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मिहर्वा
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मिही
मिहर्वा हो जायेंगे, दर्दे जिगर होने तो दो । सगदिल गल जायेंगे, कुछ रुख इधर होने तो दो ॥
(२) दिल गलाकर जो बनाऊँ, ऑसुओकी धार मैं । दिलमे चमकेगे मगर यह दिल जरा वोने तो दो ।
पुतलियोंमे ही पकड कर कैद कर दूंगा उन्हें । पर पुतलियों को जरा बेचैन वन रोने तो दो ॥
वे उठायेंगे मुझे, छाती लगायेंगे मुझे । ख्वाब उनका देखने का कुछ मुझे सोने तो दो ।
नेक बनकर जब महब्बत जर्रे जर्रे से करूँ। वे मुहब्बत मे फंसेंगे पर वदी खोने तो दो ॥
भायेगे कर जायेंगे वे दिलको मोअत्तर चमन । पर दिलोपर प्रेम के कुछ बीज भी वोने तो दो ॥