Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas

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Page 583
________________ भाषाटीकासमेत। (१७) मम् ॥७२॥ रत्नयुक्ते च पयके शयनं यः करोति वै ॥ सिंहासनेऽथवा तिष्ठत्तस्य राज्यमकण्टकम् ॥ ७३ ॥ सुवेषधारिभिः पुंभिः पूज्यते यः पुमानिह ॥ धनैर्धान्यैः समायुक्तः स भवेन्मानवो भुवि ॥७४॥पाणी वीणां समादाय जागृयायो नरोत्तमः॥ कन्यां कुलीनां मान्यां च लभते नात्र संशयः ॥ ७९ ॥ स्वदेहवसितं वस्त्रं शयनं सौध एव च ॥ यस्य स्वप्नेऽग्निना दग्धं तस्य श्रीः सर्वतोमुखी ॥७६॥ घनवस्त्रैवष्टितो यः शुभेदह्यत चाग्निना॥ स श्रेयोभाजनं लोके भवत्येव न संशयः॥७७॥ऋतुकालोद्भवं पुष्पं फलं वा भक्षयेच्च यः ॥ विपत्तौ तस्य लक्ष्मीः स्यात्प्रसन्ना नात्र संशयः॥ ७८ ॥ बहुवृष्टिनिपातं यः पश्येत्स्वप्नेसमाहितः ॥ ज्वलन्तमनलं वापि तस्य लक्ष्मीर्वशंगता ॥ ७९ ॥ पशुं वा पक्षिणं वापि हस्तेनास्पृश्य यो नरः॥विबुध्येत सुकन्या तं वृणु यानात्र संशयः॥८॥गोवृष मानुषं सौधं पक्षिणं कुञ्जरं गिरिम्।। समारुह्य पिबेत्तोयनिधि स नृपतिर्भवेत्॥८॥स्वमस्तकोपरितनं करें उसका उत्तम राज्यहो ।। ७२ ॥ रत्नोंसे युक्त पलंगपर. जो शयन करताहै अथवा सिंहासनपर बैठता है उसका अकंटक राज्य होताहै ॥ ७३ ॥ जो इस संसारमें अच्छे बेषधारी पुरुषोंसे पूजन किया जाय वह पुरुष संसार में धन और धान्यसे युक्त होताहै ।। ७४ ।। जो पुरुष हाथमें वीणा लेकर जागे वह पुरुष संसारमें कुलीन कन्याको प्राप्त होताहै ॥ ७९ ॥ अपने देहके पहरनेके वत्र महल शयनस्थान जिसका स्वप्नमें अग्निसे दग्धहो इसको लक्ष्मी सबप्रकारसे प्राप्त होतीहै ॥ ७६ ॥ सफेद सान्द्रवस्त्रोंसे वेष्टित जो पुरुष अग्निसे जले वह संसारमें निःसंदेह कल्याणका भाजन होताहै ।। ७७ ॥ जो पुरुष ऋतुकालमें उत्पन्न हुए फल वा पुष्पको खाय, विपत्तिमें उसकी लक्ष्मी प्रसन्न होतीहै इसमें कुछ सन्देह नहीं ॥ ७८॥ स्वप्नमें एकाग्रचित्त होकर जो बहुत वर्षाको देखै अथवा बलतीहुई अग्निको देखे उसकी लक्ष्मी वशमें होतीहै ॥ ७९ ॥ पशु. वा पक्षीको हाथसे छूकर जो मनुष्य जागे उस पुरुषको अच्छी कन्या वरें इसमें कुछ संशय नहींहै ।। ८० ॥ गौ बैल मनुष्य महल पक्षी हाथी पर्वतपर चढकर जो समुद्रको पिये वह पुरुष राजा होताहै ॥ ८१ ॥ ऊपर चढेहुए अपनेको देखतेहुए जिसपुरुषका घर जले वह पुरुष रात्री में Aho! Shrutgyanam

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