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३८ ]
सत्य-संगीत
भाक्तागीत
(सर्व-धर्म-समभाव )
( 2 )
जीवन यह होजाय
दु स्वार्थो से रहे
सत्य अहिंसा के पालन मे, पक्षपात से दूर रहे मन, सर्व-धर्म-समभाव न भूलूँ, अहकार का कर मन मन्दिर में सब धर्मोके, तत्त्रा का मै
व्यतीत । अतीत ॥
अवसान | गाऊ गान ॥
( २ )
बुद्धि विवेकन छोड् क्षणभर, आने दू न अन्धविश्वास | परम्परा के गीत न गाऊ, करू न मानवता का ह्रास ॥ सकल महात्मा पुरुषों मे हो, समता का न कभी विच्छेद | हैं ये विश्व-विभूति न इन में, हो मेरा तेरा का भेट |
( ३ )
राम महात्मा के पथ पर हो, मेरा यह जीवन कुर्बान | मर्यादा पर मरना सीखू, सीखू धनमद का अपमान || योगेश्वर श्रीकृष्णचन्द्र से, सीखू कर्मयोग का गान । योग भोग का करू समन्वय, करू फलाशा का अवसान ॥ ( ४ ) महावीर स्वामी से सीखू, दिव्य अहिंसा दर्शन ज्ञान 1 कर दू सहनशीलता पाकर, जन सेवा में जीवनदान ॥ वुद्ध महात्मा के जीवन से, पाऊ दया और सोध । दुनिया का दुख दूर करू मैं, कर दू पापों का पथरोध ||