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सत्य-संगीत
तू गर्ज उठा अत्याचारो को ललकारा, सत्र चौंक पडे । सब गूँज उठा ब्रह्माड न रहने पाये हिंसाकाड खडे ॥ ( ९ ) पशुओंका तू गोपाल बना पाया सबने निज मनभाया । तूने फैलाया हाथ सभीपर हुई शान्त शीतल छाया || फहराठी तूने विजय वैजयन्ती भगवती अहिंसा की । हिंसाकी हिंसा हुई सहारा रहा नहीं उमको बाकी || ( १० )
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सारे दुर्बन्धन तोडफोड दुष्कर्मकाड सब नष्ट किया । भगवान सत्यके विद्रोहीगण को तूने पदभ्रष्ट किया || भगवती अहिंसाका झडा अपने हाथों से फहराया 1 तू उनका वेटा बना विश्व तत्र तेरे चरणों में आया ॥ ( ११ ) ढोंगी स्वार्थी तो 'धर्म गया, हा धर्म गया ' यह चिल्लाने । तेजस्वी रविके लिये कहे कुवचन धूताने मनमाने ॥ लेकिन तूने पर्वाह न की ढोंगों का भंडाफोड किया । सदसद्विवेक का मत्र दिया भगवान सत्यका तत्र दिया || ( १२ ) तू महावीर था वर्द्धमान था और सुधारक नेता था । तू सर्वधर्मसमभाव विश्वमैत्रीका परम प्रणेता था । भगवान सत्यका बेटा था आदर्श हमारे जीवन का । तेरे पदचिह्न मिलें मुझको वरदान यही मेरे मनका ॥