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________________ 1 ANAN VAAAAA V जय सत्य अहिंसे www जय सत्य अहिंसे जय सत्य अहिंसे जगत्पिता जगमाता । कल्याणधाम अभिराम सकलसुखदाता || wwwwwwww V तुम चिदाकार निर्मूति अनवतारी हो । पर भक्त - हृदय में गुणमय नर-नारी हो । तुम जननी - जनक - समान प्रेम-धारी हो ॥ भगवान भगवती हो अघ - तमहारी हो ॥ तुममें वात्सल्य विवेक मूर्त्त बनजाता । जय सत्य अहिंसे जगत्पिता जगमाता ॥१॥ निर्मल मति का सन्देश सुनाया तुमने । सनम सुख का साम्राज्य दिखाया तुमने || वीरत्वपूर्ण समता को गाया तुमने । भाई भाई में प्रेम सिखाया तुमने || है वरद पाणि भक्तों को अभय बनाता । जय सत्य अहिंसे जगत्पिता जगमाता ॥ २ ॥ तुम हो अवर्ण पर नाना वर्ण तुम्हारे । तुम रजतचन्द्रिका सम जगके उजयारे ॥ है दिव्य ज्ञानकी ज्योति नयन रत्नारे | तपनीय वर्ण गुणमय भूषण है प्यारे ॥ [ १२७ है अग अग वैभव अनत सरसाता । जय सत्य अहिंसे जगत्पिता जगमाता ॥ ३ ॥
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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