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महात्मा कृष्ण
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महात्मा कृष्ण
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महात्मा कृष्ण
तु था जीवन का रहस्य दिखलानेवाला कर्मों में कांगल्य-पाठ सिखलानेवाला ॥ योग भोगका सत्य समन्वय करनेवाला । सूखे जीवन में अनन्त रस भरनेवाला ॥१॥
सच्चा योगी और प्रेम-पथ पथिक रहा तू । विषयवासनाके प्रवाह में नहीं वहा तू ।। नयी प्रीति की रीति योगके संग सिखाई ।
मानों अम्बुदवृन्द सग चपला चमकाई ।। २ ॥ जब समाज की दशा होरही थी प्रलयकर । अत्याचारी दुष्ट बने थे भूत भयकर ।।