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प्यालेवाले
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. तृने उस पर नशा चढ़ा कर ।
बेचारे को दीन बनाकर ॥ उसके सभी इरादे तने आज नोड टाले ।
ढया कर ए प्यालबाले ॥
[६ [ आग्विर है यह कितना जीवन ।
इसके लिये पाप मे क्यो मन । वन्धु बन्धु है सभी प्रेम से प्रेम-गीत गाले ॥
टया कर ए प्यालेवाले ॥
[७] इतनी तृष्णा बढी भला क्यो ।
मरख, करने पाप चला क्यों । खाना है दो कौर प्रेमसे आकर त खाल |
ढया कर ए पालेवाले ॥
(८) छोड छोड यह नशा चटाना ।
मानव का अज्ञान बढ़ाना । इतना पाप बोझ करता क्या जान ले टाले ।
दया कर ए प्यालेबान्ने ॥