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________________ प्रकाशकीय निवेदन स्व० प० पू० सूरिसम्राट्ना सुप्रसिद्ध पट्टालंकार व्याकरणवाचस्पतिशास्त्रविशारद - कविरत्न - साहित्यसम्राट् स्व० प० पू० आ० श्रीविजयलावण्यसूरीश्वरजी म० श्री कालधर्म पाम्या पछी अमे तेमना रचेला ग्रंथो वली तके प्रकाशित करवानो निर्णय लीधो हतो, तेमांये 'श्रीसिद्धहेमचन्द्र शब्दानुशासन' उपर रचायेला न्यासने प्रथम स्थान आप्यु | केटलाक प्रेसोमां काम आयु पण बधे स्थले परिस्थिति प्रतिकूल बनती गई परिणामे न्यासने प्रकाशित करवानु काम विलंबे पडतु गयुं, हजीये ए काम व्यवस्थित करतां थोडो समय लागशे एम अमारे सखेद जणाव पडे छे । आजे अमे आ 'श्रीउणादिसूत्र - विवृति' ग्रंथ प्रकाशित करी रह्या छीए, तेना उपर न्यास रचायेलो नथी, एक मात्र ' तत्त्वप्रकाशिका ' नामक बृहद्वृत्ति, जे कलिकालसर्वज्ञ पू० आ० श्रीहेमचन्द्रसूरीश्वरजी म. श्रीए रचेली उपलब्ध थाय छे ते ज प्रकाशित करी रह्या छीए । पू० आ० श्रीविजयलावण्यसूरीश्वरजीना शिष्यरत्न मुनिराज श्रीमनोहरविजयजीए आ ग्रंथ संपादन खूब कुशलताथी कर्यु छे, तेणे विद्वानाने उपयोगी थाय ए रीते केटलांक परिशिष्टो वगेरेथी आ ग्रंथ विभूषित कर्यो छे । आशा राखीए के मुनिराज श्री अमने आ कार्यमां आ रीते सदा सहायक थया रहे । लि० चिमनलाल हरिचन्द बगडिया Aho! Shrutgyanam
SR No.034212
Book TitleUnadigana Vivrutti
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherLavanyasurishwar Gyanmandir
Publication Year1968
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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