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भानवा गीत
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(१३) करुगाशील हृढय हो मेरा, रहू सदा हिसा से दूर । दिल न दृग्वाऊ कभी किमीका, किसी तरह भी वन न क्रूर ।। जिऊ जगत को भी जीने दू पालन करू सदा यह नीति । सौम्यरूप हो सब कुछ मेरा, मुझने हैं। न किसी को भीति ॥
विविध कष्ट मह कर भी वोलू, सदा सभी से सच्ची बात । कभी न वचित करू किसाको, हो न कभी कटुवचनाघात ॥ कोमल प्रेमजनक शब्दो का, हो मुझसे सवढा प्रयोग । करू न मैं अपमान किसी का, और न हो गाली का रोग ॥
(१५) चर्यि-वासना से थोडे भी, परवन को न लगाऊ हाथ । प्रगट या कि अप्रगट रूप मे, द न कभी चोरो का साय ॥ न्यायमार्ग से जो कुछ पाऊँ, उसमे रहे पूर्ण सतोष । अटल रहे ईमान सर्वदा, निर्वनता मे भी निर्दोप ।।
(१६) जीवन अतिपवित्र हो मेरा, दूर रहे मुझसे व्यभिचार । प्रेम रहे, पर प्रेम नाम पर, हो न हृदय यह पापागार ॥ नारी पर दर्दृष्टि नहीं हो, हो तो ये आँखें दू फोड । अगर कुचेष्टा करे हाथ तो, द इनकी हड्डियाँ मरोड ॥
(१७) धन सयम पालन करने को करू लालसाओ को चूर । वभव में न महत्त्व गिनू मैं, रहू सदा धनमद से दूर ॥