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नई दुनिया [७१ नई दुनिया दुनिया अब नई बनाना ।
यह जग हो गया पुराना ॥ फैला है इसमें रूढिजाल । दुर्जन रूपी हैं विकट व्याल । वचक चलते हैं कुटिल चाल ।
सजन होते बेहाल हाल ॥ पर हमको स्वर्ग दिखाना । दुनिया अब० ॥१॥ रोका जाता इसमें विकास । है व्यक्ति पा रहा व्यर्थ त्रास । बनता कायरता का निवास ।
विद्वेष घृणा है आसपास ॥ हमको है प्रेम बढाना । दुनिया अब० ॥२॥ यद्यपि है मानव एक जाति । पर घर घर में है जाति पॉति । भाई का भाई है अराति ।
जो था अधाति बन गया घाति ।।
सबको है हमें मिलाना (दुनिया अब० ॥३॥ नारी है अव अधिकार-हीन । है पशु समान अतिहीन दीन ।
मानवता पशुता के अधीन ।