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________________ ४६ ] सत्य-संगीत सत्य अहिंसा की सन्तति वन, परहित और न्याय - रक्षण कर शुद्ध मनुष्य सत्यभक्त बन www मै 1 कहाऊ जाऊ मै ॥ क्या सत्य अहिंसाको पाया तो, और रहा तब पाना क्या रे, उनका गाया गान अगर तो, और रहा फिर गाना क्या रे || [ १ ] " सर्वधर्मसमभाव न सीखा, तो फिर मीस सिखाना क्या मत्र की जाति समान न देखी, तो फिर प्रेम दिखाना क्या रे ॥ [ २ ] जो न सुधारक तू कहलाया, तो मुखिया कहलाना क्या रे, मन को जो न कभी नहलाया, तो तनको नहलाना क्या रे ॥ [ ३ ] अन्याय पर की न चढाई, तो फिर वह चढाना क्या है, मणको जो ना तो फिर टाट बढाना क्यारे ॥ [ 2 ] हगि . और रहा मरजाना क्या र. प्रेम भगत और हार जाना क्यारे ॥ ,
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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