Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas

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Page 580
________________ ( १४ ) स्वप्राध्याय । वृक्ष शैलेऽथवा स्थितः ॥ ४३ ॥ शैलग्रामवनैर्युक्तां भुजाभ्यां यो महीं तरेत् ॥ अचिरेणैव कालेन स स्याद्राजेति निश्चितम् ॥ ४४ ॥ यः शैलशृङ्गमारुत्योत्तरति श्रममन्तरा ॥ स सर्वकृतकृत्यः सन्पुनरायातिवेश्मनि ॥ ४५ ॥ विषंपीत्वा मृति गच्छेत्स्वप्नेयः पुरुषोत्तमः ॥ सभोगैर्बहुभिर्युक्तः क्लेशा दोगाद्विमु च्यते॥४६॥ यः कुंकुमेनरक्तांगःस्वप्ने स्वोद्वाहमीक्षते ॥ जगन्मध्ये धनैर्धान्यैर्युक्तः सुखमवाप्नुयात् ॥ ४७ ॥ यः शोणितस्य नद्यां वै स्नायाद्रक्तं पिबेच्च वा ॥ यस्याङ्गाद्रुधिरस्रावो धनवान्स भवेद्ध्रुवम् ॥ ४८ ॥ यः स्वप्नेऽन्यशिरश्छिन्द्याद्यस्य वाछियते शिरः ॥ स सहस्रधनं प्राप्य विविधं सुखमश्नुते ॥ ४९ ॥ जिह्वायां यस्य वै स्वप्नेयश्च वान्यस्य लेखयेत् ॥ विद्या तस्य प्रसन्ना स्याद्राजा भवति धार्मिकः ॥ ५० ॥ नारी या पौरुषं रूपं नरः स्त्रीरूपमप्यथ ॥ पश्येत्स्वस्यैव चेत्स्वप्ने द्वयोः स्यात्प्रीतिरुत्तमा ॥ ५१ ॥ आरुह्योन्मत्तकरिणं पुरुषं वा प्रजागृयात् ॥ बिभीयान्न च यः स्वप्रेऽतुलं तस्य भवेद्धनम् ॥ ५२ ॥ अश्वारूढः क्षीरपानं जलपानमहोता है ॥ ४३ ॥ जो पुरुष स्वप्नमें पर्वत ग्राम और बनसे युक्त पृथिवीको तरता है, थोडेही कालमें वह अवश्य राजा होता है यह निश्चय है ॥ ४४ ॥ जो पुरुष पर्वत के शिखरपर चढकर विनापरिश्रमके उतरताहै वह सब कार्यों को पूर्ण कर फिर अपने घरको आता है ॥ ४५ ॥ स्त्रमें जो पुरुष विष खाकर मरजाय, वह रोग और क्लेशोंसे छूटकर बडे भोगोंको भोगता है ॥ ४६ ॥ जो पुरुष कुमकुमसे शरीर रंगकर स्वममें अपना विवाह देखता है वह जगतमें धनधान्यसे युक्त है। सुखपाताहै ॥ ४७ ॥ जो पुरुष स्वप्नमें रुधिरकी नदीमें स्नानकर रुधिर पीता है वा जिसके अंरुधिर निकलता है वह अवश्य धनी होता है ॥ ४८ ॥ जो स्वप्नमें दूसरेका शिर काटे वा अपना शिर काटाजाय वह सहस्रोंका धन पाकर महासुखी होता है ॥ ४९ " स्वनमें जिसकी जिह्वापर कोई लिखे, वा लिखावे उसपर सरस्वती प्रसन्न होती और वह धर्मात्मा राजा होता है ॥ ५० ॥ जो पुरुष स्वप्न में स्त्रीका रूप देखे वा स्त्री पुरुषका रूप देखे उन दोनों में उत्तमप्रीति होती है ॥ ५१ ॥ जो पुरुष स्वप्न में अपनेको मतवाले हाथी पर चढा देख कर जागे और डरे नहीं तो उसके बहुत धन होता है ॥ ५२ ॥ जो पुरुष घोडेपर चढकर दूधपिये Aho! Shrutgyanam

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