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आहेसा देवी
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अहिंसा देवी
कहो कहो देवि । छिपी कहा हो । पता बताओ रहती जहा हो । पडा हमारे सिर दुख जैसा ।
अराति के भी सिर हो न वैसा ॥१॥ वटी यहा भौतिक सम्पदा है। । परन्तु आत्मा पर आपदा है।
मनुष्यको खून चढा हुआ है।
विनाश की ओर बढ़ा हुआ है ॥ २ ॥ स्वजाति-भक्षी पशु भी न होते । मनुष्य ही लेकिन नीति खोते ॥ मनुष्य भी भक्ष्य हुआ यहा है।
पशुत्व यों लजितसा कहां है ॥ ३ ॥ मनुष्य मे भी समभाव छोडा । मनुप्यता से सहयोग तोडा ॥ हुए यहा युद्ध विनाशकारी ।
मनुष्यने मानवता विसारी ॥ ४ ॥