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________________ " VAMARA W A WWWW शृङ्गार wwwww जनता का सेवक जला होगा कोई, लेकर वहाँ की मै छार । सिर पै चढाऊँगी, आँखो में ऑजॅगी, पाऊँगी शोभा अपार । करूँगी सखि, मैं अपना श्रृगार ||५|| गूँथॅगी उस ही चितामें से लेकर के, हीरे से फूलो का हार । उन ही से कङ्कण अँगूठी बनाऊँगी, लूँगी मैं गहने सम्हार ॥ करूँगी सखि, मैं अपना शृगार ||६|| जिस पथसे लोक-सेवी महायोगी, होकर हुआ होगा पार । उस पथ की धूलि का चूर्ण करके मैं, लूँगी कपोलों पैर ॥ vvv करूगी सखि, मैं अपना श्रृंगार ॥७॥ होगी जो योगीकी कोई वियोगिनी, आँसू रही होगी ढार । उसही के आँसू के मोती बनानेको, लूँगी मैं आँसू उधार ॥ करूँगी सखि, मैं अपना शृंगार ॥८॥ ऐसी सजीली रॅगीली बनूगी मैं, जाऊँगी सैंयाँ के द्वार ॥ उनको रिझाऊगी, अपना बनाऊगी, दूगी मैं प्रेमोपहार ॥ [ १०९ करूँगी सखि, मैं अपना शृंगार ॥९॥
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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