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महात्मा मुहम्मद
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(६) जग साध्य-साधनों का, जब सद्विवेक भूला । रिस्ता तभी खुदा से, सीधा लगानेवाले ॥
(७) जब व्याज बोझ बनकर, सबको सता रहा था । कहके हराम उसकी-हस्ती मिटानेवाले ॥
(८) धन पाप किस तरह है, इस मर्मको समझकर ।
व्यवहार मे घटा कर, जग को दिखानेवाले ॥
अबला गरीब जन की, जो दुर्दशा हुई थी। उसको हटा घटा कर, सुख शाति लानेवाले ॥
(१०) जग में असख्य अबतक, पैगम्बरादि आये ।
उनको समान कह कर, समभाव लानेवाले ॥
मजहब सभी भले हैं, यदि दिल भला हमारा । सब धर्म प्रेम-मय हैं, यह गीत गानेवाले ॥
(१२) समभाव फिर सिखाजा, सूरत जरा दिखाजा ।
फिर एक बार आजा, दुनिया हिलानेवाले ॥