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देवी अहिंसा
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[४] तेराही अञ्चल बनता है अटल वज्रमय कोट । टकराकर निष्फल जाती है विपदाओंकी चोट ।
तेरे अचलकी छायामे है सब जग का त्राण । शान्तिलाभ है वहीं वहीं है जीवन का कल्याण ॥
तीर्थकर पैगम्बर देवी देव दिव्य अवतार । नर से नारायण बनते हैं हर कर भू का भार ।
हैं सब तेरे पुत्र सभी का करती त निर्माण । महादेवि, सारे जगका तू करती दुखसे त्राण ॥
[६] सत्य अचौर्य ब्रह्म अपरिग्रह सब तेरी मुसकान । तेरी प्राप्ति दूर करती है मोह और अभिमान ॥
क्षमा शौच शम त्याग आदि सब हैं तेरे ही अग। तबतक क्रिया न धर्म न जबतक चढता तेरा रग।
महादेवि ! कल्याणि विश्व में गूंजे तेरा गान। तेरी तान तान पर नाचे यह ब्रह्माड महान ॥
नाचे नियति सुमन गण नाचें नाचें धन बल ज्ञान । वैर भाव धुल जाय बने सब सच्चे वन्धु-समान ॥