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महत्मा बुद्ध
न तेरी करुणा का था पार ।
पशु अबला निर्बल शूद्रों की तूने सुनी पुकार । न० लाखों पशु मारे जाते थे ।
मुख में तृण रख चिल्लाते थे ।
ध्यान |
कोई मानव का बच्चा था देता जरा न बढती श्री श्रोणितपी पीकर बस हिंसा की शान || मिटाये तूने हिंसाकाण्ड |
दयासे गूँज उठा ब्रह्माड ।
क्रन्दन मिटा सुन पडी सत्रको वीणा की झङ्कार । न तेरी करुणा का था पार ॥३॥
न तेरी करुणा था पार ।
ढा दीं गईं सभी दीवालें रहे न कारागार । न तेरी ०
जगमें बजा साम्यका डङ्का ।
मनकी निकल गई सब
दम्भ और विद्वेष न ठहरे वही दीनता वहा जातिमद ऐसी उठी तरङ्ग ॥ हुआ झूठों का मुॅह काला ।
सत्य का हुआ बोलबाला |
एक बार बज पडे हृदय-वीणाके सारे तार ॥
न तेरी करुणा का था पार ॥४॥
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शङ्का । चढा प्रेमका रङ्ग ।
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