महीपालवचः श्रुत्वा जुघुषुः पुष्यमाणवाः ।” घोषयांचकुरित्यर्थः ||२०||
भी शलि वलि - कत्यति मर्च्य च मृजि-कु-तु-स्तु- 50 दाधा-रा-त्रा का पा-निहा- नञ्भ्यः कः ||२१||
fafa - पुषि- मुषि शुष्यवि-सु-वृ-शु-सु-भू-धू मूनीवीभ्यः कित् ॥२२॥
एम्य: कित् कः प्रत्ययो भवति । विपी पृथग्मावे,
एम्य: कप्रत्ययो भवति । विभक् भये, बिभेति दुन्दुभात् परस्माच्च भेक:- मण्डूकः, कातरश्च; बिभेति वायो: - भेकः - मेघः । इंण्क् गतो, एत्यद्वितीय इति - एक: असहाय, संख्या, प्रधानम्, असमानम्, अन्यश्च । 65 पल फल शल गती, शलन्त्यात्मरक्षणाय तमिति - शल्क:शरणम्; शलति त्यक्तं बहिरिति शल्कं गृहीतरसं शकलम्, शल्क:- काष्ठत्वक्, मलिनं च काष्ठम्, मुद्गरः करणं च । वलि संवरणे, वल्क:- दशनः, वासः, त्वक् च । कलि शब्द - संख्यानयोः, कल्क:- कषायः, दम्भः पिष्ट- 60 पिण्डव । अत सातत्यगमने, अत्कः- आत्मा, वायु, व्याधितः, चन्द्रः, उत्पातश्च । मर्चः सौत्रो धातुः प्राप्तौ, मर्क:देवदारुः, वायुः, दानवः, मनः पन्नगः, विघ्नकारी च । " च ज : क- गम्" [ २. १.८६ ] इति कत्वम् । अर्च पूजायाम्, अर्क :- सूर्य:, पुष्प जाति:, कु[ भाट ]टजातिश्च । 65 मृजौक शुद्धी, मार्क:- वायुः । कुंकु शब्दे, कोक:- चक्रवाकः । तुं वृत्ति-हिंसा- पूरणेषु, तोकम्- अपत्यम् । ष्टुंग्क् स्तुतौ स्तोकम् - अल्पम् । डुदांग्क् दाने, दाक:यजमानः, यज्ञश्च । डुधांगक् धारणे च धाक:- ओदनः, अनड्वान्, अम्भः स्तम्भश्च । रांक दाने, राक:- दाता, 70 अर्थ:, सूर्यव; राका - पौर्णमासी, कुमाररजस्वला च । त्रैङ् पालने, त्राक:- धर्मः, शरणस्थानीया । कैं शब्दे, काक:वायसः । पां पाने, पांक रक्षणे वा, पाक:- बाल:, असुर, पर्वतश्च । ओहां त्यागे, निहाकः - निःस्नेहः, निर्मोकश्र्च, निहाको - गोधा । शुं गतौ, न शवतीति - अशोकः ॥ २१ ॥ 75
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
विक्क:- करिपोतः । पुषच् पुष्टी, पुष्क:- निशाकर. । सौत्रस्य वा, उल्का- औत्पातिकं ज्योतिः, अग्निज्वाला 40 मुषश् स्तेये, मुष्कः-- चौर:, मांसलो वा, मुष्की-वृषणौ। च, वृजकि वर्जने, अगुणत्वं च, वृक्क:- मुष्कः। छचतिशुषंच् शोषणे, शुष्कम् - अपगतरसम् । अव रक्षणादिषु, | काययोरेत्वं च, छेक:- मनीषी, केका- मयूरवाक् । यमे
ऊक:- कुन्दुमः । 'सं गतौ, सृकः- वायुः, बाणः, सृगालः, मस्य सः, यस्क:-आदिग्रहणात् ढक्का-स्पृक्काऽऽदयोऽपि ।।२६।। 5 बकः, निरयश्च, सृका- आयुधविशेषः । वृगट वरण, घृश् द-क-न-स-भ-ध-व-म-स्त-क-क्ष-लङघि-चरि-चटिसंभक्तो वा, वृक:- मृगजातिः, आदित्यः, धूर्तः, जाठरश्वा- | कटि-कण्टि-चणि-चषि-मलि-वमि-तम्यवि-देवि-ब-45 ग्निः । शुं गतो, शुक:- कीर:, ऋषिश्च । गट् अभिषवे. धि-कनि-जनि-मशि-क्षारि-कूरि-वृति-वल्लि-मल्लि-ससूक:- निरामयः । भू सत्तायाम्, भूक:- काल:, छिद्र च । ललि भ्योऽकः ॥२७॥ धूत विधूनने, धूगट कम्पने धूगश् कम्पने वा, धूक:- वायुः,
एभ्योऽक: प्रत्ययो भवति। दश विदारणे, दरक:10 व्याधिश्व; धूका-पताका। मूङ् बन्धने, मूक:- अवाक् ।
भीरुः । कृत् विक्षेपे, करक:- जलभाजनम्, कमण्डलुश्च; णींग प्रापणे, नीक:- खगः, ज्ञाता च; नीका- उदकहा
करका:- वर्षपाषाणः। नश नये, नरक:-निरयः। सं 50 रिका, ज्ञातिश्च । वींक प्रजनादिषु, वीक:- वायु:, व्याधि:, नाशः, अर्थः, मनः, वसन्तश्च, वीका-पक्षिजातिः, नेत्र
गतो, सरको- मद्य विशेषः, कसभाजन विशेषश्च, सरकामलं च ॥२२॥
मधुपानवारः । टु ग्क् पोषणे च, भरक:- गोण्यादिः ।
धुंङ् अवध्वंसने, धरक:- सुवर्णोन्माननियुक्तः । वृग्ट् 15 कृगो वा ॥२३॥
वरणे, वरकः, वधूजानिसहायः, वाजसनेयभेदश्च । मूत् ___ कृगः कः प्रत्ययो भवति, स च कित् वा भवति । डुकृग्
प्राणत्यागे, मरक:- जनोपद्रवः । ष्टुंग्क् स्तुती, स्तबक:- 55 करणे, कर्क:- अग्निः, सारङ्गः, दर्भः, श्वेताश्वश्च । कृक:
पुष्पगुच्छः । कुंक शब्दे, कवकम्- अभक्ष्यद्रव्यविशेषः । शिरोग्रीवम् ॥२३॥
टुक्षक शब्दे, क्षवक:- राजसर्षपः । लघुङ् गतौ, लङ्घक:-- घु-यु-हि-पि-तु-शोर्दीर्घश्च ॥२४॥
रङ्गोपजीवी। चर भक्षणे च, चरक:- मुनिः । चटण 20 एभ्य: कित् कः प्रत्ययो भवति, एषां च दीर्घो भवति । भेदे, चटक:- पक्षी । कटे वर्षा-ऽऽवरणयोः, कटक:
घुङ् शब्दे, घूक:- कौशिकः । युक् मिश्रणे, यूका- क्षुद्र- वलयः । कटु गतौ, कण्टक:- तरुरोम । चण शब्दे, 60 जन्तु: स्वेदजः । हिंट गति-वृद्ध्योः , हीक:- पक्षी । पित्
चणक:- मुनिः, धान्यविशेषश्च । चषी भक्षणे, चषक:गतो, पीक:-उपस्थो, जलाश्रयश्च । तूंक वृत्त्यादिषु, तुक:- पानभाजनम् । फल निष्पत्ती, फलक:- खेटकम् । टुवमू
उपस्थः, पर्वतश्च । शुं गतो, शूक:- किंशारुः, अभिषवः. उद्गिरणे, वमक:- कर्मकरः । तमूच् काङ्क्षायाम्, तमक:25 शोकश्च, शूका- हुल्लेख: ॥२४॥
व्याधिः, क्रोधश्च । अव रक्षणादी, अवका- शैवलम् । हियो रश्च लो वा ॥२५॥
देव देवने, देवका- अप्सराः, देविका- नदी । बन्धंश 65 हियः कित् कः प्रत्ययो भवति, रेफस्य च लकारो वा | बन्धने, बन्धक:- चारकपाल: । कनै दीप्त्यादिषु, कनकभवति । [ ह्रींक लज्जायाम्, ] ह्रीकः, ह्लीक:- लज्जा- सुवर्णम् । जनैचि प्रादुर्भावे, जनक:- सीतापिता । मश परः, नकुलश्च । ह्रीको-लिङ्ग्यपि ।।२५।।
रोषे च, मशक:- क्षुद्र ज तुः । क्षर संचलने, ण्यन्त., क्षारक30 निष्क-तुरुष्कोद-ऽलर्क-शुल्क-श्वफल्क-किल्ल- बालमुकुलम् । कुरत् शब्दे, कोरकं-- प्रौढमुकुलम् । वृतूङ् ल्कोल्का-वृक्क-च्छेक-केका-यस्काऽऽदयः ॥२६॥
वर्तने, वर्तका वर्तिका वा-शकुनिः वल्लि संवरणे, वल्लकी-70
वीणा । मल्लि धारणे, मल्लक:- शरावः, मल्लिका- पुष्पएते कप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । नेः सीदतेडिच्च, निष्क:--
जाति:, दीपाधारश्च । सल्लः सौत्रः, सल्लकी- वृक्षः, सत्कृत्य सुवर्णादिः । तूरैचि त्वरायाम्, अस्य ह्रस्व उषश्चान्तः,
लक्यते स्वाद्यते गजैरिति वा- सल्लकी । अली भूषणादिषु, तुरुष्क:- वृक्षः, म्लेच्छश्च । उदः परात् अर्तेः, उदर्क:
अलक:- केशविन्यासः, अलका- पुरी ॥२७॥ 35 क्रियाफलम् । अली भूषणादौ, अस्मादर चान्त:, अलर्क:- उन्मत्तः, मदालसात्मजश्च । "पल फल शल गतौ" इत्य
को रु-रुण्टि-रण्टिभ्यः ॥२८॥
75 स्योपान्त्योत्वं च, शुल्क- रक्षानिर्वेशः । शुन: परात् फाले- कुशब्दात् परेभ्य एभ्योऽक: प्रत्ययो भवति । रुक् शब्दे, ह्रस्वश्च, श्वफल्क:- अन्धकविशेषः । किमः परात् जषो कुरवक:- वृक्षः । रुटु स्तेये, कुरुण्टको- वर्णगुच्छः । रण्टि: रस्य लश्च, किञ्जल्क:- पुष्परेणुः । ज्वलेरुलादेशश्च, उलेः । प्राणहरणे सौत्रः, कुरण्टक:- स एव ॥२८॥
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
ध्र-धून्दि-रुचि-तिलि-पुलि-कुलि-क्षिपि-क्षुपि-लि- निर्मोचकः, बध्यः, वधनम् । लघुङ् गती, नलुक् च, 40 खिभ्यः कित् ॥२६॥
लघक:-- असमीक्ष्यकारी। जहातेढे रूपे अन्तलुक च, ___ एभ्यः कित् अकः प्रत्ययो भवति । ध्र स्थैर्ये च, ध्र वक:- जहक:- काल:. क्षुद्रश्च । ईरिक् गति-कम्पनयोः, ईडिक्
स्थिरः, ध्र वका- आवपनविशेषः । धुत विधनने, धूवर्क- | स्तुती, अनयोर्गुणश्च, एरका-उदकतृणजातिः, एडका5 धूननम्, धुवक:- प्रधान, स्त्री ध्रुवका- आवपनविशेषः। अविजातिः। अशोटि व्याप्ती, अस्य मोऽन्तः, अश्मकाउन्दै क्लदने, उदक- जलम् । रुचि अभिप्रीत्यां च, रु
जनपदः। रमि क्रीडायाम्, अस्य लमादेशः, लमक:-45 चक:- आभरणविशेषः । तिलत् स्नेहने, तिलक:- वि
ऋषिविशेषः । क्षुदपी संपेषे, अस्य क्षुल्लादेशश्व क्षुल्लक
दभ्रम्; क्षुधं लातीति वा- क्षुल्लः, क्षुल्ल एव क्षुल्लक इति शेषकः, वृक्षश्च । पुलण् समुच्छाये, पुल महत्त्वे वा, पुलक:
वा। वट वेष्टने, अस्यावोऽन्तश्च, वटवका- तृणपुञ्जः । रोमाञ्चः । कुल बन्धु-संस्त्यानयोः, कूलक- संयुक्तम् । क्षि10 पीत् प्रेरणे, क्षिपक:- वायुः, क्षिपका- आयुधम् । भुपः ।
आङ्तर्वात् ढोकतेडिश्च, आढकं- मानम् । आदिग्रहणाद्
बृहत्तन्त्रात्, कला आपिवन्तीति- कलापका:- शास्त्राणि । 50 सौत्रो ह्रस्वीभावे, क्षुपक:- गुल्मः । क्षुभच संचलने, क्षु
कथण वाक्यप्रबन्ध, कथयतीति- कथक:- तोटकाख्यायिभक:- पाञ्चालकः। लिखत् अक्षरविन्यासे, लिखक:चित्रकरः ॥२६॥
कादीनां वर्णयिता । एवम्- उपक-चम्पक-फलहकादयो
ऽपि ॥३३॥ छिदि-भिदि-पिटेर्वा ॥३०॥
शलि-बलि-पति-वृति-नभि-पटि-तटि-तडि-गडि15 एभ्योऽक: प्रत्ययो भवति, स च किद् वा भवति । छिद्पी द्वैधीकरणे, छिदक:- खङ्गः, क्षुरश्च, छेदक:
भन्दि-वन्दि-मन्दि-नमि-कु-दु-पू-मनि-खजिभ्य आकः 55
॥३४॥ परशुः । भिदृपी विदारणे, भिदकं- जलं, पिशुनश्च, भे
| एभ्य आक: प्रत्ययो भवति । पल फल शल गती, शलि दक- वज्रम् । पिट शब्दे च, पिटक:- क्षुद्रस्फोटकः,
चलने च वा, शलाका- एषणी, पूरणरेखा, द्यूतोपकरणं, पेटकं-संघातः ॥३०॥
सूची च। बल प्राणन-धान्यावरोधयोः, बलाका-जल20 कृषेर्गुण-वृद्धी च वा ॥३१॥
चरी शकुनिः। पत्लु गतो, पताका- वैजयन्ती। वतूङ् 60 ' कृषेरकः प्रत्ययो भवति, गुण-वृद्धी चास्य वा भवतः । । वर्तने, वर्ताका- शकुनिजातिः । णभच् हिंसायाम्, कृषत् विलेखने, कर्षकः, कृषक:-- परशुः; कार्षकः, कृषक:- नभाक:- चक्रवाकजातिः, तमः, काकश्च । पट गतो, कुटुम्बी ॥३१॥
पटाका- वैजयन्ती, पक्षिजातिश्च । तट उच्छाये, तटाकंनञः पुंसेः ॥३२॥
सरः। तडण् आघाते, तडाकं- तदेव । गड सेचने, नञः परात् "पुसण् अभिमदने" इत्यस्मात् किदकः | गडाकः- शाकजातिः। भदुङ् सुख-कल्याणयोः, भन्दाक- 65 प्रत्ययो भवति । नपुंसकं- तृतीया प्रकृतिः, नखादित्वात् । शासनम् । वदुङ् स्तुत्यभिवादनयोः, वन्दाक:- चीवर"नबत्" [३.२.१२५.] न भवति ॥३२॥
भिक्षुः । मदुङ् स्तुत्यादिषु, मन्दाका- औषधी। णमं प्रह्वत्वे, कीचक-पेचक-मेचक-मेनका-र्भक-धमक-वधक- नमाका- म्लेच्छातिः । कुंङ शब्दे, कवाक:- पक्षी । लघक-जहकैरकंडका-ऽश्मक-लमक-क्षुल्लक-वटवका- टुडेंट् उपतापे, दवाक:- म्लेच्छः । पूङ् पवने, पवाका305ढकाऽऽदयः॥३३॥
वात्या। मनिच ज्ञाने, मनाका-हस्तिनी। खज मन्थे, 70 कीचकादायः शब्दा अकप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । कचि | खजाक:- आकरा,
खजाक:- आकरः, मन्थाः, दविः, आकाशं, बन्धकी, बन्धने, अस्योपान्त्यस्येत्वं च, कीचक:- वंशविशेषः। शरीर पक्षी च ।।३४॥ डुपचीष् पाके, मचि कल्कने, मनिच् ज्ञाने, एषामुपान्त्य- शुभि-गृहि-विदि-पुलि-गुभ्यः कित् ॥३॥ स्यत्वं च, पेचक:- करिजनभागः, मेचक:-वर्णः, मेनका
एभ्यः किदाक: प्रत्ययो भवति । शुभि दीप्तौ, शुभाका35 अप्सराः । अर्तेर्भश्चान्तः, अर्भक:- बालः। मां शब्दा- पक्षिजातिः । गृहणि ग्रहणे, गृहाकः। विदंक ज्ञाने, विदाका-75
ऽग्निसंयोगयोः, अस्य धमादेशश्च, धमक:- कीट:, करिश्च, भूतग्रामः । पुल महत्त्वे, पुलाक:- अर्धस्विन्नो धान्यविशेषः। अन्यत्रापि धमादेशो दृश्यते, क्ते- धान्तः । हन्तेर्वधश्च, गुंङ् शब्दे, गुंत् पुरीषोत्सर्गे वा, गुवाकं- पूगफलम् ॥३५॥ वधक:- हन्ता, व्याधिश्च, वधकं- पद्मबीजम्, अन्यत्रापि | पिषेः पिन्-पिण्यौ च ॥३६॥ दृश्यते, वृत्रं हन्ति अचि- वृत्रवधः- शक्रः, वधिता- "पिष्लूप् संचूर्णने" इत्यस्मात् किदाकः प्रत्ययो भवति,
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
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अस्य च 'पिन् पिण्य' इत्यादेशो भवतः । पिनाकम्- ऐशं प्राङः पणि-पनि-कषिभ्यः ॥४२॥ धनुः, शूलं वा, पिनाकः-दण्डः, पिण्याक:-- तिलादिखलः 'प्राइ' इत्येतस्मादपसर्गसमुदायात् परेभ्य एभ्यः किदिक: 40 ॥३६॥
प्रत्ययो भवति । पणि व्यवहार-स्तुत्योः, प्रापणिक:मवाक-श्यामाक-वार्ताक-वृन्ताक-ज्योन्ताक-गूवा- वणिक् । पनि स्तुती, प्रापनिक:- पथिकः । कष हिंसायाम्, 5 क-भद्राकाऽऽदयः ॥३७॥
प्राक षिक:- वायुः, खलः, नर्तकः, मालाकारश्च । प्रपूर्वोत् एते आकप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । मव्य बन्धने, यलोपः, पणेराङ्पूर्वाच्च कषेरिच्छन्त्यन्ये- प्रपणिक:- गन्धविक्रयी, मवाक:- रेणुः । श्यङ् गतो, मोऽन्तश्च, श्यामाक:- जघन्यो आकषिको न कर्तव्यः ॥४२॥ व्रीहिः । वृतेर्वृद्धीच, वार्ताकी-शाकविशेषः तत्फलं वार्ता- मुर्दीर्घश्च ॥४३॥ कम् । स्वरान्नोऽन्तश्च, वृन्ताकी उच्चबृहती, तत्फलं-वृन्ता
मुरिक: प्रत्ययो भवति, दीर्घश्च स्वरस्य भवति । ज्य गती. न्तश्च प्रत्ययादिः, ज्यवतेऽस्मिन् स्विद्य- मूषिक:- आखूः ॥४३॥ मान इति- ज्योन्ताक-स्वेदसद्मविशेषः । गत पुरीषोसर्गे,
स्यमेः सीम् च ॥४४॥ गङ् शब्दे वा, ऊबादेशश्च, गूवाक- पूगफलम् । भदुङ् सुख
स्यमेरिक: प्रत्ययो भवति, अस्य च 'सीम्' इत्यादेशो 50 कल्याणयोः, अस्य भद्रादेशश्च, भद्राक:- अकुटिलः । आदि
भवति । स्यमू शब्दे, सीमिक:- वृक्षः, उदक कृमिश्च, ग्रहणात् स्योनाक-चार्वाक-पराकाऽऽदयो भवन्ति ॥३७॥
सीमिका- उपजिविका, सीमिक- वल्मीकम् । केचित् 15 क्री-कल्यलि-दलि-स्प
इकः ॥३८॥ सिम' इति द्वस्वोपान्त्यमादेशं प्रत्ययस्य च दीर्घत्वएभ्य इकः प्रत्ययो भवति । डुकींगश् द्रव्यविनिमेये, | मिच्छन्ति- सिमीक:- सूक्ष्मकृमिः ॥४४॥ क्रयिक:-क्रेता। कलि शब्द-संख्यानयोः, कलिका-कोरकः,
कुशिक- हृदिक- मक्षिकेतिक- पिपीलिकादयः 55 उत्कलिका-ऊमिः । अली भूषणादौ, आलिक- ललाटम् ।।
| ॥४ ॥ दल विशरणे, दलिकं - दारु । स्फट स्फुट्ट विसरणे, स्फटिक:
एते किदिकप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । कुषःश च, कु20 मणिः । दुषच् वैकृत्ये, दूषिका- नेत्रमल: ।।३।।
शिक:- मुनिः । ह्रगो दोऽन्तश्च, ह्रदिक:- यादवः । मषेः आङः पणि-पनि-पदि-पतिभ्यः ॥३६॥
सोऽन्तश्च, मक्षिका-क्षद्रजातिः । एतेस्तोऽन्तश्च, इतिक:आङः परेभ्य एभ्य इकः प्रत्ययो भवति । पणि व्यव- मुनिः । पीलेझै च, पिपीलिका- मध्यक्षामा कीटजातिः। 60 हार-स्तुत्योः, आपणिक:- पत्तनवासी, व्यवहारज्ञो वा। आदिग्रहणात् गब्दिक-भुरिक-भुलिकाऽऽदयो भवन्ति ।।४।। पनि स्तुती, आपनिक:- स्तावकः, इन्द्रनीलः, इन्द्रकीलो
| स्थमि-कषि-दृष्यनि-मनि-मलि-वल्यलि-पालि25 वा । पदिच गतो, आपदिकः- इन्द्रनीलः, इन्द्रकीलो कणिभ्य ईकः ॥४६॥
वा। पल गती आपतिक- पथि वर्तमान मगर एभ्य ईक: प्रत्ययो भवति । स्यम् शब्दे, स्यमीकःश्येन:, कालो वा । आपणिकादयश्चत्वारो वणि- | वृक्षः, वल्मीकः, नृप गोत्रं च, स्यमीक-जलम्, स्यमीका- 65 जोऽपि ॥३६॥
कृमिजातिः । कष हिंसायाम्, कषिका- कुद्दालिका । दुषंच्
वैकृत्ये, ण्यन्तः, दूषीका- नेत्रमल:, वीरणजातिः, वतिः, नसि-वसि-कसिभ्यो णित् ॥४०॥
लता, च । अनक प्राणने, अनीकं- सेनासमूहः, संग्रामश्च । 30 एभ्यो णिदिकः प्रत्ययो भवति । णसि कौटिल्ये, ना
मनिच ज्ञाने, मनीक:- सूक्ष्मः । मलि धारणे, मलीकम्सिका- घ्राणम्। वसं निवासे, वासिका-माल्यदामविशेषः, अञ्जनम्, अरिश्च । वलि संवरणे, वलीक:- बलवान्, पट-70 छेदनद्रव्यं च । कस गती, कासिका- वनस्पतिः ॥४०॥
लान्तश्च, वलीक- वेश्मदारु । अली भूषणादौ, अलीकम्पा-पुलि-कृषि शि-वश्चिभ्यः कित् ॥४१॥ असत्यम, अलीका- पण्यस्त्री, व्यलीकम्- अपराधः, व्य
लीका- लज्जा । पलण रक्षणे, पालीक- तेजः । कण शब्दे, एभ्यः किदिक: प्रत्ययो भवति । पां पाने, पिक:35 कोकिल: । पुल महत्वे. पुलिक:- मणिः । कृषीत् विलेखने,
| कणीक:- पटवासः, कणीका-भिन्नतण्डुलावयवः, वनस्पति
बीजं च ।।४६।। कृषिक:- पामरः, तृणजातिश्च । क्रुशं आह्वान- रोदनयोः, | क्रुशिक:- क्रोष्टुकः, उलूकश्च । ओवश्वौत् छेदने, वृश्चिक:- ज-प-द-श-वृ-मृ-ग्यो द्वेरश्चादौ ॥४७॥ सविषः कीटः, राशिश्च नक्षत्रपादनवकरूपः ॥४१॥
एभ्यः ईकः प्रत्ययो भवति, द्वे च रूपे भवतः, एषां Aho! Shrutgyanam
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
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चादौ रो भवति । जष्च् जरसि, जर्जरीका- शतपत्त्री। च्, किङ्किणीका- घण्टिका । पुणेर्डर् चान्तः, पुण्डतेर्वा 40 पृश् पालन-पूरणयोः, पर्परीका- जलाशयः, सूर्यश्र; पर्परीक: अर्, पुण्डरीकं- पद्म, छत्त्रं, व्याघ्रश्च। चञ्चेरर् चान्तः, अग्निः, कुररः, भक्ष्यम्, कुर्कु रश्च । दृश् विदारणे, दर्दरीक:- चञ्चरीक:- भ्रमरः । पिपर्तेर्गुणो द्वित्वं पकारयोः फत्वं
दाडिमः, इन्द्रः, वादिनविशेषः, वादिनभाण्डं च । शृश् रश्चान्तः पूर्वस्य, फर्फरीक-पल्लवं, पादुका, मर्दलिका च । 5 हिंसायाम्, शर्शरीक:- कृमिः, विकलेन्द्रियः, दुष्टाश्वः, ला- झीर्यतेद्वित्वं तृतीयाभावः पूर्वस्य रश्चान्तः, झरीकः
वकश्च, शर्शरीका- माङ्गल्याभरणम् । वगट वरणे, वर्व- देहः, झर्भरीका-वादित्रभाण्डम् । एवं- घरते:, घर्घरी-45 रीक:- संवरणम्, उरणः, पतत्त्री, केशसंघातच, वर्वरी- | का- घण्टिका । आदिग्रहणादन्येऽपि ॥५०॥ का- सरस्वती । मूत् प्राणत्यागे, मर्मरीकः- अग्निः, शूरः, | मि-वमि-कटि-भल्लि-कुहेरुकः ॥५१॥ श्येनश्च ॥४७॥
एभ्य उक: प्रत्ययो भवति । डुमिंगट प्रक्षेपणे, मयुक:10 ऋच्यजि-हृषीषि-दृशि-मृडि-शिलि-निलीभ्यः कित् आतपः । बाहुलकात् “मिग्मीगो०" [४.२.८ ] इति ना. ૪s.
त्वम् । टुवमू उद्विगरणे, वमुक:- जलदः । कटे वर्षा-ऽऽवर- 50 एभ्यः किदीकः प्रत्ययो भवति । ऋचत स्तती. ऋ- | णयोः, कट्रक:- रसविशेषः । भल्लि परिभाषण-हिंसादानेष चीक:- ऋषिः । ऋजि गति-स्थानार्जनोजनेषु, ऋजीक- भल्लुक:- ऋक्षः । कुहणि विस्मापने, कुहुकम्- आश्चर्यम्
वज्रम्, बलं, स्थानं च । हृषू अलीके, हृषच् तुष्टौ वा, ह- ॥५१॥ 15 षीकम्- इन्द्रियम् । इषत् इच्छायाम्, ईष उञ्छे, ईष गति
हिंसा-दर्शनेषु वा, इषीका, ईषीका च- तृणशलाका । दृश| आभ्यां परस्मात् कसेरुकः प्रत्ययो भवति । कस गती, 55 प्रक्षण, हशीक- मनोज्ञम्, दृशीका- रजस्वला। मृडत् संकसूकः- सुकमारः, परापवादशीलः, श्राद्धाग्निश्च, संकसुखने, मृडीकं- सुखकृत्, सुखं च । शिलत् उञ्छे, शिलीक:
सुकं- व्यक्ताव्यक्तं, संकीर्णं च । विकसुक:- गुणवादी, सस्यविशेषः । लींङच् श्लेषणे, निपूर्वः, निलीक- वृत्तम् । | परिश्रान्तश्च ॥५२॥ 20 बाहुलकादीलुक् ॥४८॥
क्रमेः क्रम् च वा ॥५३॥ मृदेोऽन्तश्च वा ॥४६॥
क्रमेरुक: प्रत्ययो भवति, अस्य च 'कृम' इत्यादेशो वा 60 मृदेः किदीकः प्रत्ययो भवति, वकारश्चान्तो वा भवति । भवति । कमू पादबिक्षेपे, कृमुक:- बन्धनम्, आदेशविधानमुंदश् क्षोदे, मृदीका मदीका च- द्राक्षा ॥४६॥ बलाच्च न गुणः, क्रमुकः- पूगतरुः ॥५३॥
सृणीका-स्तीक-प्रतीक- पूतीक-समीक-वाहीक- कमि-तिमेर्दोऽन्तश्च ॥५४॥ 25 वाहीक-वल्मीक-कल्मलीक-तिन्तिडीक-कक- आभ्यामकः प्रत्ययो भवति, दश्चान्तो भवति । कमङ
णीक-किङ्किणीक-पुण्डरीक-चञ्चरीक-फर्फरीक- कान्तौ, कन्दुक:- क्रीडनम् । तिमच् आर्द्रभावे, तिन्दुक:- 65 झझरिक- घर्घरीकाऽऽदयः ॥५०॥
वृक्षः ॥५४॥ __ एते किदीकप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । सर्तेोऽन्तश्च, । मण्डेर्मड्ड च ॥५५॥
सृणीक:- वायुः, अग्निः, अशनिः, उन्मत्तश्च, सृणीका-- मण्डेरुक: प्रत्ययो भवति, मड, च आदेशो भवति । 30 लाला। अस्तेस्तोऽन्तश्च, अस्तीक:- जरत्कारुसुतः। प्रांक् | म भूषायाम, मडक:- वाद्य विशेषः ॥५५॥ पूरणे, प्रातेस्तोऽन्तो ह्रस्वश्च, प्राति शरीरमिति- प्रतीक:
___ कण्यणित् ॥५६॥ वायुः, अवयवः, सुखं च । सुप्रतीक:-- दिग्गजः । पुवस्तो
आभ्यां णिदुक: प्रत्ययो भवति । कण अण शब्दे, ऽन्तश्च, पूतीक- तृणजातिः । सम्पूर्वस्य एतेलु क् च,
काणुक:- काकः, हिंस्रश्च, काणुकम् आणुकं च- अक्षिसंयन्त्यस्मिन्निति- समीकं- संग्रामः । वहि-वल्ह्यो
मलम् ॥५६॥ 35 दीर्घश्च, वाहीकः, वाल्हीक;, एती देशी। वलेर्मोऽन्तश्च,
वल्मीक:- नाकुः । कलेमलश्वान्तः, कल्मलीकं- ज्वाला। कञ्चुकांशुक-नंशुक-पाकुक-हिबुक-चिबुक-जम्बुकतिमेस्तिड् चान्तः, तिन्तिडीक:- पक्षी, वृक्षाम्लच, तन्ति- | चुलुक-चूचुकोल्मुक-भावुक-पृथुक-मधुकादयः॥५७॥ 75 डीक इति पूर्वस्येत्वं नेच्छन्त्येके । चक्षण्यतेः कङ्कण् च, एते किदुकप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । कचि बन्धने, कङ्कणीक:- घण्टाजालम् । किमः परात् कणतेः किण् | अशौटि व्याप्ती, नशौच अदर्शने, एषां स्वरान्नोऽन्तश्च ।
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कञ्चक:- कूर्यासः, अंशुकं- वस्त्रम्, नंशुको- रणरेणुः, | तृणजातिः। आदिग्रहणादनूक-वा- वदूकाऽऽदयो भवन्ति 40 प्रवासशील:, चन्द्रः, प्रावरणं च । पचेः पाक च, पाकुक:- ॥६१।। लघुपाची, सूपः, सूपकारः, अध्वर्युश्च । हिनोति-चिनोति- किरोऽङ्को रो लश्च वा ॥६॥ जमतीनां वोऽन्तश्च, हिबुकं- लग्नाच्चतुर्थस्थानम्, रसातलं, |
किरतेरङ्कः प्रत्ययो भवति, रेफस्य च लकारादेशो वा 6 च; चिबुकं- मुखाधोभागः, जम्बुक:- सृगाल: । चुलुम्पः सा,
33. भवति । करङ्कः- समुद्रः, कलङ्कः-लाञ्छनम् ॥६२।। सौत्रः, अन्त्यस्वरादिलोपश्च, चुलुम्पतीति- चुलुक:- कर
रा-ला-पा-का-भ्यः कित् ॥३॥ कोशः। चतेश्च च, चूचुक:- स्तनाग्रभागः। ज्वलेरुल्म्
एभ्यः किदङ्कः प्रत्ययो भवति । रांक दाने, रङ्कः अबच, उल्मुकम्-अलातम् । भातेर्वोऽन्तश्च, भावुक:-भगिनीपतिः । प्रथिष् प्रख्याने, पृथुकः- शिशुः, व्रीह्याद्यभ्यूषश्च ।
लीयान् । लांक् दाने, लङ्कापुरी। पांक रक्षणे, पङ्क:
कर्दमः। के शब्दे । कङ्कः पक्षी ॥३॥ 10 मचि कल्कने, धश्चान्तादेशः, मधुकं- यष्टीमधु । आदिग्रहणाद् वालुकी-वालुकादयो भवन्ति ॥५७॥
कुलि-चिरिभ्यामिङ्कक् ॥४॥ म-मन्यञ्जि-जलि-बलि-तलि-मलि-मल्लि-भालि
आभ्यामिङ्कक् प्रत्ययो भवति । कुल बन्धुसंस्त्यानयोः, 50 मण्डि-बन्धिभ्य ऊकः ॥५८॥
कुलिङकः चटकः । चिर हिंसायाम् सौत्रः, चिरिकं जलएम्य ऊकः प्रत्ययो भवति । मत् प्राणत्यागे, मरूक:
यन्त्रम् ॥६४॥ 15 मयूरः, मृगः, निदर्शनेभ:, तृणं च । मनिच् ज्ञाने, मनूक:
कलेरविङ्कः ॥६५॥ कृमिजातिः । अञ्जो व्यक्ति-भ्रक्षण-गतिषु, अञ्जक:-हिंस्रः।।। कलेरविकः प्रत्ययो भवति । कलि शब्दसंख्यानयोः, जल धात्ये, जलूका- जलजन्तुः । बल प्राणन-धान्यावरोधयोः, कलविङ्कः गृहचटकः ॥६५॥ बलूकः-उत्पलमूलं, मत्स्यश्च । तलण् प्रतिष्ठायाम्, तलूक:- क्रमेरेलकः ॥६६॥
त्वक्कृमिः । मलि धारणे, मलूक:- सरोजशकुनिः । मल्लि क्रम पादविक्षेपे, इत्यस्मादेलकः प्रत्ययो भवति । 20 धारणे, मल्लूकः- कृमिजातिः । भलिण् आभण्डने, भालू- क्रमेलक: करभः ॥६६॥ क:- ऋक्षः । मडु भूषायाम्, मण्डूक:- दुर्दुरः। बन्धंश
जीवेरातृको जैव च ॥७॥ बन्धने, बन्धूकः- बन्धुजीवः ।।५८॥
जीव प्राणधारणे, इत्यस्मादातकः प्रत्ययो भवति, जैव 60 शल्यणित् ॥५६॥
इत्यादेशश्च भवति । जैवातक: आयुष्मान् चन्द्र : आम्रः आभ्यां णिदूकः प्रत्ययो भवति । पल फल शल गती, वैद्यः मेघश्च । जैवातृका जीवद्वत्सा स्त्री ।।६७॥ 25 शालूकं-जलकन्दः, बलवांश्च । अण शब्दे, आणूकम्- अक्षि
ह-भू-ला-भ्य आणकः ॥६॥ मलम् ॥५६॥
___एम्य आणकः प्रत्ययो भवति । हंग हरणे, हराणकः कणि-भल्लेर्वीर्वश्च वा ॥६०॥
चौरः । भूसत्तायाम्, भवाणक: गृहपतिः। लांक आदाने, 65 आभ्यामूक: प्रत्ययो भवति, दीर्घश्चानयो भवति । लाणकः हस्ती ॥६॥ कण शब्दे, कणक:- धान्यस्तोकः, काणूकः- पक्षी, काणू- प्रियः कित् ॥६६॥ 30 कम्- अक्षिमल:,तमो वा । भल्लि परिभाषण-हिंसा-दानेष, प्रींगश् तृप्तिकान्त्योः। इत्यस्मादाणकः प्रत्ययो भवति भल्लूक: भाल्लूकश्च- ऋक्षः ॥६॥
सच कित् भवति । प्रियाणक: पुत्रः ॥६६॥ शम्बूक-शाम्बूक-वृधूक-मधूकोलूकोरुबूक-वरु- धा-लू-शिङ्घिभ्यः ॥७०॥
___70 कादयः ॥६॥
योगविभाग उत्तरार्थः । एभ्य- आणक: प्रत्ययो एते ऊकप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते। शमेोऽन्तो दीर्घश्च | भवति । धांगक धारणेच, धाणकः दीनारद्वादशभागः 35 वा । शम्बूकः- शङ्खः, शाम्बूक:- स एव । वृश वरणे, | हविषां ग्रहः छिद्रपिधानं च । लूगश् छेदने, लवाणकः
विश्च. वधक:- मातवाहकः, वधक- जलम । काल: तणजातिः दात्रं च । शिधु आघ्राणे, शियाणकः । मदेर्धश्च, मदयतीति- मधूकः- वृक्षः । अलेरुच्चोपान्त्यस्य, नासिकामलः ॥७॥
75 उलूक:- काकारिः। उरुपूर्वाद् वाते: किच्च, उरु वाति शी-भी-राजेश्चानकः ॥७॥ उरुवूक:- एरण्डः । वधेर्लोपश्च, वर्धत इति- वरूक:- शीभीराजिभ्यो धालूशियिभ्यश्च आनक: प्रत्ययो
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भवति । शी स्वप्ने, शयानक:- उजगरः, शैलव । त्रिभक् भये, बिभेत्यस्मादिति भयानकः - भीमः, व्याघ्रः, वराहः, राहुश्च । राजृग् दीप्तौ राजानकः क्षत्त्रियः । डुधां ग्क् धारणे च, धानक:-हेमादिपरिमाणम् । लग्श् छेदने, 5 लवानक:- देशविशेषः, दात्रं च । शिङ्खन्त्यनेनेति शिङ्घानकः श्ल ेष्मायुः, पुरीषं च ॥ ७१ ॥ अर्णोडत् ॥७२॥
अडिदानकः प्रत्ययो भवति अण शब्दे, आनक :- पटहः
10
कनेरोनकः ॥७३॥
कान्तिगतिषु इत्यस्मादीनकः प्रत्ययो भवति । कनीनक:- कनीनिका, वाक्षितारका ॥७३॥ गुङ धुकधुक ॥७४॥
गुङ् शब्दे, इत्यस्मादीधुकधुक - इत्येतौ प्रत्ययो 15 भवतः । गवीधुकं - नगरम् धान्यजातिश्च । गवेधुका- तृणजातिः ||७४ ||
स्वोपज्ञोणादिगण सूत्र विवरणम् ॥
॥७२॥
20
वृतेस्तिकः ॥७५॥ |
वृतङ् वर्तने, इत्यस्मात्तिकः प्रत्ययो भवति । वतिकाचित्रकरोपकरणम्, शकुनिः, द्रव्यगुटिका च ॥७५॥
कृति-पुति - लति भिदिभ्यः कित् ॥ ७६ ॥
एभ्यः कित्तिकः प्रत्ययो भवति । कृतैत् छेदने, कृत्तिकानक्षत्रम् | पुतिलती सौत्रो पुत्तिका मधुमक्षिका । लत्तिकावाद्यविशेषः, गौः गोधा च, गो पूर्वात् । गोलत्तिका-गृहगोलिका; अवपूर्वात्, अवलत्तिका - गोधा, आलत्तिका-गान प्रारम्भः । 25 भिपी विदारणे, भित्तिका, कुड्यम्, माषादिचूर्णम्, शरावती च नदी ॥७६॥ इष्यशि-मसिभ्यस्तक्क् ॥७७॥
35
एभ्यस्त कक् प्रत्ययो भवति । इषत् इच्छायाम्, इष्टकामृद्विकार: । अशौटि व्याप्ती, अष्टकाः - श्राद्धतिथयस्तिस्रः, 30 अष्टम्यः, पितृदैवत्यं च । मसंच् परिणामे, मस्तक:शिरः ॥७७॥
भियो द्वे च ||७८ ||
fat भये, इत्यस्मात्तक्क् प्रत्ययो भवति द्वे रूपे च भवतः । बिभीतक:-अक्षः ॥७८॥
- रुहि पिण्डि - ईतकः ॥७६॥
एभ्य ईतक: प्रत्ययो भवति । हृग् हरणे, हरीतकी पथ्या । रुहं जन्मनि, रोहीतकः - वृक्षविशेषः । पिडुङ् संघाते, पिण्डीतकः - करहाट: ॥७६॥ उणादि. २
कुषेः कित् ॥ ८० ॥
कुषश् निष्कर्षे इत्यस्मात् किदीकः प्रत्ययो भवति । 40 कुषीतक ऋषिः ॥८०॥ बलि-बिलि- शलि - दमि-भ्य आहकः ॥८१॥
एम्य आहकः प्रत्ययो भवति । बल प्राणनधान्यावरोधयोः, बलाहकः- मेघः, वातश्च । बिलत् भेदने, बिलाहक:वज्रः । बाहुलकान्न गुणः । शलं गतौ शलाहकः वायुः । 45 दमूच् उपशमे, दमाहकः शिष्यः ॥८१॥
चण्डि भल्लि भ्यामातकः ॥८२॥
आभ्यामाकः प्रत्ययो भवति । चडुङ कोपे, चण्डातकंनर्तक्यादिवासः । भल्लि परिभाषणहिंसादानेषु भल्लातक:वृक्षः ॥ ६२॥
श्लेष्मातकाम्रातका मिलातक-पिष्टातकादयः
ह
॥८३॥
एतेआतकप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । श्लिषेमंश्च परादिः, श्लेष्मातकः- कफेलुः । अमेर्वृद्धीरवातः, आम्रातकः- वृक्षः । नमः परस्य म्लायतेर्मिल् च, अमिलातकम् - वर्णपुष्पम् । 55 पिषेस्तोऽन्तश्च पिष्टातकं वर्णचूर्णम् । आदिग्रहणात् कोशातक्यादयो भवन्ति ॥ ८३ ॥
शमि-मनिभ्यां खः ॥ ८४ ॥
आभ्यां खः प्रत्ययो भवति । शमूच् उपशमे, शङ्खःकम्बुः, निधिश्व । मनिच् ज्ञाने, मङ्खः मागधः, कृपणः, चित्र- 60 पटश्च मङ्खा-मङ्गलम् ||८४||
विशाख: स्कन्दः ॥८५॥
50
तेरिच वा ॥८५॥
शों तक्षणे, इत्यस्मात् खः प्रत्यय भवति, इश्वास्यान्तादेशो वा भवति । शिखा चूडा, ज्वाला च विशिखाआपणः । विशिखः - बाणः । शाखा-विटपः । विशाखा नक्षत्रम् । 65
उषेः किल्लुक् च ॥८८॥
पू-मुहोः पुन्मुरौ च ॥८६॥
पुङ् पवने, मुहीच् वैचित्ये, इत्येताभ्यां खः प्रत्ययो भवति । अनयोश्च यथासंख्यं पुनमुर् इत्यादेशौ भवतः । पुङ्खः- बाणबुध्नभागः, मङ्गलाचारश्च । मूर्ख :- अज्ञः ॥ ८६ ॥ 70 अडित् ॥८७॥
अशौटि व्याप्तौ इत्यस्मात् डित् खः प्रत्ययो भवति । अश्नुत इति खमाकाशमिन्द्रियं च नास्य खमस्ति नखः, शोभनानि खानि अस्मिन् सुखम् । दुष्टानि खान्यस्मिन् दुःखम् ||८७||
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
उषू दाहे, इत्यस्मात् कित् खः प्रत्ययो भवति, लुक् चान्त्यस्य भवति । उषन्त्यस्यामिति उखा स्थाली, ऊर्ध्वक्रिया वा ॥ ८८ ॥
महेचास्य वा ॥ ८६ ॥
5
महपूजायाम्, इत्यस्मात् खः प्रत्ययः अन्तलुक् अकारस्य च उकारादेशो वा भवति । मुखमाननम्, मख:-यज्ञः, अध्वर्य:, ईश्वरश्व ||८||
न्युङ्खादयः ॥ ६०॥
न्युङ्खादयः शब्दाः खप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । नयतेः 10 ख उन् चान्तः, न्युङ्खा: - षडोङ्काराः । आदिग्रहणादन्येऽपि
112011
म-धि-भ्यामूखेख ॥१॥
मयि गत, एषि वृद्ध, इत्याभ्यां यथासंख्यं उख, इख इत्येतौ प्रत्ययौ भवतः । मयूखः - रश्मिः । एधिखः वराहः
15 11
गम्यमि- रम्यजि- गद्यदि छाग-डि-खडि-गु-भृ-वृस्वृभ्यो गः ||२||
योग: प्रत्ययो भवति । गम्लृ गतौ, गङ्गा, देवनदी । अम गतौ, अङ्गम् शरीरावयवः, अङ्गः समुद्रः, वह्निः राजा 20 च, अङ्गा-जनपदः । रराम क्रीडायाम्, रङ्गः - नाट्यस्थानम् । अज क्षेपणे च वेगः-स्वरा, रेतश्च । गद व्यक्तायां वाचि, गद्गः वाग् विकलः | अदं भक्षणे, अद्गः समुद्रः, अग्निः, पुरोडाशश्च । छोंच् छेदने, छाग:- बस्तः । गड सेचने, गङ्गःमृगजातिः । खडण् भेदे, खड्गः मृगविशेषोः असिश्च । गृत् 25 निगरणे, गर्गः ऋषिः । टुडुभृंग्क् पोषणे च भर्गः रुद्रः, सूर्यश्च । वृग्ट् वरणे, वर्गः संघातः । औस्त्र शब्दोपतापयोः, स्वर्गः नाकः ॥६२॥
पू- मुदिभ्यां कित् ॥६३॥
आभ्यां किद्रः प्रत्ययोभवति । पूग्श्वने पूगः संघातः, 30 क्रमुकश्च । मुदि हर्षे मुद्रः -धान्यविशेषः ||३||
भृवृभ्यां नोऽन्तश्च ॥ ६४॥
आभ्यांद्रिः प्रत्ययो भवति, नकारश्चान्तो भवति । भृग् पोषणे च भृङ्गः-पक्षी, भ्रमरः वर्णविशेषः, लवङ्गश्व । वृगट् वरणे, वृङ्गः, पक्षीः, उपपतिः ॥ ६४॥ मो णिद्वा ||५||
35
शृङ्ग-शाङ्गदियः ॥६६॥
शृङ्गादयः शब्दा गप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । शृश् हिंसा- 40 याम्, इत्यस्य नोऽन्तो ह्रस्वश्च । शृङ्ग-विषाणम्, शिखर च, तस्यैव नोऽन्तो वृद्धि, शार्ङ्गः - पक्षी । आदिग्रहणात् हंग् हरणे, हार्ग:- परितोषः । मृत् प्राणत्यागे, मार्ग:-पन्थाः
॥६६॥
द्रम गतौ इत्यस्माद्रः प्रत्ययो भवति स च णिद्वा । दाङ्ग - शीघ्रम्, द्राङ्गः पांशुः द्रङ्गः-नगरम् द्रङ्गा-शुल्कशाला
॥६५॥
तडेरागः ॥६७॥
तडण् आघाते, इत्यस्मादागः प्रत्ययो भवति । तडागं
सरः ॥६७॥
पति- तमि तृ-पु-कृ-शूल्वादेरङ्गः ॥ ६८ ॥
एभ्योऽङ्गः प्रत्ययो भवति । पत्लृ गतौ पतङ्गः-पक्षी, शलभ:, सूर्यः, शालि विशेषश्च । तमूच् काङ्क्षायाम्, तमङ्गः- 50 हर्म्यनिर्यूहः । तृ प्लवनतरणयोः तरङ्गः ऊर्मिः । पृश् पालनपूरणयो:, परङ्गः खगः वेगश्च । कृत् विक्षेपे, करङ्गःकर्मशीलः । शृश् हिंसायाम्, शरङ्गः पक्षिविशेषः । लूग्श् छेदने लवङ्गः सुगन्धिवृक्षः । आदिग्रहणादन्येभ्योऽपि
॥६८॥
सृ-वृ- नृभ्यो णित् ॥६६॥
एभ्योणिदङ्गः प्रत्ययो भवति । संगती, सारङ्गःहरिणः, चातकः, शबलवर्णश्च । वृग्ट् वरणे, वारङ्गः, काण्डखङ्गयोः, शल्यं, शकुनिश्व । नृश् नये, नारङ्गः-वृक्षजातिः
11εε11
ममंत्मातौ च ॥१००॥
चास्यादेशो भवतः । मतङ्गः ऋषिः, हस्ति च । मातङ्गःमनिच् ज्ञाने इत्यस्मादङ्गः प्रत्ययो भवति, मतमातौ हस्ती अन्त्यजातिश्च ॥ १००॥
45
55
60
विडि विलि - कुरि मृदि पिशि-भ्यः कित् ॥ १०१ ॥ 65 एभ्यः किङ्गः प्रत्ययो भवति । विड आक्रोशे, विडङ्ग:वृक्षजातिः, गृहावयवश्च । विलतू वरणे, विलत् भेदने वा विलङ्गः - औषधम् । कुरत् शब्दे, कुरङ्गः हरिणः, कुरङ्गीभोजकन्या । मृदश् क्षोदे, मृदङ्गः-मुरजः । पिशत् अवयवे, पिशङ्गः वर्णः ।। १०१ ।
70
स्फुलि - कलि- पत्यादभ्य इङ्गक् ॥ १०२ ॥
स्फुलादिभ्य आदन्तेभ्यश्च इङ्गक् प्रत्ययो भवति । स्फुलत् संचये च, स्फुलिङ्गः स्फुलिङ्गा च अग्निकणः । कलि शब्दसंख्यानयोः, कलिङ्ग - राजा, कलिङ्गा - जनपदः । पल गती, पलिङ्ग ऋषिः, शिला च । पातेः पिङ्गः । भाते:, 75 भिङ्गः । द्वावपि वर्णविशेषौ । ददाते: दिङ्गः अध्यक्षः । दधातेः धिङ्गः श्रेष्ठी । लातेः लिङ्ग स्त्रीत्वादि हेतुश्च । Aho! Shrutgyanam
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स्वोपज्ञोणादिमुनाप्रतिवरणम् में .
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आलिङ्गः-वाद्यविशेषः । श्यतेः शिङ्गः-वनस्पतिः, किशो- | मक्षिका ॥१११॥ रश्च ॥१०२॥
कू-पू-समिणभ्यश्चट् दीर्घश्च ॥११२॥ , 40 भलेरिदुतौ चातः ॥१०३॥
कूपूभ्यां सम्पूर्वाच्चइणश्चट् प्रत्ययो भवति । दीर्घश्व भलिण् आभण्डने, इत्यस्मादिङ्गक् प्रत्ययो भवति । भवति, टो ङ्यर्थः । कुङ् शब्दे, कूचः-हस्ती, कूची-प्रमदा 5 अकारस्य च इकार-उकारी भवतः । भिलिङ्ग:-कर्मारोप- चित्रभाण्डम्, उदश्वित्, विकारश्च । पूगश् पवने, पूचः, पूचीकरणम् । भुलिङ्गः-ऋषिः, पक्षि च । भ्रलिङ्गाः-साल्वा- मुनिः । इंणक् गतौ, समीचः-ऋत्विक, समीचं-मिथुनयोगः । वयवाः ।।१०३॥
समीची-पृथ्वी, उदीची च, दीर्घवचनादगुणो न भवति 45 अदेणित् ॥१०॥
।।११२॥ अदंक भक्षणे, इत्यस्मात् दिङ्गकप्रत्ययो भवति । स |
।११३॥ 10 चणित् भवति । आदिङ्गः-वाद्यजातिः ॥१०४॥ ___ कूर्च इत्यादयः शब्दाश्चट्प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । कवतेः उच्चिलिङ्गादयः ॥१०॥
किरते: करोतेर्वा ऊरादेशश्चान्तस्य । कूर्च-श्मश्रु, आसनं,
तन्तुवायोपकरणं, यति, पवित्रकं च । कूर्चमिव कूर्चक: कूचि-50 उञ्चिलिङ्गादयः शब्दा इङ्गकप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । उत्पूर्वाच्चलेरस्येत्वं च उच्चिलिङ्गः-दाडिमी । आदि
| केति च भवति । चरतेश्वोरयतेर्वा चूरादेशश्च, चूर्चः-बल
वान् । आदिशब्दादन्येऽपि ॥११३॥ ग्रहणादन्येऽपि ॥१०॥ __ माङस्तुलेरुङ्गक् च ॥१०६॥
कल्यवि-मदि-मणि-कु-कणि-कुटि-कभ्योऽचः माङपूर्वात् तुलण उन्माने, इत्यस्मात् उङ्गक इङ्गक् च
॥११४॥ प्रत्ययौ भवतः । मातुलुङ्गः-बीजपूरः, मातुलिङ्गः स एव |
___ एभ्योऽच: प्रत्ययो भवति । कलि शब्दसंख्यानयोः, 55 ।।१०६॥
कलचः-गणकः । अव रक्षणादी, अवच:-उच्चस्तरः । मकमि-तमि-शमिभ्यो डित् ॥१०७॥
देच हर्षे, मदचः-मत्तः । मण शब्दे, मणचः-शकुनिः। कुङ् शब्दे,
कवचं-वर्म । कण शब्दे, कणच:-कणयः। कुटत् कौटिल्येः, 20 एभ्यो डिदुङ्गः प्रत्ययो भवति । कमूङ् कान्ती, कुङ्गा
कुटचः-वृक्षजातिः, कृत् विक्षेपे, करचः-धान्यावपनम् जनपदः । तमूच काङ्क्षायाम्, तुङ्गः-महावा । शमूच् ॥११४॥
60 उपशमे, शुङ्गः-मुनि:, शुङ्गा-विनता । शुङ्गा:-कन्दल्यः
क्रकचादयः॥११५॥ ॥१०७॥ सर्ते सुर्च ॥१०॥
क्रकच इत्यादयः शब्दा अचप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । 25 संगतौ इत्यस्मादुङ्गः प्रत्ययो भवति सुर् चास्यादेशो ।
| क्रमेः कश्च, क्रकच:-करपस्त्र: । आदिशब्दादन्येऽपि ॥११॥ भवति । सुङ्गा-गूढमार्गः ॥१०८॥
पिशेराचक ॥११६॥ स्था-ति-जानिभ्यो घः ॥१०॥
पिशत् अवयवे, इत्यस्मादाचा प्रत्ययो भवति । पि-65
शाच:-व्यन्तरजाति: ॥११६॥ एभ्यो घः प्रत्ययो भवति । ष्ठां गतिनिवृत्ती, स्थाघःगाधः । ऋ प्रापणे च. अर्ध:-मल्यम, मानप्रमाण: मृत्रपिम्यामिचः ॥११७॥ 30 पादोदकादि च । जनैचि प्रादुर्भावे, जङ्घा-शरीरावयवः
आभ्यामिच: प्रत्ययो भवति । मृत् प्राणत्यागे, मरिच॥१०॥
मूषणम् । त्रपौषि लज्जायाम्, त्रपिचा-कुथा ॥११७॥ मघा-घवाघ-दीर्घादयः ॥११०॥
म्रियतेरीचण् ॥११॥ एते घप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । मधेन घलोपश्च । मृत् प्राणत्यागे, इत्यस्मादीचण् प्रत्ययो भवति । मघा-नक्षत्रम् । हन्तेर्हस्य घश्च, घड्यः-घस्मरः, घड्या-| मारीच:-रावणमातुल: ।।११८॥ 35 काङ्क्षा । अमेर्लुक् च, अघं-पापम् । दृणातेीर् च, दीर्घ | लषेरुचः कश्च ॥११॥ आयातः, उच्चश्च । आदिशब्दादन्येऽपि ॥११०॥
लषी कान्तौ । इत्यस्मादुचः प्रत्ययो भवति । अन्त्यस्य सर्तेरघः ॥११॥
| च को भवति । लकुचः-वृक्षजातिः ॥११॥ संगती, इत्यस्मादधः प्रत्ययो भवति । सरघा-मधु-| गुडेरूचट् ॥१२०॥
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सिवेडित् ॥१२१॥ षिवच् ऊतौ इत्यस्मात् डिदूचट् प्रत्ययो ङित् 5 भवति । सूचः पिशुनः स्तिभिश्व | सूची-संधानकरणी
।। १२१ ।।
स्वोपज्ञोणादिगणसूत्र विवरणम् ॥
गुडत् रक्षायाम्, इत्यस्मादूचट् प्रत्ययो भवति । गुडूची- पुन् इत्यादेशो भवति । पुञ्जः राशि: ।। १२८ ।।
छिन्नरुहा । कुटादित्वात् ङित्वम् ॥१२०॥
चि-मेर्डोचचौ ॥१२२॥
चिमिभ्यां प्रत्येकं डोच डच इति प्रत्ययौ भवतः । व । चनभेदान्न यथासंख्यम् । चिग्ट् चयने, चोचः वृक्षविशेषः, 10 चञ्चा- तृणमयः पुरुषः । डुमिंगट् प्रक्षेपणे, मोचा- कदली, मञ्चः-पर्यङ्कः ।। १२२।।
कुटि कुलि-कल्युदिभ्य इञ्चक् ॥ १२३ ॥ एभ्य इव प्रत्ययो भवति । कुटे, कुटिञ्चः क्षुद्रकर्कटः । कुले, कुलिश्चः - राशिः । कलेः कलिञ्चः - उप15 शाखावयवः । उद आघाते सौत्रः, उदिश्च: कोणः येन तूयं वाद्यते परपुष्टश्च ॥ १२३॥
25
एभ्यश्छक्-प्रत्ययो भवति । तुदींत् व्यथने, तुच्छः-स्तो20 कः । मदच् हर्षे, मच्छ:- मत्स्यः, प्रमत्तपुरुषश्च मच्छा स्त्री । पदिच् गतो, पच्छः- शिला । अदंक् भक्षणे, अच्छः-निर्मलः । गुङ् शब्दे, गुच्छः- स्तबकः । गम्लृ गतौ, गच्छः क्षुद्रवृक्षः । कचि बन्धने, कच्छः- कूर्मपादः कुक्षिः नद्यवकुटारश्च । कच्छाजनपद: । बाहुलकात् कत्वाभावः ॥ १२४॥
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35
तुदि- मदि-पद्यदि-गु-गमि कचि-भ्यच्छक्
॥ १२४॥
पीपूङो ह्रस्वश्च ।। १२५ ।।
आभ्यां छक् प्रत्ययो भवति, ह्रस्वश्व भवति । पीङच पाने, पिच्छम् - शकुनिपत्त्रम् पिच्छः गुणविशेषः । यद्वान् पिच्छिल उच्यते । पूङ् पवने, पुच्छं वालधिः ।। १२५ ।। गुलुञ्छ - पिलिपिञ्छेधिच्छादयः ॥ १२६ ॥
एते छप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते | गुडेलं उम् चान्तः, गुलुच्छः स्तबकः । पीलेरिपि नोन्तो ह्रस्वश्व, पिलिपिञ्छ:रक्षो विशेषः । एषेरिट् च, एधिच्छ:-नगः । आदिग्रहणात् पिञ्छादयोऽपि भवन्ति ।। १२६ ।। वियो
'जक् ॥१२७॥
वीक् प्रजवकान्त्यसनखादनेषु च इत्यस्मात् जक् प्रत्ययो भवति । बीजम् उत्पत्ति हेतुः ।। १२७ ।।
पुवः पुन् च् ।। १२८ ॥
पूङ पवने, इत्यस्मात् जक् प्रत्वयो भवति । अस्य च ।
कुवः कुब्कुनौ च ॥ १२६॥
40
कुङ् शब्दे, इत्यस्मात् जक् प्रत्ययो भवति । अस्य च कुब् कुन् इत्यादेशौ भवतः । कुब्ज:-वक्रानताङ्ग, गुच्छ । कुञ्जः- हनुः, पर्वतैकदेशश्च । निकुञ्जः गहनम् ॥ १२६ ॥
कुटेरजः ॥ १३० ॥
कुटत् कौटिल्ये, इत्यस्मादजः प्रत्ययो भवति । कुटज:- 45 वृक्षविशेषः । कुटादित्वात् ङित्वम्, कुटजी ॥१३०॥ भिषेभिषभिष्णौ च वा ॥ १३१ ॥
भिषेरजः प्रत्ययो भवति, भिषभिष्ण इत्यादेशौ चास्य वा भवतः । भिषिः सौत्रः, भिषजः । आदेशबलान्न गुणः । भिष्णज: - वैद्यः, भेजषम् - औषधम् ।।१३१।।
50
मुर्मुर् च ॥१३२॥
मुर्वे बन्धने इत्यस्मादजः प्रत्ययो भवति । अस्य च मुर् इत्यादेशो भवति । मुरजः मृदङ्गः ।। १३२ ।।
बलवन्तश्च वा ॥ १३३॥
बल प्राणनधान्यावरोधयोः इत्यस्मात् अजः प्रत्ययो 55 भवति, वकारश्चान्तो वा भवति । बल्वजः मुञ्जविशेषः । बलजा सबुसो, धान्यपुञ्जः ॥ १३३॥
उटजादयः ॥१३४॥
उटजादयः शब्दा अजप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते, वटेवंस्योत्वं च । उटजं- मुनिकुटीरः । आदिशब्दात् भूर्ज भरुजादयो 60 भवन्ति ।। १३४ ||
कुलेरिजक् ॥ १३५ ॥
कुल बन्धु संस्त्यानयो:, इत्यस्मात् इजक् प्रत्ययो भवति । कुलिजं - मानम् ॥ १३५ ॥
कृगोऽञ्जः ।। १३६ ।।
करोतेरञ्जः प्रत्ययो भवति । ॥१३६॥
मेर्भः ॥ १३७॥
मू अदने इत्यस्मात् झः प्रत्ययो भवति । झञ्जा-सुशीकरो मेघवातः ।। १३७।।
लुषेष्टः ॥ १३८ ॥
लुष स्तेय, इत्यस्माट्टः प्रत्ययो भवति । लोटो-मृत् पिण्ड: ।।१३८ ।।
कर अ:- वृक्षजातिः
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नमि-तनि-जनि वनि-सनो लुक् च ॥ १३६ ॥
एम्यष्टः प्रत्ययो भवति, लुक् चान्तस्य भवति । णमं 75
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्र विवरणम् ॥
घटा-घाटा-घण्टादयः ॥ १४१ ॥
एते प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । हन्तेर्घघाघनश्च, घटावृन्दम् | घाटा-स्वाङ्गम् । घण्टा-वाद्यविशेषः । आदिग्रहणात् छटादयो भवन्ति ।। १४१ ।।
forfar aafa - शकि-कङ्कि-कृपि चपि चमिकम्येधि-of-कि कक्खि-त्-कृ-सृ-भृवृभ्यो ऽटः 15 ॥ १४२ ।।
प्रह्वत्वे, नटः भरतपुत्रः । तनूयी विस्तारे, तटं कूलम् । जप्रादुर्भावे, जटा प्रथित केशसंघातः । वन षण संभक्तौ, वट:- न्यग्रोधः । सटा अग्रथितः केशसंघातः ॥१३६ ।। जनि-पणि- किजुभ्यो दीर्घश्व ॥ १४० ॥ एभ्यष्टः प्रत्ययो भवति, दीर्घषां गुणापवादो भवति । जर्नचि प्रादुर्भाव, पणि व्यवहारस्तुत्योः, जाण्ट:, पाण्ट:- वृक्षविशेषवतो । किजू सौत्री, कीट:क्षुद्रजन्तुः । जूट:- मौलि: ।। १४० ।।
30
एभ्योsटः प्रत्ययो भवति । दिवच् क्रीडादी, देवट:देवकुलविशेषः, शिल्पी च । अव रक्षणादी, अवट:-प्रपातः, कूपश्च । श्रुं श्रवणे, श्रवट :- छत्त्रम् । कुंकु शब्दे, कवट:उच्छिष्टम् । कर्व गतौ कर्बट क्षुद्रपत्तनम् । शक्लृट् शक्ती, 20 शटकम् - अनः । ककुङ् गतौ कङ्कटः सन्नाहः । कङ्कटसीमा । कृपौड़ सामर्थ्य, कर्पर्ट - वासः । चप सान्त्वने, चपट:- रसः । चमू अदने चमट:- घस्मरः । कमूङ् कान्तौ, कमटः- वामनः । एधि वृद्धौ, एघटः वल्मीकः । ककि मर्कीसौत्री । कर्कट :- कपिलः, कुलीर, कर्कटी-त्रपुसी । मर्कट:125 कपिः, क्षुद्रजन्तुश्च । कक्ख हसने, कक्खटः कर्कशः । तू प्लवनतरणयोः, तरट:-पीनः । डुकृांग् करणे, करट:- काकः, करिकपोलच । सृ गतौ, सरटः कृकलासः । टुडुभृगुक् पोषणेच, भरट:-प्लवविशेषः, भृत्यः, कुलालश्च । वृग्ट् वरणे,
वरट:- क्षुद्रधान्यम्, प्रहारश्च ।। १४२ ।।
कुलि-विलिभ्यां कित् ॥१४३॥
आभ्यां किटः प्रत्ययो भवति । कुल बन्धुसंस्त्यानयोः, कुलटा-बन्धकी । विलत् वरणे, विलटा नदी ।। १४३ || कपट कीकटादयः ॥ १४४ ॥
कपटादयः शब्दा अटप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । कम्पेर्न35 लोपश्च कपट- माया । ककेरत ईच्च, कीकटः कृपणः । आदिग्रहणात् लघटपर्पटादयो भवन्ति ।। १४४।।
अनि शृ-प-वृ- ललिभ्य आटः ॥ १४५ ॥
एभ्य आटः प्रत्ययो भवति । अनक् प्राणने, अनाट:शिशुः । शृश् हिंसायाम्, शराट:- शकुन्तः । पशु पालनपूर
१३
णयोः, पराट- आयुक्तकः । वृश् संभक्तौ वराटः सेवकः । 40 ललिण् ईप्सायाम्, ललाटम् अलिकम् ॥१४५॥ सृ-सृपेः कित् ॥१४६॥
आभ्यां किदाटः प्रत्ययो भवति । सृ गतौ स्राट:- पुरः, सरः । सुप्लृ गतौ, सृपाट:- अल्पः कुमुदादिपत्त्रं च । सृपाटी-उपानत्, कुप्यम्, अल्पपुस्तकश्च ।। १४६ ।। किरो लश्च वा ॥ १४७॥
45
किरते: किदाटः प्रत्ययो भवति, लश्चान्तो वा भवति । किलाटो भक्ष्यविशेषः, किराटो वणिक्, म्लेच्छच ॥ १४७ ॥ कपाट - विराट-शृङ्गाट- प्रपुन्नाटादयः ॥ १४८ ॥
एते आटप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । कम्पेर्नलोपश्च, कपाट:- 50 अररिः । ' जपादीनां पो व:' [ २-३-१०५] इति वत्वे-कवाटः । वृङ इत्वं च विराट:- राजा । श्रयतेः शृङ्ग् च शृङ्गाटजलजविशेषः, विपणिमार्गश्च । प्रपूर्वात् पुणेर्नश्च प्रपुनाट:एडगज: । आदिशब्दात् खल्वाटादयो भवन्ति ॥ १४८ ॥ चिरेरिटो भ् च ॥ १४६ ॥
चिरे: सौत्रादि: प्रत्ययो भवति, भकारश्चान्तादेशो भवति । चिभिटी-वालुकी ॥१४६॥
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टिण्टश्वर् च वा ॥ १५०॥
चिरेटिदिण्टः प्रत्ययो भवति, चर इति चास्यादेशो वा भवति । चरिण्टी चिरिण्टी च प्रथमवयाः स्त्री ।। १५० ।। 60 तृ-क - कृपि कम्पि- कृषिभ्यः कोटः ॥ १५१ ॥ एभ्यः किदीट: प्रत्ययो भवति । तृ प्लवनतरणयो:, तिरीटं कूलवृक्षः, मुकुट, वेष्टनं च । कृत् विक्षेपे, किरीटमुकुटं हिरण्यं च । कृपौड़ सामर्थ्य, कृपीटं हिरण्यं, जल च । कपुङ् चलने, कम्पीट-कम्पः, कम्प्रं च । कृषीत् वि- 65 लेखने, कृषीटं जलम् ।। १५१।।
खनेररीटः ॥ १५२ ॥
खजु गतिवैकल्ये, इत्यस्मादरीट: प्रत्ययो भवति । खञ्जरीटः खञ्जनः ॥ १५२ ।।
ग-ज-द-व-भृभ्य उट उडश्च ॥१५३॥
एभ्य उट उडश्च प्रत्ययौ भवतः । भिन्नविभक्तिनिर्देश उटस्योत्तरत्रानुवृत्त्यर्थं । अप्रकृतस्यापि उडस्य विधानमिह लाघवार्थम् । गृश् शब्दे, गरुट:- गरुडश्च-गरुत्मान् । जष्च् जरसि, जरुटः जरुडश्च वनस्पतिः । दृश् विदारणे, दरुट: दरुssa - बिडालः । वग्श् वरणे, वरुट: वरुडश्च- मेष: 75 भृष् भर्जने च भरुट : भरुडश्च- मेष एव ।। १५३ ॥ मङ्कर्मकमुकौ च ॥ १५४ ॥
