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________________ ठिकाना [ ८९ ठिकाना टिकाना पटते हो क्या ! हमारा क्या ठिकाना है ! मिट जो अपडी आग, निगा उसमे बिनाना है || ठिकाना पळते हो क्या० ॥१॥ अमरिमें न था हमना, गरीवी में न है रोना । जगन् चरता. चलेंगे हम, हमें क्या घर बसाना है । ठिकाना पडने हो क्या० ॥२॥ पटा कर्तव्यका पय है, भला विश्राम क्या होगा? न माना है न रोना में चलकर विग्याना है । ठिकाना पछते हो क्या० ॥३॥ विटाई म्वार्थ को दी फिर, हमाग क्या तुम्हारा क्या ? जमीं आ आसमाँ सारा, सदन हमको बनाना है ।। ठिकाना पृछते हो क्या० ॥४॥ जिसे तुम घर समझते हो, वही तुमको मुबारिक हो । हमारा क्या, हमें जगसे सदा नाता लगाना है | ठिकाना पूछते हो क्या० ॥५॥ करोडों मर्द है भाई, करोडों नारियाँ बहिनें । फकीरी है मगर हमको, कुटुम्बी भी कहाना है ।। ठिकाना पूछते हो क्या० ॥६॥ भले हो अग पर चिथडे, लँगोटी भी न साजी हो । . हमें तो गीलसे अपना, सदा जीवन सजाना है । ठिकाना पूछते हो क्या० ॥७॥
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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