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________________ ११६ ] सत्य-संगीत महारे सम्झना स्वार्थी मतवारे । पाकर बुद्धि अन्ध-श्रद्धा से मरता क्यों प्यारे ॥ समझना स्वार्थी मतवारे ॥ १॥ अहकार का लगा ढवानल तू है और लगाता । क्यो धन देता है भूलों को है और भुलाता ॥ फिराता क्यों मारे मारे । समझना स्वार्थी मतबार ॥२॥ छाई है नव-घटा मोर नचते हैं वनके अपर । प्लाक्ति होगी तपे तबासी भमि और गिरि कन्दर ॥ मिलेंगे सब न्यारे न्यारे । समझना स्वार्थी मतवार । ॥३॥ झरता है आकाग बता त कहा 'बेगरा टेगा। रमकी वेट टपक रहीं हैं मह तु क्या कर लेगा ॥ पियगे प्यास दुखियारे । समझना स्वार्थी मनबार ॥ ४ ॥ स्यालाई बुझनी जानी है देव जलानेवाले । अब ग्लनर ममार बना है भरे नदी नट नाल | फांटना क्यों रोकर तोर । मम्झना स्वार्थी मतभार ॥ ५॥
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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