Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas

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Page 602
________________ (36) स्वमाध्याय मैथुनेऽपि वा। स्वामध्ये येनपुंसा स स्नानान्नहि दुःखभाक // 114 // // मया समारब्धमहाप्रयत्नेन दिवानिशम् / / मानग्रन्थप्रमाणानि सञ्चित्य विपुलीकृतः॥ 115 // ग्रन्थः सज्जनसन्तत्यै सततानन्दनन्दनः // भूयात्कार्यकरश्चापि जगदीशकृपावशात् // 16 // इति श्रीमज्योतिर्विच्छीधरेण संग्रहणपूर्वकविरचिते स्वप्रकम लाकरेऽशुभस्वप्नप्रकरणकथनं नाम तृतीयः कल्लोलः॥३॥ धनहानिहो इसमें कुछ संशय नहींहै // 113 // यदि स्वप्नों चाण्डालत्रीका स्पर्श कियाहो जुआ खेलाहो वा मैथुन कियाहो तो स्नानकरलेनेसे स्वप्नका दोष नहीं रहता // 114 // ज्योतिषविद्या जाननेवाले श्रीधरने बडे प्रयत्नसे रात्रिदिन प्रमाणितग्रन्थोंके प्रामाणोंको इकट्ठाकर विचारकर यह ग्रन्थ रचाहै // 115 // यह ग्रन्थ सज्जनपुरुषोंकी सन्तानके लिये परमेश्वरकी कृपासे सदा भानन्ददायकहो और कार्य सिद्ध करनेवालाभी हो // 116 // इति श्रीस्वप्नकमलाकरे पंडित ज्वालाप्रसाद मिश्रकृतभाषाटीकायामशुभस्वप्नप्रकारकथनं नाम तृतीयः कल्लोलः॥३॥ . अथ चतुर्थः कल्लोलः 4. अथ प्रसङ्गतो वक्ष्ये मृत्युकालपरीक्षणम् // यस्य ज्ञानानरो मृत्युं निजं जानाति योगवित् // 1 // आकाशं शुक्रतारां च पावकं च ध्रुवं रविम् // दृष्ट्वैकादशमासोषं स पुमानव जीवति // 2 // मेहयेत्स्वप्नमध्ये यो हदेताप्यथ चेन्नरः॥ हिरण्यं रजतं वापि स जीवेदशमासिकम् // 3 // दृष्ट्वा भूतपिशाचांश्च गन्धर्वाणां पुराणि च / / सौवर्णानथ वृक्षांश्च नव अब प्रसंगसे मृत्युसमयकी परीक्षा कहताहूं योगका जाननेवाला मनुष्य जिसके ज्ञानसे अपनी मृत्युको जानताहै // 1 // स्वप्नमें आकाश शुक्रका तारा अग्नि ध्रुव सूर्यको देखकर मनुष्य ग्यारह महीनसे अधिकनहीं जीताहै // 2 // जो मनुष्य स्वप्नके बीचमें सुवर्णको अथवा चांदीको मूते वा इनकी ठा कर वह दशमहीने जिये // 3 // भूत पिशाच गन्धवोंके नगर सुवर्णके वृक्ष इनको देख Aho! Shrutgyanam

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