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________________ ६८] सत्य-संगीत महात्मा बुद्ध न तेरी करुणा का था पार । तू या मन्य-पुत्र तेरा या बन्धु अखिल ससार । न तेरी करुणा का था पार । निर्धन सधन और नर-नारी । मूट विवेकी जनता सारी । पशु पक्षी भी मुदित किये तब औरों की क्या बात । किये झूठ हिंमा आदिक पापोंके घर उत्पात ॥ किया पापों का भडाफोड । धर्म तव आया बन्धन तोड । मिटा दीन, दर्वल, मनुजों के मुख का हाहाकार न तेरी करुणा का था पार ॥१॥ न तेरी करुणा का था पार । करुणाशि ऊगा आलोकित हुआ निखिलससार । न० अवलाएँ अञ्चल पसार कर । वोल उठी आआ करुणाधर ॥ नृतन आगाओं से सबका फला हृदयोद्यान । रुग्ण जगत् न पाया तुझको सच्चे वद्य समान ॥ हुए आशान्वित सारे लोग । छूटने लगा अधानिक रोग । पृथ्वी उठी पुकार, पुत्र ! अव हरले मेरा भार । न तेरा करुणा का था पार ॥२॥
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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