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________________ मिहर्वा [ ११७ मिही मिहर्वा हो जायेंगे, दर्दे जिगर होने तो दो । सगदिल गल जायेंगे, कुछ रुख इधर होने तो दो ॥ (२) दिल गलाकर जो बनाऊँ, ऑसुओकी धार मैं । दिलमे चमकेगे मगर यह दिल जरा वोने तो दो । पुतलियोंमे ही पकड कर कैद कर दूंगा उन्हें । पर पुतलियों को जरा बेचैन वन रोने तो दो ॥ वे उठायेंगे मुझे, छाती लगायेंगे मुझे । ख्वाब उनका देखने का कुछ मुझे सोने तो दो । नेक बनकर जब महब्बत जर्रे जर्रे से करूँ। वे मुहब्बत मे फंसेंगे पर वदी खोने तो दो ॥ भायेगे कर जायेंगे वे दिलको मोअत्तर चमन । पर दिलोपर प्रेम के कुछ बीज भी वोने तो दो ॥
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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