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सत्य संगीत
चिता
बालाओं का जाल बिछा है, है पर गान्ति-निकेतन । जलती हैं चिंताएँ सारी, शान्त यहा है तन मन ॥१॥ अब न मित्र का मोह यहा है, है न गत्र का भी भय । हू न किसीपर सढय-हृदय अब हू न किसीपर निर्दय ॥२॥ जीवन में क्षणभर भी ऐसी नींद नहीं ले पाया । सोता था मै नचता था मन, माया में भरमाया ॥३॥ 'इसका लेना उसका देना, यह मेरा वह तेरा। करता था, पर रहा न कुछ अव. लगा चिता पर डेरा ॥४॥ फलों की शय्या पर सोया बन जोडा दिल तोडा । भूला रहा काठकी गय्या, चार जनों का घोडा ||५|| इसे हराया उसे हराया बना रहा अभिमाना । पर यह जीवन हार रहा था, सीधी बात न जानी ॥६॥ इसका टूटा उसका खाया, अति लालचके मारे । लेकिन हाथ न कुछ भी आया. जाता हाथ पसारे ॥७॥ मानव का कर्तव्य भुलाया योंही दिवस विताय । बहती थी गगा पर मैंने हाथ नहीं वोपाये ॥८॥ खेला भा खल, खेल का मजा न कुछ भी आया। सूत्रधार यमराज अचानक आया खेल मिटाया ॥९॥
I, साथ पर चल न कुछ भी, साथ न था कुछ लाया। उस मिट्टीमें ही जाता , जिस मिट्टी से आया ।।१०।।