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सत्य संगीत माता अहिंसा
[१]
माता करदे जग पर छाया । तेरे बिना न कभी किसीने थोडा भी सुख पाया ॥ माता. ॥
जब पश के समान था मानव,
कुछ मनुष्य थ राक्षस दानव । 'जिसकी लाठी, भैंस उसीकी एक यही था न्याय । यत्र तत्र सर्वत्र भरी थी बस निर्बल की हाय ॥
करती थी तेरा आह्वान,
मन ही मन था तेरा ध्यान । तूने ही उस घार निगामें निज प्रकाश फैलाया || माता. ॥
[२] माता करदे जग पर छाया । हिसा दुष्ट डाकिनी अपनी फैलाती है माया|| माता. ।।
अपना नाना रूप बनाकर,
मदिरमें मसजिट में जाकर । नगा ताडय दिखलाती है अट्टहास्य के माय । धर्म नाम लेकर धी पर फेर रही है हाथ ।।
करदे उसका भडाफोड ।
उमका मायागढ़ दे तोट ॥ मणु अशु चिल्ला उठे विश्वका 'प्रेम राज्य है आया' ॥ माता. ।