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सत्य संगीत
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श्रृंगार
करूँगी सखि, मैं अपना श्रृंगार ॥ सोना न होगा, न चॉदी भी होगी, होगा न हीरे का हार ||
करूँगी सखि मै अपना श्रृंगार ॥१॥
काजल न होगा, न ताम्बूल होगा, होगा न रेशम का भार । महंदी न होगी, न उबटन भी होगा, होगी न गोटा - किनार ॥
करूंगी सखि, मैं अपना श्रृंगार ॥२॥
होगा न कङ्कण, न होगी अॅगूठी, होंगे न मोती अपार । चम्पा न होगा, चमेली न होगी, होगी न वेला - बहार ॥
करूँगी सखि, मैं अपना श्रृगार ||३||
खञ्जनसी आँखों में, अजन लगानेको, जाऊँगी मरघट के द्वार |
ढूँढूँगी श्रृंगार-साधन वहाँ पै मैं, होगे जो दुनिया के सार ॥
करूँगी सखि, मैं अपना श्रृंगार ॥४॥