Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas

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Page 582
________________ (१६) स्वपाध्याय। पतित्वा पुनरुत्पतेत् ॥ बुद्धिस्तस्य प्रसन्नास्यादनं धान्यं समश्नुते॥६३॥ यस्योत्सङ्गः फलैर्धान्यैःप्रसुनैर्वापि पूर्यते ॥ तस्य लक्ष्मीः प्रतिदिनं वृद्धिमेव समाप्नुयात्॥६४॥ स्वप्नमयं मक्षिका दंशा मशकाश्चापि मत्कुणाः ॥ खादन्ति वा वेष्टयन्ति स स्त्रीमानोत्यनुत्तमाम् ॥६५॥ यः स्वप्ने शोकसंतप्तः सरितः कमलानि च ॥ आरामान्पर्वतांश्चैव पश्येच्छोकात्स मुच्यते ॥६६॥ फलं पीतं तथा पुष्पं रक्तं वा यस्य दीयते ॥ सुवर्णलाभस्तस्य स्यात्पद्मरागं च वा लभेत् ॥ ६७॥ स्वप्ने यः कमलामूर्ति शुद्धवस्त्रां प्रपश्यति ॥ लक्ष्मीः सरस्वती वाथ प्रसन्ना तस्य जायते ॥ ६८॥ शुभ्रांगरागवसनैः परिभूषितविग्रहा ॥ आलिङ्गति च यं नारी तस्य श्रीविश्वतोमुखी ॥६९॥ श्रोत्रयोः कुण्डलयुगं मुक्ताहारो गले तथा ॥ मस्तके मुकुटो यस्य स राजा भवति ध्रुवम् ॥ ७० ॥ स्वप्ने यस्य भवेच्छोको परिदेवयते च यः॥ रोदिति म्रियते यश्च तस्य स्यात्सर्वतः सुखम् ॥ ७१ ॥ गृहांगणे यस्य पुंसः कुमु दानि करांजलौ ॥ गृहीत्वोपहतिं कुर्यात्तस्य स्याद्राज्यमुत्तउसकी बुद्धि निर्मल होतीहै और वह धनधान्यको भोगताहै ॥६३ ॥ जिसकी गोदी फलोसे धान्यसे भर उसकी लक्ष्मी प्रतिदिन वृद्धिको प्राप्त होतीहै ॥६४ ॥ स्वप्नमें जिसको मक्खी मच्छर खटमल काटतेहैं, वा ऊपर गिरतेहैं वह उत्तम स्त्रीको प्राप्त होताहै ॥६५॥ जो पुरुष शोकसे दुःखित होकर स्वप्नमें नदी कमल वगीचे पर्वत देख वह शोकसे छूटताहै ॥६६॥ पीला फल वा लाल पुष्प जिसको देताहै उसको सुवर्गका लाभ होताहै, वा पद्मराग मणिको पाताहै ॥ ६७ ।। स्वप्नमें जो शुद्धवस्त्रको धारण करे हुए लक्ष्मीको देखताहै उस पुरुषसे लक्ष्मी अथवा सरस्वती प्रसन्न होतीहै ॥ ६८ ॥ सफेदअंगवाली रंगेवस्त्रोंसे सुशोभित स्त्री जिस पुरुषको आलिङ्गन करतीहै उसके लक्ष्मी सामने आतीहै ॥ १९॥ जिसको दोनों कनमें कुण्डल तथा गलेमें मोतियोंका हार मस्तकपर मुकुट होताह वह पुरुष निश्चय राजा होताहै ॥ ७० ॥ जिसको स्वप्नमें शोकहो और जो परिताप करताहै रोताहै मरताहै उसको सम्पूर्ण सुख होताहै ॥ ७१ ॥ जिस पुरुषके घरके आँगनमें कमल (बबूले ) हों और दोनों हाथोंसे ग्रहण कर इकडे Aho ! Shrutgyanam

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