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भुलक्कड़
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भुलक्कड़
( १ ) भुलक्कड़ ! फिर भूला ! फिर भूला तू आज । कुपथ और पथका न ठिकाना |
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शत्रु-मित्रका भेद न जाना । विपको अमृत, अमृत विप माना ॥
वन कर पागलराज ।
॥
भुलक्कड़, फिर भूला तू आज ! ( २ )
परिवर्तन से डरता है तू । पर परिवर्तन करता है चलता नहीं घिसडता है
तू ।
तू ॥
जत्र छिन जाता ताज । भुलक्कड, फिर भूला तू आज || ( ३ )
अहङ्कार ने राज्य जमाया । और अन्ध-विश्वास समाया ॥ मिली चापलूसों की माया ॥
हुई कोढ़ में खाज । भुलक्कड, फिर भूला तू आज ॥
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