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________________ ९४ ] सत्य-संगीत Vvv wow ( २ ) में जल है पर मेरे काम १५५१४ प्यास ( १ ) तूही मेरी प्यास बुझा | अधिक नहीं तो एक बूँढ ही इस मुख में टपकाने । वही मेरी प्यास बुझादे | भूतल नहीं वह आता । गली गली का मैल वहा है मुख न उसे पाता ॥ मुखपर निर्मल जल बरसादे । वही मेरी प्यास बुझादे ॥ ( ३ ) “पानी में भी मीन पियासी सुनकर आत्रे हॉर्सी" पर तु मर्म समझता स्वानी, तू घट घट का आकर निर्मल नीर वासी ॥ पिलांडे | तू ही मेरी प्यास बुझादे ॥ ( ४ ) प्यासा जान भले ही जाये, चातक तुन्य रहुँगा पर न अशुद्ध नीरका कण भी इस मुखमें आपावे ॥ मेरा यह प्रण पूर्ण करादे | तुही मेरी प्यास बुझादे ||
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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