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________________ ७६ ] सत्य-संगीत मुहम्मद था अनत्र बना वाना तेरा, तलवार इधर थी, उवर दया । जल-लहरी की मालाएँ थीं, जालाएँ थी, था रूप नया ॥ दुर्जन-दल भजक था पर न , जगका अनुरञ्जक प्रेम-सना। भीतर से था सच्चा फकीर, ऊपर से था पर शाह बना। (२) था माल खजाना तेरा पर, कोडी कोडी का त्याग किया । मालिक था, गुरु था, पर तून, मेवकता का सन्मान लिया ॥ विपदाओं के अगणित कंटक थे, तने उनको पीस दिया । तू मौत हथेली पर लेकर, भली दुनियाक लिय जिया। (३) नर-रत्न मुहम्मद, सीखी थी, तूने मरने की अजब कला । . तु बाइज था, पैगम्बर था, तूने दुनिया का किया भला ॥ अभिमान छुडाया था तूने, सबके मजहब को भला कहा । तू सर्वधर्मसमभाव लिये, भगवान सत्यका दूत रहा ।। दिखलादे त अपनी झाँकी, दुनिया में कुछ ईमान रहे । सप्रेम रहे मानव-मन में, भाईचारे का ध्यान रहे ॥ मजहब के झगडे दूर हटें, मजहब में सच्ची जान रहे। सब प्रेम-पुजारी बनें अहिंसक, जिससे तेरी शान रहे।
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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