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(२०)
स्वपाध्याय। स्यालक्ष्मीस्तस्य वै दासी तिलमात्रं न संशयः ॥ १०१॥ य आत्मानं स्वप्नमध्ये पिबन्तं धूममीक्षते ॥ तस्य लक्ष्मीः प्रसन्ना स्यादव नास्त्येव संशयः ॥ १०२॥ धूमज्वाला विरहितं वह्नि यो गाहते नरः॥ ग्रसते वा स्वप्नमध्ये तस्य लक्ष्मी वेढा ॥ १०३॥ अगम्ययोषिति गतावभक्ष्यस्य च भक्षणे ॥ शंकाविरहितं पुंसां भवन्ति शतशो रमाः ॥ १०४ ॥ स्वप्ने विहङ्गहरिणशङ्खमीनाब्धिशुक्तयः ॥ करे भवन्ति यस्यासौ धनाढयः प्रथितो भवेत् ॥ १०५॥ व सुन्धराया ग्रसनं सेतोवा बन्धनं च यः ॥ स्वप्ने यः कुरुते धीमांस्तस्य संपत्समृभुयात् ॥ १०६॥ चतुरंगवलं पश्येदा त्मानं वा मृतं तथा ॥ कदापि तस्य संपत्तेर्न नाशः स्यादिति स्मृतिः ॥ १०७॥ मुक्ताफलं विद्रुमं वा वल्लीं चाथ कपर्दिकाम् ॥ यः प्राप्नोति प्रपश्येद्वा न चिरेण धनं लभेत् ॥१०८॥केयूरहारमुकुटवेयकझपाङ्गदम् ॥ स्वप्ने प्राप्नोति वा पश्येत्तस्य लक्ष्मीनिरन्तरम् ॥१०९॥ कर्णाभरणला
लाटभूषणं पत्रवल्लरीम् ॥ स्वप्ने यः प्रेक्षते धन्यस्तस्य वित्तं लमी उसकी दासीहो इसमें तिलमात्र भी संशय नहींहै ॥ १०१ ॥ जो स्वप्नमें अपनेको धुआँ पीते देखे उससे लक्ष्मी प्रसन्न होतीहै, इसमें कुछभी सन्देह नहींहै ॥ १०२ ॥ जो पुरुष स्वप्नमें धूप ज्वाला रहित अग्निको विलोडन करै वा खाय उसकी लक्ष्मी दृढहो ॥ १०३ ॥ अगम्यास्त्रीके पास जानेपर अभक्ष्यके भक्ष्यमें जो शंका रहितहों उस पुरुषके धन स्त्री सैंकडों होतीहैं ॥ १०४ ॥ जिस पुरुषके स्वप्न में पक्षी हरिण शंख मछली सीपी हाथमें आवें वह पुरुष प्रसिद्ध धनाढय होत है ।। १०५ ॥ जो पुरुष स्वप्नमें पृथ्वीका ग्रास करताहै, और पुल बांधताहै उसकी सम्पत्ति वृद्धिको प्राप्त होतीहै ॥ १०६ ॥ जो चार प्रकारके अंगवाली सेनाको देखे अथवा अपने को मरा हुआ देख उस पुरुषकी सम्पत्तिका नाश कभी भी नहो इस प्रकार स्मृति कहतीहै ॥ १०७ ॥ मोतीको' मंगेको, वा वेलको वा कौडीको स्वप्नमें प्राप्त होता देखें वह शीघ्रही लक्ष्मीको प्राप्त हो । १०८॥ बाजूबन्द हार मुकुट कंठा फल मछलीके रूपका कोई गहना जो स्वप्नमें देखताहै वा पाताहै उसे धनकी प्राप्ति होतीहै ॥ १०९ ॥ कानके गहने, मस्तकके गहने, पत्रावळको जो
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