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सत्य संगीत
पतित हो कि हो दीन सभी में, सत्य धर्म का करू प्रचार । स्वय न छीनू छनिने न दू, जन्मसिद्ध सबक अधिकार ।। ठेका हो न वर्म कार्यों का, कर दू मैं इसको नि शेप । गुण का आदर रहे जगत में, करे न ताडब कोई वेप ॥
(१०) प्रेम की न हो सीमा मेरे , ग्राम प्रान्त कुल जाति स्वदेश ।. विश्व देश हो, मनुज जाति हो, हो न क्षुद्रता का लवलेश ॥ जिवर न्याय हो उधर पक्ष हो, हो विपक्ष मे अत्याचार । पीटित जन बान्धव हों मेरे , उनसे कम हृदय से प्यार ॥
(११)
नर नारी का पक्ष नहीं हो, मान दोनों के अधिकार । करें परस्पर त्याग सर्वदा, हो न किसी को कोई भार ॥ प्रतिद्वदिता रहे न उनमें, दो तनपर हो जीवन एक । रंग एक ही टग एक हो, स्वार्थो का न रहे अतिरेक ॥
(नीतिमत्ता)
(१२). मित्र मात्र मत्यम्य जनों पर, करन योटा भी अन्याय । न्यारमार्ग के रक्षण में ही, तन मन धन जीवन लग जाय। मकट जगत की मुष माता में, मन में अपना कल्याण । ज्या वर ग्न हो गवन की, यहा लगा दू अपने प्राण ॥