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
__ मकुङ् मण्डने, इत्यस्मात् उट: प्रत्ययो भवति, मक मुक पी-विशि-कुणि-पृषिभ्यः कित् ॥१६३॥ इत्यादेशो चास्य भवतः । मकूटः मुकूटश्च-किरीट: ॥१५४॥ एभ्यः कित ठः प्रत्ययो भवति । पीङ च पाने, पीठम्- 40
कुरुट-मुरुट-पुरुटादयः ॥१५॥ आसनम् । विशंत् प्रवेशने, विष्ठा-पूरीषम् । कुणत शब्दोपएत उटप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । नते: कश्च, नर्कट:- करणयोः, कुण्ट:-अतीक्ष्णः । पृष् सेचने, पृष्ठ:-अकुशः, 5 बन्दी । कुकेः कोऽन्तश्च, कुक्कूटः-कृकवाकः । उत्पूर्वात् शरीरैकदेशश्च ॥१६३।।
कृगः कुर् च उत्कुष्टः-कचवर, पुजः । मुरिपुर्योर्गुणा- कुषेर्वा ॥१६४॥ भावश्च, मुरुट:-यत् वेण्वादिमूलमजूकर्तुं न शक्यते । कृषश निष्कर्षे, इत्यस्मात् ठः प्रत्ययो भवति, स च वा 40 पुरुट:-जलजन्तु: । आदिशब्दात् स्थपुटादयो भवन्ति । कित भवति । कृष्ठ-व्याधिः, गन्धद्रव्यं च, कोष्ठः-कुशूल:, ॥१५॥
उदरं च ।।१६४।। 10 दुरो द्रः कूटश्च दुर् च ॥१५६॥
शमेलुकच वा ॥१६॥ दूर् पूर्वात् दृणातेः किदूट उटश्च प्रत्ययौ भवतो। शमूच उपशमे, इत्यस्मात् : प्रत्ययो भवति, लुक दुर् चास्यादेशो भवति । दुर्दरूट:-दुर्मुखः, दुई रुट:-अ- चान्तस्य वा भवति । शठः-धूर्तः, शण्ठः स एव, नपुंसक 50 देशकालवादी ॥१५६।।
च ॥१६५।। बन्धेः ॥१५७॥
पष्ठघिठादयः ॥१६६॥ 15 __बन्धंश् बन्धने, इत्यस्मात् कित् उट: प्रत्ययो भवति । पष्ठादयः शब्दा: ष्टप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । पुषेः कित् वधूटी-प्रथमवयाः स्त्री ॥१५७।।
ठ: पषादेशश्च पष्ठ:-प्रस्थः, पर्वतश्च । एधतेरिट च, एधिठंचपेरेटः ॥१५८॥
वनम्, एधिठः-गिरिसरिग्रहः । आदिशब्दादन्येऽपि॥१६६।। 55 चप सांत्वने, इत्यस्मादेट: प्रत्ययो भवति । चपेटः च- म-ज-श-कम्यमि-रमि-रपिभ्योऽठः ॥१६७॥ पेटा वा-हस्ततलाहतिः ।।१५८॥
एभ्योऽठ: प्रत्ययो भवति । मृत् प्राणत्यागे, मरठ:20 प्रो णित् ॥१५॥
दध्यति, द्रवीभूतम्, कृमिजातिः, कण्ठ, प्राणश्च । जषच् गत् निगरणे, इत्यस्मात् णिदेट: प्रत्ययो भवति ।।
जरसि, जरठः-कठोरः । शश् हिंसायाम्, शरट-आयुधं, पापं, गारेट:-ऋषिः ॥१५॥
क्रीडनशीलश्च । कमूङ् कान्तौ कमठ:-भिक्षाभाजनम्, 60 कृ-शक- शाखेरोटः॥१६०॥
कूर्मास्थि, कच्छपः, मयूरः, वामनश्च । अम गतौ, अमठ:
प्रकर्षगतिः । रमि क्रीडायाम, रमठः-देशः, कृमिजातिः, एभ्य ओट: प्रत्ययो भवति । ड्रग करणे, करोट:
क्रीडनशील:, म्लेच्छः, देवश्च, विलातानाम् । रपे व्यक्त 25 भृत्यः शिरः, कपालं च, करोटं-भाजनविशेषः । शक्लट् |
क्ल द वचने, रपठः-विद्वान्, मण्डूकश्च ।।१६७॥ शक्तो, शकोट:-बाहः । शाख श्लाख व्याप्ती, शाखोट:वृक्षविशेषः ॥१६॥
पञ्चमात् डः ॥१६८।।
पञ्चमान्तात् धातोर्डः प्रत्ययो भवति । षण भक्ती, कपोट-वकोटाक्षोट-कर्कोटादयः ॥१६१॥ एते ओटप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । कबङ वर्णे, पश्च,
षण्ड:-वनं, वृषभश्च । बाहुलकात् सत्वाभावः। भण शब्दे,
भण्ड:-प्रहसनकरः, बन्दी च। चण शब्दे, चण्ड:-करः । 30 कपोट:-वर्णः, कितवश्च । वचे: कश्च, वकोट:-बकः ।
पणि व्यवहारस्तुत्योः, पण्ड:-शण्ठः। गणण संख्याने, गण्ड:अश्नाते: सश्च परादिः, अक्षोट:-फलवृक्षः। कृगः को- पौरुषयुक्तः पुरुषः । मण शब्दे, मण्ड:-रश्मिः , अग्रम्, अन्न-70 ऽन्तश्च, कर्कोट:-नागः । आदिशब्दादन्येऽपि भवन्ति
विकारश्च । वन भक्तौ, वण्ड:-अल्प, शेफः, निश्चर्मान॥१६॥
शिश्नश्च । शमू दमूच उपशमे, शण्ड:-उत्सृष्टः, पशः, ऋवनि-कणि-काश्युषिभ्वष्ठः ॥१६२॥
षिश्च । दण्ड:-वनस्पतिप्रतानः, राजशासनं, नालं, प्रहरणं 35 एभ्यष्ठप्रत्ययो भवति । वन भक्ती, वण्ठः-अनिविष्टः । च। रमि क्रीडायाम्, रण्ड:-पुरुषः, रण्डा-स्त्री, रण्डम्-अन्त:कण शब्दे, कण्ठः-कन्धरा। काशङ दीप्तौ, काष्ठं-दारु, ! करणम् । त्रयमपि स्वसम्बन्धिशून्यमेव मुच्यते। तमेस्तनेर्वा, 75
दिक, अवस्था च । उषू दाहे, ओष्ठ:-दन्तच्छदः | तण्ड: ऋषिः । वितण्डा-तृतीयकथा । गमे:, गण्ड:-कपोल: । ॥१६२॥
| भामि क्रोधे, भाण्डम्-उपस्करः ॥१६८॥ Aho! Shrutgyanam
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्र विवरणम् ॥
कण्यणि खनिभ्यो णिद्वा ॥ १६६ ॥ एभ्यो ङः प्रत्ययो भवति, स च णिद्वा भवति । कण अण शब्दे, काण्डः शरः, फलसंघातः, पर्व च । कण्डं भूषणं, पर्व च । आण्ड:-मुष्कः, अण्ड: स एव, योनिविशेषश्च । 5 खनूग् अवदारणे, खाण्डः - कालाश्रयो, गुडः । खण्डः-इक्षुविकारोऽन्यः । खण्डं - शकलम् ॥१६६॥ कु-गु-हु-नी- कुणि तुणि-पुणि-मुणि- शुन्यादिभ्यः कित् ॥ १७० ॥
एभ्यः कित् डः प्रत्ययो भवति । कुङ् शब्दे, कुड : घटः, 10 हलं च । गुशब्दे, गुड:- गोल:, इक्षुविकारश्च, गुडासन्नाहः । हुक् दानादनयो:, हुड :- मूर्ख मेपश्च । णीं प्रापणे, नीडं - कुलायः । कुणत् शब्दोपकरणयो:, कुण्डंभाजनम्, जलाधारविशेषश्च । कुण्ड: भर्तरि जीवति जारेण जातः अपट्विन्द्रियश्च । तुणत् कौटिल्ये, तुण्डम् 15 मुखम् । पुणत् शुभे, पुण्डः भिन्नवर्णः । मुणत् प्रतिज्ञाने, मुण्डः परिवापितकेशः । शुनत् गतौ शुण्डा-सुरा, हस्तिहस्तश्च । आदिग्रहणादन्येभ्योऽपि भवति ।। १७० ।।
|
35
ऋ सृ-तृ-व्या-लिह्यविचमि वमि-यमि-चुरिकुरडः ॥ १७१ ॥
20
एभ्यो अड: प्रत्ययो भवति । ऋक् गतौ, अरडः - तरुः । सृ गतौ, सरड: भुजपरिसर्पः तरुश्च । तू प्लवनतरणयोः, तरड:-वृक्ष जातिः । व्यंग् सवरणे, व्याड:- दुःशील:, हिंस्रः पशु, भुजगश्च । लिहीं आस्वादने, लेहड:-श्वा, चौर्यग्रासी च । अव रक्षणादौ, अवड:- क्षेत्रविशेषः । चमू 25 अदने, चमड :- पशुजाति: । टुवमू उद्विरणे, वमड:-लूताजातिः । यमू उपरमे, यमड: वनस्पतिः, युगलं च । चुरण् स्तेये, चोरड:चोरः । कुणि विस्मापने, कुह्डः उन्मत्तकः ।। १७१ ।।
विड-कहोड- कुरड-केरड-क्रोडादयः ।।१७२ ।। एतेऽप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । विपूर्वात् हन्तेरनो लुक्च, 30 वि :- शकुनि: मूढचित्तश्च । कषेर्हः प्रत्ययोऽकारस्य च औकार, कहोड : - ऋषिः । कुरेर्गुणाभावश्च. कुरड :- मार्जारः । किरते: केर् च केरड :- त्रैराज्ये राजा । कृगः कित् प्रत्ययाकारस्य च औकारः । क्रोड:- किरिः, अङ्कश्च । आदिग्रहणात् लहोडादयो भवन्ति ।। १७२ ।। ज-क-त-श-स-भ-वृभ्योऽण्डः ॥ १७३ ॥
एम्योsur: प्रत्ययो भवति । जष्च् जरसि, जरण्ड:अतीत वयस्कः । कृत् विक्षेपे, करण्डः समुद्गः, समुद्रः कृमिजातिश्च । तृ प्लवनतरणयो:, तरण्ड:-प्लवः, वायुश्च । शृश हिंसायाम्, शरण्ड: हिस्रः, आयुधं च । सृ गतौ, सरण्ड:
१५
कृमिजातिः, इषीका, वायुः, भूतसंघातः, तृणसमवायश्च । 40 टुडुभृ ंग्क् पोषणे च भरण्ड: भण्डजातिः, पक्षी च । वृग्ट् वरणे, वरण्डः- कुडयम्, तृणकाष्ठादिभारश्च ।।१७३ ।। पूगो गादिः ॥१७४॥ |
पूश् पवने, इत्यस्मात् गकारादिः अण्डः प्रत्ययो भवति । पोगण्ड:- विकलाङ्गः, युवा च ॥ १७४॥
वनेस्त च ॥ १७५॥
वन भक्ती, इत्यस्माद् अण्डः प्रत्ययो भवति, तकारश्चान्तादेशो भवति । वतण्डः-ऋषिः ।। १७५।।
पिचण्डैरण्ड-खरण्डादयः ॥ १७६ ॥
yasus प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । पिचेरगुणत्वं च पि- 50 चण्ड:- लघुलगुडः । ईरेगुणश्च, एरण्डः पञ्चागुलः । खाहभक्षणे, अन्त्यस्वरादेररादेशश्च, खरण्डः-सर्वर्तुकम् । आदिग्रहणात् भवन्ति
कूष्माण्डशयण्डशयाण्डादयोपि
।।१७६ ।।
लगेरुडः ॥ १७७॥
55
लगे सङ्गे इत्यस्मात् उडः प्रत्ययो भवति । लगुड :यष्टिः । गृ-ज-दु-वृ-भृभ्यस्तु उडो विहित एव ।। १७७।। कुण्ड ।। १७८ ॥
कुशच् श्लेषे इत्यस्मात् उण्डक् प्रत्ययो भवति । कुशुण्डः - वपुष्मान् ॥१७८॥ शमिषणिभ्यां ढः ॥ १७६ ॥
60
आभ्यां ढः प्रत्ययो भवति । शमुच् उपशमे, शण्ढः नपुंसकम् । षन भक्तो, षण्ढः स एव । बाहुलकात् सत्वाभावः
।।१७६ ।।
45
कुः कित् ॥१८०॥
कुणत् शब्दोपकरणयोः इत्यस्मात् कित् ढः प्रत्ययो भवति । कुण्ठ:- धूर्त: । बाहुलकान्न दीर्घः ।। १८० ।। नञः सहेः षा च ॥ १८१ ॥
इणुवि-शा वेणि-पु-कृ-व-त्-ज-ह-सृपि-पणिभ्यो
णः ।। १८२ ॥
65
नञपूर्वात् षहि मर्षणे, इत्यस्मात् ढः प्रत्ययो भवति, पा चास्यादेशो भवति । अषाढा नक्षत्रम् ।। १८१॥
70
एभ्यो णः प्रत्ययो भवति । इंणक गती, एण:- कुरङ्गः । उर्वे हिंसायाम्, उर्णा- मेषादिलोम, भ्रुवोरन्तरावर्तश्च । शोंच् तक्षणे, शाण: परिमाणम्, शस्त्रतेजनं च । वेणुग् गतिज्ञान- 75 चिन्तानिशामनवादित्रग्रहणेषु वेण्णा कृष्णवेण्णा च नाम नदी । पृश् पालनपूरणयोः, पर्ण-पत्त्रं, शिरश्च । कृत् वि
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TIZIE
घृ-वी
स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥ क्षेपे, कर्ण:-श्रवणं, कौन्तेयश्च । वृश् वरणे, वर्णः-शु- प्रतिपादनम् । श्रृंट् श्रवणे, श्रवण:-कर्ण:, भिक्षुश्च । रुक् 40 क्लादिः, ब्राह्मणादिः, अकारादिः, यश:, स्तुतिः, प्रकारश्च। शब्दे, रुड रेषणे वा, रवणः करभः, अग्नि:, द्रुमः, वायु:, त प्लवनतरणयोः, तर्णः-वत्सः। जषच जरसि, जर्णः- | भृङ्गः, शकुनि:, सूर्यः, घण्टा च। रुहं जन्मनि, रोहण:चन्द्रमाः, वृक्षः, कर्कः, क्षयधर्मा, शकुनिश्च । दृत् आदरे, | गिरिः। लक्षीण् दर्शनाङ्कनयोः, लक्षणं-व्याकरणम्, दर्ण:-पर्णम् । सृप्ल गतौ, सर्ण:-सरीसपजातिः। पणि शुभाशुभसूचकं मषीतिलकादि अनं च । चक्षिक व्यक्ताव्यवहारस्तुत्योः, पण्णम्-व्यवहारः ।।१८२।।
यां वाचि, विचक्षण:-विद्वान् । चुक्कण व्यथने, चुक्कण:- 45 व्यषि-तषि-कृतिभ्यः कित्॥१८३॥ व्यायामशील: । बुक्क भाषणे, बुक्कणः श्वा, वावदूकश्च । एभ्यः कित् णः प्रत्ययो भवति। घसेचने, घृणा-कृपा ।
तगु गतौ, तङ्गणा:-जनपद: । अगु गतौ, अङ्गणम्-अजिवींक प्रजनादिषु, वीणा-वल्लकी । हग स्पर्धाशब्दयोः, | रम्। मकुङ् मण्डने, मङ्कण:-ऋषि: । ककुङ् गतौ, कङ्कण:हुणः-म्लेच्छजाति: । शुषच् शोषणे, शुष्ण:-निदाघः। उषू
प्रतिसरः । चर भक्षणे च, चरण: पाद: । ईरिक गतिदाहे, उष्णः-स्पर्श विशेषः । जितषच पिपासायाम, तृष्णा
कम्पनयोः, सम्पूर्व:, समीरण:-बात: ॥१८७।। पिपासा । कृषीत् विलखने, कृष्णः-वर्णः, विष्णु:, मृगश्च । क-ग-प-कृपि-वृषिभ्यः कित् ॥१८॥ ऋक् गतौ, ऋणं वृद्धिधनम्, जलं, दुर्गभूमिश्च ।।१८३।। । एभ्य: किद् अण: प्रत्ययो भवति । कृत् विक्षपे, किरण:द्रोर्वा ॥१८४॥
रश्मिः । गत् निगरणे, गिरण:-मेघ:, आचार्यः, ग्रामश्च । 15 , गतो, इत्यस्मात् णः प्रत्ययो भवति, स च किता पश् पालनपूरणयो:,पुरण:-समग्रयिता, समूद्र : पर्वतविशेष
भवति । द्रुणा- ज्या, द्रोणः-चतुराढकं, पाण्डवाचार्यश्च । श्च । कृपौङ् सामर्थ्य, कृपण:-कीनाश: । वृषू सेचने, वृषण:- 55 द्रोणी-नौः, गौरादित्वात् डीः ॥१८४॥
मुष्कः ।।१८८॥ स्था-क्षु-तोरुच ॥१८॥
धृषि-वहेरिचोपान्त्यस्य ॥१८॥ एभ्यो ण: प्रत्ययो भवति, ऊकारश्चान्तादेशो भवति ।
आभ्यां किद् अण: प्रत्ययो भवति, इच्चोपान्त्यस्य भवति । 20 प्ठां गतिनिवृत्तौ, स्थूणा-तन्तुधारिणी, गहधारिणी. शरीर- जिधृषाट् प्रागल्भ्ये, धिषण: बृहस्पति:, धिषणा-बुद्धिः ।
धारिणी, लोहप्रतिमा, व्याधिविशेषश्च । दक्षक शब्दे,क्षणम्- वहीं प्रापणे, विहण:-ऋषिः, पाठश्च ॥१८६॥ अपराधः । तुंक वृत्त्यादिषु, तूण:-इषुधिः ।।१८५।।
चिक्कण-कुक्कण-कृकण-कूण-त्रवणोल्वणोरणभ्रूण-तृण-गुण-कावर्ण-तीक्ष्ण-श्ल भीक्षणादयः लवण-वक्षणादयः ॥१०॥ ॥१८६॥
एते किद अणप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । चिनोते श्चिक्क च, 25 एते णप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । भूगो भ्र च, भ्रण:- चिक्कण:-पिच्छिल: । कुकिकृगोः कोऽन्तश्च, कुक्कण:-श
निहीनः, अर्भकः, स्त्रैणगर्भश्च । तरतेई स्वश्च, तण- कुनिः । कृकण:-ऋषि: । कुके: स्वरान्नोऽन्तश्च, कुणा:- 65 शष्पादि । गायतेर्गमेगुणातेर्वा गुभावठच, गुणः-उपकारः,
जनपद: । त्रपेर्वश्च, श्रवणः-देश: । बलेवस्य उत्, वोऽन्तश्च, आश्रित:, अप्रधानं, ज्या च । कृगो वद्धिः कोऽन्तश्च,
उल्वण:-स्फार: । अर्तेरुर च, उरण:-मेष:, लीयते:-क्लीद्यते:कार्ण:-शिल्पी। तिजेदीर्घः सश्च परादिः, तीक्ष्णं-निशि- स्वद्यते-लवादेशश्च । लवणं, गुण:-द्रव्यं च । वश्चे: स: 30 तम् । श्लिषेः सोऽन्तोश्चेत: श्लक्षणम्-अकर्कशं, सक्ष्म च । परादिर्नलोपाभावश्च, वङ्क्षण:-ऊरूमूलसंधि: । आदि
अभिपूर्वात् इषे: किन सोन्त:, अभीक्ष्णम्-अजस्रम् । आदि- शब्दात् ज्योतिरिङ्गणतुरणभुरणादयो भवन्ति ।।१६०॥ 70 ग्रहणादन्येऽपि ॥१८६।।
कृपि विषि-वृषि-वृषि-मृषि-युषि-हि-ग्रहेराणक् _त-क-श-प-भ-व-श्रु-हि-ह-लक्षि-विचक्षि-चुक्कि- ॥१६१॥
बुक्ति -तङ्गयङ्गि-मति - कङ्कि-चरि-समीरेरणः । एभ्य आणक प्रत्ययो भवति । कृपौङ सामर्थ्य, कृपाण:5॥१८७॥
खङ्गः। विषू सेचने, विषाणं-शङ्गम्, करिदन्तश्च । वृषू एभ्योऽण: प्रत्ययो भवति । त प्लवनतरणयोः तरणम । सेचने. वषाणः । जिघषाट प्रागल्भ्ये धषाण:-देवः । म कृत् विक्षेपे, करणम् । शश हिंसायाम्, शरणं-गृहम् ।। सहने च, मृषाण: । युषि सेवने सौत्र:, युषाण: । द्रुहीच पुश् पालनपूरणयो:, परणम्। ट्रद्रभ गक पोषणे च, भरणम्। जिघांसायाम्, हाण:- मुखर: । ग्रहीश उपादाने, गृहाणः । वृगट् वरण, वरण:-वक्ष:, सेतुबन्धश्च । वरण-कन्या- वषाणादयः स्वप्रकृत्यर्थवाचिन: सर्वेऽपि कर्तरि कारके
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
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ज्ञयाः ॥११॥
एभ्यः तः प्रत्ययो भवति । दमूच उपशमे, दन्त:-दशन:, पषो णित् ॥१२॥
हस्तिदंष्ट्रा च । अम गतो, अन्त:-अवसानम्, धर्म:, समीपं च। 40 पषी बाधनस्पर्शनयोः इत्यस्माद् आणक प्रत्ययो भवति, | | तमूच काङ्क्षायाम्, तन्त:-खिन्नः। मांक माने, मातम्स च णिद् भवति । पाषाण:-प्रस्तर: ॥१६॥
अन्त:प्रविष्टम् । वांक गतिगन्धनयोः, वात:-वायु: । पूगश् 5 कल्याण-पर्याणादयः ॥१३॥
पवने, पोत:-नौः, अग्निः, बालश्च । धूग्श् कम्पने, धोतः___कल्याणादयः शब्दा आणक्प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । धूमः, शठः, वातश्च । गत् निगरणे, गर्तः-श्वभ्रम् । जष्च कलेोऽन्तश्च, कल्याणं-श्वोवसीयसम् । परिपूर्वात् इणो जरसि, जतः-प्रजननं, राजा च । हसे हसने, हस्तः-करः, 45 लुक् च । पर्याणम्-अश्वादीनां पृष्टच्छद: । आदिशब्दाद् नक्षत्रं च । वसूच् स्तम्भे, वस्तः-छागः । असूच क्षेपणे, द्रेक्काण-बोक्काण-केक्काणादयो भवन्ति ॥१६॥
अस्त:-गिरिः । तसूच उपक्षये, वितस्ता-नदी । मसंच परि10 द्रु-ह-वृहि-दक्षिभ्य इणः ॥१९४॥
| णामे, मस्त:- मूर्धा । इणक् गतौ, एतः-हरिणः, वर्णः, वायुः, एभ्य: इण: प्रत्ययो भवति । दूं गतौ, द्रविणं-द्रव्यम् । | पथिकश्च ॥२०॥ हग् हरणे, हरिणः-मृगः। वृह वृद्धौ, बहिण:-मयूरः। शो-री-भू-दू-मू-घृ-पा-धाग-चित्यर्त्यञ्जि-पुसि- 50 दक्षि शंध्य च, दक्षिण:-कुशल:, अनुकूलश्च । दक्षिणा, मुसि-सि-विसि-रमि-वि-विभ्यः कित् ॥२०१॥ दिग्, ब्रह्मदेयं च ॥१६४॥
. एभ्यः कित् तः प्रत्ययो भवति । शीङ् स्वप्ने, शीतं15 ऋ-द्रुहेः कित् ॥१६॥
स्पर्शविशेषः । रीश् गतिरेषणयोः, रीतं-सुवर्णम् । भू सत्ताआभ्यां किद् इण: प्रत्ययो भवति । ऋश् गती, इरिणम्- याम्, भूतः-ग्रहः, भूतं-पृथिव्यादि। दूच् परितापे, दूतःऊषरम्, कुञ्ज:, वनदुर्ग च । द्रुहौच जिघांसायाम्, द्रुहिण:- वचोहरः । मूङ बन्धने, मूत:-दध्यर्थं क्षीरे तक्रसेकः, वस्त्रा-55 ब्रह्मा, क्षुद्रजन्तुश्च ।।१६५॥
वेष्टनबन्धनम्, आचमनी,आलान,पाश:, बन्धनमात्र,धान्या-क-व-ध-दारिभ्य उणः ॥१६६॥
दिपुटश्च । चूंसेचने, घृतं-सर्पिः। पां पाने, पीतं-वर्णवि20 एभ्य उण: प्रत्ययो भवति । ऋक गती, अरुण:-सूर्य- शेषः । डुधांग्क्धारण च, 'धागः' [४-४-१५] इति हिः, सारथि:, उषा, वर्णश्च । कृत् विक्षेपे, करुणा-दया, करुण:- हितम्- उपन
" हितम्- उपकारि।चित संज्ञाने, चित्तं-मनः। ऋक गती, ऋतंकरुणाविषयः, करुणं-दैन्यम् । वश भरणे, वरुण:-प्रचेताः। सत्यम्। अीप् व्यक्तिम्रक्षणादिषु अक्त:-म्रक्षितः, व्यक्ती- 60 धूंग धारणे, धरुण:-धर्ता, आयुक्तो, लोकश्च । दश् वि. कृतः, पारामतः, प्रतश्च । पुसच् विभाग,
कृतः, परिमितः, प्रेतश्च । पुसच विभागे, पुस्तः-लेख्यपत्रदारणे, णौ, दारुण-उग्रः ॥१६६।।
संचयः, लेप्यादिकर्म च । मुसच् खण्डने, मुस्ता-गन्धद्रव्यम् । 25 क्षः कित् ॥१९७॥
वुसच उत्सर्गे, वुस्त:-प्रहसनम् । विसच् प्रेरणे, विस्तं
सुवर्णमानम् । रमि क्रीडायाम्, सुरतं-मैथुनम् । धुर्वे हिंसाक्ष क्षये, इत्यस्मात् किद् उण: प्रत्ययो भवति । क्षुण:
याम्, धूर्तः-शठः । पूर्व पूरणे, पूर्तः-पुण्यम् ॥२०१॥ 65 व्याधिः, क्षाम:, क्रोध, उन्मत्तश्च ॥१७॥
लु-म्रो वा ॥२०२॥ भिक्षुणी ॥१६॥
आभ्यां तः प्रत्ययो भवति, स च किद्वा भवति । लूगश् भिक्षेरुण: प्रत्ययो भवति, डीश्च निपात्यते । भिक्षुणी- छेदने, लूता-क्षद्रजन्तुः । लोत:-बाप्पं, लवनं, वस्तः, कीट30 तिनी ॥१६॥
जातिश्च । मूत् प्राणत्यागे मतः-गतप्राणः, मर्त:-ऋषिः, गा-दाभ्यामेष्णक् ॥१६॥ | प्राणी, पुरुषश्च ॥२०२॥
70 आभ्यां एष्णक् प्रत्ययो भवति । गै शब्दे, गेष्ण:-मेष:, सु-सि-तनि-तुसेदीर्घश्च वा ॥२०३॥ उद्गाता, रङ्गोपजीवी च । गेष्णं-साम, मुखं च, रात्रिगेष्ण:- एभ्यः कित तः प्रत्ययो भवति, दीर्घश्न वा भवति ।
रनोपजीवी, सुगेष्णा-किन्नरी। डुदांग दाने देष्ण:-बाहुः, | पंगट अभिषवे, सूत:-सारथिः, सुतः-पुत्रः । पिंग्ट् बन्धने, 35 दानशीलश्च । चारुदेष्ण:-सात्यभामेय: । सुदेष्णा-विराट- सीता-जनकात्मजा, सस्यं, हलमार्गश्च । सितः-वर्णः, बन्धश्च । पत्नी ।।१६।।
तनूयी विस्तारे, तात:-पिता, पुत्रेष्टनाम च, ततं-विस्तीर्ण, 75 दम्यमि-तमि-मा-वा-पू-धू-ग-ज-हसि-वस्यसि
वाद्य विशेषश्च । तुस शब्दे, तूस्तानि-वस्त्रदशाः, तुस्ता:-जटाः, वितसि-मसीण-भ्यस्तः ॥२००॥
प्रदीपनं च ।।२०३॥ उणादि.३
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ।
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पुत-पित्त-निमित्तोत-शुक्त-तिक्त-लिप्त-सूरत-मुहूर्ता- क-वृ-कल्यलि-चिलि-विलोलि-ला-नाथिभ्य आत 40 दयः ॥२०४॥
॥२०६।। - एते कित तप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । पूडो ह्रस्वश्च, एभ्य आतक प्रत्ययो भवति । कत् विक्षेपे, किरात:
पुतः-स्फिक् । पीस्तोऽन्तश्च, पित्तं-आयुः । निपूर्वात् शबरः । वृगट् वरणे, व्रात:- समूहः, उत्सेधजीविसंघश्च । 5 मिनोतेर्मित् च, निमित्तं-हेतुः, दिव्यज्ञानं च । उभेलुक कलि शब्दसंख्यानयोः, कलातः-ब्रह्मा। अली भूषणादौ,
च, उत-आशङ्काद्यर्थमव्ययम् । शकेः शुचेर्वा शुकभावश्च । अलातम्-उल्मुकम्। चिलत् वसने, चिलाताः-म्लेच्छा: 1 45 शुक्तं-कल्कजातिः । ताडयतेस्तकतेस्तिजेर्वा तिक् च, विलत् वरणे, विलातः-शवाच्छादनवस्त्रम् । इलत् गत्यादी, तिक्त:-रसविशेषः । लीयते: पोऽन्तो ह्रस्वश्च, लिप्तं- इलातः-नगः । लांक आदाने, लात:-मत्तिकादानभाजनम् ।
श्लेषः, अंसदेशश्च । सुपूर्वात् रमेः सोर्दीर्घश्च, सूरत:-दमितो नाथङ् उपतापैश्वर्याशी:षु च । नाथात:-आहारः, प्रजा10 हस्ती, अन्यो वा दान्तः । हुर्छः मुश्च धात्वादिः मुहूर्त:- | पतिश्च ।।२०६॥
कालविशेषः । आदिग्रहणाद् अयुतनियुतादयो भवन्ति ह-श्या-रुहि-शोणि-पलिभ्य इतः॥२१०॥ 50 ॥२०४॥
एभ्य इतः प्रत्ययो भवति। हग हरणे, हरित:-वर्णः । कृगो यङः ॥२०॥
श्यङ् गतौ, श्येतः-वर्णः, मृगः, मत्स्य:, श्येनश्च । रुहं जन्मनि, - करोतेर्यङन्तात् कित् तः प्रत्ययो भवति। चेक्रीयित:
रोहितः, वर्णः, मत्स्यः, मृगजातिश्च । लत्वे, लोहित:-वर्णः, 15 पूर्वाचार्याणां यत्प्रत्ययसंज्ञा ॥२०॥
लोहितम्-असृक् । शोण वर्णगत्योः, शोणितं-रुधिरम् । इवर्णादि पि ॥२०६॥
पल गतौ, पलित-श्वेतकेशः ॥२१०॥ करोतेर्यो लुपि, इवर्णादिस्तः प्रत्ययो भवति । नत्र आपेः ॥२११॥ चर्करितं, चर्करीतं-यङलुबन्तस्याख्ये॥२०६॥
नपूर्वाद् आप्लूट् व्याप्ती, इत्यस्माद् इत: प्रत्ययो ह-पृ-भ-म-शी- यजि-खलि-वलि-पवि-पच्यमि- भवति । नापितः-कारविशेषः ॥२१॥ 20 नमि-तमि-दृशि-हयि-कङ्कि-भ्योऽतः ॥२०७॥ शि-पिशि-पृषि-कुषि-कुस्युचिभ्यः कित्॥२१२॥
एभ्योऽतः प्रत्ययो भवति । दृङ्त् आदरे, दरतः-आदरः। एभ्यः किद् इतः प्रत्ययो भवति । क्रुशं आह्वानरोदनयोः, 60 पृक् पालनपूरणयोः, परत:-कालः । टुडु,गक् पोषणे कुशितं-पापम् । पिशत् अवयवे, पिशितं-मांसम् । पृषू च, भरत:- आदिचक्रवर्ती, हिमवत्समुद्रमध्यक्षेत्र च ।। सेचने, पृषितं-वारिबिन्दुः। कृष्श् निष्कर्षे, कुषितं-पापम् । मत प्राणत्यागे, मरतः-मृत्युः, अग्निः, प्राणी च । शी
कुशच् श्लेषे, कुशित-ऋषिः, कुशितम्-ऋणं, श्लिष्टं च। . 25 स्वप्ने, शयतः-निद्रालुः, चन्द्रः, स्वप्नः, अजगरश्च । यजी उचच समवाये, उचितं-स्वभावः, योग्य, चिरानुयातं, श्रेष्ठ देवपूजासंगतिकरणदानेषु, यजतः-यज्वा, अग्निश्च ।
च ।।२१२।। खल संचये च, खलतः शीर्णकेशशिराः। वलि संवरणे,
हग ईतण् ॥२१३॥ वलत:-कुशूल: । पर्व पूरणे, पर्वतः-गिरिः । डुपचीष् पाके,
हंग हरणे, इत्यस्माद् ईतण् प्रत्ययो भवति । हारीत:पचत:-अग्नि:, आदित्यः,पालकः, इन्द्रश्च । अम गतौ, अमत:
पक्षी, ऋषिश्च ॥२१३॥ 30 मत्युः, जीवः, आतङ्कश्च । णमं प्रह्वत्वे, नमत:-नटः, देवः,
अदो भुवो डुतः ॥२१४॥ ऊर्णास्तरणं, ह्रस्वश्च । तमूच् काङ्क्षायाम्, तमत:-निर्वेदी, आकाङ्क्षी, धूमश्च । दृशप्रेक्षणे, दर्शतः-द्रष्टा, अग्निश्च ।।
अपूर्वात् भुवो डुतः प्रत्ययो भवति । अद् विस्मितं 70
भवति तेन तस्मिन् वा मनः अदभूतम्-आश्चर्यम् ॥२१४।। हर्य क्लान्तौ, हर्यतः-वायु:, अश्वः, कान्तः, रश्मिः, यज्ञश्च । ककुङ्गतो, कङ्कतः-केशमार्जनम् ।।२०७॥
कुलि-मयिभ्यामूतक् ॥२१॥ 35 पृषि-रञ्जि-सिकि-का-ला-वृभ्यः कित् ॥२०॥ आभ्यां ऊतक् प्रत्ययो भवति । कुल बन्धुसंस्त्यानयोः,
एभ्यः किद् अतः प्रत्ययो भवति । पप सेचने, पषतः- कुलूता:-जनपदः । मयि गती, मयूता-वसतिः ।।२१।। हरिणः । रजी रागे, रजतं-रूप्यम् । सिकिः सौत्रः । जीवेर्म च ॥२१६॥
75 सिकता-वालुका । के शब्दे, कतः-गोत्रकृत् । लाक् आदाने, जीव प्राणधारणे, इत्यस्माद् ऊतक् प्रत्ययो भवति, लता-वल्ली। वगट वरणे, व्रतं-शास्त्रविहितो नियमः ।।२०८॥ | मन्तादेशो भवति । जीमूतः-मेघ:, गिरिश्च ॥२१६॥
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१६
कबेरोतः प् च ॥ २१७॥
सीमन्तः केशमार्गः, ग्रामक्षेत्रान्तश्च । हन्तेहिनोतेर्वा हेम् च, 40
कबृङ् वर्णे, इत्यस्माद् ओतः प्रत्ययो भवति, पश्चान्ता हेमन्तः ऋतुः । भदन्तेनंलुक् च भदन्त: - निर्ग्रन्थेषु देशो भवति । कपोतः - पक्षी, वर्णश्च ।। २१७॥ शाक्येषु च पूज्यः । दुषेर्वोऽन्तश्च । दुष्वन्तः - राजा । आदिग्रहणादन्येऽपि ॥ २२२॥ शकेरुन्तः ॥२२३॥
आस्फार्येत् ॥२१८॥
5
आङ्पूर्वात् स्फाय वृद्धी, इत्यस्मात् डि ओतः प्रत्ययो भवति । आस्फोता नाम औषधिः ॥२१८॥
स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
ज़ - विशिभ्यामन्तः ॥२१॥
आभ्यां अन्तः प्रत्ययो भवति । जृष्च् जरसि, जरन्तःभूतग्रामः, वृद्धः, महिषश्च । विंशत् प्रवेशने, वेशन्तः- पत्व10 लम् । वल्लभः - अप्राप्तापवर्गः, आकाशं च ।। २१६ ।।
रुहि नन्दि- जीवि प्राणिभ्यष्टिदाशिषि ॥ २२० ॥
एभ्य आशिषि विदन्तः प्रत्ययो भवति । रुहं जन्मनि, रोहतात्, रोहन्तः-वृक्षः, रोहन्ती - औषधिः । टुनदु समृद्धौ, नन्दतात्, नन्दन्तः सखा, आनन्द, नन्दन्ती-सखी । जीव 15 प्राणधारणे, जीवतात्, जीवन्तः- आयुष्मान् जीवन्तीशाकः । अनक् प्राणने, प्राण्यात्, प्राणन्तः- वायुः, रसायनं च प्राणन्ती स्त्री ॥ २२० ॥
W/
तृ-जि-भू- वदि-वहि-वसि भास्यदि-साधि-मदिगडि गण्डि मण्डि नन्दि-रेविभ्यः ॥२२१॥ 20 एम्यष्टिदन्तः प्रत्ययो भवति । आशिषीत्येके । तु प्लवनतरणयो:, तरन्तः- आदित्यः, भेकच, तरन्ती स्त्री । जि अभिभवे । जयन्तः-रथरेणुः, ध्वजः, इन्द्रपुत्रः, जम्बू:पश्चिमद्वारम् पश्चिमानुत्तरविमानं च जयन्ती उदयनपितृष्वसा । भू सत्तायाम् भवन्तः कालः भवन्ती । वद 25 व्यक्तायां वाचि वदन्तः, वदन्ती । वहीं प्रापणे, वहन्तः
रथः, अनड्वान्, रथरेणुः, वायुश्च वहन्ती । वसं निवासे, ; वसन्तः ऋतुः । भासि दीप्तौ भासन्तः सूर्यः, भासन्ती, ण्यन्तोऽपि, भासयन्तः - सूर्यः । अर्दक् भक्षणे, अदन्तः, अदन्ती | साट् संसिद्धी, साधन्तः - भिक्षुः ण्यन्तोऽपि, 30 साधयन्तः - भिक्षुः साधयन्ती । मर्दच् हर्षे, णौ, मदयन्तः, मदयन्ती- पुष्पगुल्मजातिः । गड सेचने, गडन्त:जलद:, ण्यन्तोऽपि, गडयन्तः, गडयन्ती, गड्डु वदनैकदेशे, ण्यन्तः, गण्डयन्तः- मेषः । मड्डु भूषायाम्, ण्यन्तः, मण्डयन्तः-प्रसाधकः, अलंकार:, आदर्शश्च । टुनदु समृद्धौ, ण्य35 न्तः, नन्दयन्तः-सुखकृत्, राजा, हिरण्यं, सुखं च नन्दयन्ती । रेवृङ् पथि गती, रेवन्तः- सूर्यपुत्रः । अनुक्तार्था धात्वर्थकर्त्रर्थाः ।।२२१॥
|
सीमन्त- हेमन्त भदन्त दुष्वन्तादयः ॥२२२॥ एतेऽन्तप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । सिनोतेः सीम् च,
शक्लृट् शक्तो, इत्यस्माद् उन्तः प्रत्ययो भवति । शकुन्त:- 45 पक्षी ||२२३ ॥
• कर्षोडत् ॥ २२४॥
हिंसायाम् इत्येतस्माद् डिदुन्तः प्रत्ययो भवति ।
कुन्तः - आयुधम् ।।२२४॥
-- गातिभ्यः ॥२२५॥
एम्स्थः प्रत्ययो भवति । कमूङ् कान्ती, कन्था प्रावरणम्, नगरं च । पुंङ् गतौ, प्रोथ:-प्रियो, युवा, सूकरमुखं, घोणा च । गे शब्दे, गाथा - श्लोकः, आर्या वा । ऋगतो, अर्थ:- जीवाजीवादिपदार्थ, प्रयोजनम्, अभिषेयं, धनं, याचा, निवृत्तिश्च ॥२२५॥
1
अवाद् गोऽञ्च वा ॥ २२६॥
अवपूर्वाद्गायतेः थः प्रत्ययो भवति, अच्चान्तादेशो वा भवति । अवगथः, अवगाथ:- अक्षसंघः, प्रातः सवनं, रथयानं, साम, पन्थाश्च ॥२२६॥
50
55
नी-तू-रमि-तृ-दि-चि-रिचि- सिचि - श्वि- हनि-पा- 60 गो-पा- वोद्गाभ्यः कित् ॥ २२७॥
एम्य: कित् थः प्रत्ययो भवति । णींग प्रापणे, नीथंजलम्, सुनीथो नाम राजा, नीतिमान्, धर्मशीलः, ब्राह्मणश्च । णूत् स्तवने, नूथं तीर्थम् । रमिं क्रीडायाम्, रथः स्यन्दनः । तू प्लवनतरणयो:, तीर्थ- जलाशयावगाहन मार्गः, पुण्यक्षेत्रम् 65 आचार्यश्च । तुदींत् व्यथने, तुत्थं चक्षुष्यः, धातुविशेषः । वचं भाषणे, उक्थं-शास्त्र, सामवेदश्च, उक्थानि सामानि । रिचंपी विरेचने, रिक्थं धनम् । षिचींतु क्षरणे, सिक्थंमदनं, पुलाकश्च । ट्वाश्वि गतिवृद्धयोः, शूथः यज्ञप्रदेशः । हन हिंसागत्योः, हथः पन्थाः, कालश्च । पां पाने, पीथं- 70 बालघृतपानम्, अम्भः, नवनीतं च, पीथ: - मकरः, रविश्च । गोपूर्वात्, गोपीथ: - तीर्थ विशेषः, गोनिपानं, जलद्रोणी, कालविशेषश्च । मैं शब्दे, अवगीयम् - यज्ञकर्मणि प्रातः-. शंसनम्, उद्गीथः शुनामूर्ध्वमुखानां विराव:, सामगानम्, प्रथमोच्चारणं च ॥ २२७॥
न्युद्भ्यां शीङ्ः ॥ २२८ ॥
नि उपूर्वात् शी स्वप्ने, इत्यस्मात् कित् थः प्रत्ययो भवति । निशीथ :- अर्धरात्रः, रात्रिः, प्रदोषश्च । उच्छीथ:
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२०
स्वप्नः, टिट्टिभश्च ॥ २२८ ॥ अवभृ-नि-समिभ्यः ॥ २२६ ॥
अपूर्वाद् बिभर्ते, निस्पूर्वादत्र्त्तेः, सम्पूर्वात् एतेश्च कित् थः प्रत्ययो भवति । अवभृथ: - यज्ञावसानं, यज्ञस्नानं च । 5 निर्ऋथ:-निकायः, निर्ऋथं स्नानम् । समिथ:-संगमः,
गोधूमपिष्टं च, समिथं समूहः ॥ २२६ ॥
स्वोपज्ञोणादिगण सूत्रविवरणम् ॥
10
पथ-यूथ- गूथ-कुथ-तिथ- निथ- सूरथादयः ॥२३१॥ एते प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । पलतेर्लो लुक् च, पथः पन्थाः 1 गुंतेच दीर्घव, यूथ:-समूहः, गूथम्-अमेध्यं, विष्ठा च । किरतेः करोतेर्वा कुश्र्च, कुथःकुथा वा-आस्तरणम् । तनोतेस्तिष्ठतेर्वा तिच तिथ:15 काल: । तिम्यते, तिथः प्रावृट्कालः । नयते ह्रस्वश्व, निथ:पूर्वक्षत्रियः, कालश्च । सुपूर्वात् रमेः सोर्दीर्घश्व कित् च । सूरथः - दान्तः । आदिग्रहणाद् निपूर्वाद् रौतेर्दीर्घत्वं च । निरुथ:- दिक्, निरुथं पुण्यक्रमनियतम् । एवं संगीथ प्रगाथावयोपि ॥२३१॥
20
सर्वे णित् ॥ २३० ॥
ज- वृभ्यामूथः ॥ २३६ ॥
सूं गतौ, इत्यस्माद् णित् थः प्रत्ययो भवति । सार्थ:- शरीरम् अग्रमांसम्, अग्निः, संवत्सरः, मार्गः, कल्मषं च । आभ्यासूयः प्रत्ययो भवति । जुष्च् जरसि, जरुथ:
समूहः ।। २३० ।।
वृग्श् वरणे, वरूथ:- वर्म, सेनाङ्गे बलसंघातच ॥ २३६ ॥ शा- शपि-मनि-कनिभ्यो दः ॥ २३७ ॥
एम्यो दः प्रत्ययो भवति । शोंच् तक्षणे, शादः कर्दमः, 50 तरुणतॄणं, मृदुः बन्धः, सुवर्णं च । शपीं आक्रोशे, शब्द:श्रोत्रग्राह्योऽर्थः । मनिच् ज्ञाने, मन्द:- अलसः, बुद्धिहीनश्च । कनै दीप्त्यादिषु, कन्द:- मूलम् ।।२३७।। आपोऽप् च ।। २३८ ||
भू-शी-शपि शमि-गमि रमि वन्दि वञ्चि जीविप्राणिभ्योऽयः ॥ २३२॥
एम्योsथः प्रत्ययो भवति । दुडुभ्रंग्क् पोषणे च, भरथ:- कैकेयीसुतः अग्निः, लोकपालच । शी स्वप्ने, शयथ:-अजगर:, प्रदोष:, मत्स्यः, वराहश्च । शपीं आक्रोशे 25 शपथ: - प्रत्ययकरणम् आक्रोशश्च । शमूच् उपशमे, शमथ:
समाधिः, आश्रमपदं च । गम्लृ गतौ गमथः पन्थाः, पथिकश्च । रमि क्रीडायाम्, रमथ: - प्रहर्षः । वदुङ् स्तुत्य - भिवादनयोः, वन्दथः - स्तोता, स्तुत्यश्च । वञ्च गतो, वंचथ: - अध्वा, कोकिलः, काकः, दम्भश्च । जीव प्राणधारणे, 30 जीवथ: - अर्थवान्, जलम्, अन्नं, वायुः, मयूरः, कुर्मः, धार्मिकश्च । अनक् प्राणने, प्राणथः - बलवान्, ईश्वरः, प्रजापतिश्च ॥ २३२ ॥
उपसर्गाद्वसः ॥ २३३॥
उपसर्गात् परस्मात् वसं निवासे, इत्यस्मादथः प्रत्ययो भवति । आवसथ: - गृहम्, उपवसथः- उपवास, संवसथ:35 संवासः, सुवसथ:-सुवासः, निवसथ: - निवासः ॥ २३३ ॥
शरः । रुदृक् अश्रुविमोचने, रुदथः बालः, असत्त्वः, श्वा च । दुहीच् जिघांसायाम्, द्रुहथः शत्रुः ।।२३४ | रोर्वा ॥ २३५॥
40
विदि- भिदि - रुदि- दुहिन्यः कित् ॥ २३४ ॥
एम्य: किदथः प्रत्ययो भवति । विदंक् ज्ञाने विदथ:ज्ञानी, यज्ञः, अध्वर्युः, संग्रामश्च । भिदुपी विदारणे, भिदथ:
रुक् शब्दे, इत्यस्मादयः प्रत्ययो भवति, सच किद्वा भवति । रुवथ: - शकुनिः, शिशुश्च । रवथः - आक्रन्दः, शब्दकारश्च ।। २३५ ।।
आप्लूं व्याप्तौ इत्यस्मात् दः प्रत्ययो भवति । अस्य 55 चाप इत्ययमादेशो भवति । अब्दं वर्षम् ॥ २३८॥ गोः कित् ॥ २३६ ॥
गुंतू पुरीषोत्सर्गे इत्यस्मात् कितुदः प्रत्ययो भवति । गुदम्-अपानम् ।।२३६ ॥
वृ-तु-कु-सुभ्यो नोऽन्तश्च ॥ २४० ॥
एम्य: कित् दः प्रत्ययो भवति नकारश्चान्तादेशो भवति । वृग्ट् वरणे, वृन्दं समूहः । तुंक वृत्त्यादिषु, तुन्दंजठरम् । कुंङ् शब्दे, कुन्दः - पुष्पजातिः । बुंग्ट् अभिषवे, सुन्द:- दानवः ।। २४० ॥
कुसेरिदो ॥२४१॥
कुस्च् श्लेषे, इत्यस्मात् इद ईद इत्येतौ कितौ प्रत्ययौ भवतः । कुसिदम्-ऋणम्; कुसीदं वृद्धिजीविका ॥२४१॥ इङ्ग्यिबभ्यामुदः ॥ २४२॥
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आभ्यामुदः प्रत्ययो भवति । इगु गतो, इगुदः - वृक्ष - जातिः । अर्ब गती, अर्बुदः पर्वतः, अक्षिव्याधिः, संख्यावि- 70 शेषश्च निपूर्वात् न्यर्बुदम् - संख्याविशेषः ॥ २४२॥
कणद्वा ॥२४३॥
afe लौल्ये, इत्यस्मादुदः प्रत्ययो भवति, स च णिद्वा भवति । काकुदं तालु, ककुदं स्कन्धः ॥२४३॥
कुमुद - बुदबुदादयः ॥ २४४ ॥
एते उदप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । कमे: कुम् च, कुमुदं
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्र विवरणम् ॥
5
आभ्यामन्दः प्रत्ययो भवति । ककि लौल्ये । मकिः सौत्रः । ककन्दः मकन्दश्च राजानौ यकाभ्यां निर्वृत्ता काकन्दी, माकन्दी च नगरी || २४५ ||
20
कैरवम् | बुन्दे कि वोऽन्तव, बुबुदः - जलस्फोट:, बुबुदंनेत्रजो व्याधिः । आदिग्रहणात् दुहींक् क्षरणे, प्रत्ययादेरत्वे, दोहद :- अभिलाषविशेषः । एवमन्येऽपि ॥ २४४ ॥
ककि मकिभ्यामन्दः ॥ २४५॥
कल्यलि - पुलि-कुरिकुणि मणिभ्य इन्दक् ॥ २४६॥ एभ्य इन्दक् प्रत्ययो भवति । कलि शब्दसंख्यानयोः, 10 कलिन्द:- पर्वतः, यतो यमुना प्रभवति । अली भूषणादी, अलिन्द:- प्रघाण:, भाजनस्थानं च । पुल महत्त्वे, पुलिन्द:- शबरः । कुरत् शब्दे, कुरिन्दः- धान्यमलहरणोपकरणम्, तेजनोपकरणं च । कुणत् शब्दोपकरणयोः, कुणिन्द:- म्लेच्छः, शब्द उपकरणं च । मण शब्दे, मणिन्द:15 अश्वबल्लवः ॥ २४६ ॥
25
कुपेर्व च वा ॥२४७॥
कुपच् क्रोधे, इत्यस्माद् इन्दक् प्रत्ययो भवति । ववान्तादेशो वा भवति । कुपिन्दः, कुविन्द:- तन्तुवायः
।। २४७।।
मुचेर्ड कुन्द कुकुन्दौ ॥ २५० ॥
मुलृती मोक्षणे, इत्यस्मात् डित् उकुन्दः किदुकुन्दश्च 30 प्रत्ययौ भवतः । मुकुन्द:- विष्णुः, मुचुकुन्द:- राजा, वृक्षविशेषश्च ।। २५० ।।
स्कन्द्यमिभ्यां धः ॥ २५१॥
आभ्यां घः प्रत्ययो भवति । स्कन्दु गतिशोषणयो:, स्कन्धः - बाहुमूर्धा ककुन्दविभागश्च । बाहुलकाद् दस्य 35 लुक् । अम गती, अन्धः- चक्षुविकलः ।। २५१ ॥ नैः स्यतेरधक् ॥२५२॥
२१
निपूर्वात् षच् अन्तकर्मणि, इत्यस्माद् अधक् प्रत्ययो भवति । निषधः पर्वतः, निषधाः जनपदः ।। २५२ ।।
-मङ्गेर्नलुक् च ॥ २५३॥
म गती, इत्याद् अधक् प्रत्ययो भवति नकारस्य 40 च लुग् भवति । मगधाः जनपदः ।। २५३॥ आरगेर्वधः ॥२५४॥
आङ् पूर्वात् रगे शङ्कायाम् इत्यस्मादु वधः प्रत्ययो भवति । आरग्वधः- वृक्षजातिः ॥ २५४॥
परात् श्रो डित् ।। २५५॥
परपूर्वात् शृश् हिंसायाम्, इत्यस्मात् डित् वधः प्रत्ययो भवति । परश्वध:- आयुधजातिः ।। २५५ ।। इषेरुधक् ॥२५६॥
प्या धापयति- स्वदि- स्वपि - वस्यज्य -ति-सिक्-ि भ्यो नः ।। २५६ ।।
पुलिभ्यां णित् ॥ २४८ ॥
आभ्यां गिद् इन्दक् प्रत्ययो भवति । पृश् पालनपूरणयो:, पल गतो, पारिन्दः, पालिन्दः, द्वावपि वृक्षगाथकौ, पारिन्द:- मुख्यः पूज्यश्च । पालिन्दो- नृपतिः, रक्षकचेत्येके || २४८ ॥
एभ्यो नः प्रत्ययो भवति । प्येङ् वृद्धी, प्यानः समुद्रः चन्द्रश्च । डुधांग्क् धारणे च, धाना- भृष्टो यवः, अङ्कुरश्च। पनि स्तुतौ पन्नं नीचैःकरणम्, सन्नं जिह्वा च । अनक् प्राणने, अन्नं- भक्तम्, आचारश्च । ष्वदि आस्वादने, स्वन्नंरुचितम् । ञिष्वक्शये, स्वप्नः- मनोविकार: निद्रा च । 60 वसं निवासे, वस्नं- वासः मूल्यम्, मेढम् आगमन | अ क्षेपणे च, वेन:- प्रजापतिः, ध्यानी, राजा, वायुः, यज्ञः, प्राज्ञः, मूर्खश्च । अत सातत्यगमने, अत्न:- आत्मा, वायुः,
यमेरुन्दः ||२४||
मूं उपरमे, इत्यस्माद् उन्दः प्रत्ययो भवति । यमुन्द:- मेघः, प्रजापतिश्च । षिवृच् उतो, स्योनं- सुखम्, तन्तुवायक्षत्रियविशेषः || २४६ ॥
सूत्रसंतान, समुद्र:, सूर्य:, रश्मिः, आस्तरणं च ।। २५८ ।। 65 षसेणित् ॥ २५६ ॥
षसक् स्वप्ने, इत्यस्मात् णिदु नः प्रत्ययो भवति । सास्ना- गोकण्ठावलम्बि चर्म, निद्रा च ॥ २५६ ॥
45
इषत् इच्छायाम्, इत्यस्माद् उधक् प्रत्ययो भवति । इषुधः- याञ्चा ।। २५६॥
50
कोरन्धः ॥ २५७॥
कुङ् शब्दे, इत्यस्माद् अन्धः प्रत्ययो भवति । कवन्धःछिन्नमूर्धा देहः || २५७।।
55
रसेर्वा ॥ २६०॥
रसशब्दे, इत्यस्माद् न प्रत्ययो भवति, णिद् वा भवति । 70 रास्ना- धेनुः, औषधिजातिश्च । रस्नं द्रव्यजातिः, रस्नाजिह्वा, रस्न:- तुरङ्गः, दण्डश्च ॥ २६०॥
जीण-शी-दी- बुध्यवि-मीभ्यः कित् ॥२६१॥
एभ्यः किदु नः प्रत्ययो भवति । जि अभिभवे, जिन:अर्हन्, बुद्धश्च । इंण्क गतौ, इन:- स्वामी, संनिपात:, 75 ईश्वर:, राजा, सूर्यश्व । शी स्वप्ने, शीन:- पीलुः । Aho! Shrutgyanam
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२२
स्वोपज्ञोणादिगणसूत्र विवरणम् ॥ :
5
षट् बन्धने इत्यस्माद् नः प्रत्ययो भवति, स च fear भवति । सिन:- काय, वस्त्र, बन्धश्च । सेना
चमूः ॥२६२॥
15
दीच् क्षये । दीन: कृपण:, खिन्नश्च । बुधिच् ज्ञाने, बुध्नः मूलं पृष्ठान्तः, रुद्रश्च । अव रक्षणादी, ऊनम्- अपरिपूर्णम् । मीच हिंसायाम्, मीन:- मत्स्य:, राशि ॥ २६१ ।। सेर्वा ॥२६२॥
सोरू च ॥ २६३ ॥
बुंगुट् अभिषवे, इत्यस्मान्नः प्रत्ययो भवति, ऊकारश्चा10 न्तादेशो भवति । सूना- घातस्थानम् दुहितापुत्र, प्रकृतिः, आधारस्थानं च ॥ २६३॥ रमेस्त् च ॥२६४॥
रमिं क्रीडायान् इत्यस्माद् नः प्रत्ययो भवति, तवान्तादेशो भवति । रत्नं वज्रादिः ।। २६४।।
25
क्रुशेर्वृद्धिश्च ॥२६५॥
कुशं आह्वान रोदनयो:, इत्यस्माद् नः प्रत्ययो भवत्यस्यच वृद्धिर्भवति । क्रौन :- श्वापदः ।। २६५ ।।
- सुनियो माङो डित् ॥ २६६ ॥
द्युसुनिपूर्वात् मां मानशब्दयोः इत्यस्मात् डि 20 नः प्रत्ययो भवति । द्युम्नं द्रविणम्, सुम्नं सुखम्, निम्ननतम् ॥२६६ ।।
शीङः सन्वत् ॥ २६७॥
शी स्वप्ने, इत्यस्मात्- डिद् नः प्रत्ययो भवति, स च सन्वद्भवति । शिश्न - शेपः ॥ २६७ ॥
दिन- नग्न-फेन - चिह्न - ब्रध्न घेन- स्तेन च्यौक्कादयः
॥२६८॥
।
एते प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । दीव्यतेः किल्लुक् च, दिनम् अहः । नञ्पूर्वात् वसेर्गोऽन्तो धातोर्लुक्च । न वस्ते, नग्न:- अवसनः । फणे, फले:, स्फायेर्वा फेभावश्व, फेनः30 बुद्बुदसंघातः । चहेरिन्चोपान्त्यस्य चिह्नम् - अभिज्ञानम् बन्धेर्व्रध्च । ब्रघ्न:- रविः, प्रजापतिः, ब्रह्मा, स्वर्गः, पृष्ठान्तव । घयतेरेत्वं च घेना- सरस्वती, माता च; घेन:समुद्रः, ईत्वं चेत्येके, धीना । स्त्यायेस्ते च स्तेन:- चौरः च्यवतेर्वृद्धिः कोऽन्तश्च । च्यौक्नम् - अक्षस्थानम्, अनुजः, 35 क्षीणम्, अपुण्यं च । च्योक्ती - कांस्यादिपात्री । आदिशब्दादन्येऽपि ॥ २६८ ॥
वसि रसि रुचि - जि-मस्जि- देवि स्यन्दि च्यन्दिमन्दि- मण्डि मदि दहि- वह्यादेरनः ॥ २६६ ॥
एभ्यः अन: प्रत्ययो भवति । युक् मिश्रणे, यवना:जनपदः, यवनं मिश्रणम् । असूच्-क्षेपणे, असन:- बीजक: 40 रसण् आस्वादनस्नेहनयो:, रसना - जिह्वा । रुचि अभिप्रीत्यां च, रोचना-गोपित्तम्, रोचन: चन्द्र:, विपूर्वात् विरोचनःअग्नि, सूर्य, इन्दु दानवच । जि अभिभवे, जयनम्ऊर्णापट: । टुमस्जोंत् शुद्धी, मज्जनं स्नानं तोयं च । देवृङ् देवने, देवन:- अक्ष:, कितवश्च । स्यन्दोङ् स्रवणे, स्यन्दन:- 45 रथः । चदु- दीप्त्याह्लादनयो:, चन्दनं - गन्धद्रव्यम् । मदुङ् स्तुत्यादौ, मन्दनं स्तोत्रम् । मडु भूषायाम्, मण्डनमलंकारः । मदैच् हर्षे, मदन:- वृक्ष, काम, मधूच्छिष्टं च । दहं भस्मीकरणे, दहन:- अग्निः । वहीं प्रापणे, वहनं- नौः । आदिग्रहणात् पचेः पचनः अग्निः । पुनातेः पवन:- वायुः । 50 बिभर्तेः, भरणं- साधनम् । नयतेः, नयनं नेत्रम् । द्युतेः, द्योतनः सूर्यः । रचेः, रचनावैचित्र्यम् । गृञ्जः, गृञ्जनम् - अभक्ष्यद्रव्यविशेषः । प्रस्कन्दनः, प्रपतनः इत्यादयो भवन्ति ॥ २६६ ॥
अशो रश्चादौ ॥२७०॥
अशौटि व्याप्ती, इत्यस्माद् अनः प्रत्ययो भवति, रेफवादी भवति । रशना मेखला । रशिमेके प्रकृतिमुपादिशन्ति सा च राशि:, रशना, रश्मिः इत्यत्र प्रयुज्यत इत्याहुः ॥२७०॥
उन्देर्न लुक् च ॥२७१॥
60
उन्दैर् क्लेदने, इत्यस्माद् अनः प्रत्ययो भवति, नलो- ' पश्च भवति । ओदनः- भक्तम् ॥ २७९ ॥
हर्घतजघौ च ॥ २७२॥
हक हिंसागत्योः इत्यस्माद् अनः प्रत्ययो भवति, घतजावित्यादेश चास्य भवतः । घतनः- रङ्गोपजीवी, पाप- 65 कर्मा, निर्लजच । जघनं श्रोणिः ॥ २७२ ॥ |
तुदादि-वृजि- रञ्जि-निधाभ्यः कित् ॥ २७३॥
55
एभ्यः कि अनः प्रत्ययो भवति । तुदींत् व्यथने, तुदनः । क्षिपत् प्रेरणे, क्षिपणः । सुरत् ऐश्वर्यदीप्त्योः, सुरण: । बुधिच् ज्ञाते, बुधनः । पिवृच् उतौ सिवनः । एषां यथा - 70 संभवं कारकमुच्यते । लबुङ् अवस्रंसने, लम्बनः- शकुनिः । वृजैकि वर्जने, वृजिनम् अन्तरिक्षम्, निवारणं, मुण्डनं च । रञ्जी रागे, रजनं- हरिद्रा । महारजनं कुसुम्भम्, रजन:रङ्गविशेषः । डुधांग्क् धारणे च । निधनम् - अवसानम्
।।२७३॥
सू-धू -भू-स्जिभ्यो वा ॥ २७४ ॥
एभ्यः अनः प्रत्ययो भवति, स च किद्वा भवति । षूत्
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥ प्रेरणे, सुवनः- अङ्कुरः, आदित्यः, प्रादुर्भावश्च, सुवनं- | सूर्यः, जीवः, स्वप्नः, अग्निश्च । षहि मर्षणे, सहमान:- 40 चन्द्रप्रभा, सवनं- यज्ञः, पूर्वालापराह्नमध्याह्नकालश्च. त्रि- दृढ़ः, मयूरः, यजमानः, क्षमावांश्च । अर्ह पूजायाम, षवणम् । धूत् विधूनने, धुवन:- धूमः, वायुः, अग्निश्च, । अर्हसान:- चन्द्रः, तुरङ्गमश्च ॥२७॥
धुवनम्- एधः, धवनम् । भू सत्तायाम्, भुवनं- जगत्, भवनं- रुहि-यजेः कित ॥२०॥ 5 गृहम्, भ्रस्जीत् पाके, भृजनम्- अन्तरीक्षम, अम्बरीषः,
आभ्यां किद् असानः प्रत्ययो भवति । रुहं जन्मनि, पाकश्च । भ्रजन:- पावकः ।।२७४।।
रुहसान:-विटपः । यजी देवपूजासंगतिकरणदानेषु इज-45 विदन-गगन-गहनादयः ॥२७॥
सान:- धर्मः ॥२८॥ एते किदनप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । विदु अवयवे नलो
- वृधेर्वा ॥२८॥ पश्च, विदन:- गोत्रकृत् । गमेर्ग च, गगनम्- आकाशम् ।।
वृधेः असान: प्रत्ययो भवति, सच किद्वा भवति । गाहाङ् विलाडन, ह्रस्वश्व, गहन- दुगमम् । आदिग्रहणाद वृधूङ् वृद्धौ, वृधसान:- गर्भः । वर्धसान:- गिरिः, मृत्युः, । काञ्चनकाननादयो भवन्ति ॥२७॥ गर्भः, पुरुषश्च ।।२८१।।
50 संस्तु-स्पृशि-मन्थेरानः ॥२७६॥
श्या-कठि-खलि-नत्यवि-कुण्डिभ्य इनः ॥२८२॥ संपूर्वात् स्तोः स्पृशेश्च सम्पूर्वाभ्यां वा स्तु- स्पृशिभ्यां |
एभ्य इनः प्रत्ययो भवति । श्यङ्गती, श्येन:- पक्षी, मन्थेश्च आनः प्रत्ययो भवति । ष्टंगक स्तुती, संस्तवान:
| अभिचारयज्ञश्च । कठ कृच्छ्रजीवने, कठिनम् अमृदु । खल15 सोमः, होता, महर्षिः, बाग्मी च । स्पृशंत् स्पर्श, स्पर्शान:- संचये च, खलिनम- अश्वमखसंयमनम । णल गन्धे,नलिनं, मनः, अग्निश्च । मन्थश विलोडने, मन्थान:- खजक:
पद्मम् । अव रक्षणादौ, अविनं- जलं, मृगः, नाशः, अग्नि:, 55 ॥२७६॥
राजा, अध्वर्युः, विधानं, गुप्तिश्च । कुडुङ् दाहे, कुण्डिनःयु-युजि-युधि-बुधि-मृशि-दृशीशिभ्यः कित्॥२७७॥ ऋषिः, कुण्डिनं- नगरम् ॥२८२।।
एभ्यः किद्, आनः प्रत्ययो भवति । युक् मिश्रणे, वृजि-तुहि-पुलि-पुटिभ्यः कित् ॥२८३॥ 20 यूवान:- तरुणः । युजपी योगे, युजान:- सारथिः । युधिव् एम्यः किद इनः प्रत्ययो भवति । वृजकि वर्जने, वृजिनं
संप्रहारे, युधानः- रिपुः । बुधिच् ज्ञाने बुधान:- आचार्यः, पापं, कुटिलं च । तुह, अर्दने, तुहिनम्- हिममन्धकारश्च । 60 पण्डितो वा । मृशंत् आमर्शने, मृशानः- विमर्शक: । दृश | पूल महत्त्वे, पूटत् संश्लेषणे पुलिनं पुटिनं च- नदीतीरं प्रेक्षणे, दृशानः- लोकपाल: । युजादिप्रसिद्धका एते ईशिक्
| वालुकासंघातश्च ॥२८३॥ . ऐश्वर्य, ईशान:- ईश्वरः ।।२७७।।
विपिनाजिनादयः॥२८४॥ 25 मुमुचान- युयुधान- शिश्विदान- जुहुराण- जिह्नि
विपिनादयः शब्दा: किद् इनप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते। याणाः ॥२७८॥
डुवपी बीजसंताने, टुवेपृङ् चलने इत्यस्य वा, इच्चोपान्त्यस्य। 65 एते किद् आनप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । मुचेद्वित्वं च,
विपिन- गहनम्, अब्जं, जलदुर्ग च । अज क्षेपणे च, अस्य मचान:- मेघः । एवं युधिच् संप्रहारे, युयुधान:- साह- वीभावाभावश्च । अजिनं- चर्म । आदिग्रहणादन्येऽपि सिकः, राजा च कश्चित् । श्विताइवणे, अस्य दश्च,
॥२८४|| 30 शिश्विदान:- दुराचारो द्विजः । हुर्छा कौटिल्ये, अस्यान्त
महेणिद्वा ॥२८॥ लुक च, जुहुराण:- कठिनहृदयः, कुटिल:, अग्नि:, अध्वर्यः,
मह पूजाथाम्, इत्यस्माद् इनः प्रत्ययो भवति । स च 70 अनड़वांश्च । ह्रींक लजायाम्, जिह्रियाणः, नीतिमान् । किद्वा भवति । माहिनं- राज्यं, बलं च। महिनं- राज्यं, सर्वे एवैते मुच्यादिप्रसिद्धक्रियाकर्तवचना इत्येके । अन्ये
शयनं च । माहिन:- माहात्म्यवान् ।।२८५।। तु मुमुक्षादिसन्नन्तप्रकृतीनामेतन्निपातनं, तेन सन्नन्तक्रिया- - खलि-हिंसिभ्यामीनः ॥२८६॥ 35 कर्तृवचना इत्याहुः ।।२७८।।
आभ्याम् ईनः प्रत्ययो भवति । खल-संचये च, खलीनं. ऋजि-रञ्जि-मन्दि-सह्यहिभ्योऽसानः ॥२७६॥ कवियम् । हिसुप् हिंसायाम्, हिंसीन:- श्वापदः ॥२८६॥ 75 - एभ्य: असानः प्रत्ययो भवति । ऋजूङ भजने, ऋञ्ज- पोणत् ॥२८७॥ सान:- महेन्द्रः, मेघः, श्मशानं च । रजी रागे, रञ्जसान:- पठ व्यक्तायां वाचि, इत्यस्मात् णिद् ईनः प्रत्ययो मेघः, धर्मश्च । मदुङ् स्तुत्यादिषु, मन्दसान:- हंसः, चन्द्रः, भवति । पाठीन:- मत्स्यः ॥२८७॥ .
