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________________ WWW AMAW महत्मा बुद्ध न तेरी करुणा का था पार । पशु अबला निर्बल शूद्रों की तूने सुनी पुकार । न० लाखों पशु मारे जाते थे । मुख में तृण रख चिल्लाते थे । ध्यान | कोई मानव का बच्चा था देता जरा न बढती श्री श्रोणितपी पीकर बस हिंसा की शान || मिटाये तूने हिंसाकाण्ड | दयासे गूँज उठा ब्रह्माड । क्रन्दन मिटा सुन पडी सत्रको वीणा की झङ्कार । न तेरी करुणा का था पार ॥३॥ न तेरी करुणा था पार । ढा दीं गईं सभी दीवालें रहे न कारागार । न तेरी ० जगमें बजा साम्यका डङ्का । मनकी निकल गई सब दम्भ और विद्वेष न ठहरे वही दीनता वहा जातिमद ऐसी उठी तरङ्ग ॥ हुआ झूठों का मुॅह काला । सत्य का हुआ बोलबाला | एक बार बज पडे हृदय-वीणाके सारे तार ॥ न तेरी करुणा का था पार ॥४॥ 44 शङ्का । चढा प्रेमका रङ्ग । [ ६९
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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