Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas
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भाषाटीकासमेत।
(३३) 'चाथ संविशेत् ॥ यो नरस्तस्य सुलभं कृतान्तनिलयं भवेत् ॥८६॥ गोमयं कर्दमं रक्षां धूलिं यश्च विमर्दयेत् ॥ स्वप्नमध्ये शरीरं स्वं सत्वरं स मृतो भवेत् ॥ ८७॥ गोरोचनानि शानीलीकजलैगोत्रलेपनम् ॥ जायते यस्य वै स्वप्ने स स्याच्छीघ्रं यमातिथिः॥८८॥ मेदो दुर्गन्धियुक्तानं यः खादति नरो भुवि ॥ स्वप्नमध्ये च तस्य स्यादवश्यं मरणं रुजः।। ॥ ८९॥ कान्त्रिकक्षौद्रतक्राणां तैलस्य च घृतस्य च ॥ स्वप्नमध्ये भवेद्यस्याङ्गाभ्यङ्गः स म्रियेत वै॥ ९० ॥ कुविन्दसूचिकाकारतक्षायस्कारचर्मिकाः॥ धीवराः शबराः स्वप्ने यं स्पृशन्ति स दुःखभाक् ॥ ९१ ॥ विकलाङ्गाः पङ्गवश्च वैद्याः खर्वाश्च नर्तकाः ॥ चेटाश्च द्यूतकाराश्च यं स्पृशन्ति स दुःखभाक् ॥ ९२॥ कुरंटकः करनश्च कुटजः सप्तपल्लवः॥ एतेषां दर्शनं नाशकरं जग्धिस्तु किं ततः ॥९३॥ कर्णिकारः शिशपा च धवः खदिर एव च ॥ बदरी च शमी चैषां दर्शनं नाशकारकम् ॥९४॥ कुशकाशाकरतृणीकपाकमदनद्रुमाः॥ स्वप्ने दृष्टिपथं याता महादुः
खकरा ध्रुवम् ॥ ९५॥ जपाचम्पकपुष्पाणि रक्तानि यदि को प्राप्त होताहै ॥ ८६ ॥ जो स्वप्नमें गोबरको कीचको राखको अपने शरीरमें मलतहि वह शीघ्र मरताहै ॥ ८७ ।। गोलोचन हलदी नील कजल जिसके शरीरमें मलाजाताहै वह शीघ्र मरताहै ॥ ८८ ॥ जो पुरुष चर्चाको दुर्गन्धियुक्त अन्नको स्वप्नमें खाताहै उसका अवश्य मरण होताहै ॥ ८९॥ कांजी सहत मट्ठा तिल घतका जिसके शरीरपर लेप होताहै वह मरताहै। ९० ॥ जिस पुरुषको स्त्र में जुलाहा दर्जी बढई लुहार चमार धीमर म्लेच्छ स्पर्श करतेहैं वह दुःखी होताहे ॥ ९१ ॥ जन्मसे किसी अंगरहित, लङ्गडे हकीम विलसटिया नट चेटी जुआरी जिसको स्पर्श करतेहैं वह दुःखभागी होताहै ॥ ९२ 'पीलागुलाबांस कज्जुआ कुडावृक्ष सप्तपर्ण इनका दर्शन नाश कारकहे खाना तो क्याहै ॥ ९३ ॥ कनेर सीसम धव खैर वेर जण्ड इनका दर्शन नाशकारकहै ॥९४ कुशकांसके अंकुर तृण माकलके वृक्ष जिसको स्वप्नमें दीखें उसे निश्चय दुःख होय ॥ ९५ जो पुरुष जपाके पुष्प चम्पेके पुष्प लाल देखता है वह शीघ्र मरताहै ॥९॥
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