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२४
स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
यम्यजि-शक्य-जि-शी-यजि-तभ्य उनः ॥२८८॥ - एभ्य: पः प्रत्ययो भवति । भांक दीप्तो, भापः
एभ्य उन: प्रत्ययो भवति । यम उपरमे, यमुना- नदी। आदित्य:, 'ज्येष्ठश्च भ्राता। पांक रक्षणे, पापं- कल्मषम्, 40 अज क्षेपणे च, वयुनं-विज्ञानम्, अङ्गं च, वयून:- विद्वान्, पाप:- घोरः । चण हिंसादानयोश्च, चण्पा- नगरी, चण्प:
चन्द्रः, यज्ञश्च । शक्लृट् शक्ती, शकुन:- पक्षी । अर्ज अर्जने, वृक्षः । चमू- अदने, चम्पा- नगरी। विषलंकी व्याप्ती, 5 अर्जुन:- ककुभ: वृक्षविशेषः, पार्थः, श्वेतवर्णः, श्वेताश्वः, वेष्पः- परमात्मा, स्वर्गः, आकाशश्च । निपूर्वात्, निवेष्प:
कार्तवीर्यश्च । अर्जुनी- गौः। अर्जन तणं, श्वेतसूवर्ण च।। अपां गर्भः, कूपः, वृक्षजातिः, अन्तरीक्षं च । संगतो, शोक् स्वप्ने, शयुन:- अजगरः । यजी देवपूजादौ, यजुना- सर्पः- अहिः । पृश् पालनपूरणयोः, पर्प:- प्लवः, शङ्खः, 45 क्रतुद्रव्यम् । तृप्लवनतरणयोः, तरुणः-समर्थः, युवा, वायुश्च । समुद्रः, शस्त्रं च । त प्लवनतरणयोः, तर्पः- उडुपः, नोश्च । ऋफिडादित्वाल्लत्वे, तलुनः ।।२८८।।
शीक स्वप्ने, शेप:- पुच्छम् । तलण प्रतिष्ठायाम्, तल्प10 लषेः श् च ॥२८॥
शयनीयम्, अङ्गं, दाराः, युद्धं च । अली भूषणादो. अल्पलषी कान्तौ इत्यस्माद् उनः प्रत्ययो भवति, तालव्यः
स्तोकम् । शमूच् उपशमे, शम्पा- विद्युत्, काञ्ची च । शकारश्चान्तादेशो भवति । लशुनं-कन्दजातिः ॥२८६।।
विपूर्वात्, विशम्पः- दानवः । रमि क्रीडायाम्, रम्पा- 50
चर्मकारोपकरणम् । ट्रवपी बीजसंताने, वप्पः- पिता पिशि-मिथि-क्षुधिभ्यः कित् ॥२६०॥
॥२६६॥ एभ्यः किद् उनः प्रत्ययो भवति । पिशत् अवयवे, 15 पिशुनः- खलः, पिशुनं- मैत्रीभेदकं वचनम् । मिश्रृङ् मेधा
यु-सु-कु-रु-तु-च्यु-स्त्वादेरुच्च ॥२६७॥
एभ्यः प: प्रत्ययो भवति, ऊकारश्चान्तादेशो भवति । हिंसयोः, मिथुनं- स्त्रीपुंसद्वन्द्वम्, राशिश्च । क्षुधंच बुभु
युक् मिश्रणे, यूप:- यज्ञपशुबन्धनकाष्ठम् । षंगट अभिषवे, 55 क्षायाम्, क्षुधनः- कीटकः ॥२६॥
सूप:- मुद्रादिभिन्न कृतः । कुक शब्दे, कूपः- प्रहिः । रुक फलेगाऽन्तश्च ॥२६॥
शब्दे, रूप- श्वेतादि लावण्यं, स्वभावश्च । तक वृत्त्यादी, फल निष्पत्ती, इत्यस्माद् उनः प्रत्ययो भवति, गश्चान्तो तपः- आयतनविशेषः । च्यंङ गतौ, च्यूपः- आदित्यः, वायुः, 20 भवति । फल्गुन:- अर्जुनः । फल्गुनी- नक्षत्रम् ॥२६१।।
संग्रामश्च । ष्टुंगक स्तुती, स्तूप:- बोधिसत्त्वभवनम्, उपायवी-पति-पटिभ्यस्तनः ॥२६२॥ तनं च । आदिशब्दादन्येऽपि ॥२६॥
60 एभ्यस्तन: प्रत्ययो भवति । वींक प्रजननादी, वेतनं- क-श-सृभ्य ऊर् चान्तस्य ।।२९८॥ भृतिः। पत्लु गतौ, पत्तनम् । पट गतो, पट्टनम् । द्वावपि
एभ्यः पः प्रत्ययो भवति, अन्तस्य च ऊरभवति । कत् नगरविशेषौ।
विक्षेपे, कूर्पम्- भ्रूमध्यम् । शश् हिंसायाम्, शूर्पः- धान्यादि25 पटनं शकटैगम्यं घोटकैनौंभिरेव च ।
निष्पवनभाण्डं संख्या च । सं गतो, सूर्पः- भुजङ्गमः, मत्स्यनौभिरेव तु यद् गम्यं पत्तनं तत् प्रचक्षते ॥२२॥ जातिश्च ॥२६८॥
65 पृ-पूभ्यां कित् ॥२६॥
शदि-बाधि-खनि-हनेः ष् च ॥२६॥ आभ्यां कित् तनः प्रत्ययो भवति । पत् व्यायामे,
एभ्यः पः प्रत्ययो भवति, षश्चान्तादेशो भवति । शलूं पृतना- सेना । पूग्श् पवने, पूतना- राक्षसी ॥२६३॥
शातने, शष्पं-बालतृणम् । शष हिंसायाम् इत्यस्य वा रूपम् । 30 कृत्यशौभ्यां स्नक ॥२६४॥
बाधृङ्- रोटने, बाष्प:- अश्रु. धूमाभासं च मुखपानीयादौ । आभ्यां स्नक्प्रत्ययो भवति । कृतै त् छेदने, कृत्स्नं- खनूग् अवदारणे, खष्प:- बलात्कारः, दुर्मेघाः, कूपश्च । 70 सर्वम् । अशौटि व्याप्तौ। अक्षणं- नयनं, व्याधिः, रज्जः, खष्प- खलीनं, जनपदविशेषः, अङ्गारश्च । हनंक हिंसातेजनम्, अखण्डं च ॥२६४।।
गत्योः , हष्प:- प्रावरणजातिः ॥२६६।। अतः शसानः ॥२६॥
पम्पा-शिल्पादयः ॥३०॥ 35 ऋक गतौ, इत्यस्मात्तालव्यादिः शसान: प्रत्ययो पम्पादयः शब्दाः पप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । पांक रक्षणे, भवति । अर्शसान:- पन्थाः , इषुः, अग्निश्च ॥२६५।। मोऽन्तो ह्रस्वश्च । पम्पा- पुष्करिणी। शीलयते: शलते: 75
भा-पा-चणि-चमि-विषि-स-प-त-शी-तल्यलि- शेतेर्वा शिलादेश्च । शिल्पं- विज्ञानम् । आदिशब्दादशामि-रमि-वपिभ्यः पः ॥२६६॥
न्येऽपि ॥३०॥
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क्षु-चुप-पूभ्यः कित् ॥ ३०१ ॥
एम्य: कित्पः प्रत्ययो भवति । टुक्षुक् शब्दे, क्षुपः
मन्दगमनम् । पूग्श्
गुच्छः । चुप मन्दायां गतौ, चुप्पं पवने, पूपः- पिष्टमयः ।। ३०१ ।।
5
स्वोपज्ञोणादिगणसूत्र विवरणम् ॥
नियो वा ॥ ३०२ ॥
णीं प्रापणे, इत्यस्मात् पः प्रत्ययो भवति । स च किद्वा भवति । नीप:- वृक्षविशेषः, नेप:- नयः, पुरोहितः, वृक्षः, भृतकरच; नेपम् उदकं यानं च ॥ ३०२ ॥
उभ्यवेर्लुक् च ॥३०३॥
10
आभ्यां कितु पः प्रत्ययो भवति, लुक् चान्तस्य भवति । उभत् पूरणे । अव रक्षणादौ । उप, अप च- अव्यये
॥३०३॥
दलि- वलि - तलि - खजि - ध्वजि - कचिभ्योऽपः ॥३०४ ॥
15 एम्य: अपः प्रत्ययो भवति । दल विशरणे, दलप:प्रहरणम् रणमुखम् विदलं, दलविशेषश्च, दलपं व्रणमुखत्राणम् । वलि संवरणे, वलप:- कणिका । तलण्प्रतिष्ठायाम्, तलप:- हस्तप्रहारः । खज मन्थे, खजप:- मन्थः, खजपं- दधि, घृतम्, उदकं च । ध्वज गतौ ध्वजपः20 ध्वजः । कचि बन्धने, कचपः- शाकपणः, बन्धश्च ॥ ३०४ ।।
35
-
एम्य: किप: प्रत्ययो भवति । भुजंप् पालनाम्यवहारयोः । भुजप:- राजा, यजमानपालनादग्निश्च । कुतिः सौत्रः 25 कुतप:- छागलोम्नां कम्बलः, आस्तरणं, श्राद्धकालश्च । कुटत् कौटिल्ये, कुटप:- प्रस्थचतुर्भागः, नीडं च शकुनीनाम् । विट् शब्दे, विटप:- शाखा । कृणत् शब्दोपकरणयोः । कुणप :- मृतकं, कुषितं शब्दार्थसारूप्यं च । कुषश् निष्कर्षे, कुषपः- विन्ध्य, संदंशश्च । उषू दाहे, 30 उषपः- दाहः, सूर्य, वह्निव ।। ३०५||
शसेः श इञ्चातः ॥ ३०६ ॥
शंसू स्तुतौ च इत्यस्मादपः प्रत्ययो भवति तालव्य : शकारोऽन्तादेशोऽकारस्य च इकारो भवति । शिशपा:वृक्षविशेषः || ३०६ ॥
विष्टपोलप - वातपादयः ॥ ३०७॥
वातेस्तोऽन्तश्च । वातपः ऋषिः । आदिग्रहणात् खरपादयोऽपि भवन्ति ॥३०७॥ कलेरापः ॥ ३०८ ॥
40
कलि शब्दसंख्यानयोः, इत्यस्मादापः प्रत्ययो भवति । कलाप:- काशीसमूहः, शिखण्ड ||३०८ ||
विष्टपादयः शब्दा किदु अपप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । विषेस्तोन्तश्च । विष्टपं जगत्, सुकृतिनां स्थानं च । वलेरुल् च । उलपं- पर्वततृणम्, पङ्कजं, जलं च । उलपः- ऋषिः ।
२५
विशेरिपक् ॥ ३०६ ॥
विशंतु प्रवेशने इत्यस्मादिपकप्रत्ययो भवति । 45 विशिषः- राशि: । विशिपं तृणं, वेश्म, आसनं, पद्मं च
1130811
भुजि - कुति कुटि विटि कुणि कुष्युषिभ्यः रक्षोघ्नं द्रव्यम्, शाकं च ॥ ३१३॥ कित् ॥ ३०५ ॥
दलेरीपो दिल् च ॥३१०॥
दल विशरणे, इत्यस्मादीपः प्रत्ययो भवति । दिल् चास्यादेशो भवति । दिलीप:- राजा ||३१०॥
50
उडेरुषक् ॥३११॥
उड् संघाते, इति सौत्रात् उपक्प्रत्ययो भवति । उडुप :प्लवः । जपादित्वाद् वत्वे, उडुवः ॥ ३११॥
अश ऊपः पश्च ॥३१२॥
अशीट व्याप्ती, इत्यस्मादूपः प्रत्ययः भवति, पश्चा- 55 न्तादेशो भवति । अपूपः- पक्वान्न विशेष: ।। ३१२।
सर्तेः षपः ॥३१३॥
सूं गतौ इत्यस्मात् षपः प्रत्ययो भवति । सर्षपः
री- शीभ्यां फः ।। ३१४ ॥
आभ्यां फः प्रत्ययो भवति । रीडच् श्रवणे, रेफःकुत्सितः । शी स्वप्ने । शेफः- मेढ़ः ।। ३१४॥
60
कलि- गलेरस्योच्च ॥३१५॥
आभ्यां फः प्रत्ययो भवत्यस्य चोकारो भवति । कलि शब्दसंख्यानयोः, गल अदने कुल्फ, गुल्फ:- जङ्घाङ्घ्रि- 65 सन्धिः । गुल्फ :- पादोपरिग्रन्थिः ।। ३१५।।
शफ-कफ- शिफा - शोफादयः ॥ ३१६ ॥
शफादयः शब्दाः फप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । श्यतेः कायतेश्च ह्रस्वश्च । शफ:- खुरः, प्रियंवदश्च । कफः- श्लेष्मा । श्यतेरित्वमोत्वं च । शिफा वृक्षजटा । शोफ:- श्वयथुः, 70 खुरश्च । आदिशब्दाद् रिफान फासुनफादयो भवन्ति ॥ ३९६ ॥ वलि-नितनिभ्यां बः ॥३१७॥
वलि संवरणे, निपूर्वाच्च, तनूयी विस्तारे, इत्याभ्यां बः प्रत्ययो भवति । वल्बः वृक्षः । नितम्बः श्रोणिः, पर्वतैकदेशः, नटश्च ॥३१७॥
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
शम्यमेणिद्वा ॥३१॥
जातिः । शृधूड् शब्दकुत्सायाम् । शिम्ब: मृगजातिः । आभ्यां बः प्रत्ययो भवति, स च णिद्वा भवति । शमूच शिम्बी-निष्पाववल्ली च । चल कम्पने, चिम्बा यवागूजाति: 40 उपशमे, शम्बः- वज्रः, कर्षणविशेषः, वेणुदण्डः, तोत्रम्, ॥३२५॥
अरित्रं च । शम्बशाम्बौ- जाम्बवतेयौ। अम् गती, अम्बा- कुटयुन्दि-चुरि-तुरि-पुरि-मुरि-कुरिभ्यः कुम्बः 6 माता। आम्बः- अपह्नवः ॥३१८॥
॥३२६॥ शल्यलेरुच्चातः ॥३१॥
'एभ्यः किद् उम्ब: प्रत्ययो भवति । कुटत् कौटिल्ये, आभ्यां बः प्रत्ययो भवत्यकारस्य चोकारो भवति । कुटुम्ब- दारादयः । उदैप् क्लेदने, उदुम्बः- समुद्रः । चुरण 45 पल-फल-शल गती, शुल्द- ताम्रम् । अली भूषणादौ, | स्तेये, तुरण त्वरण, सौत्रः, चुरुम्बः तुरुम्बश्च- गहनम् । पुरत् उल्ब- रजतम्, गर्भवेष्टनम् । शुल्- बम्भ्रुः तरक्षुश्च |
अग्रगमने, पुरुम्ब:- आहारः । मुरत् संवेष्टने, मुरुम्ब:10 ॥३१॥
म्रिद्यमाणपाषाणचूर्णम् । कुरत् शब्दे, कुरुम्बः- अङ्कुरः । तुम्ब-स्तम्बादयः ॥३२०॥
निपूर्वात् निकुरुम्बः- राशिः ॥३२६।। तुम्बादयः शब्दा बप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । ताम्यतेरत गृ-द-रमि-हनि-जन्यति-दलिभ्यो भः ॥३२७॥ 50 उत्वं च । तुम्बम्- अलाबु, चक्राङ्गं च । स्तम्भेर्लुक् च ।
एभ्यो भः प्रत्ययो भवति । गृत निगरणे, गर्भ:- जठस्तम्बः- तृणं, विटपः, संघातः, अङ्करसमुदायः, स्तबकः,
रस्थः प्राणी। दृश् विदारणे, दर्भ:- कुशः । रमि क्रीडा16 पुष्पापीडश्च । आदिग्रहणात् कुशाम्बादयो भवन्ति ॥३२०॥
याम्, रम्भा- अप्सराः, कदली च । हनं हिंसागत्योः,
हम्भा- गोधेनुनादः । जनैचि प्रादुर्भावे, जम्भ:- दानव:, . कृ-कडि-कटि-वटेरम्बः ॥३२१॥
दन्तश्च, जम्भा- मुखविदारणम् । ऋक् गतौ, अर्भ:- 55 । एभ्यः अम्बः प्रत्ययो भवति । डुकृग् करणे, करम्ब:
शिशुः । दलण विदारणे, दल्भ:- ऋषिः, वल्कलं, विदारणं दध्योदनः, दधिसक्तवः, पुष्पं च । कडत् मदे, कडम्बः
| च ॥३२७॥ जातिविशेषः, जनपदविशेषश्च । कटे वर्षावरणयोः, कटम्ब:
इणः कित् ॥३२८॥ 20 पक्वान्नविशेषः, वादित्रं च । कडम्बकटम्बौ वृक्षौ च । वट | वेष्टने, वटम्ब:-शैलः, तृणपुजश्च ।।३२१॥
इणक् गती, इत्यस्मात् किद् भः प्रत्ययो भवति । इभ:हस्ती ॥३२॥
60 कदेणिद्वा ॥३२२॥
__ क-शा-शलि-कलि-कडि-गदि-रासि-रमि-वडिकद वैक्लव्ये, इति सौत्राद् अम्ब: प्रत्ययो भवति, स च |
वल्लेरभः ॥३२६॥ णिद्वा भवति । कादम्ब:- हंसः । कदम्बः- वृक्षजातिः
एभ्यः अभः प्रत्ययो भवति । कत् विक्षेपे, करभ:- त्रिवर्ष 25 ॥३२२॥
उष्ट्रः । शश् हिंसायाम्, शरभः- श्वापदविशेषः । गत् शिल-विलादेः कित् ॥३२३॥
निगरणे, गरभः- उदरस्थो जन्तुः । पल- फल-शल- गतो, 65 शिलादिभ्यः किद् अम्बः प्रत्ययो भवति । शिलत् ।
शलभः- पतङ्गः । कलि शब्दसंख्यानयोः, कलभ:- हस्ती उञ्छे, शिलम्ब:- ऋषिः, तन्तुवायश्च । विलत् वरण, यौवनाभिमुखः । कडत्- मदे, कडभ:- हस्तिपोतकः । गदे विलम्ब:- वेषविशेष:- रङ्गावसरश्च । आदिग्रहणादन्येऽपि
शब्दे, गर्दभः- खरः । रासृङ् शब्दे, रासभ:- स एव । रमि 30 ।।३२३।।
क्रीडायाम्, रमभः प्रहर्षः। वडः सौत्र:, वडभी- वेश्माग्रहिण्डि-विलेः किम्बो नलुक् च ॥३२४॥ भूमिका। ऋफिडादित्वाल्लत्वे वलभी। वल्लि संवरणे, 70
आभ्यां किद् इम्बः प्रत्ययो भवति, नस्य च लुग | वल्लभ:- स्वामी, दयितश्च ।।३२६॥ भवति । हिड्रड गती, विलत् वरणे, हिडिम्बः- विलिम्बश्च- सडित् ॥३३०॥ राक्षसौ ॥३२४॥
षण भक्ती इत्यस्मात् डिद् अभ: प्रत्ययो भवति । सभा35 डी-नी-बन्धि-शधि-चलिभ्यो डिम्बः ॥३२॥ परिषत्, शाला च ॥३३०॥ एभ्यः डिद् इम्बः प्रत्ययो भवति । डीङ् विहायसा गतौ, ऋषि-वृषि-लुसिभ्यः कित् ॥३३१॥
75 डिम्ब:- राजोपद्रवः । णींग प्रापणे, निम्ब:- वृक्षविशेषः। एभ्यः किद् अभ: प्रत्ययो भवति । ऋषत् गतो, वृष बन्धंश बन्धने, बिम्ब- प्रतिच्छन्दः, देहश्च, बिम्बी- बल्लि- सेचने, ऋषभ: वषभश्च- पुङ्गवः, भगवांश्चादितीर्थकरः ।
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
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45
ऋषभः- वायुः । लुसिः सौत्रः, लुसभ:- हिंस्रः, मत्तहस्ती, कच्छूः । यांक प्रापणे, याम:-प्रहरः । वलि संवरणे, वल्म:वनं च ॥३३॥
ग्रन्थिः । पदिच् गतो, पद्म- कमलम् । णींग प्रापणे, नेमः- 40 सिटि-किभ्यामिभः सर-टिट्टौ च ॥३३२॥ अर्धः, समीपश्च ॥३३॥
आभ्याम् इभः प्रत्ययो भवति, दन्त्यादि: सैर: टिट्टश्चा- प्रसि-हागभ्यां ग्राजिहौ च ॥३३॥ 5 देशौ यथासंख्यं भवतः । पिंगट बन्धने, सरिभ:- महिषः। आभ्यां मः प्रत्ययो भवत्यनयोश्च ग्राजिहावित्यादेशो टिकि गती, टिट्टिभ:- पक्षी ॥३३२।।
यथासंख्यं भवतः । ग्रामः- समूहादिः । जिह्म:- कुटिल: ककेरुभः ॥३३३॥
॥३३६।। ककि लौल्ये, इत्यस्माद् उभः प्रत्ययो भवति । ककुभ:- | विलि-भिलि-सिधीन्धि- धू-सू-श्या-ध्या-रु- सिविअर्जुन: ।।३३३॥
शुषि-मुषोषि-सुहि-युधि-दसिभ्यः कित् ॥३४०॥ 10 कुकेः कोऽन्तश्च ॥३३४॥
एभ्यः किद् मः प्रत्ययो भवति । बिलत् बरणे, विल्म
प्रकाशम् । भिलि: सौत्रः, भिल्म- भास्वरम् । षिधू- गत्याम्, कुकि आदाने, इत्यस्माद् उभः प्रत्ययो भवति, ककार
सिध्म- त्वग्रोगः । बिइन्धपि दीप्तो, इध्मम्- इन्धनम् । 50 श्वान्तादेशो भवति । कुककुभ:-पक्षिविशेषः ।।३३४।।
धूगश् कम्पने, धूम:- अग्निकेतुः । षूडीच् प्राणिप्रसवे, सूमःदमो दुण्ड् च ॥३३॥
कालः, श्वयथुः, रविश्व, सूमम्- अन्तरिक्षम् । श्यङ्गतो, दमूच् उपशमे, इत्यस्माद् उभः प्रत्ययो भवत्यस्य च
श्यामः- वर्णः, श्याम- नमः । श्यामा- रात्रिः, औषधिश्च । 15 दन्त्यादिष्टवर्गततीयान्तो दुण्ड इत्यादेशो भवति । दण्डभ:-
ध्ये चिन्तायाम्, ध्याम:- अव्यक्तवर्णः । रुक शब्दे, रुमा
HTI निविषाहिः ॥३३॥
लवणभूमिः । षिवच् उतौ, स्यूमः- रश्मि:-, दीर्घसूत्र-55 कृ-कलेरम्भः ॥३३६॥
तन्तुश्च, स्यूमम्- जलम् । शुषंच् शोषणे, शुष्म- बलं, जलं, आभ्याम् अम्भः प्रत्ययो भवति । डुकंग करणे, करम्भ:
संयोगश्च । मुषश स्तेये, मुष्म:- मूषिकः । ईष उञ्छे, ईष्म:दधिसक्तव: । कलि शब्दसंख्यानयोः, कलम्भ:- ऋषिः
वसन्तः-, बाणः, वातश्च । षुहच् शक्तो, सुह्मा:- जनपदः, 20 ॥३३६॥
सुहा:- राजा । युधिच संप्रहारे, युध्म:- शरत्काल:- शूरः,
शत्रुः, संग्रामश्च । दसूच उपक्षये, दस्मः- हीनः, वह्नि- 60 का-कुसिभ्यां कुम्भः ॥३३७॥
यज्ञश्च ॥३४०॥ आभ्यां किद् उम्भः प्रत्ययो भवति । के शब्दे, कुम्भः
क्षु-हिन्यां वा ॥३४१॥ घटः, राशिश्च । कुसच् श्लेषणे, कुसुम्भ:- महारजनम्
आभ्यां मः प्रत्ययो भवति, स च किद्वा भवति । टुक्षुक् ॥३३७॥
शब्दे, क्षुमा अतसी, क्षोम- वस्त्रम् । हिंट् गतिवृद्धयोः, ___ अर्तोरि-स्तु-सु-हु-स-घृ-धृ-श-क्षि-यक्षि-भा-वा
हेम-सुवर्णम्, हिम- तुषारः ।।३४१।। व्याधा-पाया-वलि-पदिनीभ्यो मः॥३३॥
अवेह्रस्वश्च वा ॥३४२॥ एभ्यो मः प्रत्ययो भवति। ऋक गती, अर्थ:- अक्षि
अव रक्षणादो, इत्यस्मात किद मः प्रत्ययो भवति, ऊटो रोगः, ग्रामः, स्थलं च । ईरिक् गतिकम्पनयोः, ईर्म- व्रणः ।
ह्रस्वश्च वा भवति । उमा- गौरी, अतसी, कीर्तिश्च । ष्टुंगक स्तुती, स्तोभ:- समूहयज्ञः, स्तोत्रं च । धुंगट
ऊमम्- ऊनम्, आकाशं, नगरम् ।।३४२।। 30 अभिषवे, सोम:- चन्द्रः, वल्ली च । हुंक् दानादनयोः,
सेरी च वा ॥३४३॥
70 होम:- आहुतिः । तूं गतो, सर्म:- नदः, कालश्च; सर्मस्नानं, सुखं च । सेचने, धर्म:- ग्रीष्मः । धंत, स्थाने,
पिंगट् बन्धने, इत्यस्मात् किद् मः प्रत्ययो भवति, धर्म:- उत्तमक्षमादिः, न्यायश्च । शुश हिंसायाम. शर्मः | ईकारश्चान्तादेशो वा भवति। सीमो- ग्रामगोचरभूमिः, सूखम् । क्षित् निवासगत्योः, क्षेमं- कल्याणम् । यक्षिण
क्षेत्रमर्यादा, हयश्च । सिम:- स एव सर्वार्थश्च ॥३४३।। 35 पूजायाम, यक्ष्मः- व्याधिः । भांक दीप्तौ, भामः- क्रोधः, भियः षोऽन्तश्च वा ॥३४४॥
भामा- स्त्री। वाक् गतिगन्धनयोः । वाम:- प्रतिकूल:, त्रिभीक भये, इत्यस्मात् किद् मः प्रत्ययो भवति । 75 सव्यश्च । व्यग् संवरणे, व्यामः- वक्षोभुजायतिः । डुधांग्क | षकारश्चान्तादेशो वा भवति । बिभेति अस्मादिति भीष्म:धारणे च, धाम- निलयः- तेजश्च । पां पाने, पामा- भयानकः । भीमः- स एव ॥३४४॥
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२८
स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
तिजि- युजे च ॥ ३४५॥
आभ्यां किदुमः प्रत्ययो भवति, गकारश्चान्तादेशो भवति । तिजि क्षमानिशानयोः तिग्मं- तीक्ष्णं, दीप्तं, तेजश्च । युज पी योगे, युग्मं युगलम् ॥ ३४५॥।
5
रुक्म- ग्रीष्म- कूर्म सूर्म- जाल्म- गुल्म प्रोम-परिस्तोम- सूक्ष्मादयः ||३४६॥
एते किन्मप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । रोचतेः क् च, रुक्मंसुवणं, रूप्यं च । ग्रसेर्गीषु च, ग्रीष्मः ऋतुः । कुरते दीर्घश्च, कूर्म :- कच्छपः । षूत् प्रेरणे, इत्यस्माद्रोऽन्तश्च 10 भवति । सूर्मी- लोहप्रतिमा, चुल्लिश्च । जल घात्ये
दीर्घश्च, जाल्मः निकृष्ट: । गुपच व्याकुलत्वे लश्च, गुल्मः - व्याधिः, तरुसमूहः, वनस्पतिः, सेनाङ्गं च, गुल्मम्आयस्थानम् । जिघ्रतेरोत्वं च प्रोमः यज्ञाङ्गलक्षणः
सोमः । परिपूर्वात् स्तौः षत्वाभावो गुणश्च परिस्तोम :15 यज्ञविशेष: । सूचण् पशून्ये कत्वं षोऽन्तश्च । सूक्ष्म:निपुणः, सूक्ष्मम्- अणु । आदिग्रहणात् क्ष्मादयो भवन्ति
।
॥३४६ ॥
सृ-पू- प्रथि चरि-कडि-कर्देरमः ॥३४७॥
एम्य अम: प्रत्ययो भवति । सूं गतो, सरमा- देवशुनी । 20 पृश् पालनपूरणयो:, परम:- उत्कृष्टः । प्रथिष् प्रख्याने, प्रथमः- आद्यः । चर भक्षणे, चरम:- पश्चिमः । कडत् मदे, कडम:- शालिः । ऋफिडादित्वाल्लत्वे कलम :- स एव । कर्द कुत्सिते शब्दे, कर्दम:- पङ्कः ॥ ३४७॥
अवेधं च वः ॥ ३४८ ॥
25
अव रक्षणादौ, इत्यस्मादमः प्रत्ययो भवति, धश्चान्तादेशो वा भवति । अधमः, अवमश्च- हीनः ॥ ३४८ ॥ कुट्ट-वेष्टि- पूरि पिषि - सिचि गयप-वृ-महिभ्य
इमः ||३४६||
एभ्यः इमः प्रत्ययो भवति । कुट्टण् कुत्सने च, कुट्टिमं30 संस्कृतभूतलम् । वेष्टि वेष्टने, वेष्टिमं- पुष्पबन्धविशेषः, भक्ष्यविशेषश्च । पूरैचि आप्यायने, पूरिमं मालाबन्धविशेषः, भक्ष्यविशेषश्च । पिप्लूंप संचूर्णने, पेषिमं भक्ष्यविशेषः । षिचींत् क्षरणे, सेचिमं - मालाविशेषः । गणण् संख्याने, गणिमं- गणितम् । ऋक् गतौ णौ पौ, अपिमं 35 बालवत्साया दुग्धम् । वृग्ट् वरणे, वरिमं- तुलोन्मेयम् । मह पूजायाम्, महिमं- पूजनीयम् ||३४६ ||
वयम- खचिमादयः ॥ ३५० ॥
वयमादयः शब्दा इमप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । वेंग् तन्तुसन्ताने, वयादेशश्च वयिमं- माल्यं, कन्दुकः, तन्तुवाय
दण्डश्च । खनूग् अवदारणे, चश्च खचिमं मणिलोहविद्धं, 40 घृतविहीनं च दधि । आदिशब्दादन्येऽपि ।। ३५० ।। उद्व-कुल्यfल-कुथि कुरिकुटि कुडि- कुसिभ्यः कुमः
।। ३५१ ॥
उत्पूर्वाद्वटे: कुल्यादिभ्यश्च किदुमः प्रत्ययो भवति । वट वेष्टने, उद्धटुमः- परिक्षेपः । कुल बन्धुसंस्त्यानयोः, कुलुम:- 45 उत्सवः । अली भूषणादौ, अलुमः प्रसाधनम्, नापितः, अग्निश्च । कुथच् पूतीभावे, कुथुम :- ऋषिः, कुथुमं - मृगाजिनम् । कुरत् शब्दे, कुरुमः कारुः, भाजनं च । कुट कौटिल्ये, कुटुमः प्रेष्यः । कुडत् बाल्ये च, कुडुमा भूमिः । कुसच् श्लेषे, कुसुमं - पुष्पम् ।। ३५१ ।।
50
कुन्दुम लिन्दुम- कुङ्कुम - विक्रम॥३५२॥
एते कुमप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । कुकि आदाने स्वरान्नो दश्च कुन्दुमः निचय:- गन्धद्रव्यं च । लींच् श्लेषणं, लिन्दभावश्च, लिन्दुमः- गन्धद्रव्यम् । कुके: स्वरान्नोन्तश्च । 55 कुङ्कुमं- घुसृणम् । विदुलूंती लाभे, रोन्तरच, विद्रुमःप्रवाल: । पदेष्टोऽन्तश्च । पट्टुमं- नगरम् । आदिग्रहणादन्येऽपि ।।३५२ ||
पट्टुमादयः
कुथि - गुरूमः ||३५३||
अभ्यामूमः प्रत्ययो भवति । कुथच् पूतिभावे, कोथुम :- 60 चरणकृदृषिः । गुधच् परिवेष्टने, गोधूम:- धान्यविशेष:
॥३५३ ।।
विहा - विशा-पचिभिद्यादेः केलिमः || ३५४ ||
विपूर्वाभ्याम् औहां त्यागे, शोंच् तक्षणे, इत्येताभ्यां पच्यादिभ्यश्च कि एलिमः प्रत्ययो भवति । विहीयते 65 त्यज्यतेऽशुचि शरीरमस्मिन्निति विहेलिम :- स्वर्गः । विश्यति तनूभवति मासि मासि कलाभिर्हीयमान इति विशेलिम :चन्द्रः, स्वर्गश्च । डुपचष् पाके, पचति असावन्नमिति पचेलिम :- अग्निः, आदित्यः, अश्वश्च । भिदुपी विदारणे, भिदेलिम :- तस्कर: । आदिशब्दात् दृशू प्रेक्षणे, दृशेलिमम् । 70 अदं प्सांक् भक्षणे, अदेलिमम् । हन हिंसागत्योः, घ्नेलिमम् । डुयानृग् याञ्चायाम्, याचेलिमम् । पांक् रक्षणे, पेलिमम् । हुकूंग् करणे, केलिमम् इत्यादयो भवन्ति ।। ३५४ ||
दो डिमः || ३५५ |
दांम् दाने, इत्यस्मात् डिमः प्रत्ययो भवति । दाडिमः वा दाडिमी वा वृक्षजातिः || ३५५ ||
डिमेः कित् ॥ ३५६ ॥
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
२९
डिमेः सौत्रात् किद् डिम: प्रत्ययो भवति । डिण्डिम:- __ अग- पुलाम्यां स्तम्भेडित् ।।३६३॥
40 वाद्यविशेषः ॥३५६॥
अग- पुल इत्येताम्यां परस्मात् स्तम्भेः सौवात् डिद् स्था-छा-मा-सा-सू-मन्य-नि-कनि-सि-पलि-कलि- यः प्रत्ययो भवति । अगस्त्यः पुलस्त्यश्व-ऋषिः ॥३६३।। शलि-शकीर्ण्य-सहि-बन्धिभ्यो यः ॥३५७॥
शिक्यास्याढ्य- मध्य- विन्ध्य-धिष्ण्याघ्न्य-हर्म्य। एभ्योः यः प्रत्ययो भवति । ष्ठां गतिनिवत्ती. स्थाय:- | सत्य-नित्यादयः॥३६४॥ स्थानम्, स्थाया- भूमिः । दों छोंच छेदने, छाया-तमः, एते यप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । शोंच तक्षणे, इकश्चान्त:, 45 प्रतिरूपम्. कान्तिश्च । मांक माने, माया-छद्म, दिव्या- शिक्यं-लम्बमान: पिठाद्याधार:-परिवाभिक्षाभाजननुभावदर्शनं च । षौंच अन्तकर्मणि, सायं-दिनावसानम् । स्थानम्, असार च । असूच क्षपण-दायत्व
स्थानम्, असारं च । असूच क्षेपणे-दीर्घत्वं च आस्यपूत् प्रेरणे, सव्यः-वामः, दक्षिणश्च । मनिच ज्ञाने, मन्या- मुखम् । आपूर्वाद् ढोकतेडिच्च, आढ्यः-धनवान् । भव 10 धमनिः । अनक प्राणने, अन्य:-परः। कनै दीप्त्यादिष. बन्धने ध च, मध्य-गर्भः। विधत् विधाने, स्वरान्नोऽन्तश्च,
कन्या-कुमारी । षसक स्वप्ने, सत्यं-क्षेत्रस्थं गोधमादि । विन्ध्यः-पर्वतः । जिधृषाट् प्रागल्भ्ये, णोऽन्तो धिष् च, 50 पल गतो, पल्य:-कटकुसूलः । कलि शब्दसंख्यानयोः, कल्यः- धिष्ण्यं-भवनम्, आसनं च, घिष्ण्या-उल्का नपूर्वाद्धन्तेनीरोगः । पल फल शल गती, सल्यमन्तर्गतं लोहादि। शक्लट
रुपान्त्यलोपश्च । अघ्न्यः-धर्मः, गोपतिश्च, अघ्न्या-गौः । शक्ती, शक्यमसारम् । ईष्यिार्थः, ईय॑ण ईष्यति वा ।
हरतेर्मोऽन्तश्च, हयं-सौधम् । अस्ते: सत् च सत्यम्15 ईर्ष्या-मात्सर्यम् । षहि मर्षणे, सह्यः-पश्चादर्णवपार्श्वशैलः।। अमृषा । निपूर्वाद्यमेस्तोऽन्तो धातुलुक च । नित्यं-ध्र वम् । बन्धश् बन्धने, वन्ध्या-अप्रसूतिः ।। ३५७ ।। आदिग्रहणाल्लह्य द्रुह्यादयो भवन्ति ।।३६४॥
55 नजो हलि-पतेः ॥३५८॥
कु-गु-वलि- मलि-कणि-तन्याभ्यक्षेरयः॥३६५॥ नपूर्वाभ्यामाभ्यां यः प्रत्ययो भवति । हल विलेखने, एभ्यः अयः प्रत्ययो भवति । कुक शब्दे, कवयः-ऋषिः, अहल्या-गौतमपत्नी । पत्ल गतौ, अपत्यं-पूत्रसंतानः पुरोडाशश्च । गुङ् शब्दे, गवयः-गवाकृतिः पशुविशेषः । 20 ॥३५॥
वलि संवरणे वलय:-कटकः। मलि धारणे, मलयः-पर्वतः । सजे च ॥३५॥
कण शब्दे, वणयः-आयुधविशेषः । तनूयी विस्तारे, 60 षजं सने इत्यस्माद् यः प्रत्ययो भवति, धकारश्चा
तनयः-पुत्रः, अमण् रोगे णिचि च, आमय:-व्याधिः। न्तादेशो भवति । संध्या-दिननिशान्तरम् ॥३५६।।
अक्षौ व्याप्ती च, अक्षय:-बिष्णः ।।३६५।। मशी-पसि-वस्यनिभ्यस्तादिः ॥३६०॥
चायेः केक च ॥३६६॥ 25 एभ्यस्तकारादियः प्रत्ययो भवति । मंत् प्राणत्यागे,
चायग पूजानिशामनयोः इत्यस्माद् अयः प्रत्ययो भवत्यमर्त्य:-मनुष्यः । शीङ् स्वप्ने, शत्यः-शकुनिः, संवत्सरः,
| स्य च केक् इत्यादेशो भवति । केकय:-क्षत्रियः ॥३६६॥ 65 अजगरश्च । पसि निवासे सौत्री दन्त्यान्तः, पस्त्यं-गहम।। लादिभ्यः कित् ॥३६७॥ वसं निवासे, वस्त्य:-गुरुः । अनक प्राणने, अन्त्य:-निर
लादिभ्यः किद् अय: प्रत्ययो भवति । लांक आदाने, वसितः, चण्डालादिश्च ।।३६०॥
लयः । पा पाने, पयः । ष्णांक शौचे, स्नयः । देङ् पोलने, 30 ऋशि- जनि-पुणि- कृतिभ्यः कित् ॥३६१॥
दयः । धे पाने, धय: । मेंङ् प्रतिदाने, मयः । के शब्दे एभ्यः किद् यः प्रत्ययो भवति । ऋश् गतौ स्तुतौ वा
कयः । खें खदने, खयः। श्रां पाके श्रयः । क्षे-जै-से क्षये, 70 स्वरादिस्तालव्यान्तः, ऋश्य:-मृगजातिः । जनैचि प्रादु
क्षयः जयः सयः । बैङ् पालने त्रयः । ओवै शोषणे वयः । र्भावे, जन्य-संग्रामः । जाया-पत्नी, ये नवा इत्यात्वम् ।
इत्यादि ॥३६७॥ पुणत् शुभे, पुण्यं-सत्कर्म । कृतत् छेदने, कृन्ततीति- कसेरलादिरिन्चास्य ॥३६८॥ 35 कृत्या-दुर्गा ।।३६१।।
कस गती इत्यस्मादलादिरयः प्रत्ययो भवत्यकारस्य कुलेडू च वा ॥३६२।।
चेकारो भवति । किसलयं-प्रवालम् ।।३६८।। कुल बन्धुसंस्त्यानयोः, इत्यस्मात् किद् यः प्रत्ययो वृङः शषौ चान्तौ ॥३६६॥ भवति-डकारश्चान्तादेशो वा भवति । कुड्य-भित्तिः। वृश् संभक्ती इत्यस्मात् कि अयः प्रत्ययो भवति, शकारकुल्या-सारणी ॥३६॥
| षकारी चान्तौ भवतः । वृशयं-देशनाम, आकाशम्, Aho! Shrutgyanam
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३०
स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
आसनं-च । वृषयः-आशयः ॥३६६॥
वींक प्रजननादौ इत्यस्मात्तकारादिणिद् आलीयः प्रत्ययो गय-हृदयादयः ॥३७०॥ भवति । वैतालीयं-छन्दोजातिः ॥३७८।।
40 गय-हृदयादयः शब्दा: किदयप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते। गमे- धाग-राजि-श-रमि-याज्यर्तेरन्यः ॥३७॥ डिच्च, गयः-प्राणः, गया-तीर्थम् । हरतेर्दोऽन्तश्च, हृदयं- एभ्यः अन्यः प्रत्ययो भवति । डुधांगक धारणे च, 5 मनः, स्तनमध्यम् च । आदिशब्दात् गणेरेयः, गणेयं गण- धान्यं सस्यजातिः । राजग दीप्तौ, राजन्यः-ज्योतिः, नीयमित्यादि ।।३७०॥
अग्निः, क्षत्रियश्च । शश हिंसायाम, शरण्यः-बाता। रमि मुचे ध्य-घुयौ ॥३७१॥
क्रीडायाम्, रमण्यं-शोभनम् । यजी देवपूजादौ, याजन्य:- 45 मुचलंती मोक्षणे, इत्यस्माद् धितौ अय उय इति प्रत्ययौ क्षत्रियः, यज्ञश्च । ऋक् गतौ अरण्यं-वनम् ॥ ३७६।। किती भवतः। मुकय: मुकुयश्च-अश्वतरादश्वायां जातः । हिरण्य-पर्जन्यादयः ॥३०॥ 10 घित्करणं कत्वार्थम् ॥३७१।।
हिरण्यादयः शब्दा अन्यप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते। हरतेकुलि-लुलि-कलि-कषिभ्यः कायः ॥३७२॥
रिचातः । हिरण्यं-सुवर्णादि द्रव्यम् । परिपूर्वस्य पृषू एभ्य: किद् आयः प्रत्ययो भवति । कुल बन्धुसंस्त्या
सेचने इत्यस्योपसर्गान्तलोपो धातोश्च जः समस्तादेशः, 50 नयोः, कुलायः-नीडम् । लुलि: सौत्रः, लुलाय:-महिषः ।
| गर्जतेर्वा गकारस्य पकारः। पर्जन्यः-इन्द्रः, मेघः, शकुः, कलि शब्दसंख्यानयोः, कलाय:-त्रिपुटः । कष हिसायाम्,
पुण्यं, कुशलं च कर्म । आदि ग्रहणादन्येऽपि ।।३८०॥ 15 कषाय:-कल्कादिः ॥३७२।।
वदि-सहिम्यामान्यः ॥३८१॥ श्रु-दक्षि-गृहि-स्पृहि-महेराय्यः ॥३७३ ।
आभ्याम् आन्यः प्रत्ययो भवति । वद व्यक्तायां वाचि, एभ्यः आय्यः प्रत्ययो भवति । श्रंट श्रवणे, श्रवाय्यः
वदान्य:-दाता, गुणवान्, चारुभाषी वा। षहि मर्षणे, 55 यज्ञपशुः, ग्रहणसमर्थश्च श्रोता । दक्षि हिंसागत्योः दक्षाय्य:- सहान्यः-शैलः ॥३८१॥
अग्निः , गृध्रः, वैनतेयः, दक्षतमश्च । गृहणि ग्रहणे, वृङ एण्यः ॥३८२॥ 20 गृहयाय्यः- वैनतेयः, गृहकर्मकुशलश्च । स्पृहण ईप्सायाम्, | वृश् संभक्तो, इत्यस्माद् एण्यः प्रत्ययो भवति ।
स्पृहयाय्य:-स्पृहयालु घृतं च, स्पृहयाय्यानि-तृणानि च, वरेण्यः-परंब्रह्म, धाम, श्रेष्ठः, प्रजापतिः, अन्नं च अहानि च । महण पूजायाम् । महयाय्य:-अश्वमेधः ।।३८२॥ ॥३७३॥
मदेः स्यः ॥३८३॥ दधिषाय्य-दोधीषाय्यौ ॥३७४॥
मदैच् हर्षे, इत्यस्मात् त्स्यः प्रत्ययो भवति । मत्स्य:25 एतो आय्यप्रत्ययान्तौ निपात्येते । दधिपूर्वात् स्यते: । मीनः, धूर्तश्च ।।३८३।।
षत्वं च । दधिषाय्यं-पृषदाज्यम्, मृषावादी च । दीव्यते- रुचि-भूजिभ्यां फिष्यः ॥३८४॥ र्दीधीष च, दीधीषाय्यं तदेव ॥३७४।।
रुचि-भुजिभ्यां किद् इष्य: प्रत्ययो भवति । रुचि 65 कौतेरियः ॥३७॥
अभिप्रीत्यां च, रुचिष्यः-वल्लभः, सुवर्णं च । भुजंप पालनाकुंक शब्दे इत्यस्माद् इयः प्रत्ययो भवति । कवियं- भ्यवहारयोः, भुजिष्यः-आचार्यः, भोक्ता, अन्नं, मृदु, 30 खलीनम् ॥३७॥
ओदन:- दासश्च, भुजिष्यं-धनम् ॥३८४।। । कृगः कित् ॥३७६॥
वार्थभ्यामुष्यः ॥३८॥ डुकंग करणे इत्यस्मात् किद् इयः प्रत्ययो भवति ।। आभ्याम् उष्यः प्रत्ययो भवति । वचंक भाषणे, वचुष्य:- 70 क्रिय:-मेषः ॥३७६।। .
वक्ता । अर्थणि उपयाचने, अर्थष्यः-अर्थी ॥३८॥ मृजेर्णालीयः ॥३७७॥
वचोऽथ्य उत् च ॥३८६॥ 35 मृजौक शुद्धौ, इत्यस्माद् णदालीयः प्रत्ययो भवति। वचंक भाषणे, इत्यस्मादथ्यः प्रत्ययो भवत्यस्य च उद
मार्जालीयम्-पापशोधनम्, मार्जालीय:-अग्निः, मृजोऽस्य इत्यादेशो भवति । उतथ्यः-ऋषिः ॥३८६।। वृद्धिरिति वृद्धिः । णकार उत्तरार्थः ।।३७७।।
भी-वृधि-रुधि- वज्य- गि- रमि- वमि-वपि-75 वेतेस्तादिः ॥३७८॥
| जपि- शकि- स्फायि- वन्दीन्दि- पदि-मदि- मन्दिAho! Shrutgyanam
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
afa - दसि - घसि नसि- हस्यसि वासि दहि- बुद्धिः । चुप मन्दायां गतौ, चुप्र:- वायुः । क्षिपत् प्रेरणे, सहिभ्यो रः ॥ ३८७॥ क्षिप्रं - शीघ्रम् | क्षुपि सादने सौत्र, क्षुप्रं तुहिनं, कण्टकिगुल्मकश्च । क्षुपी संपेषे, क्षद्रम्-अणु, जलगर्तश्र्च, क्षुद्रा मधुकर्यः, क्षुद्रः, हिंस्रः । मुदि हर्षे, मुद्रा-चिह्नकरणम् । रुदृक् अश्रुविमोचने, रुद्रः - शम्भुः । छिपी द्वैधीक- 45 रणे, छिद्र - विवरम् । भिपी विदारणे, भिद्रम् - अदृढम् भिद्रः शरः । खिदंत् परिघाते, खिद्रम् - विघ्नः, खिद्र:विषाणम् विषादः, चन्द्रः, दीन । उन्दै क्लेदने, उद्र:ऋषिः, मत्स्यश्व । संपूर्वात् समुन्दन्ति - आर्द्रीभवन्ति वेलाकाले नद्योऽस्मादिति समुद्रः सागरः । भीमादित्वाद - 50 पादाने । दम्भूट् दम्भे, दभ्रः - अल्पः, चन्द्रः, कुशः, कुशल:, सूर्यश्व । शुभि दीप्ती शुभ्रः - अवदात: । उम्भत् पूरणे, उभ्रः - मेघः पेलवव । दंशं दशने दश्र:- दन्तः, सर्पश्च । चिगट् चयने. चिरम् - अशीघ्रम् । षिग्ट् बन्धने, सिरा- रुधिरस्रोतोवाहिनी नाडी । वहीं प्रापणे, उह:- 55 अनवान् । विसच् प्रेरणे विस्त्रम् - आमगन्धि । वसं निवासे, उस्र:- रश्मिः । बाहुलकात् षत्वं न भवति । उस्त्रा-गौः । शुच शोके, शुक्र :- ग्रहः मासः, शुक्लश्च, शुक्रं- रेतः, लत्वे शुक्लः- वर्ण:, कत्वं न्यङ्कादित्वात् । षिवू गत्याम्, सिघ्रःसाधुः, वृक्षः, मांसप्रभेदश्च । गृधूच् अभिकाङ्क्षायाम्, 60 गृध्रः- श्येनः, लुब्धकः कङ्कश्च । ञिइन्धैपि दीप्ती, विपूर्वात्, वीध्रः - अग्नि, वायुः, नभः, निर्मल:, पूर्णचन्द्रमण्डलं च । श्विताङ् वरणे, श्वित्रं श्वेतकुष्ठम् । वृतङ् वर्तने । वृत्र: - दानवः - बलवान् रिपुश्च वृत्रं - पापम् । णीं प्रापणे, नीरं जलम् । शी स्वप्ने, शीर:- 65 अजगरः । पुंग्ट् अभिषवे, सुर:-देवः, बुङौच् प्राणिप्रसवे सूरः - आदित्यः रश्मिश्र इ-धाग्भ्यां वा ॥ ३८६ ॥ आभ्यां रः प्रत्ययो भवति, स च किद्वा । इंण्क् गतौ, इरा-मदनीयपानविशेषः मेदिनी च, एरा - एडका । दुधां- 70 ग्क् धारणे च धीरः सत्त्ववान् धृतिमांच, धाराजलयष्टि:-खड्गावयवः, अश्वगतिविशेषश्च ।। ३८६ ।।
एभ्यः रः प्रत्ययो भवति । त्रिभक् भये, भेर:- भेदः, करभ:, शरः, मण्डूकः, दुन्दुभिः कातरश्च । ऋफिडादित्वाद् 5 लत्वे, भेल:- चिकित्साग्रन्थकारः, शरः, मण्डूकः, प्रहीण:अप्राज्ञश्व । वृधूङ् वृद्धौ, वर्ध: - चर्मविकारः, चन्द्रः मेघच । रुपी आवरणे, रोधः - वृक्षविशेषः । वज गतौ, वज्र - कुलिशम्, रत्नविशेषश्च । अग कुटिलायां गतौ, अग्र:प्राग्भागः, श्रेष्ठश्च । रमि क्रीडायाम्, रम्रः - कामुकः 10 टुवमू उद्गिरणे, वम्र :- धर्मविशेष: घूमश्र, वम्री - उपदेहिका । डुवपी बीजसंताने, वप्रः - केदार:, प्राकारः, वास्तुभूमिश्च । जप मानसे च, जत्र: - ब्राह्मणः, मण्डूकच । शक्लृट् शक्ती, शक्रः- इन्द्रः । स्फार्य वृद्धी, स्फारम्उवणं, प्रभूतं च । वदुङ् स्तुत्यभिवादनयोः, वन्द्र:- वन्दी, 15 केतु:, कामश्च वन्द्र - समूहः । इदु परमैश्वर्ये, इन्द्रः - शक्रः पदिच् गतौ, पद्रं - ग्रामादिनिवेशः, शून्यं च । मदैच् हर्षे मद्राजनपदः, क्षत्रियश्व मद्र - सुखम् । मदुङ्, स्तुत्यभिवादनयो:, मन्द्रः- मधुरः स्वरः, मन्द्रं गभीरम् । चदु दीप्त्याह्लादनयोः, चन्द्र:- शशी, सुवर्णं च । दसूच् उपक्षये, दस्र:20 शिशरम्, चन्द्रमाः, अश्विनोर्ज्येष्ठव, दस्रौ - अश्विनौ । घस्लृ अदने घस्र:- दिवस: । णसि कौटिल्ये नस्र:नासिकापुटः, ऋषिव । हसे हसने, हस्र:-दिनं, घातुकः, हर्षलच, हस्रं - बलाघानं संनिपातश्च सहस्त्र - दश शतानि । असूच् क्षेपणे, अस्त्रम् - अश्रु । वासिच् शब्दे, 25 वास्र: पुरुष:, शब्द:, संघातः, शरभः, रासभः पक्षी च वास्त्रा- धेनुः । दहं भस्मीकरणे, दहः अग्निः शिशुःसूर्यच । षहि मर्षणे, सहः शैलः ।। ३८७।।
।
ऋज्यजितश्चि वश्चि रिपि सृपितृपि दृपि चुपक्षिपि क्षुपि क्षुद- मुदि- रुदि- छिदि- भिदि- खिद्यु30 न्दि- दम्भ- शुम्पुम्भ- दंशि चि सि वहि विसि afe शुचि - सिधि गृधि- वीन्धि- शिवति वृति- नी शी- सु- सुभ्यः कित् ॥ ३८८ ॥
एभ्यः किद्रः प्रत्ययो भवति । ऋषि गतिस्थानार्जनोपार्जनेषु, ऋज्रः - नायकः इन्द्रः, अर्थश्च । अज क्षेपण 35 च, अज्र : - वीरः, विक्रान्तः । तञ्चू वञ्चु गतौ तक्रम्उदश्वित्, वक्र:- कुटिलः, अङ्गारकः, विष्णुश्च । उभयत्र न्यङ्कादित्वात् कत्वम् । रिपिः सौत्रः रिप्रं कुत्सितम् । सृप्लृ गतौ, सृप्र: - चन्द्रः, सृप्रं-मधु, सृप्रा-नाम नदी । तृपौच् प्रीतौ, तृप्रं-मेघान्तधर्मः, आज्यं, काष्ठं, पापं, 40 दुःखं वा । दृपौच् हर्षमोहनयो:, दृप्रं बलं दुःखं च दृप्रा
|
सुरा - मद्यम् । ॥३८८||
३१
चुम्बि-कुम्बि-तुम्बेर्नलुक् च ।। ३६०||
एभ्यः किद्रः प्रत्ययो भवति, नकारस्य चैषां लुग् भवति । चुबु वक्त्रसंयोगे चुबं वक्त्रम्, चुम्ब्रः- रश्मिः । 75 कुबु आच्छादने, कु-संकटम्, भग्नपृष्ठः, फल्गुहस्ती, चर्म, गृहाच्छादनं च । तुबु अर्दने, तु कुटिलम् ||३०||
भन्देव || ३६१ ॥
भदुङ् सुख कल्याणयो:, इत्यस्माद्रः प्रत्ययो भवति, नकारस्य च लुग्वा भवति । भद्रं भन्द्रं च - कल्याणम्, 80 Aho! Shrutgyanam
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
सुखं च ॥३६१॥
गुपच व्याकुलत्वे, आदे: कत्वं च, कुप्रं-गहनम्, गृहाच्छादनं चि-जि-शु-सि-मि-तम्यमर्दोश्च ॥३६॥ च । ट्वोश्वि गतिवृद्ध्यो: अकार: भोऽन्तश्च, श्वभ्रं- 40
बिलम्, आकाशं च आप्लुट व्याप्ती, अभादेशश्च अभ्रं... एभ्यो रः प्रत्ययो भवति दीर्घश्चषां भवति । चिंगट चयने, चीरं-जीणं वस्त्रं, वल्कलं च । जि अभिभवे.
मेघः । ध्र गश कम्पने, मोऽन्तश्च, धूम्र:-वर्णविशेषः ।
अहुङगतौ, धश्च अन्ध्रः-क्षत्रजातिः । रधेः स्वरान्नोऽन्तश्च, 5 जीर:-अजाजी, अग्नि:, वायुः, अश्वश्च, जीरम्-अन्नम्,
रन्ध्र-छिद्रम् । जिइन्धपि दीप्तो, अस्य च तालव्यादिलत्वे जील:-चर्मपुटः । शं गतो, शूरः-विकान्तः ।
शिलश्चादिः, शिलिन्ध्रम्-उद्भिद्विशेषः, ओणेः उश्च, 45 षिग्ट् बन्धने, सीरं-हलम, सीरा-हलविलेखिता लेखा।
औड्रः-क्षत्रजातिः। पुणेः स्वरान्नोऽन्तो डश्च, पुण्ड्रःडुर्मिग्ट प्रक्षेपणे, मीरः-समुद्रः, मीरं--जलम्, मीरा
क्षत्रजातिः, तिलकश्च । पुण्डेर्वा रूपम्। तिजेवो दीर्घश्च, मांस्पचनी, देवसीमा च । तमूच काङ्क्षायाम्, ताम्र:-वर्णः,
तीवते, तीव:-तीक्षण, उत्कृष्टश्च । नियो वोऽन्तश्च, 10 शुल्वं च । अम गतो, आम्रः-वृक्षः । अर्द गतियाचनयोः,
नीवतेर्वा, नीव-गृहच्छदिरुपान्तः । श्यैङ ईत्व यलोपो आर्द्र-सरसम् ।।३६२॥
घश्चान्तः, शीघ्रः-त्वरितः। उवेरुळ ग: कित्, उग्रः- 50 चकि-रमि-विकसे-रुच्चास्य ॥३६३॥
रुद्रः, रौद्रश्च । तूदीत् व्यथने, ग: किच्च तुग्रं- शङ्गम् । चकि-रमिभ्यां विपूर्वाच्च कसे र: प्रत्ययो भवति । भुजा पालनाभ्यवहारयोः गः किच्च, भुग्रः-रश्मिसमूहः । अकारस्य चैषामुकारो भवति। चकि तप्तिप्रतिघातयो: णिदु कुत्सायाम्, किन्नलोपश्च, निद्रा-स्वापः । तमूच 15 चुक्र:-अम्लो रसः, बीजपुरकम् इञ्जिका, असुरः, नि- | काङ्क्षयाम्, दोऽन्तश्च, तन्द्रा-आलस्यम् । षद्लू विशरण
मन्त्रणं च । रमि क्रीडायाम, झम्रः--सुन्दरः, आदित्यसारथिः । गत्यवसादनेषु, अस्य स्वरान्नोऽन्तो वृद्धिश्च; सान्द्र-धनम् । 55 ब्राह्मणः, विनाशश्च । कस गती, विकून:-चन्द्रः, समुद्र श्व,
गुदे: स्वरान्नोऽन्तश्च, गुन्द्रा-जलतणविशेष: । राजे रजेर्वा विकुस्र-पुष्पितम् । बाहुलकाद् विकसेविकल्पः, विकस्रः किच्चेच्चोपान्त्यस्य, रिज्रः- नायकः । आदिग्रहणादन्येऽपि ।।३६३॥
॥३६६॥ 20 शदेरूच्च ॥३६४॥
ऋच्छि -चटि-वटि कुटि-कठि-वठि-मठ्यडि-शी-कृ
शी-भृ-कदि-बदि-कन्दि-मन्दि-सुन्दि-मन्थि-मञ्जि-पञ्जि-60 शद्लं शातने, इत्यस्माद् रः प्रत्ययो भवत्यकारस्य जि -कमि-समि-चमि-वमि-भ्रम्यमि-देव-वासिचोकारो भवति । शुद्र:-चतुर्थो वर्णः ।। ३६४॥
काति-जीवि-बबि-कु-शु-दोररः ॥३६॥ कृतेः ऋ- कृच्छौ च ॥३६५॥
एभ्यः अरः प्रत्ययो भवति । ऋच्छत् इन्द्रियप्रलयमूर्तिकृतत् छेदने, इत्यस्माद् र: प्रत्ययो भवत्यस्य च क्रू भावयोः, ऋच्छर:-त्वरावान् ऋच्छरा- वेश्या, कुलटा, 25 कृच्छ्र इत्यादेशो भवतः । करम्-अमृदु, कर:-पापकर्मा ।
त्वरा, अगुलिश्च । चटण भेदे चटर:- तस्करः । वट 65 कृच्छ्रम्-दुःखम् ॥३६५॥
वेष्टने, वटर:-मधुकण्डरा। कुटत् कौटिल्ये, कोटरं-छिद्रम् । खुर-क्षुर-दूर-गौर-विप्र-कुप्र-श्वभ्राभ्र-धूम्रान्ध्र- बाहलकाद् गूणः । कठ कृच्छ्रजीवने, कटरः-दरिद्रः । वठ रन्ध्र-शिलीन्ध्रौड़-पुण्ड-तीव्र-नीत-शीघ्रोग्र-तुग्र-भुन- स्थौल्ये. वठर:-मुर्खः, ब्रहद्देहश्च । मठ मदनिवासयोश्च,
निद्रा-तन्द्रा-सान्द्र-ग्रन्द्रा-रिज्रादयः ॥३६६॥ मठर:-ऋषिः, अज्ञानी, गोत्रम्, अलसश्च । अड उद्यमे, 30 एते रप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते। खुरत् छेदने, क्षुरत् विले- अडर:-वृक्ष:- शीकृङ् सेचने, शीकर:-जललबसेकः। 70
खने, अनयो रलोपो गुणाभावश्च । खूर:-शफः, क्षर:-नापित- शीभङ कत्थने, शीभर:- हस्तिहस्तमुक्तो जललवसेकः । भाण्डम् । ननु च खुर-क्षुरशब्दो 'नाम्युपान्त्यप्री-क-ग-ज्ञ: कदिः सौत्रः, कदर:-वृक्षविशेषः । बद स्थर्ये, बदरी-फलकः' [५१.५.४] इति केन सिध्यतः। सत्यम्, तत्र कर्तवार्थ इह ! वृक्षः। कदुइ वैकलव्ये, कन्दरः-गिरिगर्तः। मदुङ् स्तु
तु संप्रदानाच्चान्यत्रोणादय इत्यर्थभेदः असर्वविषयत्वं वाऽन- त्यादौ, कन्दर:-शैलः। सुन्दिः सौत्र: शोभायाम्, सुन्दरः:35 योप्यिते, यथा अदे: परोक्षायां वा धस्लादेशवचनेन घसे: । मनोज्ञः । मन्थश विलोडने, मन्थर:-मन्दः, खर्वश्च । 75
एवमन्यत्रापि स्वयमभ्यूह्यम् दुर्पदिणो लुक च । दुरंमञ्जिपञ्जी सौत्री, मञ्जरी-आम्रादिशाखा । गौरादित्वाद् विप्रकृष्टम् । गवतेर्वृद्धिश्च, गौर:-अवदात: । विपूर्वात्पाते- डी:, पञ्जर:- शुकाधवरोधसद्म। पिजुण-हिसाबलदानलक च विप्रः-ब्राह्मणः । विविध प्रातीति वा विप्रः । निकेतनेषु, पिञ्जर:-पिशङ्गः, कमूङ् कान्ती, कमर:-मूखः,
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
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कार्मुकं, कोमल:, चौरः, कान्तश्च । षम वैक्लव्ये, समर:- | मकर:-ग्राहः । शंपूर्वात् किरतेडिच्च, शङ्कर:-रुद्रः । कृपेसंग्रामः । चमू अदने, चमर:-आरण्यपशुः । टुवमू उगिरणे, | रुपान्त्यस्य उर्च वा, कपर-कपालम् । कूपरं-कफोणी। वमर:-दुर्मेधाः । भ्रमुच् अनवस्थाने, भ्रमरः-षट्पदः । ताम्यतेरत ओच्च, तोमरः-आयुधम् । पातेर्मोन्तश्च, पामरःअम गतौ, अमर:-सुरः । देवृङ् देवने, देवर:-पत्यनुजः । ग्रामीणः । प्रपूर्वादमतेः प्रामर:-ग्राम्यमन्दजातिः । प्रपूर्वा5 वसं निवासे, णो वासरः-दिवसः, कामः, अग्निः, प्रावृट् | दत्तोऽन्तश्च प्रामर:-नरपशुः। सहिनश्योर्ग च, सगर:- 45
च । अन्ये वाशिच शब्दे इत्यस्मादपि तालव्यान्तादिच्छन्ति, द्वितीयश्चक्रवर्ती । नगरं-पुरम् । तङ्गेर्नलोपश्च, तगर:-वृक्षवाशरः-अग्निः, मेघ:, दिवसश्च । कासृङ् शब्दकुत्सायाम् | बिशेषः । ऊर्जः पराद् दृणातडित् जलूक च, ऊर्जा-बलेन कासर:-महिषः । ऋक गतौ, अरर:-कपाटः, बुधः, दृणाति बिभेति । ऊर्दर:-दुर्बलः। अदु बन्धने, नलुक च, भ्रमरः, गृहं, हरणं, शलाका च । जीव प्राणधारणे, जीवर:- अदरं-वृक्षः, वृक्ष:, सग्रामः, चञ्चुसमूहः, मातृवाहश्च । दीर्घायुः । बर्ब गती, बर्बर:-म्लेच्छजाति:, बर्बरी-कुञ्चिताः शश् हिंसायाम्। दश विदारणे अनयोह्रस्वत्वं दश्चान्त:, 50 केशाः । कुक शब्दे, कबर:-वर्णः, कबरी-वेणिः । शुं गतो, शृदर:-सर्पः । दृदरः- भयं विषं च । दुकंग करणे, शबर:-म्लेच्छजातिः । शव गती इत्यस्येत्यन्ये । टुकुंद | दोऽन्तश्च कुदर:- वृक्ष:- सर्वकर्मप्रवृत्तो दस्युजनः, कुशूलश्च । उपतापे, दबर:- गुण: ॥३६७॥
कुपूर्वात् स्कुदुङ् आप्रवणे, सलोपश्च, कुकुन्दरं-श्रोणीकूपकः । अवेध च वा ।।३९८॥
गोपूर्वाद् वृगो डिद् रश्चादिः, गोर्वर:-करीषः । अमेोऽन्तश्च, 15 अव रक्षणादी, इत्यस्माद् अरः प्रत्ययो भवति-धकार- अम्बरं-वस्त्रम्, आकाशं च । महे: ख च, मुखर:-वाचालः। 55
श्वान्तादेशो वा भवति । अधर:-हीन:, उपरिभागस्य खनेडिच्च, खर:-रासभः । दहेरादेर्डश्च, डहरं-हृत्कमलम् । प्रतियोगी दन्तच्छदश्च । अवर:-परप्रतियोगी ॥३६॥ कूज अव्यक्ते शब्दे, ह्रस्व: स्वरान्नोऽन्तश्च, कुञ्जरः-हस्ती। मृधुन्दि-पिठि-कुरि-कुहिभ्यः कित् ॥३६॥
अजेरगश्चान्त: वीभावाभावश्च । अजगरः-शयुः । आदिएभ्य अरः प्रत्यय: किद् भवति । मृदश् क्षोदे, मृदरःग्रहणात् कोठराडङ्गरशाङ्गरपाण्डरवानरादयो भवन्ति
60 20 व्याधिः, अतिकाय:, क्षोदश्च । उन्दप् क्लेदने, उदरं-जठर,
॥४०३॥ व्याधिश्च । पिठ हिंसासक्लेशयोः, पिठरं-भाण्डम् । कुरत्
मुदि-गरिभ्यां टिद्रजौ चान्तौ ॥४०४॥ शब्दे, कुरर:-जलपक्षिजातिः । कूहणि विस्मापने, कुहर
___ आभ्यां टिद् अरः प्रत्ययो भवति गकार-जकारौ वा गम्भीरगर्त: ।।३६६।।
यथासंख्यमन्ती भवतः । मुदि हर्षे, मुद्गरः-प्रहरणविशेषः, शाखेरिदेतौ चातः॥४००॥
मुद्री-स्त्री । गूरैचि गतौ, गुर्जरः-सौराष्ट्रादिः, गूर्जरी स्त्री ॥४०४॥
65 25 शाख व्याप्ती, इत्यस्माद् अर: प्रत्ययो भवति-आका
___ अग्यङ्गि-मदि-मन्दि- कडि-कसि- कासि-मजिरस्य च इकार-एकारी भवतः । शिखरम्-अग्रम्, शेखर:
कञ्जि- कलि-मलि-कचिभ्य आरः ॥४०॥ आपीडः ।।४००॥
एभ्यः आर: प्रत्ययो भवति । अग कुटिलायां गतो, शपेः फ् च ॥४०१॥
अगारं-वेश्म । अगु गतो. अङ्गार:-निर्वातज्वाल:, निर्वाणशपीं आक्रोशे, इत्यस्माद् अर: प्रत्ययो भवति ।
श्वोल्मकावयवः, भूमिसुतश्च । मदेच् हर्षे, मदार:- 70 30 फकाराश्चान्तादेशो भवति । शफर:-क्षुद्रमत्स्य: ।।४०१।।
पानशौण्डः, वराहः, हस्ती, अलसश्च । मदुङ् स्तुत्यादी, दमेणिद्वा दश्च डः ॥४०२॥
मन्दारः-वृक्षविशेषः । कडत् मदे, कडार:-पिङ्गल:, दमूच उपशमे, इत्यस्माद् अर: प्रत्ययो भवति, सच
विषमदशनश्च । कस गतो, कसार:- हिंस्रः । कासङ् शब्दणिद् वा दकारस्य च डकारो भवति । डामरः-भयानकः,
कुत्सायाम्, कासार:-पल्वलम् । मुजोक् शुद्धौ, मार्जार:डमरः स एव ।।४०२।।
बिडालः। कञ्जिः सौत्रः, कार:-कुशूल जातिः, यूपः, 75 35 जठर-क्रकर-मकर-शंकर-कर्पर-कर्पर-तोमर-पामर- व्यञ्जनं च । कलि शब्दसंख्यानयोः, कलार:-विषमरूपः ।
प्रादर-सगर-नगर-तगरोदरा-दर-शदर-दर-कृदर- मलि धारणे, मलार:-अलस । मलमिवारा तोदोऽस्येति कुकुन्दर-गोर्वराम्बर-मुखर-खर-डहर-कुञ्जराजगरा- वा मलारः । कचि बन्धने, कचारः-अपनेयः, तृणबुसपांशुदयः ।।४०३।।
विकारः ॥४०॥ एते किदरप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । जनेष्ठ च, जठर- त्रः कादिः ॥४०६॥ 40 कोष्ठम् । क्रमेक च, ककर:-गौरतित्तिरः । मकेर्नलोपश्च, तु प्लवनतरणयोः, इत्यस्मात् ककारादिरारः प्रत्ययो
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ।
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भवति । तारः-वृक्षः ॥४०६॥
प्लुतिगतो, शिशिरं-शीतलम्, ऋतुश्च ॥४१३॥ कृगो मादिश्च ॥४०७॥
श्रन्थेः शिथ् च ॥४१४॥
40 करोतेर्मकारादि: ककारादिश्च आरः प्रत्ययो भवति । - श्रथुङ् शैथिल्ये, इत्यस्माद् इरः प्रत्ययो भवत्यस्य च कर्मार:-लोहकारः। कर्कार:-वृक्षः ॥४०७।।
शिथ् इत्यादेशो भवति । शिथिर-श्लथम् । लत्वे-शिथिलम् 5 तुषि-कुठिभ्यां कित् ॥४०॥
।।४१४।। आभ्यां किद् आर: प्रत्ययो भवति । तुषंच तुष्टी, अणित् ।।४१५॥ । तुषार:-हिमम् । कुठिः सौत्रः, कुठार:-परशुः ॥४०॥ . अश्नातेरश्नोतेर्वा णिद् इरः प्रत्ययो भवति । आशिर:- 45 कमेरत उच्च ॥४०॥
| विष्णुः, आदित्यश्च । प्राशिर:-बह्वाशी ।।४१५।। कमूङ् कान्तौ इत्यस्माद् आर: प्रत्ययो भवत्यकारस्य
शुषीषि-बन्धि-रुधि-रुचि-मुचि-मुहि-मिहि-तिमि10 चोकारो भवति । कुमार:-महासेनः, अभ्रष्टः, बालश्च
मुदि-खिदि-च्छिदि-भिदि-स्थाभ्यः कित् ॥४१६॥ ॥४०६।।
एभ्यः किदिरः प्रत्ययो भवति । शुषंच शोपणे, शुषिरकनेः कोविद-कर्बुद-काश्चनाश्च ॥४१०॥
छिद्रम् । इषत् इच्छायाम्, इषरं-तृणम्, इषिरः-अग्निः , 50 कनै दीप्ती इत्यस्माद् आरः प्रत्ययो भवति, अस्य च |
आहारः-क्षिप्रः, सेव्यश्च । बन्धंश बन्धने, बधिरः-श्रुतिकोविद कर्बद काञ्चन इत्यादेशा भवन्ति । कोविदार:,
विकल: । रुपी-आवरणे रुधिरं-द्वितीयो धातुः । रुचि 15 कर्बुदारः, काञ्चनारश्च वृक्षविशेषाः ।।४१०।।
अभिप्रीत्यां च, रुचिरं-दयितं, दीप्तिमञ्च । मुलुंती
मोक्षणे, मुचिर:-धर्मः, सूर्यः, मेघश्च । मुहौच वैचित्ये, द्वार-शङ्गार-भङ्गार- कलार-कान्तार- केदार- महिर:-कन्दर्पः, सर्यश्च, महिरं-तमः । मिहं सेचने, 55 खारडादयः ॥४१॥
मिहिर:-मेघः, सूर्यश्च, मिहिरं-तोयम् । तिमच आर्द्रभावे, ___एते आरप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । उभत् पूरणे द्वादेशश्च, तिमिरं-तमः, तोयं, रोगश्च कश्चित् । मुदि हर्ष, मुदिरः
द्वार-द्वाः। श्रयतेस्तालव्यादिः शृङ्गश्च, शृङ्गार:-रसविशेषः, मेघः, सूर्यश्च । खिदंत् परिघाते, खिदिर:-त्रासः, तस्करश्च। 20 विदग्धता च । भृगो भृङग् च, भृङ्गार:-हस्तिमुखाकार
गा भृङग् च, भृङ्गारः-हास्तमुखाकार- छिपी द्वैधीकरणे, छिदिर:-उन्दुरः, अग्निश्च, छिदिरंगलन्तिका। कलेहश्च स्वरात्परः, कहार:-उत्पलविशेषः । ।
शस्त्रम् । भिदपी विदारणे, भिदिर:-अशनि:, भेदश्च । 60 कमेस्तोऽन्तो दीर्घश्च, कान्तारं-अरण्यम् । कदेः सौत्र- ष्टां गतिनिवृत्ती, स्थिर:-अचलः ।।४१६।। स्यात एच्च, केदारः-वप्रः । खदेडिच्च, खारी-चतुणिम् । स्थविर-पिठिर-
स्फिराजिरादयः ॥४१७॥ खारडिति डकारो ड्यर्थः । आदिग्रहणात् शिशुमारादयो 25 भवन्ति ।।४११॥
एते कित् प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते, तिष्ठतेर्वोऽन्तो
ह्रस्वश्च । स्थविरः-वृद्धः। पचतेरत इत्वं ठश्च पिठिरंमदि-मन्दि-चन्दि-पदि-खदि-सहि-वहि-कु-सभ्य |
साधनभाण्डम्, पठेर्वा रूपम् । स्फायतेडिच्च, स्फिर:-- 65 इरः ॥४१२॥
