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सत्य-संगीत
पधारो मन-मन्दिर मे वीर । आआ आआ त्रिशला-नन्दन, करते हैं हम तेरा बन्दन, सुनलो यह दुनियाका क्रन्दन,
शीघ्र बंधाओ धीर ।
पधारो मन-मन्दिर में वीर ॥१॥ मानव है यह मानव-भक्षक, है भाई भाई का तक्षक, हो सब ही सब ही के रक्षक,
दो ऐसी तदबीर ।
पधारो मन-मन्दिर में वीर ॥२॥ टूट गये है हृदय, मिला दो, स्याद्वादामृत, नाथ । पिला दो, मुर्दो का ससार जिला दो,
खुल जाये तकदीर ।
पधारो मन-मन्दिर में वीर ॥३॥ सन्य-अहिंसा पाठ पढा दो, तपकी कुछ झाँकी दिखलादो, विगडों का संसार बना दो,
दूर करो दुख पीर । पधारो मन-मन्दिर में वीर ||४||