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समर्पण
भगवान सत्य भगवती अहिंसा के चरणों में
हे जगत्पिता हे जगदम्बे,
तुमने चरणो मे लिया मुझे । मैं या अनाथ अतिदीन हीन तुमने सनाथ कर दिया मुझे || तार्किकता में सहृदयता का सम्मिलन किया उद्धार किया । निष्प्राण बना था यह जीवन तुमने प्राणों का सार दिया || सत्र मिला जब कि समभाव मिला सद्बुद्धि मिली ससार मिला । सारे धर्मो के पुण्यपुरुष मिल गये जगत का प्यार मिला ॥ मिलगई प्रलोभन जय मुझको विपदा सहने की शक्ति मिली । रह गया मुझे क्या मिलने को जब आज तुम्हारी भक्ति मिली ॥ मेरा सर्वस्व तुम्हारा है बोलो फिर तुम्हें चढाऊ क्या । अक्षर अक्षर का ज्ञान तुम्हीं ने दिया भक्ति बतलाऊँ क्या ॥ पर भक्ति नहीं मेरे वा मे वह गुण-संगीत सुनाती है । गंगाजल अँजुली में लेकर गंगा को भेट चढाती है |
तुम्हारा भक्त
दरवारी