स्फारो, वृद्धिश्च । अजेर्वीभावाभावश्च, अजिरम्-अङ्गणम्, एभ्य इरः प्रत्ययो भवति । मदैच हर्षे, मदिरा-सूरा।। नगरं, देववेश्म च । आदिग्रहणादन्येऽपि ।।४१७।। मदुङ् स्तुत्यादौ, मन्दिरं-वेश्म, नगरं च । चदु दीप्त्या
क-श-प-पूग-मञ्जि-कुटि-कटि-पटि-कण्डि-शौण्डि30 ह्नादनयोः, चन्दिर:-चन्द्रमाः, हस्ती च, चन्दिरं-चन्द्रि-डिसिभ्यः ईरः॥४१॥ कावत्, जलं च । पदिच गतौ, पदिर:-मार्ग: । खद
एभ्य ईरः प्रत्ययो भवति। कत् विक्षेपे, करीरः- 70 हिंसायाम, खदिरः-वृक्षविशेष: । षहि मर्षणे, सहिरःपर्वतः। वहीं प्रापणे, वहिर:-बलीवर्दः। कुंक शब्दे,
वनस्पतिविशेष:, वंशाधङकुरश्च । शश हिमायाम, शरीरंकविर:-अक्षिकोणः। सं. गतौ, लत्वे सलिलम् -जलम्
वपुः । पृश्-पालनपूरणयोः । परीरं-बलं, लाङ्गलमुखं च । 35॥४१२॥
पूगा पवने, पवीरं-रङ्गस्थानं, फलं, पवित्र-बीजावपनं
च । मञ्जिः सौत्रः, मञ्जीरं-नुपूरः । कुटत् कौटिल्ये, कुटीशव-शरिचातः ॥४१३॥
रम्-आलयः, कर्कटक:, चन्द्राश्रयराशिश्च, कोटीरं-मुकुटः। 75 आभ्याम् इरः प्रत्ययो भवत्यकारस्य चेकारो भवति । बाहुलकाद् गुणः । कटे वर्षावरणयोः, कटीरं-जनपदः, शव गतौ तालव्यादिः, शिविरम्-सैन्यसंनिवेशः। शश जघन, जलं च । पट गतो, पटीरः-कन्दपः, पटीरं-कार्मकम् ।
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घविश- पुटि कुरिकुलिकाभ्यः कित् ॥४१६ ॥ एम्य: किदुईरः प्रत्ययो भवति । घस्लूं अदने क्षीरंदुग्धं मेघव । वशक् कान्तो, उशीरं वीरणीमूलम् । पुटत् संश्लेषणे, पुटीरः-कूर्मः । कुरत् शब्दे, कुरीरं-मैथुनं वेश्म च, कुरीर:- मालाविशेषः, कम्बलश्च । कुल बन्धुसंस्त्यानयोः, कुलीर:- कर्कटः । के शब्दे, कीर:- शुकः, 10 काश्मीरकश्च ॥ ४१६।।
स्वोपज्ञोणादिगणसूत्र विवरणम् ॥
20
स्फिक् च । कडु मदे, कण्डीरं - हरितकम् । शौण्ड गर्वे, शौण्डीर:- गर्वितः सत्त्ववान्, तीक्ष्णश्च । हिसुप् हिंसा याम्, हिंसी:- श्वापदः, हिंस्रव ||४१८ ॥
30
एते ईरप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । जनेर्बोऽन्तश्च, जम्बीर:वृक्षविशेष: । आप्नोतेर्भश्च आभीर :- शूद्रजातिः । गमेर्भः स्वरान्नस्तु वा, गभीर:- अगाधः, अचपलश्व । गम्भीरः स एव । स्कुम्भेः सौत्रात् सलोपश्च कुम्भीर:- जलचरः । भङ परिभाषणे, अस्य नलुक् 'वा, भडीर : भण्डीरव - | 25 योद्धृवचने । डोङो डित् द्वित्वं पूर्वस्य नोऽन्तव, डिण्डीर :फेनः । किरतेर्मोऽन्तश्च, किर्मीर:- कर्बुर: । आदिग्रहणात् तूणीर नासीर-मन्दीर-करवीरादयो भवन्ति ॥४२२||
|
वनि वपिभ्यां णित् ॥४२१॥
आभ्यां णिद् ईरः प्रत्ययो भवति । वन-भक्ती, वानीर:वेतसः । डुवपीं बीजसंताने, वापीर:- मेघः, अमोघ - निष्पत्तिक्षेत्रं च ॥ ४२१ ॥
कशेर्मोऽन्तश्च ॥ ४२० ॥
श्वशुर- कुकुन्दुर-दर्दुर-निचुर- प्रचुर- चिकुर कुकुर
कश शब्दे इत्यस्मात्तालव्यान्ताद् ईरः प्रत्ययो मश्चान्तो कुक्कुर कुर्कुर शर्कर- नूपुर- निष्ठुर- विथुर- मद्गुर- 50 भवति । कश्मीरा - जनपदः ॥४२० ॥
वागुरादयः ॥४२६।
एते किद् उरप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । आशुपूर्वात् शुप्पूर्वाद्वा अश्नोतेरश्न तेर्वा आकारलोपश्च । श्वशुरः- जम्पत्योः पिता । कुपूर्वात् स्कुदुङ् आप्रवणे, इत्यस्मात् सलुक् च, कुकुन्दरी - नितम्बकूपौ । दृणातेर्दोऽन्तश्च, दर्दुर:- मण्डूकः, 55 जम्बीराभीर- गभीर- गम्भीर - कुम्भीर - भडोर- मेघा निपूर्वात् प्रपूर्वात् चिनोतेः चरतेर्वा डिम्ब निचुर:भण्डीर - डिण्डीर- किर्मीरादयः ॥४२२ ॥
तरुविशेषः । लत्वे निचुलः प्रचुरं प्रायम् । चकेरिच्चास्य चिकुर युवतीनामीपन्निमीलितमक्षि, चिकुरा:- केशाः । कुकेः कोन्तो वा, कुकुरः- यादवः, कुक्कुरः- श्वा किरः कुर् कोऽन्तश्च कुर्कुरः-श्वा । शृश् हिंसायाम्, गुणः कोऽन्तश्च । शर्करस्तरुणः । 60 णूत स्तवने, पोऽन्तश्च । नूपुर:- तुलाकोटि: । निपूर्वात् तिष्ठतेः निष्ठुरः कर्कशः, निष्ठुर- काहलम् । व्यथेविथ् च, व्यथन्तेऽस्माज्जनाः इत्यपादानेऽपि विथुर:- राक्षसः । मदि वात्योर्गोऽन्तश्च मद्गुरः- मत्स्यविशेषः वागुरा-मृगानायः । आदिग्रहणान्मन्यतेर्धश्र, मधुरः- रसविशेष इत्यादि ॥ ४२६ । । 65 मीमसि पखिटि - खडि खजि - कजि सजि- कृपिवल्लि मण्डिभ्य ऊरः ॥ ४२७॥
वायसि वासिमसिमथ्युन्दि- मन्दि- चति चङ्auf -afa - चक-बन्धिभ्य उरः ॥४२३॥
एम्य उरः प्रत्ययो भवति । वाशिच् शब्दे वाशुरःशकुनिः, गर्दभश्व, वाशुरा - रात्रिः । असूच् क्षेपणे, असुर:दानवः । वासण् उपसेवायाम्, वासुरा-रात्रिः । मच् परिमाणे, मसुरा - पण्यस्त्री; मसुरं चर्मासनम् धान्यविशेषश्च । मथे विलोडने, मथुरा नगरी । उन्दै क्लेदने उन्दर:ॐ मूषिकः । मदुङ् स्तुत्यादी, मन्दुरा- वाजिशाला । चतेग् याचने, चतुर:- विदग्धः । चह्निः सौत्रः, चङ्कति चेष्टते, चङ्कुरः - रथः, अनवस्थितश्च । अकुङ् लक्षणे अङ्कुरःप्ररोहः तरुप्रतानभेदश्च । घञ्युपसर्गस्य बहुलमिति बहुलवचनाद् दीर्घत्वे अङ्करः । कबं गतौ, कर्बुरः - शबलः ।
३५
चकि तृप्ति प्रतिघातयोः, चकुरः- दशनः । बन्धश् बन्धने, 40 बन्धुरः- मनोज्ञः, नम्रश्च ॥४२३॥
मङ्केलुक् वोचास्य ॥४२४॥
मकुङ् मण्डन इत्यस्मादुरः प्रत्ययो भवति, नकारस्य लुक् अकारस्य चोकारो वा भवति । मुकुरः - आदर्शः, मुकुलं च, मकुरः- आदर्श:, कल्कः, बालपुष्पं च ॥५२४ ॥ विधेः कित् ॥४२५॥
45
विधत् विधाने, इत्यस्मात् किद् उरः प्रत्ययो भवति । विधुरं - वैशसम् ||४२५।।
|
एभ्य ऊर: प्रत्ययो भवति । मींच् हिंसायाम्, मयूर:शिखी । मह्यां रौति मयूर इति पृषोदरादिषु संज्ञाशब्दानामनेकधा व्युत्पत्ति लक्षयति । मच् परिमाणे, मसूर :- 70 अवर धान्यजातिः चर्मासनं च । पशिः सौत्रः पश्यते गम्यते इति पशूर:- ग्रामः । खट काङ्क्ष, खटूर:- मणिविशेषः । खडण् भेदे, खड्डूर:-खुरलीस्थानम् । खर्जं मार्जने च, खर्जूरः- वृक्षविशेषः । कर्ज व्यथने, कर्जूरः - स एव, मलिनश्च । सर्ज अर्जने, सर्जूरः - अहः । कृपौ सामर्थ्ये, 65 कर्पूर:- गन्धद्रव्यम् । वल्लि संवरणे, वल्लूरः - शुष्कमांसम् । मडु भूषायाम्, मण्डूरः- धातुविशेष: ।। ४२७ ।। Aho Shrutgyanam
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥ महि-कणि-चण्यणि-पल्यलि-तलि-मलि-शलिभ्यो ॥४३३।। णित् ॥४२८॥
। कोर- चोर- मोर-किशोर-घोर-होरा-दोरादयः एभ्यो णिद् ऊरः प्रत्ययो भवति । मह पूजायाम, ॥४३४॥ माहूरः-शैलः। कण गती काणर:-नाग: । चण हिंसा- कोर इत्यादयः शब्दा ओरप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । 5 दानयोश्च, चाणर:-मल्लो विष्णहतः । अण शब्दे, आणूर:- कायतेश्चरतेम्रियतेश्च डिच्च, कोर:-बालपुष्पम् । चोरः- 45 ग्राम: । पल गतौ, पालूरं नाम नगरमान्ध्रराज्ये । अली तस्करः। मोर:-मयूरः । कृशेरिच्चोपान्त्यस्य, किशोर:भूषणादी, आलूर:-विट: । तलण् प्रतिष्ठायाम्, तालूर:- तरुणः, बालाश्वश्च । हन्तेडित् घश्च घोरं-कष्टम् । हंग जलावर्तः । मलि धारणे, मालूरः-दानवः, बिल्वश्च । हरणे, होरा-निमित्तवादिनां चक्ररेखा । हुदांग दाने, शल गतो, शालूरः-दुर्दुरः ।।४२८।।
दोच् छेदने वा, दोरः-कटिसूत्र-तन्तुगुणश्च । आदिग्रहणा10 स्था-विडेः कित॥४२६॥
दन्येऽपि ।।४३४॥ आभ्यां किद् ऊरः प्रत्ययो भवति । ष्ठां गतिनिवृत्ती।। कि-श-वृभ्यः करः ॥४३५॥ स्थूर:-बठरः, उच्चश्व, स्थूरा-जयाप्रदेशः । विड आक्रोशे, एभ्यः करः प्रत्ययो भवति । कि: सौत्र:, केकर:-बक्रविडूर-बालवाये ग्रामः ॥४२६।।
दृष्टि: । शश हिंसायाम्, शर्करा-मत्स्यण्डिकादि:, कर्कश:, सिन्दूर-कच्चूर-पत्तूर-धुत्तूरादयः ।।४३०॥ क्षुद्रपाषाणावयवश्च । वगट वरणे, वर्कर.-छागशिशुः 15 एते ऊरप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । स्यन्दे: सिन्दू च, ।।४३५॥
सिन्दरं-चीनपिप्रम । करोतेश्चोऽन्तश्च, । कर्चर:- औषध- स-पषिभ्यां कित॥४३॥ विशेषः । पतेस्तोऽन्तश्च, पत्तरं-गन्धदव्यम् । धुवो द्विरुक्त- आभ्यां कित् कर: प्रत्ययो भवति । षूत् प्रेरणे, सूकरःस्तोऽन्तो ह्रस्वश्च, धुत्तर:-उन्मत्तकः, दधाते,त्तूर इत्यन्ये । वराहः । पुष पुष्टौ, पुष्कर, पद्म, तूर्यमुखं, हस्तिहस्ताग्रम्, आदिग्रहणात् कस्तूरहरादयो भवन्ति ।।४३०॥
आकाशं, मुरजः-तीर्थनाम च ॥४३६॥ 20 कु-गु-पति- कथि-कुथि-कठि-कुठि-कुटि-गडि-गुडि- __अनि-काभ्यां तरः ॥४३७॥ मुदि-मूलि-दंशिभ्यः केरः ॥४३१॥
आभ्यां कित् तरः प्रत्ययो भवति । अनक प्राणने, एभ्यः किद् एरः प्रत्ययो भवति । कुंङ् शब्दे, कुबेर:-- अन्तरं-बहिर्योगोपसंव्यानयोः,छिद्रमध्यविरहविशेषेषु च । के धनदः । गुंत् पुरीषोत्सर्गे, गुबेरं-युद्धम् । पतलू गतौ, शब्दे, कातरः-भीरुः ।।४२७॥
पतेर:- पक्षी, पवनश्च । कथण वाक्यप्रबन्धे, कथेर:- इण-पूभ्यां कित् ॥४३८॥ 25 कथकः, कुहकः, शकुन्तश्च । कुथच् पूतिभावे, कुथर:- आभ्यां कित् तर: प्रत्ययो भवति । इण्क् गतो, इतर:- 65
शिडाकीसंभारः । कठ कृच्छजीवने, कठेर:- दरिद्रः । कुठिः निर्दिष्टप्रतियोगी । पूग्श् पवने, पूतर:-जलतन्तुः सौत्रः, कुठेर:-निःमतसारः, अर्जकश्च । कुटत् कौटिल्ये, ॥४३८।। कुटेर:-शठः । गड सेचने, गडेर:-मेघः प्रस्रवणशीलश्च । मो-ज्यजि-मा-मद्य-शौ-वसि-किभ्यः सरः ॥४३६॥
गुडत् रक्षायाम्, गुडेर:-राजा, पण्यं च बालभक्ष्यम् । मुदि एभ्यः सरः प्रत्ययो भवति । मीङच् हिंसायाम्, मेसर:30 हर्षे, मुदेर:-मूर्खः । मूल प्रतिष्ठायाम्, मूलेरः-वनस्पतिः । वर्णविशेषः । जि अभिभवे, जेसर:-शूरः । अज क्षेपणे च, 70 मूलेरं-पण्यम् । दशं दशने, दशेर:-सपः, सारमेय:,
वेसर:-अश्वतरः । वेस गतो, इत्यस्य वा जठरेत्यादिजनपदश्च ॥४३१॥
निपातनादरे रूपम् । मांक माने, मासरः-आयामः । मदेच शतेरादयः ॥४३२॥
हर्षे, मत्सर.-क्रोधविशेषः । अशौटि व्याप्ती, अक्षरं-वर्णः, शतेर इत्यादयः शब्दा: केरप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । मोक्षपदम्, आकाशं च । अक्षेर्वा अरे रूपम् । वसं निवासे, 35 शद्लू शातने तश्च, शतेर:-वायुः, तुषारश्च । आदिग्रहणाद् वत्सरः, संवत्सरः, परिवत्सरः, अनुवत्सरः, विवत्सरः, 75 गुधेर-शङ्गबेर-नालिकेरादयो भवन्ति ।।४३२।।
उद्वत्सर:-वर्षाभिधानानि । इडामानेन वसन्त्यत्र कालाकठ-चकि-सहिभ्य ओरः ॥४३३॥
वयवा इति इडमंवत्सरः, इडया मानेन वसन्त्यत्रेति इडाएभ्य ओरः प्रत्ययो भवति । कठ-कृच्छ्रजीवने, कठोर:- वत्सर:-वर्ष विशेषाभिधाने परिवत्सरादीन्यपि वर्षविशेषाअमृदुः, चिरंतनश्च । चकि तृप्तौ च, चकोर:- पक्षिविशेषः भिधानानीत्येके । कि इत्यदादी स्मरन्ति, केसर:-सिंहसटः, 40 पर्वतविशेषश्च । षहि मर्षणे, सहोर:-विष्णः, पर्वतश्च | पुष्पावयवः, बकुलश्च । बाहुलकान्न षत्वम् ।।४३६॥
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
।
कृ-धू-तन्युषिभ्यः कित् ॥४४०॥
गुहेरच्चोत: गह्वरं-गहनं, महाबिलं, भयानक, प्रत्यन्तदेशश्च । एभ्य: कित् सर: प्रत्ययो भवति । डुकंग करणे, कृसरः | उपपूर्वात् ह्वो वादेलक च, उपह्वर-संधिः, समीपं, रह:-. कृसरा वा विलेपिकाविशेष: वर्णविशेषश्च । धूत विधूनने स्थान च । सम्पूर्वाद्य मेर्दश्च, संयद्वर:-रणः, संयमी, नृपश्च । धूसर:-भिन्नवर्णः-वायु:-धान्यविशेषश्च । तनूयी विस्तारे, | उन्दे: किदुम् चान्तः, उदुम्बर:-वृक्षविशेषः । आदिग्रहणाद् । तसर: कौशेयसत्रम । त गती अक्षर:-कण्टकः । उम्बरशम्बरादयो भवन्ति ।।४४४।। ऋत्विक् च, ऋक्षरा-तोयधारा ॥४४०।।
कडेरेवराङ्गरौ ॥४४४॥ क-ग-श-दृ वृग-चति-खटि-कटि-निषदिभ्यो वरद कडन् मदे, इत्यस्माद् एवर अङ्गर इति प्रत्ययौ भवतः । ॥४४१॥
कडेवर-मतशरीरम् । लत्वे कलेवरम् । कडङ्गरः-वनस्पतिः एभ्यष्टिद्वर: प्रत्ययो भवति । कृत् विक्षेपे, कर्बर:
॥४४५॥ 10 व्याघ्रः, विष्किरः, अञ्जलिश्च, कर्बरी-भूमिः, शिवा च । । त्रट् ॥४४६॥
गत निगरण, गर्वर:-अहंकारः, महिषश्च, गर्वरी-महिषी, । सर्वधातुभ्यस्त्रट प्रत्ययो भवति । छादयतीति छत्रम् छत्री 50 संध्या च । शश हिसायाम्, शर्वर:-सायाह्नः-रुद्रः, वा धर्मवारणम् । पातीति पात्रम् ऊजितगुणाधारः साध्वादिः। हिस्रश्च, शर्वर-तमः, अन्नं च, शवरी-रात्रिः । दश | पात्री-भाजनम् । सायते:-स्नात्रं-स्नानम् । राजते इति
विदारणे, दर्वरं-वज्रम, दर्वरी-सेवा-गट वरण, राष्ट्र-देश । शिष्यतेऽनेन-शास्त्र-ग्रन्थः । असूच क्षेपण, 15 वर्वर:-कामः, चन्दनं, देशविशेष:-लुब्धकश्च, वर्वरी-नदी, अस्त्रं-धनु: ।।४४६॥
भार्या च । चतेग याचने, चत्वरं-चतुष्पथम् अरण्यं च । जि-भ- स- भ्रस्जि- गमि- नमि- नश्यशि-हनि- 55 चत्वरी-रथ्या, देवता, वेदिश्च । खट काझे, खट्वरं- विषेर्वद्धिश्च ॥४४७॥ रससंकीर्णशाकपाकः । कटे वर्षावरणयोः, कट्वर:- एयरट प्रत्ययो भवति वद्धिश्चैषां भवति । जि अभिभवे, व्यालाश्वः, कटवरी-दधिविकारः । षद्लू विशरणादौ,
। पद्लू विशरणादा, जैत्र:-जयनशील:, जैत्र-छूतम् । टुडुमँगक पोषणे च, 20 निपूर्वः, निषद्वरः-कर्दमः-वह्निः, कर्मकरः, कन्दर्पः, भात्र-पोषः, यश्च भूति गृहीत्वा वहति । स गता, सत्र:इन्द्रश्च । निषद्वरम्--आसनम्, निषदरी-प्रपा, रात्रि:, प्रमदा
आलयः । भ्रस्जीत् पाके, भाट्रम्-अम्बरीषम् । गम्लं गतौ, 60 इन्द्राणी च ।।४४१।।
गान्त्रं-मनः, शरीर, लोकश्च । णमं प्रह्वत्वे, नान्त्रं-शिरः, अश्नोतेरीचादेः ॥४४२॥
शाखा, वैचित्र्यं च । नशौच अदर्शने नशो धूटीति नोन्त:, अशोटि व्याप्ती, इत्यस्माद्वरट प्रत्ययो भवति । नाष्टा:-यातुधाना: । अश्रोतेरश्नातेर्वा आष्टम् आकाशः, 25 ईकारश्चार्देभवति । ईश्वर:-विभ्रः । ईश्वरी-स्त्री ।। ४४२॥ रश्मिश्च । हनं हिंसागत्योः, हान्त्रं-रक्षः, युद्धं, वधश्च । नो-मी-कुतु-चेर्दीर्घश्च ॥४४३॥
विष्लूकी व्याप्तौ, वैष्ट:-विष्णः, वायुश्च । वैष्ट्र-यकृत्, 65 एभ्यो वरट् प्रत्ययो दीर्घश्चैषां भवति । णींग प्रापणे,
| त्रिदिवं, वेश्म च ॥४४७।। नीवर:-पुरुषकारः। मींग्श् हिंसायाम्, मीवरः-हिंस्रः- | दिवेद्यौ च ॥४४८॥
समुद्रश्च । कुंङ् शब्दे, कूवर:-रथावयवः । तुंक वृत्त्यादिषु, दीव्यतेस्त्रट प्रत्ययो भवति द्यौ चास्यादेशो भवति । 30 तुवर:-मन्दश्मश्रुः, अजननीकश्च । चिग्ट् चयने, दौत्र-त्रिदिवं. ज्योतिः, विमानं, प्रमाण, प्रतोदश्च ।। ४४८।। चीवरं-मुनिजनवास:, निःसारकन्था च ।।४४३।।
सू-मू-खन्युषिभ्यः कित् ॥४४६॥
70 तीवर-धीवर-पीवर-छित्वर- छत्वर-गह्वरोपहरसंयद्वरोदुम्बरादयः ॥४४४॥
एभ्यः कित् त्रट् प्रत्ययो भवति । पुत् प्रेरणे, सूत्रं
तन्तुः, शास्त्रं च । मूङ् बन्धने, मूत्र-प्रसावः । खनूग एते वरट् प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । तिम्यतेस्ती च
अवदारणे, खान-कूल:, तडाक, ग्रामाधानमृत्, चौरकृतं 35 तीवतेर्वा, तीवरं-जलं, व्यञ्जनं च । ध्यायते( च ।
| च छिद्रम् । उषू दाहे, उष्ट्र:-क्रमेलकः ॥४४६।। धीवर:, कैवर्तः। प्यायः प्यङो वा पी च, पीवतेर्वा किदरः, पीवर:-मांसलः । छिनतेस्त:-किच्च, छित्वरः-शठः, जर्जरः,
स्त्री ॥४५०॥ पिटकश्च छादेणिलुकि ह्रस्वश्च, छत्वर:-निर्भर्त्सकः, स्यतेः सूते: स्त्यायतेस्तृणातेर्वा त्रट् स्यात् डिच्च । स्त्रीनिकुञ्जश्च । छत्वरं-कुड्यहीनं गृहम्, शयनप्रच्छदः, छदिश्च। । योषित् ॥४५०।।
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ।।
हु-या-मा-श्रु-वसि-भसि-गु-वी-पचि-वचि-धृ- लक्षयति । आदिग्रहणादन्येऽपि ॥४५५।। यम्यमि-मनि- तनि-सदि-छादि- क्षि-क्षदि-लुपि-पति- वृग-नक्षि-पचि-वच्यमि-नमि-वमि-वपि-वधि-यजि धूभ्यत्रः ॥४५१॥
। पति-कडिभ्योऽत्रः ॥४५६॥ एभ्यस्त्रः प्रत्ययो भवति । हंक दानादनयोः, होत्र-हवनं, एभ्यः अत्रः प्रत्ययो भवति । वृगटु वरणे, वरत्रा5 होत्रा-ऋचः । यांक प्रापणे, यात्रा-प्रस्थानं, यापनम्, चर्मरज्जः । णक्ष गतौ, नक्षत्रम्-अश्विन्यादि । ड्रपची पाके 45
उत्सवश्च । मांक माने, मात्रा-प्रमाणं, कालविशेषः, स्तोकः, पचत्रं-रन्धनस्थाली । वचं भाषणे, वचत्रं-वचनम् । अम गणना च । श्रृंट श्रवणे, श्रोत्रं-कर्णः । वसिक् आच्छादने, गती, अमत्रं-भाजनम् । णमं प्रह्वत्वे, नमत्रवस्त्रं-वासः । भसि जुहोत्यादी स्मरन्ति, भस्त्रा- कर्मारोपकरणम् । द्रवमू उदिरण, वमत्र-प्रक्षेपः । टुपी
चर्ममयम्-आवपनम्, उदर च । गुंङ् शब्दे, गोत्र:-पर्वतः, बीजसंताने, वपत्रं-क्षेत्रम् । बधि बन्धने, बधत्रम्-आयुधं, 10 गोत्रा-पृथ्वी, गोत्रम्-अन्वयः । बींक प्रजननादो, वेत्र- वस्त्र, विष, शरन । यजी देवपूजादौ, यजत्र:-यज्वा, 50
वीरुद्विशेष: । द्रुपची पाके, पक्त्रं-पिठर, गार्हपत्यं च । यजत्रम्-अग्निहोत्रम् । पत्लु गती, पतत्रं-बह, वाहनम्, वचंक भाषणे, वक्त्रम्-आस्यम्, छन्दोजातिश्च । धृङत् व्योम च । कडत् मदे, कड-दारा: । लत्वे कलत्रं-दारा:, स्थाने, धत्र:-धर्मः, वृक्षः, रविश्च । धत्रं-नभः, गृहसूत्रं च, जघनं च ॥४५६॥ धा-द्यौः। यमं उपरमे, यंत्रं-शरीरसंधानम्-अरघट्टादि
___ सोविदः कित् ॥४५७॥ 15 च । अम गती, अन्त्रं-पुरीतत् । मनिच ज्ञाने, मन्त्र:
सुपूर्वाद् विद: किद् अत्र: प्रत्ययो भवति । सुष्ठु वेत्ति 55 छन्दः । तनयी विस्तारे, तन्त्र-प्रसारितास्तन्तवः, शास्त्रं
विन्दति विद्यते वा सुविदत्रं-कुटुम्ब, धनं, मङ्गलं च ॥४५७।। समूहः, कुटुम्बं च । षद्ल विशरणगत्यवसादनेषु, सत्र-यज्ञ:सदः, दानं, छम, यागविशेषश्च । छदण-संवरण, छादय
कृतेः कृन्त च ॥४५८॥ तीति छात्र:-शिक्षकः । क्षित् निवासगत्योः, क्षेत्र-कर्षण
कृतच् छेदने, इत्यस्माद् अत्र: प्रत्ययो भवति । अस्य च 20 भूमिः, भार्या, शरीरम् आकाश च । क्षद संवरण सौत्रः, कृन्तादेशो भवति । कृन्तत्र:-मशक: । न्तत्र-छेदनं, क्षत्र-राजबीजम् । लुप्लं ती छेदने, लोत्रम्-अपहृतं- लाङ्गलागं च ।।४५८।।
___60 द्रव्यम् । पत्लु गती, पत्र-पर्णं, यानं च । धूगश् कम्पने, बन्धि-वहि-कट्यश्यादिभ्य इत्रः ॥४५६।। धोत्रं-रज्जुः ।।४५१॥
एभ्य इत्र: प्रत्ययो भवति । बन्धश् बन्धने, बान्धत्रंश्वितेवश्च मोवा॥४५२॥
मन्थः । वहीं प्रापणे, वहि-वाहनं वहनं च । कटे वर्षा25 श्विता वणे. इत्यस्मात् त्र: प्रत्ययो भवति, वकारस्य ।
वरणयोः, कटित्र-लेख्यचर्म । अशौटि व्याप्ती, अशश च मकारो वा भवति । श्मेत्रं, श्वेतं च-रोगी ॥४५२।।
भोजने वा। अशित्रं-रश्मि:, हवि:, अग्नि:, अन्नपानं च। 65 गमेरा च ॥४५३॥
आदिग्रहणाद् लुनाते: लवित्रम्-कर्मद्रव्यम्, पुनाते:-पवित्रगम्लू गती, इत्यस्मात् त्र: प्रत्ययो भवति ।
मङ्गल्यम् । भटतेः भटित्रं-शूले, पक्वमांसम् । कटतेः आकारश्चान्तादेशो भवति । गात्र-शरीरम् । गात्रा- | कडिन-कटित्रमेव । अमतेः अमित्र:-रिपुः इत्यादि 30 खट्वावयवः ।।४५३।।
॥४५॥ चि-मि-दि-शंसिभ्यः कित् ॥४५४॥
भू-ग-वद-चरिभ्यो णित् ॥४६०॥
70 एभ्य: कित् त्र: प्रत्ययो भवति । चिगट चयने, चित्रम्
एभ्यो णिद् इत्र: प्रत्ययो भवति । भू सत्तायाम्, आश्चर्यम्, आलेख्यं , वर्णश्च । त्रिमिदाच् स्नेहने, मित्रं
| भावित्रं-त्रैलोक्यं, निधानं, भद्रंच । गत् निगरणे, गारित्रसुहृत्, अमित्र:-शत्रुः, मित्र:-सूर्यः । शंसू स्तुतौ च, शस्त्रं35 स्तोत्रम्, आयुधं च ॥४५४।।
नभः, अन्नपानम, आश्चर्यम् च । वद व्यक्तायां वाचि,
वादित्रम्-आतोद्यम् । चर भक्षणे। चारित्रं-वृत्तं, स्थित्यपुत्रादयः ॥४५॥ भेदश्च ।।४६०॥
75 पुत्र इत्यादयः शब्दाः त्रप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । पुनाति पवते च पितपूतिमिति पूत्रः-सूतः, यदाहः-प्रतीति तनि-त-ला-पात्रादिभ्य उत्रः॥४६१।।
नरकस्याख्या दुःखं च नरकं विदुः । पुन्नाम्नो नरकात् एभ्य उत्रः प्रत्ययो भवति । तनूयी विस्तारे, तनुत्रं40 त्रायत इति व्युत्पत्तिस्तु संज्ञाशब्दानामनेकधा व्याख्यानं कवचम् । त प्लवनतरणयोः, तरुत्रं-प्लव:, घासहारी च।
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
३६
लोक आदाने, लोत्रम्-अपहतद्रव्यम् । पां पाने, पोत्र- ! बाहुलकाद् गुण: । त प्लवनतरणयोः, तरल:-अधीरः, हलसूकरयोर्मुखम् । बैङ् पालने, त्रोत्रम्-अभयक्रिया । हारमध्यमणिश्च । संगतो, सरल:-अकुटिल:, वृक्षविशेषश्च ।
: वस्त्रम-अभिप्रेतमित्यादयः ॥४६१।। पिशत अवयवे, पेशल:- मनोज्ञः । तुस शब्दे, तोसला:शा-मा-श्या-शक्यम्ब्यमिभ्यो लः ॥४६२॥ जनपद: । कुशव् श्लषे, कोशला-जनपदः । अनक् प्राणने, 5 एभ्यो ल: प्रत्ययो भवति । शोंच तक्षणे, शाला-सभा। अनल:-अग्निः । द्रम गतो, द्रमल-जलम् ।।४६५।। 45 मांक माने, माला-स्रक। श्यङ्ग गती, श्याल:-पत्नी- | नहि-लङ्गेदीर्घश्च ॥४६६॥ भ्राता। शक्लंट शक्ती, शक्ल:-मनोज्ञदर्शनः, मधुरवाक्, आभ्याम अलः प्रत्ययो भवत्यनयोश्च दीर्घो भवति । शक्तश्च । अम्बुङ शब्दे, अम गतौ अम्ब्ल:, अम्लश्च-रसः णहीच बन्धने, नाहल:-म्लेच्छः । लगु गती, लाङ्गल।।४६२।।
हलम् ।।४६६।। 10 शुक-शो-मूभ्यः कित् ॥४६३॥
ऋ-जनेर्गोऽन्तश्च ॥४६७॥
50 एभ्यः किद् ल: प्रत्ययो भवति । शुक गतो, शुक्लः- आभ्याम अल: प्रत्ययो गकारश्चान्तो भवति । ऋक् सितो वर्णः । शीक स्वप्ने, शील-स्वभावः, व्रतं,
गतौ, अर्गला-परिधः । जनैचि प्रादुर्भावे, जङ्गलं-निर्जलो धर्मः, समाधिश्च । मूङ बन्धने, मूलम्-वृक्षपादावयवः, देश: ॥४६७।। आदिः, हेतुश्च ।।४६३।।
। तृपि-वपि-कुपि-कुशि- कुटि- वृषि- मुसिभ्यः कित् 15 भिल्लाच्छभल्ल-सोविदल्लादयः ॥४६४॥ | ॥४६८॥
55 भिल्लादयः शब्दाः किन लप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते ।।
| एभ्यः किद् अल: प्रत्ययो भवति । तृपौच प्रीती, भिदेलश्च भिल्लः-अन्त्यजातिः। अच्छपूर्वाद भले:, अ
तृपला-लता, तृपलं-शुष्कपर्णम्, शुष्कतृणं च । डुवपीं भल्लः-ऋक्षः। सुपूर्वाद्विदेरलोऽन्तः सोश्च वृद्धिः । सोवि
बीजसंताने, उपल:-पाषाण: । कुपच कोपे, कुपल:-प्रवालः । दल्लः-कञ्चुकी। आदिग्रहणादल्लपल्लीरल्लादयोऽपि भवन्ति
कुशच् श्लेषणे, कुशल:-मेधावी । कुशलम्-आरोग्यम् । 20 ॥४६४॥
| कटत कौटिल्ये, कुटल:-ऋषिः । वृष सेचने, वृषल:- 60 मृदि-कन्दि-कण्डि-मण्डि-मङ्गि-पटि-पाटि-शकि
दासजातिः । मुसच् खण्डने, मुसलम्-अवहननम् ।।४६८।। केव-देव-कमि-यमि-शलि-कलि-पलि-गु-ध्वञ्चि-चञ्चिचपि-वहि-दिहि-कुहि-त-सृ.पिशि-तुसि-कु-स्यनि
कोर्वा ॥४६६॥ द्रमेरलः ॥४६५॥
___ कंङ शब्दे इत्यस्माद् अल: स च प्रत्यय: किद्वा भवति । 25 एभ्य: अल: प्रत्ययो भवति । मृश् क्षोदे, मर्दल:- कुवलं-बदरम्, कुवली-क्षुद्र बदरी, कवल:-ग्रास: ।।४६६।। मुरज: । कदु रोदनाह्वानयोः, कन्दल:-प्ररोहः । कुडुङ् दाहे, शमेव च वा ॥४७०॥
. 65 कुण्डलं-कर्णाभरणम् । मदु भूषायाम्, मण्डलं-देशः,
शमूच् उपशमे, इत्यस्माद अल: प्रत्ययो भवति मकापरिवारश्च । मगु गतौ, मङ्गलं-शुभम् । पट गतो, पटलं
रस्य च बकारो वा भवति । शबल:-कल्माष:, शमलंछदि:. समूहः, आवपनं, नेत्ररोगश्च । ण्यन्तात् पाटल:
पुरीषम्, दुरितं च ॥४७०॥ 30 वर्णः । शक्लंट शक्ती, शकलं-भित्तम् असारं च । केवृङ्
छोर्डग्गादिर्वा ॥४७१॥ सेवने, केवलं-परिपूर्ण ज्ञानम्, असहायं च । देवृङ्
छोंच छेदने, इत्यस्मारिकद् अलःप्रत्ययो भवति । स च 70 देवने, देवल:-ऋषिः, देवत्रातः, क्रीडनश्च । कमू-कान्ती,
डगादिर्गादिर्वा भवति । छगल:-छागः, छागल:-ऋषिः। कमल-पद्मम् । णिङि, कामल:-नेत्ररोगः । यमू उपरमे,
छल-वचनविघातोऽर्थविकल्पोपपत्त्या ॥४७१॥ यमलं-युग्मम् । शल गतौ, शललं-शेधाङ्गरुहशङ्कु: । कलि 35 शब्दसंख्यानयोः, कललं-गर्भप्रथमावस्था । पल गतौ । मृजि-खन्याहनिभ्यो डित् ॥४७॥ पललम्-भृष्टतिलातसीचूर्णम् । गुंङ् शब्दे, गवल:-महिषः । एभ्यः डिद् अल: प्रत्ययो भवति । मृजौक् शुद्धौ, मलंधूगश् कम्पने, धवल:-श्वेतः । अञ्च गतौ च, अञ्चल:- बाह्यं रज:-अन्तर्दोषश्च । खनूग अवदारणे, खल:-दुर्जनः, 75 वस्त्रान्तः । चञ्चू गतौ, चञ्चल:-अस्थिरः । चप सान्त्वने, निष्पीडितरसं पिण्याकादि, खलं-सस्यफलग्रहणभूमिः ।
चपल: स एव । वहीं प्रापणे, वहलं-सान्द्रम् । दिहींक लेपे, हनंक हिंसागत्योः, आपूर्वः, आहल:-विषाणं, नखरश्च 40 देहली-द्वाराध: पट्टः, कुहणि विस्मापने, कोहल:-भरतपुत्रः ॥४७२।।
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४०
स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
पिण्डाल:- कन्दजातिः । टुनदु समृद्धी, नन्दालः- राजा । द अव्यक्त शब्दे, नदाल:- नादवान् । शक्लूंट् शक्ती, शकाला:- जनपदः, मूर्खधनी च || ४७५ || कुल- पिलि विशि- बिडि मृणि- कुणि-पी- प्रीभ्यः कित् ॥४७६ ॥
45
मुरलोरल - विरल- केरल - कपिञ्जल - कज्जलेज्जल5 कोमल- भूमल- सिंहल - काहल- शूकल- पाकल - युगल | भगल - विदल- कुन्तलोत्पलादयः ॥ ४७४ ॥
एभ्यः किद् आल: प्रत्ययो भवति । कुल बन्धुसंस्त्यानयो:, कुलाल:- कुम्भकारः । पिलण्-क्षेपे, पिलालं- श्लिष्टम् । विशंत् प्रवेशने, विशालं विस्तीर्णम् । बिड आक्रोशे, बिडाल : - मार्जारः । मृणत् हिंसायाम्, मृणालं - बिसम् । कुणत् शब्दोपकरणयोः, कुणाल:- कृतमाल:, कटविशेषश्च, 50 कुणालं - नगरं कठिनं च । पीच पाने, पियालः- वृक्षः, पियालं - शाकं वीरुच्च । प्रीङ्च् प्रीतौ प्रियाल : - पियाल: ।।४७६ ॥
|
एते अलप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । मुर्व्ययर्व लोपः किञ्च, मुरलाः- जनपदः । उरल: - उत्कटः । विपूर्वाद्रमेडिञ्च विरल : - असंहृतः । किरः केर च केरला - जनपद: । 10 कम्पेरितो नलोपश्च कपिञ्जल:- गौरतित्तिरिः । कषी षो ऽन्तो जश्च कज्जलं - मषी, इजल:- वृक्षविशेषः । कमेरत ओच्च कोमलं - मृदु । भ्रमेर्भम् च भृमलः - वायुः, कृमिजातिश्च भृमलं-चक्रम् । हिंसेरायन्त विपर्यश्व, सिंहला - जनपदः । कणेर्हो दीर्घश्व, काहलः - अव्यक्तवाक्, 15 काहला - वाद्यविशेषः । शकेरूच्चास्य, पचेः पाक् च, पाकल:- हस्तिज्वरः युजेः किद् ग च युगलं - युग्मम् । भातेर्गोऽन्तो ह्रस्वश्च भगल:- मुनिः । विन्देर्नलोपश्च विदलं - वेणुदलम् । कनेरत उत् तोऽन्तश्च, कुन्तला - जनपदः, केशाश्र्व । उन्पूर्वात् पिबते ह्रस्वश्व, 20 उत्पलं - पद्मम् । आदिग्रह्णात् सुवर्चलामुद्गलादयो भवन्ति
शूकल: - अश्वाधमः ।
।
।।४७४ ।।
25
स्थो वा ||४७३|| तिष्ठते: अलः प्रत्ययो भवति स च डिद्वा भवति । स्थलं - प्रदेशविशेषः । स्थालं - भाजनम् ||४७३||
एभ्य आलः प्रत्ययो भवति । ऋक् गतौ, आरालंवक्रम् | डुकूंग् करणे, कर लम्-उच्चम् । मृतु प्राणत्यागे, मराल:- हंसः, महांश्च । वृग्ट् वरणे, वराल:- वदान्यः । तनूयी विस्तारे, तनालं - जलाशयः । तमूच् काङ्क्षायाम्. तमाल:-वृक्षः, ब्यालश्च । चषी भक्षणे, चषालं यूपशिरसि 30 द्रव्यम् । चप सान्त्वने, चपाल - यज्ञद्रव्यम् । कपिः सौत्रः
40
ऋ -कृ- मृ-वृ-तनि-तमि चषि चपि कपि-कोलि-पलि बलि - पश्चिमङ्गि-गण्डि मण्डि - चण्डि तण्डि- पिण्डि - नन्दि नदि- शकिभ्य आलः ॥ ४७५ ।।
।
कपालं- घटाद्यवयवः, शिरोऽस्थि च । कील बन्धे, कीलालमद्यं, जलम् असृक् च । पल गतौ, पलालम् - अकणो व्रीह्यादिः । बल प्राणनधान्यावरोधयोः बलाल:- वायुः पत्रुङ् व्यक्तीकरणे, पञ्चाल :- ऋषिः, राजा च पञ्चाला 35 जनपद: । मगु गतौ, मङ्गाल: - देश: । गडु वदनैकदेशे, गण्डाल:- मत्तहस्ती । मडु भूषायाम्, मण्डालः - ऋषिः राजा च । चडु कोपे, चण्डाल:- श्वपचः । अकृतज्ञमकार्यज्ञ दीर्घ रोषमनार्जवम् ।
भजेः कगौ च ॥ ४७७॥
भजी सेवायाम् इत्यस्मात् किद् आलः प्रत्ययो भवति, 55 कौ चान्तादेशौ भवतः । भकालं भगालम् उभयं - कपालम्
।।४७७।।
चतुरो विद्धि चण्डालान् जन्मना चेति पञ्चमम् ||१|| तडुङ् आघाते, तण्डाल:- क्षुपः । पिडुङ् सङ्घाते,
सर्तेर्गोऽन्तश्च ॥ ४७८ ॥
सृ गतौ इत्यस्मात् किद् आल: प्रत्ययो भवति, गश्चान्तः । सृगालः - क्रोष्टा ॥१४७८||
60
पति- कृ-लुभ्यो णित् ॥ ४७६ ॥
एभ्यो णिद् आल: प्रत्ययो भवति । पत्लृ गतौ पातालंरसातलम् । डुकंग करणे, कारालं- लेपद्रव्यम् । लुग्श् छेदने, लावाल:- उद्दन्तः || ४७६ ॥
चात्वाल- कङ्काल- हिन्ताल- वेताल- जम्बाल - 65
शब्दाल- ममाप्तालादयः ||४८० ॥
एते आलप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । चतेर्वोन्तो दीर्घश्च । चात्वालः - यज्ञगर्तः । कचेः स्वरान्नोऽन्तः कश्श्र्च, कङ्कालःकलेवरम् । हिंसेस्तश्व हिन्ताल:- वृक्षविशेषः । वियस्तोऽन्तो गुणश्च, वेताल :- रजनीचरविशेषः । जनेर्वोऽन्तश्च, जम्बाल:- 70 कर्दमः - शैवलं च । शमेर्ऋबेर्वा शब्दभावश्च, शब्दालःशब्दनशीलः । मवेर्वलोपो माप्तश्चान्तः मतिः स्नेहःपुत्रादिषु स्नेहबन्धनं च । आदिशब्दाच्चक्रवालकरवालालवालादयो भवन्ति ॥ ४७०।
कल्यनि-महि-द्रमि-जटि भटि कुटि - चण्डि - शण्डि- 75 तुण्डि - पिण्ड भू-कु-किभ्य इलः ॥४८१ ॥
एभ्य इल: प्रत्ययो भवति । कलि शब्दसंख्यानयोः, कलिलं - गहनं, पापम्, आत्माधिष्ठितं च शुक्रार्तवम् । अनक् प्राणने, अनिल:- वायुः । मह पूजायाम्, महिला - स्त्री ।
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्र विवरणम् ॥
द्रम गतौ, द्रमला :- त्रैराज्यवासिनः । जट झट संघाते, जटिल:- जटावन् । भट भृतौ भटिल:- श्वा, सेवकच । कुटत् कौटिल्ये, कुटिलम् - वक्रम् । चडुङ् कोपे, चण्डिलःश्वा-क्रोधनः, नापितश्च । शडुङ् रुजायाम्, शण्डिलः5 ऋषिः । तुडुङ् तोटने, तुण्डिलः - वाग्जाली । पिङ् सङ्घाते, पिण्डिल:- मेघः, हिंस्रः हिमः, गणकच । भू सत्तायाम्, भविल:-मुनिः, समर्थः, गृहम्, बहुनेता च । कुकि आदाने, कोकिलः - परभृतः ॥४८१ ॥
10
भण्डेर्न लुक् च वा ॥४८२ ॥
भडुङ् परिभाषणे, इत्यस्माद् इल: प्रत्ययो भवति नकारस्य च लुग्वा भवति । भडिल:- ऋषिः, पिशाचः, शत्रुश्च; भण्डिल:- श्वा, दूतः, ऋषिश्च ॥४८२ ।।
पि-मिथ भ्यः कित् ॥ ४८३ ॥
एम्य: किद् इलः प्रत्ययो भवति । गुपौ रक्षणे, गुपिलं15 गहनम् । मिथुगु मेधा - हिंसयो:, मिथिला नगरी । ध्रु स्थैर्ये च ध्रुविल: - ऋषि: ।।४८३॥
स्थण्डिल - कपिल- विच किलादयः ॥ ४८४ ॥
स्थण्डिलादयः शब्दा इलप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । स्थलेः स्थण्ड् च, स्थण्डिलं व्रतिशयनवेदिका । कबेः प् च, 20 कपिल:-वर्णः, ऋषिश्च । विचेरकोऽन्तश्च विचकिल:मल्लिकाविशेषः । आदिग्रहणाद् गोभिलनि कुम्भिलादयोऽपि भवन्ति ॥ ४८४ ॥
हृ षि वृति- चटि पटि- शकि- शङ्कि तण्डि - मयुत्कण्ठिभ्य उलः ॥४८५ ॥
स्था-वङ्क - बंहि-बिन्दिभ्यः किन्नलुक् च ॥४८६ ॥ एभ्यः किद् उल: प्रत्ययो नकारस्य च लुग् भवति । ष्ठां 40 गतिनिवृत्तो, स्थूल-पटकुटीविशेषः । बकुङ् कौटिल्ये, वकुल:- केसरः, ऋषिश्च । बहुङ् वृद्धौ बहुलं - प्रचुरम्, बहुल:- प्रासकः, कृष्णपक्षच । बहुलाः- कृत्तिकाः, बहुलागौः । विदु अवयवे, विदुल : - वेतसः ||४८६ ॥
कुमुल- तुमुल- निचुल- वञ्जुल- मञ्जुल - पृथुलविशंस्थुलाङ्गुल- मुकुल- शष्कुलादयः ॥४८७॥
25
एम्य उलः प्रत्ययो भवति । हृषच् तुष्टौ हृषु अली के वा, हर्षुल :- हर्षवान् कामी, मृगश्च । वृतङ् वर्तते, वर्तुल:वृत्तः । चटण् भेदे, चटुल:- चञ्चल: । पट गतौ, पटुल:- वाग्मी । शक्लूं शक्तौ शकुल:- मत्स्यः । शकुङ् शङ्कायाम्, शङ्कुला–क्रीडनशङ्कुः, बन्धनभाण्डम्, आयुधं च । तडु | 30 ताडने, तण्डुलो–निस्तुषो व्रीह्यादिः । मगु गतौ मङ्गुलंन्यायापेतम् । कठुङ् शोके, उत्कण्ठुलः - उत्कण्ठावान् ॥४८५॥
४१
एते उलप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । कमितम्योरत उच्च, कुमुलं- कुसुमम्, हिरण्यं च कुमुलः शिशुः कान्तश्च । तुमुलं-व्यामिश्रयुद्धम्, संकुलं च । निजेः किञ्चश्व, निचुल:वञ्जुलः । वजेः स्वरान्नोऽन्तश्च वञ्जुल:- निचुलः । मञ्जः सौत्रः, मञ्जुल - मनोज्ञम् । प्रथेः पृथ् च पृथुल:- विस्तीर्णः । 50 विपूर्वात् शंसेस्थोऽन्तश्च विशंस्थुल : - व्यग्रः । अञ्जेश्व अङ्गुलम् - अष्टयवप्रमाणम् । मुचेः कित् कच, मुकुल:अविकसितपुष्पम् । शके: स्वरात् षोऽन्तश्च शष्कुली - भक्ष्यविशेषः, कर्णावयवश्च । आदिग्रहणाल्लकुल वल्गुलादयो भवन्ति ||४८७ ||
पिञ्जि- मञ्जि कण्डि-गण्डि बलि- बधि- वञ्चिभ्य
ऊलः ॥४८८ ॥
एभ्य ऊल: प्रत्ययो भवति । पिजुण् हिंसा - बल-दाननिकेतनेषु, पिञ्जूल:- हस्तिबन्धनपाशः, राशि:, कुलपतिश्च । मञ्जः सौत्रः, मञ्जुला - मृदुभाषिणी । कडुङ् मदे, 60 कण्डूल:- अशिष्टो जनः । गड्डु वदनैकदेशे, गण्डूल:कृमिजातिः । बल प्राणन - धान्यावरोधयोः, बलूलः - ऋषिः, मेघ मास । बधि बन्धने, बधूल:- हस्ती, घातकः रसायनं, तन्त्रकारश्च । वञ्चिण् प्रलम्भने, वञ्चूल:-हस्ती, मत्स्य-मारपक्षी च ॥४८८ ॥
तमेर्वोऽन्तो दीर्घस्तु वा ॥ ४८६ ॥
तमूच् काङ्क्षायाम् इत्यस्माद् ऊलः प्रत्ययो भवति, वोऽन्तश्च भवति दीर्घस्तु वा । ताम्बूलं, तम्बूलम् - उभयं पूगपत्रचूर्ण संयोगः ।।४८६॥
कुल - पुल - कुसिभ्यः कित् ॥४६०॥
एभ्य ऊलः प्रत्ययो भवति, स च किदु भवति । कुलबन्धु- संस्त्यानयो:, कुलूलः - कृमिजातिः । पुल महत्वे पुलूल:वृक्षविशेषः । कुसच् श्लेषे, कुमूलः–कोष्ठः ॥४६०॥
45
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दुकूल-कुकूल-बब्बूल-लाङ्गूल शार्दूलादयः ॥ ४६१ ॥
दुकूलादयः शब्दा ऊलप्रत्यान्ता निपात्यन्ते । दुको: 70 कोऽन्तश्च, दुकूलं - क्षौमं वासः । कुकूलं कारीषोऽग्निः । बधेऽन्त च । बब्बूल:- वृक्षविशेषः । लङ्गर्दीर्घश्व, लाङ्गलं-वालधिः । शृणातेर्दोऽन्तो वृद्धिश्च, शार्दूलः– व्याघ्रः । आदिग्रहणाद् मार्जूल - कञ्चुलादयो भवन्ति ।।४९१ ।। महेरेलः ॥४६२॥
75 मह पूजायाम्, इत्यस्मादेल: प्रत्ययो भवति । महेला- स्त्री
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४२
स्बोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
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॥४६२॥
| तुल्वलेल्वलादयः ॥५००॥ कटि-पटि-कण्डि-गण्डि-शकि-कपि-चहिभ्य ओलः । तुल्वलादयः शब्दा वलप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । 40 ॥४६३॥
। तुलील्योणि-लुग्गुणाभावश्च । तुल्वल:- ऋषिः, यस्य एभ्य ओल: प्रत्ययो भवति । कटे वर्षावरणयोः, तौल्वलिः पुत्रः । इल्वल:--असूरो, योऽगस्त्येन जग्धः, 5 कटोल:-कटविशेषः, वादिनविशेषश्च, कटोला-औषधिः। मत्स्यः, यूपश्च । इल्वला:-तिस्रो मृगशिर: शिरस्ताराः ।
पट गतो, पटोला-वल्ली विशेषः । कद्र मदे, कण्डल:- आदिग्रहणात् शाल्वलादयो भवन्ति ।।५००॥ विदलभाजनविशेषः । गद्र वदनैकदेशे, गण्डोल:-कृमि- । शोडस्तलकपाल-वालग-वलणवलाः॥५०॥ 45 विशेषः । शक्लूट शक्ती, शकोल:-शक्तः। कपिः सौत्रः, । शीक स्वप्ने, इत्यस्मात् तलक-पाल-वालण्-वलणकपोल:-गण्डः । चह कल्कने, चहोल:-उपद्रवः ।।४६३।।।
वल, इत्येते प्रत्यया भवन्ति । शीतल-अनुष्णम्, शेपालम्, 10 ग्रह्याभ्यः कित् ॥४६४॥
जपादित्वात् पस्य वत्वे शेवालम्, शैवालम्, शैवलम्, ग्रहेराकारान्तेभ्यश्च धातुभ्यः किदोल: प्रत्ययो भवति ।। पञ्चकमपि जलमलवाचि ।।५०१।। ग्रहीश उपादाने, गृहोल:-बालिश: । कायते:, कोल:-बदरी,
रुचि-कुटि-कुषि-कशि-शालि-द्रुभ्यो मलक् ॥५०२॥ 50 वराहश्च । गायते: गोल:-वृत्ताकृतिः, गोला-गोदावरी,
एभ्यः किन् मल: प्रत्ययो भवति । रुचि अभिप्रीत्यां च, बालरमणकाष्ठं च । पाते: पोला-तालाख्यं-कषाट बन्धनं
रुक्मलं-सुवर्णम्, न्यङ्कादित्वात् कत्वम् । कुटत् कौटिल्ये, 15 परिखा च । लाते: लोल:-चपल: । ददातेर्दयतेद्यते दोला-प्रेङ्खणम् ॥४६४॥
कुड्मलम्-मुकुलम् । कुष्श् निष्कर्ष, कूष्मल-तदेव, बिलं
च । कश शब्दे तालव्यान्तः, कश्मलं-मलिनम् । शाडङ् पिञ्छोल-कल्लोल-कक्कोल-मक्कोलादयः ॥४६५॥ श्लाघायाम्, लत्वे शाल्मल:-वृक्षविशेषः । द्रु गती, द्रुमल- 55 पिञ्छोलादय: शब्दा ओलप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । पीडे: | जलं, वनं च ।।५०२।। पिच्छ् च, पिञ्छोल:-वादिनविशेष: । कलेर्लोऽन्तश्च,
| कुशि-कमिभ्यां कुल-कुमौ च ॥५०३॥ 20 कल्लोल:-अमिः । कचि-मच्योः कादिः, कक्कोली-लताविशेषः, मक्कोल:-सुधाविशेषः। आदिग्रहणादन्येऽपि ॥४६५।।
आभ्यां मलक प्रत्ययो भवति । अनयोश्च यथासंख्यं
कुल-कुम इत्यादेशौ च । कुशच श्लेषणे, कल्मलं-छेदनम् । वलि-पुषेः कलक् ॥४६६॥
| कमूङ कान्ती, कुम्मलं--पद्मम् ॥५०३।। आभ्यां कित् कल: प्रत्ययो भवति । वलि संवरणे,
पतेः सलः ॥५०४॥ वल्कलं-तरुत्वक । पुष् पुष्टौ, पुष्कलं, समग्रं, युद्ध, शोभनं, 25 हिरण्यं, धान्यं च ।।४६६॥
पत्ल गती इत्यस्मात् सल: प्रत्ययो भवति । पत्सल:
प्रहारः, गोमान्, आहारश्च ॥५०४।। मिगः खलश्चैच्च ॥४९७॥
लटि-खटि-खलि-नलि-कण्यशौ-सृ-श-कृ-ग-द-पडुमिगट प्रक्षेपणे, इत्यस्मात् खलश्चकारात् कलश्च प्रत्ययौ भवतः, एकारश्चान्तादेशो भवति । मेखला
शपि-श्या-शाला-पदि-हसीणभ्यो वः ॥५०॥ 65 गिरिनितम्ब:, रशना च । मेकल:-नर्मदाप्रभवोऽद्रिः । मिग एभ्यः वः प्रत्ययो भवति । लट बाल्ये, लट्वा30 एत्ववचनामात्वबाधनार्थम् ।।४६७।।
क्षुद्रचटका कुसुम्भं च। खट काक्षे खट्वा-शयनयन्त्रम् । श्री नोऽन्तो ह्रस्वश्च ॥४६॥
खल संचये च, खल्वं-निम्नं, खलीनं च, खल्वा-दतिः । शश् हिंसायाम् इत्यस्मात् खलः प्रत्ययो भवति,
णल गन्धे, नल्व:-भूमानविशेषः । कण शब्दे, कण्व:-ऋषिः, नकारोऽन्तो ह्रस्वश्च भवति । शङ्खला--लोहरज्जुः, शङ्खलः,
कण्वं-पापम् । अशौटि व्याप्ती, अश्व:-तरगः । सृ गती 70 शृङ्खलं वा ॥४६८॥
। सर्व:-शम्भुः । सर्वादिश्च कृत्स्नार्थे । शश् हिंसायाम्, शर्वः35 शमि-कमि-पलिभ्यो बलः ॥४९॥
शम्भुः । कृन विक्षेपे, कर्व:-आखूः, समुद्रः, निष्पत्तिक्षेत्र च ।
गत् निगरणे, गर्व:-अहंकारः । दश विदारणे, दर्वा:एभ्यो बल: प्रत्ययो भवति । शमूच उपशमे, शम्बलं- जनपदः, दर्व:-हिंस्रः। पशु पालन-परणयोः, पर्व:-रुद्रः, काण्ड पाथेयम् । कमङ कान्तौ, कम्बल:-ऊर्णापट: । पल गतो, च। शपी आक्रोशे. शप्व:-आक्रोशः । श्येङ् गतौ, श्याव:- 75 पल्वलम्-अकृत्रिमोदकस्थानविशेषः ।।४६६।। | वर्णः । शोंच तक्षणे, शाव:- तिर्यग्बालः । लांक् आदाने,
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10
शीङापो हस्वश्व वा ॥ ५०६ ॥
5
आभ्यां वः प्रत्ययो वा भवति । शी स्वप्ने, शिवक्षेमम्, सुखं, मोक्षपदं च, शिवा - हरीतकी च, शेवं धनम्, शेव:-अजगरः, सुखकृच्च, शेवा-प्रचला निद्राविशेषः, मेदव । आप्लृट् व्याप्ती, अप्वा-देवायुधम् आप्वा - वायुः ।। ५०६ || उधं च ॥ ५०७ ॥
उदि मान - क्रीडनयो, इत्यस्माद् वः प्रत्ययो भवति, धकारश्चान्तादेशो भवति । ऊर्ध्वः - उद्धर्मा, ऊर्ध्वम् - उपरि परस्ताच्च ।। ५०७ ।।
20
स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
लाव:- पक्षिजातिः । पदिच् गतौ पद्वः - रथः, वायुः, भूर्लोक । ह्रस शब्दे, ह्रस्व:- लघुः । इण्क् गती, एव:केवल:, एवेत्यवधारणे निपातश्च ॥ ५०५ ॥
गन्धेरर् चान्तः ॥ ३०८ ॥ गन्धि अर्दने, इत्यस्माद् वः प्रत्ययोर् चान्तो भवति । 15 गन्धर्वः - गाथकः, देवविशेषश्च ।। ५०८ ।।
25
35
लषेषु च वा ॥ ५० ॥
ली कान्ती इत्यस्माद् वः प्रत्ययोऽस्य च लिष् इत्यादेशो वा भवति । लिष्वः - लम्पटः कान्तः, दयितश्च । लष्व:अपत्यम् ऋषिस्थानं च ॥५०६ ॥
सलेणिद् वा ॥५१०॥
सल गतौ इत्यस्माद् वः प्रत्ययोः भवति, स च णिद्वा भवति । साल्वाः सत्वाश्च - जनपदः क्षत्रियाच ।। ५१०॥
निघुषोष्यृषि प्रषि-किणि विशि- विल्यवि-पृभ्यः कित् ॥ ५११ ॥
एभ्यः किद् वः प्रत्ययो भवति । घृष् संघर्षे निपूर्व: निघृष्वः–अनुकूलः, सुवर्णनिकषोपलः, वायुः, क्षुरश्च । इषत् | इच्छायाम् इष्व:- अभिलषितः, आचार्यश्च, इष्वाअपत्यसंततिः । ऋषैत् गतो, ऋष्यः-रिपुः, हिस्रश्च रिषेर्व्यञ्जनादेः केचिदिच्छन्ति रिष्वः । सुं गतौ स्रुवः30 हवनभाण्डम् । प्रुषू दाहे, पुष्वा-निवृत्तिः जललवश्च ।
for: सौत्रः, किण्वं - सुराबीजम् । विशंत् प्रवेशने, विश्वजगत्, सर्वादि च । बिलत् भेदने, बिल्वः - मालूरः । अव रक्षणादौ, अवेति, अव्ययम्, पृश् पालन- पूरणयो:, पूर्व:दिक्कालनिमित्तः ॥ ५११ ।।
नञो भुवो डित् ॥ ५९२ ॥
नञपूर्वाद् भवद्विः प्रत्ययो भवति । अभ्वम्अद्भुतम् ।।५१२।। लिहेजिह च ॥५१३॥
४३
fort आस्वादने इत्यस्माद् वः प्रत्ययो भवत्यस्य चजिह, इत्यादेशो भवति । जिह्वा रसना ।।५१३ ।। प्रह्वा ह्वाय ह्वा स्व- च्छेवा- ग्रीवा मीवाव्वादयः ॥५१४॥
प्रह्लादयः शब्दा वप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते, प्रपूर्वस्य ह्वयतेर्वादेर्लोपो यततेर्वा हादेशश्च । प्रह्नः -प्रणतः, आह्वयतेराह च आह्वा कण्ठः । यमेयं सेर्वा ह् च, यह्वा - 45 बुद्धि: । अस्यतेरलोपश्च । स्व:-आत्मा, आत्मीयज्ञातिः, धनं च । छयतेश्छिदेर्वा छेभावरच, छेवा - उच्छित्तिः । ग्रन्थते गिरते ग्रीभावश्च ग्रीवा । अमेरीच्चान्तो दीर्घश्च । मीवा - मनः उदकं च । तदेत्त्रयमपि तन्त्रेणा- 50 दीर्घश्च वा अमीवा - बुभुक्षा, आमीवा - व्याधिः । मिनोतेवृत्त्या वा निर्दिष्टम् । अवतेर्वलोपाभावश्च अव्वा-माता । आदिशब्दाद् अपवादयो भवन्ति ॥ ५१४ ||
40
as-a-पे-चणिपणि- पल्लि वल्लेरवः ॥५१५॥ एभ्यः अवः प्रत्ययो भवति । वढ आग्रहणं सौत्रः, वडवा - अश्वा | वट वेष्टने, वटवा - सैव । पेलृ गतौ, 55 पेलव - निःसारम् । चण हिंसादानयोश्च चणवः - अवरधान्यविशेषः । पणि व्यवहार - स्तुत्योः पणवः - वाद्यजातिः । पल्ल गतौ पल्लव:- किसलयम् । वल्लि संवरणे, बल्लव:गोपः ।।५१५ ।।
मणि-वसेति ॥५१६॥
आभ्यां द् िअवः प्रत्ययो भवति । मण शब्दे, माणत्र:शिष्यः । वसं निवासे, वासवः शक्रः ॥ ५१६।।
60
मलेर्वा ।।५१७॥
मलि धारणे, इत्यस्माद् अवः प्रत्ययो भवति, स च निद्वा भवति । मालवा: - जनपदः, मलवः - दानवः ।। ५१७|| 65
कति कुडि कुरि मुरि स्थाभ्यः कित् ।।५१८ ||
एभ्यः किद् अवः प्रत्ययो भवति । कित् निवासे, कितवः - द्यूतकारः । कुडत् बाल्ये च, कुडव: मानम्, लत्वे कुलव:- स एव, नाली द्वयं च । कुरत् शब्दे, कुरव:पुष्पवृक्षजातिः । मुरत् संवेष्टने, मुरवः - मानविशेष:, 70 वाद्यजातिश्च । ष्ठां गतिनिवृत्तौ, स्थवः - अजावृषः
।। ५१८ ।।
केरव-भैरव-मुतव कारण्डवादीनदादयः ॥ ५९६ ॥ कैरवादयः शब्दा अवप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । कृग्भृगोः कैरभैरावादेशो । कैरवं - कुमुदम्, भैरव:- भर्ग:, 75 भयानकश्च । मिनोतेर्मु च मुतव:- मानविशेषः ।
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शृशु हिंसायाम्, इत्यस्माद् आवः प्रत्ययो भवति । शराव:- मल्लकः ।। ५२० ।।
प्रथेरिव पृथ् च ॥५२१॥
प्रथिषु प्रख्याने इत्यस्मादिवट्प्रत्ययो भवत्यस्य च पृथ् इत्यादेशो भवति । पृथिवी - भूः ।। ५२१ ।।
10
पलि - सचेरिवः ।।५२२॥
स्वोपज्ञोणादिगणसूत्र विवरणम् ॥
कृगोऽण्डोऽन्तो वृद्धिश्च कारण्डव:- जलपक्षी । आङ्पूर्वाद् दीङो नोऽन्तश्च । आदीनवः- दोषः । आदिग्रहणात् कोद्रव - कोटवादयोपि भवन्ति ।। ५१ ।।
शृणातेरावः ।।५२०।।
30
स्पृशत् संस्पर्श, इत्यस्मात् श्वः प्रत्ययो भवत्यस्य च 15 पार् इत्यादेशो भवति । पार्श्व-स्वाङ्गम्, समीपं च । पार्श्वः - भगवांस्तीर्थंकरः ||५२३|| कुडितुड्यडेरुवः ॥ ५२४॥
एभ्य उवः प्रत्ययो भवति । कुडत् बाल्ये च, कुडुवं प्रसृतं हस्तमानं च । तुडत् तोडने, तुडुवम्-अपनेयद्रव्यम् । 20 अड उद्यमे, अडुव:-प्लवः ॥५२४॥
35
पण रक्षणे, षचि सेवने, इत्याभ्यामिवः प्रत्ययो भवति । पलिवः - गोप्ता । सचिव :-सहायः ॥ ५२२ ।। स्पृशेः श्वः पार् च ॥५२३॥
नी ह्वी ध्य-प्या-पा-दा-माभ्यस्त्वः ||५२५॥
एम्य: त्व: प्रत्ययो भवति । णींग प्रापणे, नेत्वं - द्यावा - पृथिव्यौ चन्द्रश्च । हुं दानादनयोः होत्वंयजमानः, समुद्रश्च । इण्क् गतौ, एत्वम्- गमनपरम् । 25 ध्यै चिन्तायाम्, ध्यात्वं - ब्राह्मणः । प्यैङ् वृद्धौ, प्यात्वं ब्राह्मणः समुद्रः, नेत्रं च । पां पाने, पात्वम्, पात्रम् । डुदांग्क् दाने, दात्व:- आयुक्तः, यज्वा यज्ञश्च । मां माने, मात्वम् - प्रमेयद्रव्यम् ।। ५२५||
कृ-जन्येधि- पाभ्य इत्वः ||५२६ ॥
एभ्य इत्व: प्रत्ययो भवति । डुकूंग् करणे, करित्व:करणशीलः । जनचि प्रादुर्भावे, जनित्व:-लोकः, मातापितरी द्यावापृथिव्यौ च, जनित्वं - कुलम् । एधि वृद्धी, एधित्व:- अग्निः समुद्रः, शैलश्च । पां पाने, पेत्वम् तप्तभूमिप्रदेशः, अमृतं, नेत्रं सुखं मानं च ॥ ५२६ ॥ पा-दा-वम्यमिभ्यः शः ॥ ५२७॥
कृ-वृ-भू-वनिभ्यः कित् ॥ ५२८ ॥
एभ्यः कित्शः प्रत्ययो भवति । डुकूंग् करणे, कृश: - 40 तनुः । वृग्ट् वरणे, वृशं शृङ्गबेरम्, मूलकं, लशुनं च । sir पोषणे च भृशम् - अत्यर्थम् । वन भक्तो, वश:आयत्तः ।। ५२८ ||
एभ्य: श: प्रत्ययो भवति । पांक् रक्षणे, पाशः-बन्धनम् । डुदांग्क् दाने, दाश:- कैवर्तः । टुवमू उद्भिरणे, वंश:वेणुः । अम गतौ, अंशः - भाग : ।। ५२७ ॥
कोर्वा ॥ ५२६ ॥
कुङ् शब्दे, इत्यस्मात् शः प्रत्ययो भवति, स च किद्वा 45 भवति । कुशः - दर्भः । कोश:- सारम्, कुड्मलं च ।। ५२६ ॥
क्लिशः के च ॥५३०॥
क्लिशीश विबाधने इत्यस्मात् शः प्रत्ययो भवत्यस्य च के इत्यादेशो भवति । केशाः - मूर्धजाः ॥ ५३०|| उरेरशक् ।।५३१||
50
उरगती, इत्यस्मात् सौत्राद् अशक् प्रत्ययो भवति । उरशः - ऋषिः ।। ५३१ ॥
कलेष्टित् ॥५३२॥
कलि शब्द संख्यानयो:, इत्यस्मात् टि अशक् प्रत्ययो भवति । कलश:- कुम्भः । कलशी - दधिमन्थनभाजनम् 55 ॥ ५३२॥
पले राशः ॥५३३॥
पल गतौ इत्यस्माद् आशः प्रत्ययो भवति । पलाश:ब्रह्मवृक्षः ।।५३३।
कनेरीश्चातः ||५३४॥
कर्न दीप्त्यादी, इत्यस्माद् आशः प्रत्ययो भवति, ईकारश्चाकारस्य भवति । कीनाशः - कर्षकः, वर्णसङ्करः, कदर्यश्च तथा
लुब्धः कीनाशः स्यात् कीनाशोऽप्युच्यते कृतघ्नश्च । योsनात्यानं मांसं स च कीनाशो यमश्चैव ॥ ५३४ ||
60
65
कुलि-कनि कणि-पलि- वडिभ्यः किशः ।। ५३५||
एभ्यः किद् इश: प्रत्ययो भवति । कुल बन्धु संस्त्यानयोः कुलिशं वज्रम् । कनै दीप्त्यादौ, कण शब्दे, कनिशं कणिशं च-सस्यमञ्जरी । पल गतौ पलिशं यत्र स्थित्वा 70 व्यापाद्यन्ते मृगाः । वड आग्रहणे सौत्रः, बडिशं - मत्स्य
ग्रहणम् ।।५३५ ।।
बणिद्वा ।।५३६॥
बल प्राणन-धान्यावरोधयोः इत्यस्मात् किशः स च fear भवति । बालिश:- मूर्खः, बलिश:- मूर्खः, बलिशं - 75 बडिशम् ||५३६ ॥
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
तिनिशेतिशादयः ॥५३७॥
आभ्याम् आषः प्रत्ययो भवति । युक् मिश्रणे, यवाष:-- तिनिशादयः शब्दाः किशप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते, तने- | दुरालभा । जल घात्ये, जलाष-जलम् ॥५४५।। रिच्चातः । तिनिशः-वृक्षः । इणस्तोऽन्तश्च, इतिश:- अरिषः ॥५४६॥ गोत्रकृदृषिः । आदिग्रहणादन्येऽपि ॥५३७॥
ऋक् गतो, इत्यस्माण्ण्यन्ताद इषः प्रत्ययो भवति । 40 5 मस्ज्यडिम्यामुशः ॥५३८॥
अपिषम्-आर्द्रमांसम् ।।५४६।। आभ्याम् उश: प्रत्ययो भवति । टुमस्जोंत् शुद्धौ, मह्यविभ्यां टित् ॥५४७॥ 'न्यड्कूद्गमेघादयः' इति गः। मद्गुश:-नकुलः । अकुङ् आभ्यां टिद् इषः प्रत्ययो भवति । मह पूजायाम्, लक्षणे, अकुशः-सृणि: ।।५३८।।
महिष:-सरिभः, राजा च, महिषी-राजपत्नी, सैरिभी अर्तीणभ्यां पिश-तशी ॥५३६॥
च । अव रक्षणादौ, अविष:-समुद्रः, राजा, पर्वतश्च । 45
अविषी-द्यौः, भूमिः, गङ्गा च ।।५४७।। 10 आभ्यां यथासंख्यं पिश तश इत्येतौ प्रत्ययो भवतः ।
ऋक गती, अपिशम्-आद्रमांसम्, बालवत्साया दुग्धं च ।। रुहेवाद्धश्च ॥५४८॥ इंण्क् गती, एतश:-अश्व:, ऋषि:, वायुः, अग्निः, रुहं जन्मनि, इत्यस्मात् टिद् इषः प्रत्ययो भवति, वृद्धिअर्कश्च ।।५३६।।
| श्वास्य भवति । रोहिषं-तृणविशेषः, अन्तरिक्षं च, रोहिषःवृ-क-त-मीङ्-माभ्यः षः॥५४०॥
मृगः । रोहिषी-वात्या, मृगी, दूर्वा च ॥५४८।। 50 15 एभ्यः षः प्रत्ययो भवति । वगट वरणे, वर्षः-भर्ता,
गत् ॥५४॥ वर्षः-संवत्सरः । वर्षा:-ऋतुः । कृत् विक्षेपे, कर्षः- । आभ्याम् इषः प्रत्ययो भवति, स च णिद् भवति । उन्मानविशेषः । तृ प्लवनतरणयोः, तर्ष:-प्लव:-हर्षश्च । अम गतौ, आमिषं-भक्ष्यम् । मश् हिंसायाम्, मारिष:मीङच हिंसायाम्, मेष:-उरभ्रः। मांक माने, माषः- हिंस्रः ।।५४६।। धान्यविशेषः, हेमपरिमाणं च ॥५४०।।
तवेर्वा ॥५५०॥
56 20 योरुच्च वा ॥५४१॥
तव गती, इत्यस्मात् सौत्रात टिद इषः प्रत्ययो भवति । युक मिश्रणे, इत्यस्मात् ष: प्रत्ययो भवति, ऊकार.
