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समाज मेवक
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समाज सेवक
(१) अपनी विपदा किस सुनाऊँ ? रोनेका अधिकार नहीं है, कैसे अश्रु बहाऊँ ? अपनी विपदा किसे सुनाऊँ ॥
(२) रुकी हुई वेदना हृदय मे, आँखों से बहने कोतरस रही है, तडप रहा है, हृदय दु.ख कहने को ।
पर मैं कहाँ सुनाने जाऊँ ? अपनी विपदा किसे सुनाऊँ ।।
दिखलाता है क्षितिज किन्तु पथका न अन्त दिखलाता । चलना है, निशिदिन चलना है, है न क्षणिक भी साता ॥
कैसे अपना मन बहलाऊँ ? अपनी विपदा किसे सुनाऊँ ॥
अपने तनसे अधिक सीस पर भारी बोझ लदा है । है न सहारा कोई उस पर विपदा पर विपदा है ।।
वोलो, कैसे पैर बढ़ाऊँ ? अपनी विपदा किसे सुनाऊँ ॥