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________________ २४ ] सत्य संगीत माता अहिंसा [१] माता करदे जग पर छाया । तेरे बिना न कभी किसीने थोडा भी सुख पाया ॥ माता. ॥ जब पश के समान था मानव, कुछ मनुष्य थ राक्षस दानव । 'जिसकी लाठी, भैंस उसीकी एक यही था न्याय । यत्र तत्र सर्वत्र भरी थी बस निर्बल की हाय ॥ करती थी तेरा आह्वान, मन ही मन था तेरा ध्यान । तूने ही उस घार निगामें निज प्रकाश फैलाया || माता. ॥ [२] माता करदे जग पर छाया । हिसा दुष्ट डाकिनी अपनी फैलाती है माया|| माता. ।। अपना नाना रूप बनाकर, मदिरमें मसजिट में जाकर । नगा ताडय दिखलाती है अट्टहास्य के माय । धर्म नाम लेकर धी पर फेर रही है हाथ ।। करदे उसका भडाफोड । उमका मायागढ़ दे तोट ॥ मणु अशु चिल्ला उठे विश्वका 'प्रेम राज्य है आया' ॥ माता. ।
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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