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... वसंतराजशाकुने-चतुर्थो वर्गः । . ग्राम्यो बहिमिगतश्च बायो दिवाचरो निश्यदिवाचरो
हि ॥ वृथाऽथ वा स्वस्थितिकालहीनाश्चिरं भवन्भूपतिदेशभीत्यै ॥२० ॥ कूटपूरकमयूरपुटिन्यः सिंहनादगजवंजुलकाश्च ॥ छिक्करः स कृकवाकुरितीमान् पूर्वतोधिकबलान्कथयंति ॥२१॥
॥ टीका ॥
चलावलं व्यक्त हंसचारेण बलाबलं पूर्वोक्तमेव ॥१९॥ ग्राम्यो बहिरिति॥ग्रामे भवो ग्राम्या बहिर्गतः सन्वृथा स्यात् । तथा बाह्यो बहिर्भवः ग्रामगतो वृथा दिवाचरः निशि वृथा अदिवाचरो रात्रिचरः अहि पृथा। अथ वेति पक्षांतरद्योतनार्थः। स्वस्थितिकालहीना इति । यस्य या स्थितिः क्षेत्रं यस्य यः कालः ताभ्यां हीनो रहितः शकुनःविरंचिरकालं यावद्भूपतिदेशभीत्यै भूपतिश्च देशश्च तयोर्भयाय भवेत् । एतेन शकुनस्य वृथात्वं निरस्तम् ॥ २० ॥ कूटपूरकेति ॥इमान्पूर्वतः पूर्वस्यां दिशि अधिकघलान् अधिकं बलं येषां तान् तथा कथयति प्रतिपादयंति बुधा इति शेषः । कानिमानित्यपेक्षायामाह । कूटपूरकेत्यादि कूटपूरकः कडवीवा क
॥ भाषा ॥
धनमें शुभबलवान्है, और अशुभकार्यनमें अशुभवलवान् है, और दिशाबल देखलेनो और कालकरके रात्रिमें विचरो कहे तिनपक्षिनकोः रात्रिहीमें बल है, और दिवसमें विचरै है 'तिनको दिनमही अलरहै है और तिथिनकरके पडबाकू आदिले 'तिथी तिनको पूर्णारिक्तादि कर्म करके देखलेनो बल अबल और हंसचार करके बलअबल पहले कह्मो काकको पैसेंही जान. लेनो ॥ १९ ॥ ग्राम्यो बहिरिति ॥ ग्रामको रहवेवालोहै और बाहरगयो घाको शकुनथा,
और ग्रामके बाहर वनको रहवेवालो है और ग्राममें आय गयो होय तो वाको शकुन वृथा है, और दिनमें विचरवेवालो है वो रात्रिमें वृथा है और रात्रीमें विचरखे वालोहे वो दिनमें वृथा है, अथवा घेही जो अपनी अपनी स्थिति करके हीन होय जाको जो काल है वा कालकरके रहित होय तो चिरकालपर्यंत राजातें भय करावे देशते भय करावे या कहमें इन शकुननको वृथापनो मिटगयो ॥ २० ॥ कूटपूरकेति ॥ कूटकूरक कड छी ऐसो प्रसिद्ध मयूर मार नामकर प्रसिद्ध है और पुटिनी ये औरदेशमें कौडियाल
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