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सत्य सगात
(२६) भूखे को भोजन सदैव दूं, प्यासे को पानी का दान । गुरुपन का अभिमान न रखकर, दू भूले भटके को ज्ञान ॥ सेवा करू सदेव दीन की, रोगी को दू औषध पान । पीडित जन ' के सरक्षण मे, हो मेरा जीवन कुर्वान ॥
(२७) जग की माया जग की समझू, पाऊ तो करदू मैं' त्याग । रह अकिंचन सा बनकर मै,तृष्णा का लगाऊ दाग ॥ सुग्व दुग्व में समता हो मेरे डस न सके भयरूपी नाग। मरने की न भीति हो मुझको, जीने का न अन्ध अनुराग ॥
(२८) मैत्री हो समस्त जीवों मे, विश्वप्रेन का वनू अगार । गणियों में प्रमोद हो मेरा, हो उनका पूजा सत्कार ।। पर दुखको निज दुख सम समझू, दुखित जीव पर हो कारुण्य । दुर्जन पर माव्यस्थ्य भाव हो, समझू में सेवा मे पुण्य ॥
कर्मयोग
रह सढा उद्योगी बनकर, कर्मयोग हो जीवनमत्र । कर सभी कर्तव्य किन्नु हो, हृदय वासना-हीन स्वतन्त्र । अकर्मण्य बनकर न करू मै, ख्याति लाभ पूजा का त्याग ॥ वेष दिखा कर हो न त्याग के, नाटक मे मुझ को अनुराग ॥