Book Title: Satya Sangit
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XRECI >»»»«««¶ अश सत्य सङ्गीत लेखक -- दरबारीलाल सत्यभक्त सस्थापक- सत्यसमाज प्रकाशक सत्याश्रम वर्धा [मी. FEMM 14. नवम्बर १९३८ मार्गशीर्ष १९९५ वि. मूल्य दस आने QQ=34==== ►►►►@@««««» SECAUSEpr Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक सूरजचन्द सत्यप्रेमी सत्याश्रम वर्धा (सी. पी. ) मुद्रक ननंजर सत्येश्वर प्रिंटिंग प्रेस वर्षा (सी. पी. ) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - अनुक्रमणिका : ३८ ३८ on m to w a vo on xx ४८ ५१ ५४ १ सत्येश्वर १ २२ भावना गीत २ कोन (सर्व-धर्म-ममभाव) ३ तेरा प्यार (मर्व-जाति-समभाव) ४ पट खोल खोल (नीतिमचा) (आम मयम) ५ मत्य (विश्व प्रेम) ६ जिजामा (र्मयोग) ७ भगवन् २३ क्या ८ सत्यब्रह्म २४ राम निमन्त्रण १. नाथ २५ महात्मा राम १० भगवान सत्य | २६ राम ११ सय शरण २७ वशीवाले १२ भगवती अहिसा २८ महान्मा कृष्ण १३ देवी अहिंसा २९ माधव १४ माता अहिंसा ३० महावीरावतार १५ मातेश्वरी २६. ३१ महारमा महावीर १६ अहिंमा देवी ३२ चार १७ दीदार १८ भ. साय का सन्देश ३० ३४ महान्मा युद्ध १० भ. अहिंसा का सन्देश ३० ३५ श्रमण युद्ध २० भारत माता ३१ ३६ मामा मा २१ पारा हिन्दरगन ३५ ३७ २० - ६५ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ महात्मा मुहम्मद ३९ मुहम्मद ४० मनुष्यता का गान ४१ जागरण ४२ नई दुनिया ४३ मेरी कहानी ४४ कुल के ४५ भुलक्कड ४६ मिटने का त्यौहार फूल ४७ समाज सेवक ४८ ठिकाना ४९ मॅझवार ५० उसके प्रति ५१ प्यास ५२ आगा का नार ५३ क्या करूं ५४ मेरी चाल ७४ ७६ ७७ ७८ ७९ ८१ ८२ ८३ ८५ ८७ ८९ ९१ ९३ ९.४ ९५ ९६ ९८ ५५ उल्हना १०० ५६ विधवा के आँसू १०२ ५७ चिता १०४ । ५८ माया ५९ जीवन ६० दुविधा का अन ६१ चाह ६२ शृङ्गार ६३ वियोग ६४ उपहार ६५ प्यालेवाले ११० १११ ११२ ११४ ११५ ११६ ११७ ११८ ११९ १२० १२२ १२३ १२४ १२५ ७७ जगदम्ब १२६ ७८ जय सत्य अहिंसे १२७ ६६ मनुष्यता ६७ उद्धारकान्नासे ६८ मतवारे ६९ मिहवां ७० युवक ७१ सम्मेलन ७२ मेरी भूल १०५ १०६ १०७ ७३ तू ७४ तेरा नाम चाम ७५ तेरा रूप ७६ भगवति ! 33 १०८ Page #5 --------------------------------------------------------------------------  Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती अहिंसा, भगवान सत्य TES P . . MC-IS -1 Jita-or . HOM XNSAR .. 34 65 . Pott.SAT SA R PPO4 N । मानम वर्धा में विराजमान मूर्तिया Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण भगवान सत्य भगवती अहिंसा के चरणों में हे जगत्पिता हे जगदम्बे, तुमने चरणो मे लिया मुझे । मैं या अनाथ अतिदीन हीन तुमने सनाथ कर दिया मुझे || तार्किकता में सहृदयता का सम्मिलन किया उद्धार किया । निष्प्राण बना था यह जीवन तुमने प्राणों का सार दिया || सत्र मिला जब कि समभाव मिला सद्बुद्धि मिली ससार मिला । सारे धर्मो के पुण्यपुरुष मिल गये जगत का प्यार मिला ॥ मिलगई प्रलोभन जय मुझको विपदा सहने की शक्ति मिली । रह गया मुझे क्या मिलने को जब आज तुम्हारी भक्ति मिली ॥ मेरा सर्वस्व तुम्हारा है बोलो फिर तुम्हें चढाऊ क्या । अक्षर अक्षर का ज्ञान तुम्हीं ने दिया भक्ति बतलाऊँ क्या ॥ पर भक्ति नहीं मेरे वा मे वह गुण-संगीत सुनाती है । गंगाजल अँजुली में लेकर गंगा को भेट चढाती है | तुम्हारा भक्त दरवारी Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना जब से मैने सत्यसमाज की स्थापना की तभी से मुझे इस वान का अनुभव हो रहा है कि इस प्रकार के गीत या कविताएँ तैयार की जॉय जिनमें सर्व-वर्म-ममभाव और सर्व-जाति-समभाव तथा विवेक आदि के भाव भरे हो । पिछले चार वर्षों से मैं ऐसे गीत तैयार कर रहा हू । सत्यसगीत उनका सग्रह है । साथ ही इसमे कुछ कविताएँ और आगई हैं जो कि समय समय पर मेरे हृदय के बाहर निकले हुए उद्गार हैं । ये सब गीत दूसरों के लिये कितने उपयोगी होंगे यह मैं नहीं कह सकता परन्तु इनसे मुझे बहुत शान्ति मिली है और मिलती है । बहुत से मित्र खासकर मत्यसमाजी बन्धु भी इन कविताओं का नित्य उपयोग करते हैं । अधिकाश कविताएँ प्रार्थनारूप हैं जिसमे भ सत्य भ. अहिंसा तथा महात्मा पुरुषों का गुणगान है । ये प्रार्थनाएँ आस्तिकों के लिये भी उपयोगी है और नास्तिको के लिये भी उपयोगी हैं । सत्य और अहिमा को भगवान भगवती या जगत्पिता और जगदम्बा मानलेने से एक तरह की सनाथता का अनुभव होता है, सकट में धैर्य रहता है और जीवन के मामने एक आदर्श रहता है इसलिये जगत्कर्तृत्ववाद को न मानने पर भी इनकी उपासना हो सकती है और ईश्वर मानने के लाभ मिल मकते हैं । और आस्तिक को तो इन प्रार्थनाओ मे आपत्ति ही क्या है ? यहा सत्य और अहिंसा की सगुणोपासना की गई है । सत्य और अहिमा एक बार्मिक मिद्धान्त है और सब वर्मों के मूल हैं पर इतना मह देने से हमारे दिल की प्यास नहीं बुझती । दिल की Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्यास बुझाने के लिये और सर्व वोका मर्म समझने के लिये उन्हे जगत्पिता और जगन्माता के रूप मे देखने की जरूरत है । तभी हम दुनिया के समस्त तीर्थकर पैगम्बर या अवतारो म भ्रातृत्व दिखला सकते है । ईश्वरदूत ईश्वरपुत्र आदि शब्दो का मर्म समझ सकते हैं। - हम मनुष्य सत्य और अहिंसा को मनुष्याकार में जितना समझ सकते है उतना अन्य किसी आकार में नही । किस भावका शरीर पर क्या प्रभाव पडता है यह बात जितनी हम मनुष्य-शरीर मे स्पष्ट देख सकते हैं उतनी दूसरे गरीरों या आकृतियों में नहीं। हम अपने माता पिता की कल्पना जैसी मनुष्य शरीर मे कर सकते है वैसी अन्य शरीर मे नहीं । जैसे अमूर्त ज्ञान को मूर्त अक्षरो द्वारा समझना पडता है उसी प्रकार अमूर्त सत्य अहिंसा को मूर्त रूपमे समझने की कोशिश की गई है । राम, कृष्ण, महावीर आदि महात्मा पुरुपों का गुणगान उन्हें ईश्वर मानकर नहीं किया गया है किन्तु व्यापक दृष्टि से जगत की संवा करनेवाले असाधार। महापुरुप के रूपमे किया गया है । उनके त्याग तप जगत्सेवा आदि पर ही जोर दिया गया है और उनके जीवन के साथ जो अवैज्ञानिक-अविश्वसनीय-घटनाएँ चिपका दी गई हैं वे अलग कर दी गई है । जो गुण उनके जीवन से सीखे जा सकते है उन्हीं का वर्णन किया गया है । साथ ही समभाव का इतना ध्यान रक्खा गया है कि एक की स्तुति दूसरे की निंदा करने वाली न हो। ऐसी प्रार्थनाएँ आस्तिक और नास्तिक दोनो के लिये हितकारी है। बहुत से लोग प्रार्थनाओं के महत्व को ठीक ठीक नहीं समझते । कुछ लोग तो सारी सिद्धियों उसी में देखते है और कुछ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उसे बिलकुल निरर्थक और ढोग समझते हैं। ये दोनों ही अतिवाद हैं। प्रार्थनाओ से हमारे हृदय पर ही प्रभाव पड़ता है बस इतना ही लाभ है और यह कम लभ नहीं है । प्रार्थना से हमारा हृदय गान्त हो जाता है थोड़ी देर को दुनिया के दुःख भूल जाता है सनाथता का अनुभव होता है जिनकी प्रार्थना की जाय उनके जीवन का प्रभाव अपने पर पड़ता है दृढ़ता आती है कर्मठता जाग्रत होती है इसी प्रकार के लाभ मिलते है । इसमे अर्थ नहीं मिलता अथवा अर्थप्राप्ति प्रार्थना का लक्ष्य नहीं है पर धर्म काम और मोक्ष तीनों पुरुषार्थ प्रार्थना के लक्ष्य है । सदाचार तथा कर्तव्य की शिक्षा धर्म है । गीत का आनन्द काम है दुनिया के दुख भूल जाना मोक्ष है इस प्रकार यह तीनों पुरुषार्थों के लिये उपयोगी है। नियमित और सम्मिलित प्रार्थना का उपयोग इससे भी अधिक है। किसी धर्माल्य में ऐसी प्रार्थनाएँ की जॉय तो मिलकर प्रार्थना करनेवालो में एक तरह की निकटता आयेगी परिचय बढेगा एक दूसरे की परिस्थिति का ज्ञान होगा इसलिये सहयोग मिल सकेगा किसी एक लक्ष्य से काम करनेवालों का सगठन होगा। पर प्रार्थनाऍ समभात्री होना चाहिये और ऐसी भाषा में होना चाहिये जिसे हम समझ सकें बहुत से लोग आज भी संस्कृत प्राकृत के विद्वान न होने पर भी उसी भाषा में प्रार्थनाएँ पढ़ा करते हैं । यह प्राचीनता की बीमारी है जो कि प्रार्थना को निष्फल बना देती है इसीलिये सन्यसात हिन्दी में लिखा गया है। पाठकों के लिये यह समह कितना उपयोगी होगा कह नहीं सकता पर मेरे लिये तो उमका निल उपयोग होता है। १७-१०-१९३८ --दरबारीलाल सत्यभक्त Page #11 --------------------------------------------------------------------------  Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मा NE * दरबारीलाल मत्यभक्त * Sta, RARAN GST L ATI LIhhat, - ANMATHI "2.19 . Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। जय सन्य। सत्य-संगीत मेरे जीवनमे रस धारबहाकर करदो बेडा पार ॥ [१] मेरे मन-मन्दिरमे आओ। आकर करणा-कण वरसाओ । रोम रोममें प्रेम बहाआ । प्राणेश्वर करदो जीवनमे प्राणाका सचार । मेरे जीवनमें रसधार, बहाकर करदो बेडापार ॥ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २] सत्य-संगीत [ २ ] सत्येश्वर तुम त्रिभुवनगामी । सकल चराचर - अन्तर्यामी । सही धोके स्वामी | निराकार हो पर भक्तांके मन हो अखिलाकार । मेरे जीवन में रसधार, बहाकर करदो बेडापार || [ ३ ] नात अहिंसाके सहचर तुम । लोकोंके ब्रह्मा हरि हर तुम । विश्वरगके हो नटवर तुम । जन्ममरण जीवनमय हो तुम गुणगणलीलागार 1 मेरे जीवनमें रसधार, बहाकर करदो बेडा पार || [ ४ ] वेदरानाधार तुम्हीं हो । सूत्र पिटकके सार तुम्हा हो । ईसाकी मुखधार तुम्हीं हो। राम रोममें कोटि कोटि हैं तीर्थंकर अवतार । जीवन में रसधार, वहाकर करदो बेडापार || Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कौन कौन 2 तेरा कौन निशान । कौन नू किमाकार, क्या सीमा तेरी, क्या तेरा सामान ॥ कौन त तेरा कौन निशान । अगम अगोचर महिमा तेरी कौन सके पहिचान | कणकणमे डूबे तीर्थंकर ऋषि मुनि महिमावान ॥ कौन तू तेरा कौन निगान ॥ तेरा कण पाकर बनते हैं जन सर्वज्ञ महान । पर क्या हो सकता है तेरी सीमाओं का ज्ञान ॥ कौन त तेरा कौन निगान ॥ नित्य निरन्तर सूक्ष्म - प्रवाही तेरा अद्भुत गान । होता रहता पर सुन पाते हैं किस किसके कान ॥ कोन तू तेरा कौन निशान । दुनिया रोती मैं भी रोता जब बनकर नादान । कितने हैं वे देख सके जो तब तेरी मुसकान ॥ कौन त तेरा कौन निशान || तू है वही चूर करता जो मेरे सब अभिमान । रोते समय आसुओकी धाराका करता पान 11 कौन व तेरा कौन निशान ॥ [ ३ इतना ही समझा हू स्वामी तेरा अकथ पुरान । इतने मे ही पूर्ण हुए हैं मेरे सब अरमान कौन त तेरा कौन निगान । ॥ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ । इ मन्य मंगीन नेग प्यार ****** J 2" ܀ मन्दिर f दिए form v, much, z z * नागभ , मैंने नाम मेरा प्यार टान में (* *.67 () = रेल 17 मेरा प farm yn gymma sa, gå frem ori मेने नेम पर || 2 || जगह जग पर, पथकान न लुझको चिला चिला का संत्रा बा बना कर न भी हँसता रहा, न योग-भीतर जग तो भी रहा मान ने चर ढोंगी, कुटिल, काल मम नूर f और॥ ॥ तेरा झूठा नाम सुना कर ननित किया ससार । मैंने चाहा तेरा प्यार ॥ २ ॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरा प्यार मैने चाहा तेरा प्यार छल करनेमे छला गया मै बनकर मूर्ख गमार । मैने । समझा था तुझको छलता हूँ अब समझा मै ही जलता हॅू तुझको धोखा देना ही था धोखा खाना आप 1 जब समझा तू मन मे बैठा देख रहा सब पाप || मेरा चर हुआ अभिमान तेरी देख पड़ी मुसकान तेरे चरणो पर बरसाने लगा अश्रु की धार । मैंने चाहा तेरा प्यार ॥ ३ ॥ मैने चाहा तेरा प्यार तेरा आशीर्वाद मिला तत्र सूझ पडा ससार ॥ जाति पति का मोह छोड कर ऊँच नीच का भेद तोड कर मैन आया तेरे पास, दिखाया तूने अपना ठाठ सर्वधर्म समभाव, अहिंसा का सिखलाया पाठ [ ५ मैने पाया सत्य - नमाज जिसमे था तेरा ही साज हुआ विश्वमय, विश्ववन्धु मै तेरा खिदमतगार मैने चाहा तेरा प्यार । 1 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गन्य संगीत पट सोल खोल 5224 Sto Po - nutr ܐܐ ܐܕܐ "" 744 ********** * नामे से विप ओ विष जगत !! बे में : नट मे ग माग । मैं टगा गया वेनारा | गाय | + भि न मेरा व्याग । मैं गया। मदिरके पट गोत्र ॥ ॥ २ ॥ गिरजाघर में न जाना । मज भी दिल । मदिरमे भी तू आता | पर पता न कोई पाता । न है अलभ्य अनमोल मोल । मदिरकेत पट खोल खोल | ॥ ३ ॥ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्य ! ~ ~ ~ ~ ~ ~ शास्त्रोने जिसको गाया। मुनियोने जिसे मनाया। तीर्थकरने जो पाया। थी सब तेरी ही छाया । तू हे अडोल पर लोल लोल । मदिरके तू पट खोल खोल ॥ ४ ॥ तेरा ही टुकडा पाकर । बनते हैं धर्म--सुधाकर । करुणाकर मनमें आकर । हममे मनुष्यता लाकर । चित् शान्ति सुधारस घोल घोल मदिरके तू पट खोल खोल ॥ ५ ॥ पढी पुस्तके बहुत मगर , । मिल सका न मुझको सम्यग्ज्ञान । नाना आसन लगा लगाकर, ध्यान किया पर लगा न ध्यान ।। दुनिया भरके मत्र जपे, पर हुई नहीं दुखो की हानि । जपता यदि नि पक्ष हृदयसे, सत्यदेव, मिलता सुख वानि ।। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ । सत्य संगीत जिज्ञासा [१] बता दो कौन से पथ से तुम्हें हम आज पायेंगे। कहो केसे छटा अपनी प्रभो हमको दिग्वायेंगे। [२] विपद के मेघ छाये हैं न ऑखो मूझ पडता है । कहो किस वक्त आकर आप हमको पथ दिखायेंगे । [३] गमारू गीत गाते ही निकाली जिंदगी सारी । तुम्हारी ही कृपासे नाथ कब गुण गान गायेगे । बकी है वर्म के मद मे हजारों गालियाँ हमने । कहो कत्र आप ममभावी मधुर वीणा बजायेंगे | [५] लड़ाई द्वद ही देखे खुदा के नाम पर हमने । कहो तो आप अपनी प्रेम मुद्रा कब दिखायेंगे । तुम्हारे ही लिये आसन बनाया आज है दिल पर । कहो आकर हँसायगे न आकर या रुलायेंगे । Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवन् भगवन् विजय हो बन्धुता की प्रेम का जयकार हो भगवन् । नहीं हो अब दुखी कोई परस्पर प्यार हो भगवन् ॥ [२] गरीबी रह नहीं पाय, अमौरी मे न वनमद हो । बढे सम्पत्ति अब सब की बढ़ा व्यापार हो भगवन् । अविद्या का अंधेरा यह, जगत मे रह नहीं पात्र । बढे सज्जान मानव ज्ञानका आगार हा भगवन् । [४] बने ज्ञानी सभी मानव सदाचारी विनय-धारी । न कोरे फेशनबुल या रंगोले यार हो भगवन् । [५] 'जरासी ओपडी भी हो सढा मदिर सुशिक्षा का । दया से पूर्ण सच्ची सभ्यता का द्वार हो भगवन् । अविद्या मूर्ति महिलाएँ कही भी रह नही पाये । बने ये भारती देवी कि स्वर्गागार हो भगवन् । [७] अभी सद्धर्म की नौका भँवर मे खा रही चक्कर । रखें उत्साह बल ऐसा कि बेडा पार हो भगवन् ।। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्यसंगीत सत्यब्रह्म [१] तेरी ही सेवा करने को सब तीर्थकर आते है. ज्ञानदीप लेकर दुनिया को नरा पथ दिखलाते हैं। तेरी ही करुणा को पाकर 'बोधि बुद्ध बन जाते हैं, स्वार्थ जी तेरे सेवक ही जग में जिन कहलाते हैं | [२] योगेश्वर कहलाते हैं जो दिखलाते तेरी छाया, मर्यादा पुरुषोत्तम की भी नूरति है तेरी माया । Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्यब्रह्म तेरी ही एकाध किरण जब कोई जन है पाजाता, ऋपि महर्पि अवतार महात्मा तीर्थंकर तब कहलाता ॥ [३] तेरा ही करुणा-लव पाकर है मसीह होता कोई, तेरा पथ दिखला कर जग के सकल पाप धोता कोई । तेरी आज्ञाके थोडे से टुकडे जो ले आता है, जनसमाजका सच्चा सेवक पैगम्बर कहलाता है ॥ [४] राम कृष्ण जरथुस्त बुद्ध जिन ईसा और मुहम्मद भी, कन्फ्यूशियस आदि पैगम्बर तीर्थकर अवतार सभी । तेरी करुणाके भूखे थे, थे समस्त तेरे चाकर, ___अखिल जगत चलता है, तेरी ही करुणासे करुणाकर ॥ [५] श्रद्धाका अचलत्व, ज्ञानका मर्म, वृत्तका जीवन त, जनसमाज का मेरु दड तू, धर्म कोपगृह का धन त । तेरी ही सेवा करने मे सकल धर्म आ जाते हैं, तेरी करुणा से भिक्षुक भी सारे सुख पा जाते है । पक्षपात का नाम न रहता जहाँ पडे तेरी छाया, अधकार मे गिरता है वह जिसने तुझे न अपनाया । सव धर्मीका सार जगत्का प्राण सब सुखो का आकर, सबके मनमे कर निवास कर विश्व शान्ति हे करुणाकर।। Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२] सत्य-संगीत साक्ष नाय कब तक तरसाओगे। [१] मनुज रूप धर भले न आओ। अवतारी न छटा दिखलाओ। पर छोटी सी किरण क्या न मन में पहुंचाओगे ॥ नाथ ॥ [२] कठिन आपदाएं आवेंगी। पर टकराकर मर जावेगी। अगर आप निज-वरद हस्त हम पर फैलाओगे॥ नाय ॥ Page #25 --------------------------------------------------------------------------  Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ ] सत्य संगीत भगवान सत्यः । [ १ ] व जगत्-पिता वात्सल्य प्रेम स्नाकर । देवाधिदेव मुख स्वतन्त्रता का आकर ॥ हे राम, कृष्ण, जिन, बुद्ध, मुहम्मद सारे. जरथुस्त, यीशु सत्र तेरे पुत्र दुलारे || [ २ ] है काल का भेद, मगर हैं भाई आकर सबने तेरी ही महिमा गार्ड सत्र ही लाये तेरी पदरज का अञ्जन जिससे विवेक का भान हुआ. दुग्खभञ्जन | [ ३ ] छानी है जगमें जब कि घोर अँधियारी अन्यायों से भर जाती पृथिवी सारी । बनना है कोई पुत्र दुलारा तेरा वह विश्व मात्र का सत्रक प्यारा तेरा || Page #27 --------------------------------------------------------------------------  Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ ] 1^ सत्य संगीत 4101 निर्वल बेचारे धुतकारे जाते है ॥ अबलाओ को है लोग लोग पीसते ऐसे चक्की के दोनों पाट अन्न को जैसे ॥ [ ९ ] बलवान स्वार्थ को धर्म धर्म कहता है । निर्बल मौनी वन सारे दुख सहता है ॥ समताभावों की हँसी उडायी जाती । है न्यायशीलता पद पद ठोकर खानी ॥ [ १० ] तेरे पुत्रों ने था जो मार्ग दिखाया | उस पर लोगों ने ऐसा जाल बिछाया । दलदल | खोकर बल | सब भूले तुझको बना दलो का उसमे फँसते है मरते हैं [ ११ ] अब है उदारता का न नाम भी बाकी | गाली खाती फिरती है आज वराकी || हर जगह मकुचितता है राज्य जमाती । जनता तेरा पथ छोड़ भागती जाती ॥ [१२] टोगो ने वर्मासन भी छीन लिया है | धार्मिकता का भी चोला बदल दिया है | नमल से भारी पाप न पूछे जाते । नियाप किरा पर सत्र ही ओख उठाने ॥ Page #29 --------------------------------------------------------------------------  Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८] सत्य संगीत प्राणी प्राणी सब वन्धु वन्धु बन जावें । हो स्वार्थ त्यागका भाव सभीके मनमें । सर्वत्र दया सत्प्रेम रहे जीवन में ।। [१८] अनुचित बन्धन तो एक भी न रह पारे । __ सर्वत्र हिताहित-बुद्धि मार्ग दिखलावे ॥ अपने अपने अधिकार रख सकें सब ही। होगा मुझको सतोप नाथ ! वस तब ही। [१९] स्वामित्व न हो पशुवल-धनवल का सहचर । दानवता का अधिकार न मानवता पर ।। सच्चा सेवक ही बने जगत-अधिकारी स्वामित्व और सेवा हो। सहचारी ॥ [२०] रह सके न कुछ भी वैर हृदय के भीतर । वहजाय नयन के द्वार अश्रु वन वन कर ॥ हो सदा 'अहिंसा परमो धर्म 'की जय । अन्याय रूटियों अत्याचारों का क्षय ॥ [२१] सब धर्मों में समभाव देव हो मेरा । नि पक्ष हृदय में नाम मत्र हो तेरा ।। मैं देख देख कर चल चरण रज तेरी । दस एक कामना यही प्रभो है मेरी ।। Page #31 --------------------------------------------------------------------------  Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० ] सत्यसंगीत भगवती अहिंसा अपनी झोंकी दिखला जाः निर्दय स्वार्थ पूर्ण हृदयों में शाति सुधा वरसाजा ॥ अपनी. ॥ (१) तेरा वेष बनाकर आती, तुझको ही बदनाम कराती; आकर के इस कायरता का भडा-फोड कराजा ॥ अपनी ॥ [२] वीर-पूज्य वीरों की माता. तेरी कृपा वीर ही पाताः अकर्मण्य आलसी जनों को, यह सदेश सुनाजा।। अपनी.॥ (३) अस्त्र गन के संचालन में, आततायियों के ताडन में, तेरी गुप्त मूर्ति रहती है, बस आवरण हटाजा ॥ अपनी. ॥ (४) प्राणहीन पूजा या तप में. दभ-पूर्ण माला के जप में: घोर स्वार्थ है आ कर बैठा, त चकचूर कराजा ॥अपनी ॥ सन्नता के रक्षण में न, दुर्जनता के नक्षण में 7, गिविधल्पधारिणी अनिक, यह विवेक सिखलाजा ॥अपनी. ॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती अहिंसा [२१ जब महिलाओंके सतीत्व पर, टूट पड़ेंगे पाप निशाचर, राम कृष्ण बन कर आवेगी, यह सदेश सुनाजा ॥अपनी.॥ निर्दय क्रियाकाड में पडकर, होंगे जब कर्तव्य-शून्य नर, वीर-बुद्ध वनकर आवेगी, यह भविष्य बतलाजा ॥अपनी.।। (८) कोमलता का रूप दिखाने, जन सेवा का पाठ सिखाने, ईसा के मुख से बोलेगी, यह रहस्य समझाजा ॥ अपनी ॥ मनुष्यता का पाठ पढाने, बिछुडों को सगठित बनाने, वन आवेगी देवि मुहम्मद, जगको ज्ञान कराजा ॥ अपनी. ।। (१०) अन्य-विविध-अवतार-धारिणी, स्वच्छ-हृदय-नभतल-विहारिणी तेरे पुत्रो को पहिचाने, ऐसा मत्र बताजा ॥अपनी. ॥ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२] सत्य संगीत देवी अहिरवा देवि अहिंसे, करदे जगक दुखों का निर्वाण । 'त्राहि त्राहि' करनेवालोंजा करणा कर कर त्राण ॥ तू है परम धर्म कहलाती सकल सुखोंकी खानि । तेरे दृष्टि-तेजसे होती निखिल-दुःख-तम-हानि ॥ [२] राम कृष्णका कर्मयोग तू जैनोका तपध्यान । बौद्धोंकी करुणा है त ही तनमें प्राण समान ।। तु ही सेवाधर्म यीशु का है तेरा इमलान । तीर्थकर पैगम्बर पैदा करना तेरा काम ।। [३] तर ही पढरज अजनने ज्ञान नयनकी भान्ति । मिट जाती है सकल जगत को मिलनी नवी गान्ति ॥ तेरे करतल की छाया में हटने सार तार । नेग दुग्धपान करने ने घटना पुण्य कन्यार ।। Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवी अहिंसा [२३ [४] तेराही अञ्चल बनता है अटल वज्रमय कोट । टकराकर निष्फल जाती है विपदाओंकी चोट । तेरे अचलकी छायामे है सब जग का त्राण । शान्तिलाभ है वहीं वहीं है जीवन का कल्याण ॥ तीर्थकर पैगम्बर देवी देव दिव्य अवतार । नर से नारायण बनते हैं हर कर भू का भार । हैं सब तेरे पुत्र सभी का करती त निर्माण । महादेवि, सारे जगका तू करती दुखसे त्राण ॥ [६] सत्य अचौर्य ब्रह्म अपरिग्रह सब तेरी मुसकान । तेरी प्राप्ति दूर करती है मोह और अभिमान ॥ क्षमा शौच शम त्याग आदि सब हैं तेरे ही अग। तबतक क्रिया न धर्म न जबतक चढता तेरा रग। महादेवि ! कल्याणि विश्व में गूंजे तेरा गान। तेरी तान तान पर नाचे यह ब्रह्माड महान ॥ नाचे नियति सुमन गण नाचें नाचें धन बल ज्ञान । वैर भाव धुल जाय बने सब सच्चे वन्धु-समान ॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ ] सत्य संगीत माता अहिंसा [१] माता करदे जग पर छाया । तेरे बिना न कभी किसीने थोडा भी सुख पाया ॥ माता. ॥ जब पश के समान था मानव, कुछ मनुष्य थ राक्षस दानव । 'जिसकी लाठी, भैंस उसीकी एक यही था न्याय । यत्र तत्र सर्वत्र भरी थी बस निर्बल की हाय ॥ करती थी तेरा आह्वान, मन ही मन था तेरा ध्यान । तूने ही उस घार निगामें निज प्रकाश फैलाया || माता. ॥ [२] माता करदे जग पर छाया । हिसा दुष्ट डाकिनी अपनी फैलाती है माया|| माता. ।। अपना नाना रूप बनाकर, मदिरमें मसजिट में जाकर । नगा ताडय दिखलाती है अट्टहास्य के माय । धर्म नाम लेकर धी पर फेर रही है हाथ ।। करदे उसका भडाफोड । उमका मायागढ़ दे तोट ॥ मणु अशु चिल्ला उठे विश्वका 'प्रेम राज्य है आया' ॥ माता. । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता अहिंसा [२५ [३] माता करदे जग पर छाया । निर्दयताने नग्न नाच कर अद्भुत रूप बनाया । माता ॥ इधर हमे है जगत विषम पथ । उधर उसे है स्वार्थ महारथ ॥ नचा नचाकर भगा भगा कर करती है आखेट । कुचली जाती पीठ और कुचला जाता है पेट ॥ रक्खा पूर्ण सभ्यता वेष । पर सब प्राण हुए नि शेप ।। रखकर देवीवेप राक्षसीन क्या प्रलय मचाया ॥माता ॥ [४] माता करदे जग पर छाया । वैर स्वार्थ सकुचित वासनाओंने जगत सताया ॥ माता ॥ कही सम्प्रदायो को लेकर । कुलकी कहीं दुहाई देकर ॥ कहीं रग पर कहीं राष्ट्र पर मरता मानव आज । वैर और मद की मारो से है चकचूर समाज ॥ सुरगति नरक बनी है हाय । र्याद तू किसी तरह आजायतो फिर नरक स्वर्ग बन जाये बदले सारी काया ॥ माता ॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्य संगीत मातेश्वरी । [१] मानवार तेरा अचल । सकल अनयों से रक्षित कर देता है मुझको बल । मातेश्वरि तेरा अचल ॥ [२] तेरे बिना न कभी किमी को पड सकती पलभर कल । तेरे अचलकी छायामें मिट जाते छाया हल ।। मातेश्वरि तरा अचल ॥ वर्म तत्वके विविध रूप हैं तेरी करुगाके फल । न् न जहां हैं वहा वर्म में भी है पाप निरर्गल || मानेवरि तेरा अचल ॥ [४] नीर्थकर पैगर ऋषि मुनि या अवतारों का दल । . है तेरे ही पुत्र चिल्लाने है जगको गम रम जल ॥ मानवरि तेरा अचल ॥ तेरे अचलको छायाम, बांते जीवन के पल । मावर हा किल्लु नहीं हो तंग अचल चल । गलेश्वरि नेरा अचल ॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आहेसा देवी [२७ अहिंसा देवी कहो कहो देवि । छिपी कहा हो । पता बताओ रहती जहा हो । पडा हमारे सिर दुख जैसा । अराति के भी सिर हो न वैसा ॥१॥ वटी यहा भौतिक सम्पदा है। । परन्तु आत्मा पर आपदा है। मनुष्यको खून चढा हुआ है। विनाश की ओर बढ़ा हुआ है ॥ २ ॥ स्वजाति-भक्षी पशु भी न होते । मनुष्य ही लेकिन नीति खोते ॥ मनुष्य भी भक्ष्य हुआ यहा है। पशुत्व यों लजितसा कहां है ॥ ३ ॥ मनुष्य मे भी समभाव छोडा । मनुप्यता से सहयोग तोडा ॥ हुए यहा युद्ध विनाशकारी । मनुष्यने मानवता विसारी ॥ ४ ॥ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ] सत्य संगीत ननुप्प का पागव-भाव पारे । लगे इससि बलहीन मारे ॥ सुशीलता का पद है न बाकी । ___ हुई बड़ी दुर्गति न्याय्यता की ॥५॥ ने सभी के मन स्वार्थिता से। __ भला रेंगे क्यो परमार्थिता से । । वढा अविश्वास अगान्तिकारी । हुए सभी चिन्तित-वृत्तिधारी ॥ ६ ॥ न देख पाई सुपमा तुम्हारी । दुखापहारी निज सौख्यकारी ॥ हुए हमारे गुण नष्ट सारे । मरे बने जीवित ही विचारे ॥ ७ ॥ पशुत्र के मन बने हुए हैं। अगान्ति में निल मने हए हैं। ___रही न मैत्री अविवेक आगरा । वित्तियों ने दिनरात खाया ॥८॥ हुई हमारे मनम निराशा। कृपा करो ढेकर पूर्ण आया ॥ प्रसन्नता मे हलका महालो । विग का बन्धन तोड हाई ॥२॥ 65 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीदार दीदार है भला नमार भर का सत्य चाहता जीवन विताना नत्यंके ही के दीदार मे । प्यार में ॥१॥ भी यह मजा । ये चमडी जब, न तत्र था जीनमे आज जो मिलना मजा है प्रेमकी इस हार में ॥२॥ 11211 लड झगडकर मर रहे ये हाय कल तक आज कैंस रहे है प्रेम के इस कल यहा दोजस्य बना थाः देखते है किस तरह झाँकी बनी है सत्यके [ २९ किस तरह | तार में || ३ || आज क्या । दीर में || ४ || मजहबों का, जातियो का आज पागलपन गया । अक्ल आई है ठिकाने युक्तियों की मार में ||५|| मजहबों में जातियों में अब हुआ समभाव है । धर्म दिखता है हमे अब प्रेम के व्यवहार में ||६|| मन्दिरो में मसजिदों मे, चर्च में है भेद क्या ! सत्य प्रभु तो सब जगह है मत्यमय आचार में ||७|| अत्र विवेकी हो गये हम है सुधारकता मिली । वह है अन्धश्रद्धा ज्ञान- जल की वार में ॥८॥ मिल गई माता हमें है अब भूल बैठे स्वार्थ सारे आज मॉ के चाहिये दीदार तेरा और कुछ भी स पडा है अब भिखारी आज तेरे द्वार में ॥१०॥ | अहिंसा भगवती । प्यार मे ||९|| दे न दे | Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ] सत्य-संगीत म० सत्य का सन्देश निष्पक्ष और निर्लेप, वुद्धि आकाश समान बनाओगे | भगवती अहिंसा की सेवा करप्रेम - वर्म अपनाओगे ॥ १ ॥ भूतल मे सब ही मित्र रहें मन मे न शत्रुता लाओगे । तो फिर मैं तुम से दूर नहीं । घर घर मेरा घर पाओगे ॥ २ ॥ भ० अहिंसा का सन्देश सब शान्त रहो सव शान्ति करो । दु स्वार्थ न मन में आने दो । रगडे झगडे सब दूर करो | जगको प्रेमी बन जाने दो ॥ १ ॥ दुर्जनता का सहार कंगे । मजनता को जय पाने दो। हिंना का राज्य न आने दो । पर कायर मन कहलाने दो ॥ २ ॥ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारत माता भारत माता रन मोनी पाग भारत माता । में मुगुन में अग्जिट जगत के नाना । यो विधिने मव-विध सम्पूर्ण बनाया । गगा ना मुन्दर हार नुझे पहनाया । भिर अमर धवल हिमगिरिमा स्त्र लगाया । रनाकर ने पट पग्वारने आया । गक शिरिष दन्न तरा ही गण गाना । है गुग्न--- मोहनी प्यारी भारत माता ॥१॥ पल पल पनिज सब रन्ना का आकर न जल ढग्य सुधा रस-राजों का निझर त । नाना आपधिन सब को चिन्ता-हर त । मधुकर नभचर जलचर यलचर का घर न ॥ नन अजब अजायत्र घर मा है दिग्वलाता । ह भुवन-मोहनी प्यारी भारत माता ॥ २ ॥ मन प्रतुणं. मन शृगार यहा आती हैं। अपना अपना नवनत्य दिखा जाती हैं। निज निज स्वर मे नेरे गुणगुण गाती हैं। नेरे आँगन में नाटक दिग्वलाती हैं । सब और प्रकृति ने भर दी है सुखसाता । हे भुवन-मोरनी प्यारी भारत माता ॥ ३ ॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्य संगीत हैं राम कृष्ण से तूने पुत्र खिलाये । जिन वीर बुद्ध से तेरी गोडी आये । तेरे पुत्रों ने ऐसे कार्य भगवान सत्य के परन दूत कहाता । माता ॥ ४ ॥ बहुत खिलाई । तेरा सुपुत्र करुणा का पुत्र हे भुवन - मोहनी प्यारी भारत सीता सावित्री तृने काली समान भी शक्ति देत्रियाँ पाई | विधिने विभूतियों गिन गिन कर पहुंचाई। सब दिव्य शक्तियाँ मुझे रिझने आईं ॥ तेरी महिमा से कौन नहीं झुक जाता । हे भुत्रन - मोहनी प्यारी भारत माता ॥ ५ ॥ अन्यान्म यहा तेरे आँगन में खेला | नाना वाडों के खिले चमेली वेला || फुलवाडी में लग गया सुमन का मेला | तेरे सुमनों का बना विश्वभर चेला || था कर्नयोग योगेश मुरस बरसाता । हे भुवन - मोहनी प्यारी भारत माता ॥ ६ ॥ करती रहती नाना पट परिवर्तन तु । तुझको न क्रान्तिका डर है निर्भय मन तू । सब बर्न जाति के जनका पैतृक वन तू । है सकल सभ्यताओं का परम मिलन तू ॥ सब ओर समन्वय छाया जीवन दाता | हे भुवन मोहनी प्यारी भारत नाता ॥ ७ ॥ ३२ ] दिखाये | कहलाये । Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारत माता कोई हिन्दू या मुसमान हो भाई । जरथुस्त भक्त. या निल जैन, ईसाई ॥ या धमकीन नास्तिकता हो काई । नवनी सभी की मांई ॥ नत्र से है ग एक मरीला नाना । हे हनी प्यारी भारतनाना ॥ ८ ॥ नेरी सेवा में नारी शक्ति लगाऊ | कणकण पर जीवन दीप जलाऊ | पर मन का सुमन चटाऊँ । मानवता का मगीत मनोहर गाऊ | तेरा गुण गात सुरगुरु भी न अघाता । हे भुवन मोहिनी प्यारी भारतमाता ॥ ९ ॥ अपनी झौकी फिर एक बार दिग्वलांद | दुनिया पर जीवित शान्ति चन्द्रिका छाटे । सची स्वतन्त्रता का सन्देश सुनांदे | घर घर में प्रेमामृत की धार बहाने || सवर नष्ट हो प्रेम रहे मन भाता । हे भुवन मोहिनी प्यारी भारतमाता ॥ १० ॥ मानवता के सिरपर दानव न खडा हो । अन्यायी, सत्य में आटे न अड़ा हो । मन प्रेम पूर्ण हो पापों का न घडा हो । साम्राज्यवाद के चक्कर मे न पटा हो || मानव का मानव रहे सर्वदा भ्राता । हे भुवन - मोहनी प्यारी भारतमाता ॥ ११ ॥ [ ३३ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ ] संत्य संगीत सदसद्विवेक का मूर्य तपे तमहारी । भगवान सत्य के दर्शन हो सुखकारी। वनजॉय स्वार्थ-त्यागी सब ही नरनारी । भगवती-अहिंसा-सेवक प्रेम-पुजारी ॥ वैकुण्ठ दिखाई दे भूतल पर आता | है भुवन-मोहनी पारी भारतमाता ॥ १२ ॥ हो सर्व-धर्म-समभाव सभी के मन में । यह जातिपॉति का रोग न हो जीवनमें । मानवता महके तेरे श्वास पवन मे । सप्रेम फले फले तेरे आँगन में ॥ गुलजार चमन वनजाय सकल सुखदाता । हे भवन-मोहनी प्यारी भारतमाता ॥ १३ ॥ arri, मान Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्यारा हिन्दुस्थान प्यारा हिन्दुस्थान प्यारा हिन्दुस्थान हमारा | शक्ति प्रेम की धारा ॥ हा प्रकृति की छटा निराठी | मनु की है हरियाली | फूल किये है डाली डाली ॥ कण कण जिनका लगता प्यारा । प्यारा हिन्दुस्थान हमारा ॥ १ ॥ विजय गिरिराज हिमालय | गंगा के निर्मल जल की जय । प्रकृति नटी नचती है निर्भय । हे विस्तीर्ण समुद्र किनारा | प्याग हिन्दुस्थान हमारा ॥ २ ॥ मत्र ऋतु के अनुकूल फूल है | अन्न शाक फल कन्दमूल है । मन चाहे फल रहें तल हैं । ईश्वर का है परम दुलारा | प्यारा हिन्दुस्थान हमारा || ३ || राम कृष्ण से वीर यहा थे । वीर बुद्ध से धीर यहा थे । व्यास ज्ञान- गभीर यहा ये । [ ३५ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ ] सत्य संगीत Mr ANNAwaryaAVANA- अनुपम है सोभाग्य सितारा । प्यारा हिन्दुस्थान हमारा ॥ ४ ॥ नानक और कबीर यहां थे। एक एक से पीर यहा थे । सच्चे सन्त फकीर यहा ये । मकसद एक रूप था न्यारा । प्यारा हिन्दुस्थान हमारा ॥ ५॥ जैमिनि कपिल वृहस्पति वीधन । गौतम शुक्र कणाद तर्कमन । सब ने दिया ज्ञान में जीवन । वही विविध दर्शन की धारा । प्यारा हिन्दुस्थान हमारा ॥ ६ ॥ महासती सीता सी पाई । सरस्वती विदुषी बन आई ।। लक्ष्मी रणरगिणी दिखाई। अद्भुत नाररत्न-पिटारा । प्यारा हिन्दुस्थान हमारा ॥ ७॥ भूपति त्याग प्रेम के आकर । सारा विश्व जिन्हें अपना घर । ये अशोक से नृपति यहां पर । जिनका वर्म देख जग हारा । प्यारा हिन्दुस्थान हमारा ॥ ८ ॥ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्यारा हिन्दुस्थान Arwwwwwwwwwwww विक्रम से रणधीर यहा थे। अकवर आलमगीर यहा थे। और शिवाजी वीर यहा थे । चकित किया था यह जग सारा । प्यारा हिन्दुस्थान हमारा ॥ ९ ॥ विविध कला विज्ञान यहा पर । फूल फले फिरे भूतल भर । सयम और सभ्यता का घर । बना सदा सुख-शान्ति-किनारा । प्यारा हिन्दुस्थान हमारा ॥ १० ॥ हिन्दू मुसलमान हैं भाई । बौद्ध सिक्ख जैनी ईसाई । प्रेम नाम की महिमा गाई । रहा सभी में भाई चारा। प्यारा हिन्दुस्थान हमारा ॥ ११ ॥ अव उन्नति गिरिपर चढ जाये । जगका परम मित्र कहलाये । सब को प्रेम पाठ सिखलाये । मानवता का हो ध्रुवतारा । प्यारा हिन्दुस्थान हमारा ॥ १२ ॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ ] सत्य-संगीत भाक्तागीत (सर्व-धर्म-समभाव ) ( 2 ) जीवन यह होजाय दु स्वार्थो से रहे सत्य अहिंसा के पालन मे, पक्षपात से दूर रहे मन, सर्व-धर्म-समभाव न भूलूँ, अहकार का कर मन मन्दिर में सब धर्मोके, तत्त्रा का मै व्यतीत । अतीत ॥ अवसान | गाऊ गान ॥ ( २ ) बुद्धि विवेकन छोड् क्षणभर, आने दू न अन्धविश्वास | परम्परा के गीत न गाऊ, करू न मानवता का ह्रास ॥ सकल महात्मा पुरुषों मे हो, समता का न कभी विच्छेद | हैं ये विश्व-विभूति न इन में, हो मेरा तेरा का भेट | ( ३ ) राम महात्मा के पथ पर हो, मेरा यह जीवन कुर्बान | मर्यादा पर मरना सीखू, सीखू धनमद का अपमान || योगेश्वर श्रीकृष्णचन्द्र से, सीखू कर्मयोग का गान । योग भोग का करू समन्वय, करू फलाशा का अवसान ॥ ( ४ ) महावीर स्वामी से सीखू, दिव्य अहिंसा दर्शन ज्ञान 1 कर दू सहनशीलता पाकर, जन सेवा में जीवनदान ॥ वुद्ध महात्मा के जीवन से, पाऊ दया और सोध । दुनिया का दुख दूर करू मैं, कर दू पापों का पथरोध || Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भानवा गीत (4) मोग्बू नेत्रापाठ सर्वदा, रख ईसामसीह का ध्यान । वन दुखी को देख दुखी में, करून दुग्ख में दुख का गान ॥ नीबू वीर मुहम्मद से में, भ्रातृभाव का मपहार | मान्यभाव का पाठ पढ़ मै, मानवता का करू प्रचार ॥ ( ६ ) देवनयी जरथुस्त महाला. कन्फ्यूमियम नीति - दातार । नकल महात्मा वद्य मुझे हों विधुता के अवतार ॥ मन्दिर जाऊ मसजिद जाऊ. जाऊ गिरजावर के हार | सब मे हे भगवती अहिंसा लगा नत्य प्रभु का दीर ॥ ( सर्वजाति-समभाव ) ( ७ ) जातिपोनि का रक् कुटकी . की उच्चनीचता भट्ट कोई रहे स्वार्थहीन चेक को सम् स्वार्थ-भूत्ति पर पीडक की ही. मी ( ८ ) किसी गम नहीं नूरु से भी न [ ३९ । मोनाना का बनूं जा जर उ ॥ • । सर्वन एक ग ॥ भीनीन । ॥ • Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० ] सत्य संगीत पतित हो कि हो दीन सभी में, सत्य धर्म का करू प्रचार । स्वय न छीनू छनिने न दू, जन्मसिद्ध सबक अधिकार ।। ठेका हो न वर्म कार्यों का, कर दू मैं इसको नि शेप । गुण का आदर रहे जगत में, करे न ताडब कोई वेप ॥ (१०) प्रेम की न हो सीमा मेरे , ग्राम प्रान्त कुल जाति स्वदेश ।. विश्व देश हो, मनुज जाति हो, हो न क्षुद्रता का लवलेश ॥ जिवर न्याय हो उधर पक्ष हो, हो विपक्ष मे अत्याचार । पीटित जन बान्धव हों मेरे , उनसे कम हृदय से प्यार ॥ (११) नर नारी का पक्ष नहीं हो, मान दोनों के अधिकार । करें परस्पर त्याग सर्वदा, हो न किसी को कोई भार ॥ प्रतिद्वदिता रहे न उनमें, दो तनपर हो जीवन एक । रंग एक ही टग एक हो, स्वार्थो का न रहे अतिरेक ॥ (नीतिमत्ता) (१२). मित्र मात्र मत्यम्य जनों पर, करन योटा भी अन्याय । न्यारमार्ग के रक्षण में ही, तन मन धन जीवन लग जाय। मकट जगत की मुष माता में, मन में अपना कल्याण । ज्या वर ग्न हो गवन की, यहा लगा दू अपने प्राण ॥ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भानवा गीत [४१ (१३) करुगाशील हृढय हो मेरा, रहू सदा हिसा से दूर । दिल न दृग्वाऊ कभी किमीका, किसी तरह भी वन न क्रूर ।। जिऊ जगत को भी जीने दू पालन करू सदा यह नीति । सौम्यरूप हो सब कुछ मेरा, मुझने हैं। न किसी को भीति ॥ विविध कष्ट मह कर भी वोलू, सदा सभी से सच्ची बात । कभी न वचित करू किसाको, हो न कभी कटुवचनाघात ॥ कोमल प्रेमजनक शब्दो का, हो मुझसे सवढा प्रयोग । करू न मैं अपमान किसी का, और न हो गाली का रोग ॥ (१५) चर्यि-वासना से थोडे भी, परवन को न लगाऊ हाथ । प्रगट या कि अप्रगट रूप मे, द न कभी चोरो का साय ॥ न्यायमार्ग से जो कुछ पाऊँ, उसमे रहे पूर्ण सतोष । अटल रहे ईमान सर्वदा, निर्वनता मे भी निर्दोप ।। (१६) जीवन अतिपवित्र हो मेरा, दूर रहे मुझसे व्यभिचार । प्रेम रहे, पर प्रेम नाम पर, हो न हृदय यह पापागार ॥ नारी पर दर्दृष्टि नहीं हो, हो तो ये आँखें दू फोड । अगर कुचेष्टा करे हाथ तो, द इनकी हड्डियाँ मरोड ॥ (१७) धन सयम पालन करने को करू लालसाओ को चूर । वभव में न महत्त्व गिनू मैं, रहू सदा धनमद से दूर ॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ ] सत्य संगीत 14 संग्रह की न लालसाएँ हों, पाऊं वन करदू मैं दान । साथ न आना साथ न जाता, फिर क्यों सग्रह क्यों अभिमान ।। आत्मसंयम (१८) पागल बना न पावे मुझका, जीवन-गत्र दुष्टतम क्रोध । क्षमा भाव हो सब पर मेरा, कल कुपथ का मैं अवरोध ॥ बनू पाप का ही वैरी मै, पापी को समझू बीमार । जिस की जैसी बीमारी हो, उसका वैसा हो उपचार ॥ बल यश बुद्धि विभव सुन्दरता कुल आदिक का न रहे मान । विनय-मूर्त होने को समझ, गौरव की सच्ची पहिचान ॥ आन्न-प्रशसा करू न मढवा ईया से मै कल न हाय । कभी न यह चरितार्थ कहं मैं, 'अधजल गगरी छलकत जाय। (२०) हं दम्भ से दर मबदा. हो न तनिक भी मायाचार । टोगों को निर्मूल कर मै. माया-शून्य रहे आचार ॥ स्वाति लाभ के लालच मे में, नहीं कर झटा नप त्याग । अन्य टोंग या चकता में. थोडा भी न रहे अनुराग ॥ मन को निन्नति को. ममस गौच मे का मार । बनु बनाना सिर भी. कल न कृत अमृत चित्रार ॥ लिमाटीन बन्छ ग्यगयों को नमझं मोजन का मानान । गांव में अट लगाकर. कल नहीं पर का अपमान ॥ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावना गीत ( २२ ) सेवा करने में सहना हो, तौ भी रहू प्रसन्न हृदय मे, सार्थक कष्ट सहन को ही मैं, अन्य निरर्थक कष्ट सहन को, समझू मैं केवल व्यायाम || भूख आदि शारीरिक क्लेश । आने दून खेढ का लेश || समझू बाह्य तपों का काम । [ ४३ ~~~ ( २३ ) सच्चा तप है शुद्ध हृदय से कृत पापों का पश्चात्ताप | सेवा विनय ज्ञान से होता. सत्य तपस्याओ का माप ॥ वनू तपस्वी ऐसा ही मैं, स्वार्थहीन छल छद्मविहीन । स्वार्थ वृत्तियाँ नष्ट करू मैं रहू सदा सेवा मे लीन ॥ ( २४ ) हो न स्वाद - लोलुपता मुझमे, जिह्वा को करलू स्वाधीन | सरस हो कि नीरस भोजन हो, रहू सदा समता में लीन ॥ जीवित और स्वस्थ रहना हो, हो मेरे भोजन का ध्येय । सकल इन्द्रियाँ हों वश मेरे, सकल दुर्व्यसन हो अज्ञेय || विश्वप्रेम (२५) दुखित जगत के ऑसू पोछ्रे, हो सदैव यह मेरी चाह । दुनिया का सुख हो सुख मेरा, दुनिया का दुख अश्रु-प्रवाह ॥ दुखित प्राणियों की सेवा मे, मरते मरते करूं न आह । कॉटों मे बिछ कर भी दूं मै, पथ-हीन जनता को राह ॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४] सत्य सगात (२६) भूखे को भोजन सदैव दूं, प्यासे को पानी का दान । गुरुपन का अभिमान न रखकर, दू भूले भटके को ज्ञान ॥ सेवा करू सदेव दीन की, रोगी को दू औषध पान । पीडित जन ' के सरक्षण मे, हो मेरा जीवन कुर्वान ॥ (२७) जग की माया जग की समझू, पाऊ तो करदू मैं' त्याग । रह अकिंचन सा बनकर मै,तृष्णा का लगाऊ दाग ॥ सुग्व दुग्व में समता हो मेरे डस न सके भयरूपी नाग। मरने की न भीति हो मुझको, जीने का न अन्ध अनुराग ॥ (२८) मैत्री हो समस्त जीवों मे, विश्वप्रेन का वनू अगार । गणियों में प्रमोद हो मेरा, हो उनका पूजा सत्कार ।। पर दुखको निज दुख सम समझू, दुखित जीव पर हो कारुण्य । दुर्जन पर माव्यस्थ्य भाव हो, समझू में सेवा मे पुण्य ॥ कर्मयोग रह सढा उद्योगी बनकर, कर्मयोग हो जीवनमत्र । कर सभी कर्तव्य किन्नु हो, हृदय वासना-हीन स्वतन्त्र । अकर्मण्य बनकर न करू मै, ख्याति लाभ पूजा का त्याग ॥ वेष दिखा कर हो न त्याग के, नाटक मे मुझ को अनुराग ॥ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावना गीत [ ४५ ww www M WWW AMA ( ३० ) छोटा सा यह जीवन मेरा, हो न किसी के सिर पर भार । रह परिश्रमशील सर्वदा, श्रम को कहू न सह न सकू दुर्बल दीनों पर, वलवानो के तत्पर रहू न्यायरक्षण मे, हरता रहू सहा ( ३१ ) पापाचार | अत्याचार | | भूभार ॥ कापरता न फटकने पावे, बनू मोत से निर्भय बीर । प्राण हथेली पर लेकर मैं, बहू रहू विपदा मे धीर ॥ विरत विरोध उपेक्षा मिलकर, कर न सके साहसका नाश । कर न सके असफलताएँ भी, कार्यक्षेत्र मे मुझे निराश । ( ३२ ) पुरुषार्थ । परमार्थ ॥ धर्म अर्थ हो काम मोक्ष हो, रक्खू मै चारों एकागी जीवन न वनाऊ, सकल - समन्वय है सभी रसो का समय समय पर करता रहू उचित उपयोग | करुणा वीर हास्य वत्सलता, सब का निर्विरोध हो भोग || ( ३३ ) दुनिया की नाटकाला में, खेल सभी तरह के खेल । लेकिन पाप न आने पात्रे, हो न सुधा मे विनका मेल || कर्मों मे कोशल हो मेरे हो सत्र चिंताओ का अन्त । मुखमुद्रा कैसी भी हो पर, रहे हृदय मे हास्य अनन्त ॥ ( ३४ ) रहू अहिंसा की गोदी में, सत्य करे लालन न्याय नीतियों के कर तल पर, हो सदैव पालन मेरा । नेरा ॥ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ ] सत्य-संगीत सत्य अहिंसा की सन्तति वन, परहित और न्याय - रक्षण कर शुद्ध मनुष्य सत्यभक्त बन www मै 1 कहाऊ जाऊ मै ॥ क्या सत्य अहिंसाको पाया तो, और रहा तब पाना क्या रे, उनका गाया गान अगर तो, और रहा फिर गाना क्या रे || [ १ ] " सर्वधर्मसमभाव न सीखा, तो फिर मीस सिखाना क्या मत्र की जाति समान न देखी, तो फिर प्रेम दिखाना क्या रे ॥ [ २ ] जो न सुधारक तू कहलाया, तो मुखिया कहलाना क्या रे, मन को जो न कभी नहलाया, तो तनको नहलाना क्या रे ॥ [ ३ ] अन्याय पर की न चढाई, तो फिर वह चढाना क्या है, मणको जो ना तो फिर टाट बढाना क्यारे ॥ [ 2 ] हगि . और रहा मरजाना क्या र. प्रेम भगत और हार जाना क्यारे ॥ , Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावना गौत [४७ wwwww W [५] हिन अनहित पहिचान न पाया, तो जग को पहिचाना क्या रे, दुखियों की कुटियों न गया तो, फिर मदिर का जाना क्या रे॥ परदुख में आँसू न वहाये, निज दुख देख बहाना क्या रे, सेवक जो जग का न कहाया, तो भगवान कहाना क्या रे ।। [७] दखियों के मन पर न चढा तो, तीर्थों पर चढ जाना क्या रे, विपदा में हँसना न पढा तो, पोथों का पढ़ जाना क्यारे । [८] कायरता यदि हट न सकी तो, निर्बलता हटजाना क्या रे, कर्मठता यदि घट न सकी तो तन बल का घट जाना क्या रे।। [९] कर कर्तव्य न पाठ पढाया, बक बक पाठ पढाना क्या रे, जीवन ढेकर सिर न चढाया, तो फिर भेंट चढाना क्या रे॥ [१०] मुखदुख में समभाव न जाना, तो जीवनमें जाना क्या रे, जो न कला जीवन की आई, तो दुनिया में आना क्या रे ॥ [११] जो मन की कलियाँ न खिली तो यौवनका खिल जाना क्यारे, सत्येश्वर की भक्ति मिली तो, ईश्वर में मिल जाना क्या रे॥ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८] सन्य संगीत राम निमंत्रण है राम विपत पर रानवाण बनजाओ । भभार-हाण के लिय वरा पर आओ ।। मभार वटा है, पाय बटे जाते है। उन्याचागे कनादत्र दिनयत है ।। दृजन द स्वार्थी पार इठलान है। सन्न पगसान न पान॥ आगे अन्नाग का गिनाया कराओ। भार-हण रवि वग पर आओ। नलिस्ट को बताया तमंन । बन-बनने । :: : Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MA राम - निमंत्रण vv Mvwwv " ( ३ ) नारी आज पद-दलित हुआ जाता है । दाम्पत्य-प्रेम पदपद ठोकर खाता है । भ्रातृत्व और मित्रच न दिखलाता है । सज्जनता पर दौर्जन्य विजय पाता है । अन्धेर मचा है आओ इसे मिटाओ । भूभार-हरण के लिये धरा पर आओ || ( ४ ) दुर्दैववादने पौरुप मार हटाया । भीरुत्व, दया का छद्म-वेप घर आया । कायरताने जडता का राज्य जमाया । हममे उत्तरदायित्व नही रह पाया ॥ आओ हमको पुरुषार्थी वीर बनाओ । भूभार-हरण के लिये, धरा पर आओ || (५) नैतिक मर्यादा नष्ट होरही सारी । वन रहा जगत है, केवल रूढि पुजारी । सदसद्विवेकमय बुद्धि गई है मारी । है तमस्तोमसा व्याप्त दृष्टि- अपहारी ॥ तुम सूर्यवश के सूर्य प्रकाश दिखाओ | भूभार-हरण के लिये वरा पर आओ || [ ४९ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० ] सत्य संगीत विपढाऐं अपना भाग-रूर बतलाती। मन-मन्दिर में भारी समान मचाती । ताडव दिखलाती फिरती हैं मदमाती। धीरज विवेक बल तहस नहन कर जाती ।। आओ जगल में मंगल हमें सिखाओ। भुभार-हरण के लिये परा पर आओ ॥ ये विद्यारह है जाट अमग्न्य प्रलोभन । है लूट रहे नव दिवाकर जदयन । निमल बात है. वर्तव्य चिरन्नन । करते हैं ये उदेस्य-हीन चल मन । आओ प्रयभना को अब मार हटाभ। अमर-हरण के निर. रा पर आओ। तुम मर अहंमा के हो पुत्र दुर्ग। नगटगों के प्यारे ।। तुम र अनिबार। नियन के । का जनाओ। दु Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महात्मा राम महात्मा राम नैतिकता की मर्यादा पर सर्वस्त्र दान करनेवाला । जगल में भी जाकर मगल का नव-वसन्त भरनेवाला ॥ हँसते हँसते अपने भुजबल से दुग्व- समुद्र तरनेवाला । तू मर्यादा पुरुषोत्तम था संसार-दु.ख हरनेवाला ॥ (२) तू सूर्यवंश का सूर्य रहा जगको प्रकाश देनेवाला । अवतार वीरता का या तू दुखियों की सुध लेनेवाला ॥ यद्यपि तु रघुकुलदीपक था पर सबका नयन सितारा था। वयन कुलजाति न था तुझको तू विश्व मात्रका प्यारा था ।। तुझको जसा सिंहासन या वैसी ही वनकी कुटिया थी। जैसा सोनेका पात्र तुझे वैसी नॉवेकी लुटिया थी ।। तेरा था भोगी वेप मगर भीतर से या योगी सच्चा । तृ अग्नि-परीक्षाओं में भी पडकर न कभी निकला कच्चा॥ तेरा पत्नीत्रत सतीजनों के पातिव्रत्य समान रहा । तुझको प्रेमीके साथ पुजारी बनने का अरमान रहा ।। सीता बिजुड़ी अथवा त्यागी तुझको उसका ही ध्यान रहा। ऋपि ब्रह्मचारियों से भी बढ़कर था तेरा ईमान रहा ।। Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ ] सत्य-संगीत तू था मनुप्यता का पूजक या सारा जगत समान तुझे । तेरा बधुत्व विशाल रहा सम थे लक्ष्मण हनुमान तुझे ॥ केवट हो, कपि हो, शबरी हो तने सबको अपनाया था। जो जो कहलाते थे अनार्य छाती से उन्हें लगाया था । शबरी के जूठे बेर ग्रहण करने में नहीं लजाया था । नने पवित्रता गोत्र वर्म बस प्रेम-भक्ति में पाया था । कुल जातिपाति या उच्चनीच सबका रहस्य समझाया था। मानव का धर्म मिखाया या कुलमद को मार भगाया था। नने राक्षसपन नष्ट किया पर राक्षम नृपति बना था। मत्राट बना था पर तने साम्राज्यवाद ठुकराया था । दर्जनता के क्षालन में तु सजनता के लालन ने न । भगवती अहिंसा के टोना स्पोक परिपालन में तृ॥ मर मिटने को नगार ग्हा अन्याय अगर देखा नुने ॥ गयान मत्स का ही दुनिया का मचा बल लेग्वा नन । गनमताका नरनारमिन्ट जिमका असंख्य दल बल इलया। निगगर था कि तुझे अपने ही हाथों का बल था । पर निगमगर उठा अन्यार नहीं करने दगा । नागरगर मिटे गम पर साय नही मान दंगा ।। Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महात्मा राम जगकी पवित्रतम वस्तु सतीकी लाज नहीं हरने दूंगा। अत्याचारी दुष्टो से मैं पृथिवी न कभी भरने दूंगा । भजवलका कछ अभिमान न था वैभव भी तुझ न प्यारा था । भय न था लालसा थी न तुझे त निर्भयता की वारा था । भगवान सत्यने वरद हस्त तेरे ऊपर फैलाया था। भगवती अहिंसाने अपने अचल में तुझे बिठाया था ।। विजयी बनकर साम्राज्य लिया फिर भी वनवासी बना रहा। लकाको ठुकराया तूने तू अनासक्ति में. सना रहा ॥ सर्वस्व त्याग करने में भी तूने न तनिक सकोच किया । , जनता-रजन मर्यादा के रक्षणको तूने क्या न दिया । कर्तव्य-यज्ञ की वेदीपर सीता का भी बलिदान किया । आँखों में आसू भरे रहे पर मुखको कभी नन्लान किया । तूने अपना दिल मसल दिया दुनियाके हित विषपान किया । तू सच्चा योगी बना रहा जीवन सुखका अवसान किया । (१३) आदर्श पुत्र था, त्यागी था, सेवा ही तेरा वर्म रहा । तूने विपत्तियों की वर्षाको हँस हँसकर सर्वदा सहा । पुरुषोत्तम और महात्मा तू घर घरमें ख्याति हुई तेरी । तेरे पद-चिह्न मिले मुझको इच्छा है एक यही मेरी ॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ ] सत्य-संगीत राम दिखा दो अपनी झाँकी राम ! कायर मनमें साहस ललढो, वैभवका कुछ त्याग सिखाटो, दुखमें भी हँसना सिखलादो, हो जीवन निष्काम, दिखादो अपनी झॉकी राम ॥ १ ॥ मरुथलमें भी जल बरसाठी, निर्वलमें भी बल वरसादो, जंगल में मंगल वरसाना । जीवन दो सुखधाम, दिखा दो अपनी झाँकी राम ॥ २ ॥ दे दो अपनी करुणा का कण, सीख सकें पूरा करना प्रण, रहे न कोई जग में रावण | रहे न जीवन श्याम, दिखा दो अपनी झाँकी राम ॥ ३ ॥ मर्यादा पर मरना सीखे, विपदाओं को तरना सीखें, दुनिया का दुख हरना सीखें | लेकर तेरा नाम, दिखादो अपनी झाँकी राम ॥ २ ॥ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _वंशीवाले [५५ शीकाले वगीवाले तनिक सुनाजा दुनियाको वशी का तान ॥ (१) जीवनमे रमधार वहाजा । सकल-रसोका सार बहाजा । तार तारमें प्यार बहाजा । हो पूरे अरमान ॥ चंगीवाले तनिक सुनाजा दुनियाको वंगी की तान ।। (२) सकल कलाओं का तू स्वामी । धर्मी अर्थी मोक्षी कामी। सत्य अहिंसा का अनुगामी । नामी कृपा-निधान ॥ वशीवाले तनिक सुनाजा दुनियाको वशी की तान || पत्थर सा यह दिल पिघलाजा । ज्वलित नयन से नीर बहाजा । युग युग की यह प्यास बुझाजा। करें सुधाका पान ॥ ' घंशीवाले तनिक सुनाजा दुनियाको वशी की तान ॥ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ ] Nv सत्य संगीत wwwmm ( 8 ) यह जीवन रस- हीन वने जब । शोक सिन्धुमे लीन बने जब । अकर्मण्यताधीन वने जब । हो तव तेरा ध्यान || वशीचाले तनिक सुनाजा दुनियाको बशी की तान ॥ (५) बाहर जब होली मचती हो । घरमें तव वसन्त रचती हो । त्रिपदाओं में भी नचती हो । मनमोहन मुसकान || वीवाले तनिक सुनाजा दुनियाको वशी की तान ॥ ( ६ ) अमर सत्य-संगीत सुनाजा । प्राणोंको पीप पिलाजा | तान तानमें रस वरसाजा । आजा कर रसदान ॥ चगीवाले तनिक सुनाजा दुनियाको वंशी की तान ॥ (७) मेरे मन-मन्दिर में आजा | मेरा हा तार बजाजा । मुना हृदय सजाजा गाजा । कर्मयोग का गान || शीले तनिक सुनाजा दुनियाको वंशी की तान ॥ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महात्मा कृष्ण ... .. महात्मा कृष्ण [५७ महात्मा कृष्ण तु था जीवन का रहस्य दिखलानेवाला कर्मों में कांगल्य-पाठ सिखलानेवाला ॥ योग भोगका सत्य समन्वय करनेवाला । सूखे जीवन में अनन्त रस भरनेवाला ॥१॥ सच्चा योगी और प्रेम-पथ पथिक रहा तू । विषयवासनाके प्रवाह में नहीं वहा तू ।। नयी प्रीति की रीति योगके संग सिखाई । मानों अम्बुदवृन्द सग चपला चमकाई ।। २ ॥ जब समाज की दशा होरही थी प्रलयकर । अत्याचारी दुष्ट बने थे भूत भयकर ।। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८] सत्य संगीत मातपिताको पुत्र केदखाना देता था । बहिन-बेटियो का सुहाग भी हर लेता था ॥३॥ लवल का या राज्य नीति का नाम नहीं था। ये पेटाएं लोग, सत्यसे काम नहीं था। सभ्यजनों मे भी न मान महिला पाती थी। जगह जगह वीभन्स वासना दिखलाती थी ॥ ४ ॥ ऐसा कोई न या समस्या जो सुलझाता । दिग्विमूह मानव समाज को पथ बतलाता ॥ न्यय और सत्य की विजय को जान लडाता । पीडित की सुनकर पुकार जो दोडा आता ॥५॥ लाखों ऑखे वाट देखती थी तब तेरी । उनको होती थी असह्य क्षण क्षणकी ढेरी ॥ अगणित आहे रही वाप्यमय वायु बनाती । कर करुणा सचार हृदय तेरा पिघलाती ॥६॥ तू अदृश्य था किन्तु बुलाते ये तुझको सब । कहता था ससार 'अरे आवेगा त कव' ? 'कत्र जीवन की कला जगत् को सिखलावेंगा ? मन्य अहिंमाका पुनीत पथ दिखलावेगा ॥७॥ आग्विर आया, ईई भयकर वत्र गर्जना । दहल उटे अन्याय. पाप की हुई तर्जना ॥ दुखी जगत् को देख सभीको गले लगाया । आखिर तु रो पना, हृदय नेग भर आया ॥ ८॥ ! " Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 724 wwww १ महात्मा कृष्ण ^^^^^ m ~www را मिला तुझे भगवान सत्यका धाम दु खहर । मन ही मन भगवती अहिंसाको प्रणाम कर ॥ मॉगी तूने छोड, स्वार्थमय सारी ममता । दुखी जगत् के दुःख दूर करने की क्षमता ॥ ९ ॥ दिव्य नेत्र खुल गये दुःखका कारण जाना । जीने मरने का रहस्य तूने पहिचाना ॥ दुष्ट - नाश-सकल्प हृदय में तूने ठाना । तूने निश्चित किया सत्य-सन्देश सुनाना ॥ १० ॥ [ ५९ *^^* कर्मयोग सगीत सुनाया तूने ज्यो ही । सकल मानसिक रोग निकलकर भागे त्यों ही ॥ किंकर्तव्यविमूढता न तव रहने पाई । अकर्मण्य भी कर्मपाठ सीखे सुखदाई ॥११॥ सर्व-धर्म-समभाव हृदय में धरके तूने । सब धर्मो का सत्य समन्वय करके तूने ॥ मानव मनके अहकारको हरके तूने । मनुष्यता का पाठ दिया जी भरके तूने ॥ १२॥ यद्यपि जगको सदा सत्य-सन्देश सुनाया । पर दुष्टों के लिये सुदर्शन चक्र चलाया ॥ दूतसूत ऋषि विविध रूप अपना बतलाया । जहाँ जरूरत पड़ी वहाँ तू दौडा आया || १३|| तू छलियोको छली, योगियोंको योगी था । था क्रूरोंको क्रूर, भोगियोको भोगी था । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० ] WW सत्य-संगीत निज निजके प्रतिबिम्ब तुल्य तू दिया दिखाई || मानों दर्पन-प्रभा रूप तेरा घर आई ||१४|| 617 NAMAN मुरली की ध्वनि कहीं, कहीं पर चक्रनुदर्शन । कहीं पुष्पसा हृदय, कहीं पर पन्यरसा मन ॥ कहीं मुक्त संगीत, कहीं योद्धाका गर्जन । कहीं डाँडिया रास, कहीं दुष्टोंका तर्जन ॥१५॥ कहीं गोपियों सग प्रेमका शुद्ध प्रदर्शन | भाई बहिनों के समान लीलामय जीवन || कहीं मल्लसे युद्ध कहीं बच्चोंसी बातें | बालक लीला कहीं, कहीं दुष्टों पर धातें ॥ १६ ॥ कहीं राजके भोग कहीं पर सूखे चावल । कहीं स्वर्णप्रासाद कहीं विपदाओं का दल || कहीं मेरु सा अचल कहीं बिजली सा चंचल | वस्त्र भिखारी कहीं, कहीं अवलाका अचल ॥१७॥ कहीं सरलतम-हृदय कहीं पर कुटिल भयकर । कहीं विष्णुसा शान्त कहीं प्रल्येश्वर शकर ॥ कहीं कर्मयोगेश जगद्गुरु या तीर्थंकर । दुर्जनका यमराज सज्जनों का क्षेमकर ||१८|| मानव जीवन के अनेक रूपोंका स्वामी । सत्यदेव भगवती अहिंसाका अनुगामी || अगणित ज्ञान रत्न ये विश्वको दिये । मुझको बस तेरे अखड पदचिह्न चाहिये ॥ १९ ॥ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माधव www wwwwwwwwwww [६१ wun माधक पिता मेरी कुटीमें आना माधव, आना मेरे द्वार । सूरत तनिक दिखलाना माधव, आना मेरे द्वार । मत देखो मेरा रोना, देखो मत घरका कोना, मैं दूंगा तुम्हें विछौना, तुम मेरे मनपर सोना, फिर देना अपना प्यार | मेरी कुटीमें आना माधव, आना मेरे द्वार ॥१॥ यह खाट पडी है टूटी, विपदाने कुटिया लूटी, तकदीर हुई यों फूटी, अपनों की सगति छूटी, तुम हरना मेरा भार । मेरी कुटीमें आना माधव, आना मेरे द्वार ॥२॥ मुरली की तान सुनाना, गीता का गाना गाना, यों कर्मयोग सिखलाना, दुखियों को भूल न जाना । तुम करना बेडा पार । मेरी कुटी में आमा माधव, आना मेरे द्वार ॥३॥ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२] .. सत्य संगीत .... .... महावीराक्ततार (१) यद्यपि न किसी को ज्ञात रहा तू कब कैसे आजावेगा। अधी ऑखों के लिये सत्यका पढरज अञ्जन लावेगा ॥ अज्ञानतिमिरको दूर हटाकर नवप्रकाश फलवंगा। रोते लोगों के अश्रु पोछ गोटीमें उन्हें उठावंगा ॥ (२) तो भी अपना अश्चल पसार अबलाएँ ऊँची दृष्टि किये। करती थीं तेरा ही स्वागत अञ्चल में स्वागत-पुष्प लिये ॥ अधिकार हिने थे सब उनके उनको कोई न सहारा था। था ज्ञात न तेरा नाम मगर तू उनका नयन सितारा था। पशुओं के मुखसे दर्दनाक आवाज सदैव निकलती थी । उनकी आहोसे जगत् व्याप्त था और हवा भी जलती थी । भगवती अहिंसाके विद्रोही वर्मात्मा कहलाते थे। भगवान सन्यके परम उपासक पढपद ठोकर खाते थे। Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाबारावतार ___पशुओं का रोना सुनकर के पत्थर भी कुछ रो देता था। पर पढे लिखे कातिल मुल्का कत्र हृदय रस लिन था । था उनका मन मरुभमि जहाँ करणारत का या नाम नहीं । थे तो मनुष्य पर मनुष्यता से था उनको कुछ नाम नही ।। शूद्रोंको पूछे कोन जाति-मट में डुवे थे लोग जहाँ । वे प्राणी हैं कि नहीं इसमें भी होता था मन्दह वहाँ ॥ उनकी मजाल थी क्या कि कानम ज्ञानमत्र आने गं । यदि आव तो गोगा पिघलाकर कानान डाला जां॥ था कर्मकाडका जाल बिछा पड गय लोग थे बधन में । था आडम्बरका राज्य सत्यका पता न या कुछ जीवन में !! ले लिये गये ये प्राण धर्म कयी वस म की अचर्चा । सद्धर्म नामपर होती थी वम अन्याचारों की चर्चा ।। पशु अबला निर्बल शूद्र मूकआहोंसे तुझे बुलाते थे । उनके जीवन के क्षण क्षण भी वन्सर मम बनत जाते थे । तेरे स्वागत के लिये हृदय पिवलाकर अश्रू बनात थे। ऑखोसे अश्रु चढाते ये ऑग्ख पथ बीच बिछाने । (८) तूने जब दीन पुकार मुनी सर्वस्त्र छोडा दौट आया । रोगीने सच्चा वैद्य दीनने मानो चिन्तामणि पाया | Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ ] www सत्य-संगीत तू गर्ज उठा अत्याचारो को ललकारा, सत्र चौंक पडे । सब गूँज उठा ब्रह्माड न रहने पाये हिंसाकाड खडे ॥ ( ९ ) पशुओंका तू गोपाल बना पाया सबने निज मनभाया । तूने फैलाया हाथ सभीपर हुई शान्त शीतल छाया || फहराठी तूने विजय वैजयन्ती भगवती अहिंसा की । हिंसाकी हिंसा हुई सहारा रहा नहीं उमको बाकी || ( १० ) V VA mwwwww wwww सारे दुर्बन्धन तोडफोड दुष्कर्मकाड सब नष्ट किया । भगवान सत्यके विद्रोहीगण को तूने पदभ्रष्ट किया || भगवती अहिंसाका झडा अपने हाथों से फहराया 1 तू उनका वेटा बना विश्व तत्र तेरे चरणों में आया ॥ ( ११ ) ढोंगी स्वार्थी तो 'धर्म गया, हा धर्म गया ' यह चिल्लाने । तेजस्वी रविके लिये कहे कुवचन धूताने मनमाने ॥ लेकिन तूने पर्वाह न की ढोंगों का भंडाफोड किया । सदसद्विवेक का मत्र दिया भगवान सत्यका तत्र दिया || ( १२ ) तू महावीर था वर्द्धमान था और सुधारक नेता था । तू सर्वधर्मसमभाव विश्वमैत्रीका परम प्रणेता था । भगवान सत्यका बेटा था आदर्श हमारे जीवन का । तेरे पदचिह्न मिलें मुझको वरदान यही मेरे मनका ॥ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महात्मा महावीर [६५ no now nu am summummum non non - महात्मा महावीर महात्मन् , छोड़ कर हमको कहाँ आसन जमाते हो। अहिंसा धर्मका डका वजाने क्यों न आते हो ॥१॥ तुम्हारे तीर्थ की कैसी हुई है दुर्दशा देखो । बने हो कर्म-योगी फिर उपेक्षा क्यों दिखाते हा ॥२॥ परस्पर बंद होता है मचा है आज कोलाहल । न क्यों फिर आप समभावी मधुर वीणा बजाते हो ॥३॥ बने एकान्त के फल ये दिगम्बर और श्वेताम्बर । न क्यो अम्वर अनम्बर का समन्वय कर दिखाते हो ॥४॥ पुजारी रूढियों के हैं न है निष्पक्षता इनमे । इन्हें स्याद्वाद की शैली न क्यो आकर सिखाते हो ॥५॥ हुआ है जाति-मद इनको भरा मत-मोह है इनमे । न क्यों अब मूढता मद का वमन इनसे कराते हो ॥६॥ दुहाई ज्ञानकी देते बने पर अन्ध-विश्वासी । इन्हें विज्ञान की औषध न क्यों आकर पिलाते हो ॥७॥ अजब रोगी बने ये हैं गज़ब के वैद्य पर तुम हो । बने हैं आज ये मुर्दे न क्यो जिन्दे बनाते हो ॥८॥ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ ] सत्य-संगीत पधारो मन-मन्दिर मे वीर । आआ आआ त्रिशला-नन्दन, करते हैं हम तेरा बन्दन, सुनलो यह दुनियाका क्रन्दन, शीघ्र बंधाओ धीर । पधारो मन-मन्दिर में वीर ॥१॥ मानव है यह मानव-भक्षक, है भाई भाई का तक्षक, हो सब ही सब ही के रक्षक, दो ऐसी तदबीर । पधारो मन-मन्दिर में वीर ॥२॥ टूट गये है हृदय, मिला दो, स्याद्वादामृत, नाथ । पिला दो, मुर्दो का ससार जिला दो, खुल जाये तकदीर । पधारो मन-मन्दिर में वीर ॥३॥ सन्य-अहिंसा पाठ पढा दो, तपकी कुछ झाँकी दिखलादो, विगडों का संसार बना दो, दूर करो दुख पीर । पधारो मन-मन्दिर में वीर ||४|| Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुद्ध [६७ mwww momwomainiowwwmowww www . . . . . .mmroom कुछ उया-देवी के नव अवतार । शाक्य-बन्धु पर-जग का प्यारा , भूले भटकों का ध्रवतारा, बुद्ध, अहिंसा सत्य दुलारा, करुणा पारवार । ढयादेवी के नव अवतार ॥१॥ धन-वैभव का मोह छोडकर, आगाओ का पाश तोडकर, स्वार्थ-वासनाएँ मरोड कर, किया जगत् से प्यार । - दयादेवी के नव अवतार ॥२॥ सुख दुख में सम रहने वाला, पर-दुख निज-सम सहने वाला, निर्भय हो. सच कहने वाला, सत्य-ज्ञान भडार । दयादेवी के नव अवतार ॥३॥ करुणा से भींगा मन लेकर, दुखियो के दुख को तन देकर, चकराती नैया को खे कर, करना वेडा पार । दयादेवी के नत्र अवतार ॥४॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८] सत्य-संगीत महात्मा बुद्ध न तेरी करुणा का था पार । तू या मन्य-पुत्र तेरा या बन्धु अखिल ससार । न तेरी करुणा का था पार । निर्धन सधन और नर-नारी । मूट विवेकी जनता सारी । पशु पक्षी भी मुदित किये तब औरों की क्या बात । किये झूठ हिंमा आदिक पापोंके घर उत्पात ॥ किया पापों का भडाफोड । धर्म तव आया बन्धन तोड । मिटा दीन, दर्वल, मनुजों के मुख का हाहाकार न तेरी करुणा का था पार ॥१॥ न तेरी करुणा का था पार । करुणाशि ऊगा आलोकित हुआ निखिलससार । न० अवलाएँ अञ्चल पसार कर । वोल उठी आआ करुणाधर ॥ नृतन आगाओं से सबका फला हृदयोद्यान । रुग्ण जगत् न पाया तुझको सच्चे वद्य समान ॥ हुए आशान्वित सारे लोग । छूटने लगा अधानिक रोग । पृथ्वी उठी पुकार, पुत्र ! अव हरले मेरा भार । न तेरा करुणा का था पार ॥२॥ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ WWW AMAW महत्मा बुद्ध न तेरी करुणा का था पार । पशु अबला निर्बल शूद्रों की तूने सुनी पुकार । न० लाखों पशु मारे जाते थे । मुख में तृण रख चिल्लाते थे । ध्यान | कोई मानव का बच्चा था देता जरा न बढती श्री श्रोणितपी पीकर बस हिंसा की शान || मिटाये तूने हिंसाकाण्ड | दयासे गूँज उठा ब्रह्माड । क्रन्दन मिटा सुन पडी सत्रको वीणा की झङ्कार । न तेरी करुणा का था पार ॥३॥ न तेरी करुणा था पार । ढा दीं गईं सभी दीवालें रहे न कारागार । न तेरी ० जगमें बजा साम्यका डङ्का । मनकी निकल गई सब दम्भ और विद्वेष न ठहरे वही दीनता वहा जातिमद ऐसी उठी तरङ्ग ॥ हुआ झूठों का मुॅह काला । सत्य का हुआ बोलबाला | एक बार बज पडे हृदय-वीणाके सारे तार ॥ न तेरी करुणा का था पार ॥४॥ 44 शङ्का । चढा प्रेमका रङ्ग । [ ६९ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० ] सत्य संगीत श्मण कुछ आ बुद्ध श्रमण स्वामी तू सन्य ज्ञानवाला। त सत्य का पुजारी सच्ची जवानवाला ॥१॥ हिंसा पिशाचिनी जब ताडव दिखा रही थी। तू मात अहिंसा का आया निशानवाला ॥२॥ विद्वान लड रहे ये उन्माद ज्ञानका था । . बन्धुच प्रेम लाया तू प्रेम गानवाला ॥३॥ मुर्दा पडा जगत या सज्ञान प्राण खोकर । तृने उसे बनाया गतिमान जानवाला ॥४॥ दुख से तपे जगत में थी शान्ति की न छाया । तू कल्पवृक्ष लाया सुखकर वितान वाला ॥५॥ विष पी रहा जगत था सब भान भूल करके । तुने अमृत पिलाया तू अमृत पानवाला ॥६॥ मढ मोह आदि हिंसक पशु का बना शिकारी । तुने उन्हें गिराया तू था कमान वाला ॥७॥ है धर्म दुख ही में ' अज्ञान यह हटाया । अति' का विनाश कर्ता त मध्य यानवाला ॥८॥ सब राजपाट छोडा जगक हितार्थ तुने । आंबन दिया जगतको त् प्राण-दानवाला ॥९॥ नि पक्षपात वन कर सन्मार्ग पा सके जग । दुान दूर करके हो सत्य मानवाला ॥१०॥ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ^^^^^^ महात्मा ईसा [ ७: महात्मा ईसा अन्धश्रद्धाओं का था राज्य, ढोग करते थे ताडव नृत्य | ईश-सेवकका रखकर वेष, बने शैतान राज्य के भृत्य ॥ मचाया था सब अन्धाधुध पाप करते थे परम प्रमोद । " " हुआ तब ही ईमा अवतार, मात मरियमकी चमकी गोद ॥ १ ॥ प्रकम्पित हुआ दुष्ट शैतान हुआ ढोंगोका भडाफोड | मनुज सब बनने लगे स्वतंत्र, रूढियोंके दुर्बन्धन तोड ॥ जगत्‌का जागृत हुआ विवेक, सभीने पाया सच्चा ज्ञान । शुष्क पाडित्य हुआ बलहीन, शब्द - कीटोंने खोया मान ॥२॥ पुजारीकी पूजाऍ व्यर्थ, बनी थीं मृतकतुल्य निष्प्राण । व्यर्थ चिल्लाते थे सब लोग, चाहते थे चिल्लाकर त्राण ॥ मिटाया तूने यह सब शोर, शातिका दिया सभीको ज्ञान । ' प्रार्थना करो हृदय से बधु, न ईश्वर के है बहरे कान ॥३॥ दुःखको, समझ रहे थे धर्म, झेलते थे सत्र निष्फल कष्ट । वेषियों की थी इच्छा एक, किसी भी तरह अग हो नष्ट ॥ व्यर्थ जाता था मनुज शरीर, न था पर सेवासे कुछ काम । गदगी फैली थी सब ओर, न था सदसद्विवेकका नाम ॥ ४ ॥ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ ] सत्य संगीत तोड कर ऐसे सारे ढोंग, सिखाया तूने सेवाधर्म । प्रेमसे कहा-' यही है बन्धु, अहिंसा सत्यधर्मका मर्म ' ॥ रहा तू सारे झगडे छोड, रोगियोंकी सेवामे लीन 1 वेदनाओं से करके युद्ध, विश्वके लिये बना तू दीन ॥५॥ नाथा त अकी आँख, और बहिरे लोगो का कान | निहत्थे लोगो का था हाथ, पगुजनको था पाट-समान ॥ वालकों को था जननी-तुल्य, प्रेमकी मूर्ति अमित चान्सन्य । रोगियोंका था तू सद्वैद्य, दूर करदी थी सारी जन्य ॥६॥ 43/^^^^^^ दीन दुखियोंका करके ध्यान, न जाने कितना रोया रात । विताये प्रहर एक पर एक, अध्रुव मे किया प्रभात ॥ कटोरे सी जलसे परिपूर्ण, लिये अपनी आँखें सर्वत्र । दीन दुखियोंकी कुटियो बीच, सदा खोला सेवाका मंत्र ॥७॥ हृदय तय करके कठोर सही तूने दुष्टोकी मार । मानसे मिटा अभय हो वीर, कॉमका सहकर अत्याचार || आपदाओं से खेड, निकाली कभी न तूने आह । वही तो केवल इतनी बात, 'बन्धु' होते हो क्यों गुमराह' ||८|| पाकर मानवता पाठ, बनाई गुमराहोको राह | नरक जगत् न नाय, यहां भी मनमें चाह ॥ प्रेमानेनन्, हम के दिये ये प्राण | देवकर या ॥ ९ ॥ म Bea Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईसा rwwwwwA wr NAAMNAM WANAARAANWww. nnnn दिखा दे जन-सेवा की राह । दया चन्द्रिका को छिटकाकर, दुखियो के दुख मन मे लाकर, दीनों की कुटियों में जाकर, हरले जग का दाह । दिखादे जन-सेवाकी राह ।।१।। धर्मालय के ढोग मिटाने, हृदयो में पवित्रता लाने, सत्य-वर्म का साज सजाने, आजा मन के शाह । दिखादे जन-सेवा की राह ॥२॥ वन अधी ऑखो का अञ्जन, दीन-दुखी जन का दुखभञ्जन, कर दे तू उनका अनुरञ्जन, रहे न मनमें आह । दिखादे जन-सेवाकी गह ॥३॥ सर्व-धर्म-समभाव सिखादे, • सत्य अहिंसा रूप दिखादे, विश्वप्रेम सबके मन लादे, रहे प्रेम की चाह । दिखादे जन-सेवाकी राह ॥४॥ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ ] सत्य संगीत महात्मा मुहम्मद आ वीरवर मुहम्मद, समता सिखानेवाले । सप्रेम की जगत को, झॉकी दिखानेवाले ।। (२) तेरे प्रयत्न से थे, पत्थर पसीज आये । मरभूमि में सुधा की, मरिता बहानेवाले ॥ हैवानियत हटाकर, लाकर मनुष्यता को । वर समाज को भी, सजन बनानेवाले ॥ (४) होता मनुष्य यव था, जन धर्म के बहाने । तर प्रेम अहिमा का मर्गात गाना ।। बनर गहा जगा का, नान पुन रहा था। भान कर दी गटांनगद ॥ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महात्मा मुहम्मद [७५ (६) जग साध्य-साधनों का, जब सद्विवेक भूला । रिस्ता तभी खुदा से, सीधा लगानेवाले ॥ (७) जब व्याज बोझ बनकर, सबको सता रहा था । कहके हराम उसकी-हस्ती मिटानेवाले ॥ (८) धन पाप किस तरह है, इस मर्मको समझकर । व्यवहार मे घटा कर, जग को दिखानेवाले ॥ अबला गरीब जन की, जो दुर्दशा हुई थी। उसको हटा घटा कर, सुख शाति लानेवाले ॥ (१०) जग में असख्य अबतक, पैगम्बरादि आये । उनको समान कह कर, समभाव लानेवाले ॥ मजहब सभी भले हैं, यदि दिल भला हमारा । सब धर्म प्रेम-मय हैं, यह गीत गानेवाले ॥ (१२) समभाव फिर सिखाजा, सूरत जरा दिखाजा । फिर एक बार आजा, दुनिया हिलानेवाले ॥ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ ] सत्य-संगीत मुहम्मद था अनत्र बना वाना तेरा, तलवार इधर थी, उवर दया । जल-लहरी की मालाएँ थीं, जालाएँ थी, था रूप नया ॥ दुर्जन-दल भजक था पर न , जगका अनुरञ्जक प्रेम-सना। भीतर से था सच्चा फकीर, ऊपर से था पर शाह बना। (२) था माल खजाना तेरा पर, कोडी कोडी का त्याग किया । मालिक था, गुरु था, पर तून, मेवकता का सन्मान लिया ॥ विपदाओं के अगणित कंटक थे, तने उनको पीस दिया । तू मौत हथेली पर लेकर, भली दुनियाक लिय जिया। (३) नर-रत्न मुहम्मद, सीखी थी, तूने मरने की अजब कला । . तु बाइज था, पैगम्बर था, तूने दुनिया का किया भला ॥ अभिमान छुडाया था तूने, सबके मजहब को भला कहा । तू सर्वधर्मसमभाव लिये, भगवान सत्यका दूत रहा ।। दिखलादे त अपनी झाँकी, दुनिया में कुछ ईमान रहे । सप्रेम रहे मानव-मन में, भाईचारे का ध्यान रहे ॥ मजहब के झगडे दूर हटें, मजहब में सच्ची जान रहे। सब प्रेम-पुजारी बनें अहिंसक, जिससे तेरी शान रहे। Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनुष्यता का गान wwwwvvvanaavvamruaruWW~ मनुष्यता का गाना आओ मनुष्य बनजावें गावे मनुष्यता का गान । हम भूलें गोरा काला । जग हो न रग-मतवाला । हम पियें प्रेम का प्याला ॥ हम देखें मनका रंग और मुखके ऊपर मुसकान । आओ मनुष्य बनजावें गावें मनुष्यता का गान ॥१॥ हम जाति पॉति सब तोडे । हम सब से नाता जोडें । हम मत-मदान्धता छोडें ॥ न्दू अथवा मुसलमान सबका हो एक निशान । आओ मनुष्य बनजावे गावे मनुष्यता का गान ॥२॥ हमने मानव तन पाया । पर मानवपन न दिखाया । औदार्य विवेक गमाया । हम मनुष्यता के विना बने पडित, कैसे नादान । आओ मनुष्य बनजा। गावें मनुष्यता का गान ॥३॥ हो सारा विश्व हमारा । सबसे हो भाईचारा । हो हृदय न न्यारा न्यारा ॥ हम चलें प्रेम के पथ प्रेमका हो घर घर सन्मान । आओ मनुष्य बनजा गात्रं मनुप्यता का गान ||४|| Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ ] सत्य संगीत NPAN Www जागरण सोनेवाले अब जाग जाग । उदयाचल पर आये दिनेश-अणु अणु पर छाया किरण-राग ॥ सोने वाले अब जाग जाग ॥१॥ निशि गई गया अब तमस्तोम, फैला है भूतल पर प्रकाश । आखों की उलझन हुई दूर, हो रहा जगत का भ्रम-विनाश ।। दिख रहा कुपथ पथ का विभाग । सोनेवाले अब जाग जाग ॥२॥ जग की जडता होगई नष्ट, मचरहा यहा सब ओर शोर । है हुआ भोर भग रहे चोर, कल कल करते कलकण्ठ मोर ।। दिग्व रहे मनोहर विपिन बाग । मानवाले अब जाग जाग ॥३॥ अत्र गोल नयन करले विचार , कर्तव्य पथ दिग्यता अपार । टाना तुझको अमिन भार, जबरहिनन यम प्रार नार ।। जटना की सध्या त्याग म्याग । मन पराग गाथा Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नई दुनिया [७१ नई दुनिया दुनिया अब नई बनाना । यह जग हो गया पुराना ॥ फैला है इसमें रूढिजाल । दुर्जन रूपी हैं विकट व्याल । वचक चलते हैं कुटिल चाल । सजन होते बेहाल हाल ॥ पर हमको स्वर्ग दिखाना । दुनिया अब० ॥१॥ रोका जाता इसमें विकास । है व्यक्ति पा रहा व्यर्थ त्रास । बनता कायरता का निवास । विद्वेष घृणा है आसपास ॥ हमको है प्रेम बढाना । दुनिया अब० ॥२॥ यद्यपि है मानव एक जाति । पर घर घर में है जाति पॉति । भाई का भाई है अराति । जो था अधाति बन गया घाति ।। सबको है हमें मिलाना (दुनिया अब० ॥३॥ नारी है अव अधिकार-हीन । है पशु समान अतिहीन दीन । मानवता पशुता के अधीन । Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० ] } w सत्य-संगीत vv ^^^^^ पशुवल मे है सब न्याय लीन ॥ है यह अन्वेर मिटाना | दुनिया अव० ||४|| गोमुखयाधों की है कुटेक | पिसत समाजसेवी अनेक 1 है यहा अन्धश्रद्धातिरेक । कोसा जाता डटकर विवेक ॥ हमको विवेक फैलाना | दुनिया अव० ||५|| ash आपस में सम्प्रदाय | है एक-प्राण पर भिन्न -काय | करते हैं भाई का अपाय | व्यय बडा और घट रही आय ॥ समभाव हमें बतलाना | दुनिया अव० ||६|| मंदिर मनजिद गिरजे अनेक | मिलकर हो जाने एकमेक । छोटे अपनी अपनी कुटेक | जग जाये जनता का विवेक || कोई भी हो न निराना | दुनिया अब ||७|| सौभाग्य सूर्य हो उदिन आज | न नाउ । भगरनी अनि यस ॥ यस्तोमा से पर दिल्ला | दुनिया ॥टा Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेरी कहानी मेरी कहानी [ १ ] सुनता मेरी कौन कहानी | दीवाना कहती है मुझको यह दुनिया दीवानी || सुनता मेरी कौन कहानी || [ २ ] रस रस की बतियाँ न यहा है और न रूठी रानी । सूख गई अखियाँ वह वह कर सुखा उनका पानी । सुनता मेरी कौन कहानी || [ ३ [ है कर्तव्य कठोर बना है वालक मन भी ज्ञानी । दुनिया ऊँघे अथवा यूँके कर लूगा मनमानी ॥ सुनता मेरी कौन कहानी ॥ [ ४ ] किसे सुनाऊ गाल बजा नई बनेगी ऐसी कर दुनिया हुई पुरानी । सयानी ॥ दुनिया होगी परम सुनता मेरी कौन कहानी ॥ [ ५ ] छोड चलूग झूठी दुनिया अपनी हो कि बिरानी । मैं ही श्रोता रहूं मगर अब सच कहने की ठानी ॥ सुनता मेरी कौन कहानी ॥ [ ८१ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२] सत्य संगीत ~~m rammar ~ ~ rammar कुवके फूल कन पर आज चढाये फूल । जबतक जीवन था तबतक क्षणभर न रहे अनुकूल |कन पर ॥१॥ कणकणको तरसाया क्षणक्षण मिला न अणुभर प्यार । अब आँखोंसे बरसाते हो, मुक्ताओं की धार ॥ देह जब आज बनी है धूल । कन पर आज चढाये फूल ॥२॥ आज धूल भी अजन सी है, नयनी का शृङ्गार । काला ही काला दिखता था, तब हीरे का हार ॥ कल्पतरु भी था तब वंचूल । कब्र पर आज चढाये फूल ॥३॥ विस्मति के सागर में मरी. डवा रहे थे याद । नाम न लेते थे, कहते थे, हो न समय बर्वाद ॥ मगर अव गये भूलना भूल । कन पर आज चढ़ाये फूल ॥४॥ सदा तुम्हारे लिये किया था, धन-जीवन का त्याग । सींच सींच करके ॲसुओंसे, हरा किया था बाग ॥ मगर तब हुए फूल भी शल । कन पर आज चढ़ाये फूल ||५|| अब न कत्र में आ सकती है, इन फूलों की वास । मुझे शाति देता है केवल, यही कुन का घास ॥ शान्त रहने दो जाओ भूल | बज़ पर आज चढाये फूल ॥ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भुलक्कड़ wwww भुलक्कड़ ( १ ) भुलक्कड़ ! फिर भूला ! फिर भूला तू आज । कुपथ और पथका न ठिकाना | · शत्रु-मित्रका भेद न जाना । विपको अमृत, अमृत विप माना ॥ वन कर पागलराज । ॥ भुलक्कड़, फिर भूला तू आज ! ( २ ) परिवर्तन से डरता है तू । पर परिवर्तन करता है चलता नहीं घिसडता है तू । तू ॥ जत्र छिन जाता ताज । भुलक्कड, फिर भूला तू आज || ( ३ ) अहङ्कार ने राज्य जमाया । और अन्ध-विश्वास समाया ॥ मिली चापलूसों की माया ॥ हुई कोढ़ में खाज । भुलक्कड, फिर भूला तू आज ॥ [ ८३ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४] सत्य संगीत तुझे सत्य सन्मान नहीं है । अथवा तुझमें जान नहीं है। तुझको इसका भान नहीं है-- गिरती सिर पर गाज । भुलक्कड, फिर भला त आज ॥ (५) कोरी कट कट से क्या होगा? धन के जमघट से क्या होगा? घूघट के पट से क्या होगा ? जव न हृदय में लाज । भुलक्कड, फिर भूला तू आज ॥ फाँसी पर जिनको लटकाया । या निन्दा का पात्र बनाया । फिर उनके पूजन को आया ॥ ले पूजा के साज । भुलक्कड, फिर भला तू आज || तुझे सत्य का रूप दिखाने । . प्रेम और समभाव सिखाने । फिर जीवित समाज में लाने ॥ आया सत्य-समाज । भुलक्कड, फिर भूला तू आज ॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८५ मिटने का त्यौहार . मिटनेका त्योहार मिटने का त्यौहार । सखी, यह मिटने का त्यौहार । मन देना है, तन देना है, गिनगिनकर सब धन देना है, वैभवमय जीवन देना है, फिर देना है प्यार । सखी, यह मिटने का त्यौहार ।। [२] क्या लाये थे? क्या लेजाना ? सब दे जाना, शोक न लाना, पिसने को मँहदी बन जाना, लालीका भडार । सखी, यह मिटने का त्यौहार ।। [३] मानव-तुल्य स्वतत्र रहेंगे, मौत भले हो, सत्य कहेंगे, हँसते हँसते सदा सहेंगे, गाली की बौछार । सखी, यह मिटने का त्यौहार ॥ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ ] सत्य-संगीत [४] मुख ऊपर मुसकान रहेगी, और फकीरी शान रहेगी, नग्न सत्य की आन रहेगी, सेवामय ससार । सखी, यह मिटने का त्यौहार ॥ [५] मिट्टीमें मिल जाना होगा, अपना रूप मिटाना होगा, मिटकर वृक्ष बनाना होगा, होगा वेडा पार । सखी, यह मिटने का त्योहार ॥ [६] देना है जीवनका कणकण, यदि वाग्ना हो मिटने का प्रण, तो भेजा ह आज निमन्त्रण, करना स्वीकार । सपी, यर मिटने का न्योहार ॥ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज मेवक [८७ समाज सेवक (१) अपनी विपदा किस सुनाऊँ ? रोनेका अधिकार नहीं है, कैसे अश्रु बहाऊँ ? अपनी विपदा किसे सुनाऊँ ॥ (२) रुकी हुई वेदना हृदय मे, आँखों से बहने कोतरस रही है, तडप रहा है, हृदय दु.ख कहने को । पर मैं कहाँ सुनाने जाऊँ ? अपनी विपदा किसे सुनाऊँ ।। दिखलाता है क्षितिज किन्तु पथका न अन्त दिखलाता । चलना है, निशिदिन चलना है, है न क्षणिक भी साता ॥ कैसे अपना मन बहलाऊँ ? अपनी विपदा किसे सुनाऊँ ॥ अपने तनसे अधिक सीस पर भारी बोझ लदा है । है न सहारा कोई उस पर विपदा पर विपदा है ।। वोलो, कैसे पैर बढ़ाऊँ ? अपनी विपदा किसे सुनाऊँ ॥ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८] सत्य-संगीत कटकमय है मार्ग सब तरफ़, वापद हैं गुर्राते । जिनके लिये मर रहा हूँ मैं वे ही हैं ठुकराते ॥ मन में धैर्य कहाँ तक लाऊँ? अपनी त्रिपटा किसे सुनाऊँ ॥ लुटादिया सर्वम्व, बनाई जगके लिये भिखारी। अब तो लक्ष्मी को तलाक देने की आई वारी ॥ किसको अपनी दशा दिखाऊँ ? अपनी विपदा किले मुनाऊँ ॥ (७) भीतर चान्याएँ जलती है. उनमें ही बसना है । उनकना है अश्रु वहीं पर, फिर मुख पर हँसना है ॥ अपनी हंसी किसे समझाऊँ ? अपनी विपदा किंत मुनाऊँ ॥ विता ! आओ ! आओ !! करलो अपने करने की । अब तो एक मारना ही है, हम हैन कर मरने की ।। मकर विश्वग्रूप हो जाऊँ। अनि विदा दिने मुना।। - - . " Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठिकाना [ ८९ ठिकाना टिकाना पटते हो क्या ! हमारा क्या ठिकाना है ! मिट जो अपडी आग, निगा उसमे बिनाना है || ठिकाना पळते हो क्या० ॥१॥ अमरिमें न था हमना, गरीवी में न है रोना । जगन् चरता. चलेंगे हम, हमें क्या घर बसाना है । ठिकाना पडने हो क्या० ॥२॥ पटा कर्तव्यका पय है, भला विश्राम क्या होगा? न माना है न रोना में चलकर विग्याना है । ठिकाना पछते हो क्या० ॥३॥ विटाई म्वार्थ को दी फिर, हमाग क्या तुम्हारा क्या ? जमीं आ आसमाँ सारा, सदन हमको बनाना है ।। ठिकाना पृछते हो क्या० ॥४॥ जिसे तुम घर समझते हो, वही तुमको मुबारिक हो । हमारा क्या, हमें जगसे सदा नाता लगाना है | ठिकाना पूछते हो क्या० ॥५॥ करोडों मर्द है भाई, करोडों नारियाँ बहिनें । फकीरी है मगर हमको, कुटुम्बी भी कहाना है ।। ठिकाना पूछते हो क्या० ॥६॥ भले हो अग पर चिथडे, लँगोटी भी न साजी हो । . हमें तो गीलसे अपना, सदा जीवन सजाना है । ठिकाना पूछते हो क्या० ॥७॥ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९० ] सत्य-संगीत न कुछ भी सग लाये थे,चलेगा सगमें भी क्या । पडा रह जायगा यों ही, न आना है न जाना है। ठिकाना पूछते हो क्या० ॥८॥ प्रलोभन क्या लुभावेगा ? करेगी चोट क्या विपदा ? जगह वह छोड दी हमने, जहाँ उनका निशाना है ।। ठिकाना पूछते हो क्या० ॥९॥ न साढे तीन हाथों से, अविक कोई जगह पाता । पसारे हाथ कितने ही, मगर क्या हाथ आना है ? ठिकाना पूछते हो क्या० ॥१०॥ करेंगे दीन की सेवा, बनेगे विश्व-सेवक हम । दुखीजनके कटे दिलपर, हमें मरहम लगाना है ॥ ठिकाना पूछते हो क्या० ॥१२॥ करेंगी रूढियाँ ताडब अहकारी सतावेंगे । मगर उनके प्रहारों को, हमें मिट्टी बनाना है । ठिकाना पूछते हो क्या० ॥१२॥ बने जो मित्रजन कातिल, हमें पर्वा न है उनकी । हमारी यह तमन्ना है, कि अपना सिर कटाना है ।। ठिकाना पूछते हो क्या० ॥१३॥ न दुश्मन अब रहा कोई, हमारे दोस्त हैं सब ही । सभी के प्रेममय मन पर, हमे कुटिया बनाना है ।। ठिकाना पूछते हो क्या० ॥१४॥ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___मॅझदार [ ९१ मझझकार नौका पहुंची है मॅझवार । हूँ खेवटिया, डॉड नहीं है, टूटी है पतवार । नौका पहुँची है मॅझवार ॥१॥ इधर किनारा उधर किनारा, पर दोनों ही दूर । वीच बीचमे चट्टानें हैं, हो नौका चकचूर ॥ कैसे होगा वेडा पार । नौका पहुंची है मॅझधार ॥२॥ मगर मच्छ चहुंओर भरे हैं, यदि हो थोडी भूल । उलट पुलट तब सब हो जावे रहे न चुटकी चूल || उसपर दुनिया कहे गमार । नौका पहुंची है मॅझवार ॥३॥ वैभव की कुछ चाह नहीं है और न यम से भीति । केवल भीख यही है मेरी रहे तुम्हारी प्रीति ॥ दुख में करूँ न हाहाकार । नौका पहुची है मॅझधार ॥॥४॥ डूब न जाये मेरे यात्री करना उनका त्राण । जलदेवी को बलि देगा मैं अपने ही प्राण ॥ मेरे यात्री पहुंचे पार । नौका पहुँची है मॅझधार ॥५॥ - ve Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ ] Vvvv सत्य संगीत उसके प्रति ( १ ) बुझादे, मेरी ज्वालाएँ । दुख दुनिया देख न सकती स्वामी । समझ रहा तू अतर्यामी । नागिनकी लपलपी जीभ - सो ज्वाला-मालाएँ । बुझादे, मेरी ज्वालाएँ ॥ ( २ ) अपनी व्यथा अवश्य सहूँगा । 1330 अनल देव की किस प्रकार लिपटी ये बालाऍ ॥ बुझादे मेरी ज्वालाएँ ॥ (३) में हँसता हुआ रहूँगा । जलकर भी आवाढ करूँगा, तेरी शालाएँ । वुझादे, मेरी ज्वालाऍ ॥ स्कं Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झरना [ ९३ झरना बहादे छोटा सा झरना ॥ प्यासा होकर सोच रहा हू कैसे क्या करना ? वहादे छोटा सा झरना । (२) मरु-थल चारों ओर पड़ा है, बालू का ससार खड़ा है। बूंद बूंट की दुर्लभता मे, कैसे रस भरना ? वहादे, छोटा सा झरना ॥ नयन-नीर बरसाना होगा, मानस को भर जाना होगा, शीतल मद सुगध पवन से जगत्ताप हरना, वहादे, छोटासा झरना ॥ मेरी थोडी प्यास बुझादे, छोटासा ही झरना लादे। चमन बना दूगा इस मरु को भले पडे मरना, वहादे छोटासा झरना ॥ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ ] सत्य-संगीत Vvv wow ( २ ) में जल है पर मेरे काम १५५१४ प्यास ( १ ) तूही मेरी प्यास बुझा | अधिक नहीं तो एक बूँढ ही इस मुख में टपकाने । वही मेरी प्यास बुझादे | भूतल नहीं वह आता । गली गली का मैल वहा है मुख न उसे पाता ॥ मुखपर निर्मल जल बरसादे । वही मेरी प्यास बुझादे ॥ ( ३ ) “पानी में भी मीन पियासी सुनकर आत्रे हॉर्सी" पर तु मर्म समझता स्वानी, तू घट घट का आकर निर्मल नीर वासी ॥ पिलांडे | तू ही मेरी प्यास बुझादे ॥ ( ४ ) प्यासा जान भले ही जाये, चातक तुन्य रहुँगा पर न अशुद्ध नीरका कण भी इस मुखमें आपावे ॥ मेरा यह प्रण पूर्ण करादे | तुही मेरी प्यास बुझादे || Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आशा का तार आशा का तार अमर रह रे आशाके तार । तू टूटा तो दुनिया टूटी डूबा जग मॅझधार ॥ अमर रह रे आशाके तार ॥१॥ अटके रहते हैं तेरे में सारे जगके प्राण । घोर विपत मे भी करता है तू ही सब का त्राण || न होने देता जीवन भार । अमर रह रे आशाके तार ॥२॥ निधन सवन महात्मा योगी सवको तेरी चाह । तमस्तोममें भी दिखलाता रहता है तू राह ।। साधनो का है तू ही सार । अमर रह रे आशाके तार ॥ ३ ॥ . धन भी जाने जन भी जावे वन जाऊ असहाय । तू न टूटना, भले सभी कुछ टूटे जग वह जाय ॥ निराशा है जीवन की हार । अमर रह रे आशाके तार ॥ ४ ॥ - विपत विरोध उपेक्षा मिलकर करना चाहे चूर । तबतक क्या कर सकते जब तक तू है जीवनमूर ॥ विजय का तू अनुपम आधार । अमर रह रे आशाके तार ॥५॥ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्य संगीत क्या करूं? अगर सफलता पा न सकू तो, दुनिया कहती है नादान, विजयी बनू सफलता पाऊ, तो कहती है धूर्त महान ॥१॥ निंदक भ्रष्ट विरोधी जनको, क्षमा करू कहती कमजोर' इनको अगर ठिकाने लाऊ, तो कहती 'निष्करण कठोर ॥२॥ अगर कष्ट कुछ सहन करू तो, कहती है 'फैलाता नाम' वचा रहू यदि व्यर्थ कष्टसे, कहती है 'करता आराम' ॥३॥ दान करू तो कहने लगती, 'था कैसा यह सग्रह-गील, मुंह देखी बातें करता था, करता था सत्पथमें ढील ||४ दान न करू बोलती दुनिया, देता है झूठा उपदेश, त्याग सिखाता दुनिया भरको, अपने में न त्यागका लेश' ॥५॥ अगर फकीर बनू तो कहती, 'पेट-पूर्ति का खोला द्वार, दुनिया से वक्के खाकर अब, बन बैठा सेवक लाचार' ॥६॥ अगर र धन से स्वतन्त्र मैं, कहती है 'भरकर निज पेट, त्याग त्याग चिल्लाता रहता, करता भोलों का आखेट' ॥७॥ अगर प्रेम से बात करू तो, कहती 'कैसा मायाचार। अगर उपेक्षा करू जगत से, तो कहती 'मदका अवतार |८| अगर युक्तियों से समझाऊ, कहती 'युक्ति तक सत्य प्राप्त करने मे कैस, हो सकती है युक्ति समर्थ ॥९॥ .. .. व्य थे. Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ९७ अरे अगर भावना ही बतलाऊ, कहती 'कैसा खुद मुख्तार । त्रिना युक्ति के पागल जैसे, सुन सकता है कौन विचार' ॥१०॥ यदि सत्रका मै करूं समन्वय, कहती है 'कैसा बकवाद । एक बात का नहीं ठिकाना, देता है खिचडी का स्वाद ' ॥११॥ एक बात दृढता से बोलू, कहती 'ढीठ और मुँहजोर, सुनता हैं न किसी की बातें, मचा रहा अपना ही शोर' ॥१२॥ सोचा बहुत करूं क्या जिससे, हो इस दुनिया को सतोष, सेवा यह स्वीकार करे या नहीं करे पर करे न रोष ॥१३॥ सोचा बहुत नहीं पाया पय, समझा यह सब है बेकार, दुनिया को खुश करने का है यत्न मूर्खता का आगार ॥१४॥ जन्तु, खुदको प्रसन्न कर, जिससे हो प्रसन्न सत्येग । बकती है दुनिया बकने दे, ढककर रख तू कान हमेश ||१५|| सज्जन - दुर्जन-मय दुनिया में, होंगे कुछ सज्जन वीमान । आज नहीं तो कल समझेंगे, तेरा ध्येय और ईमान ॥ १६ ॥ अपरिमेय ससार पडा है, अपरिमेय आंवगा काल । उसमें कहीं मिलेगा कोई, जो समझेगा तेरा हाल ॥१७॥ चिंता की कुछ बात नहीं है कर्मयोग से करले कर्म । दुनिया खुश हो या नाखुश हो, होगा तेरा पूरा धर्म ॥१८॥ सच्चा यश रहता है मनमे, दुनिया की तब क्या पर्वाह । दुनिया का यश छाया सम है, देख नहीं तू उसकी राह ॥ १९ ॥ सत्य अहिंसाके चरणों मे, करदे तू अपना उत्सर्ग, तब तेरी मुठ्ठी में होगा, सारा सुयश स्वर्ग अपवर्ग ||२०|| क्या करूं 744 Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८ ] MANN सत्य-संगीत मेरी चाल [ १ ] कौन रोकेगा मेरी चाल । गर्दन कटे चलेगा धडभी, चमक उठेगा काल ॥ कौन रोकेगा मेरी चाल || [ २ ] चिपढाऍ आवेगी पथ में, होंगी चकनाचूर : तन पर मनको होगा, छुसकना भी दूर ॥ करूगा उन्हें हाल बेहाल | कौन रोकेगा मेरी चाल 11 N [ ३ ] अगर प्रलोभन भी आवेंगे, दूगा मैं दुतकार | कर दूंगा में एक एक पर, शत-शत पादप्रहार ॥ दूगा मैं उनका जाल । कौन रोकेगा मेरी चाल || तोड [ ४ ] अगर अध-श्रद्धा आवेगी, दूंगा दंड प्रचण्ड । कर दूगा मैं तोड फोड कर, खंड खंड पाखड || बनेगा सद्विवेक ही डाल | कौन रोकेगा मेरी चाल ॥ Page #111 --------------------------------------------------------------------------  Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० ] सत्य-संगीत उलहता कोमल मन देना ही था तो, क्यों इतना चैतन्य दिया । शिशु पर भूपण-भार लादकर, क्यों यह निर्दय प्यार किया ॥१॥ यदि देते जडता, जगके दुख हानि नहीं कुछ कर पाते । त्रिविध-ताप से पीडित करके, मेरी शान्ति न हर पाते ॥२॥ जडता मे क्या शान्ति न होती, अच्छा था जडता पाता । किसका लेना किसका देना, वीतराग सा बन जाता ॥ ३ ॥ अपयश का भय कर्तव्यों की रहती फिर कुछ चाह नहीं । तुम सुख देते या दुख देते, होती कुठ पर्वाह नहीं ॥ ४ ॥ Page #113 --------------------------------------------------------------------------  Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ ] सत्य संगीत विधवा के आँस अब इन अॅमुओं का क्या मोल ? बेशर्मी से भिंगा रहे हैं ये निर्लज कपोल । अब इन अंसुओं का क्या मोल ॥ १॥ उस दिन ये मोती से जब था सोने का समार । इन पर न्यौछावर होता या कभी किमीका पार ॥ झडते ये फूलों से बोल । अब इन असुओं का क्या मोल ॥ २॥ गगा यमुना सी बहती हैं इन ऑखों से वार । प्रेम-पुजारी गया, यहाँ जो लता गोता मार ॥ अब खोर जल की कलील । अब इन असुओं का क्या मोल ॥ ३॥ आते ये कभी न नांचे जो अचल की ओर । आज भिंगाने है वे भूतल, वन वर्या घनघोर ।। वन बन गली गली मे डोल | अब इन असुओ का क्या मोल ॥ ४ ॥ सारा जग अवा बन बैठा मानो ऑखें फोट । देख न ममता बहा रही क्या हृदय निचोड निचोड ॥ निदय । अब तो आँख खोल। अब टन अनुआ का क्या मोल ॥ ५॥ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विधवा के आंसू [१०३ कार मुंज अभागिन पाहता, कहता कोर्ड रॉट । मान ननंद कहने लगती है, 'बन बैठी है मांड ॥ निशि दिन मुनती बोल कुबोल | अन इन अंसुओं का क्या माल ॥ ६॥ अब न शान्टकी भी जन है आग गुडा-राज । घर घर में है चर्चा मेग गली गली आवाज ॥ बनता है निंदा का ढोल । अब इन अनुओं का क्या मोल ॥ ७ ॥ कान में बैठी रहनी है सब की सीग्व मग्वि । हमा टुकडा मिल जाना ज्या मिली कहीं से भीख ॥ जब सत्र करत मीज किलाल । अब इन असुओं का क्या मोल ॥ ८ ॥ वधक रही है भीतर भट्टी ऊपर अश्रु--प्रवाह । अरमाना का जला जलाकर बना रही हूँ 'आह' देवा भीतर के पट खोल । अब इन अनुओं का क्या मोल ॥ १ ॥ मुर्दे जलकर बुल कहाते पर मैं जीवित धूल । मवके निकट मोत रहती पर मुझे गई वह भूल || आजा तू ही मुझ से बोल । अब इन असओं का क्या मोल ॥ १०॥ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ सत्य संगीत चिता बालाओं का जाल बिछा है, है पर गान्ति-निकेतन । जलती हैं चिंताएँ सारी, शान्त यहा है तन मन ॥१॥ अब न मित्र का मोह यहा है, है न गत्र का भी भय । हू न किसीपर सढय-हृदय अब हू न किसीपर निर्दय ॥२॥ जीवन में क्षणभर भी ऐसी नींद नहीं ले पाया । सोता था मै नचता था मन, माया में भरमाया ॥३॥ 'इसका लेना उसका देना, यह मेरा वह तेरा। करता था, पर रहा न कुछ अव. लगा चिता पर डेरा ॥४॥ फलों की शय्या पर सोया बन जोडा दिल तोडा । भूला रहा काठकी गय्या, चार जनों का घोडा ||५|| इसे हराया उसे हराया बना रहा अभिमाना । पर यह जीवन हार रहा था, सीधी बात न जानी ॥६॥ इसका टूटा उसका खाया, अति लालचके मारे । लेकिन हाथ न कुछ भी आया. जाता हाथ पसारे ॥७॥ मानव का कर्तव्य भुलाया योंही दिवस विताय । बहती थी गगा पर मैंने हाथ नहीं वोपाये ॥८॥ खेला भा खल, खेल का मजा न कुछ भी आया। सूत्रधार यमराज अचानक आया खेल मिटाया ॥९॥ I, साथ पर चल न कुछ भी, साथ न था कुछ लाया। उस मिट्टीमें ही जाता , जिस मिट्टी से आया ।।१०।। Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माया माया जगकी कैसी है यह माया | जिसने जीवन भर भरमाया || ( १ ) निशिदिन जाप जपा ईश्वरका पर न हृदय में आया । धोखा देने चला उस पर मैने धोखा खाया || जगकी कैसी है यह माया ॥ ( २ ) था जीवनका वेट मगर में खेल न दिखला पाया । खेल ग्वेने गया मगर मैं रो रो कर भग आया । जगकी कैसी है यह माया ॥ ( ३ ) सदा हृदय में गृजा 'मैं मे' 'मैं मैं' माया ओझल हुई मिठा [ १०५ काम न आया । सब अपना और पराया ॥ जगकी कैसी है यह माया Il ( ४ ) मुट्टीमें लेने को दौड़ा दिखती थी जो छाया । पर यह छाया हाथ न आई मूरख ही कहलाया || जगकी कैसी है यह माया ॥ (५) माया को सत्येश्वर समझा सत्येश्वर इसीलिये कुछ हाथ न आया जीवन व्यर्थ जगकी कैसी हैं यह को माया । गमाया ॥ माया ॥ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ ] सत्य-संगीत जीवन्त जीवन का कौन ठिकाना । जो अपना कर्तव्य उसी पर, न्यौछावर होजाना । जीवनका कौन ठिकाना ॥१॥ बनो आलसी तो जाना है, कर्म करो तो जाना। फिर क्यों स्वार्थी और आलसी बनकर मृतक कहाना । जीवनका कौन ठिकाना ॥२॥ यौवन पाया वन जन पाया. सभी वथा है पाना । अगर नहीं दुनियाके हितमें, अपना हित पहचाना ।। जीवनका कोन ठिकाना ॥३॥ क्या लाये थे क्या लेजाना, खाली आना जाना। यहीं रहा सब यहीं रहेगा. क्यों फिर मोह लगाना ।। जीवनका कौन ठिकाना ॥४॥ आवेगा जब काल तभी यह, सब कुछ है छिनजाना । क्यों न जगत के सेवक बनकर, त्यागवीर कहलाना ॥ जीवन का कोन ठिकाना ॥५॥ अभिमानी बन गजपर बैठो. सीखो जोर जताना । याद रहे पर एक दिस है, मिट्टी में मिल जाना ॥ जीवनका कौन ठिकाना ॥ ६॥ खेलो खेल खिलाडी बनकर छोडो त्रैर भजाना। अपना अपना खेल खेलकर हतकर छोड़ो बाना । जीवनका कौन ठिकाना ॥७॥ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुविधा का अंत . [ १०७ दुविधा का अंत पथमें कटक बिछे, पडी है गहरी खाई ।। खो बैठा सर्वस्त्र बची एक भी न पाई ।। विपदाओ की घटा उमडती ही आती है। बिजली भी यह कडक कडक मन धडकाती है || अन्धकार घनघोर है हुआ एक सा रात दिन । पीछे भी पथ है नहीं आगे बढना है कठिन ॥१॥ कैसे आगे बढ़ यहीं क्या पडा रहू मैं पड़ा पड़ा सड मरू कीच में गडा रहू मै ॥ हृदय हुआ है खिन्न भरी उसमें दुविधा है। चारों ओर विपत्ति नहीं कोई सुविधा है ॥ मरना है जब हर तरह क्यों न कदम आगे धरूं । पडा पड़ा या पिछड कर कायर बनकर क्यो मरू ।। हरगिज़ दिलमें यह चाह नहीं मुझपर न मुसीबत आने दो । _ मैं चलूँ जहाँ पर वहीं उन्हे विनोका जाल बिछाने दो । यदि डरवाते भयभत खडे पर्वाह नहीं डरवाने दो। पथमें यदि कटक विछे हुए पदमें गडते गडजाने दो ॥ वस, मुझे चाहिये ऐसा दिल जिसमे कायरता लेश न हो । समभाव धैर्य साहस के बलपर विपदासे भी क्लेश न हो । यदि ऐसा दिल मिलगया मझे तो पथकंटक पिस जायेंगे । विपदा के भयके मतोंके विनोंके दिल घबरायेंगे। Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ ] Vvv NA www MVA सत्य संगीत M www.v श्रृंगार करूँगी सखि, मैं अपना श्रृंगार ॥ सोना न होगा, न चॉदी भी होगी, होगा न हीरे का हार || करूँगी सखि मै अपना श्रृंगार ॥१॥ काजल न होगा, न ताम्बूल होगा, होगा न रेशम का भार । महंदी न होगी, न उबटन भी होगा, होगी न गोटा - किनार ॥ करूंगी सखि, मैं अपना श्रृंगार ॥२॥ होगा न कङ्कण, न होगी अॅगूठी, होंगे न मोती अपार । चम्पा न होगा, चमेली न होगी, होगी न वेला - बहार ॥ करूँगी सखि, मैं अपना श्रृगार ||३|| खञ्जनसी आँखों में, अजन लगानेको, जाऊँगी मरघट के द्वार | ढूँढूँगी श्रृंगार-साधन वहाँ पै मैं, होगे जो दुनिया के सार ॥ करूँगी सखि, मैं अपना श्रृंगार ॥४॥ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " VAMARA W A WWWW शृङ्गार wwwww जनता का सेवक जला होगा कोई, लेकर वहाँ की मै छार । सिर पै चढाऊँगी, आँखो में ऑजॅगी, पाऊँगी शोभा अपार । करूँगी सखि, मैं अपना श्रृगार ||५|| गूँथॅगी उस ही चितामें से लेकर के, हीरे से फूलो का हार । उन ही से कङ्कण अँगूठी बनाऊँगी, लूँगी मैं गहने सम्हार ॥ करूँगी सखि, मैं अपना शृगार ||६|| जिस पथसे लोक-सेवी महायोगी, होकर हुआ होगा पार । उस पथ की धूलि का चूर्ण करके मैं, लूँगी कपोलों पैर ॥ vvv करूगी सखि, मैं अपना श्रृंगार ॥७॥ होगी जो योगीकी कोई वियोगिनी, आँसू रही होगी ढार । उसही के आँसू के मोती बनानेको, लूँगी मैं आँसू उधार ॥ करूँगी सखि, मैं अपना शृंगार ॥८॥ ऐसी सजीली रॅगीली बनूगी मैं, जाऊँगी सैंयाँ के द्वार ॥ उनको रिझाऊगी, अपना बनाऊगी, दूगी मैं प्रेमोपहार ॥ [ १०९ करूँगी सखि, मैं अपना शृंगार ॥९॥ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० ] सत्य संगीत क्यिोर कब तक देव बाट वतादो कैसे तुम्हें बुलाऊँ । __ यदि मै आऊँ पाम तुम्हारे तो किस पथसे आऊँ ॥ कब तक तुमले दृर बनादो होगा मुझको रहना । निर्बल कयो पर अनन्त कष्टो का बोझा सहना ॥ १ ॥ भरा हुआ यह हृदय तुम्हारे बिना बना है मना ! जब जब याद तुम्हारी आती होता है दुख दृना ॥ सखा सखा अग हुआ है फीका पडा वढन है । कुवा कर्कट भग हुआ है गॅदला हुआ सदन है ।। २ ।। तुम ही हो सौन्दर्य जगत के अवले के अवलम्बन । ___मन-मन्दिर के देव तुम्ही हो दुखियाके जीवनधन | जीवन-रजनी के नाशि तुम हो तुम बिन जीवन फीका । तुम बिन काल कडेगा से इस लम्बी रजनीका ॥ ३ ॥ तुन घटक अन्तर्वानी हो ज्ञान तम्हें नव वाने । किन प्रकार दुखों ने कटनी है दुख्यिा की रात ।। निर भी मुझको नहीं बताते कंत तुमको पाऊँ । इस अनन्त दुखमा दोजख को कैसे स्वर्ग बनाऊँ ॥ ४ ॥ दिग्नी नुश्का ननि तुम्हारी है कोने कोने में । फिर भी हाथ न आने क्या फल है छलिया होनेने । सुन्न आर दात हा मत्र किर में क्या क्या ग। निस निराकर इन मास कवनकजन्य धाऊँ॥५॥ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपहार [१११ देव, तुम्हारे विना आज सर्वस्व लुटा है मेरा । ___ वुद्धि हुई दुर्बुद्धि हृदय मे है अशान्तिका डेरा ॥ धन, तन, बल, उपभोग भोग सब शान्त नहीं करपाते । किन्तु बढाते हैं अशान्ति ये मनका ताप बढाते ॥ ६ ॥ ये सब प्राणवान होंगे तब जब मैं तुम को' पाऊँ । विगडी सभी बनेगी यदि मैं दर्शन भी पाजाऊँ ॥ सब कुछ ले लो किन्तु हृदय के ईश्वर मेरे आओ । अथवा बन्धन-मुक्त बनाकर अपना पथ दिखलाओ ॥ ७ ॥ उपहार जबसे दीपक जला तभीसे होने लगा अग शृङ्गार । नव आगाओंमें भर करके भूलगई सारा ससार || लगी रही टकटकी द्वार पर ऑखों को न मिला अवकाश । प्रियतम तो तब भी न दिखाये मन ही मन होगई निराश ॥ मुरझा गये हाथ के गजरे सूख गया फूलोंका हार । __ मैने भी तब तो झुंझलाकर मिटा दिया सारा शृङ्गार ॥ बोली, व्यर्थ बनाया मैने बाहर का बनावटी वेश । क्या न हृदयकी सुन्दरतासे झिंगे प्यारे प्राणेश ।। जब कि यही गुनगुना रही यी तब प्रियतम आये चुपचाप । खडे पडे आतुर नयनों से देखा विखरा केश-कलाप ।। हुआ सम्मिल्न. हँसकर बोले-"क्ण दोगी मुझको उपहार" ग से आँत निकल पड़े में बोली-लो मोती का हार ।। Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्य-संगीत ११२ ] ... सत्य-संगीत प्यालेकाले [१] ठया कर ए प्यालेवाले, करके मस्त मुसाफिर लूटा पिला पिला प्याले । दया कर ए प्यालेवाले ॥ [२] निर्दय, यह सहार किया क्यों । मुग्ध पथिक को मार दिया क्यों ।। घुट घुट पर घुट पिलाये मारे ज्यों माले । ढया कर ए प्यालेवाले ॥ [३] मिला तुझे थोडासा भाड़ा । पर उसका ससार विगाड़ा ॥ उसे पटेंगे अब पद पद पर टुकडोंके लाले । दया कर ए प्याले चाले ॥ दुनिया को अपना श्रम देकर । जाता या आगाएँ लेकर ॥ घर को आगा में भूला या पैरों के छाले । दया कर ए प्याख्याले ॥ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्यालेवाले [११३ . तृने उस पर नशा चढ़ा कर । बेचारे को दीन बनाकर ॥ उसके सभी इरादे तने आज नोड टाले । ढया कर ए प्यालबाले ॥ [६ [ आग्विर है यह कितना जीवन । इसके लिये पाप मे क्यो मन । वन्धु बन्धु है सभी प्रेम से प्रेम-गीत गाले ॥ टया कर ए प्यालेवाले ॥ [७] इतनी तृष्णा बढी भला क्यो । मरख, करने पाप चला क्यों । खाना है दो कौर प्रेमसे आकर त खाल | ढया कर ए पालेवाले ॥ (८) छोड छोड यह नशा चटाना । मानव का अज्ञान बढ़ाना । इतना पाप बोझ करता क्या जान ले टाले । दया कर ए प्यालेबान्ने ॥ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ ] सत्य संगीत मनुष्यता पाई मनुष्यता है कर्तव्य नित्य करना । जीवन सफल बनाने जग की विपत्ति हरना ॥ १ ॥ आलस्य मत दिखाना, स्वार्थान्वता भगाना, सप्रेम-पथ जाना, सर्वत्र प्रेम भरना । पाई. ॥ २ ॥ अन्याय हो न पात्रे, निर्बल न मार खावे, अबला न दुख उठावे, नय पथ मे विचरना || पाई ॥ ३ ॥ स्वाधीनता जगाना, यह दासता हटाना, गर्दन भले कटाना, www आपत्ति से न डरना ॥ पाई. ॥ ४ ॥ लो फट से विदाई, है मय मनुष्य भाई, इनमे न है जुदाई, मनमें न मान धरना ॥ पाई ॥ ५ ॥ VAA Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनुप्यता [११५ मत का घमड छोडो, ___ यह जाति-भेद तोटो, मह प्रेम से न मोडो, ___ यदि दुःख-सिन्धु तरना ॥ पाई. ॥ ६ ॥ दुईद्धि है सताती, श्रद्धान्ध है बनाती, बनना न पक्षपाती, समभाव प्रेम करना । पाई ॥ ७॥ बन कर्ययोग-धारी, कर्मण्यता-प्रचारी, संसार-दुःखहारी, रोते हुए न मरना ॥ पाई मनुष्यता है कर्तव्य निन्य करना ॥ ८ ॥ उद्धारकात्मा से तुम कहते थे हम आवगे पर भूलगये क्या अपनी बात । क्या विश्वनियम तुमने भी पकडा दीनोपर करते आघात ॥ हम दीन हुए, जग हँसता है, पर तुम क्यों बन बैठे नादान ? ___ या किसी तरह से रिसागये हो मनमें रक्खा है अभिमान || अथवा पिछले पापाका अवतक हुआ नहीं पूरा परिशोध । या किया हमारी वर्तमान करतोंने ही पथका रोध । तुम जिस बन्धन में पड़े हुए हो तोडो उस बन्धनका जाल । मत ढील करो; क्या नहीं जानते हम दीनोंके हाल हवाल || Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ ] सत्य-संगीत महारे सम्झना स्वार्थी मतवारे । पाकर बुद्धि अन्ध-श्रद्धा से मरता क्यों प्यारे ॥ समझना स्वार्थी मतवारे ॥ १॥ अहकार का लगा ढवानल तू है और लगाता । क्यो धन देता है भूलों को है और भुलाता ॥ फिराता क्यों मारे मारे । समझना स्वार्थी मतबार ॥२॥ छाई है नव-घटा मोर नचते हैं वनके अपर । प्लाक्ति होगी तपे तबासी भमि और गिरि कन्दर ॥ मिलेंगे सब न्यारे न्यारे । समझना स्वार्थी मतवार । ॥३॥ झरता है आकाग बता त कहा 'बेगरा टेगा। रमकी वेट टपक रहीं हैं मह तु क्या कर लेगा ॥ पियगे प्यास दुखियारे । समझना स्वार्थी मनबार ॥ ४ ॥ स्यालाई बुझनी जानी है देव जलानेवाले । अब ग्लनर ममार बना है भरे नदी नट नाल | फांटना क्यों रोकर तोर । मम्झना स्वार्थी मतभार ॥ ५॥ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिहर्वा [ ११७ मिही मिहर्वा हो जायेंगे, दर्दे जिगर होने तो दो । सगदिल गल जायेंगे, कुछ रुख इधर होने तो दो ॥ (२) दिल गलाकर जो बनाऊँ, ऑसुओकी धार मैं । दिलमे चमकेगे मगर यह दिल जरा वोने तो दो । पुतलियोंमे ही पकड कर कैद कर दूंगा उन्हें । पर पुतलियों को जरा बेचैन वन रोने तो दो ॥ वे उठायेंगे मुझे, छाती लगायेंगे मुझे । ख्वाब उनका देखने का कुछ मुझे सोने तो दो । नेक बनकर जब महब्बत जर्रे जर्रे से करूँ। वे मुहब्बत मे फंसेंगे पर वदी खोने तो दो ॥ भायेगे कर जायेंगे वे दिलको मोअत्तर चमन । पर दिलोपर प्रेम के कुछ बीज भी वोने तो दो ॥ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ ] सत्य-संगीत wwwnw. .. monam ओ युवक वीर ओ युवक बीर । किस लिये आज तू है अबीर ॥ ओ युवक वीर ओ युवक वीर । पथ है न अगर तो पथ निकाल । हो गिरि अटवी या भीष्म व्याल || वटता चल चलकर पवन चाल । वढ तु बाधाएँ चीर चीर । ओ युवक वीर ओ युवक वीर ॥ १ ॥ वट वीर प्रलोभन-जाल तोड । विपदाओं की चट्टान फोड ॥ कायरता की गर्दन मरोड । हरले दुनिया की दुख पीर । ओ युवक वीर, ओ युवक वीर ॥ २॥ रख साहस क्यों बनता अनाथ । गवन से है जब तू सनाथ ॥ भगवान सत्य दे रहा साथ । उडता चल बनकर खर समीर । ओ युवक वीर ओ युवक वीर ।। ३॥ कर जाति पॉति जजाल दूर । सारे घमट कर चर चर ॥ सर्वस्त्र त्याग वन प्रेम-पूर । दुनिया की खातिर बन फकीर । आसुक वीर ओ युवक बीर ॥ ४ ॥ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्मेलन [११९ vN wwwwwwwv सम्मेलन हुआ बिछुडों का सम्मेलन, भाई भाई दूर हुए थे टूट चुके थे मन । हुआ विछुडों का सम्मेलन ॥१॥ एक जाति पर भेद बनाये । एक धर्म नाना कहलाये ॥ एक पथके विविध पन्यकर भटके हम वन वन ।। ___ हुआ बिछुडों का सम्मेलन ।। २ ।। . सत्य अहिंसा ध्येय हमारा । विश्वप्रेम ही गेय हमारा । भूले ध्येय गेय लड वैठे कैसा भोलापन ॥ हुआ बिछुडों का सम्मेलन ॥ ३॥ राम कृष्ण जिनवीर मुहम्मद । बुद्ध यीशु जरथुस्त प्रेमनद । न्यारे न्यारे वेष किन्तु हितमय सबका जीवन । हुआ बिछुडों का सम्मेलन ॥४॥ आज हृदय से हृदय मिला है। मुरझाया मन सुमन खिला है ।। सनुदित सत्यसमाज आज भर देगा नवचेतन ॥ वन्य यह सच्चा सम्मेलन ॥ ५॥ ----ye Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ १२० ] सत्य संगीत 4.45 मेरी भूल हुई थी कैसी मेरी भूल । तरी महिमा भूल व्यर्थ ही डाली तुझ पर बल । हुई थी कैसी मेरी भल ॥ थोडी सी यह मति गति पाकर । सहिवेक का भान भुलाकर । मान-गन में बैठ उडगे लीं मन ही मन फूल । हुई थी कैसी मेरी भूल || [२] थोडासा वनका लव पाकर । अपने को उन्मत्त बना कर । मानवता पर निरस्कार बरसा कर बोथे शूल । हुई थी कैसी मेरी भूल || [३] योडामा अविकार मिला जब । गर्न उठा निर्दय होकर तव । पाया जग से कोटि कोटि विकार बना प्रतिकूल । हुई थी कैसी मेरी भूल ॥ [४] गेडामा यदि नाम कमाया । गई या की झूठी छाया । छाग की गा में भला. उडा, उडे ज्यों तुल । हुई थी की मेरी मल ॥ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेरी भूल [ १२१ [५] महाकालने चक्र घुमाया । तब ऊपर से नीचे आया । नदन बन की जगह खडे देखे चहुँ ओर बबूल । हुई थी कैसी मेरी भूल || [६] तेरी याद हुई मुझको तब । काल लूट ले गया मुझे जब । की जड चेतन जगने मेरे दुख में टालमटूल । हुई थी कैसी मेरी भूल । [७] तब तेरी चरण-स्मृति आई । ___ मैंने अश्रवार वरसाई । आखो का मल वहा दिखा सच्चे जीवन का मूल । हुई थी कैसी मेरी भूल ।। [८] दूर हुआ तेरा विछोह तब । मद उतरा हट गया मोह तब । विधप्रेमके रग रँगा मैं पाकर तेरी धूल । तभी सुधरी वह मेरी भूल । Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ ] M सत्य संगीत wwwww~ ~ AAN तू जीवन का आधार । मिला तू दुनिया के धक्के खा खाकर आया तेरे द्वार || मिला ॥ परम निरीश्वर का ईश्वर तू वीतराग का राग । वुद्धि भावना का सगम तू तू है अजड प्रयाग || विश्वके सब तीथों का सार । मिला तू जीवन का आधार ॥१॥ मुझ निर्बल का बल है तू ही मुझ मूरख का ज्ञान । मुझ निर्धन का धन है तू ही तू मेरा भगवान || भक्ति है तू ही तू ही प्यार । मिला तू जीवन का आधार ॥२॥ निर्मल बुद्धि बताई तूने निर्मल व्योम समान । मात अहिंसा की सेवा मे खींचा मेरा ध्यान ॥ वजाये मेरे टूटे तार I मिला तू जीवन का आधार ॥३॥ तेरे चरण पालिये मैंने अब किसकी पर्वाह | त्रिपठोलाभन कर न सकेंगे अत्र मुझको गुमराह ॥ चन्द्रगा तेरे चरण निहार । " मिला तू जीवन का आधार ॥४॥ निवल निर्धन निःसहाय हू बुद्धिहीन गुणहीन | सभी तरह से बना हुआ हूँ मैं दोनो का दीन || किन्तु है तेरी भक्ति अपार । करेगी जो मेरा उद्धार ||५|| Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरा नाम धाम [१२३ तेरा नाम धाम गिनाऊँ क्या क्या तेरे नाम । कटू क्या कहा कहा है धाम || नित्य निरजन निराकार तू प्रभु ईश्वर अल्लाह । ब्रह्मा विष्णु महेश्वर तू ही, परम प्रेम की राह ।। खुदा है. तू ही तू ही राम । गिनाऊँ क्या क्या तेरे नाम ॥१॥ महादेव शिव शकर जिन तू रब रहीम रहमान । गोड यहोवा परम पिता तू अहुरमज्द भगवान ।। सिद्ध अरहत बुद्ध निष्काम । गिनाऊँ क्या क्या तेरे नाम ॥२॥ सेतुबव जेरुसलम कागी मका या गिरनार । सारनाथ सम्मेदशिखर में बहती तेरी धार ॥ सिन्धु गिरि नगर नदी वन ग्राम । कहू क्या कहा कहा है धाम ॥३॥ मन्दिर मसजिद चर्च, गुरु-द्वारा स्थानक सब एक । सब धर्मालय सब मे तू हे होकर एक अनेक || सभी को चन्दन नमन सलाम । कहूँ क्या कहा कहा है धाम ॥४॥ मन्दिर में पूजा को बैठा मसजिद पढी नमाज । गिरजा की प्रेयर में देखा मैंने तेरा साज । एक हो गये सलाम प्रणाम । गिनाऊ क्या क्या तेरे नाम ॥५॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ ] सत्य-संगीत तेरा हक तेरा रूप न जाना मैंने । निराकार बनकर तू आया मगर नहीं पहिचाना मैंने । तेरा ॥१॥ मन मन में था तन तन में था। कण कण मे था क्षण क्षण मे था ॥ पर मैं तुझको देख न पाया, पाया नहीं ठिकाना मैने । तेरा ॥२॥ रवि शशि भूतल अनल अनिल जल । देख चुका तेरा मृरति-दल । मूरति देखी किन्तु न देखा, तेरा वहा समाना मैंने । तेरा ॥३॥ उरग नभश्चर जलचर थलचर । तेरी मूर्ति बने सब घर घर । उन सबने सगीत सुनाया, तेरा सुना न गाना मैंने । तेरा ||४|| पर जब तु मानव वन आया । तब तेरे दर्शन कर पाया ॥ तब ही परम पिता सब देखा, तेरा पूजन ठाना मैंने । तेरा !!५|| करुणा प्रेम ज्ञान वल सयम । वन्सलता दृढता विवेक शम ॥ देखे तेरे कितने ही गण, तत्र तुझको पहिचाना मैंने । तेरा ॥६|| तुझको परम पिता सम पाया । देखी सिर पर तेरी छाया ॥ तव ही पुलकित होकर ठाना, जीवन सफल बनाना मैंने ॥ तेरा रूप न जाना मैंने ॥७॥ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवति [ १२५ भगवति कल्याणकारिणि दुखनिवारिणि प्रेमरूपिणि प्राणदे । वात्सल्यमयि सुखदे क्षमे जगदम्ब करुणे त्राणदे ॥ भगवति अहिंसे आ यहाँ भले जगत पर कर दया । वीरत्व में भी प्यार भरकर विश्वको करदे नया ॥१॥ सारे नियम यम अग तेरे वस्त्र तेरे धर्म हैं । ये वस्त्र के सब रग दैगिक और कालिक कर्म हैं । गुणगण सकल भूपण बने चैतन्यमयि हे भगवती । हे शक्तिप्रेममयी अभयदे अमर ज्योति महासती ॥२॥ इजील हो या हो पिटक या सूत्र वेद पुरान हो । __ हो अथ आवस्ता व्यवस्था-शास्त्र या कि कुरान हो । सब हैं सरस सगीत तेरे दूर करते हैं व्यथा । सब धर्मशास्त्रों में भरी है एक तेरी ही कथा ॥३॥ वे हों मुहम्मद यीशु हों या बुद्ध हों या वीर हो । जरथुस्त हों कन्फ्यूसियस हो कृष्ण हों रघुवीर हों ।। अगणित दलारे पुत्र तेरे विश्व के सेवक सभी । तेरे पुजारी वे सभी समता न जो छोडें कभी ॥४॥ मातेश्वरी ऐश्वर्य अपना विश्व मे विस्तार दे । __ हो प्रेम-परिपूरित जगत ऐसा जगत को प्यार दे ॥ धुल जाय सारा वैर जिसमें वह सुधा की धार दे। सत्प्रेम का शृङ्गार दे यह घरद पाणि पसार दे ॥५॥ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ ] सत्य सगांत marn . जगदम्ब जगढम्ब जगत है निरालम्ब अवलम्बन देने को आजा । हिंसा से जगत तबाह हुआ जगकी सुध लेने को आजा | रहने दे निर्गुण रूप प्रेम की मुरति माँ बनकर आजा । रोते बच्चे खिलखिला उठे ऐसा प्रसन्न मन कर आजा ॥१॥ भर रहा जगत में द्वेषदम्भ सब जगह क्रूरता छाई है। छल छोंने मन भ्रः किये इसलिये गदगी आई है ।। हैं तडप रहे तेरे बच्चे दुखों से पिंड छुडा दे तू । भनभना रही हैं विपदाएँ अञ्चल से तनिक उडादे तू ॥१॥ वरसादे मन पर प्रेम सुधा नन्दन सा उपवन बन जावे | मत्र रग विरगे फूल खिलें स्वर्गीय दृश्य भूपर आवे ।। सब रगो का आकृतियों का जगमे परिपूर्ण समन्वय हो । हवान भगे शैतान भगे सबका मन मानवतामय हो ॥३॥ तेरी गोदी का सिंहासन मिल जावे सबको मनभाया । सन्तप्त जगत पर छाजाये तेरे ही अञ्चल की छाया । वात्सल्यमयी मुरति तेरी दुनिया की आशा हो बल हो।। सारा धन वैभव चञ्चल हो पर तेरी मूर्ति अचचल हो ॥ ४ ॥ तेरा अनहद सगीत उठे ब्रह्माड चराचर छाजावे ।। उस तान तान पर सारा जग सर्वस्व छोड़ नचता आवे । वन वैभव बल अधिकार कला तेरा अपमान न कर पाने । श्री शक्ति शारदाओं का दल रागों में राग मिलाजावे ॥५॥ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 ANAN VAAAAA V जय सत्य अहिंसे www जय सत्य अहिंसे जय सत्य अहिंसे जगत्पिता जगमाता । कल्याणधाम अभिराम सकलसुखदाता || wwwwwwww V तुम चिदाकार निर्मूति अनवतारी हो । पर भक्त - हृदय में गुणमय नर-नारी हो । तुम जननी - जनक - समान प्रेम-धारी हो ॥ भगवान भगवती हो अघ - तमहारी हो ॥ तुममें वात्सल्य विवेक मूर्त्त बनजाता । जय सत्य अहिंसे जगत्पिता जगमाता ॥१॥ निर्मल मति का सन्देश सुनाया तुमने । सनम सुख का साम्राज्य दिखाया तुमने || वीरत्वपूर्ण समता को गाया तुमने । भाई भाई में प्रेम सिखाया तुमने || है वरद पाणि भक्तों को अभय बनाता । जय सत्य अहिंसे जगत्पिता जगमाता ॥ २ ॥ तुम हो अवर्ण पर नाना वर्ण तुम्हारे । तुम रजतचन्द्रिका सम जगके उजयारे ॥ है दिव्य ज्ञानकी ज्योति नयन रत्नारे | तपनीय वर्ण गुणमय भूषण है प्यारे ॥ [ १२७ है अग अग वैभव अनत सरसाता । जय सत्य अहिंसे जगत्पिता जगमाता ॥ ३ ॥ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 128 ] सत्य-संगीत wwwmmon mo nwwwmarmmmmmmmmmmar हैं देश काल का तुमने मर्म बताया। हैं पट के नाना रंग ढग ऋतु-छाया // इस विविध-रूपता में एकत्व दिखाया / सब धर्मोमें भर रही तुम्हारी माया // तुम सब वर्मों के मूल, जगत के त्राता / जय सत्य अहिंसे जगत्पिता जगमाता // 4 // जितने तीर्थकर धर्म सिखाने आये / जितने पैगम्बर ईश्वर-दूत कहाये // जितने अवतारों ने सुकर्म बतलाये / उन सबने गुणगण सदा तुम्हारे गाये // तुम मातपिता, वे हैं सुपुत्र, सब भ्राता / जय सत्य अहिंसे जगत्पिता जगमाता // 5 // सारे सयम सज्ज्ञान, स्वरूप तुम्हारे / अम्बर के तन्तु समान नियम यम सारे // सब सम्प्रदाय, पटके एकेक किनारे / / तुम नभसमान, गुणगण हैं रविशशि तारे // तुम हो अनत कोई न अत है पाता / जय सत्य अहिंसे जगत्पिता जगांता // 6 // बच्चो पर अपनी दयादृष्टि फैलाओ। दो घट घट के पट खोल प्रकाश दिखाओ || अन्तस्तल का मल दूर कराओ आओ। भूली दुनिया पर वरद पाणि फैलाओ // हो विश्वप्रेम, सदसद्विवेक, सुखसाता / जय सत्य अहिंसे जगत्पिता जगमाता // 7 //