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राम - निमंत्रण
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( ३ )
नारी आज पद-दलित हुआ जाता है । दाम्पत्य-प्रेम पदपद ठोकर खाता है । भ्रातृत्व और मित्रच न दिखलाता है । सज्जनता पर दौर्जन्य विजय पाता है ।
अन्धेर मचा है आओ इसे मिटाओ । भूभार-हरण के लिये धरा पर आओ ||
( ४ ) दुर्दैववादने पौरुप मार हटाया । भीरुत्व, दया का छद्म-वेप घर आया । कायरताने जडता का राज्य जमाया । हममे उत्तरदायित्व नही रह पाया ॥
आओ हमको पुरुषार्थी वीर बनाओ । भूभार-हरण के लिये, धरा पर आओ ||
(५)
नैतिक मर्यादा नष्ट होरही सारी । वन रहा जगत है, केवल रूढि पुजारी । सदसद्विवेकमय बुद्धि गई है मारी । है तमस्तोमसा व्याप्त दृष्टि- अपहारी ॥
तुम सूर्यवश के सूर्य प्रकाश दिखाओ | भूभार-हरण के लिये वरा पर आओ ||
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