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.. सत्य संगीत .... ....
महावीराक्ततार
(१)
यद्यपि न किसी को ज्ञात रहा तू कब कैसे आजावेगा। अधी ऑखों के लिये सत्यका पढरज अञ्जन लावेगा ॥ अज्ञानतिमिरको दूर हटाकर नवप्रकाश फलवंगा। रोते लोगों के अश्रु पोछ गोटीमें उन्हें उठावंगा ॥
(२) तो भी अपना अश्चल पसार अबलाएँ ऊँची दृष्टि किये। करती थीं तेरा ही स्वागत अञ्चल में स्वागत-पुष्प लिये ॥ अधिकार हिने थे सब उनके उनको कोई न सहारा था।
था ज्ञात न तेरा नाम मगर तू उनका नयन सितारा था।
पशुओं के मुखसे दर्दनाक आवाज सदैव निकलती थी । उनकी आहोसे जगत् व्याप्त था और हवा भी जलती थी । भगवती अहिंसाके विद्रोही वर्मात्मा कहलाते थे।
भगवान सन्यके परम उपासक पढपद ठोकर खाते थे।