________________
भावना गौत
[४७
wwwww
W
[५] हिन अनहित पहिचान न पाया, तो जग को पहिचाना क्या रे, दुखियों की कुटियों न गया तो, फिर मदिर का जाना क्या रे॥
परदुख में आँसू न वहाये, निज दुख देख बहाना क्या रे, सेवक जो जग का न कहाया, तो भगवान कहाना क्या रे ।।
[७] दखियों के मन पर न चढा तो, तीर्थों पर चढ जाना क्या रे, विपदा में हँसना न पढा तो, पोथों का पढ़ जाना क्यारे ।
[८] कायरता यदि हट न सकी तो, निर्बलता हटजाना क्या रे, कर्मठता यदि घट न सकी तो तन बल का घट जाना क्या रे।।
[९] कर कर्तव्य न पाठ पढाया, बक बक पाठ पढाना क्या रे, जीवन ढेकर सिर न चढाया, तो फिर भेंट चढाना क्या रे॥
[१०] मुखदुख में समभाव न जाना, तो जीवनमें जाना क्या रे, जो न कला जीवन की आई, तो दुनिया में आना क्या रे ॥
[११] जो मन की कलियाँ न खिली तो यौवनका खिल जाना क्यारे, सत्येश्वर की भक्ति मिली तो, ईश्वर में मिल जाना क्या रे॥