स च णिद्वा भवति । ताविषः, तविषश्च-स्वर्गः । श्वान्तादेशो वा भवति । यूष:-पेयविशेषः, यूषा-छाया, |
ताविष, तविषं च-बलं, तेजश्न । ताविषी, तविषी चयोषा-स्त्री ॥५४१।।
वात्या, देवकन्या च ॥५५०।। स्नु-पू-सूम्वर्कलुभ्यः कित् ।।५४२॥
कलेः किल्व च ॥५५१॥
60 26 स्वादिभ्योऽर्कपूर्वाच्च लुनातेः कित् षः प्रत्ययो कलि शब्द-संख्यानयोः, इत्यस्मात् टिद् इषः प्रत्ययो
भवति । स्नुक प्रस्रवणे, स्नुषा-पुत्रवधूः । पूगश् पवने, | भवत्यस्य च किल्व इत्यादेशो भवति । किल्बिषं-पापम्, पूषः-पवनभाण्डम्, शूर्पादिः । षूत् प्रेरणे, सूष:-बलम्। किल्बिषी-वेश्या, रात्रिः, पिशाची च ॥५५१।। मूड बन्धने मूषा-लोहरक्षणभाजनम् । लूगश् छेदने । नञो व्यथेः ।।५५२॥ अर्कपूर्वः, अर्कलूषः-ऋषिः ॥५४२।।
नजपूर्वात् व्यथिषु भय-चलनयोः, इत्यस्मात् टिद् इष: 65 30 श्लिषेः शे च ॥५४३॥
प्रत्ययो भवति । अव्यथिष:-क्षेत्रज्ञः, सूर्यः, अग्निश्च । श्लिषंच आलिङ्गने, इत्यस्मात् षः प्रत्ययो भवत्यस्य | अव्यथिषी-पृथिवी ।।५५२।। च शे इत्यादेशो भवति । शेष:-नागराजः ।।५४३।।
कृ-तृभ्यामीषः ॥५५३॥ कोरषः ॥५४४॥
आभ्याम् ईषः प्रत्ययो भवति । कत विक्षेपे, करीष:कुङ शब्दे, इत्यस्माद् अष: प्रत्ययो भवति । कवषः- | शुष्कगोमयरजः । त प्लवनतरणयोः, तरीष:-समर्थः, 70 35 क्रोधी, शब्दकारश्च ॥५४४।।
स्तम्भः, प्लवश्व ।।५५३।। युजलेराषः ॥५४५॥
। ऋजि-श-पृभ्यः कित् ॥५५४॥ Aho! Shrutgyanam
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
एभ्य: किद् ईष: प्रत्ययो भवति । ऋजि गत्यादौ, च । हनक हिंसा-गत्योः, हनूष:-राक्षसः। अगु, गतौ, ऋजीष:-अवस्करः, ऋजीषम्-धनम् । शृश् हिंसायाम्, | अङ्गुषः, शकुनिजाति;, हस्ती, बाणः, वेगश्च । मगु गतौ, शिरीष:-वृक्षः । पृश् पालनपूरणयोः, पुरीष-शकृत् ॥५५४।। मङ्गुषः-जलचरशकुनिः । गट्ठ वदनैकदेशे, गण्डूष:- 40 अमेर्वरादिः ॥५५॥
द्रवकवलः । ऋक् गतौ, अरुष:-रविः ।।५६०॥ 5 अम गतौ, इत्यस्माद् वरादि: ईषः प्रत्ययो भवति । ।
कोरदूषाटरूष-कारूष-शैलूष-पिञ्जूषादयः ॥५६१॥ अम्बरीषं- भ्राष्ट्र, व्योम च । अम्बरीष:-आदिनृपः |
___एते ऊषप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । कुरेरदोऽन्तश्च, ॥५५॥
कोरदूष:-कोद्रवः । अटेराङपूर्वस्य चारोऽन्तश्च, आटरूष:
वासा । अटन रूषतीति तु अटरूषः, पृषोदरादित्वात् । 45 उषेोऽन्तश्च ॥५५६।।
कृगो वृद्धिश्च, कारूषा:-जनपदः । शलेरै चातः, शैलूषःउषू दाहे, इत्यस्माद् ईषः प्रत्ययो भवति, णकारश्चान्तो नट: । पिजुण हिंसादौ, पिञ्जूष:-कर्णशष्कुल्याभोगः । 10 भवति । उष्णीष:-मुकुटं, शिरोवेष्टनं च ॥५५६।। आदिशब्दात् प्रत्यूषाभ्यूषादयो भवन्ति ।।५६१।।
ऋ-प-नहि-हनि-कलि-चलि-चपि-वपि-कृपि- कलेर्मषः ॥५६२॥ हयिभ्य उषः ।।५५७॥
कलि शब्दसंख्यानयोः, इत्यस्मात् मषः प्रत्ययो भवति । 50 एभ्यः उषः प्रत्ययो भवति । ऋश गतौ, अरुष:-व्रण:,
कल्मषं-पापम् ।।५६२॥ हयः, आदित्यः, वर्णः, रोषश्च। पशु पालनपूरणयो., परुषः- कुलेश्च माषक् ॥५६३॥ 15 कर्कशः । णहीच बन्धने, नहष:-पूर्वः राजा । हनक कुल बन्धुसंस्त्यानयोः, इत्यस्मात् कलेश्च किद् माषः
हिंसागत्योः, हनुष:-क्रोधः, राक्षसश्च । कलि शब्दसंख्या- प्रत्ययो भवति । कल्माषः-अर्धस्विन्नं माषादिः, कल्माष:नयोः, कलुषम्-अप्रसन्न-पापं च । चल कम्पने, चलुषः- | शबल: ॥५६३।।
55 वायुः । चप सान्त्वने, चपुषः-शकुनिः। डुवपीं बीजसंताने,
मा-वा-बद्यमि-कमि-हनि-मानि-कष्यशि-पचिवपुषः-वर्णः । कृपौङ् सामर्थ्य, कल्पुष:-क्रियानुगुणः ।
| मुचि-जि-वृ-तभ्यः सः ॥५६४॥ 20 हय क्लान्ती च, हयुषा-औषधिः ।।५५७।।
___ एभ्यः स: प्रत्ययो भवति । मांक माने, मास:वि-दि-पभ्यां कित् ॥५५॥
त्रिंशद्रात्रः। वांक गतिगन्धनयोः. वासा-आटरूषकः । 'आभ्यां किद् उषः प्रत्ययो भवति । विदक ज्ञाने, . वद व्यक्तायां वाचि, वत्सः-तर्णकः, ऋषिः, प्रियस्य च 60 विदुषो-विद्वान् । पश् पालनपूरणयोः, पुरुषः-पमान, पुत्रस्याख्यानम् । अम गती, अंस:-भुजशिखरम् । काङ् आत्मा च ॥५५८॥
कान्ती, कंस:-लोहजाति: विष्णोरराति:, हिरण्यमानं च ।
हनक हिंसा-गत्योः, हंस:-श्वेतच्छदः। मानि पूजायाम्, 25 अपुष-धनुषादयः ॥५५६।।
मासं-तृतीयो धातु: । कष हिंसायाम्, कक्ष:-तृणम्, अपुषादयः शब्दा उषप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । आप्नोते
गहनारण्यं, शरीरावयवश्च । अशौटि व्याप्ती, अक्षा:- 65 हस्वश्च, अपुषः-अग्निः , सरोगश्च । दधातेधंन् च, धनुष:
प्रासका: (पाशका: ), अक्षाणि-इन्द्रियाणि, रथशैलः । आदिग्रहणाल्लसुषादयो भवन्ति ॥५५६॥
चक्राणि च । इपची पाके, पक्ष:-अर्धमास., वर्गः, खलि-फलि-वृ-पक ज-लम्बि-मञ्जि-पी-यि-हन्यङ्गि- शकुन्यवयवः, सहायः, साध्यं च। मुच्लूती मोक्षणे, 30 मङ्गि-गण्ड्यतिभ्य ऊषः ॥५६०॥
मोक्ष:-मुक्तिः । यजी देवपूजादौ, यक्ष:-गुह्यकः । एभ्यः ऊष: प्रत्ययो भवति । खल संचये च, खलूष:
वगश् वरणे, वर्स:-देशः, समुद्रश्च । त प्लवनतरणयोः, 70 म्लेच्छ जाति: । फल निष्पत्ती, फलूषः-वीरुत् । वृगट्
तर्स:-बीतंसः, सूर्यश्च । वर्स-तर्सयोर्बाहुलकान्न षत्वम् वरणे, वरूष:-भाजनम् । पृश् पालनपूरणयो:-परूष;,
॥५६४॥ वृक्षविशेषः । कृत् विक्षेपे, करूषा:-जनपदः । जष्च्
व्यवाभ्यां तनेरीन वेः ॥५६॥ 35 जरसि, जरूप:-आदित्यः । लबूङ अवस्र सने च, लम्बूष:- वि अव इत्येताभ्यां परात् तनोतेः सः प्रत्ययो भवति ।
नीरकदम्बः, निचुलश्च । मजिः , पीयिश्च सौत्रौ, मञ्जूषा- वेरीकारश्चान्तादेशो भवति । वीतंसः-शकुन्यवरोधः । 75 काष्ठकोष्ठः, पीयूषं-प्रत्यग्रप्रसवक्षीरविकारः, अमृतं, घृतं अवतंस:-कर्णपूरः ॥५६॥
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
प्लुषेः प्लष् च ॥५६६॥
आभ्याम् अस: प्रत्ययः, स च णिद्वा भवति । वहीं प्लुषू दाहे, इत्यस्मात् सः प्रत्ययो भवत्यस्य च प्लष
प्रापणे, वाहसः-अनड्वान्, शकटम्, अजगरः, बहनजीवश्च । 40 इत्यादेशो भवति । प्लक्ष-नक्षत्र, वृक्षश्च ॥५६६॥
बहस:-अनड्वान्, शकटश्च । युक् मिश्रणे, यावसं-भक्तम्,
तृणम्, मित्र च, यवसम्-अश्वादिधासः, अन्नं च ॥५१॥ ऋजि-रिषि-कृषि-कृति-वश्च्युन्दि- शभ्यः कित् 5॥५६७॥
दिवादि-रभि-लभ्युरिभ्यः कित् ॥५७२॥ एभ्यः कित् सः प्रत्ययो भवति । ऋजि गत्यादौ, दिवादिभ्यो रभि-लभ्युरिभ्यश्च किद् असः प्रत्ययो भवति । ऋक्षं-नक्षत्रम्, ऋक्षः-अच्छभल्लः । रिष हिंसायाम्, दीव्यतेः, दिवस:-वासरः। वीड्यतेः लत्वे, वीलस:- 45 रिक्षा-यूकाण्डम्, लत्वे लिक्षा सैव । कुष्श् निष्कर्षे, लजावान् । नत्यतेः, नतस:-नर्तकः। क्षिप्यतेः, क्षिपसः
कुक्ष:-गर्भः, कक्ष-गर्तः । कृतत् छेदने, कृत्स:-गोत्रकृत्, योद्धा । सीव्यतेः, सिवस:-श्लोकः, वस्त्र च । श्रीव्यते:, 10 ओदनं, वक्त्रं, दुःखजातं च । ओवश्चौत छेदने, वृक्ष:- शिवस:-गतिमान् । इष्यतेः, इषसः-इष्वाचार्यः । रभि
पादप: । उन्दैप क्लेदने उत्स:-समुद्रः, आकाश, जलं, राभस्ये, रभस:-संरम्भः, उद्धर्षः, अगम्भीरश्च । हुलभिष् जलाशयश्च, उत्सं-स्रोतः । शुश् हिंसायाम्, शीर्ष- प्राप्तौ, लभस:-याचकः, प्राप्तिश्च । उरिः सौत्र:, उरस:- 50 शिरः ।।५६७॥
ऋषिः ।।५७२।। गुधि-गृधेस्त च ॥५६८॥
फनस-तामरसादयः ।।५७३॥ 15 आभ्यां कित् स: प्रत्ययस्तकारश्चान्तादेशो भवति ।।
फनसादयः शब्दा असप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । फण गती गुधच परिवेष्टने, गुत्स:-रोषः, तृणजातिश्च । गृधूच् न फनम:-पनसः । तमेररोऽन्तो वद्धिश्च, तामरसंअभिकाङ्क्षायाम्, गृत्स:-विप्रः, श्वा, गृध्रः, अभिलाषश्च ।।
पद्मम् । आदिग्रहणात् कीकस-बक्सादयो भवन्ति 55 तकारविधानमादिचतुर्थ बाधनार्थम् ॥५६८॥
।।५७३।। तप्यणि-पन्यत्यवि-रधि-नभि-नम्यमि-चमि-तमि
यु-वलिभ्यामासः ।।५७४॥ 20 चट्यति-पतेरसः ॥५६॥ एभ्योऽसः प्रत्ययो भवति । तपं संतापे, तपस:
आभ्याम् आसः प्रत्ययो भवति । यूक मिश्रणे, यवास:आदित्यः, पशुः, धर्मः, धर्मश्च । अण शब्दे, अणस:दुरालभा। बल प्राणन-धान्यावरोधयोः, बलास:-श्लेष्मा
60 शकुनिः । पनि स्तुतौ, पनसः-फलवृक्षः । अली भूषणादौ,
॥५७४।। अलस:-निरुत्साहः । अव रक्षणादो, अवस:-भानुः, राजा किलेः कित् ।।५७५॥ 25 च, अवसं-चापं, पाथेयं च । रधीच हिंसासंराद्ध्यो :, रध
किलत् श्वत्य-क्रीडनयोः, इत्यस्मात् किद् आसः प्रत्ययो इटि तु परोक्षायामेव इति नागमे, रन्धस:-अन्धकजातिः ।
भवति । किलासं-सिध्मम् किलासी-पाककर्परम् ।।५७५।। णभच हिंसायाम्, नभस:-ऋतुः, आकाशः, समुद्रश्च । णमं प्रहत्वे, नमस:-वेत्रः, प्रणामश्च । अम गती, अमस:-कालः, तलि-कसिभ्यामसिण ॥५७६॥
आहारः, संसारः, रोगश्च । चमू अदने, चमस: सोमपात्रम्, आभ्याम् ईसण प्रत्ययो भवति । तलण प्रतिष्ठायाम्, 65 30 मन्त्रपूतं, पिष्टं च । चमसी-मुद्गादिभित्तकृता। तमूच ! तालीम-गन्धद्रव्यम् । कस गतौ, कासीसं-धातुजमौषधम् काङ्क्षायाम्, तमस:-अन्धकारः, तमसा नाम नदी । चटण् ॥५७६।। भेदे, चटस:-चर्मपुटः । अत सातत्यगमने, अतसः-वायु:, आत्मा, वनस्पतिश्च, अतसी-औषधि: । पत्ल गतो, पतस:
सेडित् ॥५७७॥ पतङ्गः ।।५६६॥
पिंगट बन्धने, इत्यस्मात् डिद् ईसण प्रत्ययो भवति । 35 स-वयिभ्यां णित् ॥५७०॥
सीसं-लोहजाति: ।।५७७।। आभ्यां णिद् असः प्रत्ययो भवति । सं गतौ, मारस:
त्रपेरुसः ॥५७८॥ पक्षिविशेषः । वयि गती, वायसः-काकः ॥५७०।।
त्रपौषि लजायाम्, इत्यस्माद् उसः प्रत्ययो भवति । वहि-युभ्यां वा ॥५७१॥
| अपुसं-कर्कटिका । विधानसामर्थ्यात् षत्वाभावः ॥५७८।। Aho! Shrutgyanam
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४८
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
पटि-वीभ्यां टिसडिसौ ॥५७६ ॥
आभ्यां यथासंख्यं टिसो डिद् इसश्च प्रत्ययो भवति । पट गती, पट्टिस:- आयुधविशेषः । वीं प्रजननादौ, बिसंमृणालम् ।।५७६ ।।
तसः ।।५८०॥
पटि-वोभ्यां तसः प्रत्ययो भवति । पट्टसः - त्रिशूलम् । वेतसः - वानीरः ॥ ५८० ॥
25
इणः ।।५८१ ॥
एतेस्तसः प्रत्ययो भवति । एतसः - अध्वर्युः ॥ ५८१ ॥ पीङो 'नसक् ||५८२ |
पीच पाने, इत्यस्मात् किन्नसः प्रत्ययो भवति । पीनसः - श्लेष्मा ॥१८२॥
कृ- कुरिभ्यां पासः ॥ ५८३ ॥
आभ्यां पासः प्रत्ययो भवति । डुकंग् करणे, 15 कर्पास : - पिचु प्रकृतिः, वीरुच । कुरत् शब्दे, कूर्पासः - कञ्चुकः
॥५८३॥
कलि-कुलिभ्यां मास ॥ ५८४ ॥
आभ्यां किद् मासः प्रत्ययो भवति । कलि शब्द संख्यानयोः, कल्मासं - शबलम् । कुल बन्धु संस्त्यानयोः, कुल्मास:20 अर्धस्विनं माषादि || ५८४ |
अलेरम्बुसः ॥ ५८५॥
अली भूषणादी, इत्यस्माद् अम्बुसः प्रत्ययो भवति । अलम्बुस: - यातुधानः, अलम्बुसा नाम औषधिः ।। ५८५|| लूगो हः ॥५८६ ॥
नातेः प्रत्ययो भवति । लोहं सुवर्णादि ॥५८६ ॥ कितो गे च ॥५८७॥
कितु निवासे, इत्यस्मात् हः प्रत्ययो भवत्यस्य च गे इत्यादेशो भवति । गेहं गृहम् ||५८७ ||
हिंसेः सिम् च ॥ ५८८ ॥
30 हिसु हिंसायाम्, इत्यस्माद् हः प्रत्ययो भवत्यस्य च सिमित्यादेशो भवति । सिंह:- मृगराजः ॥५६८ ।।
वपनम् । पृश् पालनपूरणयोः, परहः-शंकरः । कटे वर्षा- 35 वरणयो:, कटह: - पर्जन्यः, कर्णवच्च कालायसभाजनम् । पट गतो, पटह: - वाद्यविशेषः । मट सादे सौत्रः, मटह:ह्रस्वः । लट बाल्ये, लटति-विलसति, लटहः - विलासवान् । ललिण् ईप्सायाम्, ललह: - लीलावान् । पल गती, पलह:आवापः । कलि शब्दसंख्यानयोः, कलहः - युद्धम् । अनक् 40 प्राणने, अनहः - नीरोगः । रगे शङ्कायाम्, रगहः- नटः । लगे सङ्गे, लगह: - मन्दः ।। ५८६ ।।
कृ-पू- कटि-पटि -मटि - लटि - ललि - पलि- कल्यनि-रगि- लगेरहः ||५८६ ॥
पुलेः कित् ॥५०॥
पुल महत्वे, इत्यस्मात् किद् अहः प्रत्ययो भवति । पुलहः - प्रजापतिः ।। ५६०।।
वृ- कटि - शमिभ्य आहः ॥५६१ ॥
एम्य आहः प्रत्ययो भवति । वृग्ट् वरणे, वराहःसूकरः । कटे वर्षावरणयो:, कटाहः कर्णवत् कालायस - भाजनम् । शम्रच् उपशमे, शमाहः - आश्रमः ||५६१।।
विलेः कित् ||५६२||
50
विलत् वरणे, इत्यस्मात् किद आहः प्रत्ययो भवति । विलाह: - रहः ।। ५६२ ।।
निर इण ऊहश् ||५६३ ॥
निर्र्वात् इंणक् गतौ इत्यस्मात् शिद् ऊहः प्रत्ययो भवति । निर्यूहः- सौधादिकाष्ठ निर्गमः || ५६३||
दस्त्यूहः ।।५६४।।
दाते: त्यूहः प्रत्ययो भवति । दात्यूहः पक्षिविशेषः
।। ५६४।।
45
वलि संवरणे, इत्यस्माद् अक्षः प्रत्ययो भवति । वलक्ष:शुक्लः ।। ५६६।।
लाक्षा- द्राक्षामिक्षादयः ॥५६७॥
55
अनेरोहः ||५||
अन प्राणने, इत्यस्मादोकहः प्रत्ययो भवति । अनो- 60 कह: - वृक्षः ।। ५६५ ॥
वले रक्षः ||५६६।
65
लाक्षादयः शब्दा अक्षप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । लसेरा च, लाक्षा-जतु । रसेद्र च, द्राक्षा- मृद्वीका । आङ् पूर्वान्मृदेरन्त्यस्वरादेर्लुक् प्रत्ययादेरित्वं च । आमिक्षा - हविर्विशेषः । आदिग्रहणात् चुप मन्दायां गतो इत्यस्य चोक्षः- ग्रामरागः,
एभ्यः अहः प्रत्ययो भवति । कृत् विक्षेपे, करहः- धान्या शुद्धं च । एवं पीयूक्षादयोऽपि भवन्ति ।। ५६७।।
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समि- निकषिभ्यामाः ॥ ५६८ ॥
सम्पूर्वादिण्क् गती, इत्यस्माद् निपूर्वात् कष हिंसायाम्, इत्यस्माच्च आः प्रत्ययो भवति । समया पर्वतम्, निकषा पर्वतम् । समीप असूयावाचिनावेती ।। ५६८ ।। 5 दिवि-पुरि-वृषि- मृषिभ्यः कित् ॥५६॥
एभ्यः किदु आः प्रत्ययो भवति । दिवच क्रीडा-जयेच्छापणि-द्युति-स्तुति-गतिषु दिवा - अहः । पुरत् अग्रगमने, पुराभूतकालवाचि । वृषू - सेचने, वृषा - प्रबलमित्यर्थः । मृषीच् तितिक्षायाम्, मृषा - अभूतमित्यर्थः ॥५६६ ।। 10 वेः साहाभ्याम् ॥ ६००॥
15
स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
20
विपूर्वाभ्यां षच् अन्तकर्मणि, ओहां त्यागे, इत्येता भ्याम् आः प्रत्ययो भवति । विसा:- चन्द्रमाः, बुद्धिश्च । तालव्यान्तोऽयमित्येके विहा:- विहगः, स्वर्गश्च ॥ ६०० ||
वृ- मिथि - दिशिभ्यस्थ-य-ट्याश्वान्ताः ॥ ६०१॥
एभ्यः किद् आः प्रत्ययो भवति । यथासंख्यं थकार-यकारट्यकाराश्चान्ता भवन्ति । वृग्ट् वरणे, वृथा - अनर्थकम् । मिथूग् मेघा हिंसयोः, मिथ्या मृषा, निष्फलं च । दिशींत् अतिसर्जने, दिष्टया - प्रीतिवचनम् ॥ ६०१ ॥
मुचि-स्वदेर्ध च ॥ ६०२॥
आभ्यां किद् आः प्रत्ययो भवति, घकारश्चान्तस्य भवति । मुच्लूती मोक्षणे, मुधा - अनिमित्तम् । ष्वदि आस्वादने, स्वधा - पितृबलिः ॥ ३०२ ॥
सोग आह च ||६०३ ||
पूर्वात् ब्रूतेः आः प्रत्ययो भवत्यस्य चाहादेशो भवति । 25 स्वाहा - देवतातर्पणम् ।। ६०३ ||
सनि क्षमि - दुषेः ॥ ६०४ ॥
एभ्यो धातुभ्य आ : प्रत्ययो भवति । षणूयी दाने, सना - नित्यम् | क्षमौषि सहने, क्षमा-भूः क्षान्तिव । दुषं च वैकृत्ये, दोषा - रात्रिः ॥ ६०४ ॥
30
सः ।।६०५।।
डित् ॥ ६०५ ॥
धातोर्बहुलम् आः प्रत्ययो भवति, स च डिद् भवति । मनिच् ज्ञाने मा-निषेधे । षच् अन्तकर्मणि, सा-अव सानम् । अनक् प्राणने, आ-स्मरणादौ । प्रीङ्च् प्रीती, प्रास्मयने । हनंक् हिंसागत्योः, हा विषादे । वन भक्ती, वा35 विकल्पे । शंकु दाने, रा- दीप्ति: । भांक् दीप्तौ भा - कान्तिः, सहपूर्वः सभा - परिषत् । नाम्नीति सहस्य
૪૨
स्वरेभ्य इः ||६०६ ॥
स्वरान्तेभ्यो धातुभ्य इ: प्रत्ययो भवति । जि अभिभवे, जयि:- राजा | हिंदू गति-वृद्ध्योः, हथिः कामः । रुक् शब्दे, 40 रवि - सूर्यः । कुंकु शब्दे, कविः - काव्यकर्ता । ष्टुंग स्तुती, स्तविः - उद्गाता । लूग्श् छेदने, लवि :- दात्रम् । पूग् पवने, पविः - वायुः, वज्र, पवित्रं च । भू सत्तायाम्, भविः - सत्ता चन्द्रः, विधिश्व । ऋक् गतो, अरिः शत्रुः । हंग् हरणे, हरिः - इन्द्रः, विष्णुः, चन्दनम्, मर्कटादिव । हरयः- 45 शक्राश्वाः । द्रुडुभृ ंग्क् पोषणे च भरिः- वसुधा । सृ ंगती, सरि:- मेघः । पृश् पालनपूरणयो:, परि:-भूमिः । तु लवनतरणयोः, तरि:- नौः । दृश् विदारणे, दरिः - महाभिदा । मृश् हिंसायाम्, ण्यन्तः, मारि:- अशिवम् । वृग्श् वरणे, वर:- विष्णु: । ण्यन्ताद् वारिः- हस्तिबन्धनम्, वारि-जलम् 50 ।।६०६।।
पद - पठि - पचि - स्थलि - हलि - कलि- बलि - वलि - वल्लि पल्लि कटि-चटि - वटि-वधि-गार्थ्यांचवन्दिनन्द्यवि वशि-वाशि- काशि- छर्दि तन्त्रि मन्त्रि- खण्डमण्डि - चण्डि - यत्यञ्जि-मस्यसि - वनि-ध्वनि - सनि - 55 गमि तमि-ग्रन्थि - श्रन्थि- जनि-मण्यादिभ्यः ।। ६०७ ॥
एभ्यः इः प्रत्ययो भवति । पदिच् गतौ पदि:-राशिः, मोक्षमार्गच । पठ व्यक्तायां वाचि, पठिः- विद्वान् । डुपचीप पाके, पचिः अग्निः । ष्ठल स्थाने, स्थलि:- दानशाला । हल विलेखने, हलि:- हलः । कलि शब्दसंख्यानयोः, कलि:- 60 कलहः, युगं च । बल प्राणनधान्यावरोधयोः, बलिः - देवतोपहार: दानवच । वलि वल्लि संवरणे, वलिः- त्वक्तरङ्गः । लि:- हिरण्यशलाका, लता च । पल्ल गतौ, पल्लि - मुनीनामाश्रमः, व्याधसंस्त्यायश्च । कटे वर्षावरणयो:, कटि:स्वाङ्गम् । चटण् भेदे, चटि:-वर्णः । वट वेष्टने, वटि :- 65 गुलिका, तन्तुः, शूना च, नाभिः, वर्णश्च । वत्र बन्धने, बधि:- क्रियाशब्दः । गाधृङ् प्रतिष्ठालिप्साग्रन्थेषु, गाधिःविश्वामित्रपिता । अर्च पूजायाम्, अचि:- अग्निशिखा । वङ् स्तुत्यभिवादनयोः वन्दि:- ग्रहणिः । टुनदु समृद्धी, नन्दि - ईश्वरप्रतीहारः, भेरिव । अव रक्षणादौ, अवि:- 70 ऊर्णायुः । वशक् कान्तौ वशि:- वशिता । वाशिच् शब्दे, वाशि:- प्रकान्तिः, रश्मिः - गोमायुः, अग्निः शब्दः, प्रजननप्राप्ता चतुष्पात् जलदच । काशृङ् दीप्ती, काशयः - जनपदः । छर्दण् वमने, छर्दि :- वमनम् । तन्त्रिण् कुटुम्बधारणे, तन्त्रिः| वीणासूत्रम् । मन्त्रिण गुप्तभाषणे, मन्त्रिः सचिवः । खडुण् 75
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
भेदे, खण्डि :-प्रद्वारम् । मड्डु भूषायाम्, मण्डि : - मृद्भाजनपिधानम् । चडुङ्कोपे, चण्डि - भामिनी । यतङ् प्रयत्ने, यतिः - भिक्षुः । अञ्जौप् व्यक्तिम्रक्षणगतिषु, अञ्जि :सज्ज:, पेषणी, पेज:, गतिश्च समञ्जिः, शिश्नः । मच् 5 परिणामे, मसि:- स्त्री असूच् क्षेपणे, असि: खङ्गः । वनूयी याचने, वनि :- साधुः, याचना, शकुनिः, अग्निश्च । ध्वन शब्दे, ध्वनिः- नादः । षण भक्तौ सनिः- संभक्ता, पन्थाः, दानं, म्लेच्छः, नदीतटं च । गम्लृ गतौ गमि:आचार्यः । तमूच् काङ्क्षायाम्, तमिः - अलसः । ग्रन्थश् 10 संदर्भे, श्रन्थ मोचनप्रतिहर्षयोः, ग्रन्थिः, श्रन्थिश्व पर्व संध्यादि । जनैचि प्रादुर्भावे, जनि:- वधूः, कुलाङ्गना, भगिनी, प्रादुर्भाव मण शब्दे, मणिः- रत्नम् । आदिग्रहणात् वहीं प्रापणे, वहिः - अश्वः । खादू भक्षणे, खादि:श्वा । दधि धारणे, दधि-क्षीरविकार: । खल संचये च, 15 खलि:- पिण्याकः । शचि व्यक्तायां वाचि शची- इन्द्राणी, इतोऽत्यर्थात् इति गौरादित्वाद् वा ङोः इत्यादयोऽपि भवन्ति ।।६०७ ||
किलि- पिलि- पिशि - चिटि- त्रुटि शुष्ठि- तुण्डि कुण्ड भण्ड- हुण्डि - हिण्डि पिण्डि - चुल्लि बुधि- मिथि20 रुहि दिवि - कीर्त्यादिभ्यः || ६०८ ||
एम्य: इ: प्रत्ययो भवति । किलत् श्वैत्य-क्रीडनयोः, केलि:- क्रीडा | पिलण् क्षेपे, पेलि:- क्षुद्रपेला
पिशत् अवयवे, पेशि:- मांसखण्डम् । चिट प्रेष्ये, चेटि:- दारिका, प्रेष्या च । त्रुटत् छेदने, ण्यन्तः, त्रोटि :- चञ्चुः । शुरु 25 शोषणे, शुण्ठि:- विश्वभेषजम् ।
|
तुडुङ् तोडने, तुण्ड:
आस्यम्, प्रवृद्धा च नाभिः । कुडुङ् दाहे, कुण्डि : - जलभाजनम् । भडुङ् परिभाषणे, भण्डि : - शकटम् हुडुङ् संघाते, हुण्डि : - पिण्डितः, ओदनः । हिडुङ् गतौ च हिण्डि : - रात्रौ रक्षाचार: । पिडुङ् संघाते, पिण्डि: नि 30 पीडित स्नेह पिण्डः । चुल्ल हावकरणे, चुल्लिः- रन्धनस्थानम् ।
बुधिच् ज्ञाने, बोधि:-सम्यग्ज्ञानम् । मिश्रृङ् - मेधा - हिंसयोः, मेथि: - खलमध्यस्थूणा । रुहं बीजजन्मनि, रोहिः - सस्यं जन्म च । दिवच् क्रीडादौ, देवि :- भूमिः । कृतण् संशब्दने, णिजन्तः कीर्तिः - यशः । आदिग्रहणादन्येऽपि ॥ ६०८ ।।
35
नाम्युपान्त्य कृ-गु-शू-प-पूभ्यः कित् ॥ ६० ॥ नाम्युपान्त्येभ्यः क्रादिभ्यश्च किदिः प्रत्ययो भवति । लिखत् अक्षरविन्यासे, लिखि:- शिल्पम् । शुच् शोके. शुचिः -पूतः, विद्वान्, धर्म, आषाढ । रुचि अभिप्रीत्यां च, रुचि:- दीप्ति:, अभिलाषच । भुजंप् पालनाभ्यवहारयोः,
भुजि :- अग्निः, राजा, कुटिलं च । कुणत् शब्दोपकरणयो:, 40 कुणि:- विकलो हस्तः, हस्तविकलश्च । सृजत् विसर्गे, सृजि: - पन्थाः । द्युतिः दीप्तौ द्युतिः- दीप्तिः । ऋत् घृणागतिस्पर्धेषु ऋतिः - यतिः । छिपी द्वैधीकरणे, छिदिः - छेत्ताः - पशुश्च । मुदि हर्षे, मुदिः - बालः । भिपी विदारणे, भिदि : - वज्र', सूचकः, भेत्ता च । ऊछुपी दीप्तिदेवनयो:, 45 हृदिः - रथकारः । लिपींत् उपदेहे, लिपि:- अक्षरजातिः । तुर्-त्वरणे सौत्रः, तुरिः- तन्तुवायोपकरणम् । डुलण् उत्क्षेपे, डुलिः - कच्छपः । त्विषीं दीप्तौ त्विषिः - दीप्तिः, त्विषिमान् राजवर्चस्वी च । कृषींत् विलेखने, कृषिः कर्षणम्-कर्षणभूमिश्र । ऋषैत् गतौ, ऋषिः - मुनिः, वेद । EO कुषश् निष्कर्षे कुषिः- शुषिरम् । शुषंच् शोषणे, शुषि:छिद्रम्, शोषणं च । हृषु अलीके, हृषिः - अलीकवादी, दीप्तिः, तुष्टिश्च । ष्णुहौच् उद्गिरणे, स्तुहिः- वृक्षः । कृत् विक्षेपे, किरि:- सूकरः, मूषिकः, गन्धर्वः, गर्तश्च । मृत् निगरणे, गिरि:- नगः कन्दुकच । शृश् हिंसायाम्, शिरिः- 55 हिंस्रः, खड्गः शोकः, पाषाण । पुशु पालनपूरणयो:, पुरिः- नगरं राजा, पूरयिता च । पूङ् पवने, पुविः - बात: ॥ ६० ॥
विदि-वृतेर्वा ॥ ६१० ॥
आभ्याम् इः प्रत्ययो भवति, स च किद्वा । विदक् ज्ञाने, 60 विदि:- शिल्पी, वेदिः - इज्यादिस्थानम् । वृतङ् वर्तने, वृतिः - कण्टकशाखावरणम् । निर्वृतिः - सुखम्, वर्तिः - द्रव्यम्, दीपाङ्गं च ।। ६१० ।।
तृ-भ्रम्याद्यापि दम्भिम्यस्तित्तिर- भृमाघापभाव ।।६११॥
65
एभ्यः किद् इः प्रत्ययो भवति । एषां च यथासंख्यं तित्तिर- भृम-अध- अप-देभ इत्यादेशा भवन्ति । तू प्लवनतरणयोः, तित्तिरिः पक्षिजातिः, प्रवक्ता च वेदशाखायाः । भ्रमू चलने, भृमि:- वायुः, हस्ती, जलं च । बाहुलकाद् भृमादेशाभावे, भ्रमिः भ्रमः । अदं प्सांक् भक्षणे, अधि-उप- 70 रिभावे, अध्यागच्छति | आपलृट् व्याप्तौ अपि- समुच्चयादौ, लक्षोऽपि न्यग्रोधोऽपि । दम्भूट दम्भे, देभि:शरासनम् ।।६११।
मने-रुदेतौ चास्य वा ॥ ६१२॥
मनिच् ज्ञाने, इत्यस्माद् इ: प्रत्ययो भवत्यकारस्य च 75 ऊकारैकारौ वा भवतः । मुनि:- ज्ञानवान् । मेनिःसंकल्पः । मनिः धूमवतः ।। ६१२ ॥
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क्रमि तमि-स्तम्भेरिच नमस्तु वा ।।६१३||
एम्य: कि इ: प्रत्ययो भवत्यकारस्य चेकारो भवति । नमः पुनरकारस्कारो विकल्पेन, क्रमू पादविक्षेपे, क्रिमि:क्षुद्रजन्तुः । तमुच् काङ्क्षायाम्, तिमि :-महामत्स्यः । स्तम्भिः 5 सौत्रः, स्तिभिः-केतकादिसूची, हृदयं, समुद्रश्च । णमं प्रहृत्वे, निमि: - राजा, नमिः - विद्याधरणामाद्यः तीर्थकरव ।।६१३।।
स्वोपजोणादिगणसूत्र विवरणम् ॥
आम्भि कुष्ठि कम्प्यहिभ्यो नलुक् च ॥ ६१४॥
एभ्य इ: प्रत्ययो नकारस्य च लुग् भवति । अभूङ् 10 शब्दे, अभि आभिमुख्येऽव्ययम्, अभ्यग्नि शलभाः पतन्ति । कुठु आलस्येच, कुठि: - वृक्षः, पापं वृषलः, देहः, गेहं कुठारश्च । कपुङ् चलने, कपिः, अग्निः वानरश्च । अहुङ् गती, अहि:- सर्पः, वृत्रः, वप्रश्च ।। ६१४ ॥
|
उभेर्द्वत्रौ च ॥६१५॥
उभत् पूरणे, इत्यस्माद् इ: प्रत्ययो भवत्यस्य च द्व-त्री इत्यादेशौ भवतः । द्वौ द्वितीयः, द्विमुनि व्याकरणस्य । त्रयः तृतीयः, त्रिमुनि व्याकरणस्य ।। ६१५ ।।
15
नी- वी - प्रहृभ्यो डित् ॥ ६१६॥
एम्यो डि इ: प्रत्ययो भवति । णीं प्रापणे, निर्वसति । 20 वीं प्रजननाद, विः - तन्तुवायः, पक्षी, उपसर्गव, यथा विभवति । हृग् हरणे, प्रपूर्वः प्रहि:- कूपः, उदपानं च
॥ ६१६॥
वौ रिचेः स्वरान्नोऽन्तश्च ॥ ६१७॥
वावुपसर्गे सति रिपी विरेचने इत्यस्माद् इः प्रत्यय: 25 स्वरात्परो नोऽन्तश्च भवति । विरश्चिः - ब्रह्मा ।।६१७।।
30
कमि-मि-जमि घसि-शलि-फलि-तलि-तडि वजिजि-ध्वजि-राजि - पणि-वणि वदिसदि-हदि- हनि सहि-वहि- पिवपि भटि कञ्चि- संपतिभ्यो णित्
।।६१८ ।।
एभ्यः प्रत्ययः स च णिद्वा भवति । डुकृंग् करणे, कारि:- शिल्पी | करि:- हस्ती, विष्णुश्च । शृश् हिंसायाम्, 55 शारि:- द्यूत.पकरणम्, हस्तिपर्याणम्, शारिका च । शरिःहिसा शूलच । कुटत् कौटिल्ये, कोटि :- अस्त्रः, अग्रभाग, अष्टमं चाङ्कस्थानं च कुटि:- गृह, शरीराङ्गं च । ग्रहीश् उपादाने, ग्राहिः पतिः, ग्रहि: - वेणुः । खनूग् अवदारणे, खानि: - खनिव निधिः, आकरः, तडागं च । अण शब्दे 60 आणिः, अणिश्च - द्वारकीलिका । कष हिंसायाम्, कषि:freeपलम् काष्ठम्, अश्वकर्णः खनित्रं च । अली भूषणादौ, आलि:- पक्तिः, सखी च अलिः - भ्रमरः । पल गतो, पालि:- जलसेतुः, कर्णपर्यन्तच, पलि:- संस्त्यायः । चर भक्षणे च चारिः पशूनां भक्ष्यम्, चरिः - प्राकार- 65 शिखरम् विषय:- वायुः पशुः केशोर्णा च । वसं निवासे, वासि:- तक्षोपकरणम् वसिः - जय्या, अग्निः, गृहं, रात्रिश्च । गडु वदनैकदेशे, गण्डि :-गण्डिका । णित्त्वपक्षे तु अनुपान्त्यस्यापि वृद्धौ गाण्डि: - धनुष्प ।। ६१६ ।।
|
एभ्यो णिद् इः प्रत्ययो भवति । कमूङ् कान्तौ कामि:वसुकः, कामी च । टुवमू उगिरणे, वामिः - श्री । जमू अदने, जामि:-भगिनी, तृणं, जनपदचैकः । घस्लृ अदने, घासि:- संग्रामः, गर्तः, अग्नि, बहुभुक् च । शल गतौ शालि:-ब्रीहिराजः । फल निष्पत्तौ फालि:- दलम् । 35 तलण् प्रतिष्ठायाम्, तालि:- वृक्षजातिः । तडण् आघाते, ताडि:- स एव । वज व्रज ध्वज गती, वाजि:- अश्व:, पुङ्खावसानं च । ब्राजि:-पद्धतिः, पिटकजातिश्च । ध्वाजि:
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पताका, अश्वश्व | राजग् दीप्तौ राजि:- पङ्क्तिः, लेखा च। पणि व्यवहार स्तुत्योः पाणिः करः । वण शब्दे, वाणि: - वाक्, ङयाम् वाणी । वद वक्तायां वाचि, वादि:- 40 वाग्मी, वीणा च । पद्ॡ विशरणगत्यवसादनेषु, सद अश्वारोहः सारथिश्व । हृदि पुरीषोत्सर्गे हादिः - लूता । हन हिंसागत्योः घातिः प्रहरणम् । केचित्तु हानि: - अर्थनाशः, उच्छित्तिचेति, उदाहरन्ति तत्र बाहुलकात् 'णिति घात्' इति घाद् न भवति । बाहुलकादेव णित्व - 45 विकल्पे, हनिः - आयुधम् । षहि मर्षणे, साहि: - शैलः । वहीं प्रापणे, वाहि: - अनड्वान् । तपं संतापे, तापिःदानवः । डुवपी बीजसंताने, वापिः पुष्करिणी । भट भृतौ भाटि :- सुरतमूल्यम् । कचुङ् दीप्तौ काञ्चि:-मेखला, पुरी च । णित्-करणादनुपान्त्यस्यापि वृद्धिः । पत्लृ गतौ, 50 संपूर्व: संपातिः - पक्षिराजः ॥ ६१८ ||
कृ-श- कुटि - ग्रहि- खन्यणि कष्यल - पलि चरिवसि गण्डिभ्यो वा ॥६१६॥
पादानात्यजिभ्याम् ॥ ६२० ॥
पादशब्दपूर्वाभ्यां केवलाभ्यां चात्यजिभ्यां द् िइ: प्रत्ययो भवति । अत सातत्यगमने, अज क्षेपणे च । पादाभ्यामतत्यजति वा पदाजि:, पदातिः । पदः पादस्याज्यातिगोपहते इति पदभावः । उभावपि पत्तिवाचिनौ । आति:पक्षी, सुपूर्वात् स्वातिः - वायव्यनक्षत्रम् | आजि:- संग्राम: - 75 स्पर्धाधव ॥ ६२॥ Aho! Shrutgyanam
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५२
नहेर्भ च ॥६२१॥
हींच् बन्धने, इत्यस्माण्णिद् इ: प्रत्ययो भवति । भकारश्चान्तादेशो भवति । नाभिः - अन्त्यकुलकरः, चक्रमध्यं, शरीरावयवश्च ॥ ६२१ ॥
5
अशो रश्चादिः ||६२२॥
अशौटि व्याप्ती, इत्यस्माण्णिद् इः प्रत्ययो भवति रेफ धातोरादिर्भवति । राशि:- समूहः, नक्षत्रपादनवकरूपश्र्च मेषादिः ||६२२||
स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
काय: किरिच वा ॥६२३॥
10
शब्दे, इत्यस्मात् किः प्रत्ययो भवति । इकारश्चान्तादेशो वा भवति । किकि:-पक्षी, विद्वांश्च । काकि:स्वरदोषः ||६२३॥
चमेरुवातः ॥६३२॥
चमू अदने इत्यस्माद् ढिः प्रत्ययो भवत्यस्योकारश्च । चुण्ठि:- क्षुद्रवापी ॥ ६३२ ॥
मुषेरुण् चान्तः ॥६३३॥
मुषश् स्तेये, इत्यस्माद् ढिः प्रत्यय उण् चान्तो भवति । 45 मुषुण्ठि:- प्रहरणम् । उणो न गुणो विधानसामर्थ्यात् ॥ ६३३ ॥
------क्षु-ज्वरि-रि-रिपूरिभ्यो णिः ॥ ६३४ ॥
वर्द्धेरकिः ॥६२४॥
एभ्यो णिः प्रत्ययो भवति । के शब्दे, काणि: - वैलक्ष्या
वर्षंण् छेदनपूरणयो:, इत्यस्माद् अकिः प्रत्ययो भवति । ननुसर्पणम् । वेंग् तन्तुसन्ताने, वाणि: - व्युतिः । वीं प्रजन- 50 15 वर्धकिः - तक्षा ॥ ६२४ ॥
सनेर्डखिः ॥६२५॥
नादी, वेणि: - कबरी । डुक्रींग्श् द्रव्यविनिमये, क्रेणि:विशेषः । श्रग् सेवायाम्, श्रेणिः - पङ्क्तिः, बलविशेषश्व, श्रेणयः - अष्टादश गणविशेषाः । निपूर्वात् निश्रेणिःसंक्रमः । श्रुं श्रवणे, श्रोणि: - जघनम् । टुक्षुक् शब्दे क्षोणि:- पृथ्वी । ज्वर - रोगे, जूणिः - ज्वरः, वायुः, आदित्यः, 55 अग्निः शरीरं, ब्रह्मा, पुराणश्च । तुरैचि त्वरायाम्, तूणिः - त्वरा, मनः शीघ्रश्च । चूरैचि दाहे, चूर्णि:वृत्तिः । पूरैचि आप्यायने, पूर्णिः - पूरः ।।६३४ ॥
षणूयी दाने, इत्यस्माद् डिद् अखिः प्रत्ययो भवति । सखा - मित्रम्, सखायौ, सखायः ||६२५||
कोर्डिखिः ||६२६॥
कुंकु शब्दे, इत्यस्माद् डिद् इखिः प्रत्ययो भवति । किखि:- लोमसिका ||६२६॥ मृ-वि-कण्यणि-दध्यविभ्य ईचिः ||६२७॥
एभ्य ईचिः प्रत्ययो भवति । मृत् प्राणत्यागे, मरीचिःमुनि:, मयूखश्च । वोश्व गतिवृद्ध्योः श्वयीचिः - चन्द्रः, 25 श्वयथुश्च । कण अण शब्दे, कणीचिः - प्राणी, लता, चक्षुः, शकटं, शङ्खश्च । अणीचिः - वेणुः, शाकटिकश्च । दधि धारणे, दधीचि :- राजर्षि: । अव रक्षणादो, अवीचि:नरकविशेषः ।। ६२७॥
20
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35
श्रढः ॥६३९॥
श्रिग् सेवायाम्, इत्यस्माद् ढिः प्रत्ययो भवति । श्रेढिःगणितव्यवहारः ।। ६३१||
वेगो डित् ॥६२८ ॥
वेंग् तन्तुसंताने, इत्यस्माद् डिद् ईचिः प्रत्ययो भवति । वीचिः - ऊर्मिः ॥ ६२८॥
40
ऋत् घृ - सृ-कु- वृषिभ्यः कित् ॥ ६३५॥
ऋकारान्तेभ्यो घृ इत्यादिभ्यश्च किदु णिः प्रत्ययो 60 भवति । शृशु हिंसायाम् शीणि: - रोग:, अवयवश्च । स्तृग्श् आच्छादने, स्तीर्णिः - संस्तरः । घूं सेचने, घृणि:- रश्मिः, ज्वाला, निदाघश्च । सूं गतौ सृणिः - आदित्यः, वज्रम्, अनिल, अङ्कुशः, अग्निश्च । कुंकु शब्दे, कुणि:- विकलो हस्तः, हस्तविकलच । वृषू सेचने, वृष्णिः -- वस्न:, मेषः, 65 यदुविशेषश्च । पर्वतेरपीच्छन्त्येके । पृष्णिः - रश्मिः ।। ६३५।।
पृषि - हृषिभ्यां वृद्धिश्च ॥६३६॥
आभ्यां णिः प्रत्ययोऽनयोश्च वृद्धिर्भवति । पृषू सेचने, पाणिः - पादपश्चाद्भाग, पृष्ठप्रदेशश्च । हृषंच् तुष्टो, हाष्णिः - हरणम् ।।६३६ ॥
70
वर्णात् ॥ ६२ ॥
वण शब्दे इत्यस्माद् णिद् ईचिः प्रत्ययो भवति । वाणीचि:- छाया, व्याधिश्च ।। ६२ ।।
कृषि - शकिभ्यामटिः ॥ ६३०॥
हूण: -- भूणि- घूर्यादयः ॥ ६३७ ॥
आभ्याम् अटिः प्रत्ययो भवति । कृपोङ् सामर्थ्य, एते प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । हंग् हरणे, घुंग् धारणे, कर्पटिः-निःस्वः । शक्लृट् शक्ती, शकटिः- शकटम् ।।६३०|| | भू सत्तायाम् घूं सेचने, ऊत्वं रश्चान्तो निपात्यन्ते । हूणिः
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ऋ - हृ-सृ-मृ-धृ-भृ-कृ-तृ-ग्रहेरणिः ॥६३८ ॥ एभ्योऽणिः प्रत्ययो भवति । ऋक् गतो, अरणिः - अग्नि6 मन्थनकाष्ठम् । हंग् हरणे, हरणिः - कुल्या, मृत्युश्च । सृ गतौ, सरणिः - ईषद् गतिः, पन्थाः, आदित्यः, शिरासंघातश्च । मृत् प्राणत्यागे, मरणिः- रात्रिः । धूंग् धारणे, धरणिःक्षितिः । द्रुडुभृंगुक् पोषणे च भरणिः - नक्षत्रम् । डुकृंग् करणे, करणिः-सादृश्यम् । तू प्लवन-तरणयोः, तरणिः - 10 संक्रम:, आदित्यः यवागूः पतितगोरूपोत्थापनी च यष्टिः । वैदुःखार्थे दुःखेन तीर्यंत इति, वैतरणी नदी । ग्रहीश् उपादाने, ग्रहणिः-जठराग्निः, तदाधारो व्याधिः, ढ़, मृत्यु ||६३८ || कङ्केरिञ्चास्य वा ॥ ६३६ ॥
15
ककुङ् गतौ, इत्यस्माद् अणिः प्रत्ययो भवति धातोरस्य चकारो वा भवति । कङ्कणिः कङ्कणम्, किङ्कणि:घण्टा ||६३६||
25
कणित् ॥६४०॥
ककि लौल्ये, इत्यस्माद् णिद् अणिः प्रत्ययो भवति । 20 काकणि: - मानविशेषः || ६४० ।।
30
स्वोपज्ञोणादिगणसूत्र विवरणम् ॥
कुल्या | धूणिः धृतिः । भूणिः - चेतनं भूमिः कालच । घूर्णः - भ्रम: । आदिग्रहणादन्येऽपि ॥ ६३७॥
35
कृषेश्व चादेः ॥ ६४१॥
कृषीत् विलेखने, इत्यस्माद् अणि: प्रत्ययो भवत्यादेशश्च चकारो भवति । चर्षणिः- चमूः अग्निः, बुद्धिः, वेश्या, वृषश्च ।। ६४१ ।।
व्यवसायः,
क्षिपेः कित् ॥६४२ ॥
क्षिपत् प्रेरणे, इत्यस्मात् किद् अणि प्रत्ययो भवति । क्षिपणि:- आयुधं, बडिशबन्धकः, चर्मकृता पाषाणसर्जनी च ।। ६४२ ॥
आङः कृ-ह-शुषः सनः ||६४३ ॥
आङः परेभ्यो डुकूंग् करणे, हृग् हरणे, शुषंच् शोषणे, इत्येतेभ्यः सन्नन्तेभ्योऽणिः प्रत्ययो भवति । आचिकीर्षणिःव्यवसायः । आजिहीर्षणिः-श्रीः । आशुशुक्षणिः - अग्निः वायुश्च ।। ६४३ ।।
वारिसयदेरिणिक् || ६४४ ॥
एम्य: किद् इणिः प्रत्ययो भवति । वृग्ट् वरणे, ण्यन्तः । वारिणिः - पशुः, पशुवृत्तिश्च । सूं गतौ त्रिणि:- अग्निः वज्र ं च । आदिग्रहणादन्येऽपि ॥ ६४४ ||
अत्रीणिः ||६४५||
अदं भक्षणे, इत्यस्मात् त्रीणि: प्रत्ययो भवति । अत्रीणिः - कृमिजातिः ।। ६४५ ।।
40
प्लु-ज्ञा- यजि - षपि-पदि - वसि - वितसिभ्यस्तिः ॥६४६॥
एभ्यः तिः प्रत्ययो भवति । प्लुङ् गतौ प्लोति:चीरम् । ज्ञांश् अवबोधने, ज्ञायते त्रैलोक्यस्य त्रातेति ज्ञातिःइक्ष्वाकुर्वृषभः, स्वजनश्च । यजीं देवपूजादी, यष्टिः दण्ड: 45 लता च । षप समवाये, सप्तिः अश्वः । पदिच् गतो, पत्तिः- पदातिः । वसं निवासे, वस्ति: - मूत्राधारः, चर्मपुटः, स्नेहोपकरणं च । तसूच् उपक्षये, विपूर्वः वितस्तिःअर्धहस्तः ।।६४६॥।
५३
प्रथेलुक् च वा ||६४७॥
प्रथिष् प्रख्याने, इत्यस्मात् तिः प्रत्ययो भवति, अन्तस्य च लुग्वा भवति । वृक्षं प्रति विद्योतते--प्रतिष्ठितः । पक्षे प्रत्तिः प्रथनं, भागश्च । ।।६४७।।
पूर्वात् अस भुवि इत्यस्मात् श्वित् तिः प्रत्ययो भवति । स्वस्ति - कल्याणम् । शित्वाद् भूभावाऽल्लुगभावः ॥ ६५० ॥
कोर्यषादिः ||६४८ ॥
कुंकु शब्दे, इत्यस्माद् यषादिः तिः प्रत्ययो भवति । 55 कोयष्टि:-पक्षिविशेषः ।। ६४८ ।।
ग्रो गुष् च ॥ ६४६ ॥
गृत् निगरणे, इत्यस्मात् तिः प्रत्ययो भवत्यस्य च गृष् इत्यादेशो भवति । गृष्टिः सकृत् प्रसूता गौः ||६४९|| सौरस्तेः श्वित् ॥६५०॥
दू- मुषि - कृषि - रिषि - विषि-शो- शुच्यशि- प्रयोण् प्रभृतिभ्यः कित् ॥ ६५१॥
50
।। ६५१।। Alo! Shrutgyanam
60
एम्य: कितुतिः प्रत्ययो भवति । दृङ्तु आदरे दृति:- 65 छागादित्वङ्मयो जलाधारः । मुषश् स्तेये, मुष्टि:अङ्गुलिसंनिवेशविशेषः । कृषत् विलेखने, कृष्टि:पण्डितः । रिष हिनायाम्, रिष्टिः- प्रहरणम् । विष्लूंकी व्याप्ती, विष्टिः- अचेतनकर्मकरः । शोंच् तक्षणे, शिति:कृष्णः, कृशश्च । शुच् शोके, शुक्ति:- मुक्तादिः । अशौटि 70 व्याप्तौ, अष्टिः- छन्दोविशेषः । पूयैङ् दुर्गन्धविशरणयो:, पूतिः - दुर्गन्धः, दुष्टम्, तृणजातिश्च । इण्क गती, इतिहेत्वादी । टुडुभृंग्क् पोषणे च प्रपूर्वः प्रभृतिः - आदिः
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૫૪
कु- च्योर्नोऽन्त ॥ ६५२
आभ्यां कितु तिः प्रत्ययो भवति नकारश्वान्तो भवति । कुङ् शब्दे, कुन्ति: - राजा, कुन्तयः - जनपदः । चिग्टु चयने, चिन्तिः- राजा ।। ६५२ ।।
खल्यमि-रमि-वहि-वस्य तें रतिः ॥ ६५३ ॥
एभ्योऽतिः प्रत्ययो भवति । खल संचये च, खलति:खल्वाट: । अम गतौ, अमतिः- चातकः, छागः प्रावृद्, मार्गः, व्याधिः, गतिश्च । रमिं क्रीडायाम्, रमतिः - क्रीडा, कामः, स्वर्गः स्वभावश्च । वहीं प्रापणे, वहतिः -गौः, वायु, 10 अमात्यः, अपत्यं, कुटुम्बं च । वसं निवासे, वसति:निवासः, ग्रामसंनिवेशश्च । ऋक् गतौ अरतिः - वायुः, सरणम्, असुखं, क्रोधः, वर्म च ।। ६५३ ।।
5
स्वोपज्ञोणादिगण सूत्रविवरणम् ॥
हन्तेरह च ॥६५४॥
हन हिंसागत्योः, इत्यस्मादतिः प्रत्ययो भवत्यस्य च 15 अंह इत्यादेशो भवति । अंहतिः - व्याधिः पन्थाः कालः, रथश्च ।। ६५४ ।।
वृगो व्रत् च ॥ ६५५॥
वृग्ट् वरणे, इत्यस्माद् अति: प्रत्ययो भवत्यस्य व्रत् इत्यादेशो भवति । व्रततिः वल्लिः ।। ६५५॥
20
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अञ्चेः क् च वा ॥६५६॥
अञ्च गतौ चेत्यस्माद् अतिः प्रत्ययो भवत्यन्त्यस्य चक् इत्यन्तादेशो वा भवति । अङ्कतिः - वायुः अग्निः प्रजापतिश्च । अञ्चति:- अग्निः ॥६५६ ॥
वाणिद्वा ।।६५७।।
25 वां गतिगन्धनयो:, इत्यस्माद् अतिः प्रत्ययो भवति, स च णिदु वा भवति । वायतिः - वातः, वातिः - गन्धमिश्रपवनः ।। ६५७।।
योः कित् ||६५८||
युक् मिश्रणे इत्यस्माद् अतिः प्रत्ययः किद् भवति । 30 युवतिः - तरुणी ॥। ६५८ ।।
पातेर्वा ॥ ६५ ॥
पां रक्षणे, इत्यस्माद् अति: प्रत्ययः स च किद्वा भवति । पतिः- भर्ता, पाति: भर्ता, रक्षिता, प्रभुश्व
|
॥६५६॥
पुलस्तिः । क्षिपत् प्रेरणे, क्षिपस्तिः । एते लौकिका ऋषयः । अगस्तिः- वृक्षजातिश्च ॥ ६६० ।।
अगि विलि - पुलि- क्षिपेरस्तिक् ॥६६० ॥
एभ्यः किद् अस्तिः प्रत्ययो भवति । अग कुटिलायां गतो, अगस्तिः । विलत् वरणे, विलस्तिः । पुल महत्त्वे,
गृभ् च ॥६६१ ॥
गृधूच् अभिकाङ्क्षायाम् इत्यस्माद् अस्तिक् प्रत्ययो भवति, गभ् चास्यादेशो भवति । नभस्ति :- रश्मिः ।। ६६१ ॥ वस्यतिभ्यामातिः ॥६६२ ॥
आभ्याम् आतिः प्रत्ययो भवति । वसं निवासे, वसातयः - जनपदः । ऋक् गतौ, अरातिः - रिपुः ||६६२ ।। 45 अभेर्यामाभ्याम् ||६६३॥
अभिपूर्वाभ्याम् आतिः प्रत्ययो भवति । यांक् प्रापणे, मांक माने, अभियातिः, अभिमातिश्च - शत्रुः ।।६६३।।
40
यजो य च ॥ ६६४ ॥
यजी देवपूजादी, इत्यस्माद् अतिः प्रत्ययो भवत्यस्य च 50 यकारोऽन्तादेशो भवति । ययातिः - राजा ॥ ६६४ ।।
द्यविच्छदि-भूभ्योऽन्तिः ॥ ६६५ ॥
एभ्योऽन्तिः प्रत्ययो भवति । वद वक्तायां वाचि, वदन्तिः - कथा । अव रक्षणादिषु, अवन्तिः- राजा । अवन्तयः - जनपदः । छदण् अपवारणे, युजादिविकल्पितणिजन्त- 55 त्वादण्यन्तः, छदन्तिः - गृहाच्छादनद्रव्यम् । भू सत्तायाम्, भवन्तिः - कालः, लोकस्थिति ।। ६६५ ।। शकेरुन्तिः ।। ६६६॥
शक्लृट् शक्तौ इत्यस्माद् उन्तिः प्रत्ययो भवति । शकुन्तिः - पक्षी || ६६६ ॥
नञो दागो डितिः ॥६६७॥
60
नञ्पूर्वात् डुदांग्क् दाने, इत्यस्माद् डिद् इतिः प्रत्ययो भवति । अदिति:- दाता, देवमाता च ।। ६६७।।
देङः ||६६८ ||
देङ् पालने, इत्यस्माद् डिद् इतिः प्रत्ययो भवति । 65 दिति. - असुरमाता ।। ६६८॥
Aho! Shrutgyanam
वीसञ्ज्यसिभ्यस्थिक् ॥ ६६६ ॥
एभ्यः थिक् प्रत्ययो भवति । वीं प्रजननादिषु वीथि: - मार्गः । षञ्ज सङ्गे, सक्थि:- ऊरुः, शकटाङ्ग च । असूच् क्षेपणे, अस्थि:- पञ्चमो धातुः ।।६६९।।
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सारेरथिः ||६७०।।
सृ गतौ इत्यस्माद् ण्यन्तादथिः प्रत्ययो भवति । सारथिः - यन्ता ॥ ६७०।।
निषञ्जेघित् ॥६७१॥
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
निपूर्वात् षजं सङ्गे, इत्यस्माद् धिद् अथि: प्रत्ययो भवति । निषङ्गथि: - रुद्रः धनुर्धरश्व । घित्करणं गत्वार्थम् ।। ६७१ ।।
उदणिद्वा ॥६७२॥
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उत्पूर्वाद् ऋक् गतौ, इत्यस्माद् अथिः प्रत्ययो भवति, स च णिद्वा भवति । उदारथिः - विष्णु, उदरथिः - विप्रः, काष्ठं, समुद्र:, अनड्वांश्च ।। ६७२ ।।
अतेरिथिः ।।६७३॥
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अत सातत्यगमने, इत्यस्माद् इथिः प्रत्ययो भवति । 10 अतिथि: - पात्रतम:, भिक्षावृत्तिः ॥ ६७३ ||
तडित् ॥ ६७४ ॥
तनूयी विस्तारे, इत्यस्माद् डिद् इथिः प्रत्ययो भवति । तिथि: - प्रतिपदादिः ।। ६७४ ।।
विदो रधिक् ||६७६ ॥
विदक् ज्ञाने इत्यस्मात् किद् रधिः प्रत्ययो भवति । विद्रधि:- व्याधिविशेषः || ६७६ ||
20 वी -यु- सु- बह्यगिभ्यो निः ॥ ६७७ ॥
एभ्यो निः प्रत्ययो भवति । वीं प्रजननादौ वेनिःव्याधिः, नदी च । युक् मिश्रणे, योनिः प्रजननमङ्गम्, उत्पत्तिस्थानं च । बुंगुट् अभिषवे, सोनिः सवनम् वहीं प्रापणे । वह्निः पावकः, बलीवर्दश्व । अग कुटिलायां 25 गतौ, अग्निः पावकः ।। ६७७ ।।
धूशाशीङो ह्रस्व || ६७८ ॥
एम्यो निः प्रत्ययो भवति, ह्रस्वश्चैषां भवति । धूग्श् कम्पने, धुनि:- नदी । शोंच् तक्षणे, शनिः - सौरिः । शी स्वप्ने शिनि: - यादवः, वर्णश्च ।। ६७८ ||
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लू-धू - प्रच्छिभ्यः कित् ॥६७६॥
एभ्यः किद् निः प्रत्ययो भवति । लुग्श् छेदने, लूनि: - लवनः । वग्श् कम्पने, धूनिः- वायुः । प्रच्छंत् ज्ञीप्सायाम्, पृभि: - वर्णः, अल्पतनुः, किरणः, स्वर्गश्व 1140811
35 सदि वृत्यमि-धम्यश्यटि-कट्यवेरनिः ॥ ६८० ॥
५५
धमनिः - मन्या, रस
योनिः प्रत्ययो भवति । षद्लूं विशरणादी, सदनि:जलम् । वृतुङ् वर्तने, वर्तनि:-पन्थाः, देशनाम च । अम गती, अमनिः अग्निः । धमः सौत्रः, वहा च शिरा । अशौटि व्याप्तौ अशनिः - इन्द्रायुधम् । अट गतो । अटनिः- चापकोटिः । कटे वर्षावरणयो:, कटनिः- 40 शैलमेखला । अव रक्षणादौ, अवनिः - भूः ।। ६८० ।।
रखेः कित् ॥ ६८१ ॥
रञ्ज रागे, इत्यस्मात् कि अनिः प्रत्ययो भवति । रजनि: - रात्रिः ।।६८१||
उबेरधिः ॥६७५||
उषू दाहे, इत्यस्माद् अधिः प्रत्ययो भवति । औषधिः- मेदिनी ।। ६८३ ॥ उद्भिद्विशेषः ।। ६७५।।
शकेरुनिः ||६८४ ॥
शक्लूं शक्ती, इत्यमाद् उनिः प्रत्ययो भवति । शकुनि:पक्षी ।। ६८४ ।।
अरत्निः ||६८२||
ऋक् गतौ इत्यस्माद् अत्निः प्रत्ययो भवति । अरत्नि:बाहुमध्यम्, शमः, उत्कनिष्ठश्च हस्तः ||६८२ ॥
एधेरिनिः ॥ ६८३ ॥
एधि वृद्ध इत्यस्माद् इनिः प्रत्ययो भवति । एधिनि:
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अदेमंनिः ॥ ६८५||
अदं प्सां भक्षणे, इत्यस्माद् मनिः प्रत्ययो भवति । 55 अद्मनिः पशूनां भक्षणद्रोणी, अग्निः, जय:, हस्ती, अश्व:, तालु च ॥ ६८५।।
दमेर्दुभिर्दुम् च ॥ ६८६ ॥
दमूच् उपशमे, इत्यस्माद् दुभिः प्रत्ययो भवत्यस्य च दुमित्यादेशो भवति । दुन्दुभि: - देवतूर्यम् || ६८६ ॥
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नी-सा-वृ-यु-श् वलि दलिभ्यो मिः ।।६८७।। एम्यो मि: प्रत्ययो भवति । णीं प्रापणे, नेमि:-चक्रधारा । पोंच् अन्तकर्मणि, सामि अर्धवाचि अव्ययम् । वृग्ट् वरणे, वमिः - वल्मीक कृमिः । युक् मिश्रणे, योमि :- शकुनिः । शृश् हिंसायाम्, शमि:- मृगः । वलि संवरणे, वल्मि:- इन्द्र:, 65 समुद्रश्च । दल विशरणे, दल्मिः - आयुधम् इन्द्रः, समुद्र:, शक्रः, विषं च ||६६७॥
अशो रश्वादिः ॥ ६८६ ॥
अशौटि व्याप्ती, इत्यस्माद् मिः प्रत्ययो भवति, रेफश्च धातोरादिर्भवति । रश्मिः - प्रग्रहः, मयूखश्व ॥ ६८८ || Aho! Shrutgyanam
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स्त्रर्तेरून्चातः ॥६८६॥
आभ्यां मिः प्रत्ययो भवति, गुणे च कृतेऽकारस्योकारो भवति । सूं गतौ सूमि:-स्थूणा । ऋक् गतो, ऊमि:तरङ्गः ।।६८६।।
कृ-भूभ्यां कित् ॥६०॥
आभ्यां किदु मिः प्रत्ययो भवति । डुकुंग करणे, कृमि:क्षुद्रजन्तुजाति: । भू सत्तायाम् भूमि: - वसुधा ॥ ६६०|| कणेर्डयिः ||६६१ ॥
कण शब्दे, इत्यस्माद् डि अयि: प्रत्ययो भवति । 10 कयिः - पक्षिविशेषः ||६६१ ॥
स्वोपज्ञोणादिगण सूत्र विवरणम् ॥
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रः प्रत्ययो भवति । तकु कृच्छ्रजीवने । तक्रि:युवा । वकुङ् कौटिल्ये, वक्रिः-शल्यं, परशुका, 15 रथः, अहः, कुटिला । अकुङ् लक्षणे, अक्रिः- चिह्नम्, वंशकठिनिकश्च । मकुङ् मण्डने, मक्रिः - मण्डनम् शठः, प्रवश्च । अहुङ् गती अंह्निः पादः, अङ्घेरप्येके । अघु गत्याक्षेपे, अङ्घ्रिः । श शातने, राद्रि:- वज्रः, भस्म, हस्ती, गिरिः, ऋषिः, शोभना । अदं प्सांक् भक्षणे, 20 अद्रि:- पर्वतः । लृ विशरणादी, सद्रि:- हस्ती, गिरिः, मेषश्च । अशौटि व्याप्तौ अश्रि-कोटि । डुवपीं बीज - सन्ताने, वप्रि:- केदारः । वशक् कान्तौ वश्रिः समूहः
।।६६२।।
30
तङ्क - aa - मङ्क्यंहि-शद्यदि- सद्यशौवपि वशिभ्यो रिः ॥ ६६२॥
भू-सू - कुशि - विशि- शुभिभ्यः कित् ॥६६३ ॥
एम्य: कि रिः प्रत्ययो भवति । भू सत्तायाम् भूरिप्रभूतं काञ्चनं च । षूत् प्रेरणे, सूरि :- आचार्यः, पण्डितश्च । कुशच्-श्लेषणे, कुत्रि: - ऋषिः । विशंत् प्रवेशने, विश्रि:मृत्युः, ऋषिश्च । शुभि दीप्तौ शुभिः - यतिः, विप्रः, दर्शनीयं शुभं, सत्यं च ।।६६३ ॥
जुषो रच वः ॥ ६६४ ॥
जुष्च् जरसि, इत्यस्मात् किद् रिः प्रत्ययो भवति, ईरि सति रेफस्य वकारश्च भवति । जीव्रि: - शरीरम् |
।। ६६४॥
अर्गोऽन्तः, ऋग्रि:- लोकनाथः । शके: शक्रि:-बलवानित्यादयोऽपि भवन्ति ॥६६५॥
रा-शदि- शकि- कद्यदिभ्यस्त्रिः ॥ ६९६ ॥
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एभ्यः त्रिः प्रत्ययो भवति । रोक दाने, रात्रिः - निशा । शदलूं शातने, शत्रिः - कुञ्जरः क्रीश्वश्च । शक्लृट् शक्ती, शक्त्रिः क्रौञ्चः, ऋषिश्च । कद वैक्लव्ये सौत्रः, कत्रिःऋषिः । अदं प्सांक् भक्षणे, अत्रिः ऋषिः ||६६६॥ पतेरत्रिः ||६६७॥
पत्लृ गतौ, इत्यस्माद् अत्रिः प्रत्ययो भवति । पतत्रिःपक्षी ||६६७॥
नदि वल्लतकृतेररिः ॥६८॥
एभ्योऽरि: प्रत्ययो भवति । णद अव्यक्ते शब्दे, नदरि:पटहः । वल्लि संवरणे, वल्लरि:- लता, वीणा, सस्यमञ्जरी 50 च । ऋक् गतौ, अररिः- कपाटम् । कृतैत् छेदने, कर्तरि:केशादिकर्तनयन्त्रम् || ६६८ ॥
मस्यसि घसि- जयङ्गि सहिभ्य उरिः ।।६६६|| एभ्य उरि: प्रत्ययो भवति । मसैच् परिणामे, मसुरि:मरीचि: । असूच् क्षेपणे, असुरिः - संग्रामः । घस्लूं अदने, 55 घसुरिः- अग्निः । जसूच् मोक्षणे, जसुरिः - समाप्तिः, अशनिः, अरणिः क्रोधश्च । अगु गतौ अङ्गुरिः-करशाखा, लत्वे अङ्गुलिः । षहि मर्षणे, सहुरि :- पृथ्वी, अक्रोधनः, अनड्वान्, संग्रामः, अन्धकारः, सूर्यश्च ॥ ६६६॥
मुहे: कित् ॥७००॥
मुहाच् वैचित्ये, इत्यस्मात् कि उरिः प्रत्ययो भवति । मुहुरि:- सूर्य:, अनड्वांश्व ॥ ७००
धू-मूभ्यां लिक्-लिणौ ॥७०१ ॥
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पाठ्यञ्जिभ्यामलिः ॥७०२ ॥
आभ्याम् अलि: प्रत्ययो भवति । पट गतौ ण्यन्त:, पाटलि : - वृक्षविशेषः । अञ्जीप् व्यक्त्यादी, अञ्जलि:-पाणिपुट:, प्रणामहस्तयुग्मं च ॥७०२ ॥
मा-शालिभ्यामो कुलि-मली ॥७०३ ॥
आभ्यां यथासंख्यं लिक् लिण् एतौ प्रत्ययौ भवतः । श् कम्पने, धूलि :- पांसुः । मूङ् बन्धने, मौलि:- मुकुट : 65
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कुद्रि - कुद्रयादयः ॥ ६६५॥
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कुन्द्रादयः शब्दाः किदु रिः प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । कुपे: - कौश्च दश्चान्तः । कुद्रिः ऋषिः । कुद्रिः - पर्वतः ऋषिः, समुद्रश्च । आदिग्रहणात् श्रोतेर्दोऽन्तः, क्षुद्रिः- समुद्रः ।
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आभ्यां यथासंख्यम् ओकुलि-मलि इत्येतौ प्रत्ययो भवतः । मां माने, मोकुलिः - काकः । शल गतौ ण्यन्तः, शाल्मलिः - वृक्षविशेषः ॥७०३॥
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
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द-प-व-भ्यो विः ॥७०४।।
| अक्षि-नेत्रम् ।।७०७॥ एभ्यो विः प्रत्ययो भवति । दश विदारणे, दवि:- गोपादेरनेरसिः ॥७०६॥ तर्दुः । पश् पालनपूरणयोः, पविः-कङ्कः, हिंस्रश्च । वृगश् गोप इत्यादिभ्यः परादनक् प्राणने, इत्यस्माद् असिः वरणे, ववि:-शकट, धात्री, काकः, श्येनश्च ।।७०४॥ प्रत्ययो भवति । गोपानसि:-सौधाग्रभाच्छदिः । चित्रा5 ज़-श-स्त-जागृ-कृ-नी-घृषिभ्यो डित् ॥७०५॥ नसिः-जलचरः । एकानसि:-उजयनी । वाराणसि:
एभ्यो डिद् वि: प्रत्ययो भवति । जषच जरसि, जीवि:- काशीनगरी ।।७०८॥ वायुः, पशुः, कण्टकः, शकट:, मद्गुः, काय:, गुल्म, शङ्का, वृध-प-व-साभ्यो नसिः ।।७ ।।
45 वृद्धः वृद्धभावश्च । शुश् हिंसायाम, शीवि-हिंस्रः, कृमिः,
एभ्यो नसि: प्रत्ययो भवति । वगट वरणे, वर्णसिःन्यकुश्च । स्तृगश् आच्छादने, स्तीविः-गर्विष्ठः, अध्वर्युः,
तरुः । धुंग धारणे, धर्णसि:-शैल:, लोकपाल:, जलं, 10 भगः, तनुः, रुधिरं, भयम् तृणजातिः, नभः, अजश्च । ! माता च । पश पालनपूरणयोः, पर्णसि:-जलधरः, उलूखल,
जागृक निद्राक्षये, जागृविः-राजा, अग्निः, प्रबुधश्च । । शाकादिश्च । वृश् वरणे, वर्णसि:-भूमिः । षोंच अन्तकर्मणि, डित्वान्न गुणः। डुकंग करणे, कृविः-रुद्रः, तन्तुवायः, तन्तुवाय- सानसिः-स्नेहः, नखः, हिरण्यम्, ऋणं, सखा सनातनश्च 50 द्रव्यम्, राजा च। यदुपज्ञं कृवय इति पुरा पचालानाचक्षते ।
॥७०६॥ णींग प्रापणे, नीवि:-परिधानग्रन्थिः , मूलधनं च । धृषू 15 संघर्षे, घृष्विः -वराहः, वायुः अग्निश्च ।।७०५।।
वियो हिक् ॥७१०॥ छवि-छिवि- स्फवि-स्फिवि-स्थवि-स्थिवि-दवि
वीश वरणे, इत्यस्माद् किद हिः प्रत्ययो भवति । दीवि- किकि- विदि- दिवि- दीदिवि- किकीदिवि.
व्रीहिः-धान्यविशेषः ।।७१०।। किकिदीवि-शिव्यटव्यादयः ॥७०६।।
तृ-स्तृ-तन्द्रि-तन्त्र्यविभ्य ईः ॥७११॥ 55 एते डिद् विप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । ट्यते स्वभ एभ्य ई: प्रत्ययो भवति । त प्लवनतरणयोः, तरी:20 छवि:-त्वक् छाया, आवरणं च । छिदेलक च, छिवि:
नौः, अग्निः, वायुः, प्लवनश्च । स्तगश आच्छादने, स्तरी:फल्गूद्रव्यम् । स्फायतेःस्फस्फिभावौ च, स्फविः-वृक्ष जाति:
तृणं, धूमः, मेघः, नदी, शय्या च । तन्द्रिः सादमोहनयोः स्फिविः-वक्षः, उदश्विञ्च । तिष्ठतेः स्थ-स्थिभावौ च, स्थविः
सौत्रः, तन्द्री-मोहनिद्रा। तन्त्रिण कूट्रम्बधारणे, तन्त्री:प्रसेवकः, तन्तुबायः, सीमा, अग्निः, अजङ्गमः. स्वर्गः,
शुष्कस्नायुः, वादिन, वीणा, आलस्यं च । अव रक्षणादौ, 60 कुछी-कुरिमांसं फलं च; स्थिवि:-सीमा। दमेलक च,
अवी:-प्रकाशः, आदित्यः, भूमिः, पशुः, राजा, स्त्रीच 25 दविः-धर्मशीलः, दाता, स्थानं, फालश्च । दीव्यतेदीर्घश्च,
दीविः-द्युतिमान्, कितवः, कालः, व्याघ्रजातिश्च । किते- नणित् ॥७१२॥ द्वित्वं पूर्वस्य चत्वाभावो लूक च, किकिविः-पक्षिविशेषः ।।
नडे: सौवाद ईः प्रत्ययो भवति, स च णिद भवति । दिवेद्वित्वं पूर्वस्य दीर्घश्व वा, दिदिविः-स्वर्गः । दीदिविः-जाती
- नाडी-आयतशुषिरं, द्रव्यम्, अर्धमुहूर्तश्च ॥७१२॥ 65 अन्न स्वर्गश्च । किते किकीदिभावश्च, किकीदिविः-वर्णः, 30 पक्षी च। किकिपूर्वाद् दीव्यतेदीर्घश्च, किकीति कुर्वन
वातात् प्रमः कित् ॥७१३॥ दीव्यतीति किकिदीवि:-चाषः । शीडो ह्रस्वश्च । शिविः
वातपूर्वपदात् प्रेणोपसृष्टात् मांक माने इत्यस्मात् किद् राजा । अटेरत् चान्तः अविः-अरण्यम् । आदिग्रहणा- ई: प्रत्ययोभवति । वातप्रमी:-वात्या, अश्वः, वातमृगः, दन्येऽपि ।।७०६।।
पक्षी, शमीवृक्षश्च ।।७१।। पुषि-प्लुषि-शुषि-कुष्यशिभ्यः सिक् ।।७०७॥ या-पाभ्यां द्वे च ।।७१४॥ 35 एम्यः कित् सि: प्रत्ययो भवति । पुषू प्लुषू दाहे, | आभ्यां किद् इः प्रत्ययो भवत्यनयोश्च द्वे रूपे भवतः।
प्रक्षि:-अग्निः, उदपानश्च । प्लक्षि:-अग्निः, जठर, कुशू- यांक प्रापणे, ययीः-मोक्षमार्गः, दिव्यवृष्टिः, आदित्यः, लश्च । शुषंच शोषणे, शुक्षि:-वायुः, निदाघः, यवासकः, अश्वश्च । पां पाने, पपी:-रश्मि:, सूर्यः, हस्ती च तेजश्च । कुषश् निष्कर्षे, कुक्षिः-जठरम् । अशौटि व्याप्ती, ॥७१४॥
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तन्दी-मोर नदी, शय्याश आच्छाद
स्वविः-सीमा ममः, स्वर्गः
॥७११॥
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
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लक्षेर्मोऽन्तश्च ॥७१५॥
पंसेदीर्घश्च ॥७१८॥ लक्षीण दर्शनानयोः, इत्यस्माद ईः प्रत्ययो भवति । पसुण नाशने, इत्यस्माद् उः प्रत्ययो भवति, दीर्घश्चास्य लक्ष्मी:-श्रीः ॥७१५॥
| भवति । पांशुः-पाथिवं रजः ।।७१८॥ भ-म-त-त्सरि-तनि-धन्यनि-मनि-मस्जि-शो-बटि-
अशेरानोऽन्तश्च ॥७१६॥
अमोगा । 5 कटि-पटि- गडि-चञ्च्यसि-वसि-त्रपि-श-स्व-स्निहि
अशौटि व्याप्ती, इत्यस्माद उः प्रत्ययो भवत्यकाराच क्लिदि- कन्दोन्दि- विन्धन्धि- बन्ध्यणि- लोष्टि
| परो नोऽन्तो भवति । अंशुः-रश्मिः, सूर्यश्च । प्रांशुः- 45 कुन्थिभ्य उः ॥७१६॥
दीर्घः ॥७१६॥ एभ्यः उ: प्रत्ययो भवति । ट्रइभंगक पोषणे च । भग |
नमे क् च ॥७२०॥ भरणे वा । भरु:-समुद्रः, वणिः, भर्ता च । मृत् प्राणत्यागे,
णमं प्रह्वत्वे, इत्यस्माद् उ: प्रत्ययो भवत्यस्य च नाक् 10 मरु:-निर्जलो देश:, गिरिश्च । त प्लवनतरणयोः, तरु:
इत्यादेशो भवति । नाक:-व्यलीकम्, वनस्पतिः, ऋषिः, वृक्षः । त्सर छद्मगती, त्सरु:-आदर्शखङ्गादिग्रहणप्रदेश:,
वल्मीकश्च ।।७२०॥
50 वश्चकः, क्षुरिका च । तनूयी विस्तारे, तनु:-देहः, सूक्ष्मश्च । धन धान्ये सौत्रः, धनु:-अस्त्रं, दानमानं च । अनक मनि-जनिभ्यां धतौ च ॥७२१॥ प्राणने, अनुः-प्राणः, अनु पश्चादाद्यर्थेऽव्ययम् । मनिच् ज्ञाने,
आभ्याम् उः प्रत्ययो भवत्यनयोश्च यथासंख्य धकार15 मनुयी बोधने वा, मनु:-प्रजापतिः। टुमस्जोत् शुद्धौ। तकारी भवतः । मनिच ज्ञाने, मधु-क्षौद्रम्, सीधु च । मद्गुः-जलवायसः । शीङ्क स्वप्ने, शयु:-अजगरः, स्वप्नः,
मधु:-असुरः, मासश्च चैत्र: । जनैचि प्रादुर्भावे, जतुआदित्यश्च । वट वेष्टने, व?:-माणवकः। कटे वर्षावर
लाक्षा ।।७२१।। णयोः, कटुः-रसविशेषः। पट गतौ, पट:-दक्षः । गड सेचने, गड्ड:-घाटामस्तकयोर्मध्ये मांसपिण्डः, स्फोटश्च । चञ्चू
अर्जेज च ॥७२२॥ 20 गतौ। चञ्चू:-पक्षिमुखम् । असूच क्षेपणे, असव:-प्राणाः।। अर्ज अर्जने, इत्यस्माद् उ: प्रत्ययो भवत्यस्य च ऋज्
वसं निवासे, वसु-द्रव्यं, तेजो, देवता च । वसुः कश्चिद्राजा।। इत्यादेशो भवति । ऋजु-अकुटिलम् ।।७२२।। त्रपौषि लजायाम्, त्रपु-लौहविशेष । शश् हिंसायाम्,
कृतेस्तकं च ॥७२३॥ शरु:-क्रोधः, आयुधः, हिंस्रश्च । औस्व शब्दोपतापयोः,
स्वरु:-प्रतापः, वचः-वज्रास्फालनं च । ष्णिहौच प्रीती, । कृतत् छेदने, कृतप वेष्टने, इत्यस्माद्वा उः प्रत्ययो 60 25 स्नेहुः-चन्द्रमाः, सन्निपातजो व्याधिविशेषः, पित्तं, वनस्प- भवात, अस्य च तक
भवति, अस्य च तर्क इत्यादेशो भवति । तर्क:-चुन्दः, सूत्रतिश्च । क्लिदोच् आर्द्रभावे, क्लेदु:-क्षेत्र, चन्द्रः, भगः,
वेटनशलाका च ॥७२३॥ शरीरभङ्गश्च, क्लेदयतीति क्लेदुः-चन्द्रमा इत्यन्ये । कदु नेरचेः ॥७२४॥ रोदनाह्वानयोः, कन्दुः-पाकस्थानम् -सूत्रोतं च क्रीडनम् । निपर्वादश्चतेः उः प्रत्ययो भवति । न्यः -मृगः, इदु परमैश्वर्य, इन्दु:-चन्द्रः। विदु अवयवे, विन्दुः-- | ऋषिश्च ॥७२४॥
65 30 विघुट् । अन्धण् दृष्ट्य पसंहारे, अधु:-कूपः, व्रणश्च । बन्धश् बन्धने, बन्धुः-स्वजनः, बन्धु-द्रव्यम् । अण |
किमः श्री णित् ॥७२५॥ शब्दे, अणुः-पुद्गलः, सूक्ष्मः, रालकादिश्व, धान्यविशेषः । किम्पूर्वात् शश् हिसायाम्, इत्यस्माद् णिद उः प्रत्ययो लोष्टि संघाते, लोष्ट्रः-मृपिण्डः । कुन्थश संक्लेशे ।। भवति । किशारु:-शूकः, धान्यशिखा, उष्टः, हिंस्रः, कुन्थुः-सूक्ष्मजन्तुः ॥७१६॥
इषुश्च ॥७२५॥ 35 स्यन्दि-सृजिभ्यां सिन्ध-रज्जौ च ॥७१७॥ । मि-वहि-चरि-चटिभ्यो वा ॥७२६॥ 70
- आभ्याम् उ: प्रत्ययो भवत्यनयोश्च यथासंख्यं सिन्ध- एभ्यः उः प्रत्ययो भवति, स च णिद्वा भवति । टुमिंगट रज्ज् इत्यादेशौ भवतः । स्यन्दौङ्ग स्रवणे सिन्धु:-नदः, | प्रक्षेपणे, मायु:-पित्तं, मानं, शब्दश्च । गोमायु:-शृगालः, नदी, समुद्रश्च । संजत् विसर्गे, सृजिच् विसर्गे वा मयु:-किन्नरः, उष्ट्रः, प्रक्षेपः, आकुतं च । बाहुलकादात्वा. रज्जुः-दवरकः ॥७१७।।
भावः । वहीं प्रापणे । बाहुः-भुजः, बहुः-प्रभूतम् । चर Aho! Shrutgyanam
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
भक्षणे च। चारु-शोभनम् । चरन्ति अस्माद्देव-पितृ- आभ्यां किद् उः प्रत्ययो भवति, सकारस्य लुक च भूतानि इति अपादानेऽपि भीभादित्वात्, चरु:-देवतोद्देशेन भवति । स्पशिः सौत्रः तालव्यान्तः, पशु:-तिर्यङ, मन्त्र-40 पाकः, स्थाली च । चटण भेदे, चाटु-प्रियाचरणं, वध्यश्च जनः । भ्रस्जीत् पाके, भृगुः-प्रपातः, ब्रह्मणश्च,
पट्रजनः, प्रियवादी, स्फुटवादी, दळग्रं, शिष्यश्च । चटुः- सुतः । कित्वात् 'ग्रह-वश्व-भ्रस्ज-प्रच्छ' इति स्वृत् 'न्यकु5 प्रियाचरणम् ।।७२६।।
मेघादयः' इति गत्वम् ॥७३शा ऋ-तु-श-मृ-भ्रादिभ्यो रो लश्च ॥७२७॥
दुः-स्वप-वनिभ्यः स्थः ॥७३२॥ एभ्यो णिद् उ: प्रत्ययो भवति, रेफस्य च लकारो दुस्, सु, अप, वनि इत्येतेभ्यः परात् ष्ठां गतिनिवृत्तौ, 45 भवति । ऋक् गतौ, ऋत् प्रापणे च वा, आलु:-श्लेष्मा, इत्यस्मात् किद् उः प्रत्ययो भवति । दुष्ठु-अशोभनम्,
श्लेष्मातकः, कन्दविशेषश्च । त प्लवनतरणयोः, तालुः- सुष्ठु-सातिशयम्, अपष्ठु-वामम्, वनिष्ठुः-वपास निहि10 काकुदम् । शश् हिंसायाम्, शालु:-हिंस्रः, कषायश्च । मृत् तोऽवयवः, अश्वः, संभक्त:, अपानं च ॥७३२।। प्राणत्यागे, मालु:-पत्रलता, यस्या मालुधानीति प्रसिद्धिः ।
हनि-या-कृ भृ-प-त-त्रो द्वे च ॥७३३॥ .. टुभंगक पोषणे च, भालु:-इन्द्रः। आदिग्रहणादन्येऽपि
एभ्य. किद् उः प्रत्ययो भवत्येषां द्वे रूपे भवतः। 50 ॥७२७।।
हनक हिंसा गत्योः, जघ्नु:-इन्द्रः, वेगवांश्च । यांक प्रापणे, कृ-क-स्थूराद्वचः क च ॥७२८॥
ययु:-अश्वः, यायावरः, स्वर्गमार्गश्च । डुकंग करणे, चक्रु:15 आभ्यां पराद् बचो णिद् उ: प्रत्ययो भवति, ककार- कर्मठः, वैकुण्टश्च । टुडु गक् पोषणे, भंग भरणे वा,
श्वान्तादेशो भवति । वचं भाषणे, ब्रूगक व्य कायां वाचि, बभ्रुः-ऋषिः, नकुलः, राजा, वर्णश्च । पश् पालनपूरणयोः, कृकमव्यक्तं ब्रूते वक्ति वा । कृकवाकु:-कुक्कुट:, कुकलास:, पुपुरु:-समुद्रः, चन्द्रः, लोकश्च । त प्लवनतरणयोः, 55 खञ्जरीटश्च । एवं स्थूरवाकुः-उच्चध्वनिः ॥७२८।। तितिरु:-पतङ्गः । बैंङ् पालने, तत्रु:-नौका ।।७३३॥ प-का-हृषि-भूषोषि- कुहि-भिदि-विदि-मृदि-व्यधि
| कृ-गृ ऋत उर् च ॥७३४॥ 20 गृध्यादिभ्यः कित् ॥७२६॥
आभ्यां किद् उ: प्रत्ययो भवति, ऋकारस्य च उर् एभ्य: किद् उ: प्रत्ययो भवति । पश् पालनपूरगायोः । भवति । कत् विक्षेपे, कुरु:-राजर्षि:, कुरवः-जनपदः । पुरुः, महान् लोकः, समुद्रः, यजमानः, राजा च कश्चित् । । गश शब्दे, गुरु:-आचार्य:, लघुप्रतिपक्ष:, पूज्यश्च जन: 60 के शब्दे, कु:-पृथ्वी। हृषच-तुष्टौ, हृषू अलीके वा। ॥७३४॥ हृषु -हृष्टः, तुष्टः, अलीकः, सूर्य-अग्नि-शशिनश्च । निधू
। पचेरिचातः ॥७३॥ 25 षाट् प्रागल्भ्ये, धृषु:-प्रगल्भः, संतापः, उत्साहः, पर्वतश्च । इषत् इच्छायाम्, इषु:-शरः। कुहणि विस्मापने, कुहुः
हुपची पाके, इत्यस्माद् उ: प्रत्ययो भवत्यकारस्य नष्टचन्द्रामावास्या । भिपी विदारणे, भिदु:-वज्रः,
|च इकारो भवति । पिचुः-निरस्थीकृत: कास: ।।७३५।। कन्र्दपश्च । विदक ज्ञाने, विदु:-हस्तिमस्तकैकदेशः । अतरूर च ॥७३६॥
65 मृदश क्षोदे, मृदु:-अकठिन: । व्यधंच ताडने, विधु:-चन्द्रः,
ऋक् गतो, इत्यस्माद् उ: प्रत्ययो भवत्यस्य च .30 वायुः, अग्निश्च । गृधूच अभिकाङ्क्षायाम्, गृधु:-कामः ।
कामः । ऊर् इत्यादेशो भवति । ऊरुः-शरीराङ्गम् ॥७३७ ।। आदिग्रहणात् पूरैचि आप्यायने, पूरण आप्यायने वा। पूरितमनेन यशसा सर्वमिति पूर:-राजषिः एवमन्येऽपि महत्युर् च ॥७३७॥ ॥७२६।।
अर्तेमहत्यभिधेये उ प्रत्ययो भवत्स्य च उर इत्यादेशो भवति । उरु-विस्तीर्णम् ।।७३७।।
70 . रभि-प्रथिभ्यामृच रस्य ।।७३०॥ 35 आभ्यां किद् उ: प्रत्ययो भवति रेफस्य च ऋकारो भवति।
उड़ च भे ॥७३८॥ रभि राभस्ये, ऋभव:-देवाः। प्रथिष् प्रख्याने, पृथुः-राजा, अर्मे नक्षत्रेऽभिधेये उ: प्रत्ययो भवति, धातोश्च उडाविस्तीर्णश्च ।।७३०॥
देशो भवति । उडु-नक्षत्रम् ।।७३८।। स्पशि-भ्रस्जेः स्लुक् च ॥७३१॥
| लिषेः क च ॥७३६॥ Aho! Shrutgyanam
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
केवय्वादयः शब्दा sिदुप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । केवलपूर्वाद्यातेर्ल लोपश्च । केवलो यातीति केवयुः - ऋषिः । भूपूर्वाद्यातेर्दुरण्वादी, भुवं यातीति भुरण्युः अग्निः । अध्वरं 40 यातीति पूर्वपदान्तलोपे, अध्वर्युः - ऋत्विक् । आदिग्रहणात् चरन् याति, इति चरण्युः - वायुः । अभिपूर्वस्य चाभाते:, अभीशुः - रश्मिः ॥ ७४६ ।।
शः सन्वच्च ॥७४७ ॥
शोच् लक्षणे, इत्यस्माद् डिद् उः प्रत्ययो भवति, सच 45 पी- मृग - मित्र देव कुमार- लोक - धर्म - विश्व-सुस्ना- सन्वद् भवति । सनि इवास्मिन् द्वित्वं पूर्वस्य च इत्वं 10 मावेभ्यो युः ॥७४१॥ भवतीत्यर्थः । शिशुः - बालः ।।७४७।।
तनेउः ॥७४८ ॥
लिच् आलिङ्गने, इत्यस्मात् किद् उः प्रत्ययो भवति, ककारश्चान्तादेशो भवति । श्लिकु:- मृगास्थि, सव्यवसाय:, राज्यं, ज्योतिषं सेवकच ||७३६||
रङ्घ लङ्घि-लिङ्गेलुक् च ॥७४० ॥
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एम् उ : प्रत्ययो भवति, नकारस्य च लुग् भवति । रघु लघुङ् गतौ । रघुः - राजा । लघु-तुच्छं, शीघ्र च । लिगुण चित्रीकरणे, लिगुः - ऋषिः, सेवकः, मूर्ख, भूमिविशेषश्व ||७४० ॥
पी- मृग - मित्र - देव कुमार- लोक-धर्म विश्व-सुस्न- अश्मन्अव इत्येतेभ्यः परात् यांक प्रापणे, इत्यस्मात् किद् उः प्रत्ययो भवति । पीयुः - उलूकः, आदित्यः, सुवर्णं, कालश्च । मृगयु:व्याघः, मृगश्च । मित्रयुः - ऋषिः, मित्रवत्सला । देवयुः15 धार्मिकः । कुमारयुः - राजपुत्रः । लोकयुः - वाक्यकुशलः जनः । धर्मयुः-धार्मिकः । विश्वयुः - वायुः । सुस्नयुः - यजमानः । अश्मयु:- मूर्खः । अवयुः - काव्यम् ॥ ७४१ ॥
पराङ्भ्यां शृ-खनिभ्यां डित् ॥ ७४२ ||
पर - आङ्पूर्वाभ्यां यथासंख्यं शृ-खनिभ्यां डिद् उ: 20 प्रत्ययो भवति । शृश् हिंसायाम्, परान् शृणाति परशु :कुठारः । खनूग् अवदारणे, आखुः - मूषिकः ॥७४२ ।।
शुभेः स च वा ॥ ७४३॥
शुभ दीप्तौ इत्यस्माद् डिद उः प्रत्ययो भवति, अस्य च दन्त्यः सो वा भवति । सुः शुश्च पूजायाम्, सुपुरुषः । 25 शुनासीरः ॥ ७४३ ॥
द्यु-द्रुभ्याम् ।।७४४।
आभ्यां डिद् उः प्रत्ययो भवति । धुंक् अभिगमे, द्यु:स्वर्ग क्रीडा, स्वर्गश्च । दुं गतौ, दु: - वृक्षशाखा, वृक्षश्च
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30
हरि-पीत - मित शत-वि-कु- क्रद्भूयो द्रुवः ॥७४५॥ हरि-पीत- मित शत-वि-कु- कद् इत्येतेभ्यः पराद् दुः गती इत्यस्माद् डिद् उः प्रत्ययो भवति । हरिदुः- वृक्षः, ऋषि:, पर्वतश्च । पीतद्रुः देवदारुः । मितद्रुः समुद्रः, तुरङ्गः, मितङ्गमश्च । शतद्रुर्नाम नदः, नदी च । विदुः - 35 दारुप्रकारः-वृक्षश्च । कुदुः - विकलपादः । कद्रुः- नागमाता, जातिः, गृहगोधा, वर्ण ॥ ७४५ ॥ hay - भुरण्य्वध्वर्थ्यादयः ॥ ७४६ ॥
तनूयी विस्तारे, इत्यस्माद् डिद् अउ : प्रत्ययो भवति । स च सन्वत् । तितउः - परिपवनम् ॥७४८ ।। 50
कै- शी-शमि- रमिभ्यः कुः ॥७४६ ॥
एभ्यः कुः प्रत्ययो भवति । के शब्दे, काकुः - स्वर - विशेष: । शी स्वप्ने, शेकुः उद्भिदुद्विशेषः । शमूच् उपशमे, शङ्कुः - कीलकः, बाणः, शूलम्, आयुधं, चिह्न, छलकच । रमि क्रीडायाम्, रङ्कुः - मृगः ।।७४६ ।।
हियः किद्रो लव वा ॥ ७५० ॥
ह्रीं लज्जायाम्, इत्यस्मात् कित् कुः प्रत्ययो भवति, रेफस्य च लकारो वा भवति । ह्रीकुः ह्लीकुश्व-त्रपु, जतुनी, लज्जावां । ह्रीकु: - वनमार्जारः ॥ ७५०।। किरः ष च ।। ७५१॥
कृत् विक्षेपे, इत्यस्मात् कित् कुः प्रत्ययो भवति, षकारवान्तादेशो भवति । किष्कुः - छायामानद्रव्यम् ।।७५१ ।। चटि कठि-पदिभ्यः आकुः ।।७५२ ||
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एभ्य आकुः प्रत्ययो भवति । चटण् भेदे, चटाकु :ऋषिः शकुनिश्च । कट कृच्छ्रजीवने, कठाकुः- कुटुम्बपोषकः । 65 पदि कुत्सिते शब्दे पर्दाकुः - भेकः, वृश्चिकः, अजगरश्व
।।७५२॥
fafa - कुटि कुठि कुकुषि - कृषिभ्यः कित् ॥ ७५३॥ एम्य: किद् आकु: प्रत्ययो भवति । षिवच् उतौ, सिवाकुः ऋषिः । कुटत् कौटिल्ये, कुटाकु:-विटपः । कुठि: 70 सौत्रः, कुठाकुः श्वभ्रम् । कुंङ् शब्दे, कुवाकुः - पक्षी । कुषश् निष्कर्षो, कुषाकु:- मूषिकः अग्निः, परोपतापी च । कृषीत् विलेखने, कृषाकुः - कृषीवलः ॥७५३ ॥
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
उपसर्गाच्चेडित् ॥७५४॥
शल गती, इत्यस्माद् आद्रः प्रत्ययो भवति । शलाद्र:उपसर्गपूर्वात् चिंगट चयने, इत्यस्माद् डिद् आकूः | कोमलं फलम् ॥७६३॥ प्रत्ययो भवति । उपचाकु:-संचाकुश्च-ऋषिः । निचाकु:- अङ्ग्यवेरिष्ठुः ॥७६४।। निपुणः, ऋषिश्च ॥७५४।।.
