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________________ देवी अहिंसा [२३ [४] तेराही अञ्चल बनता है अटल वज्रमय कोट । टकराकर निष्फल जाती है विपदाओंकी चोट । तेरे अचलकी छायामे है सब जग का त्राण । शान्तिलाभ है वहीं वहीं है जीवन का कल्याण ॥ तीर्थकर पैगम्बर देवी देव दिव्य अवतार । नर से नारायण बनते हैं हर कर भू का भार । हैं सब तेरे पुत्र सभी का करती त निर्माण । महादेवि, सारे जगका तू करती दुखसे त्राण ॥ [६] सत्य अचौर्य ब्रह्म अपरिग्रह सब तेरी मुसकान । तेरी प्राप्ति दूर करती है मोह और अभिमान ॥ क्षमा शौच शम त्याग आदि सब हैं तेरे ही अग। तबतक क्रिया न धर्म न जबतक चढता तेरा रग। महादेवि ! कल्याणि विश्व में गूंजे तेरा गान। तेरी तान तान पर नाचे यह ब्रह्माड महान ॥ नाचे नियति सुमन गण नाचें नाचें धन बल ज्ञान । वैर भाव धुल जाय बने सब सच्चे वन्धु-समान ॥
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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