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सत्य संगीत
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कुवके फूल
कन पर आज चढाये फूल । जबतक जीवन था तबतक क्षणभर न रहे अनुकूल |कन पर ॥१॥
कणकणको तरसाया क्षणक्षण मिला न अणुभर प्यार । अब आँखोंसे बरसाते हो, मुक्ताओं की धार ॥
देह जब आज बनी है धूल ।
कन पर आज चढाये फूल ॥२॥ आज धूल भी अजन सी है, नयनी का शृङ्गार । काला ही काला दिखता था, तब हीरे का हार ॥
कल्पतरु भी था तब वंचूल ।
कब्र पर आज चढाये फूल ॥३॥ विस्मति के सागर में मरी. डवा रहे थे याद । नाम न लेते थे, कहते थे, हो न समय बर्वाद ॥
मगर अव गये भूलना भूल ।
कन पर आज चढ़ाये फूल ॥४॥ सदा तुम्हारे लिये किया था, धन-जीवन का त्याग । सींच सींच करके ॲसुओंसे, हरा किया था बाग ॥
मगर तब हुए फूल भी शल ।
कन पर आज चढ़ाये फूल ||५|| अब न कत्र में आ सकती है, इन फूलों की वास । मुझे शाति देता है केवल, यही कुन का घास ॥
शान्त रहने दो जाओ भूल | बज़ पर आज चढाये फूल ॥