आभ्यामिष्ठः प्रत्ययो भवति । अजौप व्यक्त्यादी, 5 शलेरकुः ।।७५५॥
अञ्जिष्ठु:-भानुः, अग्निश्च । अव रक्षणादौ, अविष्ठु:- 40 शल गती, इत्यस्माद् अकुः प्रत्ययो भवति । शल:
अश्वः, होता च ।।७६४॥ ऋषिः ।।७५५।।
. तमि-मनि-कणिभ्यो डुः ॥७६५॥ सृ-पृभ्यां दाकुक् ॥७५६॥
__- एभ्यो दुः प्रत्ययो भवति । तनूयी विस्तारे, तण्डु:आम्यां किद्दाकुः प्रत्ययो भवति । संगती, सदाकः- प्रथम: । मनिच् ज्ञाने, मण्ड:-ऋषिः । कण शब्दे, कण्ड:10 दावाग्निः, वायुः, आदित्यः, व्याघ्रः, शकुनि:, अस्तः, | वेदनाविशेषः ॥७६५॥
45 भर्ता, गोत्रकृच्च । पूक् पालनपूरणयोः, पृदाकु:-सर्पः, पनेर्दीर्घश्च ॥७६६॥ गोत्रकृच्च ।।७५६।।
पनि स्तुती, इत्यस्माद् डुः प्रत्ययो भवति, दीर्घश्च इथेः स्वाकुक् च ॥७५७॥
भवति । पाण्डु:-वर्णः, क्षत्रियश्च ।।७६६॥ इषत् इच्छायाम्, इत्यस्मात् कित् स्वाकु: प्रत्ययो पलि-मभ्यामाण्डुकण्डुको ॥७६७॥ 15 भवति । इक्ष्वाकुः-आदिक्षत्रियः ॥७५७।।
आभ्यां यथासंख्यमाण्डु कण्डुक इति प्रत्ययौ भवतः । 50 फलि-वल्यमेगुः ।।७५८॥
पल गतौ, पलाण्डुः-लशुनभेदः । मृत् प्राणत्यागे, मृकण्डुक:एभ्यो गुः प्रत्ययो भवति । फल निष्पत्ती, फल्गू
ऋषिः ।।७६७॥ असारम् । बलि संवरणे, वल्गु-मधुरम्, शोभनं च, वल्गु:- अजि-स्था-वृ-रीभ्यो णुः ॥७६८॥
पक्षी । अम गती, अगु:-शरीरावयवः ।।७५८।। - एभ्यो णुः प्रत्ययो भवति । अज क्षेपणे च, वेणु:-वंशः। 20 दमेर्लुक च ॥७५६॥
ष्ठां गतिनिवृत्ती, स्थाणुः-शिव:, ऊध्वं च दारु । वृगट् 55 दमुच् उपशमे, इत्यस्माद् गुः प्रत्ययो भवत्यन्त्यस्य
वरणे, वर्ण:-नदः, जनपदश्च । रीश् गतिरेषणयोः, रेणु:, च लुग भवति । दगु:-ऋषि: ।।७५६॥
धूलिः ॥७६८॥ हेहिन च ।।७६०॥
विषेः कित् ।:७६६॥ हिंट गतिवृद्ध्योः इत्यस्माद् गुः प्रत्ययो भवत्यस्य च
विष्लूकी व्याप्ती, इत्यस्मात् किद् णुः प्रत्ययो भवति । 25 हिन् इत्यादेशो भवति । हिगु:-रामठः ॥७६०॥ विष्णुः-हरिः ।।७६६।। प्री-कै-पै-णीलेङ्गुक ॥७६१॥
क्षिपेरणुक् ।।७७०॥ एभ्यः किद् अङ्गुः प्रत्ययो भवति । प्रींगश तृप्ति
क्षिपीत् प्रेरणे, इत्यस्मात् किद् अणुः प्रत्ययो भवति । : कान्त्योः, प्रियङ्गुः-फलिनी, रालकश्च । के शब्दे, कडगः- क्षिपणुः-समीरणः, विद्युच्च ।।७७०।।
अणुः । ५ शोषणे, पगुः-खञ्जः । णील वर्णे, नीलगु:- अर्लोरिष्णुः ॥७७१॥ 30 कृमिजातिः, शुगालश्च ।।७६१॥
_ अऔप व्यक्त्यादी इत्यस्माद् इष्णुः प्रत्ययो भवति । 65 अति-गृभ्योऽटुः ॥७६२॥
अजिष्णु:-घृतम् ।।७७१।। एभ्योऽटुः प्रत्ययो भवति । अव रक्षणादौ, अवटुः- कु-ह-भू-जीवि-गम्याविभ्य एणुः ।।७७२।। कृकाटिका। ऋक् गतौ, अरटुः-वृक्षः । गत् निगरणे, एभ्य एणुः प्रत्ययो भवति । कूग्ट् हिंसायाम, हुकूग् गरट्र:-देशविशेषः, पक्षी, अजगरश्च ।।७६२।।
करणे वा, करेणु:-हस्ती । हुंग हरणे, हरेणु:-गन्धद्रव्यम् । 35 शलेराटुः ॥७६३॥
| भू सत्तायाम्, भवेणुः-भव्यः । जीव प्राणधारणे, जीवेण:- 70 Aho! Shrutgyanam
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
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औषधम् । गम्लूं गतौ, गमेणुः-गन्ता। आदिग्रहणात् | याजकः, यज्ञयोनिश्च ।।७७६॥ शमूच् उपशमे, शमेणु:-उपशमनम् । यजी देवपूजादौ,
अफेयर्तेः कित् ॥७७७॥
40 यजेणुः-यज्ञादिः । डुपचीप् पाके, पचेणुः-पाकस्थानम् ।
आभ्यां कित् तुन्प्रत्ययो भवति । अञ्जौप व्यक्त्यादिषु । पदेणुः, वहेणुरित्यादि ॥७७२।।
अक्तु:-इन्द्रः, विष्णुः, रात्रिश्च । ऋक गतो, ऋतु:-हेम6 कृ-सि-कम्यमि-गमि-तनि-मनि-जन्यसि-मसि
न्तादिः, स्त्रीरजः, तत्कालश्च ।।७७७।। सच्यवि-भा-धा-गा-ग्ला-म्ला-हनि-हा-या-हि-शि
चायः के च॥७७८॥ पूभ्यस्तुन् ॥७७३॥
चायग पूजा-निशामनयोः, इत्यस्मात् तुन्प्रत्ययो भवत्य- 45 एभ्यः तुन्प्रत्ययो भवति । डुकंग करणे, कर्तुः-कर्मकरः। किंग्ट् बन्धने, सेतुः-नदीसंक्रमः । कमूङ कान्ती,
| स्य च के इत्यादेशो भवति । केतु:-ध्वजः, ग्रहश्च ॥७७८॥ 10 कन्तु:-कदर्पः, कामी, मनः, कुसूलश्च । अम गती, अन्तु:
1
वहि-महि-गुह्येधिभ्योऽतुः ॥७७६॥ रक्षिता, लक्षणं च । गम्लू गतौ, गन्तुः-पथिकः, आगन्तु: । एभ्योऽतुः प्रत्ययो भवति । वहीं प्रापणे, वहतु:-विवाहः, अवास्तव्यो जनः । तनूयी विस्तारे, तन्तु:-सूत्रम् । मनिच् । अनड्वान्, अग्निः, कालश्च । मह पूजायाम्, महतु:-अग्निः । ज्ञाने, मन्तु:-वैमनस्यम्, प्रियंवदः, मानश्च । जनैचि प्रादु- गृहौग संवरणे, गृहतु:-भूमिः । एधि वृद्धौ, एधतुः-लक्ष्मी:, 50
र्भावे, जन्तु:-प्राणी । असक् भ्रवि, अस्तु:-अस्तिभावः । 15 बाहुलकाद् भूभावाभावः । मसैच् परिणामे, मस्तु:-दधि
कृ-लाभ्यां कित् ॥७८०॥ मूलवारि । षचि सेचने, सक्त:-यवविकारः । अव रक्षणादौ, ओतु:-बिडालः । भांक दीप्तो, भातुः-दीप्तिमान्,
आभ्यां किद् अतुः प्रत्ययो भवति । डुकंग करणे, क्रतु:शरीरावयवः, अग्निः, विद्वांश्च । ड्रधांग्क् धारणे च,
| यज्ञः । लाक् आदाने, लतु:-पाशः ॥७८०॥ धातु:-लोहादिः, रसादिः, शब्दप्रकृतिश्च । में शब्दे, तनेर्यतुः ॥७८१॥ 20 गातु:-गायनः, उद्गाता च । ग्लै हर्षक्षये, ग्लातुः-सरुजः । तनूयी विस्तारे, इत्यस्माद् यतुः प्रत्ययो भवति । तन्यतु:
म्ले गात्रविनामे, म्लातु:-दीनः । हनंक हिंसागत्योः, हन्तुः- विस्तार:, वायुः, पर्वतः, सूर्यश्च ॥७८१॥ आयुधं, हिमश्च । ओहांक त्यागे, हातु:-मृत्युः, मार्गश्च ।
जीवेरातुः ॥७॥ यांक प्रापणे, यातुः-पाप्मा जनः, राक्षसश्च । हिंट गतिवृद्ध्योः , हेतु:-कारणम् । कुशं आह्वान-रोदनयोः, क्रोष्टा
जीव प्राणधारणे, इत्यस्मादातुः प्रत्ययो भवति । 25 शृगालः । पूग्श् पवने, पोतु:-पविता, नित्करणं कुशस्तु
जीवातु:-जीवनम्, औषधम्, अन्नम्, उदक, द्रव्यं च 60 नस्तृच् पुंसि इत्यत्र विशेषणार्थम् ॥७७३।।
॥७८२॥ वसेणिद्वा ॥७७४॥
यमेर्दक ॥७८३॥ वसं निवासे, इत्यस्मात् तून प्रत्ययो भवति, स च |
यम उपरमे, इत्यस्मात् किद् दुः प्रत्ययो भवति । यदुःणिद्वा भवति । वास्तु-गृहं, गृहभूमिश्च । वस्तु-सत्,
| क्षत्रियः ।।७८३॥ 30 निवेशभूमिश्च ॥७७४।।
शोङो धुक् ॥७८४॥
___65 पःपोप्यौ च वा ॥७७५॥
शीङ् स्वप्ने, इत्यस्मात् किद् धुः प्रत्ययो भवति । पां पाने, इत्यस्मात् तुन्प्रत्ययो भवति । अस्य च पी शीधु-मद्यविशेषः ॥७८४॥ पि इत्यादेशौ वा भवतः । पीतु:-आदित्यः, चन्द्रः, हस्ती,
(च ॥७८५॥ कालः, चक्षुः, बालघृतपानभाजनं च । पितु:-प्रजापतिः, धूग्श् कम्पने, इत्यस्माद् धुक् प्रत्ययो भवत्यस्य च धुन् । 35 आहारश्च । पातु:-रक्षिता, ब्रह्मा च ॥७७५॥
इत्यादेशो भवति । धुन्धु:-दानवः ।।७८५।। आपोऽप् च ॥७७६॥
दा-भाभ्यां नुः ॥७८६॥ आप्लँट् व्याप्तौ, इत्यस्मात् तुन्प्रत्ययो भवत्यस्य च आभ्यां नुः प्रत्ययो भवति । डुदांक दाने, दानु:-गन्ता, अप् इत्यादेशो भवति । अप्तु:-देवताविशेषः, काल:, । यजमानः, वायुः, आदित्यः, दक्षिणार्थं च धनम् । भक्
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दीप्तौ, भानु:- सूर्यः, रश्मिश्च । चित्रभानुः - अग्निः स्वर्भानुः- राहुः । विश्वभानुः - आदित्यः ।। ७८६ ।।
धेः शित् ॥७८७॥
दधें पाने, इत्यस्माद् नुः प्रत्ययो भवति । स च शिद् 5 भवति, शित्त्वादाद् ' आत्संध्यक्षरस्य ' इति आकारो न भवति । धेनुः - अभिनवप्रसवा गवादिः ।।७८७ || सूवः कित् ।।७८८ ॥
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
षूङक् प्राणिगर्भविमोचने इत्यस्मात् किद् नुः प्रत्ययो भवति । सूनुः - पुत्रः ॥ ७८८ ।।
हो ज च ॥७८॥
ओहां त्यागे, इत्यस्मात् किद् नुः प्रत्ययो भवत्यस्य चजह इत्यादेशो भवति । जहूनुः - गङ्गापिता ॥७६८६६ ॥
वचेः कगौ च ॥७६०॥
वचं भाषणे, इत्यस्माद् नुः प्रत्ययो भवति, ककार15 गकारी चान्तादेशौ भवतः । वक्तुः, वग्नुश्च - वाग्मी
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कृ-हस्तक नुकौ ॥७६१ ॥
आभ्यां कितौ तु नु इति प्रत्ययौ भवतः । डुकृंग् करणे, कृतुः– कर्मकरः । कृणुः - कोशकार:, कारुव । हक् 20 हिंसागत्योः हतुः - हिम:, हनुः- वक्त्रैकदेशः । वाहुलकान्नलोपः ॥ ७६१||
गमेः सन्वच्च ॥७६२||
गम्लूं गतौ इत्यस्मात् तुक् - नुकौ सन्वद् भवतः । जिगन्तुःब्राह्मण:, दिवस, मार्गः प्राणः, अग्निश्च । जिगन्नु:25 प्राणः, बाणः, मनः, मीनः वायुच ॥७६२ ।।
35
दा-भू-क्षण्युन्दि- वदिपत्यादेरनुड् ॥७६३॥
एभ्यो डिद् अनुः प्रत्ययो भवति । डुदांग्क् दाने । दनुःदानवमाता । भू सत्तायाम् भुवन:- मेघः, चन्द्रः भवि तव्यता, हंसश्च । क्षणूग् हिंसायाम्, क्षणनुः- यायावरः । 30 उन्दै क्लेदने, उन्दन:-शुकः । णद अव्यक्ते शब्दे नदनु:
मेघः- सिंहश्च । वद वक्तायां वाचि वदतुः- वक्ता । पत्लूं गतौ, पतनुः-श्येन: । आदिग्रहणादन्येऽपि । कित्त्वमकृत्वा डित्करणं वदेदभावार्थम् ।।७१३||
कृशेरानुक् ॥७६४ ॥
कृशच् तनुत्वे, इत्यस्मात् किद् आनुः प्रत्ययो भवति । कृशानुः-वह्निः ।।७६४।
६३
जीवे रदानुक् ॥७६५||
जीव प्राणधारणे, इत्यस्मात् किद् रदानुः प्रत्ययो भवति । जीरदानुः । कित्करणं गुणप्रतिषेधार्थम् । वलोपे हि नाम्यन्तत्वाद् गुणः स्यात् ॥७६५।।
40
वचेरतुः ॥७६६||
वचं भाषणे, इत्यस्मादक्नुः प्रत्ययो भवति । वचक्नुःवाग्मी, आचार्य:, ब्राह्मणः, ऋषिव ॥७६६ ।।
हृषि-पुषि-धुषि-गदि-मदि-नन्दि-गडि मण्डि - जनिस्तनिभ्यो णेरिनुः ॥७७॥
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एभ्यो ण्यन्तेभ्य इत्तुः प्रत्ययो भवति । हृषंच् तुष्टी, हृष अलीके वा, हर्षयित्नुः -आनन्दः, स्वजनः रङ्गोपजीवी, प्रियंवदा । पुषं च् पुष्टी, पोषयित्नुः - भर्ता मेघः, कोकिलच । घुषूण् विशब्दने, घोषयित्नुः - कोकिलः, शब्दच । गदण् गर्जे, गदयित्नुः - पर्जन्यः, वावदूकः, भ्रमरः कामश्च । 50 मदैच् हर्षे, मदयित्नुः- मदिरा, सुवर्णम्, अलंकारश्च । टुनदु समृद्धी, नन्दयित्नुः पुत्रः, आनन्दः प्रमुदिता । गड सेचने, गयित्नुः - बलाहकः । मड्डु भूषायाम्, मण्डयित्नुः - मण्डयिता, कामुकश्च । जनैचि प्रादुर्भावे जनयित्नुः - पिता । स्तनण् गर्जे, स्तनयित्नु:- मेघः, मेघगर्जितं च ॥७९७||
कतिभ्यामपुक् ॥७६८।
आभ्यां किद् इषुः प्रत्ययो भवति । कस गती, कसिपुः - अशनम् । ऋक् गती, रिपुः - शत्रुः ॥७६८ ||
55
कम्यमिभ्यां बुः ॥७६६॥
आभ्यां बुः प्रत्ययो भवति । कमूङ् कान्तौ कम्बु: - 60 शङ्खः । अम गतौ, अम्बु - पानीयम् ||६||
अरमुः ||८०||
अभ्र गती, इत्यस्मादमुः प्रत्ययो भवति । अभ्रमुःदेवहस्तिनी ॥ ८०० ||
जि- शुन्धि - दहि-दसि जनि-मनिभ्यो युः ॥ ८०१ ॥ 65 एम्योः प्रत्ययो भवति । यजी देवपूजादौ, यज्यु:अग्निः, अध्वर्युः, यज्वा शिष्यश्च । शुन्धु शुद्धौ, शुन्ध्युःअग्निः, आदित्यः पवित्रं च । दहं भस्मीकरणे, दह्य:अग्निः । दसूच् उपक्षये, दस्युः- चौरः । जनचि प्रादुर्भावे, जन्युः - अपत्यं, पिता, वायुः प्रादुर्भावः प्रजापतिः, प्राणी 70 च । मनिच् ज्ञाने मन्युः - कृपा, क्रोधः-शोकः क्रतुश्च 1150211
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्र विवरणम् ॥
भुजेः कित् ॥८०२ ॥
भवति । भुज्यु :- अग्निः, ऋषिश्व ॥ ८०२ ॥
भुजं पालनाभ्यवहारयोः इत्यस्मात् किद् युः प्रत्ययो आदित्यः, गरुडः, भोगः,
सर्तेरथ्वन्यू ॥८०३॥
सूं गतौ इत्यस्माद् अयु, अन्य इति प्रत्ययौ भवतः । सरयु :- नदी, वायुश्च । दीर्घान्तमिममिच्छन्त्येके । सरयूः । लिष्ट निर्देशात् तदपि संगृहीतमेव । सरण्युः - मेघः, अश्विनोर्माता, समेधो वायुश्च ॥ ८०३ ॥
भू-क्षिपि चरेरन्युक् ॥ ८०४॥
एभ्यः किदन्युः प्रत्ययो भवति । भू सत्तायाम्, भुवन्युःईश्वरः, अग्निश्च । क्षिपत् प्रेरणे, क्षिपण्युः - वायुः, वसन्तः, विद्युत् अर्थः, कालश्च । चर भक्षणे, चरण्युः - वायुः
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30
मुस्त्युक् ||८०५ ॥
मृत् प्राणत्यागे इत्यस्मात् कित् त्युः प्रत्ययो भवति । मारयतीति मृत्युः कालः, मरणं च ॥ ८०५||
चिनी-पी-म्यशिभ्यो रुः ||८०६ ॥
I
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एभ्यो रुः प्रत्ययो भवति । चिग्ट् चयने, चेरुः - मुनिः । 20 नींग प्रापणे, नेरु:- जनपदः । पीच पाने, पेरु :- सूर्य:,
गिरि:- कलविङ्कच | मीच हिंसायाम्, मेरुः - देवाद्रिः । अशौटि व्याप्ती, अश्रु - नेत्रजलम् ||८०६ ||
रु-पूभ्यां कित् ॥ ८०७॥
आभ्यां किद्रुः प्रत्ययो भवति । रुक् शब्दे । रुरुः25 मृगजाति: । पूग्श् पवने, पुरुः- राजा || ८०७ लुक् च ॥८०८ ॥
खनो
खनग् अवदारणे, इत्यस्माद् रुः प्रत्ययो भवति, अन्त्यस्य च लुग्भवति । खरुः- दर्पः क्रूरः, मूर्ख, दृप्तः, गीतविशेषश्व ||५०८ ॥
जनि- हनि-शद्यर्तेस्त च ॥८०॥
एम्यो रुः प्रत्ययो भवति, तकारश्रान्तादेशो भवति । जनैचि प्रादुर्भावे, जत्रु: - शरीरावयवः, मेघः, धर्मावसानं च । अनं हिंसागत्योः हत्रुः - हिंस्रः । शॣ शातने, शत्रु:रिपुः । बाहुलकात्तादेशविकल्पे शत्रुः - पुरुषः । ऋक् गतौ, 35 अत्रु: - क्षुद्रजन्तुः ॥८०॥
इमनः शीङो डित् ॥ ८१०॥
श्मन्पर्वात् शीङ्क् स्वप्ने, इत्यस्माद् डिद्रुः प्रत्ययो भवति । श्मश्रु - मुखलोमानि ॥ ८१० ॥
शिग्रु- गेरु नमेर्वादयः ॥ ८११॥
शिब्रादयः शब्दा रुप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । शिगुट् 40 निशाने, कित् गोन्ता । शिग्रुः-शोभाञ्जनकः, हरितकविशेषश्च । गिरतेरेच्च, गेरु: - धातुः । नमेर्नन्पूर्वस्य मयतेव एच्चान्तः, नमेरु:-देववृक्षः । आदिग्रहणादन्येऽपि ॥ ११ ॥ कटि- कुट्यर्तेररुः ॥ ८१२॥
एम्योse: प्रत्ययो भवति । कटे वर्षावरणयोः, कटरु:- 45 शकटम् । कुटत् कौटिल्ये, कुटरु:-पक्षिविशेषः, मर्कटः, वृक्षः, वर्धकिश्च । कुटादित्वान्न गुणः । ऋक् गतौ, अररुःअसुर:, आयुधं मण्डलं च ||८१२ ।।
कर्केरुः ||८१३॥
कर्को: सौत्रादारुः प्रत्ययो भवति । कर्कारु :- क्षुद्र - 50 चिभिटी ||१३||
उर्वेरादेरूदेतौ च ॥ ८१४ ॥
उ हिंसायाम् इत्यस्मादारुः प्रत्ययो भवति, आदेश्व उकार - एकार आदेशौ भवतः । ऊर्वत्यातिमिति ऊर्वारु:कटुचिभिटी । एर्वारु: - चारुचिभिटी ||८१४ || कृषि - क्षुधि-पी-कुणिभ्यः कित् ॥ ८१५॥
एम्य: किदारुः प्रत्ययो भवति । कृपौङ् सामर्थ्ये, कृपारु:दयाशीलः । क्षुधंच् बुभुक्षायाम्, क्षुधा: - क्षुधमसहमानः, लत्वे कृपालुः, क्षुधालुः । पीच पाने । पियारु:वृक्ष: । कृणत् शब्दोपकरणयोः, कुणारुः- वनस्पतिः 60
।।८१५।।
श्यः शीत च ॥ ८१६॥
श्यैङ्गतौ, इत्यस्माद् आरुः प्रत्ययो भवति । अस्य च शीत इत्यादेशो भवति । शीतारु:- शीतासहः, लत्वे शीतालुः
८१६॥
55
तुम्बेरुरुः ||८१७॥
तु अर्दने, इत्यस्मादुरु: प्रत्ययो भवति । तुम्बुरुःगन्धर्वः, गन्धद्रव्यं च ।। ८१७।।
कन्देः कुन्द च ॥ ८१८ ॥
65
कदु रोदनाह्वानयो:, इत्यस्माद् उरुः प्रत्ययो भवत्यस्य 70 च कुन्द इत्यादेशो भवति । कुन्दुरु: - सल्लकी निर्यास:
॥२१८॥
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
चमेरूरुः ॥१६॥
भवति । उलक्षुः-तृणजातिः ।।८२८॥ चमू अदने, इत्यस्माद् ऊरुः प्रत्ययो भवति । चमूरु:- कृषि- चमि-तनि-धन्यन्दि-सजि-खजि-जि- . चित्रकः ॥८१६॥
लस्जीष्यिभ्य ऊः ॥२६॥ शीङो लुः ॥२०॥
एभ्य ऊः प्रत्ययो भवति । कृषीत् विलेखने, कर्ष:6 शीक स्वप्ने, इत्यस्माद् लुः प्रत्ययो भवति । शेलु:
कुल्या, अङ्गारः, परिखा, गर्तश्च । चमू अदने, चमू:- 40 श्लेष्मातकः ।।८२०॥
सेना। तनूयी विस्तारे, तनूः-शरीरम् । धन शब्दे, धन
धान्ये सौत्रो वा, धनु:-धान्यराशिः, ज्या, वरारोहा च पीङ: कित् ॥२१॥
स्त्री। अदु बन्धने, अन्दू:-पादकटकः । सर्ज अर्जने, सर्जू: पीच पाने, इत्यस्मात् कित् लुः प्रत्ययो भवति । अर्घः, क्षार:-वनस्पतिः, वणिक् च । खर्ज मार्जने च. पीलु:-हस्ती, वृक्षश्च ॥८२१।।
खर्जू:-कण्डुः, विद्युच्च । भूजङ् भर्जने, भ्रस्जीत् पाके वा, 45 10 लस्जीष्यि-शलेरालुः ॥२२॥
भर्जु:-यवविकारः। ओलस्जति बीडे, लज्जूः-लजालुः ।
| ईर्ण्य ईर्ष्यार्थः, ईर्ग्य:-ईर्ष्यालुः ।।८२६।। एभ्य आलुः प्रत्ययो भवति । ओलस्जति ब्रीडे, लज्जालुः-लजनशीलः । ईj ईर्ष्यार्थः, ईर्ष्यालु:-ईर्ष्या- फलेः फेल च ॥८३०॥ शीलः । शल गतौ, शलालु:-वृक्षावयवः ।।२२।।
फल निष्पत्ती, इत्यस्माद्रः प्रत्ययो भवत्यस्य च फेल आपोऽप् च ॥८२३॥
इत्यादेशो भवति । फेलू:-होमविशेषः ।।८३०॥ 15 आप्लूट् व्याप्ती, इत्यस्मादालुः प्रत्ययो भवत्यस्य च कषेण्ड-च्छौ च षः ॥३१॥ अप इत्यादेशो भवति । अपालु:-वायुः ॥८२३॥
कष हिंसायाम्, इत्यस्माद् ऊ: प्रत्ययो भवति । षकारस्य गूहलु-गुग्गुलु-कमण्डलकः ॥२४॥
च ण्ड-च्छश्चादेशो भवति । कण्डूः, कच्छूश्च–पामा ।।८३१।। एते आलुप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । गृहते ह्रस्वश्च प्रत्य- 'वहेधं च ॥८३२॥ यादेः, गृहलु:-ऋषिः । गुंङ् शब्दे, अस्यादेर्गुग्गुः लोपश्च वहीं प्रापणे, इत्यस्माद् ऊः प्रत्ययो घश्चान्तादेशो 55 20 प्रत्ययादेः, गुग्गुलु:-वृक्षविशेषः, अश्वश्च । कम्पूर्वाद निते- भवति । वधूः-पतिमुपसंपन्ना कन्या, जाया च ।।८३२॥ ?ऽन्तः ह्रस्वश्च प्रत्ययादेः, कमण्डलु:-अमत्रम् ॥२४॥
मृजेगुणश्च ।।८३३॥ प्रः शुः ॥२५॥
मृजौक शुद्धौ, इत्यस्माद् ऊ: प्रत्ययो भवति, गुणश्चास्य पश पालनपूरणयोः, इत्यस्मात् शुः प्रत्ययो भवति । भवति। मर्ज
।। भवति । मधु-शुद्धिः, रजक:, नद्यास्तीरं, शिला च । पशुः-वक़िसंज्ञं वक्रास्थि ।।८२५।।
गुणे सिद्धे गुणवचनमकारस्य वृद्धि बाधनार्थम् ॥८३३॥ 60 25 मस्जीष्यशिभ्यः सुक् ।।८२६।।
अजेोऽन्तश्च ।।८३४॥ एभ्यः कित् सः प्रत्ययो भवति । ट्रमस्जोत् शुद्धौ,
अज क्षेपणे, इत्यस्माद् ऊ: प्रत्ययो भवति, जकारमस्जेः स इति नोऽन्तः, मङ्क्षः-मुनिः । इषश् आभीक्ष्ण्ये, | श्चान्तो भवति । अज्जू:-जननी ॥८३४।। इक्ष:-गुडादिप्रकृतिः । अशौटि व्याप्तौ, अक्ष:-समुद्रः,
___ कसि-पद्यादिभ्यो णित् ॥८३५॥ वप्रश्च ।।८२६॥
एभ्यो णिद् ऊः प्रत्ययो भवति । कस गती, कासू:- 65 30 त-पलि-मलेरक्षुः ॥२७॥
शक्ति मायुधम्, वाग्विकलः, बुद्धि:, व्याधिः, विकला एभ्योऽक्षः प्रत्ययो भवति । त प्लवनतरणोः, तरक्षुः- च वाक-प्राणी च । पटिव गती. पाद:-पादका। ऋक श्वापदविशेषः । पल गती, मलि धारण, पलक्षुः, मलक्षुश्व- गतौ, आरू:-वृक्षविशेष:, कच्छ्रः, गतिः, पिङ्गलश्च । वृक्षः ॥२७॥
आदिग्रहणात् कचते:-काचूः । शलते:-शालूः इत्यादयोऽपि उलेः कित् ॥५२८
।।८३५॥ 35 उल दाहे, इत्यस्मात् सौत्रात् किद् अक्षुः प्रत्ययो | अणे?ऽन्तश्च ॥३६॥
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६६
स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
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अणेर्धातोणिद् ऊः प्रत्ययो भवति । डश्चान्तः । अण एभ्यः किद् ऊः प्रत्ययो भवति । नृतैच् नर्तने, नतू:शब्दे, आण्डू:-जलभृङ्गारः ।।८३६।।
नर्तकः, कृमिजातिः, प्लव:, प्रतिकृतिश्च । शुधूङ् शब्दअडोल च वा ॥८३७॥
कुत्सायाम्, शधूः-शर्धन:, कृमिजातिः, अपानं, बलिश्च
दानवः । रुषच रोषे, रुषः-भसंकः । कहणि विस्मापने, 40 अड उद्यमे, इत्यस्माण्णिद् ऊः प्रत्ययो भवति, लश्चा
कुहूः-अमावास्या ॥८४४।। 5 न्तादेशो वा भवति । आलूः-भङ्गारः, करकश्च । आडूःदर्वी, टिट्टिभः, वनस्पतिः, जलाधार भूमिः, पादभेदनं च
त-खडिभ्यां डूः ॥८४५॥ ॥८३७॥
आभ्यां डूः प्रत्ययो भवति । त प्लवनतरणयोः, तई:नजो लम्बेर्नलुक च ॥८३८॥
द्रोणी, प्लवः, परिवेषणभाण्डं च । खडण भेदे, खड्डू:
बालानामुपकरणम्, स्त्रीणां पादाङ्गुष्ठाभरणं च ।।८४५।। 45 नपूर्वात् लबुङ अवासने, इत्यस्माद् णिद् ऊ: प्रत्ययो 10 भवति । नकारस्य च लूक भवति । अलाबूः-तुम्बी
। त-दभ्यां दूः ।।८४६॥ ॥८३८॥
आभ्यां दूः प्रत्ययो भवति । त प्लवनतरणयोः, तर्दू:कफादीरेलं च ॥८३६॥
दर्वी । दृश् विदारणे, दर्दू:-कुष्ठभेद: ।।८४६।। कफपूर्वाद् ईरिक गति-कम्पनयोः, इत्यस्माद् ऊः प्रत्ययो
| कमि-जनिभ्यां बूः॥८४७॥ भवति, लकारश्चान्तादेशो भवति । कफेल:-श्लेष्मातकः, आभ्यां बूः प्रत्ययो भवति । कमूङ् कान्तौ कम्बू:- 50 15 यवलाजा:, मधुपर्कः, छादिषेयं च तृणम् ।।८३६।। भूषणम्, आदर्शत्सरुः, कुरुविन्दश्च । जनैचि प्रादुर्भावे,
जम्बु:-वृक्षविशेषः ।।८४७।। ऋतो रत् च ॥८४०॥ ऋत् घृणागतिस्पर्धेषु, इत्यस्माद् ऊः प्रत्ययो भवति,
शकेरन्धूः ॥८४८॥ रत् चास्यादेशो भवति। रतुः-नदीविशेष:, सत्यवाक, शकलुट शक्ती, इत्यस्मादन्धूः प्रत्ययो भवति । दूतः, कृमिविशेषश्च ।।८४०।।
शकन्धूः-वनस्पतिः, देवताविशेषश्च ।।८४८॥ 55 20 दृभिचपेः स्वरान्नोऽन्तश्च ।।८४१॥
कृगः कादिः ॥८४६॥ आभ्यां पर ऊः प्रत्ययो भवति, स्वरात परो नोऽन्तश टुकंग करणे इत्यस्मात् ककारादिरन्धः प्रत्ययो भवति । भवति । दर्भत ग्रन्थे, दन्भूः-सर्पजातिः, वनस्पतिः, वचः, | ककन्धूः-बदरा,
| कर्कन्धः-बदरी, वणं, यवलाजा:, मधुपर्कः, विष्टम्भश्च ग्रन्थकारः, दर्भणं च । बाहलकाद् म्ना धूडवर्गेऽन्त्योऽपदान्ते ॥४॥
इति नकारस्य लूग न भवति । चप सान्त्वने, चम्पू:- योरागूः ॥८५०॥ 25 कथाविशेषः ।।८४१।।
यूक् मिश्रणे, इत्यस्माद् आगुः प्रत्ययो भवति । यवाग:- 60 दिधिषदिधोषौ च ॥८४२॥
द्रवौदनः ।।५।। बिधषाट प्रागल्भ्ये, इत्यस्माद् ऊ: प्रत्ययो भवति,
काच्छीडो डेरूः ॥८५१॥ दिधिष, दिधीष इत्यादेशो चास्य भवत: । दिधिषु:
कपूर्वात् शीक स्वप्ने, इत्यस्माद् डिद् एरू: प्रत्ययो वपरिणीता. अलीचा विधीपायी भवति । कशेरू:-कन्दविशेषः, वीरुच्च ॥८५१।। 30 कनिष्ठाया अनूढा, ज्येष्ठा, पुनर्भूः, आहुतिश्च ।।८४२॥ दिव ऋः ॥८५२॥
65 भ्रमि-गमि-तनिभ्यो डित् ॥८४३॥
दिवूच क्रीडादी, इत्यस्मादः प्रत्ययो भवति । देवा
देवर:-पितृव्यस्त्री, अग्निश्च ।।८५२॥ एभ्यो डिद् ऊः प्रत्ययो भवति । भ्रमूच अनवस्थाने, भ्रः-अक्षणोरुपरि रोमराजिः । गम्लू गती, अग्रे गच्छ
___ सोरसेः ॥८५६॥ त्यग्रेगू:-पुरस्सरः । तनूयी विस्तारे, कुत्सितं तन्यते कुतू:- मुपूर्वादसूच क्षेपणे, इत्यस्माद् ऋः प्रत्ययो भवति । 35 चर्ममयमावपनम् ।।८४३॥
स्वसा-भगिनी ।।८५३॥
70 नृति-शृघि-रुषि-कुहिभ्यः कित् ।।८४४॥ | नियो डित् ॥८५४॥
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्र विवरणम् ॥
६७
णींग प्रापणे, इत्यस्माद् डिद् ऋः प्रत्ययो भवति । णमं प्रवत्वे, इत्यस्मात् तुः प्रत्ययो भवति, पश्चास्याना-पुरुषः ॥८५४॥
न्तादेशो भवति । नप्ता-दुहितुः-पुत्रस्य वा पुत्र: सव्यात् स्थः ।।८५५॥
11८६२॥ सव्यपूर्वात् ष्ठां गतिनिवृत्ती, इत्यस्माद् डिद् ऋ: हु-पुग्-गोन्नी-प्रस्तु-प्रतिह-प्रतिप्रस्थाभ्य ऋत्विजि 5 प्रत्ययो भवति । सव्येष्ठा-सारथिः ॥५५॥
1८६३॥
40 यति-ननन्दिभ्यां दीर्घश्च ॥८५६॥
___ एभ्य ऋत्विज्यभिधेये तः प्रत्ययो भवति । हंक
दानादनयोः, होता। पूगश् पवने, पोता । में शब्दे, णींगयते अपूर्वाद नन्देश्च ऋः प्रत्ययो भवति । दीर्घश्चानयो
प्रापणे उत्पूर्वः, उद्गाता, उन्नेता । ष्टुंगा स्तुतौ, प्रपूर्वःभवति । यतङ् प्रयत्ने, याता-पति-भातृभगिनी, देवरभार्या,
प्रस्तोता। हृग हरणे प्रतिपूर्वः, प्रतिहर्ता । ष्ठां गतिज्येष्ठाभार्या च । टुनदु समृद्धौ, ननान्दा-भर्तृभगिनी। 10 नखादित्वान्नोऽन्न भवति ॥८५६।।।।
निवृत्ती, प्रतिप्रपूर्वः, प्रतिप्रस्थाता। एते ऋत्विजः ।।८६३।। 45
नियः षादिः ॥८६४॥ शासि- शंसि-नी- रु-क्षु-हृ-भू-धू-मन्यादिभ्यस्तः
णींग प्रापणे, इत्यस्मात् षकारादः तः प्रत्ययो भवति । ॥८५७॥
ऋत्विज्यभिधेये । नेष्टा-ऋत्विक् ।।८६४।। एभ्यः तः प्रत्ययो भवति । शासक अनशिष्टी, शास्तागुरुः, राजा च; प्रशास्ता-राजा, ऋत्विक् च । शंसू स्तुती
त्वष्ट
यः ॥८६५॥ 15 च, शंस्ता-स्तोता । णींग् प्रापणे, नेता-सारथिः। रुक् एते तृप्रत्यायान्ता निपात्यन्ते । विपरितोऽञ्च । त्वष्टा- 50
शब्दे, रोता-मेघः । टुक्षुक शब्दे, क्षोता-मुसलम् । हुंग् देववर्धकः, प्रजापतिः, आदित्यश्च । क्षद खदने सौत्रः, हरणे, हर्ता-चौरः । टुभृगक पोषणे च, भर्ता-पतिः । | क्षत्ता-नियुक्तः, अविनीतः, दीवारिकः, मुसलः, पारशवः, ●तु अवध्वंसने, धर्ता-धर्मः। मनिच् ज्ञाने, मन्ता- रुद्रः, सारथिश्च । दुहेरिट किञ्च, दुहिता-तनया । आदि
विद्वान्, प्रजापतिश्च । आदिग्रहणादुपद्रष्टा-ऋत्विक, ग्रहणादन्येऽपि ।।८६५।। 20 विशस्ता-घातकः, इत्यादयोऽपि ॥८५७॥
राते.ः ।।८६६॥ पातेरिन्च ॥८५८॥
रांक दाने, इत्यस्माद् डिद् ऐः प्रत्ययो भवति । रा:पांक रक्षणे, इत्यस्मात् तृःप्रत्ययो भवति, धातोश्चेकारो- | द्रव्यम् । रायो, रायः ॥८६६।। न्तादेशो भवति । पिता-जनकः ।।८५८।।
धु-गमिभ्यां डोः ॥८६७॥ मानिभ्राजेच्क् च ॥८५६॥
आभ्यां डिद् ओ: प्रत्ययो भवति । धुक अभिगमे, 25 आभ्यां तः प्रत्ययो भवति, लुक् चान्तस्य भवति ।
धौ.-स्वर्ग:, अन्तरिक्षं च । गम्लं गतो, गौ:-पृथिव्यादि: 60 मानि पूजायाम्, माता-जननी । भ्राजि दीप्तौ, भ्राता
।।८६७।। सोदर्यः ।।८५६॥
ग्ला-नुदिभ्यां डौः ॥८६॥ जाया मिगः ॥८६॥
आभ्यां डिद् औः प्रत्ययो भवति । ग्लै हर्षक्षये, ग्लो:
चन्द्रमाः, व्याधितः, शरीरग्लानिश्च । णुदंत् प्रेरणे, नौ:जाशब्दपूर्वाद् डुमिंग्ट प्रक्षेपणे, इत्यस्मात् तृ: प्रत्ययो
जलतरणम् ।।८६८॥ 30 भवति । जायां-प्रजायां, मिन्वन्ति तमिति जामातादुहितृपतिः ।।८६०॥
तोः किक् ॥८६॥ आपोऽप् च ॥८६१॥
तुक वृत्त्यादौ, इत्यस्मात् किक् प्रत्ययो भवति । ककारः आपलूट व्याप्ती, इत्यस्मात् तृः प्रत्ययो भवति । अप कि कायोर्थः, इकार उच्चारणार्थः, तुक-अपत्यम् ।।८६६।। चास्यादेशो भवति । अप्ता-यज्ञः, अग्निश्च ।।८६१।। द्रागादयः ॥८७०॥ 35 नमः प् च ।।८६२॥
द्राक् इत्यादयः शब्दाः किक् प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । 70 Aho! Shrutgyanam
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६८
15
त्रश्चि ।। ६७१ ।।
म्लेच्छेरीडेश्व किपि प्रत्यये वा ह्रस्वो भवति । अत
5
सुं गतौ इत्यस्मात् चिक् भवति । स्रुक् जुहूप्रभृति | एवं वचनात् क्विप् च । म्लेच्छ अव्यक्ते शब्दे, म्लेट, 40 अग्निहोत्र भाण्डम् । स्रुचौ । स्रुचः । इकार उच्चारणार्थः । म्लिट्-उभयं म्लेच्छजातिः । इट् ईट् - स्वामी, मेदिनी च ककारः कित्कार्यार्थः ॥ ८७१ ।।
तनेच् ॥ ८७२ ||
तयूनो विस्तारे इत्यस्माद् डिद् वच् प्रत्ययो भवति । 10 स्वकु - शरीरादिवेष्टनम् ||८७२ ||
20
द्रवतेरा च द्राक् - शीघ्रम् । एवं सरतेः स्राक् स एवार्थः । इयर्तेरर्वादेशश्च । अर्वाक् - अचिरन्तनम् । आदिग्रहणा दन्येऽपि ॥ ७० ॥
25
स्वोपज्ञोणादिगणसूत्र विवरणम् ॥
30
35
पारेरज् ||८७३||
पारण् कर्मसमाप्तौ इत्यस्मादज्प्रत्ययो भवति । पारक् शाकविशेषः, प्राकारः, सुवर्ण रत्नं च । पारजौ ।
पारज: ।। ८७३।।
ऋषि-प्रथि - भिषिभ्यः कित् ॥ ६७४ ||
एभ्यः किद् अप्रत्ययो भवति । ऋधीच् वृद्धो, ऋधक् - समीपवाचि अव्ययम् । प्रथिष् प्रख्याने - निर्देशा देव वृत् । पृथग् नानार्थेऽव्ययम् । भिषः सौत्रः, भिषक् - वैद्यः, भिषजो, भिषजः || ८७४ ||
भृ-पणिभ्यामिज् भुरवणौ च ॥ ८७५ ॥ भृ-पणिभ्यामित्ययो यथासंख्यं भुर वण इत्यादेशौ भवतः । भृग् भरणे, भुरिक् - बाहु:, शब्द:, भूमिः, वायु, एकाक्षराधिकपादं च ऋक् छन्दः । पणि व्यवहार स्तुत्यो, वणिक् - वैदेहिकः ||८७५।।
वशेः कित् ॥ ८७६॥
वशक् कान्ती, इत्यस्मात् किद् इज् प्रत्ययो भवति । उशिक्- कान्तः, उशीरम् अग्निः, गौतमश्च ऋषिः ॥५७६॥
लङ्ङ्घेरट् नलुक् च ।।८७७
लघुक् गतौ इत्यस्माद् अप्रत्ययो भवति नलोपश्वास्य भवति । लघट्-वायुः, लघु च शकटम् ।।८७७।। सतेंरड् ॥ ८७८ ॥
ईडिक् स्तुती, इत्यस्माद् अविप्रत्ययो भवति, ह्रस्वश्चास्य भवति । इडविट् विश्रवाः ||८७६ ॥
विपि म्लेच्छश्व वा ॥ ८८०॥
सूं गतौ इत्यस्मादप्रत्ययो भवति । सरडु - वृक्षविशेष: मेघः, उष्ट्रजाति ||६७६ ||
ईडेरविड़ ह्रस्वश्च ॥ ८७॥
1155 011
तृपः
॥८८॥
तृपौच् प्रीती इत्यस्मात् किद् अत्प्रत्ययो भवति । तृपत्- चन्द्र:, समुद्र:, तृणभूमिव ॥ ६८४॥ संश्चद् वे हत्-साक्षादादयः ॥ ६८१ ॥
45
एते कत्प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । संपूर्वाचिनोतडित् समो मकारस्यानुस्वार पूर्व: शकारश्च । संश्चत् अध्वर्युः, कुहकश्च । अनुस्वारं नेच्छन्त्येके, संवत्- कुहकः । विपूर्वाद्धन्तेद्वेिश्व गुणः, विहन्ति - गर्भमिति वेहत्-गर्भघातिनी अप्रजाः स्त्री, 50 अनड्वां । संपूर्वादीक्षतेः साक्षाभावश्च साक्षात् - समक्षमित्यर्थः । आदिग्रहणाद् रेहत् वियत्, पुरीतदादयोऽपि ॥ ६६२ ॥
पट-च्छपदादयोऽनुकरणाः ||८८३॥
पटदित्यादयोऽनुकरणशब्दाः कतुप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । पट गती, पटत् छुपत् संस्पर्शे उकारस्याकारश्च । छपत् । 55 पत्लृ गतौ पतत्। शृश् हिंसायाम् शरत् । शल गतौ, शलत् । खट काङ्क्षे. खटत् । दहेः प च दपत् । डिपे डिपत् । खनते रश्व, खरत् । खादतेः खादत् । सर्व एते कस्यचिद्विशेषस्य श्रुतिप्रत्यासत्त्याऽनुकरणशब्दा: । अनुकरणमपि साध्वेव कर्तव्यम्, न यत्किञ्चित् यथाऽनक्षरमिति 60 शिष्टाः स्मरन्ति ॥८३॥
दुहि वृहि महि - पृषिभ्यः कतृः ॥ ८८४ ।।
एभ्यः किद् अतृः प्रत्ययो भवति । दुहौच् जिघांसायाम् दुहन्- ग्रीष्मः, वृह वृद्धो वृहन् प्रवृद्धः, वृहती छन्द: । मह पूजायाम्, महान् - पूजितः, विस्तीर्णश्च । महा- 65 न्तौ महान्तः महती | पृषू सेचने, पृषत्-तन्त्र, जलबिन्दु:, चित्रवर्णजातिः, दध्युपसिक्तमाज्यं च । पृषती - मृगी । स्थूलपृषतिमालभेत । ऋकारो ङङ्घर्थः ।। ८८४॥
गमेडद् द्वे च ||८८५||
गम्लृ गतौ इत्यस्मात् कतृप्रत्ययो डिद भवति, द्वे 70 चास्य रूपे भवतः । जगत्-स्थावरजङ्गमो लोकः, जगती पृथ्वी ॥८८॥
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
भातेर्डवतुः ॥८६॥
जनपद: । भस भर्त्सन-दीप्त्योः सौत्रः, भसत्-जघनम्,
आस्यम्, आमाशयस्थानं च । भषेरपीच्छन्त्येके भषत् ।।८६४|| भांक दीप्ती, इत्यस्माद् डिद् अवतुः प्रत्ययो भवति । भवान् । भवन्तौ । भवन्तः। उकारो दीर्घत्वादिकार्यार्थः तनि-त्यजि-यजिभ्यो डद ॥९॥ ॥८८६॥
एभ्यो डिद् अद् प्रत्ययो भवति । तनूयी विस्तारे, 5 ह-स-रुहि-युषि-तडिभ्य इत् ॥१७॥ । तत्-स: । त्यजं हानौ, त्यद्-स्यः । एतौ निर्देशवाचिनी। 40
एभ्यः इत्प्रत्ययो भवति । हग हरणे, हरित्-हरितो यजी देवपूजादो, यद्-यः । अयमुद्देशवाची ॥८६५।। वर्णः, ककुब्, वायु:, मृगजाति:, अश्वः, सूर्यश्च । सुगतो, इणस्तद् ॥८९६॥ सरित्-नदी । रुहं जन्मनि, रोहित्-वीरुत्प्रकारः, मत्स्यः,
इणक गती, इत्यस्मात् तद् प्रत्ययो भवति । एतद्सूर्यः, अग्निः, मृगः, वर्णश्च । युषः सौत्र:, योषति-गच्छति
एषः, समीपवाची शब्दः ॥८६६।। 10 पुरुषमिति योषित् स्त्री। तडण आधाते, तडित्-विद्युत्
प्रः सद् ॥६॥
__45 ।।८८७॥
पश् पालनपूरणयोः, इत्यस्मात् सद् इत्येवं प्रत्ययो उदकात् वेडित् ॥१८॥
भवति । पर्षत्-सभा ॥८६७।। उदकपूर्वात् ट्वोश्वि गति-वृद्ध्योः इत्यस्माद् डिद् इत्- | प्रत्ययो भवति । उदकेन श्वयति उदश्वित्-तक्रम् । नाम्न्यु
द्रो ह्रस्वश्च ।।८९८॥ 15 त्तरपदस्य च इति उदकस्य उदभावः ।।८८८।।
दश विदारणे, इत्यस्मात् सद् प्रत्ययो भवति । ह्रस्वश्वास्य भवति, दृषत्-पाषाणः ।।८६८॥
50 न उत् ॥८६॥
युष्यसिभ्यां क्मद् ॥६६॥ मंत् प्राणत्यागे, इत्यस्याद् उत् प्रत्ययो भवति । मरुत्
आभ्यां किद् मद् इत्ययं प्रत्ययो भवति । युषः सौत्रः वायुः, देवः, गिरिशिखरं च ।।८८६॥
सेवायाम्, युष्मद्-यूयम् । असूच क्षेपणे, अस्मद्-वयम् ग्रो मादिर्वा ॥८६॥
॥८६॥ 20 गृत् निगरणे, इत्यस्माद् उत् प्रत्ययो भवति, स च रक्षि-तक्ष्यक्षीशि-राजि-धन्वि-पश्चि-पूषि-क्लिदि- 55
मकारादिर्वा भवति । गर्मुत्-गरुडः, आदित्यः, मधुमक्षिका, स्तिहि-नु-मस्जेरन् ॥६००॥ तक्षा, तृणं, सुवर्ण च । गरुत्-बहः, अजगरः, मरकतमणिः, वेगः, तेजसां वर्तिश्च ॥६॥
एभ्यः अन् प्रत्ययो भवति । उक्ष सेचने, उक्षा-वषः।
तक्षी तनूकरणे, तक्षा-वर्धकिः । अक्षौ व्याप्ती च, शकेर्ऋत् ॥८६॥
अक्षा-दष्टिनिपात:। ईशिक ऐश्वर्य, ईशा-परमात्मा । 25 शक्लंट शक्ती, इत्यस्माद् ऋत् प्रत्ययो भवति ।। राजग दीप्ती, राजा-ईश्वरः । धन्वि: सौत्रो गती, धतु 60 शकृत्-पुरीषम् ।।८६१॥
गतौ वा, धन्वा-मरुः, धनुश्च । पचुङ् व्यक्तीकरणे पश्चयजेः क च ॥१२॥
संख्या। पूष वृद्धौ, पूषा--आदित्यः । क्लिदीच आर्द्रभावे,
क्लेदा-मुखप्रसेकः, चन्द्रः, इन्द्रश्च । ष्णिहौच प्रीती, स्नेहायजी देवपूजादी, इत्यस्माद् ऋत् प्रत्ययो भवति, कश्चा
स्वाङ्गम्, सुहृतु, वशा च-गौः । णुक स्तुतौ नव-संख्या । न्तादेशो भवति । यकृत्-अन्त्रम् ।।८६२॥ टुमस्जोंत् शुद्धौ, मज्जा-षष्ठो धातुः ॥१०॥
65 30 पातेः कृथ् ॥८६३॥
__ लू-पू-यु-वृषि-दंशि-धु-दिवि-प्रतिदिविभ्यः कित पांक रक्षणे, इत्यस्मात् किद् ऋथ् प्रत्ययो भवति । पृथो ॥६०१॥ नाम क्षत्रियाः ।।८६३॥
एभ्यः किद् अन् प्रत्ययो भवति । लुग्श् छेदने, लुवाश-द-भसेरद् ॥८६४॥
दात्रं, स्थावरश्च । पूगश् पवने, पुवा-वायुः । युक् मिश्रणे, एभ्योऽद् प्रत्ययो भवति । शश हिंसायाम्, शरद्- युवा-तरुणः । वधू सेचने, वृषा-इन्द्रः, वृषभश्च । दशं 70 35 ऋतुः। द-भये, दरत्-जनपदसमानशब्दः, क्षत्रियः । दरद:- | दशने, दश-संख्या । थुक अभिगमे, धुवा-अभिगमनीयः,
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
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राजा, सूर्यश्च । दिवूच क्रीडादौ, दिवा-दिनम् । प्रतिपूर्वात् | जि अभिभवे, जित्वा-धर्मः, इन्द्रः, योद्धा च । जित्वरीप्रतिदिवा-अहः. अपराह णश्च ।।६०१॥
नदी, वणिजश्व, वाराणसी जित्वरीमाहुः । क्षि क्षये, क्षित्वा __ श्वन-मातरिश्वत-मर्धन-पोहनर्यमन-विश्वप्सः-परि- वायुः, विष्णुः, मृत्युश्च । क्षित्वरी-रात्रिः । हुंग् हरणे, 40 ज्वन्-पहनहन्-मघवन्नथर्वनिति ।।६०२।।
हृत्वा-रुद्रः, मत्स्यः, वायुश्च । सू गती, सत्वा-कालः,
अग्निः, सर्पः, नीचजातिश्च । सत्वरी-वेश्यामाता । 5 एते अन् प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । श्वयतेलृक् च, श्वा
घड्न स्थाने, धृत्वा-विष्णुः, शैल:, समुद्रश्च । धृत्वरीकुकुरः । मातरि अन्तरिक्षे श्वयति, मातरिश्वा-वायुः । अत्र
भूमिः । दृत् आदरे, दृत्वा-दृप्तः । पकारस्तागमार्थः तत्पुरुषे कृति सप्तम्या अलुप् इकारलोपश्च पूर्ववत् ।
॥९०६| मूर्छर्धश्च, मूर्छन्त्यस्मिन्नाहता: प्राणिन इति, मूर्धा-शिरः । प्लिहो दीर्घश्च,प्लीहा-जठरान्तरावयवः । अरिपूर्वादमेय॑न्ताद्
सृजेः स्रज्-सृको च ॥६०७॥ 10 अरीन् आमयतीति, अर्यमा-सूर्यः । विश्वपूर्वात् प्साते: सृजत् विसर्गे, इत्यस्मात् क्वनिप् प्रत्ययो भवति ।
कित् च विश्वप्सा-काल:. वायुः, अग्निः, इन्द्रश्च । परिपूर्वात् स्रज्-सृक् इत्यादेशो चास्य भवतः । स्रज्वा-मालाकारः, ज्वलतेडिच्च परिज्वा-सूर्यः, चन्द्रः, अग्निः, वायुश्च । महीय- रज्जुश्च । सृक्वणी-आस्योपान्तौ ।।६०७॥ तेरीयलोपश्च महा-महत्त्वम् । अहेर्नलोपश्च, अंहते-अहः- ध्या-प्योर्धी पी च ॥६०८॥
50 दिवसः। मधेर्नलोपोऽच् चानः मङ्घते इति, मघवा
ध्ये चिन्तायाम्, प्यङ् वृद्धो, इत्याभ्यां क्वनिप् प्रत्ययो इन्द्रः । नपूर्वात् खः खस्थश्च न खर्वति, अथर्वा-वेदः, ।
यथासंख्यं च धी पी इत्येतावादेशी भवतः। ध्यायतीति, 15 ऋषिश्च । इतिकरणादन्येऽपि भवन्ति ।।९०२।।
धीवा-मनीषी, निषादः, व्याधिः, मत्स्यश्च । प्यायते:, षप्यशौभ्यां तन ॥६०३॥
पीवा-पीनः ।।१०८॥ आभ्यां तन् प्रत्ययो भवति । षप समवाये, अशौटि
अतेर्ध च ॥ ६॥
55 व्याप्ती। सप्त, अष्ट-सख्ये ॥६०३।।
अत सातत्यगमने, इत्यस्मात् क्वनिप् प्रत्ययो भवति, स्ना-मदि-पति-प-शकिभ्यो वन ॥६०४॥
धश्चान्तादेशो भवति । अध्वा-मार्गः ।।६०६|| 20 एभ्यो वन् प्रत्ययो भवति । ष्णांक शौचे, स्नावा-शिरा,
प्रात्सदि-री-रिणस्तोऽन्तश्च ॥१०॥ नदी च । मदैच् हर्षे, मद्वा-दृप्तः, पानं, कान्तिः, क्रीडा, मुनिः, शिरश्च । मद्वरी-मदिरा। बाहुलकाद् डी:, बनो
प्रपूर्वेभ्यः सद्यादिभ्यः क्वनिप् प्रत्ययो भवति, तोऽन्तश्च रश्च । पदिच गती, पद्वा-पत्तिः, वत्सः, रथः, पादः, गतिश्व ।
भवति । षद्लू विशरणगत्यवसादनेषु, प्रसत्वा-मूढः, वायुश्च। 60 ऋक् गती अर्वा-अश्वः, अशनिः, आसनं, मुनिश्च । पृश
प्रसत्वरी-माता, प्रतिपत्तिश्च । रीश् गति-रेषणयोः, 25 पालनपुरणयोः, पर्व-सन्धिः , पूरणं, पुण्यतिथिश्च । शक्
प्ररीत्वा-वायुः । प्ररीत्वरी-स्त्रीविशेषः । ईरिक् गतिकम्पलूट शक्ती, शक्वा-वर्धकिः, समर्थः । शक्वरी-नदी,
| नयोः, प्रेा-सागरः, वायुश्च । प्रेवरी-नगरी। इण्क् विद्युत्, छन्दोजातिः, युवतिः, सुरभिश्च । शाक्वर:-वृषः ।
| गतौ, प्रेत्वरी नगरीत्याहुः ।।१०।। ॥६०४॥
मन् ॥११॥ ग्रहेराच ॥६०५॥
सर्वधातुभ्यो बहुलं मन् प्रत्ययो भवति । डुकंग करणे, 30 ग्रहीश उपादाने, इत्यस्माद् वन् प्रत्ययो भवति ।
कर्म-व्यापारः । वगट वरणे. वर्म-कवचम् । वृतूङ् वर्तने, आकारश्चान्तादेशो भवति । ग्रावा-पाषाण:, पर्वतश्च
वर्त्म-पन्थाः । चर भक्षणे च, चर्म-अजिनम् । भस भर्त्सन॥६०५॥
दीप्त्योः सौत्र:, भसितं तदिति, भस्म-भूतिः । जनैचि
प्रादुर्भावे, जन्म-उत्पत्तिः । शश् हिंसायाम्, शर्म-सुखम् । 70 ऋ-शी-शि-रुहि-जि-क्षि-ह-स-धृ-दृभ्यः क्वनिप्
बसवोऽस्य दुरितं, शीर्यासुरिति वसुशर्मा, एवं हरिशर्मा । ॥६०६॥
मंतु प्राणत्यागे, मर्म-जीवप्रदेशप्रचयस्थानम्, यत्र जाय35 एभ्यः क्वनिप् प्रत्ययो भवति । ऋक् गतो, ऋत्वा- माना वेदना महती जायते । नश् नये, नर्म-परिहासकथा।
ऋषिः । शीङ् स्वप्ने, शीवा, अजगरः। कृशं आह्वान- श्लिषंच आलिङ्गने श्लेष्मा-कफः । ऊष रुजायाम्, ऊष्मारोदनयोः, क्रुश्वा-शृगालः । रुहं बीजजन्मनि, रुह्वा-वृक्षः । | तापः । टुडुभूगक पोषणे च, भर्म-सुवर्णम् । याक् प्रापणे, 75
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
यामा - रथः । वांक् गति- गन्धनयो:, वामा-करचरण ह्रस्वः । पां रक्षणे, पामा - कच्छूः । वृषू सेचने, वर्ष्म शरीरम् ।
विशरण गत्यवसादनेषु, सम-गृहम् । विशंतु प्रवेशने, वेश्म- गृहम् । हिट् गति वृद्ध्योः, हेम- सुवर्णम् । 5 छदण् अपवारणे, छद्म-माया । दीच् क्षये, देङ्, पालने वा, दाम-रज्जुः, माता च दुधांग्क् धारणे च धामस्थानं तेजश्च । ष्ठां गतिनिवृत्तौ स्थाम-बलम् । बुंग्ट् अभिषवे, सोम: - यज्ञः पयः, रस, चन्द्रमाश्च । अशौटि व्याप्ती, अश्मा - पाषाणः । लक्षीण दर्शनाङ्कनयोः, लक्ष्म10 चिह्नम् । अयि गती, अय्म-संग्रामः । तक् हसने, तक्मारतिः, आतपः, दीपश्च । हुंक् दानादनयो:, होम-हव्यद्रव्यम्, अग्निहोत्रशाला च । धृग् धारणे, धर्म-पुण्यम् । विपूर्वात् विधर्मा-अहितः, वायुः, व्यभिचारश्च । ध्यें चिन्तायाम् ।
ध्याम- ध्यानम् ॥११॥
15 कुष्युषि - सृपिभ्यः कित् ॥१२॥
एय: कित् मन् प्रत्ययो भवति । कुषश् निष्कर्षे. कुष्मशल्यम् । उषू दाहे. उष्मा - दाहः । सृप्लृ गतौ, सृप्मासर्पः शिशुः यतिश्व ॥ ६१२।।
वृ' हेर्नोऽञ्च ॥१३॥
20
वृहु: शब्दे, इत्यस्माद् मन् प्रत्ययो भवति नकारस्य च अकारो भवति । ब्रह्म-परं तेजः, अध्ययनं मोक्षः, वृहत्वादात्मा । ब्रह्मा भगवान् ।।१३।।
व्येग एदोतौ च वा ॥१४॥
व्यं संवरणे, इत्यस्माद् मन् प्रत्ययो भवति, एदोती 25 चान्तादेशो वा भवतः । व्येम-वस्त्रम्, व्येमा-संसार:, कुविन्दभाण्डं च । व्योम - नभः । पक्षे व्याम - न्यग्रोधाख्यं प्रमाणम् ।।६१४।।
स्यतेरी च वा ॥१५॥
षोंच् अन्तकर्मणि, इत्यस्माद् मन् प्रत्ययो भवति, ईकार30 वान्तादेशो वा भवति । सीमा-आघाटः । पक्षे साम- प्रियवचनं, वामदेव्यादि च ॥१५॥
सात्मन्नात्मन् वेमन्- रोमन्- क्लोमन् - ललामन् नामन् - पाप्मन् - पक्ष्मन् - यक्ष्मन्निति ॥ १६ ॥
एते मनूप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । स्यतेस्तोऽन्तश्च । सात्म35 अत्यन्ताभ्यस्तं प्रकृतिभूतम्, अन्तकर्म च अतेः दीर्घव, आत्मा - जीवः । वेग-आत्वाभावश्च वेम - तन्तुवायोपकरणम् । रुहेर्लुक् च, रोम - तनूरुहम् । लत्वे लोम-तदेव | क्लमेरोच्च क्लोम - शरीरान्तरवयवः | लातेद्वित्वं च
ललाम - भूषणादि। नमेरा च, नाम-संज्ञा, कीर्तिश्च । पातयतेस्तः प् च, पाप्मा - पापं रक्षश्च । पञ्चः कः षोऽन्तो 40 नलोपश्च पक्ष्म - अक्ष्यादिलोम । यस्यतेः यक्षिणो वा, यक्ष्मा - रोगः । इति करणान् तोक्म-रुक्म-शुष्मादयो भवन्ति
॥१६॥
हृ-जनियामिमन् ॥१३॥
आभ्याम् इमन् प्रत्ययो भवति । हंग् हरणे, हरिमा - 15 पापविशेषः मृत्युः, वायुश्च । जनैचि प्रादुर्भावे, जनिमाधर्मविशेषः, संसारन ॥११७॥
७१
सृ-ह-भृ-धृस्तृ-पूभ्य ईमन् ॥ १८ ॥
एभ्य ईमन् प्रत्ययो भवति । सृ गतौ, सरीमा - कालः । हंग् हरणे, हरीमा - मातरिश्वा । टुडुर्भूग्क् पोषणे च भरीमा- 50 क्षमी, राजा, कुटुम्बं च । धृग् धारणे, घरीमा - धर्मः । स्तृग्श् आच्छादने, स्तरीमा - प्रावारः । षूत् प्रेरणे, सवीमागर्भः, प्रसूतिश्व ॥ १८ ॥
गमेरिन् ॥१६॥
गम्लृ गतौ, इत्यस्माद् इन् प्रत्ययो भवति । गमिष्य- 55 तीति गमी - जिगमिषुः ॥१६॥
आङश्च णित् ॥२०॥
आपूर्वात् केवलाच्च गमेणिद् इन् प्रत्ययो भवति । आगमिष्यतीति, आगामी प्रोषितादिः । गमिष्यतीति, गामीप्रस्थितादिः ॥२०॥
सुवः ॥२१॥
पूङच् प्राणिप्रसवे, इत्यस्माद् णिद् इन् प्रत्ययो भवति । आसावी - आसविष्यमाणः, जनिष्यमाण इत्यर्थः ॥ २१ ॥
भुवो वा ॥२२॥
भू सत्तायाम्, इत्यस्माद् इन् प्रत्ययो भवति, स च णिद्वा 65 भवति । भविष्यतीति, भावी कर्मविपाकादिः । भवी - भविष्यन् ||२२||
प्रात् स्थः ||६२४॥
60
प्रप्रतेर्या - बुधिभ्याम् ॥२३॥
प्रपूर्वात् प्रतिपूर्वाच्च यां प्रापणे, बुधि मनिच् ज्ञाने, इत्यस्माच्च णिद् इन् प्रत्ययो भवति । प्रयास्यतीति- 70 प्रयायी, प्रतियास्यतीति प्रतियायी, प्रभोत्स्यत इति प्रबोधी । प्रतिबोधी - बालादि: ।।२३।
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परमपूर्वात् तिष्ठतेः किद् इन् प्रत्ययो भवति । परमे पदे 5 तिष्ठतीति परमेष्ठी - अर्हदादिः । भीरुष्ठानादित्वात् षत्वम्. सप्तम्या अलुप् च ॥२५॥
स्वोपज्ञोणादिगणसूत्र विवरणम् ॥
पूर्वात् ष्ठां गतिनिवृत्ती इत्यस्माद् णिद् इन् प्रत्ययो भवति । प्रस्थास्यत इति प्रस्थायी - गन्तुमनाः ||२४|| परमात् कित् ।।२५।
पथि मन्थिभ्याम् ॥२६॥
आभ्यां किद् इन् प्रत्ययो भवति । पथे गतौ पन्था:मार्गः पन्थानौ पन्थानः पथिप्रियः । मन्थश् विलोडने, 10 मन्या:- क्षुब्ध:, वायुः, वज्रश्च । मन्थानो, मन्थानः; मथि - प्रियः ||२६||
25
15 अर्तेर्भुक्षिनक् ॥ २८ ॥
ऋक् गतौ इत्यस्माद् भुक्षिनक् प्रत्ययो भवति । ऋभुक्षा- इन्द्रः । ऋभुक्षाणौ, ऋभुक्षाणः ॥ ६२८||
होमिन् ॥२७॥
हुंक दानादनयो:, इत्यस्माद् मिन् प्रत्ययो भवति । होमी - ऋत्विक्, घृतं च ॥ ६२७।।
35
अदेखिन् ||२६||
अदं भक्षणे, इत्यस्मात् त्रिन् प्रत्ययो भवति । अत्रि :- प्रत्यक्षनिर्देशे ॥ ३८ ॥ 20 ऋषिः ॥ २६ ॥
आपः क्विप् ह्रस्वश्च ॥३१॥
आपलृट् व्याप्ती इत्यस्मात् क्विप् प्रत्ययो भवति । ह्रस्वश्चास्य भवति । आप:- अम्भः । स्वभावादु बहुत्वम् ।।६३१॥
ककुप्-त्रिष्टुबनुष्टुभः ॥३२॥
एते क्विप् प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । कपूर्वात् स्कुभ्नाते 30 सलोपश्च-कं-वायुः, ब्रह्म च, स्कुम्नन्तीति ककुभः - दिशः । कुकुप - उष्णिक् छन्दः । त्र्यनुपूर्वात् स्तुभ्नातेः सः षश्च, त्रिष्टुप् छन्दः, अनुष्टुप्छन्दः बहुवचनान्निजिविजिविषां क्विप् शित्, नेनिक्-प्रजापतिः । वेविक्- शुचिः । वेविट्
चन्द्रमाः ।। ६३२॥
अव रक्षणादी, इत्यस्माद् म: प्रत्ययो भवति । अव - तीति ओम् - ब्रह्म, प्रणवश्च ॥९३३॥
सोरेतेरम् ||३४||
सुपूर्वाद् इणक् गतो, इत्यस्माद् अम् प्रत्ययो भवति । स्वयम् - आत्मना ॥। ६३४ ||
40
अवेर्मः ||३३||
शि-नृभ्यां नक्त-तूनौ च ॥३५॥
नशौच् अदर्शने, णूत् स्तवने, आभ्याम् अम् प्रत्ययो भवति, नक्त नून इत्यादेशौ चाग्नयोर्भवतः । नक्तं- रात्रौ । नूनं - वितर्के ।। ३५ ।।
स्यतेणित् ॥९३६॥
षोंच् अन्तकर्मणि, इत्यस्माद् विद् अम् प्रत्ययो भवति । सायम् - दिवसावसानम् ॥ ९३६ ॥
गमि जमि-क्षमि कमि-शमि-समिभ्यो डित् ॥६३७॥ एभ्यो दूि अम् प्रत्ययो भवति । गम्लूं गतौ, गम् । जमू अदने, जम् । क्षमोषि सहने क्षम् । एतानि भार्या - 50 नामानि कमूङ् कान्तौ कम् - पानीयम् । शमूच् उपशमे, शम् - सुखम् । षम वैक्लव्ये, सम्-संभवति ॥ ६३७॥ इणो दमक ||३८||
पतेरत्रिन् ॥३०॥
पत्लृ गतौ इत्यस्माद् अत्रिन् प्रत्ययो भवति । पतत्री - किम् - अनेनाविज्ञातं वस्तु पर्यनुयुज्यते ||३६|| पक्षी ||३०||
45
इण्क् गतौ इत्यस्मात् कित् दम् प्रत्ययो भवति । इदम्
55
कोडिम् ॥३६॥
कुंक् कुंङ् शब्दे, इत्यस्माद् डिद् इम् प्रत्ययो भवति ।
तूबेरीम् णोऽन्तश्च ॥ ४०
तूष तुष्टी, इत्यस्माद् ईम् प्रत्ययो भवति, णकार- 60 वास्यान्तो भवति । तूष्णीम् - वानियमे ॥ ९४०॥ ई-कम-शमि समिभ्यो डित् ॥ १४१ ॥
एम्यो डिदीम् प्रत्ययो भवति । ईडिक् स्तुतो, ईम् । कमूङ् कान्तौ कीम् । शमूच् उपशमे, शीम् । षम वैकव्ये, सीम् । अभिनयव्याहरणान्येतानि । ईम् सीम् - अव्यक्ते । 65 कीम् संशयप्रश्नादिषु । सीम् - अमर्ष पादपूरणयोः ॥ १४१ ॥
क्रमि-गमि क्षमेस्तुमाचातः ॥१४२॥
क्रमू पादविक्षेपे, क्रान्तुं गमनम् । गम्लूं गतौ, गान्तुम्— एभ्यः तुम् प्रत्ययो भवति, अकारस्य चाकारो भवति । पान्थः । क्षमोषि सहने क्षान्तुम् भूमिः । तुमर्थश्च सर्वत्र 70
॥६४२ ॥
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स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणम् ॥
ग-प-दुर्वि-धुविभ्यः क्विप् ॥४३॥
सुष्ठु तपतीति-सुतपाः । एवं महातपाः। णमं प्रह्वत्वे, एम्यः क्विप् प्रत्ययो भवति । गश शब्दे, गी:-वाक् ।। नम:-पूजावाची । तमूच काक्षायाम्, तम:-अन्धकारः, पश् पालनपूरणयोः, पू:-नगरी । दुर्वे धुर्वे हिंसायाम्, दूः
तृतीयगुणः, अज्ञानं च। इण्क् गतो, अय:-काललोहम् । वींक देहान्तरवयवः, धूः-शकटाङ्गम्, आदिश्च ।।९४३।।
प्रजननादौ, वयः-पक्षी, प्राणिनां कालकृता शरीरावस्था
च यौवनादिः । वचि दीप्तो, वर्ची-लावण्यम्, अन्नमलं, 40 15 वारौि॥९४४॥
तेजश्च । सुष्ठ वर्चत इति सुवर्चाः । रक्ष पालने, रक्षःएती क्विप् प्रत्ययान्तौ निपात्येते । वृणोतेवृद्धिश्च । निशाचरः । जिमिदाच स्नेहने, मेद -चतुर्थों धातः । रह वा:-पानीयम् । कर्मणि दश्व धात्वादिः । वृण्वन्ति तामिति
त्यागे, रहः-प्रच्छन्नम् । षहि मर्षणे. सहा:-मार्गशीर्षद्वा:-द्वारम् । हूँ वरणे, इत्यस्य च णिगन्तस्य रूपम् ।।९४४।।
मासः । णभच् हिंसायाम्, नभ:-आकाशं, श्रावणमासश्च । प्रादतेरर ॥६४५॥
चित संज्ञाने, चेत:-चित्तम् । प्रचेता:-वरुणः । मनिंच 45 10 प्रपूर्वात् अत सातत्यगमने, इत्यस्माद् अर प्रत्ययो ज्ञाने, मन:-नोइन्द्रियम् । ब्रूगक व्य कायां वाचि, वच:भवति । प्रातः-प्रभातम् ॥६४५।।
वचनम् । रुदा अश्रुविमोचने, रोदः-नभः, रोदसी-द्यावा
पृथिव्यो । रुधम्पी आवरणे, रोध:-तीरम् । अनक प्राणने, सोरर्तेर्लुक च ॥४६॥
अन:-शकटम्, अन्नं, भोजनं च । स गतौ, सर:-जलाशयसुपूर्वात् ऋक गती, इत्यस्माद् अर् प्रत्ययो भवति, !
