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सत्य-संगीत
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( २ )
में जल है पर मेरे काम
१५५१४
प्यास
( १ )
तूही मेरी प्यास बुझा | अधिक नहीं तो एक बूँढ ही इस मुख में टपकाने । वही मेरी प्यास बुझादे |
भूतल
नहीं वह आता ।
गली गली का मैल वहा है मुख न उसे पाता ॥
मुखपर निर्मल जल बरसादे । वही मेरी प्यास बुझादे ॥ ( ३ )
“पानी में भी मीन पियासी सुनकर आत्रे हॉर्सी"
पर तु मर्म समझता स्वानी, तू घट घट का
आकर निर्मल नीर
वासी ॥ पिलांडे |
तू ही मेरी प्यास बुझादे ॥
( ४ )
प्यासा जान भले ही जाये,
चातक तुन्य रहुँगा पर न अशुद्ध नीरका कण भी इस मुखमें आपावे ॥
मेरा यह प्रण पूर्ण करादे |
तुही मेरी प्यास बुझादे ||