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महात्मा महावीर
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महात्मा महावीर महात्मन् , छोड़ कर हमको कहाँ आसन जमाते हो।
अहिंसा धर्मका डका वजाने क्यों न आते हो ॥१॥ तुम्हारे तीर्थ की कैसी हुई है दुर्दशा देखो ।
बने हो कर्म-योगी फिर उपेक्षा क्यों दिखाते हा ॥२॥ परस्पर बंद होता है मचा है आज कोलाहल ।
न क्यों फिर आप समभावी मधुर वीणा बजाते हो ॥३॥ बने एकान्त के फल ये दिगम्बर और श्वेताम्बर ।
न क्यो अम्वर अनम्बर का समन्वय कर दिखाते हो ॥४॥ पुजारी रूढियों के हैं न है निष्पक्षता इनमे ।
इन्हें स्याद्वाद की शैली न क्यो आकर सिखाते हो ॥५॥ हुआ है जाति-मद इनको भरा मत-मोह है इनमे ।
न क्यों अब मूढता मद का वमन इनसे कराते हो ॥६॥ दुहाई ज्ञानकी देते बने पर अन्ध-विश्वासी ।
इन्हें विज्ञान की औषध न क्यों आकर पिलाते हो ॥७॥ अजब रोगी बने ये हैं गज़ब के वैद्य पर तुम हो ।
बने हैं आज ये मुर्दे न क्यो जिन्दे बनाते हो ॥८॥