विशेषः । तृ प्लवन-तरणयोः, तरः-वेगः, बलं च । रहु 50 धातोश्च लुग भवति । स्व:-स्वर्गः ।।६४६।।
गतो, रंहः-जव: । तिजि क्षमानि-शानयोः, तेज:-दीप्तिः । 15 पू-सन्यमिभ्यः पुनसनुतान्ताश्च ॥६४७॥ मयि गतौ, मय:-सुखम् । मह पूजायाम्. मह:-तेजः । पूग्श् पवने, षण् भ को, अम गतो, इत्येतेभ्यः अर्
अचिण् पूजायाम्, अर्चः-पूजा । षद्लू विशरण-गत्यवसादप्रत्ययो भवति, यथासंख्यं च पुन्, सनुत्, अन्त् इत्यादेशा नेषु, सद:-सभा, भवनं च । अऔप व्यक्त्यादी, अञ्जः
55 एषां भवन्ति । पुन:-भूयः । सनुत:-कालवाची । अन्त:
स्नेहः ॥६५२॥ मध्ये ॥४७॥
पा-हाभ्यां पयह्यौ च ॥९५३॥ 20 चतेरुर् ॥४८॥
पां पाने, ओहांक त्यागे, इत्येताभ्याम् अस् प्रत्ययो .. चतेग याचने, इत्यस्माद् उर प्रत्ययो भवति । चत्वार:- भवति । यथासंख्यं च पय ह्य इत्यादेशावनयोर्भवतः । संख्या । चत्वारि, चतस्रः ॥६४८॥
पय:-क्षीरं, जलं च । ह्य:-अनन्तरातीते दिने ।।९५३।। दिवेडिव ॥१४॥
छदि-वहिभ्यां छन्दोधौ च ।।६५४॥
60 दिवूच क्रीडादी, इत्यस्माद् डिद् इव प्रत्ययो भवति ।
छदण संवरणे, वहीं प्रापणे, इत्येताभ्याम् अस् प्रत्ययो 25 द्यो:-स्वर्गः, अन्तरिक्षं च । दिवौ, दिवः ॥९४६।।
भवति, यथासंख्यं चानयोः छन्द ऊध इत्यादेशौ भवतः ।
छन्दः-वेदः, इच्छा, वाग्बन्धविशेषश्च । ऊध:-धेनोः क्षीराविशि-विपाशिभ्यां विप् ॥५०॥
धारः ।।६५४।। आभ्यां विवप् प्रत्ययो भवति । विशंत प्रवेशने, विश:__ श्वेः शव च वा ।।६५५॥ ,
65 प्रजाः, विट्-वैश्यः, पुरीष, अपत्यं च । पशण् बन्धने, विपूर्वः, विपाशयति स्म विशिष्टमिति विपाट-नदी॥६५॥ ट्वोश्वि गति-वृद्ध्योः , इत्यस्माद् अस् प्रत्ययो भवति,
अस्य च शव् इत्यादेशो वा भवति । शव:-रोगाभिधानं, 30 सहेः षष् च ॥५१॥
मृतदेहश्च । शवसी, शवांसि । श्वयः-शोफः, बलं च । श्वयसी, षहि मर्षणे, इत्यस्मात् विप् प्रत्ययो भवति, षष् चास्या- श्वयांसि |५५॥ देशो भवति । षट्-संख्या ॥६५१।।
विश्वाद् विदि-भुजिभ्याम् ॥६५६।।
70 अस् ॥६५२॥
विश्वपूर्वाभ्यामाभ्याम् अस् प्रत्ययो भवति । विदक् ज्ञाने, सर्वधातुभ्यो बहुलम् अस् प्रत्ययो भवति । तपं संतापे, विश्ववेदाः-अग्निः । भुजंप पालनाभ्यवहारयोः, विश्व35 तपः-संतापः, माघमासः, निर्जराफलं च अनशनादि । भोजाः, अग्निः, लोकपालश्च ।।९५६।।
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अशशु भोजने, अशौटि व्याप्तो, इत्यस्माद् वा अस् प्रत्ययो भवति, यकारश्च धात्वादिर्भवति । यश:-माहारम्यम्, सत्त्वं, श्री:, ज्ञानं प्रतापः कीर्तिश्च । एवं शोभनम्अश्नाति, अश्नुते वा इति सुयशाः । नागमेवाश्नाति नाग10 यशाः । बृहदेनोऽश्नाति बृहद्यशाः । श्रुत एनोऽश्नाति श्रुतयशाः । एवमन्येऽपि द्रष्टव्याः ||६५८ ।।
उषेर्जं च ॥ १५६ ।।
25
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30
चायेन ह्रस्वश्व वा ॥९५७॥
चायुग् पूजा - निशामनयोः इत्यस्माद् अस् प्रत्ययो भवति, नकारोऽन्तादेशो ह्रस्वश्चास्य वा भवति । चणःचाणश्चान्नम् । बाहुलकाण्णत्वम् । णत्वं नेच्छन्त्येके ।। ६५७ ।। अशेर्यश्वादिः ॥ ५८ ॥
35
अवेर्वा ॥ ६१॥
अव रक्षणादी, इत्यस्माद् अस् प्रत्ययो भवति, धकारश्चा20 न्तादेशो वा भवति । अधः-अवरम् अवः - रक्षा ।।६६१।। अमेही चान्तौ ।।६२।।
अम गती, इत्यस्माद् अस् प्रत्ययो भवति, भकार-हकारी चान्तौ भवतः । अम्भः - पानीयम् । अहः - पापम्, अपराध:, दिनश्च ।। ६२ ।।
उषू दाहे, इत्यस्मादस् प्रत्ययो भवति, जकारश्चान्तादेशो भवति । ओज:-बलं, प्रभावः, दीप्तिः, शुक्रं च ।। ५६ ।। स्कन्धं च ॥६०॥
स्कन्दु गति - शोषणयो:, इत्यस्माद् अस् प्रत्ययो भवति । धकारश्चान्तादेशो भवति । स्कन्धः - स्वाङ्गम् ॥ ६०॥
अदेरन्ध् च वा ।। ६६३॥
अदं भक्षणे, इत्यस्मादस् प्रत्ययो भवति, अन्धादेशश्वास्य वा भवति । अद्यते तदिति अन्धः - अन्नम् | अद्यते दशा मनसा च तद् इति अद: अनेन प्रत्यक्षविप्रकृष्टम् अप्रत्यक्षं च बुद्धिस्थमपदिश्यते ॥ ९६३ ॥
आपोपाप्राप्स राजाश्च ॥ ६६४ ॥
उचच् समवाये, अञ्च गतौ चेत्याभ्याम् अस् प्रत्ययो भवत्यनयोश्च कोऽन्तादेशो भवति । ओक:-आलय:, जलोकसव | अङ्कः - स्वाङ्गम्, रणश्च ।। ६६५ ।।
आप्लूं व्याप्तौ इत्यस्माद् अस् प्रत्ययो भवति, अप्, अप्त, अप्सर, अब्ज, इत्यादेशाश्चास्य भवन्ति । अप:सत्कर्म, अतः, तदेव, अप्सरसः - देवगणिकाः, अब्ज:जलजम्, अजर्यं च रूपम् ।।६६४ ।।
उच्यञ्चः क च ॥ ६६५॥
अञ्ज्य जि-युजि-भुजेगं च ॥ ९६६ ॥
एम्य: अस् प्रत्ययो भवति, गकारश्वान्तादेशो भवति । 40 अञ्जप व्यक्त्यादी, अङ्गः - क्षत्रियनाम, गिरिपक्षी, व्यक्तिश्च । अज क्षेपणे च, अगः - क्षेमम् । युज पि-योगे, योग:मनः, युगं च । भृर्जंड् भर्जने, भर्जा :- रुद्र:, हविः, तेजश्व
॥६६॥
अरुराश च ॥९६७॥
ऋक् गतौ इत्यस्माद् अस् प्रत्ययो भवत्यस्य च उरिति अश् इति च तालव्य शकारान्त आदेशो भवति । उर:वक्षः । अर्शांसि - गुहादिकीलाः ।। ६६७ || येन्धिभ्यां यादेधौ च ॥ ६६८ ॥
45
यां प्रापणे, ञिइन्धेपि दीप्तो, इत्याभ्याम् अस् प्रत्ययो 50 भवति, यथासंख्यं च याद् एध् इत्यादेशौ भवतः । याद:जलदुष्टसत्त्वम् । एधः - इन्धनम् ||६६८ ।।
चक्षः शिद्वा ॥९६६॥
चक्षिक व्यक्तायां वाचि इत्यस्माद् अस् प्रत्ययो भवति, स च शिद्वा भवति । चक्षः, ख्याः, उभे अपि रक्षो- 55 नाम्नी । आचक्षाः - वाग्मी । आख्याः, प्रख्याश्च - बृहस्पतिः । संचक्षाः - ऋत्विक् । नृचक्षाः - राक्षसः ।।६६६। वस्त्यगिभ्यां णित् ॥७०॥
वस्त्यगियां णिद् अस् प्रत्ययो भवति । वसिक् आच्छादने, वासः - वस्त्रम् । अग कुटिलायां गतो, आग :- 60 अपराधः ।। ६७० ।।
मिथि - रज्ज्युषि - तू पू- - भूवष्टिभ्यः कित्
॥७१॥
एम्य: कि अस् प्रत्ययो भवति । मिथुग् मेघा - हिंसयोः, मिथ: - परस्परम्, रहसि चेत्यर्थः । रञ्जीं रागे, रज:- गुणः, 65 अशुभम्, पशुच । उषू दाहे, उषा सन्ध्या, रात्रिश्च । तृ प्लवन-तरणयोः, तिरस्करोति- तिरः कृत्वा काण्डं गतः । तिर इति अन्तर्भावनृजुत्वे च । पशु पालन- पूरणयो:, पुरः पूजायाम् । तथा च पठन्ति नमः पूजायां पुरचेति । शृश् हिंसायाम्, शृणाति तद्वियुक्तमिति, शिरः- उत्तमाङ्गम् । भू 70 सत्तायाम्, भुव:- लोकः, अन्तरिक्षम, सूर्यश्च । वशक् कान्ती, उशा - रात्रिः ॥ ६७१।।
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विधेर्वा ॥७२॥
विधत् विधाने, इत्यस्माद् अस् प्रत्ययो भवति, स च fear भवति । वेधाः - विद्वान्, सर्ववित्, प्रजापतिश्च । विधा :- स एव ॥ ७२ ॥
नुवो धयादिः ॥ १७३॥
त् स्तवने इत्यस्माद् धकारादिस्थकारादिश्च कि अस् प्रत्ययो भवति । नूधा नूथाश्व-सूतमागधी । घादी गुणमिच्छन्त्येके । नोधाः ऋषिः, ऋत्विक् ॥१७३॥
वयः पयः पुरोरेतोभ्यो धागः ॥ ६७४ ||
एभ्यः पराद् डुधांग्क् धारणे, इत्यस्मात् किद् अस् प्रत्ययो भवति । वयोधा: - युवा, चन्द्रः, प्राणी च । पयोधाःपर्जन्य: । पुरोधाः - पुरोहितः, उपाध्यायश्च । रेतोधाः
जनकः ||६७४ ।।
नत्र हेरेधौ च ॥७५॥
नव् पूर्वाद् ईहि चेष्टायाम्, इत्यस्माद् अस् प्रत्ययो भवति, अस्य च एह एध इत्यादेशौ भवतः । अनेहा : - काल:, इन्द्रः, चन्द्रश्च । अनेधा: - अग्नि, वायु ।।७५।। विहायस् - सुमनस्- पुरुदंशस्- पुरुरवो ऽङ्गिरसः ।।६७६॥
एतेऽस् प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते । विपूर्वाज्जहातेजही तेव 20 योऽन्तश्च । विजहातीति, विहायः - आकाशम् । विजिहीत इति विहायाः - पक्षी | सुपूर्वान्माने र्हस्वश्च । सुष्ठु मानयन्ति मन्यन्ते वा सुमनस - पुष्पाणि । पुरुं दशतीति पुरुदंशा:इन्द्रः । पुरुपूर्वाद्रौतेर्दीर्घश्व, पुरु रौति पुरूरवाः- राजा, यमुवंशी चकमे । अङ्गेरिरोऽन्तव । अङ्गतीति-अङ्गिराः25 ऋषिः ॥ २७६ ॥
पातेजस्थसौ ॥७७॥
पां रक्षणे, इत्यस्माद् जस् थस् इत्येतौ प्रत्ययौ भवतः । पाज:- बलम् । पाथ:- उदकम्, अन्न च ।। ६७७।।
स्रुरीभ्यां तस् ॥७८॥
39
आभ्यां तस् प्रत्ययो भवति । स्रं गतौ स्रोत:-निर्भरणम्. सुष्ठु स्रवतीति सुस्रोताः । रींश् गति-रेषणयोः, रेतःशुक्रम् ||६७८ ||
७५
रिपी विरेचने, इत्यस्माद् नस् प्रत्ययो भवति, अस्य च ककारोऽन्तादेशो भवति । रेक्णः पापं धनं च ॥ ८० ॥
री-वृभ्यां पस् ॥ ६८१ ॥
आस्यां पस् प्रत्ययो भवति । रींश् गति-रेषणयो:, रेप:- 40 पापम् । वृग्ट् वरणे, वर्ष : - रूपम् ॥ ६८१ ॥
शीङः फश्च ॥ ६८२ ॥
शीङ्कु स्वप्ने, इत्यस्मात् फस् चकारात् पस् प्रत्ययो भवति । शेफः, शेपच मेण्ढम् ॥१८२॥
पचि वचिभ्यां स ॥१८३॥
आभ्यां स् प्रत्ययो भवति । डुपचष् पाके, पक्ष:चक्रम्, इन्धनं च । वचंकू भाषणे, वक्षः - उरः शरीरं च ।।६८३||
वष्टे : कनस् || ६८५।।
वशक् कान्तो, इत्यस्माद् किद् अनस् प्रत्ययो भवति । उशना - शुक्रः ॥८५॥
चन्दो रमस् ॥१८६॥
इणस्तशस् || ६६४॥
इण गती, इत्यस्मात् तशस् प्रत्ययो भवति । एतशा :- 50 सोमः, अध्वर्युः, वायु, अग्निः अर्कः इन्द्रश्च ॥९८४॥
45
इण आस् ॥८८॥
इक् गती, इत्यस्माद् आस् प्रत्ययो भवति । अया:काल:, आदित्यच ॥ ८८ ।।
55
च दीप्त्याह्लादयोः इत्यस्माद् रमस् प्रत्ययो भवति । चन्द्रमाः - शशी ।।६८६ ।।
दमे नसूनसौ ॥ ६८७॥
दमूच् उपशमे, इत्यस्माद् उनस् ऊनस् इत्येतौ प्रत्ययो भवतः । दमुना:- अग्निः । दमूना:- सूर्य, देव, उपशान्तश्च 60
॥८७॥
I
रुचि शुचि-हु-सृ-पिछा दिन्छ दिभ्य इस् ॥८६॥ 65 एभ्यइस् प्रत्ययो भवति । रुचि अभिप्रीत्यांच, रोचि:किरणः । वसुपूर्वाद् वसुरोचि:- वासवः, किरण:, ऋतु । अर्च पूजायाम्, अचि:- ज्वाला । शुच् शोके, शोचि:
अभ्यां नस् ॥ ७६ ॥
आभ्यां नस् प्रत्ययो भवति । ऋक् गतौ, अर्णः - जलम् । रश्मिः, शोकः, पिङ्गलभाव:, विविक्तं च । हुं दानाद35 इण्क् गतौ, एनः पापम्, अपराधश्च ॥७६॥
नयो:, हविः - पुरोडाशादिः । सुप्लृ गतौ सर्पिः - घृतम् । 70 छद संवरणे, छादयतीति छदिः । छदेरिस् मन् । त्रट् क्वी
रिचेः क् च ॥१८०॥
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45
इति ह्रस्वः । बाहुलकाद्दीर्घत्वे छादि:-उभयं गृहच्छादनम् । धान्ये सौत्रः, धनु:-चापम् । मनिच ज्ञाने, मनुः-प्रजापतिः । ऊछ दृपी दीप्ति-देवनयोः, छदि:-वमनम् ।।६८६।। ग्रन्थश् संदर्भे, ग्रन्थुः-ग्रन्थः । पृश् पालन-पूरणयोः, परु:बंहि-वृ हेर्नलुक् च ॥६ ॥
पर्व, समुद्रः, धर्मश्च । तपं संतापे, तपु:-त्रपु, शत्रु:
भास्करः, अग्नि:, कृच्छादि च । त्रपौषि लजायाम्, त्रपुःआभ्याम् इस् प्रत्ययो भवति, नकारस्य च लुक्
अपु । डुवपी बीजसंताने, वपुः-शरीरम्, लावण्यं, तेजश्च । 40 5 भवति । बहक वद्धौ, बहिः-अनभ्यन्तरे, वह शब्दे च,
यजी देवपूजा-संगति-करणदानेषु, यजु:-अच्छन्दा श्रुतिः, बहिः, शिखी, दर्भश्च 160||
यज्ञोत्सवश्च । अदक् भक्षणे, प्रपूर्वः, प्रादुः-प्राकाश्येद्युतेरादेश्च जः ॥११॥
उत्पत्तौ च । प्रादुर्बभूव । प्रादुरासीत् । टुवेपङ् चलने, द्युति दीप्तौ, इत्यस्माद् इस प्रत्ययो भवति, धात्वादेश्च वेपुः-वेपथुः ॥६६७|| वर्णस्य जकारो भवति । ज्योति:-तेजः, सूर्यः, अग्निः, इणो णित् ॥६EET 10 तारका च ॥६६१||
इणं गतो, इत्यस्माद् णिद् उस् प्रत्ययो भवति । सहेर्घ च ॥ २॥
आयु:-जीवितम् । जटापूर्वादपि जटायु:-अरुणात्मजः । तं षहि मर्षणे, इत्यस्माद् इस् प्रत्ययो भवति, धकारश्चा- नोलजीमूतनिकाशवर्ण, स पाण्डुरोरस्कमुदारधैर्यम् । ददर्श न्तादेशो भवति । सधिः-सत्त्वम्, भूमिः, संयोगः, सहिष्ण:, । लङ्काधिपतिः पृथिव्यां, जटायुषं शान्तमिवाग्निदाहम् अग्निः, अनड्वांश्च ॥६६२||
|६||
___50 15 पस्थोऽतन्श्च ॥६६॥
दुडित् ॥६६॥ पां पाने, इत्यस्माद् इस् प्रत्ययो भवति, थकारश्चान्तो
। दुषंच वकृत्ये, इत्यस्माद् डिद् उस् प्रत्ययो भवति । भवति । पाथिः-पानं, नदी, आदित्यः, ज्योतिः, स्वर्गलोकश्च | दुः-निन्दायाम्, दुष्पुरुषः ।।६६६il ॥६६३॥
मुहि-मिथ्यादेः कित् ॥१०००॥ नियो डित् ॥४॥
आभ्यां किदुस् प्रत्ययो भवति । मुहीच वैचित्ये, मुहुः- 55 20 णींग प्रापणे, इत्यस्माद् डिद् इस् प्रत्ययो भवति । कालावृत्ति: मिथग मेघाहिंसयोः, मिथुः-संगमः । आदिनिश्चिनोति निरुपसर्गोऽयं पृथग्भावे ||६६४||
ग्रहणादन्येभ्योऽपि भवति ॥१०००। अवेणित् ॥६६॥
चक्षेः शिवा ॥१००१॥ अव रक्षणादौ, इत्यस्माद् णिद् इस् प्रत्ययो भवति ।। चक्षिक व्यकायां वाचि, इत्यस्मात् किद् उस् प्रत्ययो आवि:-प्राकाश्य, आविरभूत आविष्करोति ॥६६५ भवति स च शिक्षा भवनि। चक्ष
भवति, स च शिद्वा भवति । चक्षुः, परिचक्षुः, अवचक्षुः, 60 25 तु-भू-स्तुभ्यः कित् ॥६६॥
अवसचक्षुः, अचक्षुः, अवख्युः। बाहुलकाद् द्विवचने सचएभ्यः किद् इस् प्रत्ययो भवति । तुक वृत्त्यादी, तुवि:- |
चक्षुः, विचख्युः ।।१००१।। समुद्रः, सरित्, विवस्वान्, प्रभुसंयोगश्च । भू सत्तायाम्,
१००२॥ भ्रविः-क्रतुः, समुद्रः, सरित, विवस्वाश्च । ष्टुग्क स्तुती, पांक रक्षणे, इत्यस्माद् डिम्सः प्रत्ययो भवति । स्तुविः-स्तोता, यज्ञश्च ॥६६॥
पुमान्-पुरुषः, पुमांसौ, पुमांसः । उकार उदित्कार्यार्थः 65 30 रुति-जनि-तनि-धनि- मनि-ग्रन्थि-प-तपि-त्रपि- ॥१००२।। वपि-यजि-प्रादि-वेपिभ्य उस् ॥६६७॥
न्युभ्यामश्वेः ककार्कसष्टावच्च ॥१००३॥ एभ्य उस् प्रत्ययो भवति । रुदक् अश्रुविमोचने, रोदु:- न्युभ्यां परादञ्चू गतो, इत्यस्मात् कित: अ आ ऐस् अश्रुनिपातः । ऋक् गतौ, अरु:-व्रणः, आदित्यः, प्राणः, इत्येते प्रत्यया भवन्ति, ते च टावत्-टायामिव एषु कार्य
समुद्रश्च । जनचि प्रादुर्भावः, जनुः, अपत्यं, पिता, माता, | भवतीत्यर्थः। तेन अच्च प्राग्दीर्घश्च इति भवति । नीचम्, 70 36 जन्म, प्राणी च । तनूयी विस्तारे, तनुः, शरीरम् । धन उच्चम् । नीचा, उच्चा । नीचैः, उच्चैः प्रसिद्धार्था एते ।
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लाघवार्थ सन्ताधिकारेऽपि अकाराकारप्रत्ययविधानम् | आभ्यां डिद् ओस् प्रत्ययो भवति । य उपरमे, यो:॥१००३।।
| विषयसुखम् । दमूच् उपशमे, दो:-बाहुः ॥१००५॥ शमो नियो डैस् मलुक् च ॥१००४॥
अनसो वहेः विप् सश्च डः ॥१००६॥ 10 शम्पूर्वात् णींग प्रापणे, इत्यस्माद् डिद् ऐस् प्रत्ययो । 5 भवति । शमो मकारस्य च लुक् भवति । शनै:-मन्दम् __ अनस् शब्दपूर्वात् वहीं प्रापणे, इत्यस्मात् क्विप् प्रत्ययो ॥१००४।।
भवति, सकारस्य च डो भवति । अनो वहति अनड्वान्यमि-दमिभ्यां डोस् ॥१००५॥
वृषभः ॥१००६॥
॥ इत्याचार्य श्रीहेमचन्द्रकृतं स्वोपज्ञोणादिगणसूत्रविवरणं परिसमाप्तम् ॥
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सूत्रक्रमानुसारिणी प्रत्ययानुक्रमणिका
अ २-२० क २१-२६. अक २७-३३. आक ३४-३७. इक ३८-४५. ईक ४६-५०. उक ५१-५७. ऊक ५८-६१. अङ्क ६२-६३. इङ्क ६४. अविङ्क ६५. एलक ६६. आतृक ६७. आणक ६८-७०. अनक ७१-७२. ईनक ७३. ईथुक, एधुक ७४ तिक ७५-७६. तक ७७-७८ ईतक ७६-८०. अहक ८१. आतक ८२-८३ ख ८४-६० ऊख, इख ६१. ग १२-१६. आग १७. अन्न १०-१०१. १०२-१०५. १०६-१००. १०६-११०. अब ११२ अब ११४-११५. आच ११६. इंच ११७ ईच ११८. उच ११६. ऊन १२०-१२१. ओष, अब १२२. इख १२२. छ १२४-१२६. ज १२७-१२६. अज १३०-१३४. इज १३५. अञ्ज १३६. झ १३७. ट १३८-१४१. अट १४२ - १४४. आट १४५ १४८. ट १४९. एट १५०. ईट १५१. अरीट १५२. उट, उड १५३. उट १५४-१५५. उट, ऊट १५६. ऊट १५७. एट १५८-१५६. ओट १६०-१६१.
११२-१२२.
१६२-१६६. अठ १६७. ड १६८-१७०. अड १७१-१७२. अण्ड १७३ - १७६. उड १७७. उण्ड १७८. १७९-१८१. ण १८२-१८६. अण १८७-११०. आण १६१-१९३. इण १९४-१९५. उण १६६-१६०. ए ११६. तु २००२०६. अत २०७ २०८. आत २०६. इत २१०-२१२. ईत २१३. उत २१४. ऊत २१५-२१६. ओत २१७-२१८. अन्त २१९-२२२. उन्त २२३-२२४. थ २२५-२३१. अथ २३२-२३५. ऊथ २३६. द २३७-२४०, इद, ईद २४१. उद २४२-२४४. अन्द २४५. इन्द २४६-२४८. उन्द्र २४६. उकुन्द २५० घ २५१. अध २५२-२५३. वध २५४ - २५५. उध २५६. अन्ध २५७. न २५८-२६८. अन २६६-२७५. आन २७६-२७८ असान २७६-२८१. इन २८२-२८५. ईन २८६-२८७. उन २८८-२६१. तन २६२ - २९३. न २९४ दशसान २१५. प २१६-३०३. अप २०४-३०७. आप ३०८ प ३०६. ईप ३१०. उप ३११. ऊप ३१२.
३१३. ३१४-३१६. व ३१७-३२०. अम्ब ३२१३२३. इम्ब] ३२४-३२५. उम्ब ३२६. भ ३२७-३२८. अभ ३२६-३३१. इभ ३३२. उभ ३३३-३३५. अम्भ ३३६. उम्भ ३३७. म ३३८-३४६. अम ३४७-३४८. इम ३४६३५०. उम ३५१-३५२. कम ३५३. एलिम ३५४ दिन ३५५ - ३५६. य ३५७-३६४. अय ३६५-३७०. अय, उय ३७१. आय ३७२. आय्य ३७३-३७४ इय ३७५-३७६. आलीय ३७७-३७८. अन्य ३७६-३८० आन्य ३८१. एण्य ३८२. स्य ३८३. इष्य ३८४. उष्य ३८५. अथ्य ३८६. र ३८७३६६. अर ३१७-४०४. आर ४०५-४११. इर ४१२४१७. र ४१८-४२२. उर ४२३-४२६. कर ४२७४३०. एर ४३१-४३२. ओर ४३३-४३४. कर ४३५ -४३६. तर ४३७-४३८. सर ४३६-४४०. वर ४४१ - ४४४. एवर, अङ्गर ४४५ ४४६ ४५५. अत्र ४५६-४५६. इत्र ४५९४६०. उत्र ४६१. ल ४६२-४६४. अल ४६५-४७४. आल ४७५-४८०. इल ४८१-४८४. उल ४८५-४८७. ऊल ४८-४९१. एल ४९२. ओल ४९३-४१५. कल ४९६. कल, खल ४६७. खल ४६८. बल, वल ४६६-५०० तल, पाल, बाल, वल ५०१. मल ५०२-५०३. सल ५०४. व ५०५-५१४. अव ५१५-५१६. आव ५२०. इव ५२१५२२. श्व ५२३. उव ५२४. स्व ५२५. इत्व ५२६. श ५२७५३०. अश ५३१-५३२. आश ५३३-५३४. इश ५३५-५३७. उश ५३८. पिश, तश ५३६. ष ५४० - ५४३. अष ५४४. आष ५४५ इ ५४६-५५२. ५५३-५५६. उप ५५७-५५९. ऊष ५६० - ५६१. मष ५६२. माष ५६३. स ५६४ - ५६८. अस ५६६-५७३. आस ५७४- ५७५. ईस ५७६-५७७. उस ५७८ टिस, इस ५७६. तस ५८०-५८१. नस ५८२. पास ५८३. मास ५६४. अम्बुस ५८५. ह ५८६-५८८. अह ५६६-५२०. आह ५६१-५२२. कह ५६३. स्यूह ५६४. ओह ५९५ ५९६-५७.
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आ ५६८-६०५.
च् ८७१. वच् ८७२. इ ६०६-६२२. कि ६२३. अकि ६२४. अखि ६२५.
अज् ८७३-८७४. इज् ८७५-८७६. इखि ६२६. ईचि ६२७-६२६. अटि ६३०. ढि ६३१-६३३. णि ६३४-६३७. अणि ६३८-६४३. इणि ६४४, त्रीणि ६४५. अट ८७७. ति ६४६-६५२. अति ६५३-६५६. अस्ति ६६०-६६१.
अड् ८७८. अविड् ८७६. क्विप् [छ् ड्] ८८०. आति ६६२-६६४. अन्ति ६६५. उन्ति ६६६. इति ६६७६६८. थि ६६६. अथि ६७०-६७२. इथि ६७३-६७४. अत् ८८१-८८५. अवत् ८८६. इत् ८८७-८८८. उत् अधि ६७५. रधि ६७६. नि ६७७-६७९. अनि ६८०-६८१.८८६-८६०. ऋत् ८६१-८६२. अनि ६८२. इनि ६८३. उनि ६८४. मनि ६८५. दुभि ६८६.
ऋथ् ८६३. मि ६८७-६६०. अयि ६६१. रि ६६२-६६५. त्रि ६६६. अत्रि ६६७. अरि ६६८. उरि ६६९-७००. लि ७०१. अलि अद् ८६४-८६५. तद् ८६६. सद् ८६७-८६८. ७०२. ओकुलि, मलि ७०३. वि ७०४-७०६. सि ७०७. मद् ८६६. असि ७०८. नसि ७०६. हि ७१०.
अन् ६००-६०२. तन् १०३. वन् ६०४-६१०. मन् ई ७११-७१५.
६११-६१६. इमन् ६१७. ईमन् ६१८. इन् ६१६-६२६. उ ७१६-७४८. कु ७४६-७५१. आकु ७५२-७५४. मिन् ६२७. भुक्षिन् ६२८. त्रिन् ६२६. अत्रिन् ६३०. अकु ७५५. दाकु ७५६. स्वाकु ७५७. गु ७५८-७६०. अगु ७६१. अटु ७६२. आटु ७६३. इष्ठु ७६४. डु ७६५-७६६. |
विप् [प] ६३१. आण्डु, कण्डुक ७६७. णु ७६८-७६६. अणु ७७०. इष्णु क्विम् [भ] ६३२. ७७१. एणु ७७२. तु ७७३-७७८. अतु ७७६-७८०. यतु ७८१. आतु ७८२. दु ७८३. धु ७८४-७८५. नु ७८६-७६०.
म् ६३३. अम् ६३४-६३७. दम् ६३८. इम् ६३६. तु, नु ७६१-७६२. अनु ७६३. आनू ७६४. रदान ७६५. ईम् ६४०-६४१. तुम् ९४२. अकु ७६६. इत्नु ७६७. इपु ७६८. बु ७६६. अमु ८००. यु
क्विप् र ६४३-६४४. अर् ६४५-६४७. उर् ६४८. ८०१-८०२. अयु, अन्यु ८०३. अन्यु ८०४. त्यु ८०५. रु ८०६-८११. अरु ८१२. आरु ८१३-८१६. उरु ८१७
इव् ६४६. ८१८. ऊरु ८१६. लु ८२०-८२१. आलु ८२२-८२३. अलु
क्विप् [श्] ६५०. ८२४. शु ८२५. सु ८२६. अक्षु ८२७-८२८. ऊ८२६-८४४. डू८४५. दू ८४६. बू८४७. अन्धू
क्विप् [२] ६५१. ८४८-८४६. आगू ८५०. एरू ८५१.
अस् ६५२-६७६. जस्, थस् ६७७. तस् ६७८. नस् ऋ८५२-८५६. तृ८५७-८६५.
६७६-६८०. पस् ६८१. पस् फस् ९८२. सस् ६८३. तशस् ऐ८६६.
९८४. अनस् ९८५. रमस् १८६. उनस्, ऊनस् ९८७. आस्
९८८. इस् ६८६-६६६. उस् ९६७-१००१. उम्स् १००२. औ ८६८.
अ, आ, ऐस् १००३. ऐस् १००४. ओस् १००५. क ८६६-८७०.
क्विप् [ह.] १००६.
ओ ८६७.
Aho! Shrutgyanam
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--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
अक्त
अक्तु
अक्ष
अक्षन्
अक्षय
अक्षर
अक्षि
अक्षु
अक्षोट
अक्ष्ण
अगस्
अगस्ति
ཝཱ པྥཾ, ཡཾ སྠཽ སྠཽ ལླཱ
अगस्त्य
अगार
अग्नि
अघ्न्य
अघ्न्या
अङ्कति
अङ्कस्
अङ्कुर
अकुश
अङ्कर
अि
अङ्ग
अङ्गण
अङ्गस्
अङ्गार
अङ्गिरस्
अगु अगुरि
॥ उणादिशब्दानां सूत्राङ्कानुसारिण्यनुक्रमणिका ||
सूत्रांक शब्द
२०१ | अङ्गुल
७७७ । अङ्गुलि
५६४
अङ्गुष
९०० अङ्घ्रि
३६५ अच्छ
४३६ अच्छभल्ल
७०७
अजगर
८२६ अजिन
१६१
अजिर
२६४ अज्जू
६६६ अज्र
अ
६६० ३६३ अञ्जलि
४०५
अञ्जस्
अञ्जि
६७७
३८७ अञ्जिष्ठु
८४३
अञ्जिष्णु
११० अञ्जुक
अटनि
३६४
३६४ अटरूष
६५६
अटवि
६६५ अडङ्गर
४२३
अडर
५३८ अडुव
४२३
अणस
६६२
अणि
६२
अणीचि
१८७ अणु
६६६ अण्ड
४०५
अतस
६७६ अतसी
७५८ अतिथि
६६६ अत्क
सूत्रांक
३
शब्द
४८७
अत्रि
६६६ अन्ि
५६०
अत्रीणि
६६२ अत्न
१२४ अत्रु
४६४ अथर्वन्
४०३
२८४
४१७ अदर
८३४
अदम्
३८८
अदिति
४६५ अदेलिम
७०२ अग
६५२ अद्भुत
६०७ अमनि
अदन्त
अदन्ती
७६४ अदि
७७१ अधम
५८ अधर
५६६
६७३
६८०
५६१
७०६ अध्वन्
४०३ अध्वर्युं
३६७ अनडुह,
अनफा
अधस्
अधि
५२४
५६६ अनल
६१६ अनस्
६२७
७१६
१६६
५६६
अनह
अनाट
अनिल
अनीक
अनु
अनुवत्सर
२१ | अनुष्टुभ्
Aho! Shrutgyanam
सूत्रांक
६६६ अनुसंवत्सर
६२६ अनूक
६४५ | अनेधस्
२५८
अहस्
अनोकह
अन्त
अन्तर्
अन्तर
८००
६०२
२२१
२२१
४०३
६६३
६६७
३५४
शब्द
अन्तु
अन्त्य
अन्त्र
अन्दू
६२ अन्ध
२१४
अन्धस्
६८५
अन्धु
६६२ अन्ध्र
३४८ अन्न
३६८
अन्य
अप्
अप
अपत्य
अपष्टु
अपस्
अपालु
अपि
अपुष
५२ अपूप
६१
६११
६०६
७४६
१००६
३१६
४६५
५८६
१४५ अप्तु
४८ १
अप्तृ
४६ अप्वा
अप्तस्
अप्सरस्
अब्जस्
७१६
४३६
६३२ अब्द
सूत्रांक
४३६
६१
६७५
६७५
५६५
२००
६४७
४३७
७७३
३६०
४५१
८२६
२५१
६६३
७१६
३६६
२५८
३५७
६३१
३०३
३५८
७३२
६६४
८२३
६११
५५६
३१२
૨૬૪
७७६
८६१
५०६
૨૬૪
૨૬૪
२३८
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
शब्द
सूत्रांक | शब्द
सूत्रांक शब्द
सूत्रांक | शब्द
सूत्रांक
५१४ अरण्य ६१४ अरति ६६३ | अरनि
अरर अररि
२२६ ३४८ ७४१ ३६८
अवयु
२७
६६८
..
अररु
११२
५८५
३७६ | अर्शस् ६५३ | अर्शसान ६८२ अर्हसान ३६७, अलक
अलका
अलम्बुस ६६२ अलम्बुसा ४७५
अलक अलवाल) आलवाल) अलस अलात अलाबू
६६१ ५६३ १००१
६०७
अराति अराल अरि अरुण
अरुष २०७]
अरुस् ६५३
अरूष
२८२
५६६
१६७
अब्बा अभि अभिमाति अभियाति अभीक्ष्ण अभीशु अभ्यूष अभ्र अभ्रमु अभ्व अमठ अमत अमति अमत्र अमनि अमर अमस अमित्र अमित्र अमिलातक अमीवा अम्बर अम्बरीष अम्बा
~
२०६
५४७
८३८
७६४
अर्क
अलि
७११ ६२७ ५५२
५४२
अर्कलुष अर्गला
६८० ३६७
४६७
अघ
अलिक अलिन्द
अलीक ९५२ | अलीका
अलुम
४६
५६६
५५२
अर्चस्
६८०
»
६.६७ अवभृथ २६५ अवम २७६
अवर अवलत्तिका अवस् अवस
अवसंचक्षुस् ४८०
अवि अविन अविष अविषी
अविष्ठु ६१६ अवी ३८ अवीचि
अव्यथिष
अव्यथिषी ४६
अशनि अशित्र अशोक
अश्मक ४६४
अश्मन् अश्मयु
अधि १००१
अश्रु २२६
अश्व २२६
अषाढा अष्टका
अष्टन् १००१ अष्टि
असन ७६२ | असि १७१ | असु
असुर ६८० | असुरि ६६५ । अस्त
अचि
३५१
४५६
a
अचिस्
९८९
अल्प
२६६
ar
अर्जुन
२८८
२७
३१८
अर्जुनी अर्णस् अर्थ अथुष्य अर्पिम अपिश
६११ ७४१ ६६२ ८०६ ५०५ १८१
अम्बु
३८५
હ€ € ४६२ ।
९५२
२२७
७७
अम्ब्ल अम्भस् अम्ल अयस् अयास्
अपिष
urx
२८८ अल्ल
अव ६७६
अवका २२५ अवख्युस्
अवगथ ३४६
अवगाथ ३३६
अवगीथ
अवच ५४६ २४२ अवचक्षुस् ३२७ अवट
अवटु अवड
अवतंस १०४ | अवनि ८७० । अवन्ति
१०३ ६५१ २६६ ६०७
१४२ ।
अयुत
.
अय्मन्
अर्बुद अर्भ अर्भक अर्म
अर्यमन् १७१ | अर्वन् ६३८ । अकि
७१६
अरटु
५६५
४२३
अरड अरणि
२००
Aho! Shrutgyanam
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक | शब्द
सूत्रांक शब्द
সুগন্ধি
इषिर ६४३ | इषीका
७७३ ४४६
अस्तीक अस्तु अस्त्र अस्थि अस्मद् अस्त्र अहन् अहल्या अहि
आशु ६२० आशुशुक्षणि ६१६ | आष्ट्र १०४ | आसाविन् ५१६ आस्फोता ७२ आस्य
आहल आह्वा
४१६
४८ ७२६ २५६
७७ ५११
८६६ ३८७
६२१ ! इषुध २१८ | इष्टका ३६४
इष्वा ५१४
६०२
४७२
५११
३५८
དད༠
८२६
अंश
७५७
अंशु
१४१ ३३८
ईर्म
अंशुक
आण्डू आति आत्मन् आदिङ्ग आदीनव आनक आपणिक आपतिक आपदिक आपनिक आप्वा आभीर आमय आमिक्षा आमिष आमीवा आम्ब आम्र आम्रातक आयु आयुस् आरग्वध
इक्ष्वाकु
इगुद ५०६
इजसान
इज्जल ३६५
२४२ २८०
३५७
"
mm Marow xom xxx mm
aw IS
WWKKG
| ईर्ष्या ईर्ष्यालु ई!
८२२
अंहति
५६७
८२६
अंहस्
ईशन्
अंह्नि
५१४
इड इडविड् इडावत्सर इड्वत्सर
आ आकषिक
२७७ ४४२
ईशान ईश्वर ईश्वरी ईषीका
४४२
आखु
इतर
७४२ ६६६ ७७३
ar
३४० ૨૨૭
६७०
इति इतिक इतिश इदम्
९६८
१२०
r
0 9 U०
m
६६६
२५४ ८३५ ३६२
आरू आई
इध्म ।
६२०
इन इन्दु
ur or
9
७६
आख्यस् आगन्तु आगस् आगामिन् आचक्षस् आचिकीर्षणि आजि आजिहीर्षणि आटरूष आडू आढक आढ्य आणि आणुक आणूक आणूर आण्ड
उक्थ उक्षन् उखा उग्र उचित उच्च उच्चा उच्चिलिङ्ग उच्चस् उच्छीथ उटज
२१२ १००३ १००३
३८७
आलत्तिका ६४३ आलवाल)
अलवाली ८३७ आलि
| आलिङ्ग | आलु
५६१
३२८ ।
१००३
२२८
३८६ १६५
आलू
८३७
६१६ रिफ १०२ ७२७ इरा
इरिण ४२८ इलात २३३ इल्वल
इल्वला ४१५ | इषस
Aho! Shrutgyanam
१३४ ७३८
५६ | आलूर ५६ | आवसथ ४२८ | आविस् १६६ | आशिर
२०६
५०० उडुप ५०० | उडुव ५७२ | उत
२०४
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक |
शब्द
सूत्रांक | शब्द
सूत्रांक
८१४
एत्व
एघट
३८६ उरल ४८५ उरश
| उरस् १५५
उरस ४७४
उरु
५२५ १४२ ७७६
६६८
४७४
ऊर्वाह ५३१ ऊष्मन् ६६७ ऋक्ष ५७२ । ऋक्षर
ऋक्षरा ऋनि ऋचीक ऋच्छर ऋच्छरा ऋजीक
५६७ ४४० ४४० ६६५ ४८
५६७
उरुवक
उलक्षु उलप
३६६
.
उतथ्य उत्कण्ठुल उत्कलिका उत्कुरुट उत्पल उत्स उदक उदर उदरथि उदर्क उदश्वित् उदारथि उदिञ्च उदीची उदुम्ब उदुम्बर उदातृ उद्गीथ
एधतु एधस् एधिख एधिच्छ एपिठ एधित्व एधिनि एनस् एरका एरण्ड एरा एर्वात
१२६ १६६ ५२६ ६८३ ६७६
૬૭૨
३६७
उलूक उल्का
४८
उल्मुक
ऋजीष ऋजु
३३
उल्व
७२२
३८८
६७२ १२३ ११२ ३२६
उल्वण उशनस्
५
ऋच ऋञ्जसान ऋण ऋत ऋति
२७६ १८३
१७६ ३८६ ८१४ ५०५ ६६५
उशस्
एव
४४४
२०१
उशिज उशीर उषष्
८६३
ओकस् ओजस्
४१६
६०६
९५६
२२७
३०५
ऋतु
ওওও
ओड्र
उद्र
३८८
उषस्
ओतु
४४६
१०६ ८७४ ७३०
ओदन
७७३ २७१ ६३३
o
४३६
ओम
९७१
ऋत्वन् ऋधज् | ऋभु ऋभुक्षिन् ऋश्य ऋषभ ऋषि
x
उष्ट्र उष्ण उष्णीष उष्मन् उस्त्र उस्त्रा
६७५
0
४२३
AY Y
mm
उदटुम उद्वत्सर उन्दनु उन्दुर उन्नेतृ उप उपक उपचाकु उपद्रष्ट्र उपल उपवसथ उपह्वर उभ्र
ऋष्व .
५११
mr
७५४
| एक
२४५ २४३ ९३२ ३३३ ४६५ १४२ ५६४
६५४ | एकानसि २६१ । एडका ३४२ | एण.
एत -
ओषधि ओष्ठ
ककन्द ६०६
ककुद ककुभ् ककुभ कक्कोली कक्खट कक्ष
कङ्क ८९६ कङ्कट ५३६ कङ्कण
कङ्कणि ५८१ | कङ्कणीक
ऊधस् ४६८ ऊन - २३३ ऊम
ऊरु ३८८ ३४२ ४४४ | ऊर्ध्व. १६० । ऊमि .
१८२
ऊण
१८२
ऊर्दर
एतश
उमा उम्बर उरण
४०३ ५०७ | एतशस् ६८६ | एतस
Aho! Shrutgyanam
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--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
३४७
कन्दर कन्दल
३२१
कन्दु
कङ्कत कङ्कन कङ्काल कगु कचप कचार
१३६ १४२ १८७ ६३८
४०५ ४५६
७६१ ।
१७३
११४
३२६
mr
३२१ ३३६
x
४७४
३६७ करख ४६५ | करट
करण
करणि ३५७ करण्ड
करभ १४८ करम्ब ४७५ करम्भ
करवाल ४७४ करवीर ४८४
करह
कराल २१७ करि ४६३ करित्व
करीर ८३६
करीष
६१४
कच्छू कज्जल कञ्चुक कञ्चूल कार कटक कटनि कटम्ब कटरु
२७
४०५
२७
१६२
४८० ४२२ ५८६ ४७५ ६१६ ५२६ ४१८ ५५३ १६६ १६६
३१६
३२१
कन्दुक कन्या कपट कपाट कपाल कपि कपिञ्जल कपिल कपोट कपोत कपोल कफ कफैलू कबर कबरी कम् कमट कमठ कमण्डलु कमर कमल कम्पीट कम्बल कम्बु कम्बू
कटह
३६७ | करुण
२०७
कडम
कडम्ब ४८० कडार
कडित्र ३०४ | कडेवर ४०५ कणच १२४ कणय ८३१ कणिश
कणीक
कणीका ४६१
कणीचि कणूक
कण्टक ६८० कण्ठ
कण्ड कण्डीर
कण्ड ५६१ कण्डू
कण्डूल ४५६
कण्डोल ४१८ कण्व ७१६ कत
कत्रि
कथक ४६३ कथेर ४४१ कदम्ब ४४१ कदर ३६७ कद्रु ७५२ कनक ८२ कनिश ४३१ | कनीनक ४३३ | कनीनका ४४५ कन्तु ४५६ । कन्था ३२६ कन्द
३६७
WFK166
करुणा करूष
६०७
५६.
१४२
करेणु
७७२
१६७
१६०
कर्क
२३
१४२
कटाह कटि कटित्र कटीर कटु कटुक कटोल कटोला कटवर कटवरी कठर कठाकु कठिन कठेर कठोर कडङ्गर कडत्र
४६३
८२४
करोट ३६७
कर्कट १५१ । कर्कटी
कर्कन्धू ७६८ | कर्कर
कर्करी कर्कार कर्कारु
३२२
३६७
कय
७४५ २७
ri 42 mor.9
० urmrV
५
कर्कोट
कर्चुर
कर करक करकर
करका ७७३ करङ्क २२५ | करङ्ग २३७ / करच
कजूर
कर्ण
कर्तरि ११४ | कर्तु
१८२ ६६८ ७७३
कडभ
Aho! Shrutgyanam
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
कर्दम
कपेट
कपेंटि
कर्पर
कर्पास
कर्पूर
कबंट
कबंर
करी
कर्बुदार
कर्बुर
कर्मन्
कर्मार
कर्व
कर्ष
कर्षक
कर्पू
कलकल
कलङ्क
कलच
कलत्र
कलभ
कलम
कलम्भ
कलल
कलविङ्क
कलश
कलशी
कलह
कलात
कल'प
कलापक
कलाय,
कलार
कलि
सूत्रांक शब्द
३४७ कलिका
१४२ कलिङ्ग
६३० कलिश्च
४०३
५८३
४२७
१४२
४४१
४४१
४१०
४२३
६११
४०७
५०५
५४०
३१
८२६
१४
६२
११४
૪, ૬
३२६
३४७
३३६
४६५
कलिन्द
कलिल
कलुष
कलेवर
कल्क
कल्पुष
कल्मलीक
कल्मष
कल्माष
कल्मास
कल्य
कल्याण
कल्लोल
कवक
कवच
कवट
कवन्ध
कवय
कवल
कवष
कवाक
कवाट
कवि
कविय
कविर
६५
५३२
५३२
५८९ कशेरू
२०६ कश्मल
३०८ कश्मीर
३३ कषाकष
३७२ कषाय
४०५ कषि
६०७ । कषीका
IS
सूत्रांक शब्द
३८ कसार
१०२ कक्षिपु
१२३ कस्तूर
२४६
को
४८१
५५७
४४५
२१
५५७
५०
५६२
모두쪽
५८४
कहार
कंस
काक
काकणि
काकन्दी
काकि
काकु
काकुड
काकोली
३५७
काचू
१९३
काश्वन
४६५ काश्चनार
११४ काि
२७ काणि
१४२ काणुक
२५७ काणूक
३६५ काणूर
४६६
काण्ड
**
कातर
३४
कादम्ब
*
कानन
६०६
कान्तार
३७५ कामल
४१२ कामि
८५१ कारण्डव
५०२ काराल
४२० कारि
१६ कारु
३७२ कारूष
६१९ कार्ण.
४६
कार्यक
Aho! Shrutgyanam
सूत्रांक |
४०५ काशि
७६८ काषि
४३०
१७२
**
*
शब्द
२१
६४०
२४५ कासू
६२३
७४६ काहला
२४३
किकि
४२८
१६६
४३७
काठ
कष्ठा
कासर
कासार
कासिका
कासीस
काहल
१८
८३५
२७५
४१०
६१८
६३४ किडणीका
५६
किञ्जल्क
६०
किण्व
कितव
किम्
किरण
किकिदीवि
afafa
किकीदिवि
६१६
किखि
किखुणि
३२२
किराट
२७५ किरात
४११ किरि
४६५ किरीट
६१८ | किमर
५१६
किलाट
४७६ किलास
किलासी
१ किलकिल
५६१ किल्विष
१०६ किल्विषी
३१ किशोर
सूत्रांक
६०७
६१६
१६२
१६२
३६७
४०५
४०
५७६
८३५
४७४.
४७४
६२३
७०६
७०६
७०६
६२६
૬×
५०
२६
५११
५१८
६३६
१८८
१४७
२०६
६०६
१५१
४२२
१४७
५७५
५७५
ક
५५१
५५१
YoY
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
হাৰৰ
सूत्रांक | शब्द
सूत्रांक
किष्कु
कुयुम
१७
कुथर
कुरुकुर कुरुण्टक
३५१ ४३१ ६६५ ७४५
२८ ३५१
४८१ ४१८
कुदि
कुरुम
कुटीर
कुद्रु
३२६
कुरुम्ब कुकुर
४२६
किसलय किंशारु कीकट कीकस कीचक कीट कोनाश कीम् कीर कीति
७५१ / कुटि ३६८ | कुटिश्च ७२५ कुटिल १४४ ५७३ | कुटुकुट
कुटुम १४० कुटुम्ब ५३४ कुटेर ६४१ ४१६ कुठाकु ६०८ कुठार
कुन्त कुन्तल कुन्ति
कुलक
२९
कलटा
१४३
M
४३१
कुन्धु
कुलव
५१८
G
कुट्टिम
३४६
कुन्द
कुलाय कुलाल कुलिङ्क कुलिज
कुन्दुम कुन्दुरु कुपल कुपिन्द
३७२ ४७६
६४ १३५
1
कीलाल
४७५
७२६ | कुड
कुठि कुठेर
१२३
४०३
कुत्र
३६६
कुकुन्दर कुकुन्दुर
कुलिञ्च कुलिश कुलीर
४२६
५३५ ४१६
कुडव
कुबेर
१७० ५१८ ३५१ ५२४
४६१
कुडमा
कुब्ज
१२३
३५१
कुकूल
४६१
कुलुम कुलूत
कुडव
कुन्द्रि
६६५
कुण
१६०
५०२
कुब
कुड्मल कुड्य कुणप
३६२
४०६
२१५ ४६. ३१५ ५०३
कुल्फ
३०५
७४१
कुककुट कुक्कुम कुक्कुर कुक्ष कुक्षि
३३४ ४२६
कुमार कुमारयु कुमुद कुमुल
कुणारु
८१५
२४४
५६३
कुणाल
४७६
कुल्मल कुल्माष कुल्मास कुल्या
५६७
५८४
कुणि
६०६, ६३५
२४६
४६६
कुम्भीर
कुवल
कुङ्कुम
७०७ १६० कुणिन्द ३५२ | कुणुकुण
कुण्ठ १२६ ४०३ कण्डल
कुवली
४६६
१०७ ।
कुम्मल कुरङ्ग कुरडी
कुञ्ज
१७०
१०१ कुवाकु
कुविन्द १७२ | कुश
७५३ २४० ५२९
कुअर
४६५
कुटच
कुण्डि
६०८
कुशल
४६८
कुटज
३६६
३२०
१३० | कुण्डिन १३०] ३०५
कुशाम्ब कुशिक
५१८
कुण्ड कुतप
२८
कुरण्टक २८२
कुरर १०८ कुरव ३०५
कुरवक ८४३ कुरिन्द
कुरीर २३१ | कुरु
Aho! Shrutgyanam
कुशुण्ड
[कुटजी कुटप कुटरु कुटल कुटाकु
می 2
८१२
कुतू
२४६
w
कुश्रि ४१६ | कुषप ७३४ | कुषाकु
६६३ ३०५
४६८ | कुथ ७५३ | कुथा
s
७५३
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
कुषि
कुषित
कुपीतक
कुष्ठ
कुष्मन्
कुष्मल
कुसित
कुसिद
कुसीद
कुसुण्ड
कुसुम
कुसुम्भ
कुसूल
कुड
कुहर
कुहु
कुहुक
कुहू
कूच
कूची
कूप
कूर्च
कूर्चक
कूचिका
कूर्व
कूर्पर
कूर्पास
चू
कूबर
कूष्माण्ड
कृक
कृकण
कृकवाकु
कृच्छ्र
कृणु
सूत्रांक शब्द
६०१
२१२
कृतु
कृतिका
कृत्या
कृत्स
कृत्स्त्र
कृदर
८०
१६४
९१२
५०२
२१२
कृन्तत्र
२४१ कृपण
२४१
कृपाण
१७८ कृपारु
३५१
कृपालु
३३७ कृपीट
४६०
कृमि
१७१ कृमुक
३६९ कृवि
७२६ कृश
५१ कृशानु
८४४
११२
११२
२६७
११३
कृषक
कृषाकु
कृषि
कृषिक
कृषीट
११३ कृष्टि
कृष्ण
कृष्णवेण्णा
११३
२६८
४०३
कृसर
५८३
कृमरा
३४६ केकय
४४३ केकर
१७६ केका
२३ केक्कान
१९० केतु
७२८ केदार
३९५ केरड
७६१ | केरल
सूत्रांक शब्द
७६१ केलि
७६ केलिकिल
३६१ केवयु
५६७ केवल
२६४ केश
४० ३
४५८
१८८
१६१
८१५
१०
५.३
केसर
कैरव
केलिकिल
कोक
कोकिल
८१५ कोक्काण
१५१
बोक्काण
ET
कोटर
कोटव
फोटि
७०५
५२८ कोटीर
७६४ कोठर
कोयूम
कोद्रव
३१
७५३
६०६
४१
१५१
६५१
१५३
१५२
૪૪
४४०
३६६
४३५ कोट
कोष्ठ
२६ कोसल
१९३ कोहल
७७८ क्रकच
४११
क्रकर
१७२ क्रतु
૪૭૪
कोमल
कोयष्टि
कोर
कोरक
कोरदूष फोरम
कोल
कोविदार
कोश
कोशातकी
क्रमुक Aho! Shrutgyanam
सूत्रांक शब्द
६०८ क्रमेलक
१६ क्रयिक
७४६
क्रन्तुम्
४६५ क्रिमि
५३०
किय
४३९ कुशिक
५१९
ऋशित
१६ क्रुश्वन
२१
क्रूर
क्रेणि
क्रेलिम
क्रोड
३६७
क्रोष्टु
५१६ क्रौन
४०१
१६३
६१६ क्ले दन्
४१८ क्लेदु
४०३ कोमन्
३५३
कयि
५१९ क्षणनु
४७४
क्षतृ
६४६ क्षत्र
४३४ क्षम्
क्षमा
५६१
क्षय
४६४
क्षवक
४१०
क्षान्तुम्
५२६
क्षारक
८३ क्षित्वन्
१६४ शिवरी
४६५ क्षिप
४६५ क्षिपक
११५ क्षिपका
४०३
२७
क्षिपण
क्षिपणि
५३ क्षिणु
७८०
सूत्रांक
६६
३८
६४२
६१३
३७६
४१
२१२
६०६
३६५
६३४
३५४
१७२
७७३
२६५
१००
७१६
१६
६६१
७६३
८६५
४५१
६३७
६०४
३६७
२७
६४२
२७
१०६
ક્
५
२६
२६
२७३
६४२
७७०
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
क्षिपण्यु
क्षिपस
क्षिपस्ति
क्षिप्र
क्षीर
क्षीरकाकोली
क्षुण
क्षुद्र
क्षुद्रा
शुद्धि
सुपार
क्षुधालु
क्षुधुन
क्षुप
शुपक
क्षुप्र
क्षुभक
क्षुमा
शुर
क्षुल्ल
क्षुल्लक
क्षूण
क्षेत्र
क्षेम
क्षोणि
श्रोतृ
क्षोम
क्ष्मा
ख
खचिम
खजप
खजाक
खञ्जरीट
खटत्
सदूर
सूत्रांक शब्द
८०४
खट्वर
५७२ | खट्वा
६६०
खडूर
३०५
खड्ग
४१६
खड्ड्ड
१८ खण्ड
१६७
३८८ खदिर
३८८ खनि
६६५
खय
८१५
खर
८ १५
खरण्ड
२६०
बरत्
३०१
खरप
२६ खरु
खर्ज
३८८
२६
सण्डि
३४१
३६६
खर्जूर
खल
१५२
खलत
खलति
खलि
खलिन
३३
१८५.
४५१ खलीन
३३८ खलुष
६३४ खल्व
८५७
३४१
३४६
खष्प
८७
खाण्ड
३५०
खात्र
३०४ खादत्
३४ खादि
सानि
८८३
खारी
४२७ खिदिर
खल्वा,
खल्वाट
११
सूत्रांक शब्द
४४१ सिद्र
५०५ खुर
४२७ ख्यस्
६२ गगन
८४५
गङ्गम
१६६ गङ्गा
६०७ गच्छ
४१२ गडन्त
६१९
३६७
४०३ गडयितु
१७६
गडाक
८८३
३०७
८०८
गङ्ग
८२६ गणिम
गर्भव
गण्ड
४२७
४७२
२०७
६५३
६०७
२८२
गडयन्त
गडयन्ती
गडु
गडेर
गण्डयन्त
गण्डाल
गण्डि
गण्डूल
२८६ गण्डूष
५६० गण्डोल
५०५
गदयित्नु
गद्र
गद्गद
गन्तु
गन्दिक
गब्दिक
गन्धर्व
५०५
१४८
२६६
१६६
४४६
८८३
६०७
६१६
४११
गभस्ति
४१६ | गभीर
मन्दिक
गन्दिक
Aho! Shrutgyanam
सूत्रांक] शब्द
३८८ गम्
३६६
गमथ
६६६ गमि
२७५ गमिन् १३ गमेणु
६२
१२४
२२१
२२१
२२१
७६७
३४
७१६
४३१
७६७
६२
६२
३४६
३७०
१६८ गर्त
२२१ गर्दभ
४७५ गर्भ
८
६१२ गत
४८८
गर्व
५६० गर
४६३ गर्वरी
गवय
गवल
गवीधुक
गवेधुका
७७३
गम्भीर
४५
गय
गया
गरदु
गरभ
गरुट
गरुड
५०८
गरुत्
गर्ग
गर
गरी
गहन
गवर
गाण्डि
४५ गातु
गात्र
६६१ गाना
४२२
गाथा
सूत्रांक
९३७
२३२
६०७
६१६
७७२
४२२
३७०
३७०
७६२
३२६
१५३
१५३
८६०
६२
&
€
२००
३२६
३२७
८६०
५०५
४४१
४४१
४६५
७४
७४
२७५
૪૪૪
७७३
४५३
४५.३
२२५
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
गाधि
गान्तुम्
गान्त्र
गामिन्
गारित्र
गारेट
गिर्
गिरण
गिरि
गुगुलु
ཤྲཱ ཝཱ ཝཿ, ཝཱ ཝཱ ཝཿ སྠཱ ཝཱ ཝཱ ཝཱ ཤྲཱ ཤྲཱ བྷྲ ཤྲཱ ཝཿ ཤྲཱ ཝཱ ཝཿ ཤྲཱ ཤྲཱ ཤྲཱ ཝཱ ཝཿ སྠཱ སྠཽ སྠཽ
गुच्छ
गुजुगुज
गुड
गुडगुड
गुडूची
गुडेर
गुण
गुद
गुघेर
गुन्द्रा
गुबेर
गुरु
गुलुञ्छ
गुल्फ
गुल्म
गुह
गुहा
गुर्जर
गुर्जरी
गुवाक
सूत्रांफ शब्द
६०७ गूहतु
१४२ गूहनु
४४७
गुञ्जन
२० गृत्स
४६०
गृधु
१५६ गृध
६४३
सृष्टि
१८८
६०६ | गृहाक
८२४
१२४
७१
१७०
१७०
१७
२३६
४३२
३६६
४८३
गृहयाय्य
४३१
७३४ १२६
३१५ ३४६
गृहाण
होल
गेष्ण
गेह
गो
गोत्र
१२०
गोत्रा
४३१ १८६ गोधूम
५६८
गेरु
गोपालसि
गोपीथ
गोभिल
गोमायु
गोवंर
गोल
गोलत्तिका
गोला
गोलुगुल गौर
३५ गौलुगुल ग्रन्थि
५
५ ग्रन्थुस्
२३१ ग्रहणि
४०४
ग्रहि
४०४ ग्राम
३७ | ग्रावन्
सूत्रांक शब्द
७७६ ग्राहि
८२४
ग्रीवा
२६६ गोष्म
५६८ ग्लातु
७२६
ग्लो
३८८
घङ्घ
P
३७३
३५
१६१
४६४
८११
१६६
५८७
८६७
४५१
४५१
३५३
७०८
२२७
४८४
१२
घङ्घा
घटघट
घटा
घण्टा
घतन
घर्घर
चर्चरी
घर्धरीका
धर्म
परि
घस्र
घाटा
घाति
पासि
घुरुधुर
७२६
४०३
चूक
४९४ पूर्णि
७६
४६४
६३८
६१६
३३६
६०५
घृणा
घृणि
११ धृत
३६६
१६
६०७ पोषयितु
६६७
लिम
दृष्वि
घोर
प्रोम
चकुर
चकोर
चक्र Aho! Shrutgyanam
सूत्रांक शब्द
६१६ चक्रधर
५१४
चक्रवाल
३४६ चकु
७७३
चक्रुः
८६८चक्षस्
चक्षुस्
चकुर
चङ्क्रम
चञ्चरीक
चञ्चल
चश्चा
चङचु
चटक
११०
११०
१४
१४१
१४१
२७२
ms m
ह
चटर
५० चटस
३३८ चटाकु
६६६
चटि
३८७
चटु
१४१
चटुल
६१८
चणक
६१५
चणव
चणस्
चण्ड
१७
२४
६३७
१८३
६३५
२०१
चण्डातक
चण्डाल
चण्डि
चण्डल
७०५ चण्प
४३४
चण्पा
७६७
चतुर्
३५४ चतुर
', चत्वर
४२३
चत्वरी
४३३ चनस्
७
चन्दन
सूत्रांक
२०
४८०
७३३
२०
६६६
१००१
४२३
१२
५०
४६५
१२२
७१६
२७
३६७
५६६
७५२
६०७
७२६
४८५
२७
५१५
६५७
१६८
८२
४७५
६०७
४८ १
२६६
२१६
६४८
४२३
४४१
४४१
६५७
२६६
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
१३
-
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
चन्दिर
सूत्रांक | शब्द ५७ | छिदक
छिदि छिदिर
| छिद्र ६३४ | छिवि
६५७ | चुलुक ४२८ । चुल्लि
चूचुक १५७
चूणि ४६० चेक्रीयित ७२६ चेटि
चन्द्र मस् चपट
चर्च
१
६०६ ४१६ ३८८ ७०६ ८८३
चपल
४६५ /
चपाल
०
चपुष
सूत्रांक शब्द ४१२ । चाणस ३८७
चाणूर
चात्वाल १४२ चानस्
चारि ४७५ / चारित्र ५५७ | चारु
चारुदेष्ण १५८ | चार्वाक १४२ / चिकुर
चिक्कण
चित्त ५६६ | चित्र
| चित्रभानु २६ | चित्रानसि
० 5 r
छुरुछुर
चपेट
१५८
चेतस्
९५२ छुदि
छेक छेदक
६०६ २६
चेरु
० ur 9
४
चोक्ष चोच
१२२
१९०
छेवा
चपेटा चमट चमड चमर चमस चमसी
२०१
चोर
१७१
V.
५६६
जघन जन्तु
८८५ ८८५ २७२ ७३३
१३ ४६७
४५४ ! चोरड
च्यूप च्योक्न च्योक्नी
छगल ३२५ । छटा
चमू
८१६ | चिन्ति
चिबुक
चमूरु चम्पक चम्पा चम्पू
xx
१०६ १८
३८८ ।
चर
१३६
२६६ : चिम्बा ८४१ / चिर २ | चिरिङ्क
चिरिण्टी १८७ : चिभिटी ८०४, ७४६ ! चिलात
| चिह न चीर चीवर चुक्कण चुक्र
४३४ जगत
जगती २९७ २६८ २६८ जङ्गम ४७१
जङ्घा जजल जटा जटायु जटायुस् जटिल
जठर ६५४ ८८३ | ६०७
जनक जनयित्नु
१५० १४६ २०६
६४ | छत्री
छत्वर छदन्ति छदिस् छद्मन् छन्दस् छपत्
चरक चरण चरण्यु चरम चरि चरिण्टी चरु चरित चर्करीत
"" urww
४८१
४०३
mur
जतु
७२१ ८०९
छदि
MM
१८४
७६७
छल
जनि
चर्मन्
चुण्डि चुप्प
WWWhu ०
७०६
जनित्व जनिमन्
६०७ ५२६ ६१७
त
चुप
५५७
छदिस् ६३२
छवि
छाग ३६० छागल
छात्र मुरिक देखो ! छादिस्
१७ | छाया ३२६ । छित्वर
. ४७१
वर्षणि चलुष चषक चषाल चहोल
९९७
जनुस् जन्तु
२७
चुरिक
४७५
६११
४६३ चुरुचुर ७२६ | चुरुम्ब
....६८६ | जन्मन्
जन्य ४४४ जन्यु
चाटु
८०१
Aho! Shrutgyanam
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
। शब्द
मत्रांक शब्द
सूत्रांक | शब्द
सूत्रांक शब्द
सूत्रांक
६१८
८२६
२००
जाय जायु
५०
जाल्म
७७३
जिगन्तु
जप्र जम् जम्बाल जम्बीर जम्बुक जम्बू जम्भ जम्भा जय जयन "जयन्त
Kा
डमर
तनू तन्त तन्तिडीक तन्तु तन्त्र तन्त्रि तन्त्री तन्द्रा तन्द्री तन्यतु
.
