Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas

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Page 579
________________ भाषाटीकासमेत। (१३) यः स्वदेहोत्थितं मांसं परदेहोत्थितं च वा। स्वप्ने प्रभुङ्क्ते मनुजः ससाम्राज्यं समभुते॥३४॥प्रासादशृङ्गमासायास्वाद्य चान्नं स्वलंकृतम् ॥अगाऽभसि यस्तीर्यात्सभवेत्पृथिवीपतिः ॥ ३५ ॥ छर्दैि पुरीषमथवा यः स्वदेन विमानयेत् ॥राज्यं प्राप्नोति स पुमानत्र नास्त्येव संशयः॥ ३६ ॥ मूत्रं रेतः शोणितं च स्वप्ने खादति यो नरः॥तरङ्गाभ्यञ्जनं यश्चकुरुते धनवान्हि सः ॥३७ ॥ नलिनीदलशय्यायां निषण्णः पायसाशनम् ॥ यः करोति नरः सोत्र प्राज्यं राज्यं समश्नुते ॥ ३८ ॥ फलानि च प्रसूनानि यः खादति च पश्यति ॥ स्वप्ने तस्यांगणे लक्ष्मीलठत्येव न संशयः॥३९॥ यःस्वप्ने चापसंयोगं बाणस्य कुरुते सुधीः ॥ सर्व शत्रुबलं हन्यात्तस्य राज्यमकण्टकम् ॥४०॥ स्वप्ने परस्य योऽसूयां वधंबन्ध नमेव च ॥ यः करोति पुमाल्लोके धनवाआयते तु सः ॥४१॥ स्वप्ने यस्य जयो वै स्याद्रिपूणां च पराजयः॥स चक्रवर्ती राजा स्यादत्र नास्त्येव संशयः॥ ४२ ॥रौप्ये वा काञ्चने पात्रे पायसं यः स्वदेन्नरः ॥ तस्य स्यात्पार्थिवपदं सम्पूर्ण मण्डलको खाजाताहे वह वलात्कारसे सागरपर्यन्त पृथिवीको भोगताहै ॥ ३३ ॥ जो मनुव्य स्वप्नमें अपने या पराये मनुष्यके मांसको खाताहै, वह साम्राज्यको प्राप्त होताहे ॥ ३४ ॥ जो पुरुष महलके ऊपर चढकर अच्छे पक्वान्नको खाकर अगाध जलभेतैरताहै वह पृथिवीपति होताहै ॥ ३५ ॥ जो पुरुष वमन वा विष्ठा खाय और उसका अनादर न करे तो बह अ. वश्य राजा होताहै ॥ ३६ ॥ जो मनुष्य स्वप्नमें मत्र वीर्य और रुधिरपान करताहै और तेल शरीरमें मलताहै वह धनवान होताहै ॥३७॥ जो मनुष्य कमलदलकी सजपर बैठकर खीर खाताहे वह मनुष्य राज्यको प्राप्त होताहै ॥ ३८ ॥ जो मनुष्य स्वप्नमें फल वा फूलोंको खाता या देखताहै उसके आंगणमें नि:संदेह लक्ष्मी लोटतीहै ॥ ३९ ॥ जो बुद्धिमान् स्वप्नमें बाणपर धनुष चढाताहै, वह सब शत्रुदलको मारताहै और उसका राज्य अकंटक होताहै ॥ ४० ॥ जो पुरुष स्वप्नमें दूसरेका वध वा बंधन करताहै वा निंदा करताहै, वह पुरुष लोकमें धनवान होताहै ॥ ४१ ॥ जि. सकी स्वप्नमें जय और शत्रुकी पराजय होतीहै निःसंदेह वह चक्रवर्ती राजा होताहै ॥ ४२ ॥ जो मनुष्य चांदी या सोनेके पात्रमें खीर खाताहै अथवा वृक्ष वा पर्वतपर चढताहै वह राज्यपदको प्राप्त Aho! Shrutgyanam

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