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________________ ६२] .. सत्य संगीत .... .... महावीराक्ततार (१) यद्यपि न किसी को ज्ञात रहा तू कब कैसे आजावेगा। अधी ऑखों के लिये सत्यका पढरज अञ्जन लावेगा ॥ अज्ञानतिमिरको दूर हटाकर नवप्रकाश फलवंगा। रोते लोगों के अश्रु पोछ गोटीमें उन्हें उठावंगा ॥ (२) तो भी अपना अश्चल पसार अबलाएँ ऊँची दृष्टि किये। करती थीं तेरा ही स्वागत अञ्चल में स्वागत-पुष्प लिये ॥ अधिकार हिने थे सब उनके उनको कोई न सहारा था। था ज्ञात न तेरा नाम मगर तू उनका नयन सितारा था। पशुओं के मुखसे दर्दनाक आवाज सदैव निकलती थी । उनकी आहोसे जगत् व्याप्त था और हवा भी जलती थी । भगवती अहिंसाके विद्रोही वर्मात्मा कहलाते थे। भगवान सन्यके परम उपासक पढपद ठोकर खाते थे।
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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