४५१ ६०७ ७११ ३६६ ७११
४०३
| झर झरी
झर्भरीक ३४६ / झरीका ७६२ टिट्टिभ ७६२
डहर
डामर २६१ डिण्डिम ३३६ | डिण्डीर २७८ | डिपत् ५१३ डिम्ब
ढक्का ३६२ तक्मन् ७६५
९०६
जिगन्नु
| जित्वन् ३२७ | जित्वरी ३६७ | जिन २६६ | जिह्म २२१/ जिहियाण २२१ | जिह्वा
| जीमूत
४०२
W
तपस्
९५२
जयन्ती
W"
५६६
२१६
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२७
जरण्ड
जीरदानु
६८
9
१७३ २१६
तक्र
जरन्त
9
जीवि जील
U०
२०७
तपस तपुस् तमक तमङ्ग तमत तमस् तमस तमसा तमाल
तक्षन्
जरायु
६५२
तगर
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WW
५६६
२२०
४७५
MY
जरुट जरुड जरूथ जरूष जर्जर जर्जरी जर्जरीका
३६७
तमि
तङ्कि तङ्गण तट तटाक तडाक तडाग तडित्
MY
।७८२
४८६
तम्बूल तर
७७२
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तण्ड
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तण्डाल
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जीवन्त २३६
जीवन्ती ५६० जीवर
| जीवातु
जीवेगु ४७ | जीवि १८२ जुघुषु २०० जुहुराण -२०
जूणि जेसर जैत्र
जैवातृक ७८६ | जैवातृका ७०५ ज्ञाति .. १८. | ज्योतिरिक्षण
ज्योतिस्
ज्योन्ताक ८६० । झज्झा
U W 2UXxx m
W US O
तरङ्ग तरट तरड तरण तरणि
....५४५
तण्डुल
१४२ १७१ १८७ ६३८ १७३ २२१
४३३ ४४७
तत
जत. जलधर जलाष जलूका जसुरि जहक जह नु जागवि जाजलि जाण्ट
| तरण्ड
M
तद
८६५
तनय
१६०
तनाल
| तरन्त
| तरन्ती ३६५ तरल ४७५ तरस् ७१६ | तरि ४६१ तरी ११७ | तरीष
४६५ ६५२ ६०६
९६१
३७ १३७ | तनुस्
तनु तनुत्र
जानु जामात
७११
Aho! Shrutgyanam
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
क. . .,,,, असे
तर्कार तर्क
तणं
स
तपं
तर्ष
तसं
तलुन
तलूक
तल्प तविष तविधी
तसर
ताडि
तात
तापि
तामरस
ताम्बूल
त. म्र
तालि
तालीस
सालु
तालुर
ताविष
ताविषी
विका
तिग्म
ਸਿਰਫ
तितल
तितिक
तितिरि
सूत्रांक शब्द
७१६
तिथ
२८५
तिथि
४६१
तिनिश
४०६ तिन्तिडीक
७२३ |तिन्दुक तिमि
८४५
१८२ निमिर
८४६ तिरस्
२६ तिरीट
तितिर
तिलक
५४०
५६४
३०४
२००
५८
२६६
५५० तुक्
तीक्ष्ण
तीर्थ
तीवर
तीव्र
५५० तुग्र
४४०
तुङ्ग
६१५ तुच्छ
२०३ तुटुव
६१८ तुण्ड
५७३ तुण्डि
४८६ तुण्डिल
३६२ तुत्थ
६१८ | तुद
५७६
तुदन
७२७ तुन्द
४२८ तुब्र
५५०
तुमुल
५५०
तुम्ब
२०४ तुम्बुरु
३४५ तुरण
७४८ तुरि
१८ तुम्बद
७३३ तुरुष्क
६११ तुल तुल्वल
सूत्रांक शब्द
२३१ तुविस्
६७४
सुवार
५३७ तुस्ता
५० तुहिन
५४ तूक
६१३
तूण
४१६ तूणीर
१५
६७१ लूप
१५१ तूर्णि
१०
२६
१८६
२२७
४४४
तृण
तृत
३६६
तृपल
८६६ तृपला
३६६ तृप्र
१०७ तृष्णा
१२४ तेजस्
५२४ तोक
१७० तोक्मन्
६०८ तोमर
४८१
तोसल
२२७ तौल्वलि
२७३
२४०
३६०
४८७
५. त्यद्
तूवर
तूष्णीम्
तूस्त
६०६
३२६
५००
त्रपिचा
३२० त्रय
८१७ श्रवण
त्राक
त्रि
त्रपु
त्रपुम्
त्रपुस
त्रिषवण
२६ त्रिष्टुभ्
श्रोटि
Aho! Shrutgyanam
सूत्रांक शब्द
६६६ त्रोत्र
४०८
२०३
२८३
२४
१८५
४२२
२६७
६३४
४४३
૨૪૦
२०३
१८६
८८ १
४६८
.४६८
३८८
१८३
१५२
२१
११६
४०३
४६५
स्वच्
त्वष्ट
त्विषि
त्सरु
दक्षाय्य
दक्षिण
दक्षिणा
दगु
दण्ड
दषि
दधिषाय्य
दधीचि
दनु
दन्त
दपत्
दभ्र
दमाहक
दमुनस्
दमूनस्
दय
दरक
दरत
दरद्
५०० दरदर
८१५ दरि
११७
दरुट
दरुड
७१६
९६७ दणं
५७८
दर्दर
३६७ दर्दरी
१६०
२१ दर्दुर
दर्दरीक
६१५ द
२७४
९३२
दर्ज
६०८ | दवर
सूत्रांक
८७२
८६५
६०६
७१६
३७३
१९४
१६४
७५६
१६८
६०७
३७४
६२७
७६३
२००
८८३
३८८
{
१८७
६८७
३६७
२७
२०७
८६४
१४
६०६
१५३
१५३
१८२
€
ह
४७
४२६
८४६
३२७
५०५
vrt
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक | शब्द
सूत्रांक
सूत्रांक
शब्द ४४१ | दिव्
८८४
दिवन्
७०४। २०७
१६१ १६५
३०४
दवरी दवि दर्शत दलप दलिक दल्भ दल्मि देवर दवाक
m WM
३६४ १६३ १८४
६८७
३७४
द्रोण
दिवस दिवा दिष्ट्या दीदिवि दीधीषाय्य दीन दीर्घ दीवि दुकूल दुण्डुभ
२०,६४६ | दृषद्
६०१ देभि ५७२
देवका ५६६ | देवट ६०१
देवन ७०६ | देवयु
देवर
देवल ११०
देविका ४६१ ३३५ | देष्ण ६८६ | देहली २४३ | दोर
३९७
४६५
१८४ ७४४
३४
देवि
दवि
७०६ ६०१
७०६
दशन्
८६८ ६११ द्रुथ
द्रुहाण १४२/ द्रुहिण २६६ ७४१ द्रेक्काण ३६७
द्रोणी द्वार द्वार
द्वि १६६ | धत्तूर ४६५ / धनायु ४३४ | धनु ४६४ | धनुस्
६०४ | | धनुस् १००५ | २४४ धन्वन् ७४४ | धमक ६०६ धमनि
देव
दशेर दश्र
६१५ ४३०
३८८
दुन्दुभि
म
३४० ।
५५६
5०१ | दर्द कर ३८७
दुलि
दोला दोषा
| दुदु रूट
९६७
२६६
दहन दह यु
६०६ | दोस्
६०१
दोहद
६००
44
३८७ ।
दुष्वन्त
-
६८०
दाक दाडिम दाडिमी दात्यूह
दुहित
२२२ | धु EER
द्युम्न धुबन् द्यो"
द्योतन ३८ | द्यौत्र
धय धरक
३५५ - दुःख
..
दात्व
८६७ | धरणि २६६ | धरीमन्
M
दानु
धरुण
w wagi moxx Urd24
दामन्
६११
६५१ |
w
दारुण
६०६
दाश
५२७
४०३
द्रमल द्रमिल द्रविण
४५१
दिङ्ग
१०२
८४१
३३८
दिति दिदिवि
दूषिका दूषीका दृति दृत्वन् हदर हन्भू दृप्र हप्रा दृशान दृशीक दृशीका दृशेलिम
६६८ ७०६
द्राक
धर्णसि ६५ | धत ४६५ | धर्व ४८१ | ध; १६४ | धर्म
धर्मन् । धर्मयु
धवन
धवल १८४ धाक ५०२ ' धाणक
WW
द्राक्षा द्राङ्ग
७४१ २७४
२७७
दिधिषू दिधीपू दिन
७४४
२६८
दिलीप
४८
द्रुणा ३५४ ।
दमल Aho! Shrutgyanam
''७०
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
भातु
घानका
धाना
धान्त
धान्य
धाम
धामन्
धारा
धिङ्ग
भिषण
धिषणा
भिण्य
धिष्ण्या
धीना
धीर
घीवन्
धीवर
घुत्तूर
घुनि
धुन्धु
धुर्
घुवक
धुवका
धुवन
धुक
धूका
धूनि
धूम
धूम्र
बुर्णि
धूर्त
चूडि
धूसर
घृत्वन्
धूत्वरी
धूपाग
सूत्रांक शब्द
७७३ धृषु
७१ घेन
२५८
धेना
२.२ तु
३७६
धोत
३३८ धोत्र
E
३८६
१०२
१८६
१५६ ध्रु वका
२६४. विल
३६४ ध्वजप
२६८ ध्वनि
३८६ प्वाजि
६०८. नक्तम्
४४४ नक्र
४३० नक्षत्र
६७८ नख
७८५ नग
६४३
ध्यात्व
ध्याम
ध्यामन्
ध्रुवक
नगर
२६
नग्न
२६
नट
२७४ नदनु
२२ नदरि
२२ नदाल
૬૨ ननान्ह
३४०
नन्दन्त
३६६ नन्दन्ती
६३७ नन्दयन्त
नन्दयन्ती
२०१
७०१ नन्दयित्नु
४४० नन्दाल
मन्दि
२०६
१०६ नपुंसक
१६१ नप्तृ
१७
सूत्रांक [शब्द
७२६ नभस्
२६८
नभस
२६८
नभाक
७८७
नमत
२०० नमत्र
४५१ नमस्
५.२५ नमस
३४०
९११
नमाक
नमि
नमेरु
Re
२६ नयन
४८ ३
नरक
३०४ नर्कट
६०७ नर्मन्
६१८ नलिन
६३५
नल्व
४ नवन्
नश
नस्र
४ नहुष
४०३ संशुक
२६८
१३६
७६३
६६८
४७५
८५६
२२०
२२०
२२१
२२१
७६७
४७५
६०७
४५६.
४,८७
नाक
नाकु
नागयशस्
नाडी
नाथात
नान्त्र
नापित
नाभि
नामन्
नारङ्ग
नालिकेर
नासिका
३२ नासीर
८६२ | नाहल
Aho! Shrutgyanam
सूत्रांक शब्द:
५२ नांष्ट्र
५६६ नि
३४ निकषा
२०७ निकुञ्ज
४५६
निकुम्भिल
६५२
निकुरुम्ब
५.६९ निघृष्व
३४ निचाकु
६१३ निचुर
८११ निचुल
२६६ नितम्ब
२७ नित्य
१५५ निथ
२८२
५०५
६००
४
निद्रा
निधन
निमि
निमित्त
निम्न
३८७
निम्ब
५५७ नियुत
५७
निरुप
४
निर्ऋष
७२० निर्यूह
निर्वृति
५८
- ७१२ निलीक
२०१
निवसथ
४४७
निवेष्प
२११ निशीथ
६२१ निश्रेणि
१६ निषषि
εε निषदर
४३२ निषद्वरी
४०
निषेध
निष्क
४२२
४६६ | निष्ठुर
सूत्रांक
૪૪૭
६१६
५६८
१२६
૪૪
३२६
५११
७५४
४२६
४२६,४८७
३१७
३६४
२३१
३६६
२७३
६१३
२०४
२६६
३२५
२०४
२३१
२२ε
५९३
६१०
४५
२३३
२६६
२२८
६३४
६७१
*****
४४१
२५२
२६
४२६
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
८६८
पयोधस्
९७४
नौनुदुद
पण्ड पण्ण
निस् निहाक निहाका नीक नीका
पतङ्ग
१८२] पर
परङ्ग परण परत
१८७ २०७
४५६
नीच
परम
नीचा नीचेस्
३४७ ६२५
७४२
नीड
न्यकु
न्यबुंद २२
न्युल १००३
पत्र १०.३ पक्ष १००३ पक्षस्
पक्ष्मन् २२७ ३०२ पड ३८८ पचत ७६१ | पचत्र
| पचन ७०५
पचि
१७० ।
५६६
नीथ
७२४ २४२ पतत्
पतत्र पतत्रि
पतत्रिन् ९८३ | पतनु ९१६ | पतस्
पताका ७६१ / पति
पतेर ४५६ | पत्तन २६६ | पत्ति ६०७
पत्तूर ७७२
पत्र
परमेष्ठिन् परशु परश्वध परह पराक पराट
२५५ ५८६
नीप नीर
६५६
४३१
१४५
परि
नीलगु नीवर नीवि नीव्र
२६२ ६४६
४४३
४३०
पचेणु
परिचक्षुस् परिज्वन् परिवत्सर परिस्तोम पर
४३६
पत्सल
२२७
૩૪૬
नूथस् नूघस्
"
नूनम्
१४
१२४
पथिन ४७५
पदपद पदाजि पदाति
| पदि ५८६ पदिर
परुष परूष पर्जन्य
४२६
m
AM
६२०
X mra
xw6
.
पर्ण
८५४
६०७
पर्णमुच
x
नृचक्षस् नृतस नृतू
पचेलिम
पच्छ ९७३ ६७३
पञ्चन्
पश्चाल ९३५
पञ्जर पटत्
पटल ९६६
पटह ५७२
पटाका ८४४
पटीर ५२५ | पटु ९३२ पटुल ३०२ | पटोला ३३८ पट्टन ६८७
पट्टस पट्टिस
४१२
पर्णरुह, पर्णशुष
८५७
४१८
पर्णसि
नेतृ नेत्व
७०९
पर्दाकु
७५२
२६६
पर्व
| पद
नेनिज नेप नेम
४९३
२६२
नेमि
९०४
पर्पट ५६६ पर्परीक २५८ पर्परीका ७१४ ३००। पर्व
नेरु
८०६
पर्याण
१६३
पदन्
पनस ५८०
पन्न ५७६ पपी ३५२ | पम्पा ६०७ | पय ५१५ | पयस्
Aho! Shrutgyanam
ने
८६४
पटुम
नोदुनुद
पर्वत
५०५ २०७
नोधस्
१९ पठि १७३ । पणव
९५३ | पर्वन्
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
सूत्रांक
शब्द
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
पवि
सूत्रांक १४० पिञ्छोल
पिञ्जर पिङ्गेल
८२१
७०४ ८२५
पशु
| पीबन्
४६५ | पीलु ३९७ ४८८ पीवर
पुङ्ख
पर्षद्
४४४
४७९
पिञ्जष
८६
पलक्षु पलल
६५६ ७७५
Kी KK
.३६६
पलह
-- १२५ .. १२८
२८३ . ४१६
४१७
पुटिन
पात्री
पुटीर पुट्टपुट
१७
६७७
पाण्ट
पाण्डर ८६७ पाण्डु ८२७
पाताल
पाति ५८६ | पातु -७६७ | पात्र ४७५
| पात्व ६१६
पाथस्
पाथिस् २१० '५२२
पाप ५३५ पाप्मन् ३५७ पामन्
पामर
पामा ६०७ ४६४
पार ४६8
पारिन्द २६६
पुण्ड पुण्डरीक
.१७०
१०२
• पलाण्डु पलाल पलाश पलि पलिङ्ग पलित पलिव पलिश पत्य पल्लव
- ५०
पादू
३६६
वितु
9.
९१६
5..
२०
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XX
पुण्य पुण्यकृत पुत पुत्तिका
२०४
.
पल्लि
११ | पुत्र
पिटक पिठर पिठिर
पिण्डाल ४४६
पिण्डि ५२५
पिण्डिल पिण्डीतक
पिण्याक ८३५ २६६
पितृ
पित्त ६११
पिनाक पिपीलिका पिपरी
पिप्पली ८७३
पियार २४८ पियाल ५२३ पिलाल
पिलिपिञ्छ ६१६
पिशङ्ग २४८
पिशाच
पिशित ४२८ ५२७ पिष्टातक १९२
| पीक ७१८ पीठ
४१ पीत १०२ | पोतद्रु १७६ | पीतु
पीथ १२५ पीनस
पुद्गल पुनर्
४५५ ४७४ १४७ ७३३ १४३
४७६
पाश्च
४७६
पल्ली पल्वल पवन पवाका पवि पवित्र पवीर पशु
पुर
पाणि
६०६
पुरण
१८८
पालि
पुरस्
९७१
०
५६६
पालिन्द पालीक पालूर
४६
पुरा पुरि
पिशुन
६०६ ८८२
०
पशूर
पुरीतत्
पाश
पुरीष
पष्ठ पस्त्य
पाषाण
पांसु
७२६ १५५
पुरुट
४७४
२०१ ७४५
पुरुदंशस् पुरूपुर
५७
१७
७७५
१७७
१२२७
पुरुम्ब
पाक पाकल पाकुक पाजस् पाटल पाटलि पाठीन पाणि
पिक पिङ्ग पिचण्ड
पितु ४६५
पिच्छ ७०२ पिच्छल २८७ | पिच्छिल ६१८ | पिञ्छ
५८२
पुरुष
५५८
१२५
पीयु
७४१
१२५ | पीयूक्षा . १२६ | पीयूष
Aho! Shrutgyanam
पुरूरवस् ५६७ पुरोधस् ५६० | पुपुर
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________
पुलक
पुलस्ति
शब्द
पुलस्त्य
पुलह
पुलाक
पुलिक
पुलिन
पुलिन्द
पुलूल
पुवन्
पुलि
E
20
पुष्कल
पुस्त
पुंस्
BELLEEEEEEEE
पूच
पूतना
ཙྪཱ སྠཽ ཝཱ སྠཽ སྠཽ ཝཱ ཝཱ, བྷ, ཝཱ
पूष
पृतना
पृथ
पृथिवी
सूत्रांक शब्द
२६
पृथु
६६०
पृथुक
३६३
पृथुल
५६० पृदाकु
३५
पृश्नि
४१
पृत्
२०३ पृषत
२४६ पृषती
४१० पृषित
६०१
६०१
पृष्ट
पृष्णि
२२ पेंचक
पेटच
पेव
४३६
४६६
२०१
१००२ पेलव
९३ पेडि
पेरु
११२
पेलिम
११२ पेशल
२६३
पेशि
४३८
पोषिम
६५१
पोगण्ड
५०
पोत
३०१
पोतु
३४२ पोतृ
८०७,
पोत्र
७२१ पोला
६२४ पोषयित्नु
२०१
५११
५४२
६००
२६३
प्रचुर
८९५ | प्रचेतस्
८७४
प्रति
५२१
प्रतिदिवन्
प्यात्व
प्यान
प्रख्यस्
प्रगाथ
२०
सूचक शब्द
७३०
प्रतिप्रस्थातृ
प्रतिबोधिन्
प्रतियायिन्
५-७
४८७
७५६ प्रतिहर्तृ
६७९
प्रतीक
८८४
प्रत्ति
२०८ प्रत्यूष
८५४
प्रथम
२१२ प्रपणिक
१६३
प्रपतन
६३५ प्रपुनाट
३३ प्रबोधिन्
३० प्रभृति
५२६ प्रवाविन्
८०६ प्रवन्
५१५
प्ररीवरी
६०८ प्रशास्तृ
३५४ प्रसत्वन्
४६५
प्रसत्वरी
६०८ प्रसकन्दन
२४९
प्रस्तोत
१७४
प्रस्थायिन्
२००
प्रहि
७७३ प्रह
८६३
प्रा
४६१
प्राकषिक
४६४
प्राणथ
७६७
प्राणन्त
५२५ प्राणन्ती
२५८ प्रातर्
६६ प्राहस्
२३१ प्राचर
४२६ प्रापणिक
६५२
प्रापनिक
६४७
प्रामर
६०१ प्राशिर
Aho! Shrutgyanam
सूत्रांक शब्द
८६३ प्रांशु
२३ प्रियङ्गु
प्रियाणक
प्रियाल
१२३
८६३
५० प्रक्षि
६४७
५६१
३४७ प्रेन्
४२
प्रेवरी
२६ε
प्रोथ
१४८
प्लक्ष
६२३ प्लब
६५१
१२३ प्लुसि
प्लोती
ध्व
फनस
फर्फरीक
.
पुष्वा
प्रेवरी
प्लोहन
१०
८५७
१०
६१०
फलक
६६६
फलहूक
૨૬૨ फलाफल
६२४ फलष
६१६ फल्गु
५१४
फल्गुन
६०५ फल्गुनी
४२ फालि
२३२ फेन
२२० फेलू
२२०
बदरी
४५ बघिर
६६७
बन्धक
४०३ बन्धित्र
४२ बन्धु
४२ बन्धुर
४०३ बन्धूक
४१५
बन्ध्या
सूत्रांक
७१६
७६१
६६
४७६
७०७
५११
१०
९१०
६१०
२२५
५६६
२
६०२
७०७
६४६
५१४
५७३
५०
२७
१६
५६०
७५८
२६१
२६१
६१०
२६८
८३०
३६७
४१६
२७
४५६
७१६
४२३
५८
३५७
Page #113
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
बब्बूल
बभ्रु
बर्बर
बर्बरी
बहिण
बहिस्
बलजा
बलाका
बलाल
बलास
बलाहक
बलि
बलिश
बलूक
बलूल
बल्व
बल्वज
बहिस्
बहु
बहुल
बहुला
बालिश
बाष्प
बाहु
बिभीतक
बिम्ब
बिम्बी
बिलाहक
विल्व
विज
बुकण
बुक्कस
बुबुद
बुध
बुधन
बुधान
सूत्रांक शब्द
४६१
बुध्न
७३३ बुस्त
३१७ वृहत्
३१७ बृहती
१९४ बृहद्यशस्
६६० बोक्काण
१३३ बोधि
३४ बोलुबुल
४७५ बीलुबुल
५७४ ब्रह्मन्
भकाल
भगल
भगाल
भटिन
मटिल
भडिल
भीर
८१
६०७
५३६
५८
४८८
३१७ |
१३३
६६०
भण्ड
७२६ भण्डि
४८६ भण्डिल
४८६
भण्डीर
५३६
भदन्त
२६६
भद्र
७२६ भद्राक
७८
भन्दाक
३२५ भन्द्र
३२५ भयानक
디 भरक
५११
भरट
१२७ भरण
१८७ भरणि
५७३
भरण्ड
२४४ भरत
५
भरथ
२७३
भरि
२७७ भरीमन्
२१
सूत्रांक शब्द
२६१
२०१
८८४
भरु
भरुज
भरुट
८८४ भरुड
६५८
भर्ग
१६.३ भर्गस
६०८ भजूं
१२ भर्तृ
१६ भर्भर
१३ भर्भरी
४७७ भर्मन्
४७४ भजातक
४७७
४५६
४८१
४८२
भल्लुक
भल्लूक
भव
भवत
भवन
भवन्त
भवन्ति
भवन्ती
४२२
१६८
६०८
४८२
४२२ भवाणक
२२२
भवि
३११ भविन्
३७ भविल
३४ भवेषु
भवद्
७१ भसद्
२७
भस्त्रा
१४२ भस्मन्
१८७, २६८
भाटि
६३८
भाण्ड
१७३ भातु
२०७ भानु
२३२ भाप
६०६
६१८
३६१
भाम
भीमा
Aho! Shrutgyanam
सूत्रांक शब्द
७१६ भा
१३४
भालु
१५३ भालूक
१५३ भाल्लूक
भावित्र
भाविन्
६२
२६६
८२६ भावुक
८५७
भासन्त
ε भासन्ती
ह
भासयन्त
११ भिक्षुणी
८२ भिङ्ग
५.१
भित्तिका
६०
free
२
भिदय
८८६ भिदि
२७४ भिदिर
२२१ भिदु
६६५ । भिदेलिम
भिट्ट
६५ भिलिङ्ग
भिल्म
भिल्ल
भिषज्
भिषज
भिष्णज
२२१
६०६
२२
४८ १
७७२
८६४
८९४ भीम
४५१
भीष्म
भुग्र
भुजप
भुजि
भुजिष्य
६१८
१६८
७७३
७८६ भुज्यु
२९६ भुरण
३३८ भुरण्यु
३३८ भुरिक
सूत्रांक
४४७
७२७
५८
६०
४६०
६२२
५७
२२१
२२१
२२१
१६८
१०२
७६
३०
२३४
६०६
४१६
७२६
३५४
३८८
१०३
३४०
૪૬૪
८७४
१३१
१३१
३४४
३४४
S
३०५
६०१
३८४
८०२
१६०
vr
४५
Page #114
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
सूत्रांक | शब्द
सूत्रांक
হা
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
भुरिज्
७१६
भुर्भर
४०३ |
भुलिक भुलिङ्ग भुवन भुवनु
८७५ मकन्द
मकर मकुट
मकुर २७४ | मक्कोल
मक्षिका
मख ९७१ मगध
मघवन्
२४५ | मण्डन
मण्डयन्त १५४
मण्डयित्नु मण्डल मण्डाल
७७३ ८५७
मण्डि
२६६ | मनु २२१/ मनुम् ७६७
| मनूक
। मन्तु ४७५ मन्तृ ६०७ मन्त्र ७६५ मन्त्रि
५८ | मन्थर ४२७ मन्थान
मन्द मन्दन मन्दर
भुवन्यु
..
६०७
३६७
भुवस् भुविस् भूक
१०२ ११०
२७६ २३७
२२
मघा
भूत
२०१
| मङ्कण | मङ्कि
or m4 orum
२६६
भूधर
२०
३६७
| मधु
भूमि भूरि
२७६
४२३
३४
भूर्ज
मङ्ख मङ्खा | मङ्गल
११४
भूणि
४६५
२६६
मन्दसान मन्दाका मन्दार मन्दिर मन्दीर मन्दुर
४०५ ४१२
भृगु
२२१
मण्डु मण्डूक मण्डूर
मतङ्ग १८७।
मत्सर
मत्स्य ८२६ | मथिन्
मथुरा मदच मदन
मदयन्त ४८५ मदयन्ती
मदयित्नु मदार मदिरा मद्गु मद्गुर मद्गुश मद्र मद्वन् मद्वरी मधु मधुक
४२२ ४२३ ३८७
२२१ ७६७
४११
१२४
४०५
मन्मथ
भृङ्ग भृङ्गार भृज्जन भृमल भृमि भृश भेक भेदक
१२४
४१२
६११
३५७
20
܀ ܘܟ
२१
१२२
मन्मन मनया मन्यु ममाप्ताल मय मयस्
४८०
६३७ ७३१ मङ्गाल
| मङ्गुल
मङ्गुष २७४ मच्छ ४७४
मच्छा मज्जन मज्जन मञ्च मञ्जरी मञ्जीर मञ्जुल मञ्जूला
मञ्जूषा २७४ मटह ३६७ मठर ६११ ।
मड् हुक ८५६
मणच ४४७ मणि
मणिन्द १८६ । मण्ड
३०
भेर
भेल
३८७ ३८७ १३१
६.४
भेषज
७२१
मयु
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IS 95
५१६
५१
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म
| मधुर
४२६
X
भैरव भ्रज्जन भ्रमर भ्रमि भ्रातृ भ्राष्ट्र
20
मयुक मयूख मयूता मयूर मरक
मधूक मध्य
२१५ ४२७
३६४
६५२
२७
३४
मरठ
११४ मनस् ६०७ मनाका ૨૪૬ मनि १६८ । मनीक
Aho! Shrutgyanam
१६७ ६३८
६१२ | मरणि ४६ - मरत
भ्रूण
२०७
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--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
मरमर
मराल
मरिच
मरीचि
मरु
महत्
मरूक
मर्क
मर्कट
मजूं
मर्त
मत्यं
मईल
मर्मन्
मर्मर
मर्मरा
मर्मरीक
मल
मलधु
मलमल
मलय
मलव
मलार
मलीफ
मलूक
मल्लक
मल्लिका
मल्लूक
मवाक
मशक
मषमष
मष्मष
मसमस
मलि
मसुर
मसुरा
सूत्रांक शब्द
१४
मसुरि
४७५ मसूर
११७
मस्त
मस्तक
६२७
७१६ मस्तु
८८६ मस्मस
५८ महत्
२१ महतु
१४२ महन्
८३३ महयाय्य
२०२
महसू
३६० महातपस्
४६५ महारजन
९११ महिन
१. महिम
१. महिला
४७ महिष
४७२ महिषी
८२७ महेला
* मा
मा
२६५
५१७ मातरिश्वन्
४०५ माणव
४६ मात
५८ मातङ्ग
२७ मातुखिङ्ग
२७ मातुलुङ्ग
१८ मातृ
३७ मात्रा
२७
मात्व
१५ माया
१५ मायु
१५ मारि
६०७ मारिय
४२३ मारीच
४२३
मार्क
२३
सूत्रांक शब्द
६६६ मागं
४२७ मार्जार
२०० मार्जालीय
७७
मार्जूल
७७३
मालव
१५. माला
८८४
मालु
७७९ मालुधानी
६०२
मालूर
भाष
३७३
६५२
मास
६५२ मासर
२७३ माहिन
२८५ माहूर
३४६ मांस
४८१
मितद्रु
५४७
मित्र
५४७ मित्रयु
४६२ मिथस्
६०५ मिथिला
२४५ मिथुन
१०२ मिथुस्
५१६ मिथ्या
२०० मिहिर
१०० मीन
१०६ मीर
१०६ मीरा
८५
मीवर
४५१ मीवा
५२५ मुकय
३५७ मुकुट
७२६ मुकुन्द
६०६ मुकुय
५४६
मुकुर
११८ मुकल
२१ मुख
Aho! Shrutgyanam
सूत्रांक शब्द
१६
मुखर
४०५ मुचिर
૨૩- मुचुकुन्द
*E? मुणुमुण
५१७ मुण्ड
४६२ मुतव
७२७
मुदि
७२७ मुदिर
४२८
मुदेर
५४०
मुद्ग
५६४
मुदर
४३६
मुद्गरी
२८५
मुद्गल
४२८
मुद्रा
५६४
मुधा
७४५ मुनि
**
मुमुचान
ફ્ मुरज
k
मुरल
४८३
मुरव
२१०
मुरुट
१०००
मुरुमुर
६०१ मुरुम्ब
४१६ मुर्मुर
२६१ मुषुद्धि
३६२
मुष्क
३१२ मुष्टि
४४३ मुष्म
५१४ मुसल
३७१ मुस्ता
१५४
मुहिर
२५० महरि
३७१
मुहुस्
४२४ मुहूर्त
४८७ मूक
८६
मूत
सूत्रांक
४०३
४१६
२५०
१७
१७०
५१६
६०६
४१६
४३१
९३
४०४
४०४
४७४
३८८
६०२
६१२
२७८
१३२
૪૭૪
५१८
१५५
१७
३२६
१०
६३३
२२
६५१
३४०
४६८
२०१
४१६
७००
१०००
२०४
२२
२०१
Page #116
--------------------------------------------------------------------------
________________
% 3D
सूत्रांक
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
मूत्र
७७३
मूर्ख मूर्धन्
याचेलिम याजन्य
३७६
२६६ २०६
यातु
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मूलेर
२७३ ६८१
४४६ | म्लातु ८६ म्लिच्छ
म्लिछ् म्लेच्छ म्लेछ यकृत
यक्ष ७६७
यक्ष्म ७४१
यक्ष्मन् यजत यजत्र यजुना
२५६ ४५१ ६६८ ३३८ ६११
६७१
रचना रजत रजन रजनि रजस् रज्जु रासान रण्ड रण्डा
४३
७१७
२७६
५७१
यात यात्रा यादस् याम यामन् यावस युगल युग्म युजान युधान युध्म युयुधान
१६८
२०७
४७४
१६८
४७६
३४५
८४०
२७७
रत्न
२६४
० 15 ~
० ०
mr m
२७७
यजुस् यजेणु यज्यु
३४० २७८
२२७ ५६९ ३६६
मूषिक मृकण्डक मृगयु मृडीक मृणाल मृत मृत्यु मृदङ्ग मृदर मृदीका मृदु मृद्वीका मृशान मृषा मृषाण मेकल मेखला मेचक मेथि
1
यति
युवति
६५८
M
७२
युवन
६०१
५७२
४
दाद
6
युवान युषाण
२७७ १६१
२७७
रथ रन्धस रन्ध्र रपठ रभस रमठ रमण्य रमति रमथ रमभ रम्पा रम्भा रम्र
४५१
८६६
युष्मद् यूका
१६१
२४
४६७
५
३७६ ६५३ २३२ ३२६ २६६ ३२७ ३८७ ४६४
२३१ २६७ ५४१ ५४१
२४६
यूष
यूषा
मेदस्
योगस्
मेनका मेनि
यन्त्र ५९६
यमड
यमल ४६७
यमुना
यमुन्द ६०८ ययाति
ययी ययु
यवन ८०६
यवस
यवागू ४३६ यवाष
यवास १२२
यशस् ४३४ | यष्टि ७०३ | यस्क ७०१ । यह्वा
६१२
७१४ ७३३. योनि २६६ | योमि ५७१। ८५०
मेरु
योषा
५४०
८८७
१७०
मेष मेसर मोक्ष मोचा
योषित् योस् रक्षस् रगह
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. or our wr
.
is
रवण रवथ रवि
रशना १००५ रश्मि
| रसना
रसायु ७४०
५६४
५७४
६५२ ५८६
१५८
मोर
६४६ । रघु
मौकुलि मौलि
२६. २६० १५२
७४६ । रहस्
५१४ | रङ्कु
Aho! Shrutgyanam
Page #117
--------------------------------------------------------------------------
________________
२५
-
-
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक | शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
रहस्
३६४
९५२ ६०५
रा
रुवथ
८०७ २३५ ८४४
५६७
रु)
१८७ ६११ ७१५ ५८६ १७७
लह्म लाक्षा लाङ्गल लागूल लाणक लात
४६६ ४६१
रुहसान
लक्षण लक्ष्मन् लक्ष्मी लगह लगुड लघक लघट लघट
२८०
३७६
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राक राका राजन् राजन्य राजानक राजि रात्रि रात्रिगेष्ण राशि
२०६
७१
रेक्णस्
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५०५
७६८
४७६
८७७ १४४ ७४० ६३
६६६
६७८
६१८ | रेण
| रेतस
रेतोधस् २७०, ६२२
४४६
५६७
लावास लिक्षा लिखक लिखि
२९
६७४
रेपस्
लडा लङ्घक लज्जालु
१८१
६०६ ७४०
लिगु
रासभ रास्ना
रेवन्त
१०२
रेहत्
राहु
३५२ ६०६ २०४
२२७
रिक्थ रिक्षा
रोचन रोचना
लटह लट्वा लता लतू लत्तिका लभस
५८६ ।
लिन्दुम ५०५ | लिपि
लिप्त ७८०
लिष्व लुलाय लुवन्
५०६
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७६
रोचिस्
रिपु
३७२ ६०१
७६८
२७२
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३३१
१५२
लम्बन
लुसभ लूता
२०२
देखो
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लम्बूष
रोधस्
लूनि
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0
0x1.
३६७
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लोत
१८७
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३४६
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लोत्र
५०२
२२० २२०
लोत्र
६०८
लोमन्
११६
रिष्व रीत रुक्म रुक्मल रुचक रुचि रुचिर रुचिष्य रुदथ रुद्र रुधिर रुमा
लय ललह ललाट ललामन् लवङ्ग लवण
लवाणक ८८७
लवानक
लवि ७६ लवित्र
लशुन ५४८ ११६ लसुष ४८७ | लहोड
Aho! Shrutgyanam
४६४
लोल लोष्ट
रोहन्त रोहन्ती
रोहि ६०६ ४१६
रोहित ३८४ रोहित
रोहीतक रोहिष
रौहिषी ३४० लकुच ३६३ ' लकुल
१३८
२३४
लोष्टु
४५६
७१६
५८६
२१.
२८६ | लोह
लोहित ५५६ वकुल १७२ वकोट
४८६
रुम्र
Page #118
--------------------------------------------------------------------------
________________
२६
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
वक्त्र
वक्नु
६२४
o
वक्र
४५१ | वदन्ति
वदन्ती वदवद वदान्य वधक वधत्र
२८१
mro
६६५ | वयुन २२१ | वयोधस्
वर ३८१ वरक
क्रट
वक्षस्
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0
वग्रु वक्रि वक्षण
0
४५६
१८७ १७३
वर्मन् ९७४ | वर्धकि
वर्धसान
वर्ध १४२ वर्पस्
वर्मन्
वमि ४५६ वर्वर
वर्वरी १४५ ववरीक
वर्वरीका
३८७ ९८१ ६११
६८७ ६,४४१ ६,४४१
३
वचक्नु
वधन वधि
6
वचत्र
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वधित
१४
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वचस्
वधू वधूटी
वरण वरण्ड वरत्रा वरवर वराट वराल वराह वरि | वरिम
वरुट २३२ वरुड
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8
४७५
३८७
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वचुष्य वच वज्रधर वञ्चथ वञ्चूल वजुल
1
वध्य
वर्ष
६०६
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२३२
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५४० ५४० ६११
४८८
६०७
वनिष्ठ
४८७
वट
३४
वरुण
.१३६ ३२१ ३६७
वन्दथ वन्दाक वन्दि वन्द्र वपत्र
वटम्ब वटर वटवक वटवा वटि
वर्षा वर्मन्
वर्स १६६ वलक्ष ४६१ ।
वलत वलप बलभी बलय
वरुत्र वरूक
२०४
२३६
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वपूष
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५६०
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७१६
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२९६ ३८७
३६७ ३२६
वरूथ ५५७ ६६७ | वरेण्य
वर्कर
वर्ग ६९२
वर्चस् वर्ण वर्णसि
वठर बडभी वडवा बडिश
वा
वधि
४६६ ७५८
५३५
वमक
वणिज
८७५
वमड
४८७ ३३८
वण्ठ वण्ड
૨૬૨
वर्ण
४५६
वमत्र १६८ । वमर १७५ | वमुक
६८७
३९७
४३५ | वलीक
६२॥ वल्क ६५२ वल्कल १८२ | वल्गु
वल्गुला ७६८
वल्म
वल्मि ६८० वल्मीक ३४ वल्ल की
वल्लभ
वल्लरि ४८५ | वल्लव ७५ | वल्लि
वतण्ड
वत्स
२७
५६४ । ४३६
वम्र बम्रि
वर्तका वर्तनि वर्ताका वति वर्तिका वर्तुल वत्तिका
३८७ ३८७
वत्सर बद
१०
३२६
वय
६६८
वदनु
९५२
बदन्त
७६३ | वयस् २२१ | वयिम
५१५ ६०७
Aho! Shrutgyanam
Page #119
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
वल्लूर
२००
वश वशि
३०७
७१३
६१६
६५७
विवु
वधि वसति बसन्त वसाति
वासस् वासा वासि वासिका वासुरा वास्तु वाहस वापि वाहीक
४२३
४२७ वात ५२८ । वातप
वातप्रमी ६९२ | वाति ६५३ | वादि २२१ | वादित्र
वानर ६१६ वानीर
वापि वापीर वाम वामन् वामि वायति वायस
६७० विद्रुम ५६४ | विधर्मन्
विधस् ४०
विधुर
विन्दु ५७१ । विन्ध्य
विपाश विपिन
३५२ ६११ ९७२ ७२६ ४२५ ७१६ ३६४ ६५० २८४
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वसु
७१६ ६८९
६१८ ।
वसुरोचिस् वसुशर्मन्
४२१
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३३८
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८८२ ४७४
६११
२०० ६४६ ७७४
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१४८
२
वस्ति वस्तु वस्त्य वस्त्र वस्न वहति
६१७ २६९ १०१
.
वायु
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१४३
०
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०
३२३ ६६०
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.
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२२१
ता
वहन वहन्त वहन्ती बहल वहस
वारिणि वार्ताक
Yur
२२१
वार्ताकी
५२
विरल विराट विरिञ्चि विरोचन
बिलङ्ग १००१
विलटा विलम्ब
विलस्ति ४७६
विलात विलाल विलाह विलिम्ब विल्म विवत्सर विश्
विशम्प २७५ ४७४ विशस्तृ
विशंस्थुल ६१०
विशा ७६२
विशाख ४८६ ।
विशाखा
विशाल ६७६ | विशिख ७४५ . विशिखा
५७१
६५७
विक्क विकिल विचक्षण विचख्युस् विटप विडङ्ग विडाल विडूर वितण्डा वितस्ता वितस्त विथुर विद विदथ विदन विदल विदाका विदि | विदु
विदुल ३८७ | विदुष ३९७ | विद्रधि ५१६ । विद्रु
५६२ ३२४ ३४० ४३६ ६५०
वहि वहिन
૨૩૪
वहिर वहेणु
वालुक वालुकी वाल्हीक वावदूक वाशर वाशि वाशुर
२६६
२
वह्नि
६७७
८५७
वंश
५२७
३५
४८७
६०५
४२३
| वाशुरा
४२३
३८७
वागुरा वाजि वाणि बाणी वाणीचि
६१८ वाध ६१८, ६३४ | वाश्रा
६१८ | वासर ६२६ | वासव
01 S 9 UV
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Aho! Shrutgyanam
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________________
शब्द
विशिष
विशेलिम
विश्रि
विश्व
विश्वप्सन्
विश्वभानु विश्वभोजस्
विश्वयु
विश्ववेदस्
विष
विषाण
विष्टप
विष्टि
विष्टा
विष्णु
विस
विसा
विस्त
विस
विहड
विहण
विहा
विहायस्
बिहेलिया
बीक
वीका
वीचि
वीणा
बीतंस
वीथि
बीध
वृक
वृक्त
वृक्ष
वृङ्ग
वृजन
सूत्रांक शब्द
३०९ वृजिन
३५४ वृति
६६३ वृत्र
५११
६०२ वृथा
७८६
६५६
७४१
५६
५
१६१
३०७
६५१
१६३
७६६
५७६
२२
२६
वृषवध
वृषसान
वृवक
वृन्ताक
वृन्ताकी
५६७
वृन्द
६००
२०१
३८८
१७२
१८६
६००
૬
३५४
२२
२२
६२५
१६३
५६५ वेताल
६६६ वेत्र
३८८ वेदि
वृश
वृशय
वृश्चिक
वृषण
तृषन्
वृषभ
वृषय
वृषल
वृषा
वृषाण
वृष्णि
वेग
वैणि
वेणु
वेण्णा
वेतन
वेतस
वेधस्
बेन
वेनि
६४ वेपुस्
२७३ | वेमन्
२८
सूत्रांक शब्द
२८३ | वेविज्
६१० वेविष्
२०८
वेशन्त
३३ वेश्मन्
वेष्टिम
वेष्प
वेसर
६०१
२८१
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३७
२४०
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वैतरणी
वैतालीय
वैष्ट्र
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व्याड
व्याम
व्यामन्
ब्येमन्
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व्रत
व्रतति
व्रध
ब्राजि
व्रात
व्रीलस
व्रीहि
शकट
शकटि
शकन्धू
४८०
शकल
४५१
शकाल
६१० शकुल
૨૩૨ शकुनि
२५८
शकुन्त
६७७ शकुन्ति
६६७
शकुल
१६ | शकृत्
Aho! Shrutgyanam
सूत्रांक
३२
शकोट
६३२ शकोल
२१६ | शक्ति
६११ शक्य
३४६
शक्र
२६६ शक्रि
४३६
शक्र
८८२
शक्कन्
६३८ शक्करी
३७८
४४७
शब्द
४६
शकु
शकुला
४६ शङ्ख
शची
शठ
१७१
३३८
६१४
११४
११४ शण्ढ
२०८
शतद्रु
६५५ शतेर
२६८
शत्त्रि
६१८
२०६
५७२
शत्रु
७१० शनि
१४२ शनैस्
६३० शपथ
८४८ शप्व
넣어
शण्ड
शण्डिल
शत्रु
शद्रि
४६५
शफ
४७५ शफर
२८८
शबर
६८४
शब्द
२२३ शब्दाल
६६६ शम्
४८५ शमथ
८६१ शमल
सूत्रांक
१६०
४६३
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३५७
३८७
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६०४
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७४५
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६६६
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६६२
८०६
६७८
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२३२
५०५
३१६
४०१
३६७
२३७
४५०
६३७
२३२
४७०
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--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
शमाह
क्षमेण
शम्पा
शम्ब
शम्बर
शम्बल
शम्बशाम्ब
शम्बूक
शय
शयण्ड
शयत
शयथ
शयाण्ड
शयानक
शत्रु
शत्रुन
शेर
शरङ्ग
शरठ
शरण
शरण्ड
शरण्य
शरत्
शरद्
शरभ
शराट
शराव
शरि
शरीर
शरु
शर्करा
शर्कर
शर्म
शर्मन
शर्मि
शर्व
सूत्रांक शब्द
५६१ | शर्वर
७७२ श
२१६ श
३१८ का
૪૪૪
४६६
३१८
६१
शलकु
वालवू
शलभ
शलल
शलशल
शलाटु
२
१७६
२०७
२३२
१७६
७१
७१६
२८६
२
६८
१६७
१८७
१७३
१७६
८८३
८९४
३२
१४५ शार
शाण
५२०
६१६ शाद
४१०] शाम्बूक
७१६ शारि
४३५ शाङ्ग
४२६ शार्दूल
३३८ शाला
शालि
शलालु
पालाहक
शल्क
शल्य
शवल
शवस्
राष्कुली
शब्प
शस्त्र
यांकर
शंस्तृ
शाकर
शाखा
पासोट
६११
६८७ शालु
५०५ शालू
२६
सूत्रांक शब्द
४४१ शालूक
४४१
शालूर
૪૭ शाल्मल
शाहमलि
शाल्वल
शाव
शास्तु
शास्त्र
शिक्य
४७
७५५
८८३
३२९
४६५
१४
शिखर
शिखा
८२२ शिग्रु ८१ शिक्ष
२१
३५७
४७०
मिाणक
शिङ्खानक
शिति
९५५
शिथिर
४८७ शिथिल
२९९
शिनि
४५४
शिफा
४०३ शिम्ब
८५७ शिम्बी
१०४ शिरस
८५
शिरि
१६० शिरीष
४०३ शिशिर
१८२ लिम्ब
२३७ शिलिन्ध्र
६१ शिलिशिल
सिलिसिल
६१६
२६ शिलोक
४६१
शिल्प
४६२ शिव
६१८ शिवा
७२७ शिवि
८३५ शिविर
padm
Aho! Shrutgyanam
सूत्रांक शब्द
५६ शिशिर
४२८ शिशु
५०२
७०३
५००
५०५
८५७
४४६
३६४
४००
शिशुमार
शिश्न
८११
१०२
शिश्विदान
शिशपा
शोकर
शीघ्र
शीत
शीतल
८५ शीतारु
शीतालु
शीघ्र
७०
७१
६५१
४१४ शीम्
४१४ शीर
४७८
शीणि
२१६ | पीवि
३२५ शीर्ष
३२५
शील
शीवन्
शीन
श्रीभर
६०१ शु
५५४ शुक
१० शुक्त
३.२३
शुक्ति
३६६ शुक्र
१७
शुक्षि
४८
शुङ्ग
३०० शुङ्गा
५०६ शुचि
५०६ पुष्ठि
७०६
गुण्डा ४१३ | गुनासीर
सूत्रांक
४१३
७४७
४११
२६७
२७८
३०६
३६७
३९६
२०१
५०१
८१६
८१६
७८४
२६१
३६७
३८८
६८५
७०५
५६७
४६३
७४३
२२
२०४
६५१
३८८
४६३, ३८६
७०७
१०७
१०७
६०६
६०८
१७०
७४३
Page #122
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
शुन्ध्यु
शुभाका
शुभ्र
शुभि
शुल्क
शुल्व
शुषि
शुषिर
शुष्क
शुष्ण
शुष्म
शुष्मन्
शूक
शूकल
शूका
शुष
शुद्ध
शूर
चू
शृङ्खल
बुद्धा
शृङ्ग
शङ्गबेर
शृङ्गाट
शृङ्गार
शूदर
शঘু
शेकु
शेखर
शेत्य
शेप
शेपस्
शेपाल
शेफ
शेफस् शेलिशिल
सूत्रांक
८०१
शब्द
शेलु
३५ शेव
३८५ शेवल
६६३ शेवा
२६
३१९
६०६
४१६ शैलूष
२२ शेवल
१८३ शैवाल
३४०
ε१६
२४
४७४
२४
२२७
३१४
३६२
२६८
XTE
४६८
शेवाल
शेष
६६
४३२
Pe
४११
*ક્
૮૪૪
संलिशिल
शोचिस्
शोणित
शोफ
शोभुशुभ
शौण्डीर
शोभुशुभ
श्मश्रु
श्मेत्र
श्याम
श्यामा
श्यामाक
श्याल
श्याव
श्येत
श्येन
श्रन्थि
७४६ श्रय
४००
३६०
२६६
१८२
५०१
३१४ श्रेढ
६८२
श्रेणि
१९
श्रोणि
श्रवट
श्रवण
श्रवाय्य
श्रिवस
श्रुतयशस्
३०
सूत्रांक शब्द
श्रोत्र
श्लक्ष्ण
दिलकु
श्लेष्मन्
श्लेमातक
८२०
५०६
५०१
५०६
५०१
५४३
?E
५६१
५०१
५०१
२१०
३१६
१९
४१८
१९
८१०
४५२
३४०
३४०
दवन्
श्व फल्क
३७
४६२
노노
श्वभ्र
श्वयस्
श्वयीच
श्वसुर
श्वित्र
श्वेत्र
षण्ड
षण्ढ
षष्
सक्तु
सकिय
सखि
सगर
सचिव
सटा
सत्त्र
सत्य
२१० सदनि
२८२
सदस्
६०७
सपन
३६७ सद्रि
१४२ सधिस्
१८७
सना
३७३ सनि
५७२
१५८
सनुतर्
ससन्
६३१
सप्ति
६३४
सभा
६३४ सम्
Aho! Shrutgyanam
सूत्रांक
शब्द
४५१ समञ्जि
१८६
सभया
७३६
सभर
११ सभिथ
८३
सभीक
१०२
समीच
२६
३६६
६५५
६२७ सय
४२६
३८८
४५२
१६८
१७६
६५१
७७३
६६६
६२५
४०३
५२२
१३६
४५१
३६४
६८०
६५२
१११
६६२
६६२
६०४
'
समीची
समीरण
समुद्र
सरक
सरका
सरधा
सरट
सरड्
सरड
सरणि
सरण्ड
सरभ्यु
सरभा
सरयु
सरयू
सरल
सरस्
सरसर
सरासर
सरि
सरित्
सरिर
सरीमन्
सरीसृप
९४७
९०३ सङ्घ
६४६ स ३३०, ६०५ सर्प
९३७ सर्पिस्
सूत्रांक
६०७
५६८
३९७
२२१
५०
११२
११२
१८७
३८८
३६७
२७
२७
१११
१४२
८७८
१७१
६३८
१७३
८०३
३४७
८०३
८०३
४६५
६५२
१४
१६
६०६
८८७
४१२
६१८
१८
८२६
४२७
२९६
६८६
Page #123
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
सणं
समं
सर्व
सर्षप
सलसल
सलिल
सलकी
सल्व
सव्रन
सवीमन्
सव्य
सव्यष्ठु
सात्
सस्य
सहस्
सहसान
सहस्र
सहान्य
सहिर
सहरि
सहोर
सहा
सह
संकसुक
संगीच
संचक्षम्
संचचक्षुम्
संचाकृ
संध्या
संपाति
संगहर
संवत्सर
संवसथ
संवत्
सस्तवान
संस्पर्शान
सूत्रांक शब्द
१८२
सा
३३८ साक्षात्
५०५
सात्मन
३१३
सावि
१४
साधन्त
४१२ साधयन्त
२७
साधयन्ती
५१० साधु
२७४ सानसि
६१८ सानु
३५७ सान्द्र
८५५ सामन्
६६२
सामि
३५७ साय
१५२ सायन्
२७६ सारङ्ग
३८७ सारबि
쿠
सारस
४१२ सा
६६६ सार्थ
४३३ साल्व
३५७
सास्ना
३८७ साहि
५.२ सिकता
२३१ सिक्य
६६६ सित
१००१ सिध्म
७५४ सिद्ध
३५६ सिन
६१८ सिन्दूर
४४४ सिन्धु
४३६ सिम
२३३ सिमीक
८८२ सिरा
२७६ सिलिसिल २७६ शिलशिल
सूत्रांक
६०५
८८२
३१
शब्द
सिव
सिवन
१६ विम
६१८ सिवाकु
२१ सिंह
२२१ सिंहल
२२१ सीता
१ सीम्
७०६ सीम
१ सीमन्
३९६ सीमन्त
१५ सोमिक
६८७ सौमिका
३५७ सीर
६३६ सीरा
६६ सीस
६७०
५७०
४४७
ཨཱ ལ
सुक
सुख
२३०
सुगेष्णा
५१०
सुत
२५६ सुतपम्
६१६
सुदेष्णा
२०८ सुनफा
२२७ सुनीथ
२०३ सुन्द
३४० सुन्दर
३८८ सुप्रतीक
२६२ सुमन
'४३०
सुम्न
७१७
सुपास
३४३ सुर
૪૪ सुरण
३८८ सुरत
१७ सुरा
सुरिक
Aho! Shrutgyanam
सूत्रांक
५.
सुरुङ्गा
२७३ सुरुसुर
५७२ सुवन
७५३
५८८
४७४
२०३
Exi
३४३
६१५
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४४
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TER
३६२
५७७
७४३
२२
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२०३
६५२
१६६
३१६
२२७
२४०
३६७
शब्द
५०
९७६
सुवर्चला
सुवर्चस्
सुवराय
सुविदत्र
सुष्ठु
सुस्नयु
सुखोस्
सुह्म
ཤྲཱ ཝཱ ཝཱ ཝཱ, ཝཱ ཝཱ ཝཱ ཤྲཱ ཤྲཱ ཀཱ ཀཱ ཝཱ | ཝཱ ཝཱ ཝཱ རཱ, ཤྲཱ སྠཽ ཝཱ ཝཱ
सूकर
सूक्ष्म
सूच
सूत्र
सूना
सूनु
सूम
यूर
सूरत
सूरय
सूमि
सुम सूर्मी
२६६ सूप
६५८
५, ३८८
२७३
सृक्कन्
२०१ सृगाल
३८५
सृजि
४५ सृणि
सुका
सूत्रांक
१०८
१७
२७४
४७४
૨
२३३
४५७
७३२
७४१
९७८
३४०
४३६
३४६
१२१
१२१
२०३
४४६
२६३
७८८
२६७
३४०
३८८
२०४
२३१
६६३
२६८
६८६
३४६
५४२
२२
२२
६०७
४७८
६०६
६३५
Page #124
--------------------------------------------------------------------------
________________
३२
शब्द
D सूत्रांक
सूत्रांक | शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
शब्द
५०
४१७
७०६
हनुष हनूष हन्तु हम्मा
. 00 6
५५७ ५६० ७७३ ३२७
.
.
हयि
सृणीक सृणीका सृत्वन् सृत्वरी सुदाकु सृपाट सृपाटी सृप्मन् सृप्र सृप्रा सेचिम
१४६
:
४८४ स्फिर १५५ | स्फिवि ४७३ | स्फुलिङ्ग ६०७ स्फुलिङ्गा ५१८ स्यन्दन
स्यमीक ४१७ स्यमीका १०६ स्यूम
स्योन १११
स्योनाक स्रज्वन्
५५७
६३८
owwwm m mm
स्थण्डिल
स्थपुट ९०६ स्थल
स्थलि ७५६ | स्थव
स्थवि स्थविर स्थाध स्थाणु
स्थामन् ३४६
स्थाय
स्थाया २६२
स्थाल ३३२
स्थिर ६७७
स्थिवि ३८८
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हयुषा हरणि हराणक हराहर
७६८
i
२७
हरि
९०७
३५७
७७३
सेतु सेना
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८७०
१६४ ८८७
हरिण हरित हरित हरिद्रु
४७३
स्राट सिणि
२१०
सैरिभ सोनि
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०
६१७
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4
०
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६११
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हरिशर्मन् हरीतकी हरीमन् हरेणु
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० मी जी की
C d U
६१७ ७७२ ८५७
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m
स्वप्न
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15
हभ्यं
२७
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स्वयम् स्वर स्वरु
हर्षयित्नु हर्षुल
७६७ ४८५
स्वर्ग
सोमन् सौक्दिल्ल स्कन्ध स्कन्धस् स्तनयित्नु स्तबक स्तम्ब स्तरी स्तरीमन स्तव स्तवि स्तिभि स्तीणि
वि स्तुविस् स्तूप स्तेन स्तोक स्तोम
१४
४६४
स्थूर २५१
स्थूरवाकु ६६०
स्थूरा ७६७
स्थूलपृषती
स्नय ३२०
स्नात्र ७११
स्नायु
स्नावन् ६०६ ६१३
स्नेहन् ७०५
स्पर्शान स्पृक्का
स्पृहयाय्य २१ स्फटिक ३३८ स्फवि ४५० | स्फार
स्नुषा
५४२
८५३
६०७
| स्नुहि
स्वर्भानु स्वस स्वस्ति स्वाति
७८६ हलहल
हलि
हविस् ६२० हष्प
९८६
२६६ २००
स्नेहुँ
७१६
स्वादु
हस्त
स्वाहा
६०३
हस्र
२६७
७६२
५६४
२६८
२२७
हातु
७७३
६१८
हनि ३८७ | हनु
Aho! Shrutgyanam
६१८ हादि ७६१ हानि
६१८
Page #125
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
३८०
हृदिक
हान्त्र हारहूर
४५ होत्रा ६०६ | होत्व
|हिरण्य ४३० हिलिहिल २१३ हिंसीन ५६६ हिंसीर
हृषि
हारीत
२८६
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होम
हार्ग
४१८
७२६
६३६ | हीक
४५१ ५२५ ३३८ ६११ ६२७ ४३४ ९५३ ५०५
होमन् होमिन् होरा
७७३
له
हाष्णि हिङ्गु हिडिम्ब हिण्डि हित हिन्ताल
६०८
عر
३२४ ६०८ २०१
हुण्डि हुलुहुल
mr wr
ह्यस्
२२२ १६
ह्रस्व ह्रीक
१८३
हेमन् हेमन्त हेलिहिल हैलिहिल होतृ होत्र
४८०
हणि
६३७
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७५०
हिबकु
पू७
हृत्वन् हृदय
हिम
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KW ०८.
urx
३७०
Aho! Shrutgyanam
Page #126
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्राणामानुक्रमेंणादेशादिविधानम् ।
शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
सूत्रांक शब्द
सूत्रांक
| शब्द ईच
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११८
१५३
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७५-७६ ७७-७८ ७९-८०
| उच
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१२०-१२१
१५४-१५५
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१५६
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२-२० २१-२६ २७-३३ ३४-३७ ३८-४५ ४६-५० ५१-५७ ५८-६१
८२-८३ ८४-१०
अञ्च इञ्च
१५७ १५८-१५६ १६०-१६१ १६२-१६६
१२३ १२४-१२६ १२७-१२६ १३०-१३४
१३५
उक
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६२-६६
6
अङ्क
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६२-६३
आग
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१३६
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एलक आतृक आणक
60
१८-१०१ १०२-१०५ १०६-१०८ १०६-११०
१११ ११२-११३ ११४-११५
अघ
६८-७०
१६८-१७० १७१-१७२ १७३-१७६
१७७
१७८ १७६-१८१ १८२-१८६ १८७-१६० १६१-१९३
७१-७२
अच
इण्ट
आनक ईनक ईधुक एधुक
आच
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अरीट
११७ २६२-२६३
२६४
कल ।
४६७
उण
आलीय अन्य आन्य एण्य
एष्ण
४६८
२९५
४६६-५००
१३७ १३८-१४१ अण्ड १४२-१४४ १४५-१४८ उण्ड
१४६ १५. १५१
१५२ आण ३७७-३७८ ३७६-३८०
खल । ३८१
खल ३८२
बल ३८३
तल
पाल ३८५ वाल
वल ३८७-३६६ मल ३६७-४०४। सल ४०५-४११ ४१२-४१७ अव ४१८-४२२ ४२३-४२६ ४२७-४३० | श्व
वल।
स्य
अत आत
२६६-३०३ ३०४-३०७
३०८ ३०६ ३१०
इष्य
३८४
१६४-१६५ तन १६६-१६८ स्न
शसान २००-२०६ २०७-२०८ अप
२०६ आप २१०-२१२
२१३
२१४ २१५-२१६ २१७-२१८ | षप २१९-२२२ २२३-२२४ २२५-२३१ | अम्ब २३२-२३५ | इम्ब
इत
५०१
उष्य अध्य
३८६
श
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३१२ ३१३
५०२-५०३
५०४ ५०५-५१४ ५१५-५१६
५२० ५२१-५२२
अन्त उन्त
भA
आव
३१७-३२० ३२१-३२३ | उर ३२४-३२५ | ऊर
इव
अथ
Aho! Shrutgyanam
Page #127
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
ऊथ
द
ईद
उद
अन्द
इन्द
उन्द
उकुन्द
वध
བླླ ཝཱ ཝཱ ཝལཱ ཝཱ ཝཿ ཤྲཱ ཡཱ ཀཱ ཀྶ ཤྲཱ སྠཽ སྠཽ མ ཤྭཱ སྠ སྠཽ སྠཽ བ
उध
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न
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उन
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ईस
उस
टिस
इस
तस
नस
पास
अम्बुस
་ གླ ཙྪཱ སྐྲ ལ
अह
आह
त्यूह
ओकह
सूत्रांक शब्द
२३६ उम्ब
भ
अभ
इभ
उभ
२३७-२४०
२४१
२४२-२४४
२४५
अम्भ
२४६-२४८ उम्भ
२४६
२५०
२५१
म
अम
इम
उम
ऊम
२५६ एलिम
२५७ मि
२५२-२५३
२५४-२५५
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य
२६६-२७५
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२७६-२७६ २७६-२८१ उय २८२-२८५ आय
२८६-२६७ आय्य २८८-२६१
५७४- ५७५
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५८०-५८१ नि ५८२ अनि
५८३ अस्लि
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५८६-५६०
५१-५२ दुभि ५६३ मि
अयि
५९४ ५६५ रि
सूत्रांक
३२७-३२८
३२६-३११
३३२
३३३-३३५
३२६ एर
ओर
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तर
सर
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अङ्गर }
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उत्र
३३७
३३८-३४६
३४७-३४६
३४१-३५०
३५१-३५२
३५३
३५४
३५५-३४६
३५७-३६४
३६५-३७०
३५
शब्द
६७० ६७२
इल
उल
३७१
ऊल
३७२ एल ओल ३७५-३७६ कल
३७३ ३७४
ल
अल
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६६१ अगु अटु
६७३-६७४ आट
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६७६ ६७७-६७६
६८०-६६१ कण्डुक }
६८७-६६०
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६६२-६६५
य
६८२ णु
६८३ अणु
६८४ इणु
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६८६ तु
अतु
यतु
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Aho! Shrutgyanam
सूत्रांक
शब्द
४३१-४३२ उव
_४३३-४३४ त्व
४३५-४३६
इत्व
४३७-४३८
श
४४०
अश
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इश
उश
४४१-४४४
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४४६-४५५
४५६-४५८
४५-४६०
४६१
** ४९३-४१५
४१६
७६१
तश
ष
अष
४६२-४६४
आष
४६५-४७४ इष
४७५-४८० ईष
४८१-४६४
उष ४८५-४६७ ऊष ४५८-४९१
मष
माष:
७६२
७६३
७६४
७६५-७६६
७६७
७७०
७७१
७७२
पिश
स
अस
उरु
ऊरु
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शु
सु ७६८-७६६ अक्षु ऊ
७७३-७७८
७७६-७८०
Fo
७८१
७८२
}
Ş
अन्धू
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सूत्रांक
५२४
५२५
५२६
५२७-५२०
५.३१-५३२
५३३-५३४
५३५-५३७
५३८
५३९
५४०-१४३
५४४
५४५
५४६-५५२
५५३-५५६
५५७-५५६
५६०-५६१
५६२
५६३
५६४-५६८
५६६-५७३
८१७६१६
८१६
८२०-८२१
८२२-६२३
८२४
८२५
८२६
८२७-६२८
८२६-८४४
८४५
८४६
८४७
८४८
८५०
८५१
Page #128
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द
सूत्रांक
| शब्द
सूत्रांक
| शब्द
सूत्रांक
शब्द
सूत्रांक
अक्ष
त्रि
७८३
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५६६-५६७ ५९८-६०५ ६०६-६२२
६२३ ६२४ ६२५
६६६ ६६७
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७८४-७८५ ७८६-७६०
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७६१-७६२
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८०० ८०१-८०२ [छिप् [छड् ]
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उन्ति
८८० ८८१-८८५
८८६ ८८७-८८८ ८८६-८६० ८६१-८६२
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१८६
अरु
६४६-६५२ | उ ६५३-६५६ | कु ६६०-६६१ | आकु ६६२-६६४ | अङ्क ६६५ | दाकु
| स्वाकु ६६७-६६८
| अत्रिन् ८६७-८९८ | विप् []
८६६ | क्विप् [भ] ६००-६०२ | म्
९०३ | अम् १०४-६१० ६११-६१६
इति
७५६
७५७ ७५८-७६०
६३०
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८०५ उत् ८०६-८११ ऋत्
८१२ ऋथ् ८१३-८१६
६५० ।
९५१ उनस् ९५२-६७६ ऊनस्
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उस् ६७६-९८०
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१३१ ९३२
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पस्
ईम
६३४-९३७ थस् ।
९३८
६३६ ६४०-६४१
९४२ ९४३-६४४ फस् । ६४५-६४७ | सस्
तशस् ६४६ | अनस्
पस् ।
१००३
६१८ ६१६-६२६
६२७ ६२८ ६२६
मिन्
क्विप् [] अर्
भुक्षिन्
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६४८ ।
१००४ १००५ १००६
त्रिन्
क्विप् []
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३७
है अथ पञ्चमाध्यायसूचिता गणाः ।
छत्र ६॥
[१] "पार्थादिभ्यः शीङः" ५-१-१३५, पार्धादिगणः- | त्यरिव्रणा शक्तिः, जारभरा, कन्यावरः, रघूद्वहः, ___पावं, पृष्ठ, उदर, दिग्धसह, इति ४||
रसावहः, एष्वणं बाधते । बहुवचनमाकृतिगणार्थम् ,
तेन- नदी, भषी, प्लुवी, गरी, चरी, तरी, दरी, [२] "ऊर्ध्वादिभ्यः कर्तुः" ५-१-३६, ऊर्ध्वादिगणः
स्तरी, सूदी, देवी, सेवी, चोरी, गोही, एतेऽजन्ता ऊर्ध्व, उत्तान, अवमूर्ध्वः, इति ३॥
गौराही वेदितव्याः ।३५॥ [३] "भिदादयः" ५-३-१०८, भिदादिगण:
[५] "आयुधादिभ्यो धृगोऽदण्डादे:" ५-१-६४, आयुधाभिदा विदारणम्, छिदा द्वैधीकरणम्, विदा विचा
दिगण:रणा, मृजा शरीरसंस्कार:, क्षिया प्रेरणम्, दया
धनुर्धरः, भूधरः, जलधरः, विषधरः, शशधरः, अनुकम्पा, रुजा रोग:, चुरा चौर्यम्, पृच्छा प्रश्नः, विद्याधरः, श्रीधरः, जटाधरः, पयोधरः ६। बहुएतेऽर्थविशेषे; अन्यत्र-भित्तिः कौत्यम्, छित्तिश्चौ- __वचनाद यथादर्शनमन्येभ्यो भवति ।। र्यादिकरणाद् राजापराधः, इत्यादि । तथा ऋ-कृ
| [६] दण्डादिगणः- दण्ड, कुण्ड, काण्ड, कर्ण, सूत्र, ह-धू-तुभ्यः संज्ञायां वृद्धिश्च- आरा शस्त्री, ऋतिरन्या; कारा गुप्तिः, कृतिरन्या; हारो मानं, हृति
७] "नन्द्यादिभ्योऽनः" ५-१-५२, नन्द्यादयो नन्दनरन्या; धारा प्रपातः खड्गादेर्वा, धृतिरन्या; तारा
रमणेत्यादि-नामगणशब्देभ्योऽपोद्धृत्य वेदितव्याः, स ज्योति:, तीणिरन्या । तथा गुहि-कुहि-वशि-वपि
च सप्रत्ययपाठो विशिष्टविषयार्थी रूपनिग्रहणार्थश्च । तुलि-क्षपि-क्षिभ्यश्च संज्ञायाम्- गुहा पर्वतकन्दरा
नन्धादिगण:ओषधिश्च, गूढिरन्या; कुहा नाम नदी, कुहना
नन्दि-वाशि-मदि-दुषि-साधि-वधि-शोभि-रोचिभ्यो अन्या; वशा स्नेहनद्रव्यं धातुविशेषश्च, उष्टिरन्या;
ण्यन्तेभ्य: संज्ञायाम्- नन्दनः, वाशनः, मदन:, वपा मेदोविशेष:, उप्तिरन्या; एवं-तुला उन्मानम्,
दूषणः, साधन:, वर्धनः, शोभन:, रोचनः। सहिक्षया रात्रिः, क्षिया आचारभ्रंशः। तथा संज्ञायामेव
रमि-दमि-रुचि-कृति-तपि-तृदि-दहि-यु-पू-लुभ्यः संरिखि-लिखि-शुभि-सिधि-मिधि-गुधिभ्यो गुणश्च
ज्ञायामेवाण्यन्तेभ्यः- सहते सहनः, एवं- रमणः, रिखिलिखेः समानार्थः सौत्रो धातुः, रेखा राजिः,
दमनः, विरोचनः, विकर्तनः, तपनः, प्रतर्दनः, लेखा सैव, शोभा कान्तिः, सेधा सत्त्वम् , मेधा
दहनः, यवनः, पवनः, लवणः, निपातनाणत्वम् । बुद्धिः, गोधा प्राणिविशेषो दोस्त्राणं च ।२७।
सम: क्रन्दि-कृषि-हृषिभ्यः संज्ञायामेव- संक्रन्दनः. भिदादिराकृतिगणस्तेन चूडेत्यादि सिद्धम् ।।
संकर्षणः, संहर्षणः । कर्मणो दमि-अदि-नाशि[४] “लिहादिभ्यः" ५-१-५०, लिहादिगण:
सूदिभ्यः- सर्वदमनः, जनार्दनः, वित्तनाशनः, मधुलेहः, शेषः, सेवः, देवः, मेघः, देहः, प्ररोहः, सूदनः; असंज्ञायामपि- रिपुदमनः, कुलदमनः, परान्यग्रोधः, कोपः, गोपः, सर्पः, नर्तः, दर्शः, एषु र्दनः, रोगनाशनः, अरिसूदनः । नदि-भीषि-भूषिनाम्युपान्त्यलक्षणं कं दृशेस्तु वा शं बाधते ।
दृपि-जल्पिभ्य:- नर्दयति नर्दनः, बिभीषयते बिभीअनिमिष इति बहलाधिकारात कोऽपि भवति ।
षण:, भूषयति भूषणः, दृप्यति दर्पण:, जल्पति श्वपचः पारावत: कद्वदः, यद्वदः, अरीन् व्रणयती
जल्पनः ॥३१॥
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[5] " रम्यादिभ्यः कर्तरि " ५-३ १२६, रम्यादिगण:रम-कम-नन्द-ह्लाद-व्रश्च शाति ६ । बहुवचनं प्रयोगानुसरणार्थम् ॥
[] " भुजि - पत्यादिभ्यः कर्मापादाने ५-३-१२८, भुज्यादिगण:
""
[१०] पत्यादिगण:
कर्मणि- भुज् भोजनम्, निरद् निरदनम्, आच्छादि आच्छादनम्, अवस्त्रावि अवस्त्रावणम् अवसिच् अवसेचनम्, अस् असनम् वस् वसनम्, आभृग् आभरणम् ८||
अपादाने - प्रपत् प्रयतनः, स्कन्दि प्रस्कन्दनः, च्योति प्रयोतनः स्रु प्रस्रवणः, झुष निर्झरणः, धृ शङ्खोद्धरणः, दाग् अपादानम् ७| बहुवचनं प्रयोगानुसरणार्थम् ॥
३८
[११] " वर्षादयः क्लीवे" ५ -३ - २६, वर्षादयः शब्दा अलन्ताः क्लीबे यथादर्शनं भावाकत्रनिपात्यन्ते, नपुंसक्तान निवृत्त्यर्थं वचनम् । वर्षादिगण:वर्षम्, भयम् धनम्, ततम् खलम्, पदम्, युगम्, अत्र रथाङ्ग-कालविशेष-युग्मेषु अल् गत्वगुणाभावौ च निपातनात् । अनपुंसकक्तस्तु असरूपविधिना भवत्येव - वृष्यते स्म वृष्टं मेघेन, भीतं बटुना ॥७॥
[१२] "मूलविभुजादयः " ५-१-१४४, मूलविभुजादय: कप्रत्ययान्ता नियतार्थधातूपपदा यथाशिष्टप्रयोगं निपात्यन्ते । मूलविभुजादिगणः
मूलानि विभुजति मूलविभुजो रथः, उर्व्यां रोहति उर्वीरुहो वृक्षः, कौ मोदते कुमुदं रवम्, महीं धरति महीघ्रः, उषसि बुध्यते उषर्बुधोऽग्निः, अपो बिर्भात अभ्रं मेघः, सरसि रोहति सरसिरुहं पद्मम्, नखानि मुञ्चन्ति नखमुचानि धनूंषि, काकेभ्यो गूहनीया: काकगुहास्तिलाः, धर्माय प्रददाति धर्मप्रदः, एवं कामप्रदः, शब्दप्रदः, शास्त्रेण प्रजानाति शास्त्रप्रज्ञः | १४ ||
[१३] " स्थादिभ्यः कः " ५-३-८२, स्थादिगण:
प्रतिष्ठन्त्यस्मिन् प्रस्थः सानुः संतिष्ठन्तेऽस्यामिति
संस्था, व्यवतिष्ठन्तेऽनयेति व्यवस्था, प्रस्नात्यस्मिनिति प्रस्नः प्रपिबन्त्यस्यामिति प्रपा, विध्यत्यनेनेति विध:, विहन्यतेऽनेनास्मिन् वा विघ्नः, आयुध्यन्तेऽनेनेत्यायुधम्, आध्यायन्ति तमिति आढ्यः
१०।।
[१४] "ज्ञानेच्छार्चार्थ-नीच्छील्यादिभ्यः क्तः” ५-२-१२, शील्यादिगण:
शीलितो रक्षितः क्षान्त आक्रुष्टो जुष्ट उद्यतः । संयतः शतिस्तुष्टो रुष्टो रुषित आशितः ||१||
तोऽभिव्याहृतो हृष्टो दृप्रस्तृप्तः सृतः स्थितो भृतः । अमृतो मुदितः पूर्त: शक्तोऽक्तः श्रान्त-विस्मितौ ॥२॥ संरब्धाऽऽरब्ध- दयिता दिग्धः स्निग्धोऽवतीर्णकः । आरूढो मूढ आयस्तः क्षुधित-क्लान्त - व्रीडिताः ॥३॥ मत्तचैव तथा क्रुद्धः श्लिष्टः सुहित इत्यपि । लिप्त दृष्टौ च विज्ञेयौ सति लग्नादयस्तथा ॥४॥४६॥ बहुलाधिकारादु यथाभिधानमेभ्यो भूतेऽपि क्तो भवति, तथा च तद्योगे तृतीयासमासोऽपि सिद्धः । अन्ये तु तक्रकौण्डिन्यन्यायेन वर्त्तमाने क्तं भूते क्तस्य बाधकमाहुः ॥
[१५] “कुत्-सम्पदादिभ्यः क्विप्" ५-३ - ११४, क्रुधादिगण:
क्रुध्, युध्, क्षुघ्, तृष्, त्विष्, रुष्, रुज्, रुच् शुच्, मुद्, मृद्, गृ, त्रे दिश्, सृज् १५॥ क्रुधादिराकृतिगणः ।
[१६] संपदादिगण:
संपद्, विपद्, आपद्, व्यापद्, प्रतिपद्, संसद्, परिषद्, उपसत्, उपनिषद्, निवित्, प्रशीः, आशीः प्रतिश्रुत्, उपस्रुत्, परिश्रुत्, उपानत्, प्रावृट्, विप्रुट्, नीवृत्, उपावृत्, संयत्, इणःसमित्, उपभृत् इन्धेः समित् २४ | संपदादिराकृतिगणः ॥
[१७] "भ्यादिभ्यो वा" ५-३ - ११५, भ्यादिगण:
भी, भीतिः ह्रीः, ह्रीति: लूः लुतिः भूः भूतिः; कण्डूः, कण्डूया; कृत्, कृतिः; भित्, भित्तिः; छित् छित्तिः तुत्, तुत्तिः; दृक् दृष्टिः नशेः- नक्,
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नष्टिः; युजे:- युक्, युक्तिः, ज्वरे:- जू:, जूतिः; टुवमू, भ्रमू, क्षर, चल, जल, टल, टुल, ष्ठल, हल, त्वरे:- तूः, तूर्तिः; अवतेः-ऊः, ऊतिः; स्रिवेः- णल, बल, पुल, कुल, पल, फल, शल, हुल, कुश, स्रः, स्रतिः; भवते:- भूः, भूति:; नौते:- नुत्, नुतिः; | कस, रहं, रमि, षहि ३१ वृत् ज्वलादिः । शके:- शक्, शक्तिः १६।।
| [२२] "ग्रहादिभ्यो णिन्" ५-१-५३, ग्रहादिगणः[१८] "व्यतिहारेऽनीहादिभ्यो नः" ५-३-११६, ईहा
ग्राही, स्थायी, उपस्थायी, मन्त्री, संमर्दी, उपावादिगण:
भ्यां रुध:- उपरोधी, अवरोधी, अपराध:व्यतीहा, व्यतीक्षा, व्यतिपृच्छा, व्यवहृतिः ४।
अपराधी, उदः सहि-दहि (सि]-भासिभ्य:- उत्साही, व्यत्युक्षेत्यप्येके ॥
उहाही [सो], उद्धासी, नः श्र-शी-विश-वस-वप[१६] "ब्रह्मादिभ्यः" ५-१-८५, ब्रह्मादिगण:
रक्षिभ्यः- निश्रावी, निशायी, निवेशी, निवासी, ब्रह्म, कृत, शत्रु, वृत्र, भ्रूण, बाल, शश, गो ८। निवापी, निरक्षी, नो व्याहु-संव्याहृ-संव्यवहबहुवचनाद् यथादर्शनमन्येऽपि ब्रह्मादिषु द्रष्टव्याः ।। याचि-व्रज-वद-वसिम्य:- अव्याहारी, असंव्याहारी,
असंव्यवहारी, अयाची, अव्राजी, अवादी, अवासी, [२०] "क्ल शादिभ्योऽपात्" ५-१-८१, शादिगण:
नत्रः स्वरान्तादचित्तवत्कर्तृ कात्- अकारी धर्मस्य क्लेश, तमस्, दुःख, ज्वर, दर्प, दोष, रोग, वात
बालातपः, अहारी शीतस्य शिशिरः, व्यभिभ्यां पित्त-कफ, विषाग्निदपं । बहुवचनाद् यथादर्शन
भुवोऽतीते- विभावी, अभिभावी, विपरिभ्यां भुवो मन्येऽपि ।।
ह्रस्वश्च वा- विभावी, विभवी, परिभावी, परि[२१] "वा ज्वलादि०" ५-१.६२, ज्वलादिगणः
भवी, वेः शीङ-लिगो देशे हस्वश्च- विशयी ज्वल, कुच, पत्लु, पथे, क्वथे, मथे, षद्लु, बुध, विषयी च प्रदेशः ३४१ ग्रहादिराकृतिगणः ॥
इति पञ्चमाध्यायगता गणाः॥
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