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विश्वतत्त्वप्रकाशः
श्री भुजबल शास्त्री के पत्र से ज्ञात होता है कि इस समय मूडबिद्री मठ में उक्त ग्रन्थ नही है । पहले प्रमाप्रमेय के परिचय में बताया है कि वह सिद्धान्तसार मोक्षशास्त्र का पहला भाग है । मूडबिद्री की यह प्रति प्रमाप्रभेय की ही है या अगले भाग की है यह जानना सम्भव नही हुआ ।
न्यायदीपिका - इस का उल्लेख लुई राइस द्वारा संपादित मैसूर व कुर्ग की हस्तलिखित सूची ( पृ. ३०६ ) में है । यह प्रति हम देख नही सके अतः यह धर्मभूषणकृत न्यायदीपिका की ही प्रति है या उसी नाम का स्वतन्त्र ग्रन्थ है यह कहना सम्भव नही है ।
सप्तपदार्थांटीका - इस का उल्लेख पाटन के हस्तलिखितों की सूची की प्रस्तावना (पृ. ४४ ) में मिला । इस का अन्यविवरण प्राप्त नही हो सका । वैशेषिक दर्शन के विद्वान शिवादित्य का सप्तपदार्थी नामक ग्रन्थ प्रसिद्ध हो चुका है । हो सकता है कि भावसेन की यह 1 कृति उसी की टीका हो । शिवादित्य का समय भी भावसेन से पहले का था यह सुनिश्चित है ।
३. समय- विचार
भावसेन ने अपने किसी ग्रन्थ में समय निर्देश नही किया है । अतः इस विषय में कुछ विचार अपेक्षित है । प्रस्तुत ग्रन्थ की एक हस्तलिखित प्रति शक १३६७ = सन १४४५ की है । इन के दूसरे ग्रन्थ कातन्त्ररूपमाला की एक प्रति शक १३०५ = सन एक प्रति शक १२८९ = सन १३६७ की है सन १३६७ से पहले सुनिश्चित है । लेखक ने में पूर्व पक्ष के तौर पर भासर्वज्ञकृत न्यायसार के
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कई वाक्य उद्धृत किये
है - यह ग्रन्थ दसवीं सदी का है । वेदान्त दर्शन के विचार में लेखक ने विमुक्तात्म की इष्टसिद्धि का उल्लेख किया है तथा आत्मा के अणु - आकार की चर्चा में रामानुज के विचार उपस्थित किये हैं५ – इन दोनों
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१३८३ तथा दूसरी
अतः उन का समय न्यायदर्शन की चर्चा
१) देखिए आगे सम्पादन सामग्री में हुम्मच प्रति का विवरण २) कन्नडप्रान्तीय ताडपत्रीय ग्रन्थसूची पृ. १०४. ३) देखिए- मूलग्रन्थ पृ. २३९-४० तथा तत्संबंधी टिप्पण, ४) मूल पृ. १३८. ५) मूल. पृ. २०४.