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सत्य-संगीत
तेरा हक
तेरा रूप न जाना मैंने । निराकार बनकर तू आया मगर नहीं पहिचाना मैंने । तेरा ॥१॥
मन मन में था तन तन में था।
कण कण मे था क्षण क्षण मे था ॥ पर मैं तुझको देख न पाया, पाया नहीं ठिकाना मैने । तेरा ॥२॥
रवि शशि भूतल अनल अनिल जल ।
देख चुका तेरा मृरति-दल । मूरति देखी किन्तु न देखा, तेरा वहा समाना मैंने । तेरा ॥३॥
उरग नभश्चर जलचर थलचर ।
तेरी मूर्ति बने सब घर घर । उन सबने सगीत सुनाया, तेरा सुना न गाना मैंने । तेरा ||४||
पर जब तु मानव वन आया ।
तब तेरे दर्शन कर पाया ॥ तब ही परम पिता सब देखा, तेरा पूजन ठाना मैंने । तेरा !!५||
करुणा प्रेम ज्ञान वल सयम ।
वन्सलता दृढता विवेक शम ॥ देखे तेरे कितने ही गण, तत्र तुझको पहिचाना मैंने । तेरा ॥६||
तुझको परम पिता सम पाया ।
देखी सिर पर तेरी छाया ॥ तव ही पुलकित होकर ठाना, जीवन सफल बनाना मैंने ॥
तेरा रूप न जाना मैंने ॥७॥