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ठिकाना
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ठिकाना
टिकाना पटते हो क्या ! हमारा क्या ठिकाना है ! मिट जो अपडी आग, निगा उसमे बिनाना है ||
ठिकाना पळते हो क्या० ॥१॥ अमरिमें न था हमना, गरीवी में न है रोना । जगन् चरता. चलेंगे हम, हमें क्या घर बसाना है ।
ठिकाना पडने हो क्या० ॥२॥ पटा कर्तव्यका पय है, भला विश्राम क्या होगा? न माना है न रोना में चलकर विग्याना है ।
ठिकाना पछते हो क्या० ॥३॥ विटाई म्वार्थ को दी फिर, हमाग क्या तुम्हारा क्या ? जमीं आ आसमाँ सारा, सदन हमको बनाना है ।।
ठिकाना पृछते हो क्या० ॥४॥ जिसे तुम घर समझते हो, वही तुमको मुबारिक हो । हमारा क्या, हमें जगसे सदा नाता लगाना है |
ठिकाना पूछते हो क्या० ॥५॥ करोडों मर्द है भाई, करोडों नारियाँ बहिनें । फकीरी है मगर हमको, कुटुम्बी भी कहाना है ।।
ठिकाना पूछते हो क्या० ॥६॥ भले हो अग पर चिथडे, लँगोटी भी न साजी हो । . हमें तो गीलसे अपना, सदा जीवन सजाना है ।
ठिकाना पूछते हो क्या० ॥७॥