Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas

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Page 578
________________ ( १२ ) स्वमाध्याय । अग्रतः प्रोच्य प्राप्नुयान्न हि तत्फलम् ॥ देवानां च गुरूणां च स्मृतिर्दुःस्वप्ननाशिनी ॥ २४ ॥ तस्माद्रात्रौ स्वापकाले विष्णुं कृष्णं रमापतिम् ॥ अगस्ति माधवं चैव मुचुकुन्दं महामुनिम् || २५ || कपिलं चास्तिकमुनिं स्मृत्वा स्वस्थः सुधीर्जनः ॥ शयीत तेन दुःस्वप्नं न कदाचित्प्रपश्यति ॥ २६ ॥ स्वप्नमध्ये पुमान्यश्च सिंहाश्वगजधेनुजैः ॥ युक्तं रथं समारोहेत्सभवेत्पृथि वीपतिः ॥ २७ ॥ श्वेतेन दक्षिणकरे फणिना दृश्यते च यः ॥ पञ्चरात्रे तस्य भवेद्धनं दशसहस्रकम् ॥ २८ ॥ मस्तकं यस्य वैस्वप्ने यश्च स्वप्नेऽथ मानवः । स च राज्यं समाप्नोति च्छिद्यते वा छिनत्ति वा ॥ २९ ॥ लिङ्गच्छेदे चपुरुषो योषिद्धनमवानुयात् । योनिच्छेदे कामिनी च पुरुषाद्धनमाप्नुयात् ॥ ३० ॥ छिन्ना भवेदस्य जिह्वा स्वप्रे स पुरुषोऽचिरात् ॥ क्षत्रियः सार्वभौमत्वमितरो मण्डलेशताम् ||३१|| श्वेतदन्तिनमारुह्य नदीतीरे च यः पुमान् ॥ शाल्योदनं प्रभुंक्ते वै स भुङते निखलां महीम् ॥ ३२ ॥ सूर्याचन्द्रमसोर्बिम्बं समयं ग्रसते च यः ॥ स प्रसह्य प्रभुङक्ते वै सकलां सार्णवां महीम् ||३३|| ॥ २८ ॥ स्त्रमको कहकर उसका फल नहीं पाता, देवता तथा गुरुओं का स्मरण भी दुःस्वप्ननाशक हैं ॥ २४ ॥ इसकारण रात्रिको सोतेसमयमें विष्णु, कृष्ण, लक्ष्मीपति, अगस्त्य, माधव, मुचुकुन्द, महामुनि ॥ २५ || कपिल आस्तिकका स्मरण करके बुद्धिमान् मनुष्य सोवे तो कभी दुःस्वप्न नहीं देखता ॥ २६ ॥ जो पुरुष स्त्रममें सिंह घोडे हाथी बैल जुतेरथमे चढता है वह राजा होता है ॥ २७ ॥ जिसके दहने हाथमें श्वेतसर्प काटै, पांचदिनों उसके पास दशसहस्र धन आता है स्वममें जिस मनुष्यका मस्तक कटे, वा जो काटै, वे दोनों राज्य को प्राप्त होते हैं ॥ २९ ॥ छेदन होनेसे पुरुष स्त्रीधनको प्राप्त होता है, योनिच्छेदन होनेसे स्त्री पुरुषरूपी धनको प्राप्त ॥ ३० ॥ जिस पुरुषकी स्त्रममें जिह्वा छेदन हो वह यदि क्षत्रियहो तो सार्वभौम राजा हो, यदि अन्य कोई हो तो मण्डलेश्वर होता है ॥ ३१ ॥ जो पुरुष श्वेतहाथीपर चढ़कर नदी के किनारे मट्टी के चावलों का भात खाता है, वह सब पृथिवीको भोगता है || १२ || जो पुरुष स्त्रमने सूर्य चन्द्रमा के Aho! Shrutgyanam लिङ्ग होती है।

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