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युगवीर-निबन्धावली "पूर्वक स्वीकार किये जा चुके हैं। इस प्रकार हम प० जुगलकिशोरजी मुख्तारको जैनसमाजमें नये युग-निर्माणमे एक महान् अग्रणी कह सकते हैं, जिसके प्रचुर प्रमाण उनके प्रस्तुत लेखोमे विद्यमान हैं। जो कोई जैनसमाजकी गत अर्ध शताब्दीकी गतिविधिका इतिहास समझना चाहे, व उस विषय पर कुछ लिखना चाहे, उसके लिये यह लेख-सग्रह अनिवार्यरूपसे उपयोगी सिद्ध होगा, और वह पडितजीकी विद्वत्ता व समाज-सुधारकी शुद्ध और सुदृढ भावनाका लोहा माने बिना नहीं रहेगा । अध-विश्वासो व अज्ञानपूर्ण मान्यताप्रोकी कठोर आलोचनाके साथ साथ शास्त्रीय आधार और स्थिर आदर्शोका पक्षपाततथा नव-निर्माणका सावधानी पूर्ण प्रयत्न पडितजीकी अपनी विशेषता है। अपनी कही हई बातोकी पुष्टि के लिये प्रमारणो, तर्कों व दृष्टान्तोकी उनके पास कोई कमी नहीं । उनकी भाषा सरल और धारावाहिनी, तथा शैली तकपूर्ण और प्रोजस्विनी है। सस्कृत व फारसीके मोह व आग्रहसे रहित व ऐमी सुबोध हिन्दी लिखते हैं जिसके विषयमे किसीको कोई शिकायत नहीं होनी चाहिये। इन सब गुणोसे पडितजीका अपना 'युगवीर' उपनाम, जो उनक पूरे नामका ही सारगर्भित मक्षेप है, पूर्णत सार्थक सिद्ध हुआ पाया जाता है।
हमारी अभिलाषा और प्राथना है कि इतदेवीका यह परम पुजारी चिरायु हो। विश्वविद्यालय, )
(डा.) हीरालाल जैन जबलपुर (म०प्र०) १६-२-१९६३ )
( एम.एस, डी० लिट)