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________________ ९० ] सत्य-संगीत न कुछ भी सग लाये थे,चलेगा सगमें भी क्या । पडा रह जायगा यों ही, न आना है न जाना है। ठिकाना पूछते हो क्या० ॥८॥ प्रलोभन क्या लुभावेगा ? करेगी चोट क्या विपदा ? जगह वह छोड दी हमने, जहाँ उनका निशाना है ।। ठिकाना पूछते हो क्या० ॥९॥ न साढे तीन हाथों से, अविक कोई जगह पाता । पसारे हाथ कितने ही, मगर क्या हाथ आना है ? ठिकाना पूछते हो क्या० ॥१०॥ करेंगे दीन की सेवा, बनेगे विश्व-सेवक हम । दुखीजनके कटे दिलपर, हमें मरहम लगाना है ॥ ठिकाना पूछते हो क्या० ॥१२॥ करेंगी रूढियाँ ताडब अहकारी सतावेंगे । मगर उनके प्रहारों को, हमें मिट्टी बनाना है । ठिकाना पूछते हो क्या० ॥१२॥ बने जो मित्रजन कातिल, हमें पर्वा न है उनकी । हमारी यह तमन्ना है, कि अपना सिर कटाना है ।। ठिकाना पूछते हो क्या० ॥१३॥ न दुश्मन अब रहा कोई, हमारे दोस्त हैं सब ही । सभी के प्रेममय मन पर, हमे कुटिया बनाना है ।। ठिकाना पूछते हो क्या० ॥१४॥
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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