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________________ महात्मा राम महात्मा राम नैतिकता की मर्यादा पर सर्वस्त्र दान करनेवाला । जगल में भी जाकर मगल का नव-वसन्त भरनेवाला ॥ हँसते हँसते अपने भुजबल से दुग्व- समुद्र तरनेवाला । तू मर्यादा पुरुषोत्तम था संसार-दु.ख हरनेवाला ॥ (२) तू सूर्यवंश का सूर्य रहा जगको प्रकाश देनेवाला । अवतार वीरता का या तू दुखियों की सुध लेनेवाला ॥ यद्यपि तु रघुकुलदीपक था पर सबका नयन सितारा था। वयन कुलजाति न था तुझको तू विश्व मात्रका प्यारा था ।। तुझको जसा सिंहासन या वैसी ही वनकी कुटिया थी। जैसा सोनेका पात्र तुझे वैसी नॉवेकी लुटिया थी ।। तेरा था भोगी वेप मगर भीतर से या योगी सच्चा । तृ अग्नि-परीक्षाओं में भी पडकर न कभी निकला कच्चा॥ तेरा पत्नीत्रत सतीजनों के पातिव्रत्य समान रहा । तुझको प्रेमीके साथ पुजारी बनने का अरमान रहा ।। सीता बिजुड़ी अथवा त्यागी तुझको उसका ही ध्यान रहा। ऋपि ब्रह्मचारियों से भी बढ़कर था तेरा ईमान रहा ।।
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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